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आधुनिक हिन्दी-जैन साहित्य
त्रिशला की कठोर गर्भता का विशद् वर्णन कवि ने किया है। प्रभु महावीर का जन्म 8वें सर्ग में वर्णित है जिसमें उस समय का वातावरण आनंदोत्सव तथा ऋषिकुल द्वारा व्यक्त आशीर्वाद को चिचित्र किया गया है। 9वें सर्ग से लेकर 14वें सर्ग तक वर्धमान का बाल्य जीवन उनकी 'महावीरता' सूचक घटनाओं, ऐकान्तिक चिन्तन, कुमार का विवाह व विवाहोत्सव, स्वप्न दर्शन, आत्म-निरीक्षण, महावीर का निरन्तर ध्यान-चिन्तन तथा 12 आध्यात्मिक भावनाओं पर परिचिंतन कवि ने गुम्फित किया है। चौदहवें सर्ग के अन्त में ही महावीर का गृह-त्याग एवं दीक्षा समारोह का वर्णन है। 15वें सर्ग में प्रभु आंतर्-बाह्य तपश्चर्या, कठोर कष्टों को समभाव एवं शांति से सहते हुए 'केवल ज्ञान' प्राप्ति की कथा है। तीर्थंकर लक्षण भी इसी सर्ग में वर्णित है। चन्दना चरित्र की आधिकारिक कथा भी इसी सर्ग में है। अंतिम तीन सर्गों में कवि अनूप जी ने भगवान महावीर के 'केवल ज्ञान' प्राप्त करने के उपरान्त की घटनाओं को वर्णित किया है। भगवान महावीर का 11 प्रमुख विद्वान् ब्राह्मणों को सर्वप्रथम दीक्षित करने की कथा एवं गांव-गांव घूमकर जैन धर्म के प्रसार-प्रचार के साथ धर्म-निर्देशना तथा साधु व गृहस्थ के लक्षणों का वर्णन प्रमुख रूप से है। अपने प्रमुख शिष्यों (गणधरों) को उपदेश देने का तथा प्रभु महावीर के निर्वाण (मोक्षपद) का प्रसंग भी इन्हीं सर्गों में अनूप जी ने समाविष्ट किया है।
कवि ने मुख्य कथा के साथ-साथ चण्डकौशिक, चन्दनबाला, गौतम मुनि, गोशालक-कथा, प्रभु के 27 पूर्व भवों में से प्रमुख भवों की कथा, 11 प्रमुख ब्राह्मण आचार्यों की जैन दीक्षा अंगीकार करने की घटना आदि अवान्तर कथाओं के रूप में वर्णित की है, जो मुख्य कथा-प्रवाह को आगे बढ़ाने में तथा जीवन की संपूर्णता व्यक्त करने में सहायक होती है। कवि ने स्वेच्छानुसार प्राचीन कथा वस्तु में दो-चार स्थानों पर परिवर्तन-परिवर्द्धन किया है, जिसके फलस्वरूप एक-दो जगह कालक्रम में अन्तर आ गया है। लेकिन इससे महाकाव्य में कथा-प्रभाव को कोई क्षति नहीं पहुचती। क्योंकि यह केवल साम्प्रदायिक जीवन नहीं है वरन् एक स्वतंत्र संपूर्ण महाकाव्य है।
कथा वस्तु की दृष्टि से सफल यह महाकाव्य संस्कृत छंद तथा तत्सम शब्दावली के बाहुल्य के कारण सामान्य पाठक को कहीं-कहीं क्लिष्ट प्रतीत होता है। लेकिन रोचक शैली, भव्य वर्णन, उदात्त चरित्र-चित्रण एवं शृंगार व शान्त रस के मार्मिक निरूपण से यह महाकाव्य निश्चय ही महत्त्वपूर्ण है। साथ ही सुंदर भावात्मक वर्णनों की दृश्यावलियों तथा जैन दर्शन की गहन विचारधारा को छंद-लय-बद्ध स्वरूप में प्रस्तुत करने से इसे गरिमा प्राप्त हुई है। कवि ने