Book Title: Shrungarmanjari
Author(s): Kanubhai V Sheth
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ JAYAVANTASIJRI'S SRNGĀRA MAŅJARĪ IŠĪLAVATĪCARI 'RA RĀSAI . L. D. SERIES 65 GENERAL EDITORS DALSUKH MALVANIA NAGIN J. SHAH EDITED BY KANUBHAI V. SHETH RESEARCH OFFICER L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD 9. HI HA दिलपत -O. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD 9 For Personal & Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ਮਨਜੀਤ nu ਔਰਤ ਦੇ अहमदाबाद धामंदिर JAYAVANTASŪRI'S SṚNGĀRAMANJARI [ S'ILAVATICARITRA RĀSA ] L. D. SERIES 65 GENERAL EDITORS DALSUKH MALVANIA NAGIN J. SHAH EDITED BY KANUBHAI V. SHETH RESEARCH OFFICER L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD-9 L. D. INSTITUTE OF INDOLOGY AHMEDABAD 9 For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Printed by K. Bhikhalal Bhavsar Proprietor Shri Swaminarayana Mudrapa Mandira 46, Bhavsar Society, Nava Vadaj, Ahmedabad-380013 Published by Nagin J. Shah Director L. D. Institute of Ahmedabad-380009 FIRST EDITION January, 1978 “Published with the Financial Assistance from the Government of India, Ministry of Education and Social Welfare (Department of Culture]." PRICE RUPEES 30 For Personal & Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत शृंगारमंजरी [शीलवतीचरित रास] संपादक कनुभाई व्र. शेठ PSUPune प्रकाशक लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर अमदावाद-३८०००९ लालमा अहमदाबाद बाद For Personal & Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रधान संपादकीय सत्तरमी शताब्दीना जयवंतसूरिनी एक अप्रकाशित रासकृति 'शृंगारमंजरी'ने प्रकाशित करतां आनंद थाय छे. आ प्रकाशनथी मध्यकालीन गुजराती साहित्यनी प्रकाशित कृतिओमां अक महत्त्वनी कृतिनो उमेरा थाय छे. आ ज कर्तानी बीजी अक अप्रकाशित रासकृति 'ऋषिदत्तारास 'नु' प्रकाशन अमे आ पहेलां सने १९७५मां क हतु परिणामे, मध्यकालीन गुजराती साहित्यमां जयवंतसूरिनु प्रदान शुं अने केवु छे तेनो ख्याल हवे आवी शकशे. शृंगारमंजरीनी समीक्षित वाचना तैयार करी, डा. श्री कनुभाई शेठनो हु आभार मानु छु पीओच.डी.नी उपाधि प्राप्त करावी आपी छे. आ कृतिना प्रकाशनमां आर्थिक सहाय करवा बदल भारत सरकारना शिक्षण अने समाजकल्याण (सांस्कृतिक विभाग) नो हुं हार्दिक आभार मानु छु. ला. द. भा. सं. विद्यामंदिर, अमदावाद - ३८०००९ १, जान्युआरी १९७८ अभ्यासपूर्ण प्रस्तावना लखो आपवा बदल आ संशोधनकार्ये तेमने गुजरात युनिवर्सिटीन For Personal & Private Use Only नगीन जी. शाह अध्यक्ष Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपादकीय निवेदन प्राचीन मध्यकालीन गुजराती साहित्यमां प्राप्त रास साहित्य अत्यंत विशाल छे. पण आ साहित्यना घणा मोटा भागनु मूल्य साहित्यकृति लेखे नहीं पण अतिहासिक-सांस्कृतिक के लोककथा सामग्रीनो दृष्टि छे. आथी मध्यकालीन पद्यकथाओनी जेम रासमां पण लेोककथातत्त्वना अभ्यास माटे सारा प्रमाणमां सामग्री सांपडे छे. मे दृष्टिए अत्रे जैन कवि जयवंतसूरिकृत 'शृंगार मंजरी' के 'शीलवतीचरित्ररास' नामनी कृतिनी समीक्षित वाचना अने अभ्यास रजू कर्या छे. प्रस्तुत कृति आ कविनी काव्यमां पण अनु स्थान छे. मूल्यवान सामग्री एमांथी प्राप्त सर्वोत्तमकृति छ. अटलु ज नहीं पण जैन गूर्जर साहित्यना सर्वोत्तम मध्यकालीन गुजराती भाषा, साहित्य, समाज अने संस्कृति अंगे थाय छे, ते दृष्टिए पण ते नांधपात्र छे. प्रस्तावनामां प्रत परिचय, संपादन पद्धति, कविनुं जीवन अने कवन, कृतिनो कथासार, कथापरंपरा, शृंगारमंजरी कथानो लोककथा तरीके अभ्यास, रास तरीके मूल्यांकन अने भाषासामग्रीनो अभ्यास वगेरे विषयोनो समावेश कर्यो छे. पण मुख्य लक्ष्य शृंगारमंजरी कथानो लोकतास्विक [Folkloric ] दृष्टि अभ्यास परत्वेनुं छे. आ संदर्भमां शृंगारमंजरीनी कथा - सामग्रीमांथी प्राप्त कथाप्रकृति के कथाघटकनी तारवणी करी, ते अंगेनी भारत अने भारतबाह्यप्रदेशनी कथापरंपरामांथी जे तुलनात्मक सामग्री मळी आवी छे ते प्रस्तुत करी छे. प्रत्येक कथाघटकनो तथा एना कथारूपांतरानो अतिहासिक-भौगालिक पद्धतिभे तुलनात्मक अभ्यास पण रजू कर्यो छे. ( आ अंगेनी सामग्री विस्तारपूर्वक हवे पछी प्रगट थनार पुस्तकमां रजू करवामां आवशे). प्रस्तुत कृतिनी विविधकालनी उपलब्ध पांचेक हस्तप्रतोनो उपयोग करी एनी समीक्षित वाचना अत्रे रजू करी छे पण प्रतो अशुद्धि होवाने कारणे केटलाक स्थाने पाठो संदिग्ध रह्या छे, ते घटे गुजरात युनिवर्सिटीनी पीओच.डी. नी उपाधि अंगे रजू करेला आ महानिबंध हवे थोडाक फेरफार साथै प्रगट थाय छे. मारा महानिबंध अंगे जरूरी मार्गदर्शन अने विविध ग्रंथभंडारनी अमूल्य हस्तप्रतो मारा उपयोग अर्थे सुलभ करी आपवा बदल हु* स्व. परम पूज्य आगम प्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी महाराज साहेबनो अत्यंत ऋणी छु. महानिबंध तैयार करवामां मार्गदर्शन आपवा माटे हुं मारा मार्गदर्शक डॉ. बिपिनचंद्र जी. झबेरी साहेबनों अंत:करणपूर्वक आभार मानुं छु ं विद्यावाचस्पति श्री. के. का. शास्त्रीजी तथा डॉ. हरिवल्लभ भायाणी साहेब ए बे विद्वानोए सहृदयता अने आत्मीयताथी मने मारा शोध-कार्यमां, मार्गदर्शन तथा संदर्भ सामग्री अंगे सहाय आपी उपकृत कर्यो छे ते माटे हुं कृतज्ञतानी लागणी व्यक्त करु छ ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावादना अध्यक्ष For Personal & Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (निवृत्त) आदरणीय श्री. दलसुखभाईए मारा शोध-कार्यमां सतत प्रेरणा, मार्गदर्शन अने सहाय आप्या छे ते बदल हु आभारनी लागणी व्यक्त करु छुः शब्दकोश अंगे उपयोगी सूचन करवा बदल हु वयोवृद्ध पंडित श्री बेचरदास दाशीनो ऋणी छु'. प्रस्तुत कृतिनी अधिकृत वाचना तैयार करवा माटे मारा उपयोग अर्थ हस्तप्रतो सुलभ करी आपवा माटे वाडी पार्श्वनाथनी भंडार (पाटण), डेला आसरा ग्रंथभंडार (अमदावाद), वीर विजय उपाश्रय ग्रंथभंडार (अमदावाद), तपगच्छ जुन शाळा ग्रंथम'डार (खं पात) तथा ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, (अमदावाद)ना ट्रस्टीओ के संचालकोनो हार्दिक आभार मानुं छु. मारा शोध-कार्य दरम्यान शोध-वृत्ति आपवा बदल ला. द. भारतीय संस्कृतिना संचालक मंडळनो हु आभार मानुं कुं. अंते, महानिबंधना प्रकाशन-खर्च अंगे आर्थिक सहाय आपवा माटे हु भारत सरकारना शिक्षा विभागनो आभार मानु छु. कनुभाई व्र. शेठ १, जान्युआरी १९७८ ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर अमदावाद-९ For Personal & Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय विषयानुक्रम प्रस्तावना १. प्रत परिचय अने संपादन पद्धति २ कवि जयवंतसूरि : जीवन अने कवन ३. “शृंगार मंजरी” कथानी रूपरेखा ४. शृंगार मंजरी : शीलवती कथा-परंपरा ५. शृंगारमंजरी कथा : अक लोककथा तरीके ६. 'शृगारमंजरी ' : एक रास तरीके मूल्यांकन ७. शृंगारमंजरी : भाषा सामग्री ८. संदर्भग्रंथसूची : शृंगार मंजरी - मूळ पाठान्तर शब्दकोश परिशिष्ट For Personal & Private Use Only पृष्टांक १-६१ १-६ ६-२७ २८-३६ ३७-३० ३८-३९ ३९-४७ ४८-६० ६१-६८ १-१७८ १७९-२२० २२१-२२९ २३० - २३२ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धिपत्रक प्रस्तावना पंक्ति अशुद्ध दशम्यां लाया सांडडड नथी दशभ्यां लख्या ७ सांउडडु नथी जयलब्ध अलध सीसंधर सीमंधा लोहित्य लौ हित्य संयगला मयंगला संगे अगे त्पीना स्त्रीम राजीओ राजाओ साध्वीजीओ साध्वीजीओ स्वरूप स्वरूपना दृष्टिले कया. अष्टिए अवकाश नथी पण कथा. लाणी हस्तीतलिन हस्तीतोलन ढंढरिजि ढंढणनिखि दुर्गाइ वाहलकेग वाहलकेरो (२३०३). वेगिरि वेगिकरि लाळी दुगाई ग्रंथपाठ मो मोड सिंध सिंह गोमुत्रिका . c नयनमरणां अखंडी वेदन अवतरी न थाई कंचु-कसण शुभ १०३ २२ गोमुत्रिता होह नवनसरणां अखंटी वंदन अवनरी थाइ कंच-कुसण पभ लागु विसई प्रहे वसी गगनाठगेने डा ९०७ ११७ १४६ १८ १४७ भागु १६१ १७० विदेसई प्रहिवसी गगनाङ्गने डाद २२३ २४ २३१ For Personal & Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना १. प्रत परिचय अने संपादन पद्धति प्रास्ताविक कवि जयवंतसूरि सत्तरमी सदीना अंक गणनापात्र कवि छे. अमणे रचेली नानी-मोटी बारेक कृतिओ हाल उपलब्ध थाय छे. अमांनी 'स्थूलिभद्रकाशा प्रेमविलास फाग'१', 'नेमिनाथ राजीमती बारमास२, 'नेमिजीन स्तवन' 3 अने 'ऋषिदत्तारास४' नामनी चार कृतिओ प्रगट थओली छे. पण ते सिवायनी सर्व कृतिओ हजी अप्रगट छे 'शूगारमंजरी' अथवा 'शीलवतीचरित्ररास' से आ कविनी सर्वोत्तम कृति छे, अटलं ज नहीं पण जैन गूर्जर साहित्यना सर्वोत्तम काव्यामां पण अनु स्थान छे. मध्यकाकीन गुजराती भाषा, साहित्य, सपाज अने संस्कृति अंगे मूल्यवान सामग्री अमाथी प्राप्त थाय छे, ते दृष्टिले पण ते नेांधपात्र छे. प्रत परिचय जयवंतसूरि कृत 'शूगारमंजरी' नामनी कृतिनी कुल्ले पांच हस्तप्रता प्राप्त थई छे. 'जैन गूर्जर कविओ'५मां नेांधायेली हस्तप्रतानो तथा अमां न नोंघायेली अवी अन्य भंडारमाथी प्राप्त थती हस्तप्रतानो आ संपादनमा उपयोग कर्यो छे. 'जैन गूर्जर कविओ'मां नीचे मुजब पांच हस्तातो अंगे नेांध छे. (१) डहेलाना आसराना ग्रंथभंडार, अमदावादनी प्रत. (२) वाडी पार्श्वनाथने। भडार, पाटणनी प्रत. (३) खेडा भंडार, खेडानी प्रत. (४) वीरविजय उपाश्रय ग्रंथभडार, अमदावादनी प्रत (५) तपगच्छ जैन शाळा ग्रंथभंडार, ख भातनी प्रत. १. प्राचीन फागु संग्रह, संपा. डॉ. भोगीलाल ज. सांडेसरा अने सेोमाभाई पारेख, वडोदरा, १९५५, पृ. १२६-३३. २. प्राचीन-मध्यकालीन बारमासा-संग्रह, संपा. डॉ. शिवलाल जेसलपुरा, अमदावाद, १९७४, खंड १, पृ. ४०-६२. ३. शमामृतम्-नेमि जीन स्तवन, स शा. धर्मविजयजी, भावनगर, १९२३, पृ. ११-१४. ४. जयवतसूरि रचित ऋषिदत्ता रास, संपा. निपुणा अ. दलाल, ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामदिर, अमदावाद, १९७५. ५. जैन गुर्जर कविओ, संवा, मोहनलाल द. देसाई, १९४४, भाग ३, खंड १, पृ. ६९९. For Personal & Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "जैन गुर्जर कविओ"मां नेांधायेल आ सर्व प्रताना प्रस्तुत संपादनमा उपयोग करी शकायो नथी, केमके प्रयत्न कर्या छतां खेडा भंडारनी प्रत मळी शकी नथी. तपास करतां ते भंडारमाथी गुम थयेली जणाई छे. आ उपरान्त अमदावादमां आवेल लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामदिरना ग्रथम डारमाथी अंक हस्तप्रत मळी आवी छे, जेना प्रस्तुत संपादनमा उपयोग कयों छे. आ पांचे प्रतो माटे नीचे प्रमाणे सकेतो योज्या छे. अ=श्री डहेलाना उपाश्रय, अमदावादनी प्रत. क-श्री नीतिविजयजी. जैन ज्ञानभ डार. खंभातनी प्रत. ख=श्री वाडी पार्श्वनाथ ग्रंथभडार, पाटणनी प्रत. ग=लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावादनी प्रत. घडित वीरविजयना उपाश्रय, अमदावादनी प्रत. आ प्रतानु वर्णन नीचे मुजब छे. प्रत 'अ' आ हस्तप्रत अमदावादना डहेलाना उपाश्रयना ग्रंथभंडारनी छे, जेमा ते दाबडा नं. १२ पोथी-५ तरीके नेधायेली छे. अमां कुल्ले ७६ पानां छे. प्रत्येक पृष्ठनु मात्र ९.८"x४.४” छे. दरेक पत्रमा सामान्यतः १५ पंक्ति अने प्रत्येक पंक्तिमा १५-४७ अक्षरो छे. पत्रनी पाछली बाजु पर जमणी बाजुओ हांसियामां नीचे पत्रांक काळी शाहीमां लखेल छे. दरेक पत्रनी डावी अने जमणी बाजुओ लाल शाहीथो ०.४"थी ०.६" सुधीना हांसियो अंकित करवामां आव्यो छे. आखीय प्रत क ज हाथे देवनागरी लिपिमां लखायेली छे. तेमज अंखड अने सुवाच्य छे. अक्षरो काळी शाहोमां लखायेला छे. पण दंड अने राग के ढालनां नाम के प्रथम पंक्ति लाल शाहीमा छे. प्रत संवत १६३९ना मागशर वद बीजने शनिवारे पानसर नगरमां हारीज गच्छना भ. महेश्वरे लखी छे. आरंभ : श्री गुरुभ्यो नमः अंत : ग्रंथान २८०० संवत १६३९ वर्षे मागशीर्ष मासे कृष्णपक्षे द्वितीयां शनिवारे पानसर नगरे श्री हारीज गच्छे भ. श्रीश्रीश्री महेश्वरसूरिभिः ॥श्रीः॥छः॥श्रीरस्तु॥ ॥१७॥२ लेखननी विशिष्टताओ : १. “य'' कारनी विशेषताओ..: नहीय, मोडीय, भाज्य. २. नामजी, घांम, वाणी, पाणीउ, डांवा, कांमिजी. ३. सानुनासिक शब्दा-तुसि, तिजिउ, छसिउ, कहिउ ४. पदान्ते दीर्घ “उ” कार-पणमू, नलहू, तेहवू, हैअडकू. ५. मूडाअनइ, वंछिअ, हैअडल. For Personal & Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) प्रत 'क' प्रस्तुत हस्तग्रत पू. श्री नीतिविजयजी जैन ज्ञानभंडार, जैनशाळा, खंभातमाथी प्राप्त थई छे. नो क्रमांक १८२१ छे. अमां कुले १५० पानां छे. पत्रनु सामान्य माप १०"x४.४''नु छे. दरेक पत्रमा पाछली बाजुओ जमणा खूणामां स्पष्ट रीते पृष्ठ संख्या लखवामां आवी छे. दरेक पृष्ठनी डाबी अने जमणी बाजुओ १"ने। हांसियो अंकित करवामां आव्यो छे. पानानी उपर अने नीचेनी बाजुओ ०.६" जग्या खुल्ली मूकवामां आवी छे. बाजुना बन्ने हांसियामां लाल टपकुं आवेलु छे. आखीय प्रत ओक हाथे देवनागरी लिपिमा लखायेली छे. अक्षरो कंइक मोटा अने सुवाच्य छे. अक्षरो सामान्यतः काळी शाहीमां लखायेल छे. ढाल के रागना प्रारंभने लालरंगथी दर्शाववामां आव्या छे. पदच्छेद माटे शब्दनी उपर नानी काळी शाहीनी लीटी छे. प्रत संवत १६८५मा वर्षे पोष सुदी बीजने बुधवारे हबदपुरमा प्रेमसागरे लखी छे. आ प्रतने प्रस्तुत संपादनमा मुख्य गणी छे. आरंभ : श्री सरस्वतत्यै नमः । अंत : इतिश्री शीलवतीचरित्र गर्मिता शृंगारमंजरी नाम्ना सुभाषितावली सभाप्ता, संवत १६८५ वर्षे पो. सुदि २ बुधे लखितं, हबदपुरे मध्ये प्रेमसागर लिपि कृताः, श्रीरस्तुः, श्रुभं भवतु, कल्याणमस्तु, श्री, छ, ठ, छ, श्री कडुआमती गछे श्राविका बाई मटु पठनार्थ श्रृंभम भवतु छ. लेखननी विशिष्टताओ : १. "य'ने स्थाने "इ"कारवाळा रूपो काइलि, हाइ, थाइ, काइ, २. सानुनासिक रूपा-करंति, मरंति, हसंति, हरंति, ३. सम्म, जिम्म, पिम्म, किन्म, किध्ध ४. नारीअ, निवारीअ, पाणीअ, अणसरीअ, पहिलीअ ५. "ख" बदले सर्वत्र "ब''-खेद (षेद), खलति (पलति) प्रत 'ख' आ प्रत पाटणना वाडी पार्श्वनाथ भंडारमाथी मळी आवी छे. ते आ भंडारमा दाबडा १८७ न. ७३२२ तरीके नेांधायेल छे. कुल पानां ५८ छे. पत्रनु माप ९.४"x४.४" छे. दरेक पत्रमा सामान्यतः १७ पंक्ति छे. पत्रनी पाछली बाजुओ जमणी तरफ हांसियामां पृष्ठांक लखवामा आध्यो छे. पत्नी डाबी अने जमणी बाजुओ ८.५''नो हांसियो लाल रेखाथी अकित करवामां आव्यो छे. पत्रनी उपर अने नीचेनी बाजु पर ०.४' जग्या कारी मूकवामां आवी छे. पत्रनी जमणी बाजु परना मथाळे हांसियामां "शृंगारमंजरी" लखेलु मळे छे काव्यना आरंभ, ढाल के रागनां नाम लाल शाहीथी लखवामां आव्या छ बाकीनी आखी कृति काली शाहीमा छे. For Personal & Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (8) आखीय कृति देवनागरी लिपिमां मध्यमकदना अक्षरमां लखायेली छे. केाई काई जग्याओ हांसियामा अर्थ दर्शावता शब्द लखेला मळे छे. प्रत संवत १७०३ना फागण महिनामां कृष्णपक्षनी १२मी तिथि सागरगणीओ लखी छे. आरंभ : सकलवाचकसभाभामिनीभालस्थलभूषणायमान महोपाध्याय श्री. प. श्री शांतिसागरगणि गुरुभ्यो नमे नमः, अंत : वहन्याकाशमुनिक्षपाकरमिते १७०३ संवत्सरे वैक्रमे मासे फाल्गुनिके शशांक विशादे पक्षे दशम्यां तिथौ । पुष्पा के विनयादिसागरगणि विधैज्जनानंदिनीम् शृंगारादिममंजरी समलिखत् स्वश्रेयसे सादरात् । लेखननी विशिष्टताओ : १. सामान्यतः सर्वत्र "झ" ने स्थाने "ज". जमकार, जलह, जूरइ, जांजर. २. सर्वत्र "ख" ने बदले "१". षलक (खलक), मेषला (मेखला ), दीपशिषा ( दीपशिखा) ३. सुवन्नमय, अनुदिन्नि, वन्नि, मन्नि ४. सरसत्ति, गजगत्ति, जित्त. प्रत-ग प्रस्तुत प्रत लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावादना पू. मुनिश्री पुण्यविजयजीना भंडारमाथी प्राप्त थई छे. आ व्रतमां कुले ७७-३ पाना छे. प्रत्येक पृष्टनुं माप ९.५१४४•३”नु ं छे. पत्रनी डाबी अने जमणी बाजुओ ०.८" ना हांसियो छे उपर अने नीचे ०.४ " जग्या कारी मूकेली छे. प्रत्येक पाना पर सामान्यतः १७ पंक्ति छे. आखी कृत देवनागरी लिपिमा सुवाच्य अक्षरे लखायेली छे. दंड, ढाल, राग तथा देशीनां नाम अने आरंभने लाल शाही वडे लखवामां आव्यां छे. लोकनां अंकेा पण लाल शाही वडे दर्शाववामां आब्या छे. पत्रनी उलटी बाजुओ डाबी बाजुना खूणा पर काळी शाही वडे क्रमांक स्पष्टपणे लरूया छे. प्रथम पृष्ठ पर सुंदर रंगीन भात छे. अंतिम पृष्ठ पर पण आवु ज रेखांकन छे. प्रत संवत १७४० मां कान्तिसौभाग्ये लखी छे. आरंभ : सकलवाचकसभाभामिनीभालस्थलभूषणायमान महोपाध्याय श्री २१ श्री सत्य सौभाग्यगणि गुरुभ्यो नमः. अंत : इति श्री शीलावती चरित्रगर्भिता शृंगारमंजरी नाम्ना ग्रंथ संपूर्णमिति । मंगलमालिकाबालिकावदालिंग(गी) तु ॥ संवत १७४० वर्षे मधुमासे सीतेतरपक्षे चतुदर्शी कर्मवाद्यामिति भद्र भूयात् । श्रमण संघस्य । सकलवाचकगगनांगणनभे । मणि वाचक श्री १९ श्रीसत्य सौभाग्य शिष्य पंडित श्री प० श्री अमरसौभाग्यगणिशिष्यविनेयाणुं कांतिसौभाग्येन लिखिता पुस्तिका स्वपरोपकाराय प्रीत्यर्थं वा । शुभं भवतु ॥ कल्याणस्तुः ॥ श्रीरस्तुः ॥ For Personal & Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेखननी विशिष्टताओ : १. पदान्ते अनुनासिक-पुहचई, कीज इ, वघारइ, वखाणइ', बारम३. २. आराम, कामिनी, वेदपुराणि, अभिरामजी. ३. "य" कारवाला शब्दा-करीय, मोहय, वाहणीय, वारीय, सारीय, लावीय. ४. हुओ, छांवीओ, हिलहओ, बहओ. ५. सांडडडु, निनिंदंति, दडिदीण. प्रत-घ प्रस्तुत प्रत पंडित वीरविजय उपाश्रय, अमदावादना भंडारमाथी प्राप्त थई छे. जेमां ते डाबडा १७. प्रतक्रमांक ४१९ तरीके नेांधायेली छे. आ प्रत अधरी छे. अमां कुले ७३-१५ पानां मळे छे. पानानु सामान्य मा ९.९x४.४ 'नु पत्रनी डाबी अने जमणी बाजुओ १"ने। हांसियो छे. पत्रनी उपर नीचे ०.५" जग्या कारी राखवामां आवी छे. पानानी उलटी बाजुओ डाबी बाजु पर काळी शाही बडे पृष्टांक दर्शाव्या छे. आखीय कृति देवनागरी लिपियां मध्यम कदना अक्षरामां काळी शाहीथी लखायेली छे. पंक्ति भेद माटे दंडनो प्रयोग को नयी. सीधा ज लोकांक मूकया छ, अने तेने लाल बनाव्या छे. राग के ढालनी प्रथम पंक्तिने लाल बताववामां आवी छे, काचित बाजु पर हांसियामा अर्थ दशांवता शब्द। लखेला मळे छे. प्रथम पृष्ट पर मथाळे "शंगारमंजरी चुपई" अम लखेलं छे. आ प्रतना छेल्ला चारेक पुष्ठ खेविाइ गयेला लागे छे. अटले अना लेखनसमय अंगे काई माहिती मली नथी. आरंभ : दुहा० चंदवदनि चंक्वती. लेखननी विशिष्टताओ : १. पदान्ते "इ"कार सानुनासिक सेोभागि, दिसिं, कमलनि, अनुभाविं, आका सिं. २. "झ"ने बदले घणु खर "ज" जीणउ, जमकार, जिलहल. ३. घणू अ, नीअम, निअमनि, रसिअ, नहींअ. संपादन पद्धति पलब्ध हस्तप्रतोमाथी भाषा, समय के लखावटनी प्राचीनताना धारणे प्राचीनतम ठरावी शकाय अवी प्रत 'क'ने अहीं मुख्य प्रत गणी छे, अने संपादित ग्रंथपाठ अने आधारे तैयार को छे. आ सिवायनी अन्य प्रतनां पाठांतरो नेांध्या छे. आ पाठांतरानी नेांधणी मुख्य प्रत 'क' नी कडी अने पंक्तिना क्रमानुसार करी छे. संदर्भ माटे आवश्यक होय अवा अपवादा सिवाय अन्य प्रतामां मळता वधाराना शब्दो पंक्ति के कडीने संपादित ग्रंथपाठमां स्थान आपवामां आव्यु नथी. मुख्ज प्रत 'क'नी. अंदर मळती कडीओ. अन्य कोई पण प्रतमां न मळी आवती For Personal & Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) होवा छतां तेने ग्रंथपांठमां कायम राखी छे. संदर्भ, जोडणी के भाषानी प्राचीनता, 'अर्थ' ना औचित्यनी दृष्टि संपादित ग्रंथपाठ स्पष्ट रीते योग्य लाग्यो नथी, त्यां तेने बदले अन्य प्रतेने योग्य अने उत्कृष्ट लाग्यो हाय सेवा पाठ स्वीकार्यो छे अने मुख्य प्रत्ना पाठनी नांध लीधी छे. सामान्यतः अक नियम तरीके प्रमाण, क्रम, भाषा अने जोडणी अम प्रत्येक बाबतमां मुख्य प्रतने ज आधार तरीके लीधी छे. कमां प्रस्तुत कृतिनु संपादन सामन्यतः नीचेना मुद्दाओ लक्षमां राखी कर्तुं छे. (१) अहीं प्रत 'क'ने मुख्य प्रत गणी छे, अने सामान्यतः तेना ज पाठने। स्वीकार क छे. अन्य प्रतोना महत्त्वना पाठान्तरो नांध्या नथी. (२) पर्यायात्मक के पादपूरक अंगेना पाठान्तरो नांध्या छे. (३) पाठ वधते। के ओछा होय ते दरेक स्थळनी नांध करी छे. (४) भाषा, अर्थ' के अन्य कोई दृष्टिले महत्त्वनां जणातां पाठान्तरोनी खास नांध लीधी छे. (1) कोई प्रतमां न होय तेवा अकेय कल्पित पाउने ग्रंथपाठन लेवामां आव्या नथी. (६) आ संपादनमां जोडणी मुख्य प्रतने अनुसरीने ज आपवामां आवी छे. ओ जोडणीमां विसंगतता होय तो पण मूळ जोडणीने वफादार रहीने तेमां फेरफार कर्यो नथी. पण (अ) जयारे स्वीकारेल धोरणथी भिन्न सेवा पाठ मुख्य प्रतमां होय, पण अन्य प्रतमां आ स्वीकारेल धोरणनो पाठ होय तो तेवी जग्याओ आ बीजी प्रतना पाठने स्थान आयु छे. ( आ ) मुख्य प्रत करता अर्वाचीन समयनो पाठ जो ते अन्य कारणे उत्कृष्ट लाग्यो होय तो स्वीकार्य छे, अने तेनी जोडणी पण यथातथ जाळवी छे. (इ) तत्सम शब्दोमां पण पाठने शुद्ध करवामां आव्यो नथी के अन्य प्रतमां शुद्ध पाठ मळी आव्यो होय ते छतां तेने आ ग्रंथपाठमां स्वीकारवामां आव्यो नथी. २. कवि जयवंतसूरि : जीवन अने कवन प्रास्ताविक प्राचीन - मध्यकालीन गुजराती कृतिओना कर्ताना जीवन अंगेनी माहिती सामान्यतः ओमनी पोतानी कृतिओनांथी के अमना शिष्य समुदायनी कृतिओमांथी के कवचित समकालीन - अनुगामी कविओनी कृतिओमांथी सांपडे छे. जे अल्प प्रमाणमां ज द्देोय छे. अहीं जेनी अधिकृत वाचना रजू करवामां आवी छे ते " शृंगारमंजरी" अथवा 'शीलवती चरित्रराम ना कर्ता 'जयवंतसूरि'ना जीवन विषेनी अमनी कृतिमांथी के अन्य स्थळेथी शप्त थती माहिती पण प्रमाणमां बहु अल्प छे. कवि जयवंतसूरिना जीवन सबंधेना उल्लेखनो आधार बहुधा अमना ग्रथोमांथी मळी आवतां आंतर प्रमाणो ज छे, अने काई किंवदंतीओ नथी. आथी अमना केटलाक काव्यांना अंत भागमां जे कांई थोडी घणी हकीकत मळे छे. ते परथी जयवंतसूरिना चरित्रनी रजूआत करवामां आवी छे. For Personal & Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन * 'शृंगारमंजरी' अथवा 'शीलवतीचरित्ररास'ना कर्ता जयवतसूरि के जयवत १डितनु, अमनी कृतिओने अंते प्राप्त थती प्रशस्तिओमांथी, अपर नाम 'गुणसौभाग्यसूरि' मळे छे.' आम जयवत साथे ज 'गुणसौभाग्य' नाम सांपडे छे. ते परथी अटलु तो चोक्कसपणे कही शकाय के कविनु अपरनाम 'गुणसौभाग्यसूरि' हतु. जयवंतसूरिना गुरु अने गच्छ विषेनी अमनी कृतिमाथी प्राप्त थती माहिती अनुसार ते वडतपागच्छनी पर परामां थई गयेला 'विनयमंडन' उपाध्याय'ना शिष्य रे हता. पोताना गुरुनी परंपरानो * अत्रे नेांधवु जोइओ के आ कविनी अन्य कृति 'ऋषिदत्ता रास' परना डा. निपुणा अ. दलालनो महानिबंध आ पूर्व प्रगट थलो छ मे संदर्भमां कविना जीवन अने कवन अंगे केटलीक माहितीनु पुनरावर्तन थवा संभव छे. पण अत्रे ते निवारवानो प्रयास कर्या छे. जुओ, 'जयवंतसूरि रचित ऋषिदत्ता रास' स. निपुणा अ. दलाल, ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद, १९७५. - १ (अ) जे जगि धर्मसहाय गुणाकार, सुविहितनइ धुरि किद्ध, , तस सीस गुणसौभाग सुनामि जयवंतसूरि प्रसिद्ध ..५४६ -ऋषिदत्ता रास, लींबडीनो हस्तप्रत ग्रंथभंडार, लींबडी पृ. १९, (ब) गुणसभागई त्रिभूवन दीपइ, केवलन्यानिइ कुमत ज जीपइ...१ जयवतसूरि वयण रसाला, भगतिइ गाइ जिनगुणमाला...२७ सोमंधरा चंद्राउला, ला. द. भा. स. विद्यामदिर, अमदावाद हस्त प्रत क्रमांक ३५०१, पृ. ३-७ (क) ... सूरि श्री जयवंत अष गुणसौभाग्यो पराहूवोऽस्ति य... -जैन गुर्जर कविओ, सपा. मोहनलाल द. देसाई, मुबई, बीजो भाग, खंड १, पृ. ६७२. - २२ अमनी जुदी जुदी कृतिमां आ अंगे नीचे प्रमाणे उल्लेखा मळे छ : (क) वडतपगछि अति महिमावत, श्री विनयमंडन उवझाय महंत, शीलिं थूलिभद्र सरसति बुद्धि, गौतमनी परि लब्धि प्रसिद्ध. १५ ते सहिगुरुना प्रणमी पाय, जयव तसूरि सेकचितई थाई, ग्रंथ करुं शृंगारमंजरी, बोलू शीलवतीनू घरी. १७ श्री विनयम डन उवजझाय, गुण गणतां न लहू पार, विद्याइ सुरगुरु समा, रूपई मयण अवतार. २४११ ) नामइ शृंगारम जरी, शीलवतीनु रास, श्री विनयमंडन गणि सीस कीउ, जयवंत लघु सीस तास. २४१९ अने काव्यान्ते श्री विनयमंडन गणींद्रनु, लघु सीस भूमि प्रसिद्ध, जयत्रत पंडित अभिनवी शृंगारमंजरी किद्ध. २४ २२ -शृंगारमंजरी Jain Education Interational For Personal & Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) उल्लेख कविओ अमनी दोघं कृति 'शृंगारमंजरी'मां आप्यो छे.१ ते अनुसार ते वृद्ध तपापक्षना 'रत्नाकर गच्छ'मां थई गया होय अन जगाय छे रत्नाकर गच्छ'ना उद्योतकर तरीके ते 'विजयरत्नरि'ने गणावे छे. आ विजयरत्नसूरि'ना शिष्य ते ख्यात 'धर्मरत्नसूरि'. आ 'धर्मरत्नसूरि'ना बे शिष्यो ते 'विद्यामंडनमूरि' अने ' विनयमान उपाध्याय '. आ 'विनय मंडन'ना बे शिष्योना - (ख) वडतपगच्छ सोहाकरु हो, श्रीविनयमंडन गुरु राय, रतनत्रय आराधका हो जे जगि धर्मसहाय ५५५ जे जगि धर्मसहाय गुणाकर, सुविहितिनइ धुरी कीध्ध, तस सीस गुणसोभ ग सुनामि जयवंतसूरि प्रसिद्ध ५४६ -ऋषिदत्ता रास, लींबडी हस्तप्रत, पृ. १९, ५४५-५४६ (ग) श्री विनयमंडन उवझाय अनोपम, तपगच्छ गयणइ चंद तमु सीस जयवंतसूरि, वरवाणी सुणतां हुइ आणंद. ७५ -पुण्यविजय हस्तप्रत ग्रंथभंडार, ला द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद. प्रा क्रमांक २६५६. । गुर विनयमंडन उवज्झायो, जिन के नरवर सेवइ पाय, लघु सीस जयवंतसूरि गुण गाइ, थूलभद्र...