________________
226
आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
__ इस खण्ड काव्य के प्रारंभ में संयोग-मिलन के दृश्य में मिलन, रोमांच, हर्ष, एवं अनुराग के चित्र में संयोग-शृंगार का प्रारंभिक स्वरूप दिखाई पड़ता है, जबकि राजुल की विरह-वेदना एवं तज्जनित उसकी करुण दशा के सुन्दर वर्णन में वियोग-शृंगार रस की सूक्ष्म रसधारा बहती है। इस प्रकार ‘राजुल' खण्ड काव्य अपने उदात्त भावों के चित्रीकरण एवं आदर्शात्मक नायिका के मार्मिक चित्रण के कारण आधुनिक जैन काव्यों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कवि की प्रथम रचना होने के कारण थोडी-बहुत त्रुटियों का रह जाना संभाव्य है, फिर भी सुन्दर भाव कोमल भाषा शैली के कारण अच्छी रचना है। “प्रथम रचना होने के कारण सभी संभाव्य त्रुटियां इसमें विद्यमान हैं, फिर भी इसमें उदात्त भावनाओं की कमी नहीं है। भाव, भाषा आदि दृष्टियों से यह अच्छी रचना है।
भाषा की दृष्टि से काव्य उत्कृष्ट कोटि का न सही, सुन्दर अवश्य कहा जा सकता है। भाषा शुद्ध खड़ी बोली होने के साथ संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग कवि ने नहीं किया है। शैली में प्रासादिक गुण का निर्वाह हुआ है तथा अलंकारों का भी यथायोग्य उपयोग कर कवि ने वर्णन में माधुर्य एवं भावों में तीव्रता पैदा करने का प्रयास किया है। जैसे भाषा में लाक्षणिकता व मूर्तिमत्ता का काफी अभाव है। लेकिन भावों की गहराई एवं तीव्रता के कारण यह कमी खलती नहीं है। काव्य में यत्र-तत्र अनुप्रासों की छटा रहने से भाषा में नाद-सौंदर्य एवं लयताल का माधुर्य द्रष्टव्य है
कल-कल छल-छल सरिता के स्वर, संकेत शब्द बोल रहे।
आँखों में पहले तो छाये, धीरे से उर में लीन हुए।
शब्दानुप्रास एवं वर्णानुप्रास अलंकारों के द्वारा कवि ने काव्य को सुन्दर बनाने का अच्छा प्रयास किया है। अंजना-पवनंजय :
भंवरलाल शेठी यह पौराणिक खण्ड काव्य साधारण कोटि का होने पर भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आज यह खण्ड काव्य अप्राप्य है, लेकिन 'अनेकान्त' की पुरानी फाइलों को देखते-देखते यह खण्ड काव्य प्राप्त हो सका है। नेमिचन्द्र शास्त्री के इतिहास में इस खण्ड काव्य के उल्लेख के साथ अन्य 1. डा. नेमिचन्द्र शास्त्री : आ. हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन, द्वितीय भाग,
पृ. 28. 2. अनेकान्त द्वैमासिक शोध-पत्रिका-1978 अप्रैल।