________________
102
आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
या हास', कवि बुखारिया की 'मैं एकाकी पथभ्रष्ट हुआ', अमृतलाल चंचल की 'अमर पिपासा',पुष्कल की 'जीवन दीपक', अक्षयकुमार गंगवाल की 'हलचल', मुनि श्री अमृतचन्द्र 'सुधा' की 'अन्तर' और 'बड़ेआ', सुमेरचन्द्र कौशल की 'जीवन-पहेली' तथा 'आत्म-निवेदन', बालचन्द्र 'विशारद' की 'चित्रकार से', एवं आंसू से', श्रीचन्द्र की 'आत्म निवेदन' तथा कवि दीपक की 'झनकार' प्रमुख मुक्तक रचनाएं हैं। वैसे संख्या के दृष्टिकोण से भावात्मक कविताएं लिखने वाले काफी हैं, किन्तु उत्कृष्ट भावप्रधान मुक्तक-काव्य लिखनेवाले कम हैं। भगवत् स्वरूप जैन, मूलचन्द 'वत्सल', कवि बुखारिया और कवि पुष्कल की भावात्मक रचनाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
(4) आचारात्मक कविताएं जैन धर्म की विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। इनमें आचारों-सिद्धान्तों का महत्त्व और वर्णन विशेष रूप से होता है। इनमें उच्च काव्यत्व की मात्रा कम, प्रायः अभाव-सा ही रहता है।
(5) गेयात्मक रचनाओं के अन्तर्गत कल्पना द्वारा भावों को उत्तेजित करने की शक्ति निहित होती है। उसी प्रकार मानव-मन की रागात्मक वृत्ति को अधिकाधिक जागृत करके नाद युक्त संगीतात्मकता के द्वारा मधुर रसपूर्ण सृष्टि रची जाती है। गेय काव्यों में लय, ताल और नाद का रहना नितान्त आवश्यक माना जाता है। जिस गेय रचना में संगीत नहीं, वह उच्च भावपूर्ण रहने पर भी गेय काव्य नहीं हो सकती। वस्तुतः अन्तर्जगत के स्वाभाविक स्फुरण को स्वर और लय के नियमित आरोह-अवरोह से बांध देने से उनकी अभिव्यक्ति पर पाठक को एक अनिर्वचनीय आनंद व माधुर्य की अनुभूति होती है। इस प्रकार की कविता लिखने में कवयित्री कुन्थुकुमारी, प्रेमलता कौमुदी, पुष्पलता देवी, कवि अनुज, पुष्पेन्दु, रतन, कवि गंगवाल, कवि बुखारिया आदि को अच्छी सफलता प्राप्त हुई है। श्रीमती प्रेमलता की 'मूकयाचना', लज्जावती देवी की 'आकुल अन्तर', श्री फूलचन्द 'पुष्पेन्दु' की 'अभिलाषा' तथा 'देवद्वार' कविताओं में गेयात्मकता का गुण विद्यमान है। इसी प्रकार कवि रामनाथ पाठक 'प्रणयी' के 'तीर्थंकर' शीर्षक काव्य संकलन में गेय गीतों को प्रकाशित किया गया है। इनमें भावों की सुन्दर लयबद्ध अभिव्यक्ति हुई है। ___नूतन विचारधारा के उपर्युक्त परिचित-अपरिचित सभी कवि-कवयित्रियों की रचनाओं को श्रीमती रमारानी जैन ने 'आधुनिक हिन्दी जैन काव्य' के अन्तर्गत संग्रहीत किया है। उन्होंने 'युग-प्रवर्तक', युगानुगामी, प्रगति प्रेरक, प्रगति-प्रवाह, उर्मि तथा 'सीकर' शीर्षकस्थ छ: भागों में प्रवृत्तिओं को विभाजित किया है। रमा रानी जी ने काल क्रमानुसार यह विभाजन किया है। इन्हीं कवियों