सुख सवि थाइ. ६८ -स्थूलिभद्र चंदायणि ला. द. भा. स. विद्यामंदिर, हस्तप्रत ग्रंथभंडार, प्रत क्रमांक ३२६०, पृ. ३,६८ साधु शिरोमणी जणीउ तु, श्री विनयमंडन उवझाय रे, तास सीस गुण आगछु तु, बहु पंडित राय रे. ३६ आसे। सुदि पुनिम दिनइ तु, शुक्रवार ओकान्तई रे, कागल जयवंत पंडितइ तु, लिखीउ माझिम रातिइ रे. ३७ -सीमंधर स्वामि लेख. ला द. भा. सं. विद्यामंदिर ग्रंथभंडार, प्रत क्रमांक १००८ वडतपगच्छि अति महिमा मंदिर, श्री विनयमंडन उवजाय, तस सीस जयवंत पंडित. वीनवइ सुख संपद थिर थाइ. ३९ -बारभावना सज्झाय, पुण्यविजयजी हस्तप्रत ग्रंथभंडार, प्रतक्रमांक ६६८० (च) विनयमंडन गुरु सोसवर, जयवंतसूरि सुखदायो रे ४० राज० -शमामृतम्-नेमिनाथ स्तवन, संशोधक, मुनि धर्मविजयजी, भावनगर, १९२३ (इ) श्री विनयमंडन गुरोगिरि शिशुत्वे प्यवाप्तचारित्रा -काव्यप्रकाश टीका, जैन गूर्जर कविओ संपा. मोहनलाल द. देसाई, मुंबई, त्रीजो खंढ १, पृ. ६७२ १ वृद्धतपापक्ष जाणीइ, श्री रत्नाकर गछ कल्पलता जिम वाघती. दीसइ जिहां गुण गच्छ. २४०५ वगेरे... -जुओ, शृंगारमंजरी ग्रंथपाठ पृ १७६-१७७, २४१८-२४१८ For Personal & Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम जाणवा मळया छे. अक 'विवेकधरगणि' अने बीजा ते 'जयवंतसूरि'. आ परंपराने अमणे संस्कृत भाषामां रचेली 'काव्यप्रकाशनी टीका ने अंते मळती प्रशस्तिमांथी समर्थन मळे छे. मुनिश्री जिनविजयजीना ‘शत्रुजय तीर्थाद्धार प्रबंध'नी२ प्रस्तावनामांथी आपेल वंशवृक्षमा कवि जयवंत पंडितना स्पष्ट उल्लेख मळे छे. ते आ मुजब छे : विजयरत्नसूरि धर्मरत्नसूरि विद्यामंडनसूरि ਕਸ਼ ਵਿਦੇਸ਼ | ਚੀਜਨਕ ਸਬਦ जयमंडन विवेकमंडन सौभाग्यरत्नसूरि ਬੀਐਮਬਕ सौभाग्यमंडन रत्नसागर विवेकघीर जयवंत पंडित क्षमाधीर आ वंशवृक्षमां शरतचूकथी विनयमंडन आध्यायनु नाम रही गयु छे, अम जगावी श्री मोहनलाल द. देसाई जयवंतसूरिनी गच्छ परंपरा आपणने आ प्रमाणे आपे छे.3 विजयरत्नसूरि धर्मरत्नसूरि विद्यामंडनसूरि विनय मंडन उपाध्याय १. जयमंडन २. विवेकमंडन विवेकधीरगणि जयवंत पंडित ३. रत्नसागर क्षमाधीर ४. सौभाग्यरत्नसूरि ५. सौभाग्यमंडन आ बंने वंशवृक्ष परथी कवि जयवतसूरिनी गच्छ परंपरा वधु स्पष्ट थाय छे. १ जुओ, जैन गूर्जर कविओ, भाग श्रीजो, खड 1, पृ. ६७२. २ शत्रुजय तीर्थोद्धार प्रबंध, संपादक, मुनि जिनविजयजी, १९१७, प्रस्तावना पृ. ६९. ३ श्री जयवंतसूरि ले. मोहनलाल, द. देसाई, आत्मप्रकाश, १९२४ [वीरात् २४५०, अंक १०] पृ. १२. For Personal & Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) जयवंतसूरिना अंगत जीवन अंगे कोई विशेष माहिती सांपडती नथी. एमनुं अपर नाम 'गुणसौभाग्यसूरि' अमना गुरु ते विनयमंडन आ विनय मंडने 'शत्रुंजयतीर्थ' ना 'उद्वार' मां सारो रस लोघो छे. आ विनय मंडनना बे शिष्यो ते 'विवेकमंडन' अने 'जयवंत' भेटले आ प्रसंगे ते बन्ने हाजर हशे अम अनुमान करी शकाय आ सिवाय ओमनी कृतिओमांथी सांपडता उल्लेखो परथी 'पंडित जयवंत ने पाछळथी 'सूरि'नी पदवी मळी हती, ओम कही शकाय . समय जयवंत सूरिन । जन्म के मरण अंगे कोई चोक्कस माहिती मळती नथी. पण ओमनी उपलब्ध कृतिओमांथी प्राप्त थती रचनासाल परथी अमना जीवन कवन काळ विशे अनुमान करी शकाय ओम छे, ओमणे रचेली कृति 'सीमंधर स्तवन'नी प्रशस्तिमां' प्राप्त थती विगतो परथी तेनी रचना साल संवत १५९९ निर्णित करी शकाय ओम छे. आ स्वीकारता ते कविनी रचना साल आपेली पहेल प्रथम कृति ठरे छे. जेथी संवत १५९९ ते अमना कवननी पूर्व मर्यादा गणावी शकाय. अमणे रचेली कृतिमांथी मोडामां माडी कृति ते 'ऋषिदत्ता रास' छे. जेनी रचनासाल संवव १६४३ छे. तेने आपणे ओमनी उत्तर मर्यादा तरीके मूकी शकीओ. [हाल प्राप्त कृतिओना संदर्भमां आ अनुमानो छे, ते नांध जोईओ ]. आम एमनो कवनकाळ संवत १५९९ थी संवत १६४३ ना [ई.स. १५४३ थी १५८७ नो] गणावी शकाय. आ परथी एमना जीवनकाल विषे पण अनुमान करी शकाय छे. श्री. मोहनलाल द. देसाई २ पण संवत १६४३ ने कविना कवननी उत्तर मर्यादा तरीके स्वीकारे छे. अने जगावे छे के "आपणा कविए [ जयवंतसूरिए ] पाछळथी 'सूरि'नी पदवी प्राप्त करेली जणाय छे. संवत १५८७मां [ई.स. १५३१मां] 'शंत्रुंजयोद्धार' वखते २० वर्षनी उमर ओछामां ओछी गणीए अने संवत १६४३ (ई.स १५८७]नी एमनी कृति मळी आवे छे ते परथी ते ओछामां ओकुं ७६ वर्ष जीव्या जणाय छे२, उपरनी हकीकत स्वीकारी शकाय तेम छे. एमनी उपलब्ध कृतिओमांथी तेमने क्यारे सूरिपद प्राप्त थयुं हशे, ते अंगे अनुमान करी शकाय तेम छे. एमनी उपलब्ध कृतिमांथी 'नेमिनाथ-- राजीमती बारमास वेलप्रबंध' के जेनी रचना संवत १६१४ निर्णीत करवामां आवी छे. तेमां सर्वप्रथम तेमनेा १. 'सीमंधर स्तवन'नी प्रशस्ति आ प्रमाणे मळे छे : आसो सुदि पूनिम दीनइ तु, शुक्रवार एकांति रे, कागल जवंत पंडिततइ तु, लिखीउ माझिम रांतइ रे. ३९ -ला. द. हस्तप्रत ग्रंथभंडार, प्रत क्रमांक १००८. आ परथी ज्योतिषशास्त्र प्रमाणे गणतरी करता 'आसा' मासमां 'सुदि पूनम'ने दिवसे 'शुक्रवार होय सेवा योग विक्रम संवत १५९९मां आवे छे. २. जैन गूर्जर कविओ संपा. मो. ह. देसाई, मुंबई, १९२६, प्रथम भाग, पादनांध, पृ. १९६० ३. शृंगारमंजरी'नी प्रशस्ति आ प्रमाणे मळे छे. संवत सोल चौदातरइ, आसेा सुदि गुरु बीज, कवि कीधी शृंगारमंजरी, जयवंत पंडित हेज २४२४. For Personal & Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'सूर' तरीके उल्लेख मळे छे. वळी आ ज सालमां संवत १६१४मां रचायेली 'शृंगारमंजरी नामनी एमनी कृतिमा एमनो उल्लेख पंडित तरीके छे. एटले आ परथी अनुमान करी शकाय के 'शृंगारमंजरी' जेवी उत्कृष्ट रचना पछी तरत ज एमने संवत १६१४ ना अंतमा 'सरि' पद मळयु हशे. ___ मोहनलाल द. देसाईनी उपरोल्लेखित तक सरणी स्वीकारीए तो एमनो जन्म स्थुलमामे संवत १५६५-७० ई. स. १५०९-१५१४) ना अरसामां थयो हशे; एम अनुमान करी शकाय. वळी एमनी संवत् १६४३ [ई. स. १५८७) नी 'ऋषिदत्तारास' नामनी कृति मळे छे एटले तेओ संवत् १६४३ (ई. स. १५८७) सुधी तो अवश्य विद्यमान हशे ज. आ बधा परथी एमनो जीवनकाळ संवत १५६७ थी १६४३ (ई. स. १५५१ थी १५८७) सुधी लगभग ७६ वर्ष ना आंकी शकाय. कवन उपर नेांध्यु तेम संवत् 1५९९ थी १६४३ ( ई. स. १५४६ थी १५८७) सुधीना लगभग ४४ वर्षना दीर्घकाळ पर्यन्त लेखन-कार्य करनार आ कविए अनेक ग्रथो लख्या हशे. पण हाल तो आपणने एमनी मात्र बारेक कृतिओ उपलब्ध थाय छे. संभवित छे के केटलीक कृतिओ अमुक ग्रंथभंडारमा ज हजी अज्ञात रीते पडी रही होय. कविनी अमुक ग्रंथोनी संख्याबंध हस्तप्रतो जुदा जुदा स्थळ अने काळनी मळी आवी छे. ऐ बतावे छे के ए समये कवि खूब लोकप्रिय हशे. एमनी काव्य कळानी दृष्टिए सर्वोत्तम गणी शकाय एवी 'शृगारमंजरी" अथवा " शीलवती चरित्ररास' नामनी कृतिनी पांच-छ हस्तप्रतो संवत १६३९ थी (ई. स. १५८३ थी ] आरभीने संवत् १७४० [ई. स. १६८४] सुधीना लांबा काळ पर पथरायेली मळी आवे छे. जे कविनी पछीना काळनी लोकप्रियतानुं द्योतक छे “ रूषिदत्तारास'' नामनी बीजी एक कृतिनी लगभग सत्तरथी वधु जुदा जुदा स्थळ अने काळनी हस्तप्रतो मळी आवी छे आ पण कविनी लोकप्रियता दर्शावनारु लक्षण छे.. कृतिओ १. शृंगारमंजरी-शीलवतीचरित्ररास 'शंगारमंजरी' अथवा 'शीलवतीचरित्ररास' ए कवि जयवंतसूरिनी सर्वोत्तम कृति छे. मध्यकालीन गुजराती भाषा, साहित्य, समाज अने संस्कृति अंगे मूल्यवान सामग्री एमांथी प्राप्त थाय छे, ते दृष्टिए पण ते नेधिपात्र छे. [आ कृतिनी अधिकृत वाचना अने अध्ययन अत्रे रजु कर्या हवाथी एनी समीक्षा अत्रे प्रस्तुत नथी.) १ डॉ. भीगीलाल ज. सांडेसरा, वीरसिंहकृत 'उषाहरण'ना पोताना संपादनमां-'हरिवंश अने भागवत परथी रचायेला गुजराती काव्यो"मां जयवंत पंडित कृत 'नेमी राजुल बारमास वेल प्रबंध'नी रचना साल संवत १६१४ होवार्नु जणावे छे. -जुओं वीरसिंहकृत उषाहरण, संपा. श्री. भे। जे. सांडेसरा, मुंबई, १९३८, पृ. २७८. For Personal & Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) २. ऋषिदत्तारास आ रास कृतिना ५४८ कडीना विस्तारमा कविले 'जैन साहित्य'मां प्रचलित 'सती ऋषिदत्ता'नी कथाने छटादार शैलीमां रजू करी छे. कवि काव्यमा सामान्यतः पंडित जयकीर्तिरचित शीलोपदेशमाला पर सोमतिलकसूरिए आपेल वृत्ति अन्तर्गत प्राप्त थती ऋषिदत्ता कथाने अनुसरे छे. पण कवि पोतानी प्रतिभा अने सामर्थ्य अनुसार एना वस्तुसंकलना, पात्रालेखन, भावनिरूपण, वर्णनालेखन, अलंकार योजना जेवां पासाओमां कुशळता दर्शावी एने अक पद्यात्मक रासनुं स्वरूप आप्यु छे. [आ अंगे श्री निपुणा अ. दलालनेो महानिबंध जयवंतसूरि रचित ऋषिदत्तारास' प्रगट थयेलो होई अत्रे एनी समीक्षा प्रस्तुत करी नथी.)१ २. नेमिनाथ राजीमती बारमास वेलप्रब घर __ आ कृतिनी रचना सं. १६१ ४२ [ई. स. १५५८] थई होवार्नु हो. भोगीलाल सांडेसरा अनुमान करे छे.३ ‘बारमासा 'नी साहित्यिक परंपराने अनुसरी कवि बारे मासना ऋतुविहारने वर्णवे छे काव्यनं शीर्षक दावे छे तेम आ 'बारमासा' काव्य छे १२९ कडीनी आ कतिमां कविओ नेमिनाथ-राजीमतीना निमित्ते बारे मासनु परंपरा अनुसार वर्णन कयु छे.. काव्यना प्रारभमां कवि विहंगमवाहना '-सरस्वती माता पासे 'जिन-गुणगान' अर्थे 'वरदान' याचतां कहे छे विमल विहंगमवाहना, माता द्यउ वरदान, द्वादश मास सोहामणा, गाइसु जिन-गुणगान. वेधक-जन-मन रीझवइ, मानिनि मोहण-वेलि, गुण-सोभाग-सोहामणी, वाणी द्यउ रंग-रेलि. २४ वर्णननो प्रारंभ कवि श्रावण मासना वर्णनथी करे छे. अलंकारनी योजना रूढिगत छे, पण कवि अमां अक प्रकारनी चमत्कृति आणी छे. महेकी आ रति आरति, आवइ मोरडी मोरडी रे आ रति सेज आरति, झूरइ गोरडी गोरडी रे ८ खिन खिन तुहूंनी आर(ति), बपीहाआ देतु हइ रे हइ रे, पावसि विरह प्रांण कि, दैआ लेतु हरइ रे हरइ रे ९५ १ जयवंतसूरि रचित ऋषिदत्तारास, स. निपुणा अ. दलाल, ला. द. भारतीय संस्कृति विद्या मंदिर, अमदावाद, १९७५. २ पुण्यविजयजी हस्तप्रत भंडार, प्रत क्रमांक २६५६, ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर,अमदावाद. ३ वीरसिंहकृत उषाहरण संपा. डा. भोगीलाल ज. सांडेसरा, मुंबई, ९९३८, परिशिष्ट पृ. २७९. ४ नेमि. राजी. बारमास वेल प्रबंध, पृ. १, १-२. ५ नेमि. राजी बारमास वेल प्रबंध, पृ. १. ८-९. For Personal & Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) मागशरमां अनुभवाती असह्य विरहनी व्याकुळतानुं कविए सुन्दर आलेखन कयुं छे. नवि गमई सूतां वलीय बइठा, विरह व्यापर पापीउ, खिणि माहि बाहरि सास सोसिई, विलपि तन संतापीड. ३८ पीउ पंथ जोतां प्रसकि रोतां, दीस दोहिलइ नीगमुं, नवि जावई ( वइ )रणि रयणि क्रिमहइ, कंत विण सूनि भमुं. ३९१ फागण मासमां प्रकृतिनी लीला सर्वत्र विस्तरी छे, तेनुं सुरेख शब्द-चित्र कविए अत्यंत कुशळताथी चितयुं छे. फागुणि केसु कुंपल्यां केसु-रंग सुरंग विना दावानळ वीं छड्याइ रे, विरहि कां देवि घड्याइ रे. टक कूं पल्या केसू, लाल वेसु, कपुर - केसर-छांटणां गुलालि राति छीटि माती, ऊपरि आछां उढणां ५६ वैशाख मासमां विरहृथी व्याकुल बनेली विरहिणीनां हृदयनी उष्मा कवि आकर्षक रीसे आलेखी शक्या छे. तुझ साथि वार्लिभ प्रीति कीधी, वैशाख जाणी चंग वैशाख मासि विरहलाइ, राइ म देइ मुझ अंगि. तुझ बिना अवर कोइ सुहुणइ, चिंतन देवइ साखि, मीठी ति गोरी नवल नेहई, मीठी ज अंबा साख रे. ६८२ शृंगार रसथी सभर एवं कामिनीनु बर्णन पण एनी आंतरप्रास - योजना लीघे नांधपात्र छे. बळी मनोहर अलंकार योजवानी कविनी शक्तिने लीधे आखु वर्णन रसिक बन्युं छे. कुंच- कुंभ कंधू -कसि कस्या हो, डेरा काम - निवेसि, जिहां पीउ समाइ पातलु हो, नयन खल्यां तिणि दिसि. टक नयन खल्यां तेणि देसि अनोपम, कई गोरे भूज - पासे. जिणि भूजि कामिनी कंतनइ भीडइ, पंकजनाला - संकाशे. काव्यना अंत भागमां कबि कहे छे. मुगति तणां गुण सांभली हो, जे कह्या श्री नेमिनाथ, ते सखि मिलवा कारणइ हो, राजलि घर रे उमाह. त्रुटक राजलि धरइ उमाहु अधिकु, मुगति-सीरीनई मिलवा ; श्री जिन पासई संयम याचइ, तेज मांहिइ तेज भलवा. १. नेमि. राजी. बा. वे. प्र. पृ. २. ३८, ३९ २. एजन पृ. ३, ६७-६८ ३. ने. रा. बा. वे. पृ. ४. १०६, १०७. ४. ने. रा. बा. वे. पृ. ४. १२१, १२२. ६७ For Personal & Private Use Only १०६ १०७३ १२१ १२२४ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आम काव्यने अंते जैन परंपरा अनुसार संयमश्रीने पामवाथी अने तेजमां तेज भळी जवानी वात छे. काव्यनी प्रशस्तिमा 'बारमास'मां 'जिन गुण' अंगे 'प्रमाद' न सेववानु ते जणावे छे. बारमास जिन-गुण तणा हो, गातां न कर प्रमाद, लाभ अनंतु आगमि हो सुणतां हुइ आल्हाद. १२७ चुटक सुणतां हुइ आल्हाद सदाइ, जिन-गुण अतिहिं रसाल, मन-नइ रंगि तेह ज सुणतां, नितु नितु मंगल-माल. १२९ श्री विनयमांडन गुरु राज अनोपम, तपगछ–गयणइ चंद, तास सीस जयवंतसूरि, वर वाणी सुणता हुइ आणंद. १२९ साचे ज काव्यना पठनथी आपणने पण आनंद थाम छे. ३. स्थूलिभद्र-कोशा प्रेमविलास फागर आ संक्षिप्त छतां रसपूर्ण कृतिमां वसंतऋतुनुं वैभवी वर्णन प्राप्त थाय छे. काव्य ‘मधुमास'मां गवातो फाग छ, आरंभनी सर्व कडीमा सामान्य वसंत वर्णन मळे छे, जेथी ते सांसारिक प्रेमकाव्य होय अवु लागे छे मात्र छेल्ली छ-आठ पंक्तिमा ज कविए स्थूलिभद्र अने' कोशानी कथाना स्पर्श करी, तेमां जैन फागु काव्यनी परंपरा जाळववानो प्रयास को छे. काव्यना प्रारभमां कवि सरस्वतीनुं स्मरण करे छे. सरसति सामिनि मनि धरी. समरी प्रेमविलास, थूलिभद्र कोश्या गायसिउ, जिम मनि पुहचा आस.३ ऋतु वसंतनुं आगमन थाय छे. सर्वत्र तेनी असर पडे छे; तेनु ताद्दश वर्णन कवि करे छे. वनसपती सवि मोहरी रे, पसरी मयणनी आण, विरहीनई कहंउ कहंउ करइ, कोबलि मूकइ बाण. तरुअरुवेलि आलिंगन देखिय सील सलाय, भरयोवन प्रिय वेगलु, खिण न विसारिओ जाइ.४ विरहिणी पियने विरह उपस्थित करवा अंगे उपालंभ आपतां जणावे छे. १. ने. रा. बा. वे. प्र. पृ. ५ १२९. २. प्राचीन फागु संग्रह, संपा. डो. भोगीलाल ज. सांडेसस अने श्री. सोमाभाई पारेख, वडोदरा, १९५५, पृ. १२६-१३३. ३. प्राचीन फागु संग्रह, पृ. १२५,१. ५. अजन. पृ. १२६, ४-५. For Personal & Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५.) रे साजन जे तिर करिउं, ते मिदं कहिलं रे न जाइ, इडा वेध विलाइनइ, इम कां अगलु थाय. वीज पड्यो ते ऊपर, जे करी छांडइ नेह, विरहिइ बाल्यां माणस स्युं करइ वस्सी मेह. ૧૧ अनुं भेज 'मंदिर - घर' अने अनी भेज 'शेरी' होवां छतां 'पियु'नी अनुपस्थितिथी अमां g परिवर्तन आवी जाय छे. ते विषम परिस्थितिनी व्यथानुं कवि उष्मायुक्त वर्णन करे छे. तेह ज मंदिर ते ज सेरी, नवि ठामइ सखी जोऊ फेरी, ओल्हाव्या विण जाइ वणजारा, गया चोरी चित्त लूटारा २१ चालि सखि मुझ न गमइ चंदन, चंद न करइ रे संतोष, केलि म वीझस ही सही, सही न समइ अम दोस. २ २२ विरहनी व्याकुळता भोगवतो नायिका, परदेश गयेला पियुनो संग करवा अंगे केवा केवा मनोरथो सेवे छे, ओ कविले व्यंजनाथी दर्शाव्युं छे. हु सिह न सरजी पंखिणी, जिम भमति प्रीउ पासि. हु सिइ न सरजी चंदन, करती 'प्रिय-तमु वास. हुं सिं न सरजी फूलडां, लेती आलिंगन जाण. मुहि सुरंग ज शोभतां, हु सिहं न सरभी पान. 3 अने आखरे विरहिणीनी केवी करुण दशा थाय छे. १ भूख तरस सुख नींदडी, देह तणी सान वान, जीव साखिइ मई तुझ कही, थोडइ घणु स्युं जाणि. ओ मुझ परि मई तुझ कही, हवइ मुझ करि न संभाल, मलि कइ ऊतर आपिनइ', आलालुंबओ टालि. ४ थूलिभद्र कोश्या केरडो, गायु प्रेमविलास, फाग गाइ सवि गोरडी, जब आवइ मधुमास.' f प्राचीन फागु संग्रह, पू. १२७, १०-११ २ भेजन पृ. १२०, ४१–४२ ३ ओजन पृ. १२२, ३१-३२ १० ४१ आम अनेक प्रकारे उपालंभ देती काशा, गुरु आदेशथी ' मुनि स्थलिभद्र ' पोताना गृहे आवतां कांत देखी कोश्या कूबडी हइडा कमल विकास, जिम वनराई माधवओ, पामी अधिक उल्हास. ५ ४३ कोशा उल्लास अनुभवे छे. अने कवि काव्यनो उपशम करे छे. कवि काव्यनी प्रशस्तिमां जणावे छे तेम ४ प्राचीन फागु संग्रह, पृ. १२४, ४०–४१ ५ प्राचीन फागु संग्रह, पृ. १२४, ४२ ६ प्राचीन फागु संग्रह, पृ. १२५, ४४ ३१ For Personal & Private Use Only १२ ४० ४४ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आ 'फाग' मधुमासमां गवातो हशे से वस्तु अही स्पष्ट थाय छे. अत्रो 'फागु' काव्य से गेय प्रकारनी रचना हती तेनेा स्पष्ट उल्लेख मळे छे. ते दृष्टिले आ 'फागु' नेांधनीय छे. ४. सीमंधर जिनवर [विनती] चंद्राउला' २७ कडीनी आ रसिक कृतिमां कविए 'सीमंघर भगवान'ने आरझु अने आरतभरी प्रार्थना के विनती करी छे. एना अन्तर्गत भावोर्मिना प्रबळ आलेखनने लीधे आस्वाद्य बनी छे. काव्यना प्रारंभमां ज कवि पोतानी विनति सांभळवानी आग्रहभरी याचना करतां विजयवंत पुक्कालावती रे, विजयापुव्व विदेहो, पुर पुंडरीकु पंडरगिणी, सुणतां हुइ सनेहो. सुणता हुई सनेह रे हैईइ, स्वामि सीमंघर वीनती कहीइ, गुणसौभागइ त्रिभुवन दीपइ, केवलन्यांनइ कुमती जीपई...२ ।। कवि 'सीमधर भगबान'ना गुणर्नु स्मरण करतां कहे छे-'हु तारा गुणनी खाण 'मांथी थोडा ज गुणतुं स्मरण करु छ. तो आ 'थोडा' 'ते घणा करीने जाणजो'-आ भावने कवि दृष्टांत द्वारा असरकारक रीते अभिव्यक्ति आपे छे. हाथी समरइ विंझनइ रे, चातक समरइ मेहो, चक्रवा समर सूरनइ रे, पावसि पंथी गेहे।, पावस पंथी गेहे संभारइ, भमर मालतीनई वीसारइ, तिम समरहु तुम गुण खांणो थोडाइ कहिणइ घणु करी जाण्यो.३ १९ कवि प्रभुना विरहथी व्याकुळ बनी ऊठे छे अने कहे छे के जो एने पांख होय तो ते ऊडी अनी पासे आवी जाय. आम अमनं मन अनेक मनोरथ करे छे पण पातानु मन अनेक 'रोगा'थी भरेलु छे अटले शुथाय. विरहाकुल ऊडी मलिउ रे, जउ हुइ पंख प्रमाणो...४ २० कवि पोताना प्रीतिनी महत्ता वर्णवता कहे छेसगपण हुइ तु ढांकीइ रे, प्रीति न ढांकी जायो. विहाणि छाबि न छाहीइ रे, लहिर न दोरि बांधायो, लहरि न दारि बांधजो जाइ, होइडा हेजइ नेह जणाइ, चंद्रा तु संभार्या साखी (अ)हविहड रंग जसिउ छइ लाखा.५ २२ जी. ला. द. हस्तप्रत प्रथभंडार, हस्त प्रत क्रमांक ३५०१, पृ. ४-७, ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद. २. सीमंघर जिनवर चंद्राउला, पृ. ४, १ ३. एजन, पृ. ६, १९. ४ एजन, पृ. ६, २०. ५ एजन, पृ. ६, २२, For Personal & Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभुना अपार गुणनु कथन करवाथी पोतानी अशक्तिने कवि ओक पछी अक सरस कल्पना बके दर्शावी छे, तेमां कविनी ठंची कल्पनाशक्ति देखाय छे. आभमंडल कागल करु रे. सायर जल भसि थाय, जउ तुझ गुण सुरगुरु लखइ रे, तुहइ पार न जाइ, तुहई पारि ज जाइ धाती, हइडा भीतरी छइ बाहु वाती, लेख लखतां पार न आवइ, गुण संभारइ विरह संतावह...१ २४जी. आम पोतानी अशक्तिना स्वीकार करी, काव्यना अंतमां कवि जणावे छे. अतिशय सयलि अलंकरियो रे, सीमंधर जिन राजो, केवलन्यांनइ सवि लहइ रे, सुर नर सेवित पायो, सुर नर सेवित पाय जिणेसर, सवि सुखदायक अति अलबेसर, जयवंतसूरि वर वयण रसाला, भगतिइ गाइ जिनगुणमाला.२ २७ काव्यांते आम 'स्व' नामनेा उल्लेख करी कवि भक्तिपूर्ण रीते गवायेली आ 'माळा' पूर्ण करे छे. V५. सीमंधरस्वामि लेख-सीमंधर जिन स्तवन ३९ कडीना आ नानकडा काव्यमां कविना सीमंधर स्वामि प्रत्येनेा भक्तिभाव अनेक अभिराम अलंकारो द्वारा अभिव्यक्ति पाम्यो छे. काव्यना प्रारंभमां कवि प्रभुना 'गुणकमल 'थी वेधायेल पोताना 'मन-भमर'नी वात सुंदर रीते व्यक्त करे छे. स्वस्ति श्रीपुंडरगणी, भारु सगण सीमंधर स्वामि, मुहि बोलतां अमृत झरे, मनोहर मोहन नाम, गुण-कमल तारइ वेधीउ, मन-भमर मुझ रसि पुरि, तुझ भेटवा अलजउ घणउ, किम करु थानिक दूरि रे.४...१ वाल्हा० प्रभु विना अकळामण अनुभवतां कविनी थयेली करुणदशानु वर्णन जोवा जेवु छे. मुझ दिवस वरसा सु समउ, तुझ विना रयणी छ मास, तारेइ वेधडइ सहु वीसरिं, सहुणा तणी सी आस, गुण तोरडई मन वेघीऊ, नवि वलइ वालउ अह, भूख तरस ऊडी गयां, तोरइ वेधडइ दाझइ मोरी देह रे.५ ७ कवि आम विरह वेदना अनुभवे छे. आ विरह दुःख-विखनी उग्रताना उपशम अर्थे कविनु मम केवी केवी कल्पना करे छे. गुंथी तुझ गुण-फुलडे, नाम मंत्र तुझ अह रे, विरह तणां विख टालिवा, हु जपु निसि-दीस रे, सुगुण सुलूणा सीमंधरा तोरी जोउ बलिहारि रे, सांहम जोउ नेह नयणले, करउ वेधडां सार रे....१७ १ सीमंघर जिनवर चंद्रउला, पृ. ६, २४. . अजन, पृ. ७, २७. ३ ला. द. हस्तप्रत ग्रंथभंडार, हस्तप्रत क्रमांक १००८. ४ सीमंधर स्वामि लेख, पृ. १,१. ५ अजन, पृ. १, ७. ६ अजन, पृ. १, १७. Jain Education Interational For Personal & Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८) कवि आ असह्य दशामां प्रभुने संदेशो मोकलबा प्रेराय छे. कवि प्रभुने कद्दे छे-'आ दशामां मारे तने संदेशो मोकलवा छे. ओ माटे मे चन्द्रने वारंवार विनंती करी पण ते आ कार्य करता नथी.' कवि आ अंगे प्रभु पासे फरियाद करतां जणावे छे चंद्रलउ वली वली वीनविउ, मोर नवि करेइ काज रे, विरह विगाय वेदना, पापी नवि लहइ आज रे.१ २१ कवि सीमंधर स्वामिना गुणर्नु वारंवार स्मरण करे छे, आ भावने धनीभूत करवा ते प्रभावक दृष्टान्तोनी योजना करे छे, क्षणि क्षणि समरु हु गुण तोरा, आसाढी मेह जिम स्मरइ मोरा, पुनिम दिन दिन जिम चंद चकोरा, फुल तणा गुण भमर भलेरा.२ २५ वळी कहे छे. किहां सूरजि किहां कमलणी रे, किहां मेहा किहां मोरं, दूर गया किम वीसरइ रे, उत्तम नेह सु जो हुइ.३ २९ कवि सीसंघर स्वामिना अपार गुण गावानी पोतानी अशक्तिना भावने प्रबळताथी मृत करे छे सायर मसि मेरु लेखणी तु, कागल अंबर-सार रे, तुहइ मननी वातडी तु, लखतां पार न आवि रे.४ ३४ वळो गुणनी अपारता अने तेनु गान करवानी पोतानी असमर्थता दर्शावता जणावे छे. अक्षर बावन गुण घणा तु, केता लखीई लेख रे, थोडउ घणइ करी मांनथ्यो, सुख होसिइ तुह्म देखइ.५ ३५ काव्यनी प्रशस्तिमां कवि कथे छे. आसो सुदि पूनिम दीनइ तु, शुक्रवार एकांति रे, कागल जइवंत पंडितनइ तु, लिखीउ माझिम रांतिइ रे. ३९ आम समग्र काव्यमां कविनो भक्तिभाव वाणीना माधुर्य अने ऊमिनी उत्कटताने परिणामे विशेष झळकी उटे छे. ६. बारभावना सज्झाय आ कृतिमां कवि मुनि जयवंतसूरि जैन परंपराने अनुसरी जैन धर्मनी जुदी जुदी 'बारभावना'ने सदृष्टान्त समजावानो प्रयास करे छे, जे मां कविनी दृष्टान्तो वडे तत्वने स्फुट कर. वानी शत्तिनां दर्शन थाय छे. काव्यना प्रारंभमां 'दुर्लभ' एवा मनुष्य जीवनमां 'बार भावना'- स्मरण करे छे. आ 'बारभावना' जिनशासनमा 'मुगतिना निधान' रूप लेखाय छे. एने 'सावधान' थई सांभळवानी कवि विनंति करे छे. १ सीमंघरस्वामि लेख, पृ. २, २१ २ अजन, पृ. २, २५ ३ ओजन, पृ. २, २९ ४ अजन, पृ. २, ३४ ५ जन पृ. २, ३५ ओजन पृ. २, ३९ ७ पुण्यविजयजी ग्रंथभंडार हस्तप्रत क्रमांक ६६८०, ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद, For Personal & Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९) सरसति सरसति वाणी, आपु अमीअ समीणी, भावन बार वखाणी, बूझवु भवीयण प्राणी. X X X भावन मुगति निधान, श्री जिनशासनि प्रधान, थई सावधान, छंडी कुमत अज्ञान. १ ४ आ संसारमां सर्व पदार्थों अनित्य छे. अस्थिर छे― चंचळ छे. पण संसारना जीवो ते सर्वने नित्य मानी तेना मोहमां पडे छे. आ 'अनित्य'नी पहेली भावना कवि लंकापति रावणना दृष्टांतथी समजावे छे. खाटि बांध्या नवग्रहै, दीपतु त्रिभुवन मांहि कटक, विहि दल को द्रव अग्नि घोइ, वस्त्र वायु बाहारइ ग्रहे. ५ X X X x ते नित्य न रहिउ भूप रावण, मुंज भोज गया सही, ते अथिर काया मूढ माया, अनित्य भावन ए कही. ७ चोथी 'एकत्व'नी भावना समजावतां कवि जणावे छे के जीव अहीं एकलो ज आव्या छे, भने स्त्रजन-संबंधीओ इत्यादि सर्वने मूकीने जवानुं छे. अथी अणे के ई पर ममता न राखता 'समता' राखणी जोईओ. अes संसार संयोगडा, सुहुणा सरिसा जाणि रे, अति सयोगि वियोगिनई, मनि माया रे अली अम आणि कि १२ घडी न लगाई वहिंडता, जिम कातीना मेहोरे, तनु धन सुजन अनेरडां, ते साथइ रे मंडिम चित्त स्नेह कि १३ 'अशुचिभावना' समजावतां कवि कहे छे के आ 'मानव काया' अशुचिथी भरेली छे. ते मळ अने मूत्रादिकथी समर छे वळी आ क्रिया निरंतर थया ज करे छे. ते माटे नव द्वार छे. आम तो आ शरीर मांस, रुधिर, मेद, रस, हाडकां, मज्जा तथा वीर्यादि जेवी अनेक अशुचिथी भरेल छे. पण बहारथी चामडीरूपी 'कोथळी' थी ते मढेल छे. तेना ते रूपथी जीव सेना पर मोह पामेल छे. मल मुत्र भरी अति असारी, रुधिर वीर्य थकी घडी, आहार जल मल मुत्र थाइ, श्रचि न थाइ देहडी . वाघीमा मुख अश्रचि अन्नइ, तुहि किम हिंड् निर्मली, ए अश्रची सात धाति बांधि, ऊपरि चरमहं काथली आभरणि सोहई सहु मोहर, अश्रचि भावन भवितां४...२९ अंते काव्यनुं समापन करतां ... प्राणी, भावन बार वखाणी, भावइ, ते सुख आणइ ताणी, वडतपगच्छी अति महिमा मंदिर, श्री विनय मंडन उवझाय, तस सीस जयवंत पंडित वीनवइ, सुख संपद थिर थाई. ५ ३९ आम समग्र काव्यमां कविए जैन शासनने अभिप्रेत 'बार भावना' नुं परंपराप्राप्त स्वरूप वर्णव्युं छे. काई कोई जग्याओ उचित दृष्टान्त के अलंकार योजना बड़े कविले वक्तव्यने स्फुट क्युं छे. पामइ सुख अनंता एक - मना जे भावन १ बारभावना सज्झाय, पृ. १, १, ४. ३ बारभावना सज्झाय २, १२, १३. २ अजन पृ. १, ५–७. ५ अजन पृ ४, ३९. ४ अजन पृ. ३, २९. For Personal & Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (20) ૧ ७. स्थूलभद्र चंद्रायणि ' 'स्थूलभद्र - काशा प्रेमविलास फाग' रचनार कवि जयवंतसूरिनी स्थूलिभद्रना जीवन प्रसंगने निरूपती आ बीजी काव्य कृति छे. वस्तु, रचनाकौशल अने बानीमां जे पक्वता देखाय छे ते परथी लागे छे के कवि प्रस्तुत कृतिनी रचना उपर निर्देशल 'फाग' पछी करी हशे. आ कृतिनो रचना संवत प्राप्त थतो नथी १४७ कडीनी आ कृति बे खंडमां वहें चायेली छे. अमना जीवनना महत्त्वना प्रसंगाने निरूपतु आ नानकडु काव्य अनी राजस्थानी - हिन्दीमी छांट दर्शावती भाषा, अभिराम अलंकार मंडित शैली अने रचना कौशलने लीधे अनोखी भात पाडे छे. काव्यना आरंभमां कवि 'शारदामइ' ने नमस्कार करी, स्थूलिभद्रना गुण गाइ जीवन सफल बनाववाना मनेारथ सेवे छे. कवियन माइ शारदा, ताके लागुं पाय, जीह सफल करु आपनी, थूलभद्र के गणाय. २ १ स्थूलभद्रना प्रथम दर्शने ज काशा तेना प्रेममां पडी जाय छे. ते प्रसंगने वर्णवता कवि छे छे के ओक दिवस स्थूलिभद्र शिकार खेलवा जाय छे. शिकारथी पाछां फरतां 'जंचीखाना' आगळ ते केाशानी नजरे पडे छे सेना हृदयमां प्रेम जागे छे अने अनी केवी दशा थाय छे तेनु कवि सफळ रीते आलेखन करे छे. मयनह नवम दशा कोशि पाइ, पिउ पिउ जपतइ वरि गमाइ, शीतल च्यंदन बुंद तनि लाइ, बींज्यत बींज्यत चेतन आई उ ४ कोशाना रूपशशी देहनु वर्णन कवि विस्तारथी करे छे. प्रवाही छंद रचनामां कवि लयमाधुर्यनो आस्वाद करावतां उपमा उत्प्रेक्षादि अलंकार द्वारा केाशाना अतीव रमणीय अने बारमनोहर सौन्दर्यने अहीं शब्दस्थ करे छे. मुखकमलथी आरंभी कवि नेत्र, अधर, कंठ, हस्त, कटी, नाभी, जंघा इत्यादि अनेक अंगानी शोभा वर्णवे ( कडी २५ - ५१ ) छे अने काशानुं सुरेख चित्र उपसी आवे छे. याकु रूप अनुरूप कीला, नवयोवन मनमथ - लीला, तुम भी साहिब छयल छबीला, सकलकला गुण-जण रंगीला. २५ कुसुम सकर्बुर कबरी दंडा, गंगा यमुना संगा अखंडा, रतन खचित सिरि चाक जु साह, अनुपम गोफणडइ मन मोहइ २६ नाग सुरंगा मंग अभंगा, कणय रयण आभरण सुचंगा, निषेध कनक वसुगिरि किर संगा, निरखति उलट रंग तरंगा. २७ X X X गौर कपोल शशिबिंब समान, पावइ नारिंग के उपमाना, उगा मुकुर तणी परिं दीपई, निरखति नयनां तरस न छीपईं ३१ X X X १ ला. द. हस्तप्रत ग्रंथभडार, ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद, हस्तप्रत क्रमांक ३३५८. २ स्थूलिभद्र चंद्रायणि १. १, १ ३ एजन, पृ. १, ४. For Personal & Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उन्नत पीन पयोधरा जोरा, उन्नत श्याम सुचूचक गोरा, त्रिण्य अंगुण थण अंतर सारा, करि कुंभ चलवा उपम बिच्चारा.. ४० पछी स्थूलिभद्र सखीने। संदेशा मळता, 'कोशा'ना भवनमां जाय छे. कोशा अनुं स्वागत करे छे. सुनउ हा साहिब मे घन गेहा, भी तुम्हारा हइ मुझ देहा, मनकी मुरादि होवइ से। कीजइ, अतना मांग्या मोहीकुं दीजइ.