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आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य
इसी प्रकार कुमार वर्द्धमान को बारहवें सर्ग में ब्याह का दिव्य स्वप्न दिखाई पड़ता है
सुषुप्ति में राजकुमार को हुआ, प्रमोद - कारी वह दिव्य स्वप्न जो न सत्य था, किन्तु असत्य भी न था, अदृष्ट था, किन्तु, तथापि दृष्ट था।
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दिखा पड़ा स्वप्न कि एक भूप की सुता 'यशोदा' अति ही गुणागरी, पवित्र चारित्र्य - मयी सुशोभना, हुआ उसी से उनका विवाह है।
जिसे यशोदा कहते सभी, वही, महीपना का उपनाम - मात्र है, सभी जनों ने सब ज्ञाति-बन्धु ने रखा महासिद्धि प्रसिद्ध नाम है।'
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स्वप्न में 'मुक्ति देवी' से कवि ने त्यागी नायक का विवाह करवाया है- क्योंकि
विवाह हो? दिव्य विवाह क्यों न हो, बारात हो ? देव-समाज क्यों न हो, बने नहीं पाणि- गृहीत मुक्ति क्यों न देव हों श्रीवर- मंडलेश क्यों? 2
तेरहवें सर्ग में वैराग्य-सूचक जैन-धर्म की बारह भावनाओं का कवि ने विस्तृत वर्णन किया है तथा सोलहवें और सत्रहवें सर्ग में प्रभु का धार्मिक, लोक-व्यवहार बोधक उपदेश चर्चित है । ऋजु - बालिका के किनारे पर ही - दीर्घ तपस्या के बाद-‘केवल - ज्ञान' की प्राप्ति नायक को होती है। इसके पश्चात् आचार-विचार की पवित्रता, गुणों के महात्म्य, दोषों के त्यागादि पर विस्तृत विचार प्राप्त होते हैं
जिनेन्द्र बोले वह धर्म- - वाक्य जो, कि सर्व साधारण बोधगम्य थे। गृहस्थ के, साधु-समाज के सभी, बताले धर्म तथैव कर्म भी ।
1. अनूप शर्मा - वर्द्धमान, पृ० 359-360, 57, 58, 61.
2.
अनूप शर्मा - वर्द्धमान, पृ० 368, 93.
3. अनूप शर्मा - वर्द्धमान, पृ० 562, 149