________________
आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : सामान्य परिचय
ऐतिहासिक के साथ-साथ काल्पनिक भी हो सकती है, जबकि कथा - साहित्य में मानव की आध्यात्मिक उन्नति तथा जीवन - कल्याण के हेतु शुद्ध रूप से प्राचीन धार्मिक ग्रन्थों की कथावस्तु को आधार बनाकर कथा एवं चरित ग्रन्थों की रचना की जाती है। तीर्थंकरों, धार्मिक प्रमुख स्त्री-पुरुष, ऐतिहासिक जैन व्यक्ति या किसी दार्शनिक तत्व को महत्व देकर कथा और चरित्र ग्रन्थों की रचना शुद्ध पौराणिक या ऐतिहासिकता के आधार पर की जाती है। कल्पना को इसमें प्रश्रय नहीं दिया जाता, हाँ, कहीं-कहीं वर्णनों में अवश्य काल्पनिकता का रंग भर सकते हैं। कथा वस्तु में भी अंशत: कल्पना का सहारा लिया जा सकता है। कहानी - कला के तत्व कथा साहित्य में रखते हैं, लेकिन धार्मिक उपदेश, वृत - नीति - महिमा का प्रभाव विशेष रहता है। वैसे तो जैन उपन्यास साहित्य में भी धार्मिक उपदेश अंकित रहते हैं, लेकिन वहां प्रत्यक्ष न होकर चरित्र-चित्रण, वर्णन और कथोपकथन के माध्यम से अप्रत्यक्ष रहते हैं। इससे उपन्यास के कथा - प्रवाह में बाधा या अन्तराल उत्पन्न नहीं होता। 'जैन आख्यानों में मानव-जीवन के प्रत्येक पहलू का स्पर्श किया गया है, जीवन के प्रत्येक रूप का सरस और विशुद्ध तथा संपूर्ण जीवन का चित्र परिस्थितियों से अनुरंजित होकर अंकित है। कहीं इन कथाओं में ऐहिक समस्याओं का समाधान किया गया है, तो कहीं पारलौकिक का।++++ ये कथाएं जीवन को गतिशील, हृदय को उदार और विशुद्ध एवं बुद्धि को कल्याण के लिए उत्प्रेरित करती है। मानव को मनोरंजन के साथ जीवनोत्थान की प्रेरणा इन कथाओं से सहज रूप में प्राप्त हो जाती है।
109
नये हिन्दी जैन लेखकों ने प्राचीन धार्मिक कथा वस्तु को ग्रहण कर रमणीय उपन्यास की रचना की है। वैसे निबन्ध और कथा - साहित्य की तुलना में उपन्यासों की संख्या अत्यन्त अल्प कही जायेगी। धार्मिक चरित्रों पर ग्रन्थों के प्रणयन अवश्य हुये हैं, लेकिन उन्हें उपन्यास के अन्तर्गत न समाविष्ट कर कथा - साहित्य के भीतर समाविष्ट करना अधिक युक्ति-संगत प्रतीत होता है क्योंकि इस प्रकार के कथाग्रन्थों में रोचक कथावस्तु एवं सुन्दर रसात्मक वर्णनों के बावजूद भी उपन्यास के लिए आवश्यक वातावरण, भाषा शैली, कथोपकथन एवं घटना चक्र का प्रायः अभाव-सा होता है तथा मानव-कल्याण की वृत्ति से प्रेरित धार्मिक-नैतिक उपदेश की संभावना विशेष लक्षित रहती है। जबकि उपलब्ध उपन्यासों में मानव के आध्यात्मिक धरातल को ऊंचा उठाने के साथ-साथ भाव-जगत की आवश्यकता पूर्ति का प्रयास नूतन भाषा-शैली में
1. डा० नेमिचन्द्र शास्त्री - हिन्दी जैन साहित्यक परिशीलन - भाग 2, पृ० 70.