२ ६६ अने स्थूलिभद्र साथे कोशाना मिलनयोगनु कविले करेलु शृंगारयुक्त वर्णन...(कडी ७१-७९). भीडत च्याली कसण त्रटुकी, टुकुडे टुकुडे थणथी चूका, थणहर मदमत गजय कुंज सरिसा, अंकुश कर ज दोआ अति हरिसा. ७१ च्योरी च्यार करी कहां लीना, चिंत बिराणा हो छीनी लीना, इउ भूज-पासि बांधी कामराजइ, राख्या दाइ थग डुगरमा जइ3 ७२ पण परंपरायुक्त होवा छतां मधुर उपमानथी रुचिर बन्यु छे. आम अनेक प्रकारे लीला करता स्थूलिभद्रे बार वर्ष पूर्ण कर्या. अही प्रथम खंड पूरो थाय छे. बीजा खंडना प्रारंभमां 'काशा'नी विरहव्यथानु वर्णन करवामां आव्युछे. शकटाल मंत्री मृत्यु थतां राजा मंत्रीपद लेवा स्थूलिभद्रने आमंत्रण आप्यु. आ प्रसंगने कवि लाघवथी आलेखे छे. भारति भगती कर भली, द्यउ मुझ वचन की सिद्धि, कोशा विरह वखाण स्यु, बीजइ खंडि विशुद्धि, १ बालिद भरण भए तायिं राई, थूलिभद्र कोशा धरथी बुला ए, एलना बोले सुणी काश जाई, ज्यु ज्यल विछयुर्या माही परिहुइ ४ २ . उत्कट विरहव्यथा अनुभवती कोशानु वर्णन कवि आ प्रमाणे करे छे.. विरहानल ज्वरथी तनु ताती, सांइ प्रेमकथा हाड नाहती, ताथिइ विसम हुआ परिणाम, भींतरि तनकु ऊतावइ काम.५ २६ अने अंते काशानी केवी करुणाजनक स्थिति थाय छे. कोशा विलपतिई यु मूरछाइ, सखी कहइ बूब दिखउ सुताइ, ए जायु भेज्या सयनउं हाथी, तनकी व्याधि समइगी उसघी. २८ । वैशग्य पामीने स्थूलिभद्र संभतिविजय गुरु पासे दीक्षा ले छे. पछी गुरुना आदेश थतां ते प्रथम 'चार्तुमास' गाळवा कोशाना 'भवने' आवे छे. ए प्रसंगर्नु कवि स्वाभाविकताथी वर्णन करे छे. गुरु फरमान लहीउ सवेळां, आओ थूलभंद्र मुनिवर लीलां, कोशि वधाइ करइ रे नेहाला, सांइ संदेसा जिउथी वाहाला. ६० १ स्थूलिभद्र चंद्रायणि, पृ. १, २५, २६, २७, ३१, ४०. २ . एजन, पृ. २, ६६. ३ जन, २, ७१, ७२. ४ अजन, पृ. २.१,२ ५ अजम, पृ. २.२६ ६ भेजन, २.२८. For Personal & Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२) कयां सांइ अंग मिन्हई अंग बाहु, कितनी बिछर्या परिसिनाउ, तनकी खबरि सांइ देखी विसरी, तुटति च्याली कसण सब बपरी. ६१ थूलिभद्र मुनिवर रहे.च्यतु मासि, बूझवइ काशा कुरे उल्लासि, सूनि हो वचन रसाला, सब चंचल हइ दुनियां जंज्ला.' ६३ कोशाने उपदेश आपतां स्थूलिभद्र कहे छे, कोइ न किसका वहाला होवइ, सवारथ साहमा सब कोइ योवइ, भमरा कुसुम परि सब देखउ, जब बरस तब लगई फिर ताप खउ.२ ६५ आ उपदेशथी प्रतिबोध पामी कोशाए... मुनि के वचन सुनी होशियाइ, धरमह सेती राती हुइ, समकित शील लीइ मुनि पासइ, मुनि भी च्याले पहुतइ चतुमासइ.3 ६६ 'समकित शील' अंगीकार कयु. गुरु श्री विनयमंडन उवज्झाय, जिनु के नरवर सेवइ पाय, लघु सीस जयवंतसूरि गुण गाइ, थूलभद्र तेवतई सुख सवि थाइ.४ ६८ . आम समग्र काव्य एना शब्दलालित्य, वर्णविन्यास अने उचित अलंकार योजनाने लीधे नवी भात पाडे छे. राजस्थानी-हिन्दी भाषानी छांट ' धरावती आ कृति भाषाकीय दृष्टि पण उल्लेखनीय छे. ८. नेमिनाथ स्तवन: ४. कडीनी आ संक्षिप्त छतां रसिक कृति जयवंतसूरिनी एक प्रकाशित थयेली कृति छे.५ एना संपादक मुनिश्री धर्मविजयजी जणावे छे तेम "(आ) स्तवन एक खंडकाव्यनु भान करावे तेवु' प्राचीन गुर्जर काव्य छ, साथे साथे कर्तानी गूर्जर भाषामां दरेक रसो पोषवानी कुशउता. देखाडी आपे छे." कवि काव्यना आरंभमां 'सरसति' देवीने नमस्कार करी काव्यनु मंगलाचरण करे छे. पय प्रणमि सरसति तणी, नेमि गुण गाउं रसाल, संजोगी अनइ जोगिया, मन मोहन सुविशाल.७ १ 'सवि ऋतु भूप' अवी वसंतऋतुना प्रारंभ थतां एनी मादक असर 'युवति जन' अने 'प्रकृति' पर पडे छे. एनु वर्णन कवि उचित शब्द अने प्रासनी पसंदगी करी कुशळताथी आपे छे. पसरिउ मलय महाबल, महाबलि करतु व्याप युवतिजन रत जलहर, लहरि हरइ जन ताप.८. ४ १ स्थूलिभद्र चंद्रायणि, पृ. ३.६०, ६१, ६३. २ अजन, पृ ३. ६५. . ३ अजन, पृ. ३, ६६. ४ ओजन, पृ. ३, ६८.. ५ शमामृतम्-नेमिनाथ स्तवन, संशोधक, मुनि धर्मविजय, भावनगर, १९२३ पृ. ११-१४. ६ अजन, पृ. ११ ७ अजन, पृ. ११, १. ८ अजन, पृ. ११, ४ For Personal & Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) वसंतऋतुना प्रादुर्भाव विरही जनने माटे तो.. - विरहि-जन-मन-दारण, दारूण करवत घार. १ बनी रहे छे. आम सर्वत्र व्यापी गयेल वसंतनी मादक असरथी 'नेमिनाथ' पण अलिप्त रहेता नथी. ते पण वन मध्ये विविध प्रकारना खेल खेले छे. एनु मनोहर वर्णनचित्र कवि कलमे योग्य लाघवथी सज्यु छे. वृंदावनमां वन वन तरू तलइ, सरोवर जल सुविचार रे, राधा रुकमिणि भामा भामिनी, क्रीडई नेमिकुमार रे.२ ११ शब्दानुप्रास अने आन्तर्यमकथी आ चित्र सुंदर बन्यु छे. वसंत विहारनु कविनु आलेखन संस्कृत ऋतुकाव्यनी याद आपे अवु छे. केकर कमलिं छांटि जल भरी, केवर केसर रोल रे, के नेमि छेहडइ बलगइ आवती, केतो करइ टकाल रे. १३ नयन मींचांवइ का अक पूठिथी, काइ छुपावइ बाल रे, काइ करी माला नव नव कुसुमनी, कंठि ठवइ सुविमाल रे.३ १४ नेमिनाथना राजीमती साथे विवाह थया. परणवा माटे नेमिनाथ ससरा उग्रसेनना द्वारे जाय छे त्यारे ते त्यां राजमतीने जुओ छे. अनी देहयष्टिन सुंदर अलंकार वडे मनोहारी चित्र कवि कलमे सज्यु छे, जेथी राजमतीनी मधुर-मृदल मूर्ति प्रत्यक्ष थाय छे. वेणी काजल भूअंयम काली, आंखडली अतिहिं अणीयाली, झाली झबकइ झबकाली, ससिहर वयणी वर मटकाली. अधर जस्या रातडी रे प्रवाली, कुंद-कली दंताली. १७ कंठि कायण महेली टाली, उरि सोहई मोतीसरि जाली, करि चूडी खलकि रणकाली, बाहडली अवली लटकाली.४...१८ पशुना आर्तनाद सांभळी नेमिनाथ दु:खी थइ पोताना घेर पाछा फरे छे अने चरित्र ग्रहण करता, चोपन दिवस बाद केवलज्ञान प्राप्त करे छे. आ बाजु नेमिनाथ वगर अकली पडेली राजमती विलाप करे छे. प्रीत कर्या पछी छेह देनार प्रत्येनी अनी उक्तिओ अनी चोटने लीधे नेांधपात्र छे. सज्जननीया तई ते करिउं, जे वयरि न करंति, प्रीति ढंढेरा जगि दिआ, भीतरि जीव बलंति नेहा कीजइ तेतली, जेत्ता निरवहवाइ, ना ऊपर संतापिइ मेहली आदररियाइ५ २५ १ शमामृतम्-नेमिनाथ स्तवन, संशोधक, मुनि धर्मविजयजी, भावनगर, १९२३, पृ. ११,७. २ अजन, पृ. ११, ११. ३ नेमिजन स्तवन पृ. १, १३, १४ ४ एजन पृ. १७, १८ . ५ एजन पृ. १३, २५ For Personal & Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) विलाप करती राजमतीनी हृदयोर्मिने कविओ वेधकताथी निरूपी छे. आंखरे राजमती मिनार पर नेमिनाथ पासे जाय छे. त्यां नेमनाथना उपदेशथी प्रतिबोध पामी राजमती पण संसारनो त्याग करी 'चारित्र' ग्रहण करी, अंते मुगति पामी. अ प्रसंगने अल्प शब्द द्वारा संक्षिप्तताथी कवि भालेखे छे. जे कवितुं रचनाकौशल दाखवे छे. देह नथी संसारमा, नेह न सही रे विछाह, छेह देइ जोइ नेह करी, ते साथि सुं माहो रे. ३५ राग वइरागी वयणलां, राजलि सुणिय रसाल चारित्र लेइ जिन कहुइ पाणी पामी मुगति विशाला रे.३९ काव्यना अंतमां नेमिनाथ पण 'बुझवी भवियण लाय' 'शिवपुरी: जाय छे ९. प्रकीर्ण रचनाओ आ उपरांत जयवंतसूरि केटलांक गीतानी रचना करी छे. ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरना ग्रंथभंडारमाथी अक 'गीत संग्रह' मळी आव्यो छे. जे 'नेमिनाथ आदि गीतसंग्रह'२'मे नामे नेांधायेल छे अमां अन्य गीत साथे जयवंतसूरि कृत त्रण गीत संग्रायेला मळी आव्या छे. (१) करणेंद्रिय परवशे हरिणगीत (२) नेत्र परवशे पतंग गीत (३) स्थूलिभद्र गीत. प्रथम गीतमां कवि विरहनु वर्णन 'हरिण'ना दृष्टांत द्वारा निरूप्यु छे. विरहना स्वरूपने वर्णवता कवि कहे छे दाहिलुरे विरह वाहाला तणउ, वरि मरण दहइ अकवार, नितु बलण नीसासे करी, कुण जाणेइ रे विरहीयां सार.3 कवि हरणना साचो स्नेह आ प्रमाणे वर्णवे छे. नेहि रे बाधां हरिणलां, अवगणी जीवित देहि, दे प्राण आवी दूरिथी, साचउ साचउ रे हरिण स्नेह.४ ३ अने गीतना उपशममां कवि कहे छे मोकलू इंद्रिय काननू, मृग लहइ दुख अपार, जइवंत पंडित बुझवइ, टालु टालु रे विषय विकार.५ ७ १ नेमिजिन स्तवन, पृ. १४, ३९ नेमिनाथ आदि गीत संग्रह, पुण्यविजयजी हस्तप्रत ग्रंथभंडार, ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद, हस्तप्रत क्रमांक ३५५८. नेमिनाथ आदि गीत संग्रह, पृ. २. २ १ एजन पृ. २, ३ ५ एजन, ग्र. २, ७ For Personal & Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) बीजा गीतमा 'दीप-पतंम'ना दृष्टांत द्वारा अपक्षी प्रेम-विरहनु वर्णन कर्यु छे. गीतनेा उपाड सचोट छे धिग् पडउ पापी नगणनइ, जस वेधि झूरि मरंति, जे सुपन मांहि नवि मिलइ, ते देखी रे नेहडउ धरति. १ अने कवि अपक्षी नेह-विरहनु वर्णन करता कहे छे. झुरि मरइ ओक ओक विना, मनि अवर न धरई नेह, कां देव ति इम सरजीउ, दाहिलुदोहिलुरे ओक-पक्ष सनेह.२ ४ अने काव्यान्ते कहि कहे छे. मोकलु टयन विकार जु, तु दीपि पडइ पतंग, जयवंत पंडित बुझवइ, मम करयो विषयन संग.३ ७ छेल्ला गीतमा स्थूलिभद्र कोशाना नेह-विरहनु वर्णन कर्यु छे. मुनि बनेला स्थुलिभद्र कोशाने कहे छे. थुलिभद्र कहि सुणि गोरडी, मनि ओछ् आणइं कांइ रे, जेह सिउ बोलया बालडा, वाहला ते किम किम वीसरियां जाइ कि.४ ६ .. जयवंतसूरिकृत-गीतसंग्रहपनी प्रारंभनी रचना 'पद्मावती गीत' माधुर्ययुकत होवाने लीधे उल्लेखनीय छे. सकल सुखकारिणी, शुभ लता सारिणी, जन मनाहारिणी, विश्व महितो, अंकुश धारिणी विहविहारिणी, विघ्रविडारिणी महिम सहिता. . आइ जागि पद्मावती पास गुणगावती, कविजन भावती विश्वजननी, भक्तजन थापती त्रिभूवन व्यापती, पूरि आशा सदा मुज्झ मननी.. आ संसार भवनां उदधिमां तरी जवा माटे धरमरुपी प्रवहणनी अगत्यता निरूप] 'प्रवहण गीत' पण जोवा जेवु छे. प्रवहण अभिनव धरमन, भवोदधि मांहि तरंति रे, अन्या प्रमहणि पूतिजी, अन्या प्रवहणिइ पुरीउ. पुण्य--क्रियाण घरंतिजी७..दुपद, तो स्थूलिभद्रना विरहथी व्याकुल बनेली कोशा एमनी वाट जुवे छे. आवता. जता जे पथिकाने स्थूलिभ विशे पृच्छ। करे छे. आवी विरह अवस्थामां बपैया शिळ पिठं करे छे. ए १ नेमिनाथ आदि गीतसंग्रह, पृ २,१ २ एजन पृ. २, ४ ३ एजन पृ. ३, ७ ४ एजन पृ. ३,६ ५ पुण्यविजयजो हस्त प्रत ग्रंथभंडार, ला. द. विद्यामंदिर, हस्तप्रप्रत क्रमांक ३०६७ ६ गीतसंगृह, पृ. १, १ ७ एजन पृ. ४ ५. For Personal & Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) विरहानलथी दग्ध एवी एन। पर 'नमक' लगाडवानं काम करे छे आ भाव कविए लाघवताथी निरूप्यो छे. ते 'स्थुलिगीत' जोवा जे छे. टोडे रही जोइ वाटडी, वाल्हा नयने तृपति न होइ रे, थुलिभद्र तणउ रे संदेसडु रे, पंथीडा कहु मुझ काईके, थुलिभद्र कहु कुणि दीठा रे, महारा बाधव बाधव युनइ वधाइ के, कोश वेशा इम वीनवइ रे ... ... ... ...दु० विरहानलि दाधी देहडी, घडीयन बीसरइ गुण रे, बापीयडउ पीउ पीउ करइ, दाघइ दाघइ लगाविइ लूण के '...२ थु. आदि जिनेश्वर ऋषभदेव'D नानकडे गीत पण एभा काव्यगुणे उल्लेखनीय छे. तेरु मुख दिखत छलिई आनंद, ऋषभदेव विमलाचल-मंडन, नाभि कुला दधि चंद ... ... ...दु० ते० सार सुधा मधुरि छुनि पीबत मोहइ सुर नर वृद कहो बखान कर तन छबि की, मोहन वेलि सुकंद २ ते.२ आ प्रतमां बीजा अनेक नानकडां गीतो छे. भावनी उत्कटता अने शब्दमां लालित्य तथा माधुर्यने लीधे ते आस्वादय बन्या छे; ___आ उपरांत जयवंतसूरि कृत 'लोचन काजल संवाद' नामना अठार कडीना गीतना उल्लेख •जन गुर्जर कविओ मां छे तेमां कविओ ‘लोचन' अने 'काजल' वच्चेना रसिक संवाद आप्यो छे. काव्यना आरंभ चोटदार छे. । नयणां रे गुण रयणां नयणां, ए अणघटती जोडि, काला कज्जल केरइ कारणि, तुझनइ मोटी खाडि रे, असरिस सरसी संगति करतां, आवइ चतुरह लाज, जेहथी सुरजन मांहि हुइ हासुं, तस मि भणइ स्युं काज रे.४ दू० काव्यने अंते कवि प्रशस्तिमा जणावे छे. मन मान्या स्युं सहो ए मिलतां, मनि जन बोल न धरइ, जयवंत पंडित एणी परि बोलई, मिलता साथइं मिलइ रे, जो.५ १ गीतसंग्रह, पृ. ९-१०, २ २ एजन पृ. १४, २ ३ जैन गूर्जर कविओ, संपा. मीहनलाल द. देसाई, मुंबई, १४४, भाग ३, खंड १, पृ. ६७१. ४ अजन पृ. ६७१. ५ अजन पृ. ६७१. For Personal & Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) १०. संस्कृत रचना : काव्य प्रकाश टीका श्री मोहनलाल देसाईए 'जैन गुर्जर कविओ'मां आपेल उल्लेख उपरथी आ कविए साहित्य चक्रवति लोहित्य भट्ट गोपाल विरचित 'काव्यप्रकाश' पर संस्कृतमा टीका रची होय अम लागे छे. एनी प्रशस्ति आ प्रमाणे मळे छे. टीका जयंतमुख्या विलोक्य तत संग्रहं च सासद्य ? सहृदय मुदे प्रयत्नाच्छी गुणसौभाग्यसूरिवरः -इति साहित्य चक्रवत्ति लौहित्य भट्ट गोपाल विरचितयां साहित्य चूडामणो काव्यप्रकाश विमशिन्यां दशम उल्लासः १. आ सर्व कृतिओ एक साथे अवलोकतां ए वस्तु सहज रीते प्रतीत थाय छे के जयवंत. सूरि मात्र कथनकार के जोडकणां करनार नथी. अमनी पासे कवि उचित कला छे, कसब छे. एमना समग्र सर्जनमांथी, तेओ जैन मुनि होवाने लीधे जैन धर्म अने संस्कारने अनुरूप शुचितानी सौरभ फोरे छे. सादी अने सरळ रीते तेणे आ सर्व कृतिनुं सर्जन कयु छे. पण एमनी आ सरळता मात्र .भभ कना अभावनी नथी, पण स्वभावसिद्ध छे. सरळ शब्दो पासे धायु काम लेनार ते कसबी कलाकार छे एमनी भाषामां गौरख, ऊर्मिलता, मार्मिकता, प्रसाद अने माधुय' छे. एमनी वाणीना प्रवाह अनायस सरळताथी वह्या करे छे. अनुप्रासयुक्त एमनी पक्तिओ राग के देशीना योग्य मापमा सहजतया अक पछी अंक आव्या करे छे. उपमा, रूपक, दृष्टान्त इत्यादि अलकारोना उचित प्रयोग द्वारा तेओ सामान्य उक्तिने पण दीप्तिवंत बनावी मूके छे. अमनी पासे अक विशिष्ट प्रकारनी वर्णन शेली छे. ते शक्ति वडे ते काई पण पात्र, प्रसंग के भावने-स्वभाविकताथी वाचकना चित्त समक्ष प्रत्यक्ष करी शके छे. आ सर्वने कारणे एमनी कृतिओ रुचिर अने आस्वाद्यय बनी छे. जयवंतसूरि पासे प्रेरणानी जे कांई निर्सगदत्त मूडी छे. अमां अभ्यास अने निपुणता वडे वृद्धि करी एमणे गुजराती साहित्यने 'शृंगारमजरी' अने 'ऋषिदत्ता' जेवी उत्तम अने आकर्षक कृतिओ भेट धरी छे. ए भले प्रतिभाशाळी कवि नथी पण एक सारा 'रासकवि' तो छे ज. १.. जैन गुर्जर कविओ, संपा० मोहनलाल द. देसाई, मुंबई, १९४४ भाग ३, खंड १, पृ. ७२. परना उल्लेख. For Personal & Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३. " शृंगारमंजरी" कथानी रुपरेखा खंड १ : मुख्य कथा अजितसेन अने शीलवतीना विवाहनो प्रसंग तथा शीलवतीना शील पर आरोपतेनुं निवारण - अजितसेन मुख्य प्रधानपदे — शीलवतो अने अजित सेननो विवाह नंदनगर नामना नगरमां अरिमर्दन नामे राजा छे, रत्नाकर नामे श्रेष्ठी छे अने तेनी 'श्री' नामे भार्या छे. सर्व वाते सुखी अवां आ दंपती अपुत्रक छे. रत्नाकर निज भार्याना आग्रहने वश थई पुत्राप्ति अर्थे' 'अजीतबला देवी' नी आराधना करे छे. देवीनी कृपा रुपे 'श्री'ने एक पुत्र था. जन्मना बारमा दिवसे महोत्सव करी तेनु "अजीत सेन ” नाम पाइयु. अजित सेन युवान थतां सर्व कलामां निपुण थये।. हवे रत्नाकार एने अनुरूप कन्या खेळी काढवा अंगे सचित बन्या. आ समय दरम्यान रत्नाकरने देशाटन अगे 'संयगला नगरी' गयेला मित्र पाछा फर्यो. तेणे त्यांना जिनदत्त श्रेष्ठीनी पुत्री - " शीलवती" ना रुप गुणनी प्रशंसा करी, ते सर्वथा अजितसेन माटे येाग्य छे अम जगान्युं वळी अजित सेननी साथे शीलवतीने विवाह करवा माटे जिनदते पोताना पुत्र जिनशेखरने पोतानी साथे मोकल्या छे ऐम पण जणाव्यु रत्नाकरे आ विवाह माटे पोतानी संमति दर्शावी अने जिनशेखरने योग्य सत्कार कये. जिनशेखरे पातानी बहेन शीलवतीनेा विवाह अजितसेन साथे कर्यो रत्नाकरे जिनशेखर साथे अजित सेनने लग्न अर्थे - 'संयगला नगरी' मोकल्या. महोत्सवपूर्वक शीलवतीने परणी अजितसेन नंदननगर पाछो फर्यो अने तेनो साथे आनंदपूर्वक पाछो फर्यो अने तेनी साथे आनंदपूर्वक रहेवा लाग्यो. मध्यरात्रि शियाळनी लाळी अने रत्नप्राप्ति एक बखत बे प्रहर रात्रि वीत्या पछी शय्यामां सूतेली शीलवतीओ कोई 'पशु'ना अवाज सांभळया के "नदीना जळमां तणाइने जता एक 'शव' साथै पांच रत्नेा बांधेलां छे. ते छोडी लइने 'शव' मने आपे । " पशुनी भाषा समजनारी शीलवतीए ते रत्ना प्राप्त करवाना विचार क. हाथमां जल भरवा मिषे घडेो धारण करी ते नदी किनारे आवी. जल मध्ये जई शीलवतीभे "शव" परथी पांच रत्नो ग्रहण करी, ते 'शव' शियाळने भक्षण अर्थे आपो दीधु पांच रत्ना लई शीलवती घेर आवी. तेने शय्या पर मूकी, “ सर्व वृत्तान्त प्रभातमां पतिने जणावीश " एम विचारीने फरी सूई गई, शीलवतीना आववा जवाना अवाजथी जागृत थयेला एना पति अजित सेनने आ सर्व व्यवहार जोइ, तेना शील अंगे शंका थई. प्रभातमां अजितसेने सर्व बीना पिताने जणावी शीलवतीने एना पियर मोकली देवानो पोताना निर्णय जाहेर कर्यो. त्यार बाद पिता अने पुत्रे "तारा पिताए तने सत्वरे बोलावी छे" एवा कृत्रिम ' लेख ' बतावी एने पियर मोकलवानी तजवीज करी. शीलवती पण "आ मारा मध्यरात्रिना व्यवहारनु फळ छे पण मारुं शील निर्मल For Personal & Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२९) छे तो शो वांधो छे' एम विचारी पियर जवा तैयार थई. रत्नाकर रथमां शीलवतीने लई तेने पियर मूकी आववा नीकळयो. रत्नाकर-शीलवतीनो प्रवास-प्रसंग-विसंवाद अने निवारण हवे मार्गमा आगळ जतां अक नदी आवी. रत्नाकरे शीलवतीने कहयु "तमे उपान उतारीने नदी पार करजो." छतां शीलवती उपान पहेरीने नदी उतरी. मार्गमां वळी आगळ जतां "जेना अंग पर दृढ प्रहार छे" एवो अक सुभट देखायो. रत्नाकरे अने 'शुरवीर' कही बिरदाव्या. पण शीलवतीए एने 'कायर' तरीके ओळखाव्या. रत्नाकरने शीलवती अवळू' बोलनारी लागी: आगळ चालतां अक 'देवळ' आव्यू. रत्नाकरे अना अनुपम सौन्दर्यनी प्रशंसा करी. ज्यारे शीलवतीए एने 'कंदर' सम गणाव्यु, बादमां मार्गमा अक "नगर" आव्यु. रत्नाकरे अने 'इन्द्रभवन' सम गणाव्यु. ज्यारे शीलवतीए एने 'कांनन' जेबु गणाव्यु . नगर छोडी जतां एक 'नेसहूं' आव्यु. एने रत्नाकरे "गहनवन" जेवु गणाव्यु, त्यारे शीलवतीए एने 'उत्तम' गण व्यु. नेसमांथी एटलामां त्यां शीलवतीमो मामो आवे छे. ते बन्नेने भोजनार्थे निज गृहे अमंत्री जाय छे. तेओने ते आदरपूर्वक भोजन करावी 'चादर' भेट आपी विदाय करे छे. हवे मार्गमा आगळ जता एक वटवृक्ष' आवे छे. रत्नाकर विश्राम माटे तेनी छायामां बेसे छे, ज्यारे शीलवतो वटवृक्षनी छाया छोडी, स्थनी छायामां बसे छे. वटवृक्ष पर बेठेले। वायस अवाज करे छे. वारंवार अवाज करता वायसने सांभळी-एनी भाषा समजी, शीलवती तेने प्रत्युत्तर आपतां जणावे छे-पूर्वनी मेक भूलने परिणामे हुँ मारा कंत'ने चूकी गई, हवे जो तारु मानु तो वळी महान दुःख पामु..." आवो संवाद सांभळी जिज्ञासा वृत्तिथी प्रेरायेल रत्नाकरे पृच्छा करता प्रत्युत्तरमां शीलवतोए जणाव्यु, "शियाळनो शब्द पारखीने रात्रे हु पांच रत्ना नदीमां तणाता 'शव' पासेथी लेवा गई हती, जे ही पण मारी शम्यामां दाबेलां पड्यां छेः आ कारणे शीलना अपवाद पामी, आ दशा पामी. हके आ गों कहो छ-"आ वह नीचे 'दसकाडी' धन दाटेलु छे. ते लई मने आहार आप।' वछी आनी सूचना प्रमाणे करवा जाउ तो कदाच हु पियर भेगी पण नहि थाउ एम विचार छ शीलबसीना क्चनमी सत्यासत्यकी परीक्षा करवा गाममां जई 'आयुध' लई आवी रत्नाकरे वह नीचे खेलयं. खोदतां 'देसकोडी'नो धनभंडार तेने हाथ लाग्यो. धन प्राप्ति थतां हर्षित बमेलः स्नाको शीलावतीमे सीलयुक्त' जाणी तेने घेर पाछा फरवानी विनंती करी. प्रथम थोडी मानाकानी पछी शीलवती रत्नाकर साथे पाछी फरी. मार्गमां रत्नाकरे शीलवतीने अना सर्व पूर्व-कथन अंगे पृच्छ। करतां तेणे प्रत्युतरमा मास्युं के 'पूर्वे में कहेला सर्व कथनो यथार्थ छे. चरणना रक्षण अर्थ उपान छे. नदीना तळियामी भूमि कांटा-कांकरावाळी होय छे. ते प्रगट देखाती नथी तो अवा स्थळमां उपान न पहेरीमें तो पगमे हानिः थाय. उपान भीजाय तो सुकाई जाय. माटे में उपान न उतार्या. वळी जे सुभेटने तमे 'शूरवीर' तरीके बीरदाव्यो, तेने जे घा देखाता हता ते पीठे हता, छातीभे न हता. माटे में तेने “कायर" कह्यो हतो. दहेराने “जंगलजाल" तरीके ओळखाव्यु, केमके त्यां नट, विट, जड अने जुगारीनो वास हतो. 'नगर' ने में 'रान' जेवुकयु केमके जे मगरमां आपणु काई सगुं-वहारों के मित्र न होय ते वस्तीवाळु होवा छतां आपणा माटे 'सम' समान छे. वळी 'नेसडा' मां मारा मामाओ आपणने आदरपूर्वक जमाड्या अटले ते For Personal & Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तम आवासवाणु बनी गयु. वळी वडनी छाया छोडी ह रथनी छायामां बेठी केमके जे स्त्रीना माथा पर वृक्ष परथी पक्षीनी विष्ठा पडे ते स्त्री “छ मास "मां विधवा थाय अवुज 'शुकन ' छे. __ आ सर्व सांभळी रत्नाकरे विचायु " आ स्त्री शीलवती अने गुणवती छे." त्या रबाद ते शीलवतीने लई पोताना घेर पाछो फो. रत्नाकरे अजितसेनने सर्व वृत्तांत जणावतां तेने पण शीलवतीना शील अंगे खातरो थई, अने ते पूर्ववत अनी साथे आनंदपूर्वक रहेवा लाग्यो. अजितसेन मुख्य प्रधानपदे शीलवतीनी सलाह थी अजितसेन नित्य राजदरबारमा जाय छे. राजाना ते खूब आदर मेळवे छे. अरिमर्दन राजाने ४९९ प्रधान छे. ५०० मो मुख्य प्रधान पसंद करो तेने सगळो राजभार सेपी निवृत्त थवानेराजा अरिमर्दने मनसुबो को. आवा प्रधाननी पसंदगी माटे तेमणे जुदा जुदा ' कोयडा ' शोधी काड्या अने ते द्वारा अनी बुद्धिचातुर्यनी परीक्षा करवा विवायु. तेना अनुसंधान मा तेमणे सर्व समक्ष अक कोयडो रजू को. “ हाथीने। तोल केवी रीते करशो' ? आ बाबत सर्व प्रधाना मुंझाया कोई आने। उकेल आपी शक्यो नहीं. राजाओ आखरे अजितसेनने अने। उकेल पूछयो. अजितसेने शीलवती पासेयी आनो साचो उकेल जाणी राजा समक्ष रजू कये.'' "हाथीने प्रथम नावना बेसाडो ते नाव जला मुकत्री. नाव जलमां केटली डुबे छे त्यां आगठ निशानीनी रेखा कावी. पछी हाथीने उतारी आ रेखा सुधी नाव डूबे अटला पाषाण भावा. त्यारबाद आ पाषागनो तोल करवा. जेटलो ताल थाय तेटलुं हाथीन वजन जाणवू." उकेल जाणी राजा आनंद पाम्यो अने अजितसेनने 'देशपसाय' आप्या. वली अंक वार राजा राजदरबारमा ओक प्रश्न मुक्यो के "मने कोई चरणप्रहार करे तेने शो दंड करवा ?” सर्व प्रधानादि जणायु के तेने सबळ दंड करवो जोईए. आखरे राजा अजितसेनने आ प्रश्न पूछयो. अजितसेने शीलवतीनो सलाह-सूचना प्रमाणे राजाने आनो उत्तर आपतां कहयु"आप राजाने जे चरणप्रहार करे तेनो सत्कार करवो जोईओ." आ उत्तरथी आश्चर्य पामेला राजाए एनो खुलासो मांगतां अजितसेने प्रत्युत्तर आपतां कहयु, " आप राजाने आपनी राणी के पुत्र सिवाय अन्य कोण चरणप्रहार करवाने शक्तिमान थई शके ? तो.. वन्नेा सत्कार करवो जोईए.'' योग्य उत्तरथो प्रभावित थयेला राजाए अजितसेनने मानपान आपो. पांचसोमो मुख्य प्रधान निम्यो. एक समये राजसभामां राजा अने अजितसेन बेठा हता त्यारे एक-'दीन वणिके" आवी आंसु सारतां फरियाद करी के-“में एक धूर्तने गुणवान जाणी तेनी साथे मैत्री करी. हवे एक वखते तेना विश्वासे मारु धन अने स्त्री भळावी हु परदेश गयो, परदेशथी पाछा फरीने में धन अने स्त्रीनी मागणी करी त्यारे मारी खबर-अंतर पूछया बाद ते धूते कहूयु "देश-परदेश भमतां ते काई आश्चर्य जोयु होय तो मने कहे.” एटले में कहूयु “अकाळे फळेलु एक मोटु आभ्र. फळ नजीकना वनना कूबा मां तरतु मे जोयु छे. आश्चर्य छे के आ वखते आम्रफळ क्याथी ?" ते धूते आ अंगे शंका दशावतां जणाव्यु--"जो तारु' कथन सत्य होय तो मारा घरमांथी बे हाथे जे लेवाय ते लई जवु अने जो तारू कथन असल्य ठरे तो हुँ तारा घरमांथी बे हाथे For Personal & Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जे लेवाय तेटलु लई लईश, एवी शरत करीऐ." में ते शरत मंजूर राखी अने बीजे दिवसे प्रभातमां आ अंगेनी खातरी करवा जवानु नक्की करी अमे छूटा पड्या. पण रात्रे छाना वनमां जइ पेळा धूर्ते कूबामांथो आम्रफळ दूर कर्यु. सवारे अमो बन्नेए वनमा जइने कूवामां भायु तो फळ न मळयु. हु खोटो ठो. निराश थयेलो हु घेर आव्यो, तेटलामां मारा अक मित्रे मने चेतवणी आपी के "आ तो धूर्त छे. अनी साथे शरत करवाथी हवे ते तारु धन अने स्त्री बन्ने लई जशे " "मने पण हवे अनी धूर्ततानी खातरी थई छे. तो हवे आ संकटमाथी आप मने छोडावा क्षेत्री विनती छे ” राजाओ आना निकाल लाववानु अजितसेनने सेप्यु. ___ अजितसेने शीलवती पासेथी आ अंगे सलाह-सूचना लई उकेल सूचव्यो के-"धन अने स्त्री माळ पर चढावी त्यां राखो नीचे निसरणी मूका. धूत धन अने स्त्रीने लेवाने माळ पर चडवा जतां जेवो बे हाथे निसरणी पकडे, ते ज वखते बे हाथे लेवायेली आ निसरणी लई जा ओम कबु. जेथी शरत पूरी थशे अने धन तथा स्त्री बची जशे." अजितसेने वणिकने कद्देली युक्ति करवाथी वणिकनां धन अने स्त्री बन्ने उगर्या. राजामे पण अजितसेननी बुद्विनी प्रशंसा करी. खंड २ : मुख्य कथा : शीलवतीए निज शीलनी खातरी अंगे आपेल कमल - कमलना दर्शनथी एना शीलनी खातरी अंगे राजाना चार प्रधानोए उपस्थित करेली शंका शीलना प्रतीकरूपे “कमल" आपq. हवे अक वार शीलवती अजितसेनने का, “ मारुशील खंडन करवा देव पण समर्थ नथी. तो अन्यनी शी वात करवी ? मारा मनमां तमारा सिवाय अन्य कोई नथी. पण देववशात् कदाच तमारा मनमा शंका थाय तो? ' अम कही तेणे अक कमल हाथमां ग्रही अजितसेनने आतां कहयु, “ मन, वचन अने काया करीने जो में अन्य पुरुषने वांछयो होय तो आ काल करमाई जाव. जो हुँ शीलवती हो तो आ कमल सदा विकसित रहेजे।" अजितसेने पण आनंदपूर्वक कमलने। स्वीकार को अने सदा एने धारण करतो आनंदथी रहेवा लाग्यो. शील अंगे चार प्रधानोए उपस्थित करेली शंका हवे एक समये शत्रुराज्यनी सामे युद्ध करवा राजा साथे अजितसेनने पण जवानु थयु. शीलवतीथी विखूटा पडवाना विरहथी व्याकुल बनेल अजितसेन न छूटके राजा साथे प्रयाण करे छे. मार्गमां सैन्य एक मरुभूमिमां विश्राम करे छे. अहीं सर्वत्र वनस्पतिना अभाव होय छे, एवा संजोगामां अजितसेन पासे सूवासित कमल जोइ राजाए ते संगे तेने पृच्छा करी. अजितसेने तेने पोतानी पत्नीना “ शीलना प्रतीक' रूप गणावी सर्व वृत्तांत राजाने कहयो. पण राजाने आ वातमां श्रद्धा न उपजी. तेणे पोताना चार प्रधानाने अकान्तमां बोलावी आ बाबतनी चर्चा करी. प्रधानाए कहयु "स्त्रीओ मायावी होय छे. ते बहारथी माया-नेह देखाडे छे. पण अना अंतरमां बोजु ज कंइक होय छे. आ कलियुगमां कोई स्त्री सती होती नथी. अ सर्व धूतारी