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आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन
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होती है। इस प्रकार जैन पुराणों के अनुसार यह जितपद्मा की कथावस्तु ग्रहण की गई है। कविता साधारणतः अच्छी है। सिद्धार्थ नंद :
यह खण्ड काव्य काफी अच्छा है। महावीर के जन्म से पूर्व हिंसा का वातावरण कैसा फैला था और लोग शान्ति की चाह कर रहे थे, धार्मिक क्षेत्र में यज्ञयाग में निर्दोष पशुओं की बलि चढ़ाकर धर्म का 'पुण्य' उठाने थे। लेकिन महावीर ने अपने निरंतर प्रयासों से अहिंसा का महत्व प्रतिपादित किया। महावीर जब पैदा हुए तब
छाया हुआ था विश्व में हिंसा का अंधेरा डाला था आत्मा पर क्रूर कर्म ने घेरा। लगने लगे मानव को, पाप धर्म है मेरा हर शाम सनी खून से, हर दिन का सवेरा॥
आकाश बेगुनाहों की आहों से भर गया।
मानव का बुद्धिवाद था, जाने किधर गया।' सिद्धार्थ-नंद वर्धमान की अहिंसा परक वाणी का कवि ने सुन्दर उल्लेख किया है। प्रभु अहिंसा-पूर्वक जीवन जीने के लिए सबको संदेश देते हैं। आचरण के यथायोग्य वे उपदेश देते थे। वे कहते हैं
हिंसा है महापाप कि ये नीच कर्म है यदि धर्म है कोई तो अहिंसा ही धर्म है। हर एक को निहारो दया की निगाह से जी अपना बहलाओ ना गरीबों की आह से। खून भी पाप है डरो उस के गुनाह से तुलना न करो उस के गुनाह से। हिंसा है धर्म तो अधर्म क्या है बताओ, पाखण्ड यहीं रोक दो, आगे न बढ़ाओ। (पृ. 41)
महावीर के इस संदेश के फलस्वरूप हिंसा के स्थान अहिंसा का प्रभुत्व बढ़ने से
आनन्द में तब्दील हुआ विश्व का क्रन्दन। यह गूंजा कि जयवन्त होवे वीर का शासन। • इस छोटे से खण्ड काव्य में कथा वस्तु नहीं है, कहीं अलंकार योजना 1. द्रष्टव्य-भगवत जैन-'मधुरस', पृ० 36.