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आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन
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देख लेंगे ऐसा राजा का निर्णय सभा में सुनकर घर पर आकर सेठ उद्विग्न हो गए। गुरु निंदा से बचने के लिए असत्य वचन कहने का पाप किया था। राजा गुरु का कोढ़ी शरीर देखकर सजा देंगे, इसका भी डर नहीं था, लेकिन गुरु का अपमान होगा यह सोच इसका उपाय ढूंढ़ने के लिए सांझ की बेला में गुरु के पास जाकर यहाँ से प्रस्थान कर देने को कहते हैं। गुरु के पूछने पर सच-सच बता देते हैं। सेठ की गुरु-भक्ति देख निश्चित रहने के लिए गुरु ने कहा। दूसरे राजा ने सभासदों एवं सेठ जी के साथ देखा तो गुरु जी संपूर्ण निरोगी थे। सेठ भी स्तंभित हो गये
सोने-सा अतिदीप्त, रोग से शून्य, तपोबल से जगमग गुरु का देख शरीर, सेठ रह गए खड़े कुछ दूर॥
धर्म के प्रभाव से कुछ भी असंभावित नहीं है ऐसा गुरु के कहने पर गुरु निंदक सभासदों ने क्षमा माँग कर जय जय पुकारी। सभी गुरू के चरणों में जा झुके। सेठ धन्य-धन्य हो गये। 'पुजारी' में आडम्बर युक्त एवं नामरटण तथा सच्ची पूजा का अंतर स्पष्ट किया गया है। सच्ची पूजा में श्रद्धा व प्यार युक्त भक्ति भावना होती है। कामना-वासना के स्थान पर संतोष एवं शान्ति होती है। जबकि बनावटी पूजा में लोभ एवं ममता होती है। सांसारिक ऐषणाएँ छिपी रहती हैं। दुन्यावी चाह पूरी न होने पर पूजा को कोसा जाता है। छोड़ भी दी जाती है। जबकि सच्ची भक्ति किसी भी प्रकार के आघात-कष्ट आने पर भी प्रभु इच्छा समझकर भक्ति का प्रवाह अखण्ड रहता है।
श्रद्धा और भक्तिमय पूजा है अतीव सुखकारी। ___ 'गुलामी' में सीता वनवास की छोटी-सी कथा है। काव्य साधारण कोटि का है, जो जैन-पुराण पर आधारित है। गुलामी की दशा के कारण ही सीता को वन में छोड़ने की रामाज्ञा का पालन सेनापति को करना पड़ा, इसका हार्दिक खेद है। सीता जी को तीर्थ-दर्शन के बहाने-ले जाने के बाद गाढ़ जंगल में छोड़ देने की आज्ञा के मुताबिक सेनापति सीता जी को वहीं उतर जाने को कहने से पहले फूट-फूट कर रोता है और सीता के पूछने पर कहता है
आज यदि स्वाधीन मैं होता अहो, पाप यह न होता मेरे हाथ से, नारकी पन का घृणित मिलता नहीं, मर्म-बेधी हुकुम रघुनाथ से।