होय छे." आ पछी तेओओ नारीना “धूर्तपणा" पर-"स्त्री चरित्र" पर पातालसुंदरीनी कथा कही. For Personal & Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) खंड ३ : अवांतर कथा "स्त्रीचरित्र पर पातालसुंदरी कथा" राजा जयंतसेनना बाळकन्या साथे लग्न अने तेने पुरुष-परिचयथी विमुख राख्न भोयरामा राखवी. विशालनगरीने। राजा जयंतसेन युवान वीना 'चरित्र' अंगेनी भनेक वाताथी प्रेराईने निमल शीलवारी एक बाळकन्याने परणवानो निर्णय करे छे. आ प्रमाणे ते अक तरतनी जन्मेली स्वरुपवंत कन्याने परण्यो. पोताना महेलमां ज भेयरू बनावी तेमां ते परणेली राजा कन्याने राखी, उछेरवा मांडी. मात्र "स्त्री"नी देखभाळ नीचे ते कन्या बखत जतां यौक्नदशाने पाभी. पातालमा राखवाथी राजाओ एनु “पातालसुंदरी' एवं नाम राख्युं. राजा तेने शुद्ध शीलवती जाणीने तेना पर अपूर्व स्नेह राखतो. तेनी साथे आनंदपूर्वक विषयसुख मोगाया लाग्यो. एन! आकर्षणमा ते राजकाजना कार्यमां पण वेदरकार बनवा लाग्यो. अनंगदेवर्नु पातालसुंदरी साथे प्रेममा पडवू तथा एना मिलन माटे सुरंग खादषी हवे कोई एकवार मणीद्वोपनो व्यापारी अनंगदेव अनेक जातनां रत्नो लई विशालपुर नगरीए आव्यो. तेणे आमळा जेवडां मोतीनो एक महाकीमती हार राजने भेट आप्यो. प्रसन थयेल राजाए तेनु दाण माफ कर्यु. घणु धन कमायेला अनंगदेवे पुष्कळ द्रव्य आपी राजानी 'कामपताका' नामनी गणिकाने वश करी, अने ते तेनी साथे रंगराग खेलवा लाग्यो, एक बार सार्थवाहे कामपताकाने पूछयु " राजा राजकाजमां केन शिथिल देखाय छे ? राजसभामां पण मोडे आवी वहेलो चाल्यो जाय छे ?' कामपताकाए जणाव्यु के "अंत:पुरमा एवी वात प्रसिद्ध छे के राजा जन्मथी भांयरामा राखेली एक स्वरूपवंत कन्याना मोहमां पडयो छे. तेथी राजकाजमां शिथिलता दाखवे छे." आ वृत्तांत सांभळी अनंगदेव ते सुदरी तरफ अनुरागी बनी गयो. अने तेने प्रत्यक्ष जोवा अनुं हृदय अधीर बनी गयु. तेना प्रत्यक्ष दर्शन माटे तेणे राजा साथे वधु प्रेम केळववा मांडया. वखत जतां तेणे राजाना पूर्ण विश्वास संमदन को. अन्तःपुरमा पण ते बिना संकोचे आवजा करवा लाग्यो धीरे धीरे तेणे भेयरान स्थान वगेरे सर्व बराबर जाणी लीधु. घेर जई तेणे छुगी रीते पोताना घरथी भेयिरा सुधी सुरंग खोदावी. त्यार बाद अवसर जाणीने राजा पातालसुंदरी पासेथी गया बाद सुरंगमां थईने अनंगदेव भेयरामां आव्यो. निद्राधीन थयेली पातालसुंदरीनु अपूर्व सौन्दय जोई ते मुग्ध थयो. फ्छी तेणे अने प्रेमवचनाची जागृत करी. पातालसुंदरी पण प्रथम परिचयमा ज तेना प्रेममां पडी गइ. त्यार बाद तो बिना संको सुरंग वाटे आवीने अनंगदेव पातालसुंदरी साथे भोग भोगववा लाग्यो. पातालसुंदरीनी नगरचर्चाना दर्शननी मागणी-राजने भोजन अर्थे निमंत्रण संकेत अनुसार निःशकपणे दररोज सुरंग वाटे आव-जा करता अनगदेवने टेक वार पातालसुंदरीओ कहयु के-"तु मने तारे घेर लई जई नगरचर्चा देखाड" थोडी आनाकानी पछी अनंगदेव अने पोताना घेर लावे छे. त्यां गवाक्षमां बेसी ते नगरचर्चा जुए छे. ते वसते ते For Personal & Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) राजाने क्रीडा अर्थे उपवन तरफ जतो जुए छे तेने जोई पातालसुदरी विचार करे छे के - “मने केदीनी माफक पूरी राखे छे अने पोते इच्छा मुजब हरेफरे छे. ते जाणे छे के हु बहु चतुर पण हुं ते राजाने छेत तो ज खरी. " "" आम नक्की करी तेणे सार्थवाह अनंगदेवने कहौं, तु राजाने जमवानुं आमंत्रण आप अने पीरसवानुं मने सांपजे. " प्रथम तो राजाथी बीता सेवा अनंगदेवे आनाकानी करी पण अंते पातालसुंदरीना आग्रहने वश थई राजाने भोजन अर्थे निमंत्रण आप्युं. घणा आग्रहना अंते राजाओ ते आमंत्रण स्वीकार्य अने अजीत सेनने घेर आव्यो. पातालसुंदरीए राजा जमवा. बेठो भेटले सर्व शृंगार सजी तेने पीरसत्रा माड्युं, राजा अनु सौन्दय जोई प्रथम चमके छे पण पछी अने पातालसुंदरी होवानी शंका थाय छे; पण ते विचारे छे के" पातालसुंदरीने तो हु भांयरामां पूरीने आव्यो छु तो ते अहीं केवी रीते आवी शके ! आ तो ओना रूपने अनुरूप अनंगदेवनी स्त्री हो." अम समाधान करी ते शंकानुं निवारण करे छे पातालसुंदरी फरी परसवा आवी. तेने जोई वळी राजाने शंका घेरी वळी, भेटले ज्यारे ते पुन: पीरसवा आवी त्यारे राजाओ सुंदरी न जाणे एम भोजनसामग्रीमांथी ओक "छांट" तेना वस्त्र पर नाखी. पण पातालसुदरीने ते वातनी खबर पडी गई. शंका पडवाथी जेनो भोजनमां रस उडी गयो छे ओवो राजा जलदीथी मद्देले पाछो फर्यो, आ बाजु पातालसुंदरी पण 'छांट' वाळां वस्त्र बदलीने सुरंग वाटे भयरामां आवी सूई गई. राजाओ सर्व ताकां उघाडी भांगरामां आवी जोयु तो पातालसुंदरी उंघती पडी छे. राजाने आवेलो जाणी ते कृत्रिम उघमाथी बगासां खाती उठी. राजाए भेना वखनुं बारीकाईथी अवलोकन कयु पण एने “छांटनी कोई पण निशानी देखाई नहीं. आम शंकानु समाधान थई जतां ते पातालसुंदरी जोडे फरीथी प्रथमनी माफक विलास करवा लाग्यो. पातालसुंदरी अनंगदेव साथै पलायन थवं अने राजा तेमने वळावा जाय छे. लांबा समयना अकान्तवासथी कंटाळी गयेली पातालसु दरीए अक वखत अनंगदेव ने कह के “मारे आ देशमां रहेवु नथी, माटे तमारा देशमां जवानी तैयारी करो अने हुं पण साथे आवु छु." अनंगदेवे राजानो भय दर्शावी तेम करवानी पोतानी आनाकानी बतावी. पण पातालसुदरीओ पोतानी इच्छा जारी राखतां, एनी सूचनाने अनुसरीने "मारां माता - पिताए मने जलदीथी बोलाव्यो छे." ओवो कृत्रिम लेख राजाने बतावी, तेनी पासे जवानी आज्ञा मांगी. राजाओ अनिच्छाए तेने एना नगर जवानी रजा आपी. अनंगदेवनी इच्छा प्रमाणे राजा तेमने समुद्रना कांठा सुधी वळावा आववा कबूल थये।. हवे शुभ दिवसे सार्थवाह पोतानां वहाणो तैयार करी पोताना देश जवा तैयार था. राजा पण तेओने वळाववा तेमनी साथे थयो. पातालसुंदरी पण सुरंग वाटे अनंगदेवना आवासे आवी, सज्ज थई, पालखीमां बेसी समुद्र किनारे जवा तैयार थई. पोतानी पालखी राजानी पासे राखी ते राजाने कद्देवा लागी, "आपनी कृपाथी अमे घणु धन उपार्जन कर्तुं छे. वळी अमारो अज्ञानथी कोइ अपराध थयो होय तो माफ करजो." आम वार्तालाप करतां ते त्रणे समुद्रकिनारे आवी पछेंांच्यां अनंगदेव अने पातालसुंदरी राजाने 'छेल्ला जुहार' करी वहाणमां बेठां. थोडी वारमां वहाणो दृष्टिमर्यादा बहार नीकळी गया. दु:ख अनुभवतो राजा पोताना महेले पाछो फर्यो. ५ For Personal & Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) पातालसुंदरीनुं सुकंठ साथै प्रेममां पडवु अने अनंगदेवने समुद्रमां धकेली देवो. सार्थमां अनंगदेव साथे अनो नानो भाई सुकंठ पण होय छे. हवे समुद्रना प्रवास दरम्यान दियर सुकंठ साथै स्वाभाविक हास्य-विनोद करतां पातालसुंदरी तेना गानतान प्रत्ये आकर्षाने तेना प्रेममां पढी गई. प्रेमासक्त अवी तेणे विचार्य, "आ सार्थपति अनंगदेवने हणीने आ सुकंठ साथ अनंत सुख भोगवुं.” अक वार रात्रे अनंगदेव शरीरनी उपाधिए जागृत थइ, वहाणनो किनार पर बेठो हतो ते वखते लाग साधी पातालसुंदरीए तेने समुद्रमां धकेली दीघो अने घछी कृत्रिम पोकार करी विलाप करवा लागी. पोकारथी प्रेराई "पाहारी" दोडी आव्या. तेभणे सर्व स्थळे शोध करी, पण तेमने निष्फळता मळी. पातालसुंदरीए कृत्रिमपणे अनंगदेव साथै समुद्रमां पडी मरवानो प्रयास कर्यो. पण सुकंठ इत्यादिए तेने रोकी राखी. हवे पातालसुंदरी निर्विघ्नपणे सुकंठ साथे विलास करवा लागी. आ सर्व चेष्टा निहाळी सुकंठे विचार्य, "जे एक स्वामिनी न थई ते बीजानो केम थशे, जेणे राजाने छोडी अनंगदेवने ग्रहण कये, भने तेने पण छोडी देनार मने केम छेह न दे ?" एम ते मन वगर एनी साथे भोग भोगवतो रहेवा लाग्यो. सार्थपतिनो बचाव अनं दीक्षाग्रहण "" हवे समुद्रमां पडेल अनंगदेवने कर्म- संजोगे एक पाटियुं हाथ आव्युं तेनाथी तरतो अने जळमां तणातो ते सिंहलद्वीपमां आवी, स्थस्थ थइ विचारवा लाग्यो के "आवो निर्मळ स्नेह राख्यो छतां ते मने त्यजी गई, तो स्त्रीने कोई भरथार सगो नथी एम विचारतां वैराग्य जाग्यो एवामां तेने एक मुनि मळया. एमणे एने मायाना साचा स्वरूपनो ख्याल आपीने वैराग्यनो उपदेश आप्या, मुनिना उपदेशथी वैराग्य पामी अणे चारित्र ग्रहण कर्यु. सुकंठ अने पातालसुंदरीनु सिंहलद्वीप आगमन अने सुकंठनु दीक्षाग्रहण दरियानी मुसाफरी करतां करतां सुकंठ अने पातालसुंदरी अकस्मात ते ज सिंहलद्वीपमां आवी पांच्या हवे मुनिवेशमां अनंगदेवने जोई, ओळखी, सुकंठ लज्जा पामी गयो अने तेणे पण वैराग्य पानी दीक्षाग्रहण करी ते पछी पातालसुंदरी सर्व वहाण लई अन्य द्वीपमां जई, वेश्या थईने रही अने अंते नरकनी गति पामी. राजा जयंतसेन वैराग्य पामी मोक्षे गयो हवे आ बाजु सार्थवाहनी विदायथी विषाद अनुभवतो राजा जयंतसेन नगरमां पाछो फर्यो, सत्वरे मयरामां जईने मुझे छे तो सुंदरी नमळे. जयंत सेनने तरत रूपाल आयो के धूर्त सार्थवाह पातालसुंदरीने लइ गयो. राजाए सेवकोने बोलावी सर्वत्र तपास करावी. भयरामां तपास करतां गुप्त सुरंग मळी आवी. सर्व भेद कळाइ गयो, राजाओ खलासीओने तैयार थई 'सार्थवाह 'नो पीछो करवा हुकम कये पण खलासीओओ जणान्युं के “काफलो तैयार थतां घणी वार लागशे.” राजा आथी तद्दन निराश थई गयो. राजानु मन संसारमांथी उठी गयुं. . आ समय दरम्यान नगर बहार ' चारण" केवळीनी पधरामणी थइ राजा तेने वंदन करवा गयो. मुनिए राजाने धर्मदेशना आपी. राजीओ पातालसुंदरीनु चरित्र पूछयु मुनिओ ते सर्व कही संभळाव्यु सुंदरीनु दुश्चरित्र सांभळी राजा वैराग्य पामी, चारित्र ग्रहण करी, काळक्रमे मुक्तिपद पायो, For Personal & Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) खंड ४ : मुख्य कथा चार प्रधान-आशकोनो शोलवतीना शील-खंडननो प्रयास अने तेमनी खाडामां फसामणी. चार प्रधानोर्नु आगमन अने दासी द्वारा संदेश आम चार प्रधानाए पातालसुदरीनी कथा कही. राजाने शीलवतीना 'शील' अंगे शंकाशील बनाव्या. अंते राजाओ प्रधानाने कहा, "हवे अवु करो जेथी शीलवतीना · शील 'ना भंग थाय." पछीथी राजानी अनुमति मेळवी चारे प्रधानो शीलवतीना शीलना खंडन अर्थे नंदननगर आवीने तेमणे दासी द्वारा शीलवतीने संदेश मोकलावी, पोताने आधीन थवा कहेवडाव्यु. शीलवतीए एने "परनारीनो संग न करवो जोई" अर्थनां अनेक वचनो कही पाछी काढी. पण ते दासी फरीथी आवी. एटले तेणे बिचायु", "मारा पतिना हाथमां अम्लान रहेतु कमल जोईने मारा शीलनी परीक्षा करवा अर्थे आ लोको आव्या लागे छे. तो अमना मनमां पण चमकारो थाय अवु पारखु देखाडु" अम विचारी तेणे दासीने आ प्रमाणे कहयु, “ जो के शीलवती नारी माटे परपुरुषनो संग करवो योग्य नथी पण द्रव्यनो सारो लाभ मळतो होय तो ते पण रंग करवा तैयार थाय है. माटे जो प्रधानने इच्छा होय तो अक लाख 'टंका' लईने आजथी पांचमा दिवसनी रात्रे पहेला प्रहरे आवे.” अज प्रमाणे बीजा प्रधानने बीजा प्रहरे, त्रीजाने त्रीजा प्रहरे अने चोथोने चोथा प्रहरे आक्वा कहेवडाव्यु. वाण वगरना पलंगनी युकित अने चारे आशकानी खाडामा फसामणी शीलवती आ चार प्रधान आशकाने योग्य शीक्षा करवाने नक्की कर्यु. ते माटे तेणे पोताना ओरडामा दासीओ पासे खाडे। खादाव्या. खाडा पर अक "वाण" वगरना पलंग मूक्या अने ते पर चादर ढांकी शय्या तैयार करावी. नक्की कर्या प्रमाणे रात्रिना प्रथम प्रहरे पहेलो प्रधान आव्या. तेने सार सन्मान आपी, लाख 'टंका' लई, पेला ओरडामां तेडी जई, संदर चादर पाथरेला पलंग पर बेसाड्यो. बेसतांनी साथे ते नीचे उंडा खाडामां जई पडया, तेवी ज रीते अन्य त्रण प्रधानाने पण तेमनी पासेनु द्रव्य लई अज खाडामां पाडी देवामां आव्या. दररोज दोरडाथी बांधेला कुंडा द्वारा तेमने जल-आहार आपवामां आवतो. हवे आवी विषम परिस्थितिमा थोडा समय रहेतां ज तेमनो विषय-विकार टळी गयो अने पश्चात्ताप करतां त्यां रह्यां. शत्रु पर विजय मेळ्वी राजा अने अजितसेननु पुनरागमन-भोजननिमंत्रण हवे राजा अरिमर्दन अने अजितसेन शत्रुने जीतीने नंदननगर पाछा आव्या. अजितसेन घेर आव्यो. शीलावतीले चारे प्रधाना अंगेनी सर्व विगत पतिने संभळावी. अजितसेनने पण आश्चर्य थयु. अरिमर्दन राजाओ प्रधानोनी शोध करावी, पण कंइ पत्तो मळया नहीं. शीलावतीना घेर जई, तेनी खबर काढवान राजाओ नक्की कयु. अटले राजाओ विनोदमां अजितसेनने पोताने घेर हजी सुधी जमवा न बोलाववा अंगे टोक्यो. शीलवतीनी सलाह-सूचनाने अनुसरी अजितसेने राजाने पोताने घेर जमवानु आमंत्रण आप्यु. प्रधानोनी 'भाळ' मळशे अम विचारी राजा पण सपरिवार भोजन अर्थे आववानु स्वीकार्यु राजाओ । चर 'ने गुप्तपणे अजितसेना घेर मोकली भोजननी केवा प्रकारनी तैयार करी छे तेनी तपास करावी. पण आश्चर्य साथे पाछां फरेला "चरे" जणाव्यु के त्यां भोजननी काई पण जातनी तैयारी नथी. राजाने आधी विस्मय थयु. पण आखरे ते सपरिवार भोजन करवा अर्थे अजितसेनने त्यां आव्यो, For Personal & Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शीलवती चार प्रधानाने रसोइ पूरी पाडता यक्ष बनाव्या शीलवतीए भोजननी सर्व सामग्री तैयार करावी. पछी खाडामां पडेला चार प्रधानाने शीलवतीए कहा, “ जो हु जे रीते कहु ते रीते तमे करवा तैयार हो तो तमने हु बहार काढु. ” प्रधानो तेभ करवा कबुल थया. अटले चोरने बहार काढीने स्नान करावी, चारेना शरीर विकराळ लागे एवी रीते चंदन बडे चितरी तेमने यक्ष जेवा बनाव्या अने कहयं, "राजा जमवा आवे त्यारे ओरडामाथी सर्व रसाइ जेम मागु तेम तेम लई आववी अने पीरसवी.” राजा सपरिवार अजितसेनना घेर आवी जमवा बेठो. शीलवती यक्षाने जेम जेम आज्ञा करती गई, तेम सर्व वस्तुओ यक्षो द्वारा पीरसाती गई. राजाओ विचार्यु-आ चार यक्षा शीलवतीनी सर्व मागणी पूरी करे छे. आ यक्षा मारे त्यां होय तो केवु सार?" भोजनने अंते राजाओ अजितसेन पासे यानी मागणी करी. अजितसेने कहूय', "आ सर्व आपनु ज छे. तो आ 'यक्षनी' शी वात ! आ चार यक्ष हु आपने अवश्य आपीश, आप राजसभामां पधारो अने त्यां हु चार याने मंजूषामां मूकी मोकली आपुछु. तेने आप महोत्सव करी स्वीकारजो." राजा पोताने आवासे आवी राजसभामां बेटो. शीलवतीले चारे याने चार मंजूषामां पूरी, राजसभामां मोकलाव्या. राजसभामां मंजूषामांथी चार प्रधाननु लज्जास्पद परिस्थितिमां प्रगट थQ. घणा उत्सवपूर्वक चारे मंजूषा राजसभामां सर्व समक्ष उघाडवामां आवी, तो चार विकराळ आकृतिवाळा यक्षा बहार आया. राजा कंइक भयथी अने कंईक कौतुकथी ते चारेय आकृतिने नीरखी रह्यो. आंखना पलकारा इत्यादि मानव लक्षणो जोई राजाओ तेमने पूछयु "तमे कोण छो ?" पण लज्जाने लीधे तेओओ कंइ पण प्रत्युत्तर आप्या नहीं. आखरे वधु निरीक्षण करतां राजाओ चारे प्रधानने ओळख्या. राजाओ आ सर्व अंगे पृच्छा करतां तेमणे पोताना सर्व वृत्तान्त राजाने जणाव्या. पुष्कळ सर्व हकीकत जाणी राजाओ शीलबतीना शीलनी प्रशंसा करी. अने तेने बहुमानपूर्वक द्रव्य आप्यु. खंड ५ : मुख्य कथा मुनि धर्मघोष द्वारा उपदेश, पूर्वभव वृत्तान्त कथन अने दीक्षाग्रहण हवे अक वखते नंदननगमां श्री धर्मघोष मुनि पधार्या. अजितसेन अने शीलवती तेमने "वंदणा" करवा गया. मुनि घपिदेश आप्यो. धर्मापदेश ग्रहण कर्या बाद अजितसेने पोताना "पूर्वभव" विष पृच्छा करता मुनि कहयु के-"पूर्वे पुष्पपुरमां अक सुलश नामनेो वणिक अने तेनी पत्नी सुयशा रहेता हता. तेने धेर दुर्ग अने दुर्गा नामे दंपती सेवक हता. हवे एक वखते ज्ञानपंचमीने दिवसे सुयशा दुर्गाने साथे लई एक साध्वीजी पासे जाय छे. त्यां सुयशा "ज्ञानपंचमी"नी पूजा करे छे. ते जोइ दुर्गाओ ते अंगे साध्वीजीने पृच्छा करी. साध्वीजीओ तेने-'ज्ञानपंचमी"ना दिवसे "ज्ञानपूजा" करवाना महिमा समजाव्या. तेनु श्रवण करी दुर्गा कहूयु, "अमे सेवक आवी पूजा न करी शकीओ." ते सांभळी साध्वीले तेने "शील"नेा उपदेश आपतां कहूयु "शील व्रत पारवु ते चित्तने आधीन छे. तो सर्वपर्वनां दिवसे शील पाळवानु व्रत तु लई शके छे, अने परपुरुषनी इच्छा ना हमेशा त्याग करी शके छे." दुर्गाओ ए वतना स्वीकार कयो. अना पतिए पण परस्त्री त्याग अने पर्वामा स्वस्त्री.] त्यागनु व्रत स्वीकार्यु. आम धर्मनु पालन करता तेना "सम्यक्त्व" पाम्या अने पछी सौधर्म कल्पमां देव थया. त्यांथी च्यवी दुर्ग ते अजितसेन थयो अने दर्गा ते तारी स्त्री शीलवती थइ." पोतानो पूर्वभव सांभळी बन्नेने जातिस्मरण थत तेमणे "चरित्र" ग्रहण कयु".अने अम रहेता केटलेक वखते ते ब्रह्मदेवलोके देव थया. हवे त्यांथी च्यवीने कालक्रमे मनुष्यभवमा निर्मळ शीलवत पाळी शीलवती अने अजितसेन मुक्तिपद पामशे. For Personal & Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४. शृंगारमंजरी : शीलवती कथा-परंपरा प्रास्ताविक जैन कविओए अने साहित्यकारोए गुजरातमां कथासाहित्यनी एक आगवी परिपाटी जन्मावी छे अने पोषी छे. कवि जयवंतसूरिकृत 'शृंगारमंजरी' के 'शीलवतीचरित्र' अन्तर्गत प्राप्त थती 'शीलवतीकथा' आवी एक जैनकथा छे. शीलवतीकथा जैन कथासाहित्यमा व्यापकपणे प्रचार प्रसार अने प्रतिष्ठा प्राप्त स रस कथा छे. फलतः छेक संस्कृत - प्राकृतथी प्रारंभी अर्वाचीन गुजराती भाषा पर्यन्त कथा | विकास, विस्तार अने रूपांतरने सुरेख रीते आलेखी शकाय एटली सामग्री प्राप्त थाय छे. कवि जयवंतसूरिए आ परंपरागत प्राप्त कथा-सामग्रीमांथी प्रेरणा मेळवी कदाच प्रथमवार मध्यकालीन गुजरातीमां पोतानी प्रतिभा अने कल्पनाना सामर्थ्य अनुसार शुद्धि-वृद्धि करी तथा तेने पेताना युगां लोकमानस अने लेाकरुचिने अनुकुळ घाट अर्पी, पद्यात्मक स्वरूपमा स-रस वार्ता सरजी छे. कथा परंपरा : संस्कृत - प्राकृतमां शीलवती कथा प्राकृत भाषामां रचायेल श्री सोमप्रभाचार्य कृत, 'कुमारपाल प्रतिबोध' [ई.स ११५८ ] मां आपणे 'शीलवती कथा' पहेल प्रथम शीलवतनी दृष्टान्त कथा रूपे उपलब्ध थाय छे. आ कथा निरूपता केटलांक ग्रंथो आ पछी संस्कृत - प्राकृतमां प्राप्त थाय छे. एमां संस्कृत - प्राकृतमां रचायेल 'शीलेापदेशमाला' [वृत्ति - सोमतिलकसूरि, ई. स. १३३८] मां मळती ' शीलवतीकथा', प्राकृतसंस्कृतमां रचायेल ‘श्रावक प्रतिक्रमण - वंदितु सूत्र' [वृत्ति रत्नशेखरसूरि, ई. स. १४४० ] मां प्राप्त थती 'शीलवती कथा', प्राकृतमां रचायेल 'भरतेश्वर बाहुबलि' [वृत्ति शुभशीलगणि, ई. स. १४५३ ]मां मळती 'शीलवती कथा' हाल उपलब्ध छे. आ त्रणे ग्रंथो मुद्रित स्वरूपमां मळे छे. अर्वाचीन कालमां पण त्रणेक कथाग्रंथोमां 'शीलवती कथा' सांपडे छे. संस्कृतमां विजयलक्ष्मीसूरिकृत 'उपदेशप्रसाद' [ ई.स. १७८७ ] मां शीलवतना दृष्टान्त रूपे ' शीलवती कथा' मळे छे. संस्कृतमां रचायेल 'श्री शीलवती कथानक' [प्र. ई. स. १९२० ] मां स्वतंत्रपणे निरुपायेल 'शीलवती कथा' प्राप्त थाय छे. वळी संस्कृतमां रचायेल श्री अजितसागरसूरि कृत 'अजितसेन शीलवती कथानक' [प्र. ई.स. १९२८ ]मां पण पूर्वोक्ति ' शीलवती कथा' ज निरूपायेल छे. गुजराती मां शीलवती कथा प्राचीन - मध्यकालीन गुजरातोमां पण आ ' शीलवती कथा' आलेखती केटलीक कृतिओ प्राप्त थाय छे. सौथी प्राचीन कृति ते कवि जयवंतसूरि कृत 'शृंगारमंजरी' ने गणावी शकाय. त्यार बाद मुनि देवरत्न कृत 'शीलवर चुपड़ मां [ ई.स. १६४२ ]मां प्रायः आ कथा मळे छे. आ पछी सात वर्षना ट्रंका गाळामां मुनि दयासागर कृत 'शीलवती चउपई' मां [ई.स. १६४९]मां पण आ 'शीलवती कथा' ज आलेखाइ छे. त्यार बाद कवि कुशलधीर कृत 'शीलवती चतुष्पदिका' [ई.स. १६६६] आ कथा अंगेनेा ध्यान खेंचे एवो सुंदर प्रयत्न छे. जिनहर्ष कृत 'शीलवती रास प्रबंध' [ई.स. १७०२ ] पण आ कथा निरूपती एक समृद्ध कृति छे. अर्वाचीन समयमां पण आ कथा आलेखवाना प्रयत्ना थया छे. अमां 'श्री जैन साळ सती चरित्र' [ ई. स. १९३९]मां एक सती तरीके 'शीलवतीनी कथा' मळे छे. तेमां आ कथानुं अर्वाचीन स्वरूप सांपडे छे. आम ई.स. ११५८थी आरंभी आज पर्यन्तना लगभग ८००-९०० वर्षना सुदीर्घ विस्तारी फलक पर आ कथाने विकास के विस्तार थयेले। जोइ शकाय छे. जे प्रस्तुत कथानी जैन साहित्य-समाजमांनी लोकप्रियता सूचक छे. For Personal & Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५. शृंगारमंजरी कथाः एक लोककथा तरीके एनी कथासामग्रीना लोकतात्विक [Folkloric] दृष्टिए अभ्यास प्रास्ताविक पूर्वे आपणे 'शृंगारमंजरीचरित्र रास'ना कथानकनी रूपरेखा संक्षिप्तमा जोइ गया छीओ, आनी कथा सामग्रीको अभ्यास करतां तेने स्पष्ट पणे त्रण खंडमां विभक्ति करी शकाय अम छे. 'शृंगारमंजरीनी कथा'मां प्राप्त थती 'शीलवती कथा'नी मुख्य कथा मूळे बे स्वतंत्र कथानी बनेली होय अम लागे छे; अना पूर्वार्धमांमां 'श्रेष्ठीपुत्रनी शकुनरूतज्ञ बुद्धिमान पत्नी'नी कथा सांपडे छे. जेमा 'पशु-पंखी. नी भाषानु ज्ञान', 'गुढार्थ उक्तिकथन', 'राजा अने बुद्धिमान मंत्री', 'समस्या पृच्छा' जेवा कथा. प्रकृति के कथाघटकना समावेश थाप छे. अनां उत्तरार्धमा पतिव्रता पत्नी अने फसावेला आशका' नी कथा मळे छे. जेमा 'शोल-प्रतीक', 'फसावेल आशका' जेवा कथाघटको प्राप्त थाय छे. बळी अपतिव्रता पत्नीना दृष्टांत लेखे मळती पातालसुंदरी कथा' नामनी आङकथा पण मूळे स्वतंत्र लोककथा छे. जेमां पतिथी प्रच्छन्न प्रेमी के परपुरुष साथे संग करनार परपुरुषासक्त प्रमदा', पति के प्रेमीने मरिता आदिमां गबडावी दइ अन्य पुरुष साथे पलायन थनार प्रमदा' इत्यादि जेवा कथाघटका मळी आवे छे. शंगारमंजरी कथा : कथाप्रकृति : कथाघटको आम 'शृंगारमंजरीकथा'नी कथासामग्रीने नीचे मुजब त्रण खंडमां विभक्त करी शकाय : (१) श्रेष्ठीपुत्रनी शकुनरूतज्ञ बुद्धिमान पत्नीनी कथा (२) पतिव्रता पत्नी अने फसावेल आशकानी कथा (३) अपतिव्रता (बेबफा) पत्नीनी कथा. आ वणेय कथा-खंडमांथी अनुक्रमे नीचे मुजब कथाप्रकृतिओ के कथाघटका तारवी शकाय : (१) श्रेष्ठीपुत्रनी शकुनरूतज्ञ बुद्धिमान पत्नीनी कथान्तर्गत कथाप्रकृतिओ के कथाघटको १. पशु-पंखीनी भाषानु ज्ञान : शकुनरूत (Knowledge of Animal language, कथाघटक-सूची क्रमांक 'बी' २१६, कथाप्रकृति क्रमांक ५१७, ६७०-६७११) (अ) मध्यरात्रिए शियालनी लाळी अने तदानुसार द्रव्यप्राप्ति (कथाघटक-सूची क्रमांक _ 'अन' ५४७) (बी) शकुनवाणी द्वारा भूमिगोपित धननिधि अंगे सूचना अने तदानुसार धनप्राप्ति (कथाघटक-सूची क्रमांक 'अन' ५३७) २. गूढार्थ उक्तिकथन : उपलक दृष्टिए अर्थहीन भासती उक्तिओ ( अथवा कार्य )नु लाक्षणिक रीते अर्थघटन करता अर्थपूर्ण नीवडे (कथाघटक-सूची क्रमांक 'अच' ५८०) ३. नृप अने धीमान मंत्री : (धीमान मंत्रीपत्नी)-कथाघटक (सूची क्रमांक 'अच' ५६१.५) मंत्रीनी नियुक्ति अर्थे कसोटीरूप कोयडाओ ४. समस्यापृच्छा (Riddles, कथाघटक सूची क्रमांक 'अच' ५३०-५९९. १ अत्रे सर्वत्र एस. टोम्पसनना ‘घी फोकटेल' तथा ' मोटिफ इन्डेक्ष ओफ फोक लिटरेचर, १-६' नामना ग्रंथोमां आपेल वर्गीकरण अनुसार कथाप्रकृति के कथाघटकना क्रमांकनो निर्देश को छे. For Personal & Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३९) (२) पतिव्रता पत्नी अने फसावेला आशकोनी कथान्तर्गत कथाप्रकृतिओ के कथाघटको __५. शील-प्रतीक (Chastity Index, कथाघटक-सूची क्रमांक एच' ४३०, कथाप्रकृति क्रमांक ८८८). ६. फसावेल आशका (Entrapped suitors, कथघटक-सूची क्रमांक 'के' १२१८.१.१ -'के' १२१८.३ कथा प्रकृति क्रमांक १७३०). (३) अपतिव्रता पत्नीनी कथान्तर्गत कथाप्रकृतिओ के कथाघटको ७. कुंवारी कन्या के स्त्री के पत्नी के प्रियतमाने भूमिगृह के मीनारा के अन्य स्थानमा पुरुषपरिचयथी विभुख राखवाना हेतु अर्थे केद राखवी (कथाघटक-सूची क्रमांक 'टी' ३८१-कथाप्रकृति क्रमांक ३१०, ५१६). ८. भूमिमार्ग के सुरंग वाटे रक्षित कन्या के सी के पत्नी के प्रियतमाना मिलन अर्थ गमन अने एनी साथे रमण (कथाघटक-सूची क्रमांक 'के' १३४०-'के', १३४४.१०, 'के' १३४९-१०, के' ३१५.०१ अने 'के' १५२३ ). ८. परपुरुष साथे रमण करवा पति के प्रेमीना त्याग करीने के कोइ जलस्थानमां गबडावी दइने परपुरुष सह रमण करनार के पलायन थनार परपुरुषासक्त पत्नी (प्रमदा ) (कथाघटक-सूची क्रमांक 'के' '२२१३.२-'के' २२१२.३२, 'के' १२१३.५ तथा 'टी' २३५.५ कथा प्रकृति क्रमांक ६१२). [नेांध- उपर्युक्त कथाप्रकृतिओ के कथाघटकोनी क्रमानुसार सविस्तर चर्चा हवे पछी प्रगट थनार बीजा खंडमां रजू करवामां आवशे.] ६. 'शृंगारमंजरी' : एक रास तरीके मूल्यांकन कवि जयवंतरिकृत 'शृंगारम जरी चरित्र रास' अने अपरनाम 'शीलवती चरित्ररास' ए शीर्ष को ज दर्शावे छे अम, अक 'रास' छे. 'रास'ना स्वरूप-प्रकार अंगे आ पूर्वे सारा प्रमाणमां चर्चा-विचारणा थई चूकी छे. 'रास' स्वरूपना विविध अंग उपांगोनी चर्चा हो. हरिवल्लभ भायाणी', डा. भोगीलाल सांडेसरा, २ डो. चंद्रकान्त महेता, श्री. डोलरराय मांकड', श्री. के. का. शास्त्री,५ श्री. अनंतराय रावल,' डा. मंजुलाल मजमुदार, श्री. का. ब. व्यास, १ डो. हरिवल्लभ भायाणी, गुजराती साहित्य परिषद पत्रिका, प्राचीन रास काव्यो, फेब्रु मार्च. १९४७, पृ. ७. २ डो. भोगीलाल सांडेसरा, संशोधननी केडी, अभदाबाद, १९६१, पृ. २७९ ३ डो. चंद्रकान्त महेता, मध्यकाळना साहित्य प्रकारो, मुंबई, १९५८, पृ. ३०७-३७८ ४ श्री. डोलरराय मांकड, गुजराती काव्य प्रकारो, १९६४, पृ. ११८ ते पछीनां ५ श्री. के. का. शास्त्री. आपणां कविओ, अमदावाद, १९४२, खड-१ पृ. ११३-१५४ ६ श्री. अनंतराय रावल, गुजराती साहित्य (मध्यकाळ) मुंबई, १९६३, पृ. ३८-३९ ७ डो. मंजुलाल मजमुदार, गुजराती साहित्यनां स्वरूपो, वडोदरा, १९५४ पृ. ६८-७८ ८ प्रो. का. ब. व्यास, वसंतविलास, मुंबई, १९४२, पृ. ३७-४६, For Personal & Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) . श्री हीरालाल कापडिया९. श्री भारती वैद्य१० इत्यादिले तेमज हिंदीमा डा. दशरथ ओझा, विश्वनाथ त्रिवेदी १२ इत्यादि करी छे. आ बधी रासना स्वरूप अने बंधारण विषेनी चर्चा-विचारणाना संदर्भमा 'शृंगारमंजरी' एक रास तरीके मूलवणी आ प्रमाणे करी शकाय. (१) रासनो प्रारभ सामान्य रीते सरस्वती देवी के तीर्थंकर के गुरुनी वंदनाथी थतो. तदानुसार कवि जयवंतसूरिए पण काव्यनो प्रारंभ सरस्वतीने प्रणाम करीने का छे. चंद्रवदनि चंपकवनी, चालती गजगत्ति, मयणराय-मंदिर जिसी, पय प्रणमू सरसत्ति. १ आ पछी कवि अलंकारमंडित वाणीमां सरस्वती देवीन वैभवी वर्णन आपे छे. सेोविन-चूडि करि धरि, उर वरि, नवसर-हार, खलकित साविन-मेखला, पयि झांझर झमकार. २ वेणी-दंड प्रचंड से, जिसु शेष-भुयंग, अंग अनग अभंगनु, नाग सुरंभ समग. ३ अने त्यार बाद कवि गुरुने प्रणाम करता कहे छे. सहिगुरु चरण नमूनिसि-दीस, जेहथी पहुचई सकल जगीश, जेहथी लहीई धर्म-विचार, सकलशास्त्र सद्गुरू आधारि. १० वळी कविओ पोताना गुरू अने गच्छ विषे माहिती आपतां जणाव्यु छे के, वडतपगछि अति महिमावत, श्री विनयमंडन उवझाय महंत, शीलिं थूलीभद्र सरसति बुद्धि, गौतमनी परि लब्धि प्रसिद्वि. १४ वळी कबिओ का व्यार'भमां ज कवनना वस्तुनो निर्देश को छे. जेमकेते सहिगुरूना प्रणमी पाय, जयवंतसूरि अक चित्तई थाई, ग्रंथ करुं शृंगारमंजरी, बोलू शीलवतीनू चरी. १७ ___ आम आपणे उपर जोय तेम कविओ रासना प्रारभमां सरस्वतीने प्रणाम करी ते पछी गुरूने प्रणाम करी, ते पछी गुरू अने गच्छनी माहिती आपी छे. वळी काव्यना विषयनो पण निर्देश को छे जे 'रास'ना लक्षणने अनुरुप छे. (२) सामान्यतः रासना अंते काव्यपठननी फलश्रुति, कविना गुरु अने गच्छनी माहिती तथा कविनो स्वल्प परिचय आपवामां आवतो ते प्रमाणे अत्रे कवि जयवंतसूरि पण काव्यना अंते शीलनेा महिमा गाता कहे छे. दिनि दिनि उदय हुइ घणउ, सघलइ जय जयकार, ओ सवि महिमा शीलनु, मानइ सवि भूपाल. २४०१ शीलवती चरित्र करी, सधलई वखाणिउ शील, भवीयण पालु एक मनि, जिम पामु सुख-लील. २४०२ ९ प्रो. हीरालाल र. कापडिया, श्री. जैन सत्यप्रकाश, अमदावाद १९४६. १० डो. दशरथ ओझा अने दशरथ शर्मा, रास अने रासान्वयी काव्य, वाराणसी १०४०, प.