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आधुनिक हिन्दी-जैन-गद्य साहित्य : विधाएँ और विषय-वस्तु
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के निवासियों ने उसे कभी किसी से लड़ते-झगड़ते अथवा कटु-वचन कहते नहीं सुना। एक बार एक निरपराधी जीव को पीटते देखकर उसे मूर्छा आ गई थी।
भूपसिंह जयदेव का अन्तरंग मित्र है। सुख-दुःख में सदैव परछाईं की तरह उसका साथ निभाता है। उदयसिंह के द्वारा जब नौका डुबाई जाती है, तब वह जैसे-तैसे बच पाता है और होश संभालते ही जयदेव व सुशीला को खोजने के लिए अथक प्रयास करता है। भूपसिंह के बारे में परिचय देते हुए कहा गया हैं कि-इस समय भूपसिंह की आयु 24 वर्ष के अनुमान है। वह पिता की शिक्षा से ऐसे साँचे में डाला गया है कि श्रेष्ठ से श्रेष्ठ राजाओं में जो गुण आवश्यक है वे सब इस समय उसमें वर्तमान है। राजनीति, धर्मनीति, युद्धनीति, समाज आदि संपूर्ण विषयों में वह असाधारण ज्ञान रखता है। इसके अतिरिक्त काव्य कोष, व्याकरण न्यायादि विषयों में भी उसका अच्छा प्रवेश है वह इस समय राज्य कार्य बड़ी कुशलतापूर्वक चलाता है।
उदयसिंह एक साहूकार का पुत्र है, किन्तु वासना एवं बुरी संगति के कारण उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है। कामवासना के कारण वह बलात्कार को बुरा नहीं समझता। लेखक ने सभी पुरुष पात्रों के चरित्र-चित्रण में औपन्यासिक कला की अपेक्षा उपदेशक या धर्मशास्त्र का दृष्टिकोण विशेष रखा है। अतः पात्रों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण नहींवत् हो पाया है।
स्त्री पात्रों में एक ओर सुशीला जैसी रमणीय शीलवती नारी है, तो दूसरी ओर रामकुंबरी जैसी दुराचारिणी नारी का चरित्र अंकित किया गया है। दोनों का यथार्थ रूप से चरित्र-विश्लेषण किया गया है। पाठकों के समक्ष नारी के दोनों रूप उपस्थित किए गए हैं, जो हमें समाज में दृष्टिगत होते हैं। सुशीला के आंतरिक गुणों का वर्णन करते हुए लिखा गया है कि-सुशीला के विचार उत्कृष्ट हैं, उत्युत्कृष्ट हैं। वह प्रत्येक बात में से जो सिद्धान्त शोध के निकालती है, वे कुछ अपूर्व ही होते हैं। वह यद्यपि अभी अविवाहित है, परन्तु विवाहित स्त्रियों का क्या धर्म है, उसे वह भलीभाँति जानती है। कुलीन वंशोद्भावक पतिपरायण स्त्रियों के धर्म का उसे खूब परिचय है। क्षमा, शील, संतोष प्रकृति धर्मों ने उसके हृदय को अपना विश्रामस्थान बना लिया है। सांसारिक नाना प्रपंचों के समीर ने उसके शरीर को कभी स्पर्श भी नहीं किया।
प्रत्येक सर्ग में प्रकृति का मधुर, आह्लादक और सहज वर्णन प्राप्त होता है। प्रकृति प्रायः उद्दीपन के रूप में ही चित्रित की गई है। पात्रों की मनोदशा को अभिव्यक्त करने के लिए प्रकृति भी उसी रंग में रंगी मिलती है, लेकिन