________________
आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य : पूर्व-पीठिका
और आचरणीय तत्वों का प्रतिपादन साहित्यकारों द्वारा हुआ है या नहीं। देखने की कोशिश की जायेगी कि आधुनिक जैन साहित्य की प्रेरणास्वरूप इस लोक-धर्म की मूल भावना और सरल तत्वों की सामान्य सूझ-बूझ की ओर निर्देश हो पाया है या नहीं। सभी में पौराणिकता एवं कथानक की रसात्मकता विशेष है और काव्यत्व कम। लेकिन प्रमुखतः नीति और विश्वोपकार की भावना इन सबके भीतर अन्तर्निहित है। इन सबका ध्येय यही है कि मनुष्यों को मन और इंद्रियों की गुलामी से मुक्त कर अतीन्द्रिय आनंद की आध्यात्मिक भूमि की ओर अग्रसर करें। जैन रासोग्रन्थों के रचयिताओं को जीवन के राग द्वेष संचालित क्रिया - व्यापारों की सूक्ष्म परख होने से वे अपने घटना विधान में काफी सफल हुए थे। अतः उनकी रचना लोकप्रिय एवं धार्मिक शिक्षा के लिए उपकारक बन पाई।
79
" नेमिचन्द्र जी के इस वक्तव्य - कथन के साथ इस अध्याय को पूर्ण करेंगे कि 'सातवीं शती से आज तक हिन्दी जैन साहित्य की धारा मानव जीवन की विभिन्न समस्याओं का समाधान करती हुई अपनी सरसता और सरलता के कारण गृहस्थ जीवन के अति निकट आई है। इस धारा का सन्त कवियों पर गहरा प्रभाव पड़ा, जिस प्रकार जैन कवियों ने घरेलु जीवन के दृश्य लेकर अपने उपदेश और सिद्धान्तों का जन-साधारण में प्रचार किया, उसी प्रकार सन्त कवियों ने भी । अहिंसा सिद्धान्त की अभिव्यक्ति करने वाले लोक जीवन के स्वाभाविक चित्र जैन साहित्य में उपलब्ध है । इस साहित्य में सुन्दर आत्मपियूष रस छलछलाता है। धर्म विशेष का साहित्य होते हुए भी उदारता की कमी नहीं है। आत्म स्वातंत्र्य सभी व्यक्ति के लिए अभीष्ट है। प्रत्येक मानव स्वावलम्बी बनना चाहता है और चाहता है उद्घाटित करना आत्मानुभूति द्वारा अपने भीतर के तिरोहित देवांश को।”" इतनी विकसित परम्परा की विरासत प्राप्त आधुनिक हिन्दी जैन साहित्य अपना पथ प्रशस्त कर सकता हो तो आश्चर्य नहीं ।
1. डा० नेमिचन्द्र शास्त्री : हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन, भाग 1, पृ० 22.