१-९२ ११ भारतीय वैद्य, मध्यकालीन राससाहित्य, मुंबई, १९६६, पृ ६५-१०६ १२ अब्दुल रहेमान कृत, संदेश रासक, संपा. हजारीप्रसाद द्विवेदी तथा विश्वनाथ त्रिपाठी, मुंबई, भूमिका, १९६०, पृ. १-१३ For Personal & Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) घळी काव्यान्ते कविए पोताना गुरु अने गच्छनी परंपराने जेमके ... वृद्धतपापक्ष जाणीई, श्री रत्नाकर गच्छ. कल्पलता जिम वाघती, हीसई जिहां गुण-गच्छ श्री तपगच्छ उघोतकर, श्री विजयरत्नसुरिंद जिन सुरपति सूर वृंदमां जिम ग्रह- गणनां चंद X X X पोताना परिचय आपता कवि जणावे हे पण विस्तारथी वर्णवी छे २४०५ श्री विनय मंडन गणींद्रनु, लघु सीस भूमि प्रसिद्ध, जयवंत पंडित अभिनवी, शृंगार मंजरी किद्ध, २४२२ वळी कवि कृतिनो रचनाकाळ नीचेनी पंक्तिओमां ताथी निर्देश्यो छे. संवत से|ल चउदोत्तरो, आसो सुदि गुरु बीज, कीधी शृंगार मंजरी, जयवंत पंडित हेजि. २४२४ आम कविए काव्यांते आ सर्व माहिती आपी रासना ते लक्षणने जाळब्युं छे. २४०६ (३) पंदरमी सदी पछी रासनेा विस्तार वधता तेना विभाग पाडवानी पद्धति प्रवेसी हती ते प्रमाणे २४२४ कडी संख्यानो विस्तार वरावती प्रस्तुत कृतिने ५० जेटली जुदी जुदी 'ढाल' मां विभक्त करी छे. ( ४ ) रासनी रचना गेय एवी 'देशी' मां थती तदानुसार प्रस्तुत ' शृंगारमंजरी' मां कविए जुदी जुदी अनेक देशीओ प्रयोजी छे. (५) रासनी रचना प्राय: दूहा, चोपाई, तोटक इत्यादि छंदोमां करवामां आवती, अहीं तेज प्रमाणे कवि जयवंतसूरि प्रथमवार अने प्राचीन गुजरातीमां रुचे छे ते अनी विशेषता छे. (६) कोई पण सिद्धांत के व्रतना प्रतिपादन अर्थे सामान्य रीते रासनी रचना थती ते प्रमाणे अत्रे कवि जयवंतसूरिओ पण शीलवतन। महिमागान अर्थे प्रस्तुत रासनी रचना करी छे. (७) विषय परत्वे जोइओ तो रासनेा विषय शीलवतीनु चरित्र आलेखवाना छे. आम तो कविना हेतु शीलने महिमा दर्शाववाना छे अने ते माटे शीलवतीना चरित्रनुं निरूपण करे छे. कविए आ कथानुं वस्तु जैन परंपरामां प्रख्यात एवी शीलवतीनी कथामांथी लीधुं छे. आ कथा आपण सर्व प्रथम प्राकृत ग्रंथ 'कुमारपाल प्रतिबोध' अन्तर्गत शीलने। महिमा वर्णवता अक दृष्टान्त लेखे प्राप्त थाय छे। अने पछी ते संस्कृत, प्राचीन गुजराती भाषानां कथा ग्रंथोमां मळी आवे छे. कवि जयवंतसूरि प्रथमवार गुजरातीमां रचे छे ते एनी विशेषता छे. For Personal & Private Use Only (८) धर्मोपदेश के धर्मप्रचार में जैन रासनु प्रधान लक्षण हतुं तदानुसार अत्रे पण कवि जयवंतसूरिए शीलनेो महिमा गाई अंते वैराग्यना बोध आप्या छे. आम 'शृंगार मंजरी' रास स्वरूप विविध लक्षणो धरावती होई तेने आपणे 'रास' कहीशु. ६ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समालोचना 'शृंगारमंजरी' अन्तर्गत प्राप्त थती 'शीलवती कथा' पूर्व नेांध्यु छे अम जैन साहित्यमां व्यापकपणे प्रचार-प्रसार अने प्रतिष्टा पामेली कथा छे. कवि जयवंतसूरि प्राय: प्रस्तुत परंपरानुसारी कथा-सामग्रीने अपनावी पहेल प्रथम मध्यकालीन गुजराती भाषामां एक 'रास' कृतिनी रचना करी अने सुंदर पद्यात्मक स्वरूप अपें छे. कथावृत्तान्त तेनी नानी-मोटी विगतोमां परंपराथी रूढ थयेलु होवाथी कथावस्तु पुरतो तो मौलिक कल्पना के संविधाननी दृष्टिले कथावस्तुने शणगारवानी बाबतमा, वर्णनेने रस-निरूपणनी बाबतमां, तेम ज मनगमता प्रसंगाने बहेलाववानी बाबतमां कविने पुरतो अवकाश रहे छे. कवि जयवंतसूरिए आवा दरेक प्रसंगोना लाभ लईने पोतानी प्रतिभा अने सामर्थ्य अनुसार एना वस्तुसंकलना, पात्रालेखन, भावनिरूपण, वर्णनालेखन, अलंकारयोजना जेवां पासाओमां कुशळता दर्शावी छे. अने अक स-रस रास कृति बनाववाने। सफळ प्रयास को छे. पण एक प्रकारना नियत दाळामां ढळायेली जैन परंपरानी 'शीलवती कथा'ने प्रथमवार मध्यकालीन गुजराती भाषामां अवतारवान होई आ कृतिमा केटलीक मर्यादाओ जोवा मळे ते स्वभाविक छे. 'शृंगारमंजरी'नी वस्तुसंकलनानी दृष्टिए समीक्षा करता आम कही शकाय. कवि जयवंतसूरिसे रासना प्रारंभ परंपराने अनुसरीने सरस्वती देवीनी स्तुति करीने स्तुत्यामक मंगलाचरण करीने] को छे. कवि सरस्वतीने प्रणाम करता कथे छे: चंद्र-वदनि चक-वनी, चालंती गजगत्ति, मयणराय-मंदिर जिसी, पय प्रणमूसरसति. १ त्यारबाद कवि अलंका रमंडित वाणीमां सरस्वती देवीनु वैभवी वर्णन आपे छे. आ वर्णनमां रूढ उपमा उत्प्रेक्षाओ ठीक ठीक छे, छतां उचित शब्द पसंदगी अने लयना कारणे एक प्रकारनी अभिनव चारुता जोवा मळे छे. (कडी २-८) कवि अत्रे कंइक विस्तारथी सरस्वती देवीना रूपशणगारनु वर्णन करी एने वंदना अपे छे. ते सहिगुरुना प्रणमी पाय, जयवंतसूरि एक चित्तइ थाय, ग्रंथ कर शृंगारमंजरी, बोलु शीलवतीनू चरी. १७ आटली मंगळाचरण अने वस्तुनिर्देशात्मक पूर्वभूमिका रची कवि नंदननगरना वर्णनथी कथानो प्रारंभ करे छे. नंदनगरनु वर्णन संपूर्णता आणवाना प्रयासरूप प्रायः ७४ पंक्तिओमां विस्तायु छे. [कडी ४२-५९] पछी नंदननगरना राजा अरिमर्दनना परिचय, ते नगरमां वसता रत्नाकर अने तेनी भार्या 'श्री'नो परिचय, दंपतीनी अपुत्रक स्थिति अने ते अंगे दु:ख अने चिंता, देवीनी आराधनाथी पुत्र प्राप्ति, बारमे दिवसे नाम-महोत्सव करी पुत्रनु अजितसेन नामाभिधान, अजितसेननी विद्या. For Personal & Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) संपादना अने यौवन-प्राप्ति, रत्नाकरनी एने योग्य कन्याप्राप्ति अंगेनी चिंता, एटलामां एना परदेश गयेला भित्रनु आगमन, मित्र द्वारा, पोते मंयगला नगरीना जिनदत्त अने शीलवतीनी लीधेल मुलाकातनु वर्णन, शीलवतीनु रूपवर्णन, पुत्रीना विवाहार्थे जिनदत्ते पददेशी मित्र साथे मोकलेल पुत्र जिनशेखर, रत्नाकर द्वारा जिनशेखर सह अजितसेनने शीलवतीने परणवा माटे मंयगला नगरी मोकलवो, अजितसेननु शीलवतीने परणीने स्वनगर पाछा फर इत्यादि, विगतो कवि अति संक्षेपमा तीव्र गतिमे वर्णवी जाय छे. जे कविनी वस्तुने लाघवथी रजू करवानी वस्तुसंकलनानी सूझ दर्शावे छे. आ पछी पण वातां तीन गतिए चाले छे. एकवार मध्यरात्रिए शीलवतीन शीयाळानुं लाणीनु उपश्रवण, तदानुसार पशुपंखीनी भाषाज्ञ शीलवतीनुं नदी किनारे जई त्यांना शब परथी पांच रत्ने। ग्रहण करवा, रत्ने लइने शीलवतीनुं गृहे आवी पूर्ववत् शय्यामां सूइ जवू, शीलवतीना आवरजवरथी जागृत थइ गयेलो अनो पति अजितसेनन एना शील अंगे शंकाशील बनवु अने सवारमा पिताने ते वृत्तान्त कहीने एने पियर मूकी आवव तैयार थq. से बाबतमा रत्नाकरनु संमत थQ अने तदानुसार रत्ना करनुं रथमां बेसाडीने शीलवतीने एना पियर मूकी आववा नीकळवू इत्यादि विगतांशी कविए सीधी वेगीली कथात्मक शैलीमां संक्षिप्तमां वर्णव्या छे. जे कविनी कथनकलानी शक्तिनु द्योतक छे. आ पछी रत्नाकर सह शीलवती रथमां बेसी पोताना पियर प्रति प्रयाणना प्रारंभ करे छे. ते वखते मार्गमां अनेक शुकन थाय छे. अत्रे कवि शकुनोनी एक विस्तृत यादी आदी आपी दे छे. (१४८-१६५) जो के आपणने आजे आ वस्तुसंकलनानी दृष्टिले योग्य न लागे पण ते वखतनो समाज आवा शुकन-अपशुकनमा विशेष विश्वास के श्रद्धा धरावतो हशे मे संदर्भमां आवी लांबी यादी आवे ते स्वभाविक छे. कवि फरीथी वस्तुप्रवाहमा वेग आणे छे. रत्नाकर अने शीलवतीने प्रवास, प्रवास मार्गमां उपस्थित विसंवादो, रत्नाकर अने शीलवतीनुं वटवृक्ष नीचे विश्राम लेवा बेसबु, त्यां करीरना वृक्ष पर बेठेला वायसनी वाणीनु उपश्रवण, पक्षी-पंखीनी भाषाज्ञ शीलवती द्वारा अने उपालभ देवो इत्यादि कथाविगत कवि तीव्र गतिथे आलेखे छे पण पछी कवि वायसवाणीना गुण-अवगुण विषे, वायस अंगेना शुकन-अपशुकन अंगे शुकनशास्त्र प्राप्त दसेदीशाना शुकनो प्राय: २९ दूहभां (२१८-२४६) वर्णवे छे. ते स्थाने कवि शुकनावलि अंगेर्नु पोतानुं ज्ञान श्रोताना लाभार्थे ठालवी देता होय अम लागे छे, छतां ते प्रमाणभान दाखवे छे. बादमां काव्य फरी वेग पकडे छे. शीलबतीनो वायस साथेनो संवाद सांभळी रत्नाकरनी ते अंगे पृच्छा, पृच्छाने अंते प्राप्त माहिती अनुसार वृक्ष नीचेथी दश लाखनो निधि प्राप्त करवो इत्यादि प्रसंगो कवि अति संक्षिप्तमां शीन्न गतिए आलेखी जाय छे. जो के आनी मध्यमां पण कवि सामान्यज्ञान निर्देशक दूहाओ आपवानी वृत्ति रोकी शकता नथी (३२८-३२७) ते पछी कवि कथाविगतने झडपथी निरूपता काव्यने आगळ धपावे छे. शीलवतीने पाछी फरेली जोई अजितसेने करेल काप, रत्नाकरे शीलवतीना पूर्व कार्य अंगे करेलो खुलासो अने पंदरकाटी द्रव्य प्राप्तिनी लाभनी कहेल वात, ते सांभळी अजितसेनना कोपनी शांति थवी, रत्नाकर अने अजित. सेननुं शीलवतीने पूर्व करेली भूल बावत 'खमाववु' इत्यादि प्रसंगो कवि शीनगतिले मात्र ३० कडीमां [३४६-३६६] आपी दे छे जे कविनो प्रमाणभान के सयमना गुणने सूचवे छे. अही कथा प्रवाहनो अक तबको पूरी थाय छे. For Personal & Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) आ पछी वार्ता मंथरगतिए आगळ बघे छे. अजितसेन-शीलवती आनद-विनोद अर्थ समस्याबाजी करे छे. अत्रे आपणने सोएक कडीमां [३६५-४६२] विविध प्रकारनी अॅसी जेटली समस्या मळे छे. अत्रे कथाप्रवाह लगभग थंभी जाय छे. पण समस्याबाजी तत्कालीन जमानामां खूब लोकप्रिय होई आम बनवु स्वाभाविक छे. रत्नाकरन मृत्यु थतां अजितसेन अने शीलवती गृहपति अने गृहस्वामिनी बने छे. मधु मासन आगमन थता अजितसेन अने शीलवती वसंतविहार अथे अन्य युवाद स्त्री पुरुषो साथे वनमां जाय छे. कवि अत्रे युवान-स्त्री पुरुषना विविध विलास अने वसंतना आगमने प्रकृतिमा जे उल्लास प्रसरे छे अनुं कलात्मक रीते विस्तारथो आलेखन करे छे. ढूंकमां कहीए तो कवि अत्रे एक फागु काव्यनी ज रचना करी छे. वस्तुसंकलनानी दृष्टिले अहीं कथाप्रवाह साव मंद-लगभग स्थिर थई गयेलो लागे पण मध्यकालीन रासोमां आवं प्रकृति निरूपण एक अनिवार्य लक्षण होई तेम बनवू सहज छे.. ___ आ पछी कथा प्रबाह पाछो शीघ्र गतिथे चाले छे. अजितसेनने शीलवती द्वारा उद्यम अने उत्कर्ष अर्थ राजसंपर्क साधवानी सूचना आपवी अने तदानुसार अजितसेननु नित्य राजसभामां जवु, राजा अरिमर्दनने राजसभामा ४९९ मंत्री होवा, राजानी पांचसोमो मुख्य मंत्रीनी नियुक्ति करी राजकाजना भारमाथी मुक्त थवानी इच्छा, मुख्य मंत्रीनी नियुक्ति अर्थ एनी बुद्धि चातुर्यनी कसोटी करवा राजसमा समक्ष कोयडाओ रजू करवा, राजा द्वारा रजू थयेला 'हस्तीतलिन' अने 'चरणप्रहार'ना कोयडाओनो अजितसेने शीलवतीनी सलाहसूचनथी सूचवेला साचा उकेलो, बुद्धिप्रभावथी प्रसन्न थयेला राजा द्वारा अजितसेननी मुख्यमंत्री तरीके निमणूक करवी तथा राजा समक्ष उपस्थित थयेल 'दीन-धूत'ना केोयडानो अजितसेने सूचबेल साचो उकेल इत्यादि कथांशो कवि ओक पछी एक अविरत गतिऐ निरुपी जाय छे. जे कविनी प्रसंगोनी रजु करवानी कुशल. तानी शक्तिने सूचवे छे. आ पछी कवि संक्षिप्तमां शीलवती द्वारा पोताना शील साथे संकळायेल अम्लान कमल शील-प्रतीक आपवाना प्रसंगर्नु निरुपण करे छे. आ पछी पाछो कथा प्रबाह मंदगतिए चाले छे. कवि आ पछी नवदंपती अजितसेन अने शीलवती बच्चेना प्रणय अने प्रणयकलहन कंईक विस्तारथी आलेखन करे छे. आ पछी राजा अरिमर्दन अजितसेनने युद्धार्थे पोतानी साथे आववानी आज्ञा करे छे. अहीं कथा कईक जुदो ज वळांक ले छे. आ प्रसंगनो कवि औचित्यपूर्वक विनियोग करी अजितसेनने शीलवतीना पडनार विरहना प्रसंगनं आलेखन करे छे. आवी पडनार विरहना ख्यालथी व्याकुळता अनुभवता अजित. सेननी व्यथा-वेदनाने कवि विस्तारथी आलेखे छे. जेमां कविनी उत्कट भावालेखननी शक्तिना दर्शन थाय छे. व्यथित अजितसेनन गृहे आवयु, अनी आवी व्यथित स्थिति जोईने ते अंगे शीलवतीनी प्रच्छा, अजितसेने राजानी आज्ञानु करेल कथन, कथनना श्रवण मात्रथी शीलवतीनं बेभान थई जव, अजितसेननु शीलवतीने जाग्रत करी आश्वासन आप इत्यादि प्रसंगो कवि नाट्यात्मक रीते आलेखी जाय छे. अजितसेन शीलवती पासे विदाय लेवा जाय छ, ते प्रसंगे कवि दंपतीना परस्परना स्नेहनी उत्कता, अकबीजानी अनुपस्थितिमा उपस्थित थनार विरहनी व्याकुळतानु विविध उपमा, उत्प्रेक्षा अने दृष्टान्तनी परंपरा योजी विस्तारथी वर्णदे छे. केटलाक स्थाने कवि जयवंतसुरिने। For Personal & Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) परिचय थाय छेपण कथानेा प्रवाह अत्रे लगभग स्थगित थई जाय छे, जे अत्रे कवित्वनेा उन्मेष प्राप्त थाय छे ते अपेक्षाओ क्षंतव्य छे. शीलवती अजितसेनने विदाय आपी आंसु सारती पाछी फरे छे. अत्रे कवि विरहिणी शीलवतीनी हृदयनी व्याकुळताने सुरेखताथी आलेखे छे. ओमां कवि विरहनी मूक वेदनाथी आरंभी काळझाळ पीडा सुधीनी स्थितिने अभिव्यक्ति अर्पे छे. आ आलेखन कंईक प्रस्तारी [ २७३ - ११११] बन्युं छे. कथाप्रवाह लगभग थंभी जाय छे. पण कवि विरहणी शीलवतीनी मानसिक विहवळताने विकळतानु जे वर्णन करे छे ते शीलवतीना आंतरमानसनी स्थितिने छती करे छे. अत्रे केटलाक स्थाने शुद्ध कवितानु पण दर्शन थाय छे. जे अनुपम भावनिरूपणनी कविनी मनोरम कलाशक्तिना पूरता परिचय आपी शकवा समर्थ छे. आ पछी कथाप्रवाह गति पकडे छे सैन्य आगळ प्रयाण करी ओक जग्याओ विश्राम ले छे. त्यां अजीत सेन पासे अम्लान पुष्प जोईने राजानी ते अंगे पृच्छा, अजितसेन द्वारा राजाने शीलप्रतीक अंगे सर्व हकीकत जाण्या पछी राजाना मनमां शीलवतीना शील अंगे उपस्थित थयेल शंका, अने आनी चर्चा विचारणा अथे पोताना चार मंत्रीओने बोलावी तेओने आ सर्व बिना जणाववी, मंत्रीओ द्वारा पण स्त्रीनी चंचळता पर टीका करी शीलवती अने शील- प्रतीक परत्वे शंका उपस्थित arat अने स्त्रीओ केवी अविश्वासपात्र होय छे. ओवी पोतानी दलीलना समर्थन मां 'पातालसुंदरी' नी 'स्त्रीचरित्र निरूपती उपकथा कहेवी इत्यादि कथांश कवि अक पछी एक शीघ्र गतिले रजू करे छे. पण मुख्य कथाप्रवाह मध्ये आवती उपकथा खासी साडीसातसा [१३१८ - २०५९ ] कडी राके छे. जेथी मुख्य कथाना प्रवाह ( छेक २०५९ कडी पर्यन्त ) रोकाइ जाय छे. वस्तुसंकलननी दृष्टि आ थोडोक प्रमाणभंग लेखाय, पण जैन रास साहित्यमां आ वस्तु सामान्य गणावी शकाय अम छे. आ कथा आपवानुं कथागत प्रयोजन तो राजा अरिमर्दन मनमां शीलवतीना शील अंगे शंका उपस्थित करवानुं छे पण साथे साथे अक कथामां बीजी कथा आपवानो अने ते द्वारा अकी साथे बे कथा आपवानी तक कवि झडपे छे. वळी कविओ शीलवतीना शीलगुणने आवी व्यभिचारी स्त्रीनुं पात्र रजू करीने कविए शीलवतीना शील गुणने वधु ओप आप्यो छे. जे कविनी वस्तुसकलना अने पात्रालेखननी साची सूझनुं दर्शन करावे छे. आम उपकथा पण मुख्य कथाने सारी रीते उपकारक नीवडे छे. आ पछी कथाप्रवाह पूर्ण वेगे आगळ वधे छे राजाना आदेश अनुसार चारेय मंत्रीओनुं शील - खंडन अर्थे शीलवती समीप आववु चारेय मंत्रीओ द्वारा दुतीओ मारफत शीलवतीने भोगेच्छा अंगे संदेशो मोकलवो, शीलवती द्वारा चारेय मंत्रीओने रात्रिना जुदा जुदा प्रदेरे पोताना गृहे आववानो संकेत आपवो, संकेतानुसार ओक पछी एक आवता मंत्रीने वाण विनाना पर्यंनी प्रयुक्ति वडे गृहना उंडा गर्तमा गबडावी देवा इत्यादि कथा विगतो कवि झडपथी आपी जाय छे, जो के आनी बच्चे बच्चे कवि दूतीना प्रकारों अने तेना कार्य अंगे तथा परदारागमनना दोष अंगे दूहा द्वारा निरूपण करे छे नांधव जोईओ. आ पछी कथावेग कईक मंद पडे छे. वर्षानुं आगमन थता विरहिणी शीलवती जे जे व्याकुळता अनुभवे छे भेनी वर्षाऋतुना वर्णननी पोटिकामां सुंदर रीते अभिव्यक्ति करे छे. पछी अजितसेन शीलवतीने पत्र लखे छे जेमां कवि अजितसेनना शीलवती प्रत्येना उत्कट अनुरागने वर्णवे छे. शीलवती आना प्रत्युत्तरमा पत्र लखे छे, जेमां कवि शीलवतीना हृदयना अटपटा For Personal & Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावाने, एनी विरह व्यथाने, मिलननी झंखनाने कुशळताथी निरुपे छे. जेमां केटलीक जग्याओ कविनी कवित्व शक्ति नां पण दर्शन थाय छे. अरिमर्दन अने अजित सेनन युद्धमां वैरीना पराजय करीने पाछा आवद्यु, अजितसेननुं गृहे आगमन अने अजितसेन अने शीलवतीनुं मिलन, शीलवती द्वारा चारेय मंत्रीओ अंगेनो सर्व वृत्तान्त अजित सेनने जणाववो इत्यादि विगत कवि तीन वेगे जणावी जाय छे. राजा अरिमर्दन पोताना चारेय मंत्रीओनी करेली निष्फळ शोध, बादमां अरिमर्दन राजानु मंत्रीओनी शोधार्थ अजितसेनना गृहे भोजन निमित्ते आववं, शीलवती द्वारा चारेय मंत्रीओने रसोइ अर्पता 'यक्षो' तरीके रज करवा, अनाथी प्रभावित थयेला राजा द्वारा ‘यक्षो'नी मागणी करवी, अजितसेन द्वारा चारेय मंत्रीओने एक काष्टमंजूषामां पूरी राजसभामां रवाना करवा, राजसभामा चारेय मत्रीओर्नु हास्यापद स्थितिमा 'छता' थवु, सर्व वृत्तान्त जाणी राजाने शीलवतीना शीलनी खातरी थवी, शीलवती द्वारा चारेय मंत्रीओ पासेथी पूर्फ लीधेल धन पार्छ आपवु अने तेओने परस्त्रीनेा नियम' आपवो इत्यादि विगतो कवि संक्षिप्तताथी रजु करीने काव्यने झडपी अंत तरफ दोरी जाय छे. वच्चे कवि क्यांय थोभता नथी. आ पछी कवि शीधताथी काव्यने आटोपी ले छे. नगरमां धम घोप मुनिनु आगमन थतां अजितसेन अने शीलवतीनुं अनी वंदनार्थे जवु, अजितसेन वडे पृच्छा करात। मुनिनु अजितसेन अने शीलवतीना पूर्वभवन श्रवण करवाथ। 'जाति स्मरण' थता बन्नेन चारित्र ग्रहण करव, अंते बन्नेनुं बह्मलोकगमन...अम झडपथी काव्यनो अंत आणे छे. काव्यान्ते कवि शीलनी प्रशसा करी, गुरु अने गच्छनी परंपरा वर्णवी, ग्रंथनी प्रशंस्ति करी काव्यनो समाप्ति करे छे. __शृंगारमंजरीनी पात्र सृष्टि विविधताभरी छे. अमां स्त्रीओ छे. पुरुषो छे अने पशुपंखी जगतनां पात्रो छे. जयवंतसूरि जेटला कथा प्रवाह परत्वे सजाग छे, एटला पात्रनिरूपण परत्वे नथी एम पण क्वचित् लागे छे. कथाना प्रसंगोमां ने रीते पात्रो असतां आवे छे ते रीते ते अमने उपसवा दे छे. ए अंगे काई कारीगरी के कसब विशिष्ट रीते ते प्रयोजता नथी. पण तेम छता केटलाक स्थाने कथा-प्रसंगोमां एमना कवित्वना विनियोग थयेला छे. त्यां त्यां पात्रनी रेखाओ तेजस्वी पण बनी छे. पात्रना हृदयनी सूक्ष्मवृत्तिनां विविध स्पंदन-गति इत्यादिन कविले सारु कही शकाय अवु आलेखन कर्यु छे. पात्रना भावनिरुपणमां कविना कवित्वना उन्मेष जोवा मळे छे. __ जयवंत सूरिकृत शृंगारम जरीनु महत्त्व आकर्षण वर्णनो छे. जयवंतसूरिना वर्णनेा सामान्यत: संक्षिप्त, सुरेख अने आकर्षक होय छे. थोडीक पंक्तिओमां व्यक्तिनु के प्रसंगनु वर्णन करी, कबि कथात आगळ धपावे छे. तेम छतां एमनु कवित्व, अमनी मनोरम कल्पनालीला, मनोहर अलंकारयोजना इत्यादि एमनां वर्णनामां आपणने जोवा मळे छे. वळी, पूर्वे आपणे जोई गया छीओ तेम-शूगारमंजरीनु प्रसंगी अने विगतो सहित कथानकनु समग्र कलेवर पर पराथी रूढ थयेलु छे. अठले निरूपणमां नावीन्य अने चारुता लाववा कविने पोतानी वर्णनशक्ति-शैलीशक्ति पर सविशेष आधार राखबानो रहे छे, अने आ संदर्भां परंपरा प्राप्त वस्तु परत्वे कवि पोतानी प्रतिभानो कुशळतापूर्वक करेलो विनियोग कवि माटे यशःप्रद छे. For Personal & Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) प्रकृति, पात्रना रूपवस्त्रालंकारादि, कुदरती के मनुष्यनिर्मित घटनाओ अने पात्रोनां चित्तवृत्ति व्यापारो-आ सर्वनु यर्थाथदर्शी वर्णन करवाना कवि जयवंतसूरिनेा प्रयास स्तुत्य छे. मध्यकालीन गुजराती कविओ सामान्य: परंपराप्राप्त रूढ उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारो विपुल संख्यामा प्रयोजता, तदानुसार कवि जयवंतरि कृत 'शंगारमंजरी'मां पण स्थळे स्थळे आवा अलंकारोना प्रयोग जोवा मळे छे. केटलीक वार कवि जयवंतसूरिओ उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक उपरांत अर्थान्तरन्यास, दृष्टांत, व्यतिरेक वगेरे जेवा अलंकारा पण स्वभाविकताथी प्रयोज्या छे. कवि जयवंतसूरि केटलीक वार लोकोक्ति के रूढिप्रयोगना उपयोग करीने पण वक्तव्यने स्पष्ट अने सुरेख बनावे छे.. [आना उदाहरणोनी विस्तृत यादी परिशिष्टमां आपी छे. ] मध्यकालीन काव्यसाहित्यमा 'रास' नामना काव्य प्रकारनु क लक्षण मे छे के ते अक गेय प्रकारनी रचना छे. एमां तालबद्ध रागमा गाई शकाय एवी विविध प्रकारनी देशीओ रचायेली मळी आवे छे. ते प्रमाणे कवि जयवंतसूरिनी प्रस्तुत कृतिमां पण आ प्रकारनी विविध देशीओ जोवा मळे छे. प्रस्तुत रासमां कुले अकावन ढाल मळे छे. कविले आमां जुदी जुदी देशीओ अने रागना उपयोग को छे. कविए केटलीक ढालोमां परंपराप्राप्त देशीओनो उपयोग को छे. जेमके बीजी ढालमां कविले 'थूलिभद्र अकवीसोनी देशी'ने। प्रयोग को छे. सेवी रीते नवमी ढालमां कविओ 'गिसुकुमालना चाढालीया'नी 'अणि परि राणी देवकी' से देशीने प्रयोग को छे. तो बारमी ढालमां 'श्याम प्रधुम्नना रास'नी 'समोसरण देवइ रच्यु ' देशी प्रयोजी छे. कवि देशीओमां केदारु, केदारु गुडी, मल्हार, भीली मल्हार, देशाख, सामेरी, धन्यासी, रामगिरि, सिंधूडउ, मारुणी, साधुओ गाडी, आसाउरी, काफी, भूपाली वगेरे वगेरे रागोनेा उपयोग को छे. कविए रासमां दूहा, चौपाइ, हरिगीत, सवैया, से।रठा, उधार वगेरे छंदानी देशीओने। उपयोग को छे. केठलेक स्थळे तो शुद्ध दोहरा अने चौपाई पण आप्यां छे. कवि जयवंतरिना कृति-समुच्चमां 'शृंगारमंजरी' सर्वश्रेष्ठ छे. उपलब्ध कृतिओमां सौथी विस्तृत प्रस्तृत कृति कविनी परणित प्रज्ञानी प्रसादी छे. बहिरंगमां तेमज आंतरतत्त्वमा कविनी जामेली हथोटीनो परिचय आपनार प्रस्तत कृतिमा स्थाने स्थाने कलाकैशल्य तथा कल्पनाशक्ति-कविशक्तिनी झांखी थाय ते स्वाभाविक छे. उपर्युक्त चर्चा-विचारणा परथी आपणे कही शकीओ के अशिथिल वस्तुसंकलना द्वारा कथा. निरूपण. सुरेख अने व्यक्तित्वद्योतक पात्रालेखन, गतिशील अने साक्षात्कारक चित्रो आलेखवानुवर्णन कौशल्य, भाषाप्रभुत्व अने अलंकारोनेां उचित विनियोग इत्यादि अंगो परत्वेनु कवि जयवंतसूरिनु कौशल अमनी अक कवि तरीकेनी प्रतीति करवाने प्रर्याप्त छे. आम जयवंतसूरि केवळ रास करनार रासकार नथी. पण एक गणनापात्र साचा कवि छे. अम निःसंकोचपूर्वक कही शकाय. जैन साधु होवा छतां पण अमन कवि तरीकेनु पासु पण ठीक ठीक उजळु छे. प्रस्तुत समग्र कृतिमां एमना कवित्वने। मधुर प्रकाश पथरायेले छे. For Personal & Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७. शंगारमंजरी : भाषासामग्री भाषासामग्रीनी दृष्टिले 'शृंगारमंजरी अक महत्त्वनी कृति छे. अनी ध्वनिमाळामां 'ऋ' के 'ळ' देखाता नथी. तद्भव शब्दामा अन्त्य के उपान्त्य स्वरयुग्मो 'अइ' अने' अउ'मांथी हजु 'अ' के 'औ' स्वरो विकस्या नथी, जोके अनु उच्चारण थतु हशे अम कही शकाय. औ अने औ तत्सम् शब्दामा सचवाया छे. उ त. दैव (९९), भैरवी (१५५), चौर (२४६), यौवन (५८७). '' बहुधा 'रि'मा रूपान्तरित थयो छे. उ.त. रिजुमति (१६९), ढंढरिखि (१९१), रितुपति (११२९). चरणांत प्रासमां काईबार 'इ' अने 'अ ने। प्रास सधाया छे. जे 'इ'नु प्रतिसंप्रसारण थई लघुप्रपत्न 'य' थता होवानु सूचन छे. उ.त. नवि होय... नहीं कोई (1९९), प्रथम संभागि.. शीलवत योग्य (४००), संसारइ तेह...ठारवण करेइ (१०९३), प्रीणइ लाइ...वहइ सेाय (१२६२) ___ शब्दमां कवचित लघुप्रयत्न 'य' मळे छे. उ.त. संभाज्य (११९), तिस्यु (१३८४), च्यारि (२०७४). 'ह'नु लेखन स्वरसहित जुदु मळे छे. उ.त. नान्हलडी (६८९), अवह रची (६९७), अहवी (१३३६), बप्पीहडा (१३५१). न' अने 'ण'मांथी तद्भव शब्दमां स्वरमध्यवती 'ण' सविशेष आवे छे. मूळ संस्कृत 'न' नो (प्राकृत-अपभ्रंश द्वारा) प्रा.गु.मां 'ण' थयो. छे. उ.त. भाण (६६), नाण, (१०८५). माण (१३८७). 'श', 'धू', 'म्' से अत:स्थ वर्णामांथी मूर्धन्य 'ष' प्रा.गु.मां तत्सम शब्दामां ज सचवायो छे, उ.त. शेष (१७४), विषम (७६१). प्राचीन गुजराती ग्रंथोमां तद्भव शब्दामा ज्यां 'ब' आवे त्यां छे से घणुखर हमेशां 'ख'नां लेखन प्रतीक तरीके वपरायेलो होय छे, उ.त. भाषाइ (१३१२). विष (१३६१), भूष (१४०४). जोके केटलांक तत्सम शब्दामां 'शू' सचवायो ले उ.त. शब (११९) अंकुशि (१५३१). संस्कृत शब्दमा 'श' प्रा.गु.मां बहुधा विकार पामीने 'स' बने छे उ त. दिसिइ (१९), परदेशी (७५), सिरि (१४८५). सामलां (१९१०). कवचित् स्वरमध्यवर्ती 'ई'नु प्रतिसंप्रसारण थयु ले. उ.त. वइरी (७८८), वइरणी (१०६९). प्राकृतमा केटलाक अनादि असंयुक्त वर्णना लेाप पछी उद्वृत्त (अवशिष्ट रहेला) स्वरमा 'य' श्रुति प्रवेशे छे. [जुओ, सिद्धहेम ८-१-७७] अना केटलांक उदाहरणा 'शंगारमंजरी'मां मळे छे. उ,त. मयगल (५०९) गयण (८९१), मायताय (२०३३). For Personal & Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४९) अधतत्सम शब्दना व्यंजन संयोग विश्लेष वडे निवाराया छे. उ.त. गरव (६३२), परधान (६४१), अनारथ (६६८), परवत (८४८). चरणान्ते आवेल शब्दना 'अ' अस्वरित होई मन्दोच्चार्य के शांत रहेतो संभवे छे. उ.त वखाण (६३४) विनाण (१६२९) मान (१६२९). केटलाक अर्ध-तत्सम शब्दामां विलेष मळे छे. कीरति (१५), करम (१२०), हरिसइ(१७५), दुरलभ. (२३६७). व्याकरण नाम, विशेषण, सर्वनाम, क्रियापद अने अव्यय से संस्कृत व्याकरणनां पांचे शब्दस्वरूप आ कृतिनी भाषामां ऊतरी आव्यां छे. नाम आ काळनां नामनां रूपाख्याना मुख्यत्वे बे प्रकारनां छे. जेमां अना अंगने। विस्तार न थयो एवां नामनां रूपाख्याना अने जेमां एना अंगना विस्तार थयो होय एवां नामनां रूपाख्याने जेने अविकारी अने बिकारी नामिक अंगो तरीके ओळखावी शकीओ. अत्रे आ बन्ने प्रकारनी विचारणा करी छे. 'अ' कारान्त पुल्लिग नामो पहेली/बीजी अकवचन प्रत्ययरहित : बाप (१२५), कंचुक (४२७), शृंगार (१९२२) भूपाल (२०३३), चर (२३११) विकारी : 'उ' प्रत्यय : __निसासु (८५). मोगरु (५४८), नेसड्डु (११७), सींचाणडु (१५४), लीबडु (१७३७), हल्थ (१६४७), दीवउ (१५०), भमरउ (४७७), मोरडउ (२२१८). पहेली/बीजी बहुवचन प्रत्यय रहित : सज्जन (३२२), गयवर (७९४). दोस (१८९३), मे।