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आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : सामान्य परिचय
है। आपके कई साहित्यिक एवं दार्शनिक आचार-विचार सम्बन्धी कई निबंध-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। आपकी लेखन कला शुद्ध, सरल व भाषा स्वच्छ है।
श्रीयुत् लक्ष्मीचन्द्र जैन एक कुशल संपादक के साथ-साथ विद्वान निबन्धकार के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। भारतीय ज्ञानपीठ के संपादकीय वक्तव्य में अनेक ग्रन्थों महाकाव्य की प्रस्तावना उन्होंने लिखी है। महाकाव्य 'वर्द्धमान' (अनूप शर्मा कृत) और ' ( मुक्ति दूत) ' ( श्री वीरेन्द्र जैन कृत) के संपादकीय वक्तव्य तो महत्त्वपूर्ण हैं ही, साथ में 'वैदिक साहित्य' की प्रस्तावना एक नया प्रकाश विकीर्ण करती है। आपने सफल निबंधकार के साथ-साथ सहृदयी आलोचक का कर्त्तव्य अच्छी तरह निभाया है। आपकी शैली श्लिष्ट, साहित्यिक तथा प्रभावोत्पादक है। आपके निबंधों में धारावाहिकता सर्वत्र पायी जाती है।
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पं॰ मूलचन्द 'वत्सल' पुराने साहित्यकारों में से हैं। वे कवि और कथाकार के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। प्राचीन कवियों पर संशोधनात्मक साहित्यिक निबंध आपने अच्छे लिखे हैं। आपकी शैली सरल व भाषा सीधी-सादी है।
पं० परमानन्द जी शास्त्री ने अपभ्रंश के कितने ही कवियों पर शोधात्मक निबंध लिखे हैं। महाकवि रयघू के आप विशेष मर्मज्ञ हैं। शब्द - बाहुल्य शैली में कहीं-कहीं शिथिलता दिखाई पड़ती है।
प्रो० राजकुमार 'साहित्याचार्य' ने मध्यकालीन जैन भक्त कवि दौलतराम और भूधरदास के पदों का विश्लेषण आधुनिक और सुन्दर ढंग से किया है। आपकी शैली पुष्ट व संयत है । कवि होने के कारण गद्य में काव्यत्व की भावानुभूति वर्तमान है।
पं॰ पन्नालाल ‘बसन्त' के अनेक साहित्यिक निबंध प्रकाशित हो चुके हैं। 'आदि पुराण' की आपकी लिखी प्रस्तावना काफी महत्त्वपूर्ण है। इसमें संस्कृत जैन साहित्य के विकास क्रम का बड़ा ही क्रमबद्ध वर्णन है। आपकी शैली भी परिमार्जित है। श्री जमनालालजी के कई साहित्यिक लेख 'जैन जगत' में प्रकाशित हो चुके हैं।
डा० ज्योतिप्रसाद जैन के ऐतिहासिक और साहित्यिक निबंध प्रकाशित हो चुके हैं। शोधात्मक शैली में लिखे गये निबंधों में 'पूज्यपाद' सम्बन्धी निबन्ध महत्त्वपूर्ण हैं।
पं॰ बलभद्र न्यायतीर्थ के सामाजिक एवं साहित्यिक निबंध 'जैन- संदेश' नामक जैन - पत्रिका में प्रकाशित हो चुके हैं। निबंधों की भाषा प्रवाह - युक्त एवं शैली में विस्तार का आधिक्य है।
श्री कृष्णदास रांका आलोच्यकाल के प्रौढ़ निबंधकार हैं। इनका देहावसान