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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
एक बात को बार-बार दोहराते हैं। ऐतिहासिक निबंधकार के साथ-साथ ये एक सफल आलोचक भी हैं। 'गन्थ परीक्षा' आपका एक बृहत् आलोचनात्मक ग्रन्थ है जिसके कई भाग प्रकाशित हो चुके हैं।
बाबू कामताप्रसाद जैन का भी विशुद्ध इतिहास-लेखकों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। आपने 'हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास' काफी परिश्रम लेकर परिचयात्मक तथा शोधात्मक ढंग से लिखा है। इसके अतिरिक्त भी अनेक निबंधों की रचना की है, जिनमें जैन राजाओं के वंशों और स्थानों के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण गवेषणाएं की हैं। गद्य साहित्य के विकास में प्रेमीजी की तरह आपके निबंधों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान है। दिगम्बर सम्प्रदाय के निबन्धों की परिमाण-बहुलता की दृष्टि से आपका स्थान महत्त्वपूर्ण है। भिन्न-भिन्न जैन पत्र-पत्रिकाओं में आपके प्रकाशित निबंध पुस्तकाकार में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके कतिपय ऐतिहासिक निबंधों में इतिहास सम्बन्धी त्रुटियों को कतिपय अन्वेषक-आलोचक पाते हैं, फिर भी सामग्री का संकलन एवं अनुसंधान की दृष्टि से इन निबंधों का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
के भुजबली शास्त्रीजी का भी ऐतिहासिक निबंधकारों में काफी अच्छा स्थान है। आपने अतिरिक्त विशाल मात्रा में अनुसंधनात्मक निबंध लिखे हैं, जिनमें महत्त्वपूर्ण हैं-'बारकूट' वेणूर, क्या वादिम सिंह अकलंक देव के समकालीन है? वीर मार्तण्ड चामुण्डराय, वादिमसिंह, जैन वीर वंकेय, तुमुच, तोलव के जैन पालेयगार, सातर राजा जिनदत्त राय, कारकल का जैन भेररस राजवंश, दान-चिन्तामणि आदि। दक्षिण के जैन राजवंश, दानी श्रावकों, न्यायाचार्यों, कवियों आदि पर आपके नये अन्वेषणात्मक निबंध प्रकाशित हो चुके हैं। यद्यपि इनमें ऐतिहासिक प्रमाणों की कमी है, फिर भी हिन्दी जैन गद्य के विकास में इन निबंधों का योगदान उल्लेखनीय है। आपकी शैली समास-शैली है, जो थोड़े में बहुत कुछ कह देने वाली है। गंभीर विचारों की अभिव्यक्ति आप सार्थक शब्दों में संक्षेप में कर सकते हैं।
बाबू अयोध्या प्रसाद गोयलीय बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न साहित्यकार है। कथा, संस्मरण, निबंध सभी पर साधिकार आपने कलम चलाई है और उनसे जो निःमृत हुआ, उससे अवश्य जैन समाज को कल्याणप्रद व रागात्मक चीज प्राप्त हुई है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपके अनेक निबंध प्रकाशित हो चुके हैं। 'राजपूताने के जैनवीर', मौर्य साम्राज्य के जैन वीर' और 'आर्यकालीन भारत' आदि पुस्तकाकार संकलन महत्त्वपूर्ण रचनाएं हैं।
इतिहास और पुरातत्त्व वेत्ता श्री डा. हीरालाल जैन भी दार्शनिक और