सा (२२५०), 'आ' प्रत्यय : हंसा (४७५.), वानरा (२०६५), चरणा (२२००), दंतडा (५), वणिकडा (१७८९), संदेसडा (२१४०), भमरला (५४७), बगला (२०८५).' पीजी/सातमी अकवचन 'इ' प्रत्यय : कुसुमि (६९), सेठि (२८९), कंठि (२२९१) लोकि (२०३४) 'ई' प्रत्यय : दिवसि (६३), सारथवाहिं (१३९०), हार्थि (१६७५), लेखि (२१५२). . 'अई' प्रत्यय : भमरलइ (५२४), पयोधरइ (५६४). 'अ' प्रत्यय : डूंगरे (२७३), कांटे (१४२४), गोरडे (२१९०), उरडे (२३२१). 'इ' प्रत्यय हैडइ (१२४). धतुरइ (१३६२), भाद्रवडइ (१७०२). त्रीजी/सातमी बहुवचन 'अ' प्रत्यय : सज्जने (२८४), गाले (१८१४), हाथडे (२१०२) दिहाडे (२१०२), नीसासडे (१०७७). For Personal & Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) 'अ'कारान्त नपुसकलिंग नामो पहेली/बीजी अकवचन 'अ' प्रत्यय : काज (१२४), पान (१२५७), कपुर (१८२०), भोजन (२३२६). अविकारी : 'उ' प्रत्यय : तनु (७१), बापीड (९५४), उखाणडु (१७९७). विकारी : 'अउ' प्रत्यय : कटकउ (८६५), रूषणउ (६५५), चितडू (२१) हइअडू (७१२) तलावडू (१६१३). पहेली/बीजी बहुवचन 'अ' प्रत्यय : सरोवर (३२३), तरुयर (१९१३), चीर (२११०), भोजन (२३२०). 'आं' प्रत्ययः : सज्जनां (१३२), वयणां (१५६७), झांखरडा (५७६) अपराधडां (१९२६). त्रीजी/सातमी अकवचन 'ओ' प्रत्यय : वचने (७२८), छीलरे (९९३), मरकलडे (१५९१), फुलडे (१६६१). त्रीजी/सातमी बहुवचन 'अ' प्रत्यय : गुणे (५१६), निसाणे (१८२२), नयणले (९६७). . 'अ' कारान्त स्त्रीलिंग नामो 'अ' प्रत्यय : वात (१२३), खेह (११३६), सान (१९३०), आस (१९७४). 'इ' प्रत्यय : आंखडी (४), सेजडी (९७०), सणगडी (२०४०), सांढडी (२२६९), ____मजुंसडी (२३२८). पहेली/बीजी बहुवचन 'आ' प्रत्यय : शाखा (३३१). त्रीजी/सातमी __ अकवचन 'इ' प्रत्यय : वाटइ (१५७), वाडइ (११६२), छासि (१८८७), थापणि (८१२). ' प्रत्यय : शरदई (७५१), लाजई (१६४१), रातिई (४४४), शरदिइ (५०३). त्रीजी/सातमी बहुबचन 'इ' प्रत्यय : आंखि (१८३६). 'आ' कारान्त स्त्रीलिंग नामो पहेली/बीजी ओकवचन प्रत्यय रहित : मेखला (४६), गाथा (४६३). छाया (११८३), क्रिडा (१७८५). पहेली/बीजी बहुचवन प्रत्यय रहित : वापिका (४६), प्रेमगाथा (६०२), वालुका (७९), संपदा (२३९१). त्रीजी/सातमी अकवचन 'ई' प्रत्यय : कलाई (७२), चेष्टाइं (१२६), कायाइं (१६७३), दुगाई (२३८७). 'इ' प्रत्यय : मुच्छांई (९८७), कलाइ (१२९८), विद्याइ (२४११). त्रीजी/सातमी बहुवचन नयण-तुलाई (१२९०) For Personal & Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) इई कारान्त पुल्लिग नामो पहेली/बीजी अकवचन प्रत्यय रहित : गृहपति (२४५), सारथपति (१३९१), ढंढणरिखि (१९१), ज्ञानी (१९९), योगी (११९६) पडोशी (२०७३). विकारी : अलंकरिउ (७३), अंगणिउ (२११०), पटहाथिउ (६४२) पापीउ (१४०८) कठीउ (१७९१), दारिद्रीउ (२२२८). पहेली/बीजी वहुचनब 'आ' प्रत्यय : धूलीआ (१७०), पंथीआ (२३०), पापीआ (१७६१). 'इ/ई'कारान्त स्त्रीलिंग नामो पहेली/बीजी अकवचन अप्रत्यय : हाणि (१२९), मालति (३३६), वेडि (१४०७), आरती, (४७), बोरडी (१७३७), __ धरणी (२३१०). पहेली/बीजी बहुवचन त्रीजी/सातमी अकवचन 'ई' प्रत्यय : सृष्टि (२२४), सतीइ (४२६), सेरीइ (५५६), गोरीइ (११७५). 'इई' प्रत्यय : शरदिई (५०२), दैवि (१४२९). त्रीजी/सातमी बहुवचन इं' प्रत्यय : कामीनीइ (५५६), डालीइ (५५७), नदीइ (११८९). 'उ'कारान्त नामो अविकारी : केतु (४७), राहु (२९९), रिपु (४९९), वसु (१३१५) [पुलिंग]. कामधेनु (१२), ऋतु (१३), वहु (३४७), इक्षु (१३६२). [स्त्रीलिंग]. प्रश्रु (१२), सुरतरु (१२), जीतु (३) बिन्दु (१८३९) [नपु०] 'ऊ'कारान्त नामो कुलवह (३५०), नववधू (३८६), [स्त्रीलिंग भू (२४५), थालू (२२०८), कूडू (२२४९) [नपु०] नामयोगीओ-अनुगो उपर्युक्त विभक्ति प्रत्ययो सिवाय बाकीनां रुपाख्याना-नामयोगीओ-अनुगाथी करवामां आवे छे. नामयोगीओ आ कृतिमां पण ठीक प्रमाणमां मळे छे. अमांना केटलांक अक करता वधु विभक्तिओ माटे वपरातां होई अने बीजां के जेओने काई चोकस अर्थ नथी अने तहन जुदी ज रचना लई शकनारा हाई से प्रत्येक कोई एक ज विभक्तिनां छे वो विभाग करवानं थे शक्य नथी. अत्रे नीचे केटलाक नामयोगी अनुगोने विभक्ति प्रमाणे वर्गीकरण करी रजू करवाना प्रयास को छे. For Personal & Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) । त्रीजी विभक्ति : सिङ वायस सिउं (९६), पाहाण-सिंङ (४२६), केतकि सिउं ( १७२२ ), सारथवाह सिउ (१९३१) [पुलिंग]. स्तन सिउँ (४२६), हैया सिउँ (५५९), जल सिउँ (१४६५) [नपु.] नारि सिउं (६०८), अबला सिउं (१९७५), परनारी सिउँ (२०८६) [स्त्रीलिंग]. स्युं स्यू सागर स्यु (१६७), पियु स्यु (१३५७). [पुलिंग] मनस्यु (३९६), मनइस्यूं ( २०८) तलाई स्यू (१९५) (नपु०].. करी नांध : आ खरा स्वरुपमा नामयोगी नथी, परंतु मात्र वळगण छे अने मात्र वधु भार बताववा त्रीजीना नामो पछी उमेरवामां आवे छे. गुणे करी (५१७), भेटि करी (१३८६), सुणी करी (२०५८). साथ/साथ मन साथि (३६२), वनिता साथइ (१९०४), लक्ष्मण साथि (१८६). चोथी विभक्ति: नई गृहनायक नइ (२३९), भूपति नइ (१३१२), सारथपति नइ (१४४८) [पुलिंग] झांझर नई (५७३), आभरण नई (२०७०), पंखी नई (२१८) [नपुं०] ऋषिदत्ता नई (१९०), नलीनी नई (८११), साध्वी नई (२३७६) स्त्रिीलिंग] प्रति राथ प्रति (१९१०), अजितसेन प्रति (२१५५) [पुलिंग] वहु प्रतिई (१६८), शीलवती प्रति [स्त्रीलिंग माटि/माटइ/माटिई गुण माटि (२५०), स्त्री माटई (६३८), गुणवंत माटिइ (१४७०). भणी/भणइ बरपाटण भणी (३१६), मंदिर भणी (२२५९), शीलवती भणइ (६९६) सारथपति भणइ (१८५७). कन्ह/कन्हई तुझ कन्हइ (७०८), तुज क्न्हइ (१६५७), तुज कन्हई (१७७६) For Personal & Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांचमी विभक्ति (५३) थी देहथी (३१२), लेाकथी ( १७९२), रोमथी (२३०२) मुखथी (३६७), युथथी ( ११८८), मरणथी ( १४९५ ) शीलवतीथी ( ६४३ ) [ स्त्रीलिंग ]. थकी हैया थकी ( २१० ), घर थकी (६८५), विरह थकी ( १४२५ ) . थिकी वनिता थिकी (१२३), तात थिकी (६३४), बंधन थिकी (१७७३ ). थके/थकां स्वर्ग थके (१५०७ ), दूरि थकां (२१८१ ). पांहि स्वर्ग पांहि (५९), सज्जन पाहि ( ९४९), माणस पांहि (९६२ ) पासि / पास इं उपासि (८७८), सजन पासई (९८८), नयणां पासि ( १५२२ ) (पुलिंग ] [नपु० ] छठ्ठी विभक्ति छट्ठी विभक्तिमा केटलांक प्रसंगमां 'ह' प्रत्यय मळे छे. उ. त चारह मुद (७२), पवनह वैरी ( ३७४ ). कंतह कारण ( २१५४ ) ( पुलिंग ) कुसुमह मालिका (४४) मनह मनेारथ (१९७५) धनह मंडन ( २३५९) (नपु० ) शरदह तणउ (२८१), मंजुसह मांहि (२३२०). (स्त्रीलिंग) नुं / नु/नूं (अनुग) सानुं (२००७) (पुलिंग) रूनुं (८२), करमनुं (१२६) नयणानुं (१४२६) (नपु० ) अब मंजरी (१३), शीलवतीनु (१८०), वीजलडीनुं (१९४०) [स्त्रीलिंग ] मोहनु (९), परिमलनु (२०५०), विरहनु (२१५९) (पुल्लिंग) कमनुं (९६१), मननु (१२६ ) ( नपु० ) वनितानुं (५७५) निशानु (२३०३) (स्त्रीलिंग) ब्रह्मानं (४०१), पुरुषनूं (४६) (पुलिंग.) पापनूं (७३४), मोतीनूं (१९७७) (नपु० ) केडीनू (३५५), शीलत्रतीनू (१.७) (स्त्रीलिंग). For Personal & Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) ना/नां वसंतनां (५१७), परदेशना (१६०९), छयल्लना (२०७८) [पुलिंग] सुखना (१९३,) सुकुलनां (१३५२), थणनां (६०६). [नपु०] प्रेमवतिनां (७१०) रमतिना (७४९) [स्त्रीलिंग] नि अजितसेननि (८००) भूपालनि (१७८८), वल्लभनि (२०७२). [पुलिंग] वियोगनि (७५१) सुखनि (१०४४). [नपु०] कामिनिनि (७७५), भूपतिनि (६५१) [स्त्रीलिंग]. नी गौतमनी (१४), प्रेमनी (११७८), वणिगनी (२०६०) [पुल्लिंग] वरसनी (५२०), कुलनी (२०१७), नयननी (२९२३). [नपु०] गणिकानी (७०५). [स्त्रीलिंग.] गुण-मणि नउ (6), सुंदरी नउ (९१), सीबलि नउ (५४७) तणइ/तण नरपति तणइ (३७६), स्वामी तणइ (१९९३) ,धर्म तणइ (२३९४) [पुल्लिंग] देव तणई (७८१). नयणां तणइ (१३४६). पसूय तणइ (२३४३) [नपु०]. मोती तणइ (२०००). पंख तणई (२१८६) संगति तणइ (१३६) [स्त्रीलिंग] तणी जिन तणी (६९), राय तणी (१४७६), कर तणी (१७०४). [पुल्लिंग]. रान तणी (३१९), नीर तणी (१७७८) नरक तणी (२०८७) [नपु.] केसूअडी तणी (५३०), साकर-चूरि तणी (१७०३). कवित तणी (१६८८) [स्त्रीलिंग] तणा/तणां दीहा तणा (१३६), मदनराय तणां (५६८). गुरु तणां (२३९२). [पुल्लिंग] मीन तणा (१३२९), मन तणां (२१६२). (नपु०.) सरसत्रि तणा (८) [स्त्रीलिंग.) तणउ रत्नाकर तणउ (७५), सज्जन तणउ (१७४१). प्राण तणउ (१९५२) [पुल्लिंग) धन तणउ (२६२), वसु तणउ (१३८६), देव तणउ [मपु.] शरदह तणउ (२८१), रमणी तणउ (१२२४). [स्त्रीलिंग]. तणुतणुं लोक तणु (११७), सज्जन तणु (१७३९), प्रीति तणुं (८१). For Personal & Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) केरी दूरियन केरी (१२७३), किंनर केरी (१३१३), माणस केरी (२०७१) [पुल्लिंग] दुख केरी (१८६), सोविन केरी. (७९५). [नपु०]. केरु/केरुं/केर दुरियन केरु (७३२), परनर केरुं (१३१५), गयवर केरू (१६००). [पुल्लिंग कर्म केरू (३६४), भूमिहर केरू (१४८६).. (नपु०) राक्षसी केरू (१९०), महिला केरू (१३२८)., गोरी केरु (१८०३). [स्त्रीलिंग] केरां सज्जन केरां (२९२), माणस केरां (४९४) [पुल्लिंग] आयुध केरां (३१३). वन केरां (६६१), पंखी केरां [नपु०], गोरी केरां (१७९७). कामिनी केरां (२०६१)., (स्त्रीलिंग) केरडा केरऽ केरइ सजन केरडा (२६), असति केरडा (१९८४)., वाहलां केरडु (१९९४) परनारी के रई (२०६१)., आउलि केरइ (६७८)., विवाह केरइ (१०८) केरो वाहला केरो, सातमी विभक्ति मझरि/मजारी तिहुपण मझारी (१५२८)., खाड मझारि (२३०६), मेह मझारी (२३५६) [पुल्लिंग] हैया मझारि (१५६९), सुपन मझारि (१६१६) [नपु०]. सहीय मजारि (५९३). सभा मजारी (६४७). [स्त्रीलिंग]. उपरि प्रासाद उपरि (४७), स्त्री उपरि, (३६८)., घर उपरि (२२५). छयल्लमां (२८), काशमां (३६८)., कमलमां (१४९७) (पुल्लिंग)। विहाणामां (१२०), कारागृहमां (१९८७)., हेयडामा (९९४) [नपु०.] समितिमां (२७), कलामां (८८०); वेडिमां (९९३) [स्त्रीलिंग] For Personal & Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) माहि/माहई अगनि मांहि (१४९०), कोट्ट मांहि (५८३०), सायर मांहि (१४४२) [पुल्लि] त्रिभूवन मांहि (६३), वन माहइं (१९२) पाणी मांहि (२०३) मन मांहइं (२८८) [नपु.] उपर बतावामां आवेलां अने केटलीय गमिकी विभक्तिओना सादा अर्थ आपवा सामान्य रीते वपराता नामयोगीओ उपरांत प्राचीन गुजरातीमां बीजा पण घणां नामयोगी छे, अमांना केटलाक नीचे दर्शाव्या छे. विण/विना सुत विण (६७), भय विण (९२२), ज्ञानी विण (११९२) [पुल्लिग] धर विण (८), इघण विण (१४६७), जल विण (11७०) [नपु०] अरथी विना (२०५), मेह विना (१३५१). दिवस विना (१८७७) हंस विना (२०५५). साथिसाथ मन साथि (३६२), सज्जन साथि (२१८३), सखी साथि (५५२). वनिता साथई (१९०४), सज्जन साथइ (१६७०), मन साथिइ (९२३) हेठि/हेटलि करीयलि हेठिं (२६१), तरुयर हेडलिं (२५७), धवल-गृह हेठलिं (१३७०) आगलि प्रिउ आगलि (९१), पंजर आगलि (४३७), ससि आगलि (५८७), प्रिय आगलि (६०९). वचालि थल वचालि (६०१), हृदय विचालि (७३१). काजि/काजई गुण काजि (१४३१), क्रीडा काजि (१४९९), परीक्षा जावा काजइ (६४२), गुण उपराजन काजि (३३१), मिलवा काजि (१६०५). पाख पुत्र पाखइ (६४), वन पाखइ (६६), जल पाखई (७२८). For Personal & Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) सर्वनाम हूं, तू, ति-ते-तेह, अ-अह, जे, आप, कु-को, सिउ' इत्यादि सर्वनामो अनां विविध विभक्तिजन्य रूपोमां प्रयोजावेलां मळे छे. अकवचन बहुवचन विभक्ति पहेली बीजी त्रीजी चोथी पांचमी छट्ठी सातमी मइ, मई, मि, मिइ. मुहनि मुझ, मझ अम्ह, अह्मारा. नेांध :-आ सिवाय पहेला पुरुष अकवचनमां महारु, माहरडा, माहाराइ, माहारा, महारडी जेवां [माहर+ड प्रत्यय परथी थयेला] रूपो पण मळे छे. वळी मोरं, मोरइ जेवा राजस्थानी पकारनां सर्वनामो पण मळे छे. पहेला पुरुष बहुवचनसां अह्मारा, अह्मारडउ, अह्मारडी जेवां [अह्मार+ड प्रत्यय परथी थयेला] रूपो मळे छे. वळी अम्मीणा, अम्मणू जेवा राजस्थानी प्रकारनां सर्वनामो पण मळे छे.. " विभक्ति एकवचन बहुवचन पहेली तू., तु तुह्म, तुह्मि, तुझे. बीजी तुझ त्रीजी तइ, तिड, ति चोथी तुह्मि पांचमी छठी सातमी नांध :-आ उपरांत बीजा पुरुष अकवचनमा ताहरइ, ताहरु, ताहरु, ताहरी, ताहरा जेवां रूपो मळे छे. वळी तोरु, तेरी, तोरी, तारां, तोरइ जेवां पण मळे छे.. बीजो पुरुष बहुवचनमां तुह्मारडा, तुह्ममारडई, तुह्ममारडु, जेवा [तुम्हार+ड प्रत्यय परथी थयेला] रूपो पण जोवा मळे छे. तुझ तुम, तुह्म.. For Personal & Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५८) . दर्शक अने बीजो पुरुष सर्वनाम विभक्ति एकवचन बहुवचन पहेली सा, स, सं, सो, सोई, - ति, ते, तेह, तं, अहे, अ, इ, ओ बीजी त्रीजी इणि, तिणि, तिणइ चोथी पांचमी छठी तसु, तासु, तास, तेहनां, तेहनी सातमी तिणि, तिथि नांध :-साधित रूपोमां इसिउ, इसिउ, इसियां, अहवू, अवडां, अवडु, जेहवा, जिसिया, जिसिउ, जेहसिउ, जेता, तेवडा, तेवडी, तेवडु. स्ववाचक : अप्पणा, आपइ, आषि, आपणउ, आपणमइ, आपणां. सर्वनामो : आपणु, अप्पणू, अप्पणु, आपणेइ. अनिश्चित सर्वनामो : कु, को, कोइ, कांइ, कई, केवि, सवि, सहू, केता. संबंधक सर्वनामो ; जे, जज, तंतं, जेजे-तेते, तां-जां. . प्रभार्थ सर्वनामो : किसिउ, किसिउ, केतइ, केतला, केतलू. वचन : विकारी अंगवाळा नामना बहुवचनमां पुलिंगमां अंगनो 'आ' मळे छे अने नपुंसकलिंगमां 'आं' प्रत्यय लागे छे. 'आ' प्रत्ययः विशारदा (४८), रूडला (५९७), भमरला (५४९), दीहा (१०७५), वणिकडा (१७८९) वानरा (२०६५). [पुलिंग 'ओ'प्रत्यय : नयणलां (५), पारेवां (२१७), फुलडा (९०७), वयणां (१५७७), क्रियाणडां (१७९१) (नपु०]. अविकारी अंगवाळा नामना बहुवचनमा कोइ प्रत्यय लागतो नथी. पण संदर्भ उपरथी के क्रियापद के विशेषणादिकना स्वरूप उपरथी बहुवचनत्वनुं सूचन थइ जाय छे. दोहिला वक्ता (१८), दुख सहया (१९२), मंदिर प्रजाल्यां (२८८), उंचा आंबा (३२४), फल वेडीयां (८८९). फल पाका (१६४२). लिंग : मध्यकालीन गुजरातीमां मळता त्रणे लिंगोनां उदाहरणो अत्रे मळे छे. पुलिंग : मयगल, जनम, ब्रह्मा, विधाता, गृहपति, वासूकि, रिपु, मधू. स्त्रीलिंगः वात, खेह, आस, गाथा, सभा, काया, हाणि, कुरंगि, भमुहि, कीरति, नववधू, नपुंसकलिंग : चीर, ढोर, अफीण, प्रश्रु, मटकु, इक्षु, भू For Personal & Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५९) विशेषण विशेषणोमां अविकारी अने विकारी अंगोना नामनी जेम ज रूपो मळे छे. आमांना अविकारी अंगना विशेषणो विशेष्यनी पूर्वे अने पछी कोई जातना फेरफार विना ज प्रयोजाय छे. विकारी अंगनां विशेषणोमां सामान्यतः विशेष्यनां लिंग वचन विभक्ति अनुसार फेरफार थाय छे. विभक्ति पहेली / बीजी एकवचन मोरुं जंतु (७१), झीणउ चंदल (२७८). भगुडडु (१०५३), गुणवंती कामिनी (९५), नीली कांचली (१२०९), मीठी सेलडी (१२०८) त्रीजी / सातमी बारमई दिवसि (७१), महारइ माउलई (३२९) इणि अवसर (११५८), सुनि रानि (८१७). तिणि पुरि (२३३६), गुरूयडि धर्नि (२३५५) संख्यावाचक विशेषणो ; क्रिपापदनां त्रणे कालनां रूप मळे छे. अक (६९), अकि (२३४), अकी (१०२७), अकनू (२०४४) अकइ (२०८), दो (४६२), त्रि (३७३), त्रिहु (१५२९), च्यारि (१२६०) चियारि (११०९), पांच (११४), छ (४६०), नव (६१३), दस (१४५७), पन्नर (३५५), सत्तर (३९६), सहत्र (४५९), लाख (४५९), कोडि (४५९). अर्बुद ( ४५९), क्रमवाचक विशेषणो : प्रथम (४२,२४१६), पहिलू (९९१), पहिल (१२८), बीझ (७८), बीजाउ ( ११७) ० तृतीय (२०७२), चउथ ( ४६२ ) पंचम (४६१), पांचमी (२३८५). दशमी (२२५०). पुरुष १ लो २ जो ३ जो क्रियापद वर्तमान काल - कर्तरि रूप बहुवचन दोहिला वक्ता (१८) राता हाडा (५५८), ऊंचा आंबा (३२४), दाधा रुखडां (२७५) गोरे गालडे (५६९), वणिकने आहरडे (१८३१), अद्देवे बोलडे (२०७६), थाडे दिहडे (२१-२). ए.व. विरम, मु, जोउ लहू', कहू, प्रीसू कहि, आणइ जाणइ करइ, खणइ, अछह, वांछई भिजइ, मई, For Personal & Private Use Only बोलइ कर्मणि रूप मुख्यत्वे श्री.पु. अ.व. अने ब.व.मां मळे छे जेमके, कीजइ ( ६२५ ), संतोखीइ (६२६), हीडीइ ( ६२८), सेवीजइ ( ३३१). ब.व. Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) भविष्यकाल-कर्तरि पुरुष ए.व. भ ब.व. देखसिउ, पालेसिउ करसिउ, आसिसि, मिलिसि, वखाबिउ' २ जो - कहसि, करसि, वरससि, जाएसि ३जो अहिसइ, सूकरइ, लाजसइ, फलसिइ आज्ञार्थ शुद्ध आज्ञार्थ : बी.पु. ए.व.-भेलि, करि, झूरि, समरि, महेलि ____बी.पु. ब.व.-आपु, जोउ, सुनु, कहु, सुणु भविष्यार्थ आज्ञार्थ ; बी.पु.ए व.-हजे, वाधजे बी.पु.ब.व.-बूलयो, पधारया, सींचयो, राचया, खमयो. (संभव छे के उच्चारण 'ज' होय,) भविष्य : म आणसि (५३१), म बईसि (६७८), म बंछसि (१८७), म घरसि (८०३), म उमजसि (१७४५), म उतारसि (२२४४). क्रियापद (प्रेरक) 'आव' प्रत्यय : वजावइ (५४१). नचावइ (५७६), ठमकावइ (५७६), चडावि (६९१), महेलावि (७९१), सभावि (६९२) 'आड' प्रत्यय : उडाइइ (५८०), कडुआवीया (८३१), बोलावीया (९४७), मायावीयां (१३०९), रीसावियां (१३०), लजाविया (१३५६). कृदन्त कृतिमा वर्तमान, भूत, संबंधक अने हेत्वर्थ कृदन्त मळी आवे छे. वर्तमान कृदन्त मां कहितु (८), अवटातु (१४०८), कांपतु (१५६९), रुचतु (१८३१), एकबचनमां अने भमता (२२८), चालता (७९३) सुणतां (१३४), धरतां (१७०), हीडतां (९२३), समरतां (८९६) बहुवचनमां मळे छे. ___ आ उपरांत संस्कृत 'अन्त' [एनुं निर्बळ स्वाप 'अत्'] मांथी प्राकृतमा विकसेला 'अन्त' अंगथी बनेला चलती (१), झरता (२०५) करतां (१८) झूरता (२९) रुप ठीकठीक प्रमाणमां मळे छे. संस्कृत कर्मणि रुप बनावता 'य'ना विकास 'इ' केटलांक वर्तमान कृदन्तनी पूर्व आवी मळया छे. उ. त, बीहेतु (५८०), कहीतां (८३३). भूतकृदन्त मां दीठउ (४२२), पइठउ (१८२४), जालिउ (५५४). वसीउ (४५१), पूरीउ (२३७३) पुलिंग एकवचन अने बइठा (१९३), तूठा (११३९), परिभव्या (३०१), भम्या (१८५) दाखव्या (१४१०) पुलिंग बहुवचनभां मळे छे. नपुंसकलिंग एकवचनमां सुणउ (७२१), छेदिउ (२८). करिउ (३६३), लहिउ (२३७९). कीधू (६४५), खाधू (१०९०), वंचीउ (५९८), टालीउ (२१२९), वल्धु (१८१), कीधु (५७७), लीधां (६४), कीघां (६४). लाघां (१०३९), पइठां (४६२), बइसतां (१३६३) जेवां रूपो मळे छे. For Personal & Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) हेत्वर्थ कृदन्तमा बूजविवा (५१७), पामिवा (५१८), वधारवा (६२४) चलवा (८२५) त्यजवा ( १७५४). प्रीसवा (१८१३) लिखवा (२१६६ ). विध्यर्थ कृदन्तमां छोड्वु (६८८), उल्हवुं (१०४७), वीनवूं (६४९), मानवु (६६९), मढाबू (२२६३) इत्यादि मळे छे. संबंध कृदन्तमां नमी ( ९ ), वीनवो (६९). अमीय (४६४), वंकीय ( ५६३), सुणीय (५९५), सुखीय (११३९), मंत्रीय (१२५४) जेवा रुपो मळे छे. आ उपरांत वधारानो अनुग 'नइ' लागीने थयेलां रूपो पण मळे छे. करीनइ (६१), लहीनइ (६४३), भरीनइ (६३५), आवीनइ (६५०) 'अण'वाळा क्रियावाचक कृदंतने ह+कार > आर लगाडीने कतु वाचक नाम बनावाय छे. उ. त. चालणहार (८३५), सींचणहारा (८६७) कारणहार (१४५९), ऊडणहारा (८९८ ) मागणहारा (१७५० ). अव्ययोमा क्रियाविशेषण, भूमिकामां ठीक प्रमाणमां छे. अव्यय नामयोगी, उभयान्वयी अने केवलप्रयोगीना बिकास आ क्रियाविशेषण अव्यय स्थलवाचक : जां, जिहां, तिहां, उपरि, दूर, दूरि, तिहांथी, किहांथी, तां. कालवाचक : हवड, हवि, हवडाडइ, हवइ, जवथी, तवथी, आगइ, जव, तव, आगि, आज, जाम, ताम, केवार, केवारई, पुणरवि. अहनिसि, सदा, वारंवार, पछइ, तिणिवारी, जेणिवार, जिहारइ. रोतिवाचक : जिम, तिम, जं, त, इम, क्रिम, एम, किमइ, परि, परिपरि, वेगिरि, इणि परि, एणि परइ, सहजइ. कारणवाचक : कां, कांइ, किम, कांइ, के इ. निश्चयवाचक : निटोल, निश्वइ, सही. नकारवाचक : ना, न, नहीं, नवि, म. संशयवाचक: कि, किरि, रखे, जाणे, जाणि. नामयोगी अव्यय स्थलवाचक : पासि, वरि, उपरि, मझारि, लगई, मांहि, मांहइ, मांहई, प्रति, भणि कालवाचक : आगलि, पाछिली, आगई. सहितार्थक सिउ सहित, साथि रहितार्थक : विण, पाखइ, विना तुलनावाचक: समान, पहि, पांहि, समाण, साधनवाचक : थिकी, करी. सरसी. For Personal & Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६२) . ८. सदर्भग्रंथसूची १. अंग्रेजी पंथो Folkore as a Historical Science ___G. L. Gomme, London, 1908 Folktale S. Thompson, New York, 1951. Folktales of Bengal Lal Bihari Day, London, 1912 Folktales of Kashmir J. H. Knowles, London, 1888. Motif Index of Folk-literatare (Vol. I-VI) S. Thompson, Bloomington, 1946 Motif and type Index of the oral tales of India S. Thompson, Jonas Baly, Bloomington, 1949 The Types of the Folktale : S. Thompson, A. Aarne, Bloomington, 1928 २. संस्कृत-प्राकृत-ग्रंथो कथासरित्सागर : सोमदेव भट्ट निर्णयसागर प्रेस, मुंबई, १९३० कथासरित्सागर : खंड १-२; सेामदेव भट्ट अनु. केदारनाथ शर्मा, पटना १९६० कुमारपालप्रतिबोध : सोमप्रभाचार्य मुनि जिनविजयजी, वडोदरा, १९२० बृहत्कथा मंजरी-क्षेमेन्दकृत सं. शिवदत्त अने परब, निर्णयसागर प्रेस, मुंबई, १९३१ भरतेश्वर बाहुबलिवृत्ति : भाग १-२, शुभशीलगणि देवचन्द्र लालचन्द्र, सुरत, १९३२ शीलवती कथानक हंसविजय जैन लायब्रेरी ग्रंथमाला, अमदावाद, १९२० ३. हिन्दी ग्रंथो युगादि देशना-सोममन्डनगणि कृत अनु. श्री. विनयश्री महासति, जयपुर, १९३० रास अने रासान्वयी साहित्य 1. दशरथ ओझा, दशरथ शर्मा, काशी, १९६० शत्रुजयतीर्थोद्धारप्रबंध मुनि जिनविजयजी, भावनगर, १९१७ संदेशरासक : अब्दुल रहेमान कृत, सं. हजारीप्रसाद त्रिवेदी तथा विश्वनाथ त्रिपाठी, मुंबई, १९६०. For Personal & Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६३) ४. गुजराती ग्रंथो आनंद काव्य महोदधि - मौक्तिक १-८ सं. जे. एस. झवेरी, मुंबई, १९१८ आपणा कविओ : के. का. शास्त्री गुजरात विधासभा, अमदावाद, १९४२ उपदेश प्रसाद, भाग - २ : विजयलक्ष्मीसूरि कृत [ भाषान्तर] श्री जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर, १९२२ उषाहरण : वीरसिंह कृत सं. भा. जे. सांडेसरा अने अं. बु. जानी, मुंबई, १९३९ ऋषिदत्ता रास : जयवंतसूरि रचित संपा. निपुणा दलाल, ला. द. भा. सं. विद्यामंदिर, अमदावाद, १९७५ कथासरित्सागर भाग १ - २, सोमदेव भट्ट कृत अनु. इ. सू. देसाइ अने शा. वि. शास्त्री, मुंबई १९१९ कर्पूरमंजरी : मतिसार कृत सं. भा. जे. सांडेसरा, मुंबई, १९४१ गुजराती काव्यप्रकारो डोलरराय मांकड, १९६४ गुजराती साहित्य परिषद पत्रिका, प्राचीन रास काव्यो, डा. हरिवल्लभ भायाणी, फेब्रु मार्च, १९४७ गुजराती साहित्य - मध्यकालीन अनंतराय रावल, मुंबई, १९६३ गुजराती साहित्यनां स्वरूपेा म. र. मजमुदार, वडोदरा, १९५४ गूर्जर रसावली संपा ठाकार, मोदी, देसाई, वडोदरा, १९५६ जंबुस्वामी रास : यशोविजयजी कृत सं. डा. रमणलाल ची. शाह, सुरत, १९६१ जैन गूर्जर कविओ, भाग १-२-३ मो. द. देशाई, मुंबई, १९२६-४४ जैन साहित्यनेा संक्षिप्त इतिहास मा. द. देसाई, मुंबई, १९३३ प्राचीन फागु संग्रह संपा. डा. भा. जे. सांडेसरा, डॉ. सो. घू. पारेख, वडोदरा, १९५५ प्राचीन - मध्यकालीन बारमासा - संग्रह संपा. डा. शिवलाल जेसलपुरा, अमदावाद, १९७४ भरतेश्वर बाहुबलि वृत्ति [ भाषान्तर ] : शुभशीलगणि कृत अनु. मो. ओ शाह, जैन विद्याशाला, अमदावाद, १८९९ मदनमोहना : शामळ कृत संपा. ह. चु. भ्रायाणी, मुंबई, १९५५ For Personal & Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४) . . १९४२ मध्यकालना साहित्य प्रकारो डा. चन्द्रकान्त महेता, मुंबई, १९५८ मध्यकालीन रास साहित्य ___ भारती वैद्य, मुंबई, १९६६ रूपसुंदर कथा-माधव कृत सं. भो. जे. सांडेसरा, मुंबई, १९३४ वसुदेवहिन्डी, प्रथम खंड (भाषान्तर) संघदासगणि ___ अनु. भा. जे. सांडेसरा, भावनगर, १९४७ वसंतविलास : अज्ञात कृत संपा. का. ब. व्यास, मुंबई, १९४२ - शमामृतम-नेमिजीन स्तवन संपा. धर्मविजयजी कावीर्याक, १९२३ शीलेोपदेशमाला, जयकीर्तिसूरि कृत, सोमतिलक कृत टीका (भ जैन विद्याशाला, अमदावाद, १९०० श्री कुमारपालप्रतिबोध : सोमप्रभाचार्य कृत जैन आत्मानंद सभा, भावनगर, १९२७ - . . श्री जैन सत्यप्रकाश, प्रेो. हीरालाल कापडिया, अमदावाद, १९४६ श्री जैन सेळ सति चरित्र, सं. अ. ओ. शाह, अमदावाद, १९३९ श्री श्राद्ध प्रतिक्रमण सूत्र-वंदित्त सूत्र (भाषान्तर) सं. धर्मविजयजी, वडोदरा, १९४६ संशोधननी केडी, भा. जे. सांडेसरा, अमदावाद, १९६१ ५. जूनी गुजराती हस्तप्रतो ऋषिदत्ता रास-लींबडी भंडार, लींबडी गीत संग्रह-ला द. भारतीय संस्कृति विधामंदिर, अमदावाद नेमिनाथ राजीमती-ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद बारभावना सज्झाय-ला. द. भारतीय संस्कृति विद्या मंदिर, अमदावाद शीलवती चुपइ-देवरत्न-ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद शीलवती चतुष्पदिका-कुलशधीर शीलवती रास-जिनहर्ष शीलवती रास-दयासार शृंगारममंजरी-जयवंतसूरि-ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद अंगारमंजरी-जयवंतसूरि-डेहेलाना अवासराने ग्रंथभंडार, अमदावाद शृंगारमंजरी- जयवंतसूरि-वाडी पार्श्वनाथना भंडार, पाटण शंगारमंजरी-जयवतसूरि-वीरविजय उपाश्रय ग्रंथभंडार, अमदावाद शृंगारमंजरी- जयवंतसूरि-त पगच्छ जैनशाला ग्रंथभंडार, खंभात. For Personal & Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत शृंगारमंजरी दूहा चंद्रवदनि चंपकवनी, चालती मयणराय मंदिर जिसी, पय प्रणमूं ह सोविन - चूडी करी धरी, खलकति सोविन - मेखला, वेणी -दंड प्रचंड ए, अंग अनंग अभंगनु, पीन - पयोधर भार भर, विकसित-पंकज नयणलां, दाडिम - कुली जिम दंतडा, नाशा दीप- शीखा जिसी, कोमल किशलय कमलकर, घन पीनस्तन जघन - युग, कमल-कमंडल करि धरणि, सारदसेवक सुखं - करणि, सचराचर व्यापी रही, गुण अनंत सरसति तणा, सरसति पय-पंकय नमी, प्रणमुं ना-दिणावि दक्खवी, टालिउ सहिगुरु चरण नमूं निसिदीस, जेहथी लहीइ धर्म्म- विचार, खीणउ झीणउ जड सकलंक, दिन दिन चडत कला अकलंक, उरवरि नवसर - हार, पयि झांझर झमकार. २ गजगत्ति, सरसन्ति. १ ढाल १ चोपानी जिसु शेष - भुयंग, नाग सुरंग सभंग ३ कटि तटि झीणउ लंक, धणुह जिसिउ भ्रूवंक ४ अधर प्रवाली - रंग, नयणे जित्त कुरंग. ५ काने कनक-ताडंक, कयली - कोमल जंघः ६ धरणि प्रसिद्ध सनाम, करणि गति अभिराम. ७ गुण-माणि नउ भंडार, कहितु न लहू पार. ८ श्रीगुरु -पाय, मोहनु ठाय ९ जेहथी पहुचइ सकल जगीश, सकल शास्त्र सद्गुरु आधारि. १० किम कीजइ गुरु तुल्य मयंक, कुमत राहुनु भंजइ बँक. ११ For Personal & Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत सायर खारु रवि आकरउ, कामधेनु पनु मणि पाथरु, काष्ट-रूप सुरतरु जाणीइ, सहिगुरु सम किम वखाणइ. १२ हूं मूरख जे अक्षर लहूं, ते महिमा सद्गुरुनु कह, ऋतु वसंति कोइली सर होइ, अंब-मंजरिनुं महिमा सोइ. १३ वडतपगछि अति महिमावंत. श्री विनयमंडन उवझाय महंत. शीलिं थूलिभुद्र सरसति बुद्धि, गौतमनी परि लब्धि प्रसिद्धि. १४ चंद्रकला जिम अति उजली, जस कीरति चिहुं दिसि झलहली, सौभागि जिम श्रीवसदेव. अहिनसि नरवर सारइ सेव. १५ साकर दूध सेलडी सद्राक्ष, जेहवी मीठी आंबा-साख, तेहबू जस वाणी-पीयूष, निर्मल-चंद्र सुचंद्र मयूख. १६ ते सहिगुरुना प्रणमी पाय, जयवंतसूरि एकतिई थाइ, ग्रंथ करुं शृंगारमंजरी, बोलूं शीलवतीनूं चरी. १७ शास्त्र करतां दोहिलां, दोहिला वक्ता होइ ते पहिं श्रोता थोडिला, महीमंडलि को जोइ १.