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आधुनिक हिन्दी - जैन साहित्य
शीर्षक से फलित होता है कि इसमें आठवें तीर्थंकर 'चन्द्रप्रभु' की जीवनी व उपदेश को कवि ने ग्रन्थ-बद्ध किया होगा ।
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खण्ड काव्य :
महाकाव्य में जीवन की विविध घटनाओं एवं सम्पूर्ण इतिवृत्तात्मकता की अवतारणा प्रमुख रसों व अनेकविध वर्णनों के कारण सहज संभव हो सकती है। तदुपरान्त मुख्य कथा भाग के साथ-साथ छोटी-बड़ी अवान्तर कथाओं की भी गुंजाइश महाकाव्य में उपलब्ध रहती है। जबकि खण्ड काव्य में जीवन के सभी पक्षों को न ग्रहण कर एक-दो मार्मिक पक्ष या महत्त्वपूर्ण प्रसंग को लेकर तीव्र भावानुभूति तथा आकर्षक भाषा-शैली में काव्य की अवतारणा की जाती है । अनेक छोटे-बड़े पात्रों एवं वैविध्यपूर्ण घटनाओं की योजना इसमें मूर्तिमन्त नहीं हो सकती, बल्कि सीमित पहलू व मर्यादित चरित्रों की झांकी, उत्कृष्ट भावपक्ष एवं कलात्मक शैली पक्ष के साथ अंकित करके खण्ड काव्य को सफल बनाया जाता है। आधुनिक युग में महाकाव्य की अपेक्षा खण्डकाव्यों की रचना विशेष की जाती है।
रचना
" वर्तमान युग में जैन कवियों ने खण्ड काव्यों द्वारा जगत् और जीवन के विविध आदर्श और यथार्थ का समन्वित रूप प्रस्तुत किया है। ' खण्डकाव्यं मे भवेत् काव्यस्येकदेशानुसारि च ।' अर्थात् खण्डकाव्य में जीवन के किसी एक पहलू की झांकी रहती है। कवियों ने पुरातन मर्मस्पर्शी कथानकों का चयन कर - कौशल, प्रबन्ध-पटुता, और सहृदयता आदि गुणों का समन्वय किया है, जिससे ये काव्य पाठकों की सुषुप्त भावनाओं को सजग करने का कार्य सहज में सम्पन्न करते हैं। आधुनिक युग के हिन्दी जैन खण्ड काव्यों के सन्दर्भ में To मिचन्द का यह कथन उपलब्ध खण्ड काव्यों के अनुशीलन से सही प्रतीत होता है।
आलोच्य काल में - 'राजुल', विराग, वीरता की कसौटी, प्रतिफलन, बाहुबलि, सत्य-अहिंसा का खून तथा अंजना - पवनंजय खण्डकाव्य लिखे गये हैं, किन्तु इनमें से विराग, राजुल, सत्य-अहिंसा का खून तथा अंजना - पवनंजय ही उपलब्ध खण्डकाव्य हैं। अन्यों का केवल नामोल्लेख ही नेमिचन्द्र जी के 'हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन' में प्राप्त होता है । 'अंजना - पवनंजय' खण्डकाव्य भी प्रकाशित पुस्तक के रूप में प्राप्त न होकर 'अनेकान्त' जैन मासिक की पुरानी फाइल से प्राप्त हो पाया था। तीन अनुपलब्ध खण्डकाव्यों के शीर्षकों से स्पष्ट प्रतीत होता है कि ये धार्मिक पौराणिक कथावस्तु पर आधारित है।
1. डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री - हिन्दी जैन साहित्य - परिशीलन - भाग 2, पृ० 24.