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आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य
न आये तो वह महाकाव्य नहीं कहा जा सकता। ऐसे तथाकथित महाकाव्य आये दिन कितने ही रचे जा रहे हैं।"" पौर्वात्य व पाश्चात्य प्राचीन विद्वानों के समान हिन्दी साहित्य के सुधी विवेचकों और विद्वानों ने भी महाकाव्य के सम्बंध में मौलिक सूझ-बूझ के साथ विशद् विचार किये हैं।
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खण्ड काव्य :
खण्ड काव्य वैसे प्रबन्ध का ही भेद होने से महाकाव्य का लघु प्रतिरूप होता है। फिर भी महाकाव्य के लिए विस्तृत कथावस्तु, अनेक रस, विविध पात्र आदि की मूलतः आवश्यकता रहती है, वह खण्ड काव्य के लिए अपेक्षित ही होनी चाहिए, ऐसा नहीं । खण्ड काव्य में जीवन के विविध रूप, घटनाएं, प्रसंगों की तुलना में एकाध मार्मिक हृदयस्पर्शी घटना का, एक-दो चरित्रों के साथ रसपूर्ण चित्रण होना अत्यन्त आवश्यक है । खण्ड काव्य में जीवन के किसी एक पहलू की झांकी रहती है। मर्मस्पर्शी घटना या कथांश का चयन कर रचना कौशल, प्रबद्ध-पटुता, सहृदयता का समन्वय पाठकों की सुषुप्त भावनाओं को सजग कर रस प्राप्ति करने में सफल हो सकता है। खण्ड काव्य महाकाव्य से आकार-प्रकार में लघु होने के साथ ही भावभूमि भी उतनी व्यापक - 5- वैविध्य मूलक और संश्लेषणात्मक नहीं होती । आचार्य विश्वनाथ के मतानुसार, “ खण्डकाव्य भवेत् काव्यस्येक देशानुसारिय।' अर्थात् महाकाव्य में राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना के अनेक पक्षों और समसामायिक जीवन की विविध आकांक्षाओं में व्यापक समन्वय का प्रयत्न रहता है। महा काव्य की तरह यह जीवन का विशाल चित्रपट प्रस्तुत करने की चेष्टा नहीं रखता है। यह कार्य केवल एक प्रधान घटना को प्रस्तुत करके ही संपन्न किया जाता है। इसमें न सन्धियों का संनिवेश होता है, न अनेक छन्दों का प्रयोग। इसका वृत्त ऐतिहासिक भी हो सकता है या काल्पनिक भी। उसी प्रकार इसका नायक ख्यात व्यक्ति भी हो सकता है या सामान्य जन भी।"
मुक्तक :
मुक्तक काव्य की वह छोटी पद्यबद्ध रचना है जिसमें कथा प्रसंग, नायक, रस, वर्णन आदि में से किसी की आवश्यकता न होकर हृदय की एक भावोर्मि का ही लयताल-बद्ध रसात्मक वर्णन होता है, जिसको सुनकर या पढ़कर पाठक तुरन्त ही प्रभावित हो जाता है । " मुक्तक वह छोटी रचना है जिसमें किसी एक ही मन:स्थिति, भाव या एक ही दृश्य की योग्यता हो । इसमें अनेक 1. डा. श्यामनंदन किशोर-आधुनिक महाकाव्यों का शिल्प विधान, पृ० 60.
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डा॰ विश्वनाथ प्रसाद- कला एवं साहित्य, प्रवृत्ति और परंपरा, पृ० 74.