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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
सुचारु ढंग से संकलन किया है। जैन कवि होने के नाते प्रायः सभी कवियों की कविता का विषय जैन तत्वों पर अवलंबित कोई न कोई विचार धारा या सिद्धान्त का होना स्वाभाविक है। अहिंसा, सत्य, प्रेम, करुणा व मानवता के साथ-साथ इन कवियों ने राष्ट्रीय चेतना, मातृ-भूमि व देश-प्रेम, बन्धुत्व भावना के विषय में भी काफी लिखा है। प्रायः नवचेतना, जोश-उत्साह का स्वर काफी फूट पड़ा है। इन कवियों की शैली पर आधुनिक हिन्दी साहित्य के कवियों की भावधारा व शैली का प्रभाव विशेष दिखाई पड़ता है। पंत, निराला, मैथिलीशरण गुप्त, महादेवी जी, चतुर्वेदी व प्रसाद जी की भावधारा एवं काव्य-शैली का प्रभाव प्रतीत होता है। श्रीमति रमादेवी का यह प्रथम प्रयास है, फिर भी उन्होंने काफी सतर्कता व कुशलता से कार्यवहन किया है। केवल जैन कवियों की कविताओं को ही सम्पादित करके क्षेत्र को सीमित बनाने का उनका उद्देश्य नहीं है, लेकिन " 'मैं' अपनी जाति और समाज के संपर्क द्वारा जिन कवियों को जान सकी हूँ और जिन तक पहुँचना दुर्लभ है, मानवता के उन प्रतिनिधियों को विशाल साहित्य संसार के सामने ला रही हूँ।''
आधुनिक जैन कवियों के रमारानी जी ने भिन्न-भिन्न विभाग किये हैं, उनमें प्रथम 'युग-प्रवर्तक' कवियों को शामिल किया है। जिन्होंने प्रारंभ में थोड़ी-बहुत भावावेश स्थिति में कविताएँ लिखी हों-कवि बनने का उद्देश्य लेकर नहीं लेकिन बाद में इतिहास, आध्यात्मिकता, अन्वेषण व आलोचना के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य करते रहे हैं। जैन समाज व साहित्य के क्षेत्र में जो युग-प्रवर्तक या प्रकाश स्तंभ बनकर खड़े हैं, उनकी कविताएँ संग्रहीत हैं। युग प्रवर्तक कवियों में पं. नाथूराम प्रेमी, भगवन्त गणपति प्रसादगोयलीय जुगलकिशोर मुख्तार, मूलचन्द्र 'वत्सल' तथा 'अगास' प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं। प्रसिद्ध दार्शनिक एवं निबंधकार मुख्तारजी की 'मेरी भावना' कविता अत्यन्त प्रसिद्ध है। उसी प्रकार नाथूराम प्रेमी की 'पिता की परलोक यात्रा पर' तथा संदर्भ सन्देश' कविताओं का संकलन किया गया है। गणपति गोयलीय जी की 'सिद्धवरकूट' और 'नीच और अछूत', 'मेरा संसार' तथा 'प्यार' कविता को संपादिका ने इस संकलन में संग्रहीत किया है। पं० गुणभद्र ‘अगास' की 'सीता की अग्नि-परीक्षा' तथा 'भिखारी का स्वप्न' कविता भी. 'युग-प्रवर्तक' विभाग के अन्तर्गत संकलित हैं। ये कविताएँ काफी लोकप्रिय रही थी। इन 'युग-प्रवर्तक' कवियों के विषय में संपादिका का कहना है कि "नये जागरण और सुधार के युग में जिस विचार-स्रोत को इन महान आत्माओं ने समाज की मरु भूमि की ओर 1. रमारानी जैन-'आधुनिक हिन्दी जैन कवि'-प्राक्कथन, पृ० 3.