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आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य
सात कहानियों को संग्रहीत किया गया है, उस दिन, पत्थर का टुकड़ा, उपरम्मा, शिकारी, आत्मसमर्पण, राजपुत्र और पूर्णिमा ।
पारस और पत्थर :
इसमें नव कहानियों को संग्रहीत किया गया है- पारस पत्थर, अभागा, अनुद्धार, कलाकार, आत्म बोध, परख, प्रतिज्ञा-पालन, नीति की राह पर, जल्लाद तथा चरवाहा। लेखक ने इन पुरानी कथाओं को आधुनिक विचारधारा एवं भाषा-शैली से सुसज्जित कर प्रस्तुत किया है। उन्हीं के शब्दों में- " आज का युग जैसी भाषाशैली में पढ़ना चाहता है, मैने कहानियों को वैसे ही रूप में पाठकों को देने की कोशिश की है। यह कहना अहमन्यता होगी कि अब वे निखरे रूप के कारण संजीवन पा गई है। नहीं, वे पहले से ही सुंदर और स्वस्थ थीं। मेरा उतना ही उनके साथ संबंध है, जितना एक रूपवान व्यक्ति के शरीर से कीमती, लुभावक और सामयिक वस्त्रों का । " ( पारस पत्थर, अपनी कलम से पृ० 1 )
मिलन :
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'मिलन' भगवत् जैन की पौराणिक प्रेरणात्मक कहानियों का संग्रह है। बहुत पहले लिखे गये इस कहानी संग्रह का प्रकाशन उनके अनुज व जैन लेखक वसन्तकुमार जैन ने अभी सन् 1975 में करवाया। वैसे सन् 1944 के पहले यह लिखा गया था। क्योंकि इस काल में भगवत् जी का देह - विलय हुआ था। परिणामस्वरूप हिन्दी - जैन साहित्य ने एक भावुक, आत्मनिष्ठ युवा कुशल साहित्यकार को खो दिया। 'मिलन' में ऐसी कहानियों का संकलन है, जिनके द्वारा मानव सहज रूप से बोध प्राप्त कर सके क्योंकि लेखक का उद्देश्य यही है कि जैनादर्शो, जैन- संस्कृति एवं धार्मिक कथानकों का सर्व-साधारण में अधिकाधिक प्रचार हो, जन समाज उत्साह एवं रसपूर्वक पठन-पाठन के द्वारा कुछ लाभ प्राप्त कर सकें। इसलिए आधुनिक भाषा शैली में पौराणिक कथावस्तु में उन्होंने अच्छी कहानियों का आयोजन किया है। 'मिलन, पूंजीपति, लुटेरा, प्रतिशोध, खून की प्यास और चरवाहा' इन छः कहानियों में से 'चरवाहा' और लुटेरा' अन्य संग्रह 'पारस और पत्थर' में भी संग्रहीत हैं । विश्वासघात :
इस संकलन में आठ कहानियां संग्रहीत की गई हैं - विश्वासघात, पाप का प्रायश्चित, रात की बात, क्षमा के पथ पर, करनी का फल, आत्मशोध, आत्मद्वन्द, और 'शांति की खोज' में। सभी में पौराणिक कथा वस्तु ग्रहण की