८ सुजन विस्तारइ दहु दिसिइ, कवीयण सरस प्रबंध सरूवर प्रसवइ कमलनइं, समिर वधारइ गंध. १९ सालंकार सुलक्षणि, सरस अनइ गुणवं सुकवी वाणी-सुंदरी, चमकइ चित्त हरंति. २० बंकिम चित्त सुवन्नमय, सुकवि-वयण सुरम्म, पथ चमकइ चितडूं हरइ, गोरी-नेउर जिम्म. २१ बांकां कठिन ससामलां, कुकवि-वयण विकार, पइ पइ हह अलखामणां. जिम अय-संकल भार. २२ देखी वाहलां माणसां, कुकवी-वयण सुणंति. नव संभुक्ता वहूअ जिम, मुह मचकोडवि जंति. २३ गाहा महिला हैडलूं, अणरसीइ न जणाइ, रसीआ जिम जिम केलवइ, तिम तिम अधिकां थाइ २४ वहालां तणे उलंभडे, कवीयण वयण विलासि, सीस धूणेविंण हैहलूं, मरकलडे करइ हास २५ गुणतां सजन केरडा, गाहा रस सविलास, जोतां नीसासइ बलइ, सुणतां दिइ उल्हास. २६ सरस सुभाषित समितिमां, सहू को समई भणंति, तस हैडूं परमत्थ-सिउ, ते को छयल्ल लहंति. २७ मुरख पभणइ छयल्लमां, लक्षण छंद-विहीण, सिर--छेदलं जाणइ नहीं, भमूहि कोदडिं दीण. २८ For Personal & Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृगारमंजरी गाहा गीय सुकामिनी, तुरीयां रस न लहंति, तीह मुक्खह सो डंडडु, तेहनिं ते नवि हुति. २९ मुरख न लहइ भावके, कवीयण निनिदंति, भंडानई अलखामणा, कोडी कीडा हुति. ३० गाहा गीय सुमाणसह, रस नवि जाण्या जेण, तिणि मुरखि निज दीहडा, नींगमीआ . आलेण. ३१ सोदु सुकवि बीयणलां, जो गुण करणि समत्थ, भाव न जाणइ मुरिखां, का दूसइ कवि सत्थ. ३२ मुरख न लहइ भावके, काढइ कवीयण दोस, कामिनि शुष्क-फ्योहरा, सोइ सिउं घरइ रोस. ३३ मुस्खनि जउ नवि गमिउ, तउ सिर निरगुण सत्थ, कमल तिजिउ सालूरडे, तउ सिउं ते अकयत्थ. ३४ वाणी सहिजिं सर सजउ, दोखी किसिउं करंति, एक छंडइ लक्ष आदरइ, वइरी खीजि मरंतिं ३५ एक उलूकह नवि गमिउ, उगिउ दिणयर सार, तु सिउं सुरय-गुण गयउ, सघलइ हूउ विस्तार. ३६ किहि एक व्यास समास किहि, सोहइ सरस प्रबंधि, गिरिमा सोहइ गोर-थणि, अणिमा लंकह संधि. ३७ गुप्त न गूजरिथण समा, पयड स दाहिणि जिम्म, गुप्त विपयडवि अत्थवर, सोरठी-थण सम्म. कर जोडनई वीन,, कोइ म धरयो खेद, सवि सुकवीनु दास हूं, एवी वाति नहीं भेद. मित्तह उदयिं विहसीइ, दोसायर न सहति, सुगुणा पंकजनी परि, सज्जन चरित जयंति. ४० सारद सहिगुरु सुकवि जन, प्रणमी चरण-सरोज, शील-चरित्र वखासिउं, जिम सहुनइं हुइ चोज. ४१ ढाल २ प्राण राग : केदारु ( श्रेणिक रायवाडि चढियो, अ देशी ) पृथिवीय मंडल सयल कहीइ, प्रथम जंबूद्वीप, सवि द्वीप मांहिं मूलगउं, जिम वृक्ष मांहिं नीप, तिहां चित्त पवित्र सुसत्त खित्तह, प्रथम भारत खित्त, तिहां नयर नंदन नाम निर्मल, चिहुं खंड मांहि विदित्त. ४२ . For Personal & Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंत सूरिकृत पाय, - जणि पुरि मानिनी चमकति चल्लइ, राणणि नेपुर लड सडति मदन गहेलडी, गति चित्त मयगलराय ... दुपद्... जिहां करति मंदिर वाद, जिहां सप्तभूमि- प्रासाद, सुंदर जन नयन-नलीनी सविकासि, शत चंद्र किस आकासि. ४३ लडसडत करति टकोल, मुख भरित सार तंबोलि, कंठ कुसुमह - मालिका, सोल वरसी बालिका. ४४ जि वणिग खेलति सोगठे, दाह देवति अति हठे, हट्टउलि सुदीस अ वणिग बइठा हींस अ ४५ जि. विमल - जल भरि वापिका, नींर आणति बालिका, चालि खलकति मेखला, रसिक निरखति विवला. ४६ जि. अवर मेरु महि-तलि, सकल सुन्दर झलहलइ, केतु चंचल लहलहइ, वर पेखतां मन गहिगहइ. ४७ जि. चरण गुण-मणि संजुआ, सहि जि सोहग संजया, छात्रबुद्धि गणित अंक उत्तंग तोरण गगन सरिसु, चपट्ट चिह्न दिसि मालीयां, ससि वयणि खेल्लति रसिक, अ चतुर मांनत्र चित्ति चितइ, व्यवहारि नंदन चतुर चल्लइ, कर-ग्रहित अंगुलि अकमेकिं, किंहिं करत नाटक गीत गावति, डोलि तिरास देवति, जिहां चतुर चउकीपट्टि चहुटई, मनगमत लंखति सारपासा, कुरुविंद चित्रित साहामा साहामी, इसीअ च्यारिति चतुर चहुटइ, आवास-अंगण सजल- कूआ, रणकंति नेउर कनक - कलशिं, मलपंत मनसिज मत-मयगल, चमकती मचकु नयन दाखति, जिहां कनक - कलस त्रितय मंडित, जिनमूर्ति मनोहर देव मन्दिर, प्रासाद ऊपरि कनक- दंडिं, धज पुज मंगल आरती, जिहां वसति वसतिं नागदंसण, अत्राण बोहग कम्म सोहग, जिहां पठति विद्या लेखशालिं, एक भगति माइ वर्ग मांइ, किंहा करत शास्त्राभ्यास राउत, शास्त्र चर्चा व्याकरण-विद्या गीत-नाटक, वेद-वाद किहिं करति कर्कश तर्क - चर्चा, काव्य संगीत नाटक सत्य साहित, चतुर जिहां दान-मंडित हस्त-मस्तक, विविध भोग राजमंदिर चमकत चहुइ चतुर चल्लइ, बिहु पक्षि निर्मल पद्मिनी - वर, जिनियरि निवसति रसिक मानव, सारदा, विशारदा. ४८ जि. पंडिता, अखडिता, प्रश्न- प्रहेलिका, चंपूमालिका. ४९ जि. परिमल प्रेम विमल - सरवरि For Personal & Private Use Only सुबंधुरा, सिंधूरा, मंजुला, हंसली. ५० जि. Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रृंगारमंजरी जिहां रोग सोग वियोग, दोहग दुःख दालिद चंडिमा, रणराय अंगणि वैर-परभव, नहींअ कहींइ दंडिंमा, जिहां लंड-भंडा चरड-चंडा, खंट-लंटा नट विटा, नहीं जट्ट मोटा खुंट खोटा, विकट संकट जूवटा. ५१जि. जिणि नयरि चिहुं दिसि विविध, चित्रित प्रौढ पुष्कल पोलिं, तिहां बद्ध मंगल काज, अनुदिन हेम-तोरण उली, तिहां पोलि पोलिं दानशाला, जिमति मानव कोडी, जे विबुध सेवित सौख्य, मंडित स्वर्ग सरखी जोडि. ५२जि. जिहां सगुण अर्थी सर्व मानव, गुणवंत पंडित मान, जिहां कुसुममाला मत्तबाला, धरइ मालिणि जाण, आश्चर्य नाटक गीत मनोहर, चतुर मानव गाम, जे छयल सुन्दर रसिक भोगिक, ते योग्य वसवा ठाम. ५३जि. . जस नयर बाहिरि सजल सरुवर, नदी नीरि निर्मली तिहां विकच-पंकज प्रेमि भमरा, भमति भोगिक मनरूली तिहां हंस सारस अलस चालति, चतुर चकवी चमकती. बक डाक चातक ढिंक चकवा, पालि खेलति श्रुभगति ५४जि. जंबीर निब कदंब जंबू, बिंब अंब प्रलंबया, बंधूक बदरी बहुल बीली, बोल बाउल तुंबया, हिंताल ताल तमाल कदली, बकुल केतकी बहदला, कलि वृक्ष बेउल सदल चंचल, कमल विमल परिमला. ५५जि. जिहां तिलक जालक सरल सालक, बकुल वालक मंझुला, नव नलिन नालक मदन मालक, नीर खालक बंजुला, वर नल रक्त मालक तरल तालक, कुसुम. शालिक परिमला, आराम पालक चतुर मालिक, वृक्ष चालक बहुदला. ५६जि. जिहां जाइ जूइ बमलि कूइ, चतुर हुइ कामिनी, रितु-राय नारी कुसमि. सारी, भमर भारी भामिनी, जहां बहुल परिमल बकुल संकुल, विमल-सर जल शीतला, जिहां मलय-मारूत मधुर-आरुत, भम्रर किंनर . जीतला. ५७जि. जिहां राम-लक्ष्मण भीम-अर्जुन, नकुल-सहदेवी वरा, जिहां सोमवल्ली अर्क कर्क, सिंहका-सुत अति खरा, जिहां कुंभकर्णि किलित-कूवा, भूमि संभव-मूनियुता, जे नयर-बाडी देव-मानव, परम पुरुषि सेविता. ५८जि. सोइ स्वर्गपाहि अधिक पत्तन, वावि कूआ वाटिका, जिहां चतुर मानव चतुर नारी, पहिरंत अनुदिन साटिका, परिणामि नंदन नामि नंदन, नयर-शिरोमणी जाणीइ, जे नयर नव नव भाव पोषी, कत्रीस्वरे वखाणीइ. ५९जि. For Personal & Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत . ढाल ३ राग : देशाख (थूलिभद्रना अकवीसानो देशी ) तेणिं नयरिं राजा अरिमर्दन भलु, सत्य नामई रे परिणामि वली सांभलु, जेणिं भंजिउ रे वइरी जननु आमलु, जस व्यापिउ रे त्रिभूवनमां यश निरमलु, तूटक त्रिभुवन्न मांहि पुहुवि नाहिं, सर्व पाहि निर्मलु, यश आप थापिउ भुवनि व्यापिउ, चंद्र शापिउ कशमलु, वइरीअ जीता जग-वदीता, केवि भीता अणुसरइ, दारिद्र कापइ कीर्ति थापइ, वैरि कांपइ थरहरइ. ६० तेणि नयरिं रे गुण रयणायर धाम रे, रयणायर रे व्यवरारी अभिराम रे, पुरुषोत्तम रे वसवा केरुउ ठाम रे, जस अंगिं रे नहीं जड भावनूं नाम रे. तूटक जङभाव करीनइ न वेरी, नहीं अनेरी कालिमा, मुहि मधुर भीठउ सुजनि दीठ उ, गुणहिं जेठउ चंगिमा, मर्याद राखई नेह दाखइ, सरस भाषइ वयणलां, अन्याय-भंजन न्याय-रंजन, कमल-खंजन नयणलां. ६१ तस नारी रे श्री नामि रंभा जिसी, गुण-पुरण रे रूपई जाणे उर्वशी, नयन भ्रमि रे बापलडी मृगली हसी, तस चितिं रे धर्म तणी वासन वसी. तूटक तस वसी वासन पाप पासन, जैन-शाशन बोह ए, सा शरद-रयणी चंद-वयणी, कमल-नयणी सोहे ए, मुखि मधुर-वाणी साकर-वाणी, सर्व प्राणी मोह ए, श्री नामि सरखी सुजनि निरखी, सदा हरखी सह ए. ६२ सा नारी रे नागरवेली जेहवी, त्रिमवन मांहि रे गुणे करी विख्यात हवी, मुख-मंडन रे रंग देखाडई अभिनवी, फल पाखइ रे झूरइ अनुदिन एहवी. अनुदिन्न झुरइ पाप चुरइ, पुण्यः पुरइ पदमिनी, जिम सदल कोमल विमल परिमल, बहुल फल विण पदमिनी, चिति घरइ आरति बुद्धि भारति, रूपि सा रति कामिनी, . बिहु-पक्षि पूरी नहीं अधूरी, पुण्य-सूरी . भामिनी. ६३ रत्नाकर रे व्यवहारी पाप परिहरइ, एकचिंति रे श्री जिन-आज्ञा अनुसरइ, एक दिवसिं रे व्यवहारी चिंता करइ, पुत्र पाखइ रे मन मांहि अति दुःख घरइ. Jain Education Interational For Personal & Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी . . तूटक दुख धरइ सुंदर सकल मंदिर, चिति-कंदर समलहइ, अति गिरूइ वेदन देह-भेदन, वरसि सम दिन निरवहइ, तस नहीअ थोडी कनक कोडी, चित्त कुडी समलहि, जे पाप लीधां दुःख दीधां, कर्भ कीधां सोइ सहइ. ६४ दूहा हंस विना मानस जिसिउं, वास विना जेम गांम, थांभा विण मंदिर जिसिउं, उत्तम विण जेम ठांम. ६५ चंद्र विना रयणी जिसी, भाण विना जिम दीह, नीर विना सरोवर जिसिउं, जिम वन पाखई सीह. ६६ उत्तम सुत विण कुल तिसिउ, शोभइ नहींअ निदानी, सुत विण मुगति न पाभीइ, इम कहइ वेद-पुराणि. ६७ ढाल ४ राग सोमेरी तथा राग गोडी (दशरथ नरवर राजीउ, ए देशी) नीअ-मनि एहवू चीतवइ, रयणायर धन-नाह रे, वली वनिताई वीनविउ, मनि हूउ अधिक उमाह रे. तूटक निअ-मन्नि चिंतइ पुण्य पोतइ, तेणि जोतइ मति लही, तिहांअजित जिनवर मूर्ति सुखकर, नमिअ सुर-नर वनि रही, तस महिमा गाजई तूर वाजइ, कष्ट भाजइ सवि सही, वांछिय पुरित अजित मूरति, पाप चूरति भय दही. ६८ शासन · रखवाली सूरी, अजितबाला तस नामजी, सेवा सारइ जिन तणी, पुरइ वंछित कामजी तूटक शाशन केरी अति भलेरी, महिम देहरी अभिनवी, एक चित्ति थइनई तिहां जइंनई, भोग देईनई वीनवी, तस भाग्य जागइ पाय लागइ, पुत्र मागइ मानवी. सा कुसमि वूठी नहींअ जूठी, सेठि तूठी दानवी. ६९ तस अनुभावई - सेठिनिं, पुत्र हर्बु गुणवंतजी, सुर-तरु सुर-भुवनि जिसिउ, जयवंत विद्यावंतजी. For Personal & Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत .. तूटक तस पुत्र हऊवु अतिहि लहूउ, पुण्य बहूउ गुणि वडु, सोइ पाप छंडन कुमति खंडन, जिम कुसुम-मंडन केवडु, सोइ सेठि-नंदन मेरू-नंदन, शिशिर-चंदन गुण-निलउ, दालइ कंदन सर्व वंदन, सुजन आनंदन भलु. ७० नाम-महोत्सव बारमइ दिवसि, करइ अभिरामजी, देवी अनुभावई हवु, अजितबल इति नामजी, . . तूटक तस नाम दीधु पुण्य कीg, काज सीधूं तस तणउं, ढमढोल ढमकया घूधर घमक्या, चतुर चमकिया चित्त घणउं सोइ कुमर वाधइ कला साधइ, पुण्य आराधइ इसिउं, अति सुगण सुंदर मयण-मंदिर, हेम मंदिर तनु जसिउं. ७१ चतुर चकोरह मुद दीइ, दीन दीन वाधइ सोइजी, सकल कलाई पूरीउ, रयगायर सुत जोइ जी. तूटक जे देखि तलिनी नयन-नलिनी, नील-दलनी विहस ए, बिहू पक्खि पूरू नहीं अधुरू, मित्र सूरु दीस ए सोइ निःकलंकी सिंह-लंकी, जडित मूंकी गुणि वडु .. गुणि चंद सरिखु चतुर निरखु, अंतर परिखु अवडु. ७२ दिनि दिनि वाघइ कुमर ते, जिम सुदि केरू चंद, सकल कलाई .. अलंकरिउ, त्रिभुवन नयणां-नंद, .७३ ... सुंदर सुत देखी करी, चिंतइ हैडइ तात, ए सरखी जांग कन्यका, किम मिलसिइ विख्यात, ७४ एहवइ रत्नाकर तणउ, परदेसी एक मित्र, आविउ दिवसि घणेरडे, पूछिउँ तास चरित्र. ७५ ढाल ५. राग : केदार गुडी (कपुर हुंइ अति उजळू, ओ देशी ) मित्र कहइ तव वातडी रे, मीठी सरस अपार, मयंगला नयरीइं गयुं रे, हूंतु करण व्यापार. ७६ बंधवजी वातलडी अवधारी, महारा मननु अंक आधार, तु दीन तणउ उद्धार.... ... ... ...दुपद तथा आंचली. तुं For Personal & Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी जिनदत्त नामइ तिणि पुरं रे, व्यवहारी गुणवंत, चतुर शिरोमणी जाणई रे, सज्जन नई वली संत. ७७ ब. बीजू मो, हैडलू रे, त्रीजुं सोइ लोचन्न, हंस मानस जिम मानसिं रे, तिम मुज बांधू रे मन्न. ७८ ब. खीर-नीर जेहवू नेहलुं रे, जेहबुं चोल-मजीठ, तेहQ सोई मुज नेहलु रे, अहवु अवर न दीठ. ७९ ब. एक दिान जिमवा नहुंतारउ रे, आदर कारीअ अपार, मि पणि अंतर नवि करिउ रे, प्रेमइ किसिउ अविचार ८० ब. दीई आपिउं वली लीइ रे, गुह्य कहइ धरिइ मन्न, जिमइ जमाडई निज घरइ रे, प्रीति तणुं ए चिन्ह. ८१ ब. तस धरि जिमवा १ गय रे. तिहां ओक दीठी बालि. त्रिणे त्रिभवन जीपती रे. मनोहर रुपनं आल. ८२ ब कही न सकू एक जीभडी रे, तस गुण-रूप अनंत, आकुल व्याकुल तव थथु रे, जोतां मोरू जंतु. ८३ ब. भोजन गयु तव वीसरी रे, मनईं थयुं अवधूत, तृपति न पामई आंखडी रे. वली वली जोतां रूप, ८४ ब. तव मि बंधव पूछीउ रे, ए कुण कहिनी नारी, नीसासु मूंकी कहि रे, दुखिइ भरिउ भंडार. ८५ ब. ओ मुज दुहिता सुंदरी रे, शीलवती सुविशाल, सकल कला-गुणि आगली रे, मोरइ हैअडइ साल. ८६ ब. देश-विदेशि हूं भमिउ रे, मि वर जोया कोडि, भमतां भमता नवि मिली रे, ओ सरखी जोडि. ८७ ब. किहि वर किहि घर पामीइ, वर घर नहीं संयोग, घर विण वर सिउं कीजीइ, वर विण सिउ घर-योग. ८८ निगुणां धरि सुगुणी पडी, दिन झूरंतां जाइ, मुरख सरसी गोठडी, पगि पगि साल स थाइ. ८९ रूपवती नइ गुणवती, सुंदरि चतुर अपार, सुगुण विचक्षण प्रिउ विना, कुण जाणइ गुणसार. ९० रसीआ विण रस-केलवण, मुरख आगलि भाव, निर्गुण-प्रीउ आगलि तिसिउ, सुंदरि नउ हावभाव. ९१ अवेध अंगणि गोरडी, पगि पगि सालइ साल, मनह-मनोरथ किम फलइ, मातइ ... यौवन-कालि. ९२ परण्या पाखई वरि भलू, नहीं मुरख भरतार, अकजि कडुइ बोलडइ दिन दिन दहइ गमार. ९३ For Personal & Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंत वेधक नई गुणि आग्गलु, भोगी- पुरुष चतुर सरूप सुंदरी, स्वर्ग तण नवलख मंड कोटिं सिउं करइ, तिम गुणवंती कांमिनी, जउ भरतार मराली चमकती, बायस सिउँ घर-वास, अणघटती जोडली, थाइ जण जण हास. चतुर सुगण सरूपी प्रीउड, नारी चतुर . अपार, सरखी जोडी नवि मिलइ, मुरख सही किरतार, जन-गमती मन-भावती, सुगुणी सरिखु पिम्म, अबिहड पुरव पुण्य विण, जोडी लहीइ किम्म. निगुणी सुगुणां करि चडी, सुगुणी निगुणां जोडि, सरखी जोडी नवि मिलइ, मोटी खोड, परणिया पाखइ वरि भलूं, मुरख प्रीइं दिन दैवह नही काठ - लक्षण गुणवंता सरखी सुजाणं, अहिना. जोतां जोतां मोती- हार, गमार. तब हूं म धरसि ९४ ९५ मुरख-भरथार, मांहिं सु वार १०० ९६ चतुर अपार, कीध ९७ नर झूरइ सुगुणी विना, थोडइ ठामि जि दीसोइ, दिवस घणा मुजनिं थया, पणि किमहिं नवि पामीउ, जिनदत्त वाणी इम सुणी, बर कारणि झूरि म घणूं, चतुर लहइ दूरिठियां, नहीं विधाता खोडि, जेहनि जे घटतूं हुइ, ते तस मेलइ जोडि. १०४ For Personal & Private Use Only ९८ विण नारि, जोडी बारि. १०१ ९९ सेठ सुणी वलतूं कहइ, भाइ तिं वारू किद्ध, मनि आणंद हखूं घणउ, तस बहुमान सुद्धि. वर अनुरूप, वर अनुरूप. १०२ बोलिउ मित्त, चिंता चित्ति. १०३ रत्नाकर नंदनपुरिं, तस सुत अजित पवित्त, जडती जोडी ए अछइ, सुणतां हरिखिउं चिंत्त. १०५ हैडा झूरि म मनि घणू, चिंता चित्ति म आणि, सरखइ सरखुं मेलसइ, विधि चिता निरखांणि ९०६ सुगुण सरूपी सोइ नर, नारी सरखी जोडी ए जडी, दैवइं विचार. १०७ केरइ काजि, जिनशेखर सुत मोकलिउ, वोवाह मूं साथि सोइ आवीउ, वाचा मानु आज १०८ १०९ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शंगारमंजरी ढाल ६ राग : धन्यासी ( पीउडु रे धरि आविं, आषाढभूतिना रासनी, से देशी) जिनशेखर सिउं मोकलिउ, मयंगलि अजितकुमार, शीलवती तव अजितनि, परणावी रे गुणवंतनी नारि किं. ११० शीलिं रे सुख सवि सार, जोउ शालिं रे शीलवती सुविचार किं, जस होसिं रे जय जय कार कि... ... ...दुपद तथा आंचलि कन्या परणी आवीउ, अजितसेन सुचंग, सुख विलसइ नव नव परिं, अति अधिक रे ते साथिं रंग किं १११ शी एक दिनी बिपहुर निशि समइ, पुढियां दोइ सुविचार, शीलवती जागी तिसिं, मनि चिंतइ ने पशु-शब्द विचार किं. ११२ शी. फेरु शब्द हवइं सांभली, चिंतइ मनडा मांहि, आवइ छइ एक कुणप को, पूरि लणिउ रे ए नदी मांहि किं ११३ शी. पांच रत्न पांच कोडिनां, दीसइ छइ तस पासि, भक्ष देइ नई माहरू धन, लेयो रे कोइ चतुर विलासि किं. ११४ शी. शीलवती इम सांभली, चिंतइ चतुर सुजाणि, भक्ष देह मन-भावतूं, धन मेहलूं रे मोरइ मंदिर आणि किं. ११५ शी. शुकन-वचन साचूं मिलइ, वलीअ विशेखि सीआल, जोइई तनु वली जाणीइ, एणी वाति रे पंपाल सी आल किं.(?) ११६ शी. बीजउ को नहीं मानसइ, ई जोउं स्वयमेवं, प्रत्यय आणी शुकन नउ, सा सुंदर रे उठी ततखेव किं ११७ शी. करि कुंभकरि कुंभ-स्तनी, करि चाली मलपंत, जल आणेवा मस करी, नवि जाणइ रे ते काइ कंत किं. ११८ शी शब देखी मनि हरखइ, लीधां रत्न स पंच, शब सीआलि नइं दीउं, वली कीg रे तस संभोज्य प्रंपचि किं. ११९ शी. ढाल ७ राग : धन्यासी ( सालिभद् भोगी रे हो, से देशी ) पांच रत्न धरि आणि रे, चिंतइ हरखी नारि, विहाणामां प्रीउनि कहूं रे, धन-आगमन अपार. १२० बाइजी जोउ करमनी वात, जेहनउ मोटु छइ अवदात, त्रिभूवनमां विख्यात... ... ... ...दूपद तथा आंचली. For Personal & Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ जयवंत सूरिकृत हुउ भोलु आहर जाहर अति घणउ रे, ते देखी मनि चितवइ रे, विपहुर - राति कहां गइ रे, माहारि हूं जाणतु रे, " मन विरमिउं वनिता थिकी अहनि पीहरि मोकलु रे, हैड कांइ न विमासीउं रे, क्रोध तणइ वसि प्रांणीउ रे, कुड लेख देखाडीउ रे, तुम पिता तेडियां उतावलां रे, अंगित आकारई करी रे, चेष्टा गति बोलवइ रे, स्त्री पति जन उलखिउं रे, कींधां करम न छूटीइ रे, पहिल पडिउ वरांसडु रे, हवइ तुं एहवूं संपनूं रे, सज्जन पाछउं वाली सज्जन ते तेणी वार, अजितकुमार. १२१ बा• घोर अंधार, एकली एअ सती निरधार. १२२ बा. तात आगली कही वात, घर सरखी नहीं जात्र• १२३ बा. कीधुं सहसा काज, न लहइ करतु अकाज. १२४ बा. जिनदत्त नइ आलापि, स्त्री नई कहइ पति बाप. १२५ बा• नयणां वयण विकारि, लहीइ मननु पार. १२८ बा. चिंतड़ करमनुं दोस, कुहुनु कीधइ सोस. १२७ बा. पति नई न कहिउँ एह, पणि हवइ जोउं छेह. १२८ बा. दूहा छेess मति जे उपजइ, पहिली जु होइ, कइ मन आप- हाणि नई जण हसूं, तु बि-परि नवि होइ. १२९ सजन रीसावियां दीसीइ, जोतां वांक न कांइ, अम्मीणा दोसडा, कइ वइरी कान भरांइ. १३० भाग्गां सज्जन तणां, चालइ नहींअ पण, गुणविण गिणि जव हवी, तव नवि लग्गइ बांण. १३१ भगां पणि सोहामणां, रुसणडां नइ पन्न, हई खटुक्क साल जिम, भग्गु सज्जन मन्न. १३२ बोलाव्यां बोलेइ नहीं, चित्ति उतरी आंइ, साल समाणां सज्जनां, नयणे दीसइ कांइ. १३३ सज्जन वहिडियाँ दोस विण, जाणे पंथी जाइ, देखत अंधां दीसीइ, सुणतां बहिरां थाइ . १३४ - बोलाव्यां बोलतां, अण- जोतां जोअंत, आदीहडा, विचि डूंगरडा जंति. १३५ जोअतां, नयणे केरतां काज, दीहा तणा, कोडि अंश नहीं आज १३६ For Personal & Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगार मंजरो १४३ जे नितु नयणे खेलतां, ते सज्जन देखइ नहीं. १३७ लख जोयणां स हुति . अंधप्पणं लहति. १३८ काढइ अवसर बँक, तही मिलतां निःशंक लाधु मननु पार, पणि छेहडइ हुआ छाहर. १४० को अवसरिं लवाइ, ते उत्तम कहेवाइ १४१ जउ त्रूटउ धण-पेम, नींच तणी गति एम. ९४२ मन मिलसि रसेण, जउ वासीउं विसेण. जांणी मननु पार, धरी रहीइ मन बारि. १४४ दिन दिन तिजइ प्रीति, तेहवी न कीजइ रीति. १४५ तु टलसइ सवि कलेश. रथमां किद्ध प्रवेश. १४६ शुकुन हवां शुभ सार, शुभनु कहूं विचार. १४७ वेश्या गज वृष गाइ, कुमरी - फुल फल जाइ. छत्र चमर मकरंद, मुनिवर महिमावंत. १४९ गौमय दीवउ वीणि. पंडित शुक विप्र वीण. महलेवां लोकह लाख विचालि, आगलि ऊभां आज, सही ससनेहां मांणसां, तेहजि नेह वित्रोडीयां, नेह विहूणां मांणसा, तेहजि जिहांरइ मन हतूं, भलं हर्तुं इणि अवसरिं, जाणि सुजन कपूर छइ, सज्जन दुर्जन आंत, अपराधई नवि ऊभजइ, करम संयोग वहि वसइ, तु मनमां नवि झरीइ, सज्जन लूणां वहिडीओ, अथ मी स्युं करइ, उच्छां मांणस छंडइ, बोली नवि वणसाडीइ, सरोवर - पालि तणी परई, जिम सायरनी लहिरडी, जउ छइ शील जि निरमलुं, अह निय-मनि चतवइ, वाट जातां अति घणां, अशुभ अमंगल पfरहरी, राजा दधि वरवर्णनी, हय दूर्वा चंदन वली, मध मांस मधु रूप मणि, अक्षत सोविन देव धृत, माटी वस्त्राभरण जख, वद्धापन नीररूह, एता देखी चतुर नहि, जिमणांइ, मनवंछित फल पामीइ, धन संपदा अाइ. १५१ रत कुंभ दोए जल भर्या, धेनु सवछी होइ, भाट करइ कइवार जउ, मनवंछित फल होइ. १५२ जिमणांथां डाबां वलइ, ते सावडू सजोइ, जिमणां जाइ वामथी, ते उडु सहोइ. १५३ श्वान शिखी सींचाणडु, वायस नई कलीयार, ए सवि रूडा सार्वडू, पंथइ सुख दातार. १४५ फल For Personal & Private Use Only १३९ १४८ १५० Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ जयवंत सूरिकृत कूकड तीतर भैरवी, बोलइ जिमणइ पासि, सांढ टींटोडी चील्हडां, चातक वाम विलासि. १५५ खंजन दुर्गा चास, धन संपदा विलास. १५६ वायस शुक दुर्गावि, जउ वर करइ स्वभावि. १५७ समली रूडी होइ, मधुर लंवती जोइ. १५८ पंखी दुष्ट सभावि. एहवुं शुकन सभावी. दुर्गा गमन निटोल, ए न लहइ त्रिणि बोल १६० जु स्वर करइ आसन्न, फल लाटि कुरंगी नुलीउ, ए सवि रूडां सावडू, वामी रासभ करभ हय, साहि सीआल डांवां भलां, आलि अथ डाबी बइ, डावी जिमणी कोकिला, बाहिरी लगडी अनेरडां, तेहनुं स्वर पुंठइ भलउ, लुं (क) डी चेष्टा भइरव सर, ते स्युं लहिसइ शुकन जे, दुर्गा प्रथम पीआणडइ, डावइ पासि सोहामणी, लोमट हंस प्रमुख खग, विषम हरण गति जमणली, दुर्गा वायस धूकनइ, जोतां डावां स्वर करइ, शुकन भाव अणी परई, १५९ हु आसन्न. १६१ दर्शन चंग. ते पंथि हवी घणा, वहिलं वलण हसइ वली, रथ चालइ उतावलु हवि, शीलवती तव नारीअ, सारी जिनवर गुण संभारती अ, देती दैवनइं दुषण, आगलि नदी अति दुअंगम, जंगम जलनिधि जाणइ एहवु ए, चंदनथी सहु उतरइ, रत्नाकर तव वहूं प्रतिई, रमति रे छंडु वहूं तुझे अहीं थकी ए, पंक बहुल वली जाणीअ, पंथइ अति उपाईं रंग. लुंकडि च्चारइ जोइ, सुख संपदा सहोइ. जे जे शुभ परिणामि, चिंतइ वनिता तांम. मान-मुहुत अपार, जोउ शुकन नउ भाव. १६५ ढाल ८ राग : केदारु पुरवी ( गिंसुकमालना चोढालीयानी, एणि परिं राणी देवकीओ, ओ देशी ) १६२ १६३ १६४ चित्ति निवारीअ, शील सपोषण, चिंता सही ए करती भूषण बुद्धई जेहवी सागर स्युं कीध भारती ए. १६६ संगम, भार सहित रथ नहीं तरइ, जोतरइ सारथि रथ हलूउ हव ए. २६७ इम बोलइ वली निज मतई, आगलि उंडा पांणीअ, वाहाणीअ उतारु तुझे पय थकीअ. १६८ For Personal & Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भंगारमंजरी वाहाणी वली उतारीअ रिजुमति, रज निवारीअ. सारीअ पहिरी चलने चमकती ए, धनपती चिंतइ वामाए, धीई करी ए वामा ए, रामा ए पणि नहीं रामा रमकती ए. १६९ भव्य-जंतु जिम भव तरिया, तटिनी-तट तिम उतर्या, जोतर्या धाइ धोरी धुलीआ ए, जगदीस्वर- ध्यान धरतां, नवपद महिमा मनि स्मरता, इम करतां मारग केतु वुलीआ ए. १७० सुभट एक मारगि मिलीअ, दढ-प्रहार अंगइ वलीअ, ते वलीअसेठिइंसुभट प्रशंसीउए, वहू कहइ सुणु रयणायर, किसिउं वखाणउ सायर, कायर किहि एकथी नहासीउ ए. १७१ धाय सबल दीसइ एह तनि, रणणायर चिंतइ निय-मनि, नवि मानइ साचु ए सही, पुंश्वली ए चित्ति परिताप अति करीअ. सेठि रह्या मनमां धरीअ, अणसरीअमौनपणउं मारगि वलिअ. १७२ आगलि चाल्या आउल, दीठउ तव एक देउल, वेउल वुलसिरी परिमल भर्य ए, शेठि वखाणइ सुंदर, जांणे जंगम मंदिर, मंदिर स्वर्ग जिस्युं ए अवतर्यु ए. १७३ वहू कहइ ओ मंदिर, तुह्म मनि छइ अति बंधूर, कंदर सरखं पणि मुज मनि हवइए, मुरखि माहइ पहिलीअ, सेठि कहइ छंदु वहिलीअ, गहलिअ उनमत नीपरि ए लवइ ए. १७४ देउलथी चाल्यां जिसई, आगलि आव्युं पुर तिसई, हरिसई सेठई नयर वखाणीउं ए, इंद्र-भवन जिस्युं अवतर्यु, स्वर्ग थके जाणे उतर्यु, चीतयुनिय-मनि मनोहर जाणीउं ए. १७५ नयर वखाणइ सानन, नवि जोइई एहy आनन, कानन समवडि ए पुर, मुज मनइ ए तिहाथी चाल्या ते पुर, वेगई छंडी ते पुर, नेपुर विधवा वनिता जिम तजइं ए. १७६ जव मेहल्यु ते देसडु, तव दीठउ एक नेसडु, वेसडु लोक तणु जिहां अभिनवु ए, देखी थोडु जन-वहन, सेठि कहइ ए वन गहन, निवहन उत्तम कै९ हीं नवु ए. १७७ वहू कहइ सुणु रयणायर, ए उत्तम रयणायर, सायर नयर ते मनोहर रूप ए, धनपति चिंतइ ए समी, वांकी कोइ नजिम समी, मनसमी जिम धण हीनइ विस हरू ए. १७८ विपरित शिख्यित जिम तुरंगी, कुटिल जिसी हुइ वली उरंगी, जु रंगी बोल न मानइ अझ तणु ए, जे बोलइ ते सवि कूट, जेहवां मोटां नग-फूट, अखुट वचन कोश ते एह तणुइए. १७९ सा कहि ए वेलाउल, एहवि आव्यु माउल, वाउल शीलवतीनुं तिहां रहइ ए, ससरा स(र)सी - सुंदरी; नहुंतरी आव्यु मंदिरि, निज घरी भोजन सामग्री करोइ ए. १८० For Personal & Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ जयवंत सूरिकृ सादर, ऊपरि भोजन दे सुंदर चूआ-चंदन छांटणां ए, उत्तम संतोखी वउलावीय चलावीय मातुल दुःख गयां सवि वीसरी, साधन अणुसरी वाट वटतर छांहडी ए, उतर्या आलस मोडींअ, आपी चादर, वलवीय, वस्त्र १८१ निज मंदिर वल्युं ए. आत (ता) पि नीसरी, वड हेठलि रथ छोडीय, नारीअ लटकइ लोडावइ बांहडी ए १८२ ढाल ९ राग : रामगिरी ( ऋषिदत्ताना रासनी, ऋषिदत्ता पंथि संचरई, ए देशी ) १८५ की. सेठि बइठा वड हेठलई, रथ छांहींडइ रे नारि, नियमनि चिंता चींतवइ ए, है है अधिर संसार. १८३ कीधां करम न छूटीइ, जूउ हृदयि विचारि, दिन सघला नहीं सांरेखा, चिंता चित्ति निवारि. १८४ दूपद तथा आंचली. करमिं मुंजी मोटउ नम्यु, वली रावण भूप, पांडव नरपतिं वनि भम्या, जोउ करम सरूप. बार वरस राम वनि रल्या, भाइ लक्ष्मण साथि, सुख-दुःख केरी बांधणी, सहू करमनइ हाथि. १८६ की. नल नरपति पर मंदिरई, करइ अन्ननउ पाक, नियतन सुरित छांडीउ, जोउ करम - विपाक. १८७ की. सती सुभद्रा मूलगी, करमई चडचु रे कलंक, दमयंती करमई नडी, शीलवती नई कलंक, १८८ की. हरिचंद पर धरि जल वहइ, सीता सहइ अपवाद, करम साथइ कुणइ नवि चलईं, कीजइ किस्यु रे संवाद. १८९ की. रूषिदत्तानई वली