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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
महल के झरोखों में खड़ी थी, तभी जाड़े की कड़कड़ाती ठण्डी में दिगम्बरावस्था में अपने प्रिय भाई को देखकर दु:खी होकर असह्य ठंडी की कल्पना मात्र से कांप उठी। भाई के प्रति ममत्व के कारण त्यागी भाई की ऐसी कष्टदायक स्थिति देखकर वह उदास रहने लगी। सांसारिक भोगों से विरक्त रहने से उसके पति ने मुनि की खाल खींचवा ली फिर भी मुनि ने अपनी दृढ़ता, एकानता, क्षमा व अहिंसा वृत्ति का अपूर्व परिचय देकर समाधिमरण देवगति प्राप्त की।
इस प्रकार कथा में करुण रस का सुन्दर परिपाक हुआ है। कथा में अवान्तर कथाएँ आ जाने से प्रवाह में शिथिलता आ गई है, फिर भी मुख्य कथा में विशेष रुकावट नहीं आने पाई है। कथोपकथन में विशेष सजीवता न होने पर भी छोटे-छोटे वाक्य-गठन से भाषा का रूप अच्छा रहा है। धर्मों की जहाँ तहाँ व्याख्या करते समय कथाकार के पद-औचित्य का उल्लंघन हुआ है। चरित्र-चित्रण की दृष्टि से खनककुमार और देवबाला का चरित्र-चित्रण सुन्दर हुआ है। महासती सीता :
रामायण की परंपरा प्रसिद्ध कथा में काफी परिवर्तन है, जिसमें पौराणिक आख्यान को अपनी कल्पना द्वारा अत्यन्त चटपटा बना कर सुस्वादु बनाने का प्रयत्न किया गया है। जैन पुराण में राम कथा में काफी परिवर्तन किया गया है। और वर्मा जी ने जैन रामायण का अनुसरण किया है। इसकी कथा वस्तु निम्न रूप से संक्षेप में है। कथा-वस्तु :
मिथिला नगरी की रानी विदेहा के गर्भ से पुत्र और पुत्री रत्न दोनों पैदा हुए। सर्वत्र आनन्द छा जाता है, लेकिन थोड़ी ही देर में आनन्दोल्लास के स्थान पर उदासी फैल गई, क्योंकि कोई आँख के तारे समान पुत्र को चुराकर ले गया। काफी खोज करने पर भी बालक का पता न चला।
पुत्री का नाम सीता रखा गया। बड़ी होने पर उसके योग्य वर की खोज के लिए राजा जनक चिंतित हुए। उन्होंने सैंकड़ों राजकुमार देखे, पर सीता के योग्य एक भी न जंचा। उसी समय अयोध्यापति दशरथ को बर्बर देश के म्लेच्छ राजाओं का उपद्रव शांत करने के लिए सहायतार्थ बुलाया। जब अयोध्या से सेना प्रस्थान करने लगी तो राम ने आग्रह पूर्वक सेना के साथ आने की अनुमति ले ली। वहाँ आकर मलेच्छ राजाओं पर आक्रमण कर उन्हें पराजित किया। राम 1. प्रकाशक-आत्मानंद जैन ट्रेक्ट सोसायटी, अंबाला, शहर।