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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
प्रभो! तुम्हीं धर्म-प्रवृत्ति हेतु हो, अपार-संसार-समुद्र-सेतु हो, प्रसिद्ध तीर्थंकर नाम से सदा, हुए समुत्पन्न विपन्न-त्राण हो।'
उपर्युक्त विवेचन से 'वर्द्धमान' महाकाव्य के नायक का रूप-गुण-शील चरित्र स्पष्ट हो जाता है तथा इस महाकाव्य के प्रमुख पात्र व नायक के रूप में भगवान महावीर ही कवि को पूर्णतः अभीष्ट है तथा कवि की यह मान्यता यथोचित् है। 'वर्द्धमान' महाकाव्य में रस :
___'महाकाव्य में शृंगार शान्त या वीर रस में से किसी एक की प्रमुखता एवं गौण में अन्य रसों की चर्चा होनी चाहिए। महाकाव्य 'वर्द्धमान' में जैन-धर्म के अन्तिम तीर्थंकर आध्यात्मिक नेता नायक-रूप में स्थित होने से शान्त रस की प्रमुखता स्वाभाविक रूप से है। शान्त रस की मुख्यता के साथ शृंगार-रस के छींटों से काव्य को मधुर व रोचक बनाने की अनूप शर्मा ने भरसक कोशिश की है। त्यागी-वैरागी नायक-रस-शृंगार, विलास व वैभव से कोसों दूर रहते हैं। अतः ऐसे नायक के साथ नायिका का सर्वथा अभाव काव्य को रसमय नहीं होने देता और कवि को शृंगार वर्णन का भी अवकाश नहीं मिलता। कवि 'मुक्ति देवी' को नायिका एवं 'काम' या 'मार' को प्रति नायक बनाकर रीति तो निभा सकते हैं, लेकिन मानवीय भावनाओं को उद्वेलित करने की क्षमता कृत्रिम उपादानों से संभवित नहीं हो पाती। अनूप जी के इस काव्य में नायक भगवान महावीर होने से महाकाव्य की आवश्यकता के अनुकूल शान्त रस मुख्य है। वैसे महारानी त्रिशला के नख-शिख तथा सिद्धार्थ-त्रिशला के स्वस्थ, सौहार्दमय दाम्पत्य जीवन के वर्णन में शृंगार रस की सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है। शान्त-रस :
भक्ति प्रधान इस महाकाव्य में नायक वर्द्धमान शान्त रस के मुख्य आलंबन हैं। उनके चिन्तन, मनन के वर्णन से शान्त-रस की तीव्रता अनुभव की जाती है। बचपन से ही महावीर भावनाशील स्वभाव के हैं। ऋजु-बालिका नदी के सुरम्य तट पर वे महल के झरोखों से बाहर देखते घण्टों तक सोचते रहते हैं। प्राणी-मात्र के प्रति करुणा व प्रेम की धारा बहाते हुए उन्हें अत्यन्त आनंद एवं शान्ति प्राप्त होती है। सर्व जीवों के अभ्युदय के लिए, सर्वत्र हिंसा की जो 1. द्रष्टव्य-अनूप शर्मा कृत 'वर्द्धमान', पृ. 263-47. 2. द्रष्टव्य-दण्डी कृत काव्यादर्श, पृ. 1, 14, 49.