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आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन
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पड़ता है। वह वन-जंगल में चारों ओर अंजना का पता पूछता रहता है। राजा प्रह्लाद, रानी केतुमती, राजा महेन्द्र कि पास आकर अंजना व पुत्र का सुखद समाचार राजा सूर्यचित्र देते हैं और सभी पवनंजय को खोज निकालते हैं और फिर बाद में सभी का अंजना के साथ सुखद मिलन होता है और क्षमा-याचना का क्रम चलता है।
आनंद मंगल छाया सबमें, हुआ प्रशंसित शील सिंगार। सती अंजना का अति सुन्दर, छाया जग में जय जयकार॥ (126)
इस प्रकार सती अंजना के शील, व्रत, तप, त्याग और एकनिष्ठा के महत्व को अभिव्यक्त करती यह कथा जैन समाज एवं साहित्य में अत्यंत प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय है। इसी कथावस्तु को अपनाकर श्री वीरेन्द्र जैन ने 'मुक्तिदूत' उपन्यास की रचना की है। जो समग्र आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य में उत्कृष्ट रचना कही जाएगी। कहीं रसात्मकता, मृदुता, आंतरिक संघर्ष व वेदना आदि उद्वेलित करने वाली अनूभूतियों की मार्मिक अभिव्यक्ति नहीं होने पर भी सुन्दर वर्णनों के कारण वर्णन प्रधान खण्ड काव्य के अन्तर्गत इसकी गिनती की जा सकती हैं। भाषा शैलीभाव व कल्पना चित्रण की तरह सामान्य हैं। अंजना के लिए जगह-जगह 'बाई' का शब्द प्रयोग कुछ भद्दा-सा प्रतीत होता है फिर भी छोटे से 126 पद के खण्ड काव्य में प्रकृति वर्णन, मानसिक अन्तर्द्वन्द्व चारित्रिक विशेषताएँ चित्रित करने की गुंजाइश अत्यन्त कम ही रहेगी। पूरी कथा को समाविष्ट करने की अपेक्षा कवि ने इस लघु-काय स्वरूप के लिए किसी एक ही मार्मिक प्रसंग को चुन कर उत्कृष्ट शिल्प विधान एवं तीव्रतम भावाभिव्यक्ति के द्वारा खण्ड काव्य को सजाया होता तो निश्चय ही सुन्दर भावप्रधान खण्ड काव्य भकेट प्राप्त होती। फिर भी आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य में गद्य की विशालता के सामने पद्य की स्पष्ट कमी के कारण इस खण्ड काव्य का अपना महत्व बना रहता है। सत्य-अहिंसा का खून :
आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य में स्व० भगवतस्वरूप जैन का काफी योगदान रहा है और उन्होंने महत्वपूर्ण स्थान भी प्राप्त किया है। प्रायः गद्य की सभी विधाओं में उन्होंने कलम चलाई है और पद्य में भी छोटे-छोटे कथानक वाले मुक्तक काव्यों एवं खण्ड काव्यों की रचना भी भेंट की है। इनमें 'सत्य, अहिंसा का खून' लघु खण्डकाव्य में पौराणिक कथा वर्णित की है। हिंसा एवं असत्य ऐसे तत्व है, जिनके कारण मनुष्य उच्चासन से पटक कर नीचे पहुँच जाता है।