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आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : सामान्य परिचय
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आत्मकथा के अतिरिक्त हिन्दी-जैन-साहित्य में संस्मरण का एक ग्रन्थ 'जैन जागरण के अग्रदूत' शीर्षक से उपलब्ध होता है, जिसका संपादन किया है बाबू अयोध्या प्रसाद गोयलीय ने। इसमें जैन समाज के महान दार्शनिक, तत्वचिंतक, समाज सुधारक, दानवीर, बड़े-बड़े औद्योगिक-राष्ट्रीय पुरुष एवं साहित्यकार के विषय में संस्मरणात्मक परिचय दिया गया है। इसके फलस्वरूप कितनी ही अज्ञात प्रतिभाएँ एवं महान चरित्र हमारे सामने प्रकाश में आते हैं और उनके महान आदर्श चरित्रों के परिचय से पाठक प्रभावित हो प्रेरणा ग्रहण करता है। यह संस्मरणात्मक ग्रन्थ भिन्न-भिन्न लेखकों के द्वारा लिखा गया है, जिनमें प्रमुख हैं बाबू गोयलीय, कन्हैयालाल मिश्र, नाथूराम 'प्रेमी जी', कामताप्रसाद जैन, जैनेन्द्रकुमार, अजितप्रसाद जैन, गुलाबराय, कैलाशचन्द्र शास्त्री, और इन्दु कुमारी आदि। सभी लेखकों की भाषा-शैली में माधुर्य एवं धारावाहिता का गुण सर्वत्र विद्यमान है। सभी संस्मरणों में जैन समाज के इन महानुभावों की महानता के ख्याल से पाठक अभिभूत हो उठता है। चार विभागों में विभक्त इस ग्रन्थ में रोचकता का पूरा निर्वाह किया गया है।
जीवनी, आत्मकथा तथा संस्मरण के अतिरिक्त जैन साहित्य में अभिनंदन ग्रन्थ भी प्रकट हुए हैं, जिनसे अभिनंदित कर्ताओं के विषय में भिन्न-भिन्न लेखकों के संस्मरण, भेंट-मुलाकात प्रकाश डालते हैं तथा उनकी विशेषताएं, महानता एवं समाज व साहित्य की सेवा का परिचय पाठक को प्राप्त होता है। हिन्दी जैन साहित्य में विभिन्न निबंधों के संकलन अभिनंदन ग्रन्थों के नाम से प्रकाशित हुए हैं, वे हैं-(1) प्रेमी अभिनंदन ग्रन्थ (2) श्री वर्णी अभिनंदन ग्रन्थ (3) श्री पंडित चन्दाबाई अभिनंदन ग्रन्थ (4) हुकमचन्द अभिनंदन ग्रन्थ (5) आचार्य श्री शान्ति सागर ग्रन्थ एवं (6) श्री अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन ग्रन्थ। इन ग्रन्थों से हिन्दी जैन साहित्य के साथ हिन्दी साहित्य का भी महती उपकार हुआ है। अभिनंदन ग्रन्थों के द्वारा उन कर्ताओं को सम्मान देते हुए उनकी साहित्यिक, सामाजिक और धार्मिक सेवाओं की महत्ता अभिव्यक्त होती
इस प्रकार हिन्दी जैन गद्य साहित्य का नाटक, निबंध, कथा-साहित्य, जीवन व आत्म कथा की विभिन्न विधाओं द्वारा दिन-प्रतिदिन काफी विकास हो रहा है। आज के वैज्ञानिक युग में मुद्रणयंत्र की सर्वोत्तम सुविधा के कारण अनेक पुस्तकें प्रकाशित होती रहती हैं, जिनका नामोल्लेख करना भी संभव नहीं हो पाता। दार्शनिक ग्रन्थ सम्प्रदाय के आचार्यों के द्वारा विशेषतः प्रकाशित होते 1. प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली।