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आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : सामान्य परिचय
115 कथा और कहानी के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त करते हुए श्री कपूरचन्द जैन 'इन्दु' लिखते हैं कि-"कहानी और कथा में इतना ही अन्तर होता है कि कहानी काल्पनिक होती है। कथा की आधार शिला सत्य घटना होती है। कहानी का उद्देश्य, मनोरंजन या कोई शिक्षा का प्रतिपादन होता है। जबकि कथा शिक्षा के साथ-साथ किसी सैद्धांतिक तथ्य की स्पष्टता या पुष्टि करती है।
आधुनिक हिन्दी जैन कथा-साहित्य की जितनी भी रचनाएं है, उनका मूलाधार प्राचीन जैन साहित्य के आचारांग, उत्तराध्ययनांग, पद्मचरित्र, सुपार्श्व चरित्र, पुण्याश्रव कथाकोश, आराधना-कथा कोश, ज्ञातृ धर्म कथांग, अन्तकृद्दशांग आदि ग्रन्थों की प्रसिद्ध कथाएं है। बहुत से जैन लेखकों ने आधुनिक भाषा एवं शैली में प्राचीन कथा-ग्रन्थों का सुंदर भावपूर्ण मौलिक अनुवाद भी किया है, जैसे आराधना कथाकोश, बृहद् कथाकोश, सप्तव्यसन चरित्र और पुण्याश्रव कथा के अनुवाद उल्लेखनीय हैं। प्रायः समस्त प्राचीन जैन कथाओं का हिन्दी में अनुवाद हो चुका है। इन ग्रन्थों में एक साथ अनेक कथाओं का संकलन किया गया है और कथा की रोचकता तथा जिज्ञासा वृत्ति की उत्तेजना के कारण ये कथाएं अत्यन्त रस युक्त तथा सफल रही है। यद्यपि ये अनुवादित कथा साहित्य के ग्रन्थों में हिन्दी साहित्य की कहानियों का-सा टीप-टाप का रंग, मनोवैज्ञानिकता या सूक्ष्मता नहीं है, फिर भी भावों को झंकृत कर अन्तरात्मा को आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर कराने की क्षमता अवश्य इन कहानियों में है। इनमें समाज-विकास तथा लोक प्रवृत्ति का गहरा प्रभाव प्रतिबिंबित होता है। जैन कथाओं में धार्मिक उपदेश का प्रभाव अधिक रहता है, वह निर्विवाद तथ्य है; लेकिन प्रथम रोचक, जिज्ञासा प्रेरक कथावस्तु के द्वारा रस प्राप्ति कराने के उपरान्त धार्मिक या नैतिक संदेश रहता है या कथावस्तु के मध्य में अप्रत्यक्ष रूप से संदेश रहता है, जिससे कथा नीरस या बोझिल बनने से बच जाती है। अपने धार्मिक उपदेश को प्रतिपादित करने के लिए जैन कथाकार साधारणतः कहानी की समाप्ति पर किसी केवली या मुनि आचार्य को उपस्थित कराके कथा में आये सुख-दुःख की व्याख्या पात्र के किसी जन्म के कर्मों के आधार पर करवा देते हैं। इसी कारण बहुत-सी कथाओं में कहानी के अन्तर्गत कहानी के कारण कथावस्तु जटिल हो जाती है और पाठक पर उस प्रतिक्रिया का 1. द्रष्टव्य-श्री कपूरचन्द जैन-श्रीभगवत् जैन के 'दुर्गद्वार' कहानी संग्रह की प्रस्तावना
'मेरी समझ में' से पृ. 2.