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आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : सामान्य परिचय
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की कविताओं का विश्लेषण डा० नेमिचन्द्र शास्त्री ने आधुनिक युगीन स्फुट रचनाओं में 'नूतन-प्रवाह' के अन्तर्गत विषयानुसार किया है। उन्होंने इन्हीं कवियों को तीन काल खण्डों में समाविष्ट कर लिया है। अन्य किसी मुक्तक-काव्य संग्रह का परिचय यहां उपलब्ध नहीं है। मधुरस :
स्व० भगवत् जैन के शिक्षाप्रद काव्यों का यह संकलन ईस्वी सन् 1944 में प्रकाशित हुआ था। यह संकलन प्राचीन धार्मिक कथा-साहित्य पर आधारित है। कवि ने प्रारम्भ में चौबीस तीर्थंकरों की वंदना-स्तुति करके निज-लघुता का इकरार किया है। सभी कविताएं साधारण कोटि की हैं, लेकिन कवि की धार्मिक अनुराग रंजित भावानुभूति तथा रोचक घटना-प्रसंग के कारण कविताएं ग्राह्य तथा रोचक बन पड़ी है। कवि का उद्देश्य भगवान महावीर के अहिंसा सिद्धान्त का सम्यक् प्रसार ही रहा है; क्योंकि अहिंसा के प्रसार की नूतन प्रणाली को कवि भगवान महावीर की सामाजिक चेतना व क्रान्ति समझते हैं। अलंकार-योजना, भाषा का चमत्कार या शैली की नूतनता के अभाव में भी अहिंसात्मक विचारधारा का गहन उद्रेक इन काव्यों का जीवंत अंश है। आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य में स्व. श्री भगवत् जैन का स्थान काफी महत्त्वपूर्ण है। श्री विद्या-विनोद :
सन् 1936 ईस्वी में मुनि श्री विद्या विजय जी महाराज ने धार्मिक स्तुतिपरक गीतों-स्तवनों की रचना की थी, जिनमें तीर्थंकरों की भक्ति से प्राप्त दुर्लभ शान्ति के महत्त्व पर जोर दिया गया है। भगवान के गुण एवं सर्वोच्चता स्वीकार कर निज लघुता का प्रदर्शन कर प्रभु से उबारने के लिए प्रार्थना की गई है। संगीतात्मकता के कारण 'विद्या-विनोद' के स्तवन गेय हैं। 'वीर पुष्पांजलि' :
इसके अन्तर्गत श्री चन्द्राबाई पण्डिता के स्तवनों का संग्रह है। वंदना-प्रार्थना के इन गीतों में मधुरता काफी है तथा लेखिका के हृदय की पुकार व तन्मयता का अच्छा अंकन हुआ है। श्रीमती कमला देवी कृत 'श्री शासन देव से श्राविका संघ की प्रार्थना' भी छोटे-छोटे धार्मिक स्तवनों का संग्रह है, जिस पर राजस्थानी भाषा का प्रभाव विशेष लक्षित होता है। राजस्थान में जैन धर्म का अत्यन्त प्रसार-प्रचार होने से धार्मिक पूजा-महोत्सव, स्तुति-वंदन के सन्दर्भ में 1. द्रष्टव्य-'शोध पत्रिका'-जुलाई 1970, पृ० 30.
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