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आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु
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करुणा तथा परोपकार वृत्ति भी भरी पड़ी है। इसी स्वभाव वश वह पद्मिनी को दुःख-मुक्त करता है। और धर्मात्मा की अंतिम इच्छा पूर्ण करता है वह दृढ़ निश्चयी भी प्रतीत होता है, जो एक बार संसार की क्षण भंगुरता व मिथ्या रूप देख तुरन्त ही राज वैभव ठुकराकर आत्म कल्याणार्थ सन्यस्त ग्रहण कर लेता है। पद्मिनी का चरित्र-चित्रण भी लेखक ने कुशलता से किया है। नारी की श्रद्धा, निष्कपटता, त्याग एवं सतीत्व का परिचय मिलता है। उसमें लज्जा है, स्नेह है, ममता-मृदुता है, तो अधर्म के प्रति कठोरता भी है। इसीलिए वह अधर्म के फन्दे में फंसकर भी अपने शील को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए सचेष्ट है। वह अड़िग-पतिव्रता धर्म का पालन भी करती है। अपने होने वाले पति रत्नेन्दु को एकनिष्ठ प्रेम करने लगती है। इस उपन्यास की विशेषता के सम्बंध में डॉ० नेमिचन्द्र जी लिखते हैं-"लेखक ने पात्रों के चरित्र के भीतर बैठकर झांका है, जिससे चरित्र मूर्तिमान हो उठे हैं। भाषा, विषय, भाव, विचार, पात्र
और परिस्थिति के अनुकूल परिवर्तित होती गई हैं। यद्यपि भाषा सम्बंधी अनेक भूलें इसमें रह गई हैं, तो भी भाषा का प्रवाह अक्षुण्ण हैं।" सुशीला :
यह उपन्यास संपूर्ण रूप से धार्मिक है। धार्मिक लक्षणों व सिद्धान्तों की व्यंजना लेखक ने रोचक कथावस्तु, विविध पात्रों के मार्मिक चरित्र-चित्रण एवं प्रकृति के सुन्दर वर्णनों द्वारा स्पष्ट, सरल और आकर्षक शैली में किया है। इसी कारण कर्मबन्ध, गुणस्थानक जैसे विलष्ट विषयों को पाठक कथा के माध्मय से आसानी से समझ पाता है।
'सुशीला' उपन्यास के लेखक हैं रचनाम धन्य प्रसिद्ध जैन लेखक पं० गोपालदास बरैया। इसकी कथा-वस्तु आकर्षक और शिक्षाप्रद है, लेकिन घटनाएँ श्रृंखलाबद्ध नहीं है तथा घटनाओं का प्रमाण अत्यन्त विशाल होने से कभी-कभी शिथिलता आ पाती है। लेकिन अध्याय का आरंभ व अन्त कलापूर्ण ढंग से होता हैं जिससे पात्रों एवं घटनाओं के आर्थिक्य की ओर कम ध्यान रहता है। जीवन के आरम्भ और अन्त की श्रृंखला हमारे सामने अंत में स्पष्ट हो जाती है। कथावस्तु :
कथावस्तु पौराणिक ढंग की काल्पनिक प्रतीत होती है। विजयपुर के महाराज श्रीचन्द के पुत्र जयदेव की योग्यता, गुण, शील, विद्या आदि से प्रसन्न होकर महाराज विक्रम सिंह अपनी रूप-गुण-शीला पुत्री सुशीला का ब्याह कर