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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
प्रेमचन्द जी उपन्यास की विशेषता व उद्देश्य के सम्बंध में उचित ही लिखते हैं कि-"मैं उपन्यास को मानव चरित्र का चित्र मात्र समझता हूँ। मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्त्व है।" उन्होंने उपन्यास के उद्देश्य को प्रस्तुत कर दिया है, जो सभी को स्वीकार्य न भी हो। न्यू इंग्लिश डिक्शनरी में उपन्यास के विषय में लिखा गया है कि-बृहत-आकार का गद्य आख्यान या वृतान्त, जिसके अंतर्गत वास्तविक जीवन के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाले पात्रों और कार्यों को कथानक में चित्रित किया जाता है। संक्षेप में उपन्यास में मानव जीवन का प्रतिनिधित्व घटनाएँ शृंखलाबद्ध तथा कलात्मक ढंग से नियोजित की जाती हैं अतः वह वास्तविक जीवन की काल्पनिक कथा भी कही जा सकती है। यहाँ उपन्यास की विविध परिभाषाएँ, तत्त्व, प्रकार व कार्यक्षेत्र आदि की चर्चा से कोई प्रयोजन नहीं है। क्योंकि हमारा प्रमुख प्रयोजन आधुनिक युग में हिन्दी भाषा में जैन धर्म के सिद्धान्तों को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से निरूपित करने वाले उपन्यासों के संदर्भ में रहा है। अतएव यहाँ केवल उन्हीं का उल्लेख प्रासंगिक रहेगा। हिन्दी साहित्य में कथा साहित्य के अंतर्गत ही उपन्यास को रखकर कथा साहित्य के अंतर्गत प्राचीन पौराणिक कथा ग्रन्थों से हिन्दी में अनुवादित या प्राचीन ग्रंथों के पौराणिक, ऐतिहासिक या लौकिक कथावस्तु का आधार ग्रहण कर नवीन शिल्प में स्वतंत्र रूप से लिखी गई कथाओं का संनिवेश किया जाता है। पौराणिक कथावस्तु के कारण वर्णन पंरपरा, कथोपकथन, चरित्र-चित्रण व उपदेश में प्राचीनता सहज संभाव्य होने पर भी रोचक कथावस्तु, सुन्दर वर्णनों व उद्देश्य की स्पष्टता के कारण उपन्यास अच्छे रहे हैं। धार्मिक तत्त्वों को काव्यात्मक ढंग से पाठक तक पहुँचने का सर्व सुलभ व सुविधाजनक महत्त्वपूर्ण साधन स्वीकार कर आधुनिक उपन्यासों की रचना विशेष होनी चाहिए। निबंध और चरित्र कथा ग्रंथों की तरह यदि उपन्यास की ओर भी साहित्यकारों का ध्यान आकृष्ट होता तो जैन साहित्य निश्चय ही सम्पन्न होता। जैन शताब्दी में कई जैन लेखकों ने पुरातन जैन कथानकों को लेकर सरस और रमणीय उपन्यास लिखे हैं। इन उपन्यासों में जनता की आध्यात्मिक आवश्यकताओं का निरूपण कर उसके भाव जगत के धरातल को ऊँचा उठाने का पूरा प्रयास विद्यमान है। "जैन उपन्यासों में कथा के माध्यम से इस आध्यात्मिक भूख को मिटाने का पूरा प्रयत्न किया गया है। जीवन की बिडम्बनाओं को दूर कर
1. हिन्दी साहित्य कोश में से उद्धृत, पृ० 140.