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आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन
मधु रस :
स्व० भगवत जैन के आठ लघु कथात्मक काव्य इसमें संग्रहीत हैं। धार्मिक कथा साहित्य पर आधारित इन काव्यों में प्रथम खण्ड काव्य 'स्वाधीनता की दिव्य ज्योति' में बाहुबलि एवं चक्रवर्ती भरत का रोचक लोकप्रिय कथानक है, जो जैन साहित्यकारों का प्रिय विषय रहा है। इसमें त्याग, शक्ति एवं सांसारिक विषमता के संघर्ष का अनूठा वर्णन है। कवि ने प्रारंभ में चौबीस जिनों की वंदना की है, और अपने काव्य को 'तुकवंदी' कहकर स्वयं को 'कवि' नहीं समझा है। अपनी लघुता को स्वीकार कर निराभिमानता का परिचय दिया है। कविताएँ साधारणतः रोचक एवं मध्यम कोटि की हैं, लेकिन कवि की धार्मिक अनुरागमयता से रंजित भावानुभूति एवं रोचक कथा वस्तु के कारण अच्छी लगती हैं।
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'स्वाधीनता की दिव्य ज्योति' में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र भरत एवं बाहुबलि के बीच हुए युद्ध का वर्णन है; जिसमें विजित बाहुबलि सांसारिक जय को ठुकरा कर आत्म-बोध प्राप्त होने से आध्यात्मिक विजेता- पद प्राप्त करने के लिए युद्ध क्षेत्र में ही बालों का पंचपुष्टि लोच कर विरागी बन जाते
हैं।
भगवान ऋषभदेव अपने राज्य को दोनों में बांट देते हैं और अपनी गद्दी पुत्र भरत को सौंपते हैं। भरत को चक्रवर्ती बनने का सपना था, अत: एक के बाद एक सभी राजाओं को पराजित कर चक्र नगर के द्वार के पास ही रुक गया, जिससे सूचित होता था कि अभी भरत संपूर्ण चक्रवर्ती नहीं हैं, अभी कोई राजा उन्हें चक्रवर्ती के रूप में स्वीकारने को तैयार नहीं है। अत: क्रोध में आकर दल-बल के साथ बाहुबलि की नगरी पर धावा बोल दिया। पहले दूत भेजा गया और पराजय स्वीकार करने का संदेश भेजा गया लेकिन बाहुबलि सच्चे अर्थ में वीरता की मूर्ति समान थे । उनको स्वाभिमान था कि एक ही पिता के हम पुत्र हैं, तो फिर क्यों उनके चरणों में शीश झुकाऊँ। अतः दासत्व स्वीकारने से इन्कार कर दिया और युद्ध के लिए तैयार हो गये। फलस्वरूप दोनों पक्षों के मंत्रियों ने तय किया कि जब दोनों बलवान हैं, दोनों का आपसी मामला है, तो फिर क्यों हजारों के प्राण व्यर्थ में गंवायें, वे दोनों ही आपस में जलयुद्ध, वेग- ग- युद्ध एवं द्वन्द्व युद्ध कर फैसला प्राप्त कर लें। जो विजयी होगा वह चक्रवर्ती बनेगा। प्रथम दो युद्धों में दृढ़ सशक्त बाहुबलि विजयी होते हैं। अंतिम द्वन्द्व युद्ध में भी विजय के पास आ गये, तब बड़े भाई पर जोर से हाथ उठाते ही वे लज्जित होकर सोच-विचार में डूब जाते हैं, और राजकीय सत्ता की गुलामी से छूटने के लिए संसार पर वैराग्य आ जाता हैं। उसी समय ऊँचे किए