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आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : सामान्य परिचय
भगवान पार्श्वनाथ :
कामता प्रसाद जी की प्राय: पुस्तकें 'दिगम्बर जैन' मासिक पत्रिका के ग्राहकों को उपहार स्वरूप देने के लिए लिखी गई हैं। अतः कथानक की रोचकता के साथ जैन धर्म के प्रचार-प्रसार की भावना भी मुख्यतः जुड़ी हुई हो तो आश्चर्य नहीं। इसमें जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की कथा तथा उनके पूर्वभवों की कथा आकर्षक शैली में अंकित की गई है। कथा के साथ-साथ निबंध की तरह लेखक अपने विचार, उपदेश या तुलनात्मक अध्ययन बीच-बीच में प्रस्तुत करते रहते हैं। पार्श्वनाथ भगवान के पूर्वभव की कथा के प्रसंग में जिन मूर्ति पूजा के व्याख्या - संदर्भ में अंग्रेजों की मनोवृत्ति तथा उन लोगों की विशिष्टता की चर्चा निबंधकार की तरह करते हैं। अतः कथा के प्रवाह में बाधा पैदा होने से रस-क्षति होती है।
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आधुनिक युग में कथा - साहित्य के विकास के सम्बंध में कामताप्रसाद जैन ने 'नवरत्न' की भूमिका में लिखा है कि- " कथा - ग्रन्थों के अतिरिक्त और भी कई एक चारित्र्य-ग्रन्थों और कथा - कोशों का पता चलता है, परन्तु वे सब ही पद्यमय हैं। इसलिए हिन्दी जैन साहित्य में इन्हीं से कहानी का खास विकास हुआ नहीं कहा जा सकता। इस विषय का हमें सबसे पहले सं० 1777 में रचा हुआ 'पुण्याश्रव कथा कोश' मिलता है। इसे संस्कृत के आधार से पं० दौलतराम जी ने रचा था। इसके बाद ' आराधना-कथा- कोश' आदि ग्रन्थों के स्वतंत्र अनुवाद भी प्रकट हुए हैं, परन्तु इनसे हिन्दी जैन साहित्य में मौलिक कहानी का श्री गणेश हुआ, नहीं कहा जा सकता और सच पूछिए तो आज से बीस-पच्चीस वर्ष पहले तक हिन्दी जैन साहित्य को यह सौभाग्य प्राप्त ही नहीं हुआ। इस ओर सबसे पहले हमें बाबू जैनेन्द्र किशोर की 'मनोरमा' दृष्टिगत पड़ती है । परन्तु वह एक उपन्यास है और इसी तरह स्व गोपालदास जी बरैया का ‘सुशीला' उपन्यास भी इसी कोटि में आता है। यह मौलिक रचनाएं अवश्य हैं, परन्तु इन्हें कहानी - साहित्य में नहीं लिया जा सकता। यदि हां, बरैया जी ने स्व-संपादित 'जैन मित्र' में छोटी-छोटी कहानियां लिखी हों तो हमें उन्हें ही सर्वप्रथम मौलिक कहानी लेखक होने का श्रेय देना होगा। किन्तु स्पष्ट रूप से हमें लाला मुन्शीलाल जी एम०ए० का नाम इस दिशा में दृष्टिगत पड़ता है। आपकी 'कहानियों की पुस्तक' इस विषय की पहली पुस्तक कही जा सकती है। यद्यपि इसी समय के लगभग हमें पं० बुद्धिलाल जी कृत 'मोक्षमार्ग की सच्ची कहानियां' भी नजर आती है। अतः हिन्दी जैन साहित्य में मौलिक कहानियों का प्रारंभ इन्हीं पुस्तकों से हुआ कहा जा सकता है । परन्तु कला की