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आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन
आज सरिता जल-सा निर्मल मधुर मन्द सुरभित मलयालिन ।
सजनि ! आज कितने बिन मेरे जीवन-तार अकुलाये री। रजनी के तारों के भी, धन- विद्युत् के मनुहारों-सी,
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उर नभ में किस तरल प्रतीक्षा के बादल घिर आये री। मेरे नयनों की कुटियों में किसने दीप जलाये री॥ (पृ० 192) सरोजिनी देवी की कविता में भी हमें मधुर भाव दिखाई पड़ते हैं। विरह-वेदना के स्वरों से इनकी कविता झंकृत होती है। जैसे
मैं दुःख - सागर की एक लहर, यह लहर-लहर की दुःख - कम्पन, कब मंद पड़ेगी दिल धड़कन ।
होगा समाप्त तेरा निष्ठुर मन,
कब लहर-लहर का मंजु - मिलन। ( पृ० 202 )
अनेक नये कवि अपरिचय के पर्दे में छिपे हैं, लेकिन अपनी मधुर, रसपूर्ण कविता के माध्यम से वे हमारे सामने उपस्थित होते हैं। श्री फूलचन्द 'पुष्पेन्दु' की 'चाह' हमारी भी मनोकामना बनी रहती है। 'अभिलाषा' काव्य में कवि की चाह देखिए
मैं बना रहूँ, जग बना रहे । तारक- मणि-मंडित नील गगन, लख, तारों का झिलमिल बर्तन, मन ही से कह उठता है मन, रत्न -
मेरे ऊपर यह - जड़ित सुन्दर वितान - सा तना रहे । ( पृ० 112) यही कवि 'देवद्वार पर प्रभु को उलाहना देते हुए कहते हैंएक निर्धन भी अरे! करता अतिथि सत्कार कैसा ? विश्वपति यह फिर तुम्हारा है भला व्यवहार कैसा ? आज इस आश्चर्य में दुःख भी भुलाता जा रहा हूँ
गुन गुनाता जा रहा हूँ। ( पृ० 219 )
'सीकर' में बिलकुल नये उभरते हुए कवियों की कविता का परिचय दिया गया हैं, जिनमें बाबूलाल सागर, लक्ष्मीचन्द्र जैन 'सरोज', कौशलाधीश जैन, कपूरचन्द जी, विद्याविजय जी, पं० चान्दमल जी, सागरमल, अनूपचन्द, केसरीमल आदि प्रमुख हैं। इनकी कविताओं में विषय वैविध्य है । 'तेजोनिधान