________________
आधुनिक हिन्दी जैन काव्य : विवेचन
167
वृद्धि फैली है, उसे प्रेम व करुणा के जल से बुझाकर अहिंसा की शीतल लहर फैलाने के लिए वर्द्धमान सतत चिन्तनशील हैं। आठ वर्ष की आयु में ही वे अपने मित्रों से क्या कहते हैं।
सखे! विलोको वह दूर सामने, प्रचण्ड दावा जलता अरण्य में, चलो वहां के खग-जीव-जन्तु को, सहायता दे, यदि हो सके अभी।
मनुष्य पक्षी-कृमि जीव जन्तु की, सदैव रक्षा करना स्व-धर्म है। अतः चलो, कानन में विलोक लें
कि कौन-सी व्याधि प्रवर्धमान है।' सोलह वर्ष की अवस्था तक वे इसी नदी के किनारे घण्टों सोचते-विचारते बैठे रहते थे
नितान्त एकान्त-निवास-संस्पृही, कुमार को थी सरि मोद-दायिनी, कभी-कभी आ उसके समीप वे विचारते जीवन का रहस्य थे।
सोलह वर्ष के होते-होते तो उनकी वैराग्य-भावना अतीव प्रबल हो उठती है। वे मानव-जीवन की निःसारता, यौवन की क्षणभंगुरता, जीवन-सार्थक्य के उपाय, वैराग्य-भावना आदि पर गंभीरता से सोचते हैं
मनुष्य का जीवन है वसन्त-सा, हिमऋतु प्रारंभ, निदाधअन्त में, जहां सदा भाव-प्रसून फूलते, विचार के भी फलते प्रतान है।
लिया जभी जन्म, तुरन्त रो उठे, विलोक पृथ्वी हंसने लगे तथा, मुहूर्त जागे, क्षण एक सी उठे,
सुदीर्घ सोये, तब जागना कहां?' 1. अनूप शर्मा-'वर्द्धमान', पृ॰ 261-17-19. 2. अनूप शर्मा-'वर्द्धमान', पृ. 291-24. 3. अनूप शर्मा-'वर्द्धमान', पृ॰ 308-93-94.