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आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य
हृदय में जन्म लेती है। इस प्रकार की परिपाटी पर काव्य लिखनेवालों में प्रथम कवि आग निवासी बाबू जगमोहन दास हैं, जिनका 'धर्म रत्नोद्योत' काव्य-संकलन प्रकाशित हुआ था, जो आज अनुपलब्ध है। डा० नेमिचन्द्र शास्त्री के 'हिन्दी जैन साहित्य- परिशीलन' में इसका उल्लेख प्राप्त होता है। बाबू जैनेन्द्रकिशोर (आरा निवासी) भजन- नवरत्न, श्रावकाचार दोहा, वचन बत्तीसी आदि कविताएं लिखी है। इनके उपरान्त आपने समस्यापूर्ति भी की है, जिस पर रीति-युग की स्पष्ट छाप है। आपके नख - शिख वर्णन के भी कुछ रोचक एवं श्रुति मधुर पद उपलब्ध है। झालरापाटन निवासी श्री लक्ष्मीबाई तथा मास्टर नन्दूराम की इस प्रवृत्ति की कविताओं में माधुर्य गुण अधिक दिखाई पड़ता है। वैसे इनकी कविताओं में आचारात्मकता और नैतिक कर्त्तव्य का विश्लेषण सुन्दर ढंग से किया गया है। सप्तव्यसन की बुराइयों का अच्छा निरूपण इनकी कविताओं में हुआ है तथा दर्शन व आचार की गूढ़ बातों को कवि ने सरल तथा रोचक शैली में व्यक्त किया है। दार्शनिक पश्चाद भू से सम्बन्धित विषयों पर लिखी गई कविताएं रोचक शैली व माधुर्य के कारण निर्जीव या बोझिल नहीं लगती है।
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दूसरी प्रवृत्ति के अन्तर्गत नूतन प्रवृत्तियों को लेकर मुक्तक काव्यों की रचना करनेवाले आधुनिक युग में अनेक छोटे-बड़े कवि हमारे सामने आते हैं। उन सभी का स्वतंत्र परिचय न यहां संभव है ओर न समीचीन है। केवल उन कवियों का परिचय यहां दिया जा रहा है, जिन्होंने किसी एक प्रवृत्ति को लेकर काव्य रचना की है। वृत्तात्मक, वर्णनात्मक, आचारात्मक, भावात्मक तथा गेयात्मक इन पांच वर्गों में आधुनिक हिन्दी जैन काव्य को समाविष्ट किया जा सकता है। (1) ऐतिहासिक वृत्त या घटनाओं को लेकर जिन कविताओं में भावों की अभिव्यक्ति हुई हो वह वृत्तात्मक (2) प्राकृतिक दृश्य, किसी विशेष स्थल, त्यौहार या घटना का वर्णन करनेवाले धार्मिक या लौकिक दृश्य का विवरण प्रस्तुत करनेवाली कविता वर्णनात्मक, (3) नीति, आचार, व्यवहार, सिद्धान्त या उपदेश का निरूपण करनेवाली कविता आचारात्मक, (4) शृंगार, प्रणय, उत्साह, करुणा, सहानुभूति, रोषादि हृदय की किसी भी मूल भावना को भावात्मक शैली में निरूपित करनेवाली कविताएं भावात्मक (5) रस प्रधान, लययुक्त मधुर रचना गेयात्मक कविताएं कही जाती हैं। यहां हम इन्हीं वर्गों में विभाजित रचनाओं की चर्चा करेंगे।
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द्रष्टव्य-डा० नेमिचन्द्र शास्त्री - हिन्दी जैन साहित्य - परिशीलन - भाग 2 पृ० 34-35. 2. द्रष्टव्य - डा० नेमिचन्द्र शास्त्री - हिन्दी जैन साहित्य- परिशीलन- भाग 2, पृ० 36.