चडयुं, राक्षसी केरूं आल, कर छेद्या कलावती, जोउ महाबल मयलासुंदरी, सह्या ढंढणरिखि मास छ लगि, महाई दुःख सह्यां, वन महईं सुत जनमीड, अक सुखना अकं दुःखना, जिम तरुअरनी छांहडी, किहां ते मंदिर मालिआं, वाघ सिंघ भीषण वली, करम- जंजाल. १९०० की ० दुःख अपार, १९१ की. देश, वेश. १९२ की. नव पाम्या आहार. परिहर्यु पतिनुं जोउ करमनुं दिन सरिसा न होइ, खिणि नमती रे जोइ. १९३ की. सप्तभूमि - आवास, किहा • वनि - वास. १९४ की. For Personal & Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरो किहां पल्यंक तलाइ स्यूं, किहां हीडोला खाट, किहां रहिवं रज-पूंजमां, वली अवघट-वाट १९५ की. उदय आव्युं कर्म महारइ, जउ चडयुं रे कलंक, भोगव्या विण छूटइ नहीं, मोटा राय नइ रंक. १९६ की. दहा इम करि नीअ-मन चालती, शीलवती गुण-गेल, अहवइ पासि करीरथी, वायस बोल्यु बोल. १९७ धन-आगम अनरथ समु, जाणी ह्रदय मजारि, वायसनि वनिता भणइ, भाइ तुं अवघारि. १९८ तोः वचन सोहामणुं, खोटउं ते नवि होय, कलियुगि तुं ज्ञानी समु, तूं सरिखु नहीं कोइ. १९९ आगम निर्गम सवि लहइ, तुं तां चतुर सुजाण, सुख-दुःखनी वात तुं कहइ, तोरी वाणि सुवाणि. २०० तुज अरथी अहीं को नहीं, भाइ म करि आयास, गुण अवगुण थइ परणमइ, तिहां स्यूं करइ प्रयास. २०१ गुणवंत विण कुण लहइ, कुण दिइ गुणनइ मान, सार विण सूकइ वेलडी, उगी सूनइ रानि २०२ सोना केरी भालडी, पाणी मांहि म नांखि. कुगुण कवेधां आगलइं, ल निज गुण मन दाखि २०३ गुण-मणि मन भंडारमां, मूल न कीधुं जाइ, मुरख करि सोइ अप्पीउं, कुडी मूल न थाइ. २०४ सुगुणां गुण अरथी विना, दिन झरता जाइ, नागरवेलि फल बिना, जिम झूरइ वली जाइ २०५ पासई कुगुण कुवेध नइं, सुगुणां हइई साल, झूरी झूरी पंजर हवइ, अवटातां जाइ काल २०६ गुणवंत वरी अकइ भलु, नहीं नर-गुण दसलाख, कारेली बहु कां फली, वरि ओक रूडी-द्राख २०७ सुगुण सुवधां नितु मरण, जे जाणइ गुण-दोष, मन मांहई झुरी मरइ, निसिदिन हैडइ सोस. २०८ सुगुणां विण गुणवंतनी, कहु किम भागइ भुख, सरखई सर जे मिलइ, ते जाणइ मन-दुःख. २०९ सज्जन को तेहवू नहीं, जेहनई कहुं मन-दुःख, कंठि आवइ हैआ थकी, आधु न लहइ मुक्खे. २१० बोली बोली थाकु घणूं, उडिन पंखि-सुजाण, जाइ-न तुं तिणि देसडइ, जिहां को हुइ गुण-जाण. २११ For Personal & Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतरिकृत ओक अपराध आगइ कर्यु, तेहथी चूकां कंत, ताहरु कहण करू वली, तु दुख हुइ महंत. २१२ तं निसुणी रयणायरइं, पूछइ वहूनई वत्त, वायस वयसह नीच ए, ओह स्युं केही वत्त. २१३ शीलवती एहवू सुणी, वलतु उत्तर देई, तातजी मुरख किम कहु, पणि नवि बुझतु भेय. २१४ माणस पहि पंखी भला, जे हूइ सुगुण सुविध्ध, कुगुण कुवेधां माणसां, कां किरतारइं किध्ध. २१५ जेह सरि पीइ दीप जल, तीह न पूंछी देअंत, माणस पहइं के मोरडा, रूडा कयन्न होति. २१६ रूपइं रूडा सूडिला, गुण जाणेवइ मोर, प्रीतई पारेवां भलां, माणस नहों पण ढोर. २१७ ए सरखु जगि कोइ नहीं, वाहलां मेलणहार, संदेसु सुघउ कहइ, पंखी नइ अवतारि. २१८ शुकन-शास्त्रमा एहना, बोल्या छेइ गुण जेह, मुज मुखि एक ज जीभडी, नवि कहिवाइ तेह. २१९ अभ्यागत १ अदभूत कहइ २, मेहागम ३ अशोभन्न ४, मीढुंभोजन ५ रौद्रभय ६, शोभन ७ नइ भयचहिन ८ २२० प्रहर १ तस्कर १ कलह २ मेहागमन ३ इष्टागमन ४, विरूप ५ कलह ६ राजप्रसाद कहइ ७ बोली महाभयरुप ८ २२१ प्रहर २ अशुभ १ अनिइ मृत्तवत्तडी २, अभ्यागत ३ धनलाभ ४, मेहागमन ५ रायमान दिइ ६, राजविडूर ७ वस्त्रलाभ ८. २२२ प्रहर ३ देह-व्याघि १ भय २, सुख कहइ ३ मन चीत्या फल होइ ४, राजभय ५ भयवात्त किहइ ६, मेह ७ अभ्यागत कोइ ८. २२३ प्र०४ ब्रह्मस्थान कि रुयडी, चिहु ए पुहुरे वाणि, पूर्वादिक दिसि चिहु पहरि, सृष्टिई गणे सुजाण.' २२४ घर उपरि ऊंचइ चडी, काक करइ कक-वाणि, इष्ट-समागम तु हुइ, घन-आगम वली जाणि. दद शबदई दुःस दोहिडं, ख स शबदई आहार, कु कु धननाश करइ वली, ट ट ट ट मृत्यु विचार. बंधु-संहरे हहइ हुइ, गगइ वली भूमि-लाभ, घधइ कारय-सिद्धि हुइ, ए स्वर तणउ विचार. २२७ मारगि जोतां माणसां, सनमुख वायस होइ, . तिणि मारगि नवि जाइवु, जाइ तु न वलइ सोइ. २२८ For Personal & Private Use Only Jain Education Interational Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी वायस हुइ जउ सावडू, तु वंछित पुरेइ, वघ बंधन हुइ उवडू, पंथइ अति दुःख देइ. २२९ तुंडइ भूमि खणइ वली, वायस वाटइ जंत, तु ते वाटई पंथीआं, लाभ घणेरू हुंति. २३० वायस कंटक-तरु चडी, शबद करइ वार वार. तु तिहां कलेश हुइ धणउ, एहवउ शुकन-विचार. २३१ शुम भोजन वडि-सर करइं, शुक वृक्ष सरि कलेश, ध्याम पुंजि धान्य आगमन, खडगइ वैरि प्रवेश. २३२ . कुंभि तुरंगमि जउ चडी, वाइस शब्द करेइ. वरभोजन वाहलां मिलइ, साचु वयण धरेइ. २३३ वस्त्र-खंड लेइ धरि चडइ, वायस तु हुइ लाभ, चर्म-खंडि निधि दीसीई, कुसुम फलई हुइ लाभ. २३४ सूर्योदियि जउ नगरमां, आवइ वायस रंगि, दुख हुइ तेण देसडइ, मध्याहनइ देश-भंग. २३५ राय चौर-भय अस्थमणि, ए आगमन विचार, रातई जाइ गामि जु, तु देश-भंग अपार. २३६ शुष्क-वृक्षि प्राकारि जउ, वायस रुदन करंति, जलधर जल वरसइ नही, एहवं शास्त्र कहंति. २३७ भमता वलय कोरि जउ, वायस नयरि दीसंति, देश-भंग तु जाणिवु ए, पणि साचु हुति. २३८ वायस अरूणोदय समइ, ग्रह सन्मुख बोलइ, मान-मुहुत वली धन घणुउ, गृहनायक नई देइं. २३९ जु चडी घर-बारणइ, पंख धुणइ दिसि सोइ, तु दिन पांच माहइ वली, अगनि-उपद्रव होइ २४० तोरणि चडी खर-स्वर करइ, महुर सरई सुंजत्त, तु भूमि-तलि सांतीउं, निधि देखाडइ जत्ति. २४१ घर साहमू थइ घर जोइ, खर-स्वर वली बोलइ, वायस दिन पंचक मांहि, तु धन-हाणि करेइ. २४२ वली उठइ बइसइ वली, तेडइ निज परिवार, तु जाणे तिणि मंदिरई, चिंता हुइ अपार. २४३ डावू अंग जउ चंचु-पुटई, लूहइ धूणइ रीस, तु दिन थोडामां वली, सीस कचडइ निज सीसि. २४४ For Personal & Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत मंडल करवि पप्परइं, भोयण जइवि ठवेइ, तु गृहपति नइ भू-घणी, मोटी पदवी देइ. २४५ इत्यादिक सवि शुकनमां, बोल्या छइ धण भेय, जाणपणू पणि दोहिलूं, जगमां शास्त्र अमेय. २४६ ससरइ अत्यादर करी, वहूनइ पूछइ वत्त, ए वायस कहि छइ किस्युं, ते तूं कहइ मुज जित्ति. २४८ ढाल १० राग केदारे गुडी (छांनो छपीनई रे कंता किंहां गियो रे, ओ देशी) निसासो मूंकी कहई रे, शीलवती तव नारि रे, तातजी तुह्म नई स्यूं कहूं रे, हूं निर्भाग्य संसार रे. २४८ कुलयुगनी स्थिति एहवी रे, जे गुण थाइ दोष रे, निज गुणथी दुख उपजइ रे, तु दीजइ कुहुनई दोष रे. २४९ कु. छेदन भेदन तनि सहइ रे, निज गुण माटि मंजीठ रे, घाणी-पीलण सहइ घणूं रे, सेलडी जु गुण मोंठ रे. २५० कु. सफल सदाफल आंबलां रे, फल माटि सहइ दुख रे, वालु जु परिमल दीइ रे, तु छेदावइ मुखु रे. २५१ कस्तुरी जु मृग धरंइ रे, तु ते छंडइ प्राण रे, हय गय सूडा रूयडा रे, पासि पडिउ सुजाण रे २५२ कु. तिम मुजनइं गुण माहारा रे, हुआ दोष समान रे, मि जउं तुह्म नइ गुण करितु रे, तुं मई लहिउं अपमान रे. २५३ कु. सीयालिणि-श्वर संनधि रे, हूं लावी पांच रत्न रे, तुह्म सूत शय्या उपरइ रे, सांत्यां करी अति यत्न रे. २५४ कु. मि अपराध किसिउ कर्यु रे, जे दीवू अपमान रे, गुण अवगुण जोया नहीं रे, इम कां थया अज्ञान रे. २५५ कु. वायस सविहंमां मलग रे, वायस वयस समांन रे, महुर सरइ बोलइ वली रे, ए छइ आते सुझाण रे. २५६ कु. करीयर तरुयर हेठलि रे, दविण अच्छदं दस कोडि रे, जे अरथी हुइ अरथनु रे, ते लिउ आलस मोडि रे. २५७ कु. हूं भूख्यु छु अति घणू रे, मुज नई दिल आहार रे, साचां मारां वयणलां रे, मम करसिउ विचार रे. २५८ कु. For Personal & Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शंगारमंजरी २१ दाल ११ राग देशाष मुजि रे नीसासा मेहली बोलइ, सुणु सुणु स्वामी गुणवंत तात रे, मुज रे मनई दुख जलि-भरित्रं, कुण आगलि कहूं मन तणी वात रे. २५९ सुख रे पाम्या वाणी एहवी सुणी नई, हरखिया मन घणू धनपति सार रे, ओ रे वनिता अति मतिवंती, गुणवंती ए नारि रे अपार रे...दुपद जोउं रे एहनी मतिनं पारखू, कर कांकणनई स्यूं मकरंदं रे. एहवु रे धनपति चिति चिंतई, पूरिउ रे मनडु अति आनंदि रे. २६१ एहवं रे धनपति चिंति विमासी, आणिउ रे आयुध नगरथी एक रे, खणतां रे करीयलि हेठिं दीठउं रे, दस-कोडि निधान रे. २६१ स. मनि ऊलट अति उपनु, देखी देखी धन तणउ अंबार रे, चिंतइ रे लखिमी मूरतिवंती, मुज धरि बहु सुविचार अपार रे. २६२ सु. तव रे ससरु वनिता बोलइ, रथ अहां थकी पाछउ वालि रे. वुलु पाछां वहू मंदिरि आपणइ, बोलइ ससरु वयण रसाल रे. २६३ सु. दुहा शीलवती वलतूं भणइ, हूं न जोउ तुह्म बारि, जु अविचारिउं तुझे करिउ, कांइ नवि कीधु विचार रे. २६४ मन भगां कुबोलडे, ते किम कहु संधाइ, जिम जिम समइ सांभरइ, तिम तिम साल सथाइ. २६५ सोविन नइ वस्त्रह तणी, संधइ संधि मिलाइ, मन भगुं कुबोल पण, संधि न बइसइ ठाम. २६६ .. सर फूटउं जल वही गयु, पालि म बंध अपार, मन-भग्गू वली दिन गयु, तीह सी आस गमार. २६७ वाहलां टली वयरी थयां, छेहडउ देइ जंति, मुरख बोलह बाटडी, आसा-लबध जोयंति. २६८ भर-रूसणि मनामण वहंति परड पालि. है है मूरख माणसा, गय नेहि करिआलि. २६९ माणस नवि बोलावीइ, मनसिउं तिजिउ नेह, भलवई कहइ कुबोलडा, माम गणइ निस-नेह. २७० विचलियां जो बोलावीइ, तु हुइ उरतु अपार, अगान उलाणी फूंकतां, मुह भराइ छाहारि. गुण त्रूटा जउ कोडिना, तउ किम लभइ लक्ख, जिम सर तिम नर नेहलु, त्रूट न लग्गइ विक्ख. २७२ For Personal & Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ जयवंत सूरिकृत मन जे डूंगरे, न मिलइ बरसह कोडि, उतरिउ, ते न मलइ वली जोडि. २७३ वरसह केरी प्रीतडी, एक बोलई तूटी जाय, जे अवगुण मनमा वसियां, ते नवि अलगा थाइ. २७४ राय पडी अंतरंग मेहेण, वन दव दाधां रूखडां, पीलवीइ चिति बलउं कुबोलडे, नवि पल्लवइ मूएण. २७५ प्रेम विरलइ सय लेखि. २८० मनथी इ नेह करंतां वरस सय, छोडंतां अवगुण एक कुबोल नइ, जे अवगुण विरमइ नहीं, छेह लगइ वहिडइ नहीं, अवगुण उत्तम किमहि नउ भंजइ, आदरीआं सय हाथ, खीणउ झीणउ चंदल, सिरि वह श्रीजगनाथ कुण जाणइ मन-वत्तडी, जे मनि वसीया दोस, फल चीरिं गुण जाणीइ, पणि नवि मांणस रोस. २७९ हैडा घणूअ न झूरीइ, सज्जन वहिडया देखि, मनमांथी उत, तेनु लेखि म उतरीया, तेह सिउ किसिउ बप्पीहु शरदह तणउ, के तूं विहडिउ नेह जे सांथीइ, ते नवि आवइ ठांमि, शीतल कीउं जल तापवी, नीरस सुजन सुसंपां जोइ, कुसंपा नख आमिखथी होइ, तु कीजइ नेह रस, जे तु नितु बलवूं निस नेहसिउं, जिम सुगुण सुवेधां मांणसां, मुरखडे सुगुणां गुण अरथी घणा, केतकि कंटक कां धरिं गुणविण गुणकुण लहइ, विण बोलावई न विसरइ, ते वाहाला स्युं रुसणूं, दोस कीया तिणि सज्जने, मंदिर प्रजाल्यां पावकिं, हुइ परिणामि २८२ अलखाणां, अलगा ते अरणइ कह इ ( ? ) २८३ पणि क्षण एक, तणउ होइ छेक. २७६ ते संसार, संभारि २७७ सनेह, For Personal & Private Use Only मेह. २८१ दीसइ रंग, दीass पतंग. २८४ २७८ तिजायांइ, छेहु जाता भमर म गोरी तू जे विण घडी न जाइ, सज्जन कीजइ मुरखांइ. २८५ मेहेलि, गुण-गेल. २८६ कांइ. २८७ तुहइ मनामण थाइ, तुहि न अगनि तिजाई. २८८ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी सेठि मनावइ वली वली, शीलवती सुविचार, सुकुलीणी सा सुंदरी, मानिउ बोल विचार. २८९ सज्जन चंदन पन्ननिं, ए त्रिहूं एक सभाव, भागई पणि गुण करइ, नहीं अवगुणनु भाव. २९० कमल-नाल जिम कुंअलूं, तिम दुरियन मन होइ, वार न लागइ भांगता, निवि. संधाइ सोइं. २९१ व्रज थकी अति आकरां, सज्जन केरां चित्त, अवगुणि किमहि न भंगीइं, अविचल हुइ सुचित्त. २९२ मुहि कडूऊ बोलइ नहीं, खल बोलणां सहंति, गुण लइ दोस न उच्चरइ, सज्जन किमहि न रुसंति. २९३ दुरियन पीडया सजन पणि, सहिजइं शुद्ध स्वभाव, छाहारि टप्पण मइली, अधिक उजल भाव. २९४ सज्जन गुण केतां कहूं, तु हइअ सरिस दोइ, पाहणि रेखा प्रीतडी, अशनि समी रीस होइ.. २९५ कठिन न बोलइ दुहवीया, मुहुडइ हंसी बोलंति, मर्म न पभणइ पर तणा, सज्जन लक्षण हूंति. २९६ पर अवगुणि मनि नवि धरइ, नित्य करइ उपगार, वइरी नइं पणि नवि कुपइ, सज्जन सहिज जुहार. २९७ गुण कीधि अवगुण करिं, केवि करइ उपगार, अवगुण कीधि गुण करइ, ते सज्जन संसारि. २९८ सज्जन तुहीन तणी परिं, तापि विलाइ तेह, दुरियन दीवा समवडिं, अधिक जलइ कय-नेह. २९९ सज्जन अति रीसिं भरिया, विप्पिय न भणइ तोइ, राहु मूहि ससि किरणलां, अतिहिं शीतल होइ. ३०० सज्जन दुरियन परिभाव्या, गुण पणि तोइ करंति, अगनि अगर दजाडतां, परिमल बहुलु हूंति. ३०१ चंदन वनि जिम सीयला, विरला सज्जन हूंति, छेदन भेदन तनि सहइ, पण बहु परिमल दिति. ३०२ विद्रुम छेदिया ठायथी, कीधां खंडो खंडि, वींध्यांजण जण करि चड्यां, तुहइ रंग अखंड. ३०३ वरि ओक वरस विलंबीइ, कीजइ सुमनस संग, छेह लगइ नवि उतरइ, राता कांबाल रंग. ३०४ जइ अवराह जिसय करिया, सुयणा तो न धरंति, ओक समई जे गुण करिउ, ते अनुदिन समरंति. ३०५ For Personal & Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत ढाल १२ राग गोडी (श्याम प्रद्यम्नन। रासनी देशी, समोरण देवई रच्यु, ए देशी) रथ पाछउ वालिउ वली, सेठिई करीय विचार रे, अनुदिन शीलवती तनि, शील तणउ शृंगार रे. ३०६ जोउं जोउं सीलह पारखू, शीलई सुख सवि हेव रे, जलन हुइ जल समवडिं, सारइ सुर नर सेव रे...दुपद सेठि कहइ तव वहू प्रति, ताहारी अदभूत बुद्धि रे, तिं ते पुरव वोलडा, कां बोलिया असंबद्ध रे. तातजी हूं वहू तुह्म तणी, नवि बोलु खोटी वाच रे, जे जे बोलिया बोलडा, ते ते सधला साच रे. चरण राखेवा कारणिं, धरीइ चरण-त्राण रे, विखम वेलाइं वली वली, कीजइ चरण-त्रांण रे. नई उंडी जलवरि भरी, दुअंगम-पंथ अदष्ट रे, जउ कंटक खूचइ पगई, तु अति हूइ अनिष्ट रे. जउ वाहणां भीनां वली, तु क्षणमां सुकाइ रे, जउ वंठां तु वली नवां, वाहणां अदभूत थाइ रे. ३११ सरव उपाइ वली वली, राखेवउ निज देह रे, देहथी अधिक बीजउं किसिउं, जहास धरीइ नेह रे. ३१२ जे तुझे सुभट वखाणीउ, विजइ अप्रतिम मल्ल रे, मि तस पूाठई देखीयां, आयुध केरां सल्ल रे. ३१३ जो. किहि एकथी तस नाहीसतां, पूंठिं दीध प्रहार रे. साहामु थाइ एकइ नहीं, ते कायर निरधार रे. ३१४ जो. ढाल १३ राग मल्हार (मम करो माया काया कारिमी, ए देशी) जे अंक देउल नयरनिं परसरिं, दीठइ अतिं सुक्सिाल रे, मुज मनि देउल ते नवि भावीउ, जेहबुं जंगण-जाल रे. ३१५ सुणु सुणु बातडी तात अह्मारडी, हूं तुम गुण तणी दासि रे, जे जे बोल्यां पूरव बोलडा, जोउ जोउ तेह विमासि रे. ३१६...दुपद जंगल जालई रे देहरू रानमां, नट विट लइ विश्रांम रे, रहिवू न घटइ तीह सुमाणसां, जड जूआरीनं ठाम रे. ३१७ सु. For Personal & Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शगारमंजरो २५ तेह भणी देउल मई न वखांणीउ, हवइ सुगु नयरनी वात रे, बरपाटण भणी तुह्मो अति वर्णविउं, मि न वखाणिउ तात रे. ३१८ सु. तिणि पुरि वाहलां माणस को नहीं, कुणि नवि बोलडु दीध रे, रान तणी परि नयरि भमिया घणूं, कुणि नेवि भमतडी कीध रे. ३१९ सु. ते दिसि रान समावडी, जिहां को सुजन न होइ, मनडूं सूनूं : रडवडइ, गुण नंवि जाणइ कोइ. ३२० एकजि वाहलां सुजन विण, बहू जण भरीउ देस, रान तणी परि जाणीइ, कोइ न पूछइ संदेश .. ३२१ जिहां वाहलां सज्जन नहीं, जिहां को नहीं गुण-जाण, तिहां जातां मन किम वहइ, जेहवू शून्य मसाण. ३२२ सयल सरोवर जलि भरियां, बप्पीह मनि मेह, सधलइ सूनुं तेह विना, जेहनई जेहसिउ नेह. ३२३ ऊंचां आंबा विखम-फल, कां धरइ मन अंदोह, . काजि न आवइ आपणइ, ते ऊपरि सिउ मोह. ३२४ वरि कारेली आप धरि, नहीं पर मंडपि. द्राख, वरि कालां पणि आपणां, नहीं गोरा नव लाख. ३२५ वरि ते चंदन विसमथी, रूडउ. पंथ करीर, वरि ते सायर खारथी, थोडूं जलधर नीर.. ३२६ वरि सज्जन एकइ भलु, जेहथी पहुचइ . आस, बीजा बहूंया नर वसइ, तेहनउ सिउ संवास. ३२७ देशी पाछली चालती छइ मि तिणि कारणि रांन समानडूं, कहिउँ कहिउं नगर विख्यात रे, जे पणि दीठउ आगलि नेसडु, जोउ जोउ तेह तणी वात रे. ३२८ सु. तिणि पुरि तुह्मनि माहरइ माउलई, दीधुं दीधुं अति बहूमांन रे, स्वामि तेणइ . कारणि नेसडु, कहिउं कहिउँ नगर समान रे. ३२९ सु. जिणि पुरि लहीइमान जि अति घणउं, सोइ पुर नगर समान रे, जिहां नहीं सज्जन कोइ नबोलावए, नयर स रान समान रे. मि रथ छाया सहजि अणुसरी, परिहरी वटतरु छाय रे, वायस-विष्टा शाखा पतनथी, छ : मासि रंडा थाय रे. ३३१ युगतई युगती वाणी सांभली, धनपति हरख्या अपार रे, बुद्धि सरसति अभिनव अवतरी, चिंति चिंति चित विचार रे, ३३२ सु. For Personal & Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतरिकृत . . ढाल १४ राग रामगीरी ( सुगुण सल्हुणा सीमधर, भे देशी) सा शीलवंती सुंदरी, मतिवंति अलवि अपार रे, धनपति मन अति रोंजवइ तु, गोरी ते गुण भंडार रे. ३३३ सुगुण सलूणी रे मनसिउं, नहींअ विखाद रे, नव नवां कौतुक जोअती तु, आवइ ति मंदिर सार रे...आंचली किहिं एक खेलइ मृगलडी, मृग कंधि कंथ चडावि रे, कहिं एक पीउ पीउ बोलतु तु, चातक नेह सभात्रि रे. ३३५ सु. किहिं एक दीसइ मोरडी, नाचता मोर अपार रे, किहिं करइ मालति मोगरइ तु, कइवडइ भमर झंकार रे. ३३६ सु. किहि एक चमरी-सेरभी, किहि चकव चकवी जोडि रे, किहिं अलवि चालइ हंसली तु, बग हंस सारस कोडि रे. ३३७ सु किहि एक दाडिम सूयडी, मनोहर नीलां पांख रे, बोलतां अति घण रूयडा तु, जेहवी ते आंबा-साख रे. ३३८ सु. पदमिनी वेघ विलूघडा, किहि भमइ भमर रसाल रे, कोकिला पंचम आलवइ तु, बइठीति सरस रसालि रे. ३३९ सु. किहि कठिन पीन-पयोधरा, सिखि पिछ चरणा सार रे, वन माहइ खेलइ शबरली तु, कंबु-कंठि गुंजा-हार रे. ३४० सु. किहिं सरल साल तमाल नीला, किहिं तरल ताल प्रलंब रे, बीजोरि बोर बदाम बीउ, तुंब अंव जंबु कदंब रे. ३४१ सु. जंबीर जंबू जाइ जूइ, किहिं द्राख रायण सार रे, करणीय किंश्रुक केतकी तु, नारिंग सदल अपार रे. ३४२ सु. पुन्नाग नाग सुराग पूगी, ऊगी ति नागर वेलि रे, अति कठिन श्रीफल दाडिमिनी तु, वरवर्ण कोमल केलि रे, ३४३ सु. चतुर चंपक केतकी तु, दमनकु करूबक वाल रे, शतपत्र पाडल पोयणी तु, जासुण जाती जाल रे. ३४४ सु. इणि परि कौतुक जोयता, पुहुतां ति मंदिर ठाय रे, कामिनी देखी आवती तु, अति अजित थयु विछाय रे, ३४५ सु. For Personal & Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगार मज दूहा सेठि वहु ज देखीयां, सुत रूठइ ते वार, तिजी, अ सिट करिउ विचार. ३४६ ए अति चंचल पापिणी, कां आणी निज-गेहि, खुंटी लंपटी लोभिणी, नीठरि अति निस-नेहि ३४७ ए असती दुःशीलिनी, शीलवती नइ नाभि, ते मांणस कां देखीइ, जेहनु न गमइ नाम. ३४८ जे देखी मन उल्लसइ, ते वाहालां परगामि, आंखि आगलि अलखामणां, जेहनूं न गमइ नाम. ३४९ एहवां वचन सुणी घणां, हुं हुं वारइ तात, ए घर-लछी कुल-वहू, एहनी मोटी वात. ३५० ढाल १५ राग अ बुद्धि अभिनव भारती, अति निपुण गुणवंती भली, शीलवती सम को नहीं, शीलिं सीता जेहवी, वरसरल शय्या ऊपरिं, धन कोडी पन्नर सर्वह, कूल - वहू कुलदेषति समी, निर्दोखी गुणवंत भली, इम तात वचन सुणी घणां, आ रत्न लाभ लगइ वली, धन-लाभ पन्नर कोडिनू, तस बुद्धि अधिक वली लहीं, मद-मोद मेहर मंदिरं ते, धन-लाभ देखी अती घणउ, भूवि स्वार्थ-भूता सहू भमइ, जस आस पुहुइ जेहथी, धन देखी सहू क हरखीउं, किम दाखवूं मुख माहरु, असा करी कुल-वहु शील- श्रुंगार, नवि लहूं हूं गुण पार रे ३५१ नारी चतुर सुजाण रे, सुर नर करइ वखांण रे ... दुपद तथा आंचली. तुं जो-न पांचइ रत्न, एणीइं आणिउं यत्न रे. ३५२ शी. ए नारी कुल-श्रृंगार, ए नारि अतिहिं उदार रे. ३५३ शी. सुत रत्न पूछइ वात सोई सेठि कहइ अवदात रे. ३५४ शी. जाणीति अति मतिमंत रे, मनि हुउ कोप सुशांत रे. ३५५ शी. द्रव्य थापिउ कोशि, वीसरइ हैडइ रोस रे. ३५६ शी. जगि नहीअ वल्लभ कोइ रे, तस तेह वल्लभ होइ रे. ३५७ शी अति अजीत थयु विछाय रे, हवि करूं किसिउ उपाय ३५८ शी. For Personal & Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतमरिकृत जिम कितब चूक दायथी, जिम सुभट चुकु धाय, जिम युथ चूक हरिणलु, कर विना जिम कारे राय रे. ३५९ शी. बिछाय वदन थयु तिसिउ, भून्यस्त . दृष्टि सुदीन," . जउ कार्य अणघटतूं करइ, तु लाज धरइ कुलीन रे. ३६० शी. निज वदन हूं किम दाखवू , कुहुनि कहुं मन बात, .. इम चित्ति साथि झूरता, तव भणइ सुगुण स तात रे. ३६१ शी. मन साथि जेहसिउं मांडीइ, छेह लगइ आवचल नेह, एकवार कलह करी घणउ, परखेइ जोइई तेह रे. ३६२ शी. अज्ञान भावई जे करिउं, तस दोष न कहइ नीति, इम कही बेहू खमावीयां, अति सरल प्रांजलि चीत रे. ३६३ शी. नव नारि पणि सुविनीत अति, इम कहइ टाली रोस, ए कंत नही अपराध तुज, मुज कर्म करु दोष रे. ३६४ शो. तहीं प्रभति आधिकु प्रेम तस, जिम तामरस रोलंब, जिम चंद्र अनई चकोरडा, जिम कोकिला नइ अंब रे. ३६५ शी. तहों थकी प्रश्न-प्रहेलिका, नवी नवी भाषा भेद, .. पूछइ जि वर हैऑलिका, ते कहइ वडइ ।बछेदि रे, ३६६ शी. अथ प्रहेलिकाधिकार सरघा मुखथी स्युं हवइ, कुण करि-मंडन होइ, सुंदरि ससि-मुखि मृग-नयणि, उत्तर दिइ मुज सोइ. ३६७ शीलवती उवाच-मधुकर, व्यस्तजाति. १. अजित उवाचएक नारी रहइ कोशमां, स्त्री उपरी स्त्री नेटि, हैइ विलग्गी नवि गमइ, पुरुष तणउ भरइ पेट. ३६८ शीलवती उवाच-तरवारि, समस्तजाति. २. अजित उवाचसायर-सुत दमयंति-प्रिय, कुण कहु कमला-कंत. भोगिक वल्लभ कुण हवइ, भर सायर का हुति. ३६९ शीलवती उवाच-चंदनलहरि, द्विव्यस्तजाति ३.. For Personal & Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृगारमंजरी ३७१६ अजित उवाचपावक-वाहन सर्व प्रिय, वीर वल्लभ संसारि, सज्जन वाणि केहवी, कहेवी शोभइ नारि. ३७० शीलवती उवाच-मेखलाभरणसहिता, व्यस्तसमस्तजाति ४.. अजित उवाचजलधि-सूता कुण प्रिय, शोभा लहइ परिणांमि, सिइं पामइं सुख भमरला; उत्तर दिउ अभिराम. शीलवती उवाच-कमलेन, द्विसमस्तजाति ५... अजित उवाचकुण वनवासि अलखामणउ, अहिधर कहेवु मित्त, झुरी झुरी मन भीतरिं, कुण कृश हुइ नित्त. ३७२ शीलवती उवाच-विरहित, द्विव्यस्तसमस्तजाति ६. अजित उवाचसुभट चौर वंछइ किसिउ, का खल वयणि वसंति, पवनह वैरी कुसुम -प्रिय, का गणिका घर हुंति ३७३ शीलवती उवाच--भुजंगलि, त्रिव्यस्तजाति ७. अजित उवाचदुर्जन जन जगि कहेवु, विण अपराधि दहेइ, ससि-वाहन सो कहेवु, विरही नई न रुचइ. ३७४ शीलवती उवाच-दोषाकर, एकालापकजाति ८. अजीत उवाचदुअंगम अटवी कहेवी, भील तणउ अहिठांण, नवयौवनि वनिता किसी, दइ आनंद सुजाणि. ३७५ शीलवती उवाच-मदनवती, भिन्नकजाति, ९ । अजित उवाचन्याय राजियंइ नरपति तणइ, कहु कुण केहवी होइ, , , वनराजी केहवी कहेवी भजइ, दिउ अह्य उत्तर सोइ. ३७६ शीलवती उवाच-कुमुदावलीराजिता, भेद्यभेदकजाति १० .. अजित उवाचमंदगतिइं कुण जाणीइ, अरूण उगमतउ कुण, ससि-लंछन कहु कुण हवइ, उत्तर दिउ अह्म निउण. ३७७ शीलवती उवाच-मद १, अरूण २, ससि ३. प्रश्नोत्तरसमजाति, ११ For Personal & Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवतरित... अजीत उवाचमान-हानि उत्तर जिहां, कहु तिहां केहबूं प्रश्न, निज करि वीरधाइ किसिउ, दिउ तुझे उत्तर कृश्न. ३७८ शीलवती उवाच-कोदंड, पृष्टप्रश्नजाति १२. अजित उवाचसुहडिं रूठई विइरीआं, कां रमइ उरवरि नारि, अति आंसारिं सिउं हवइ, अति चंचल तरवारि. ३७९ शीलवती उवाच-...(?). भग्नोत्तरजाति १३. अजीत उवाचनागार-हित न्याइ करी, नरपति कहेq होइ, वैनितेय आलय किसिउ, दिउ अह्म उत्तर सोइ. ३८० शीलवती उवाच-नागरहित अद्युत्तरजाति १४. एवंमध्यांतादिज्ञेयं. . अजीत उवाचमोह करइ कुण कृपणन, विश्व विधाता कुण, कंद वधारइ कुण वली, कुण दिइ पंथ सउण. ३८१ शीलवती उबाच-...(?) कथितापह्नुतजाति १५. अजीत उवाचराजीवाली-बोहगो, को ता इठा होई बावीसं होइ गुरु, दीहामुक्खो कोइ...(?). ३८२ शीलवती उवाच-हंस. अजीत उवाचबालक-पिय गिरिजा-पीउ, नारी हैइ कोइ, दसई इकगुरु रितु नमन-लघु, कुण दोहा नाम होइ, ३८३ शीलवती उवाच-पयोहर. अजीत उवाच : धणुंह तणइ शिरि कुण रहइ, कुण हुइ सुयण शरीरि जल निहिदिसि लहु नयन-गुरु, वयवर कवण सुधीर. ३८४ शीलवती उवाच-गुण, दोधकनांमजाति १६. For Personal & Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगारमंजरी अजीत उवाचकुण निषेधा रथ हवई, कुण पश्रिम दिशि स्वामि गोरी कमला-नाह कुण, कुण हवइ धरणी नाम. ३८५ शीलबती उवाच-......... ......................(2) अजीत उवाचघन जघन स्तन पीन युग, निर्जित नयनि कुरंगि, नननन मममन अहइ अह, कुण कहइ पहिलइ संगि. ३८६ शीलवती उवाच-नववधू, वर्णोतरजाति. १७. अजीत उवाचलंपट शिर पीयुष-प्रिय, अश्रुची भूचर नाम, वसंग उत्तम भय कुहु, केहवु भमर सुजाण. ३८७ शीलवती उवाच-जातीसुमनसिसादर, अष्टदलकमलजाति. १८. अजीत उवाचजगमां अश्रुचि किसिउ हवई, कोमल सिंउ कमलाह. . दमयंति वरनाम तनु, नाम किसिउ कटकांह. ३८८ सरल किसिउं पंकज-नलिं, कुंण रखुइ नगरांह, किसिउं जणावइ आचरण, कवण सहाय खलांह. ३८९ कुण निषेधा रथ हवइ, ब्राह्मण वल्लभ कोइ, मुखमंडन केवु नीच जन, विरही केहवु जोइ. ३९० For Personal & Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत शीलवती उवाच-मदनवेदनासाकुल, १८, मंजरीसनाथजाति १, अष्टदलकमल २, गोमुत्रिता ३, व्यस्तस्मस्त ४, बहिर्लाधिका ५ द्विचित्रगर्भितं. १८.. we न X ल ना सा अजित उवाचजल अभि मांनस कुसुम-सर, महेरव मज्झिम कलेश सुख भय गुहवर नाम कुण, गोरी उत्तर दिसि. ३९१ . । शीलवती उवाच-कंदर्प १, कंदल २, कंदर ३, काकपदोत्तरजाति १९. अजित उवाच ससि उपम्म निषेय कुण, वन-वैरी. कुण होइ, रतिवर जलचर ठाय कुण, भय विचि अक्षर कोइ. ३९२ For Personal & Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुगारमंजरी ३३ शीलवती उवाच-वदन, मदन, मंथारजाति, २१. म द न न अजित उवाचमरण थकी कुण दोहिलु १, ओर किसिउं करि जाइ २, अहिवर वास ३, एकांत वच ४, वैरीस्मर ५, तिमिरांह ६, ३९३ कष्टनांम ७, वर्णात्य कुण ८, श्रीवीची केहवु मार ९, पंखी १० दिवसह नाम कुण ११, बलिभद्र आयुधसार १२. ३९४ गोरी रतिवर नाम कुण १३, गोरसथी स्युं होइं १४, . कमलापति १५ कहेवु दोहिलउ, हरिण विमासी जोइ. ३९५ रुखह वइरी कुण हवइ १७, सुंदरी मनस्युं जोइ, सतर प्रश्न मइं पूछीयां, एक पदि उत्तर देइ. ३९६ शीलवती उवाच-सर्वतोभद्गजाति २२. ८ र ९ ।' | र विर | हर | बिं | रह | हर | रवि | विह हः। वि | वि | विह | ह१ | वि२ | ल३ | ४ । ५ । ६ | अह | हल | वि | हवि | अः | विह | र ११ | १२ | १३ | १४ |१५ | १६ अजित उवाचकुण नर उन्मादी हवइ, सिउ हयवल्लभ वन्नि, पंखीडा सिउं वल्लहुं, उत्तर दि . सुवचन्नि. ३९७ For Personal & Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ 'जयवंत सूरिकृत शीलवती उवाच - नववया, प्रतिलोमजाति २३. न व व या पावक वाहन सज्जनह, वैरी वल्ली नाम, सुंदरि ससि-मुखी कटि-तटी, सिइ शोभइ परणामि ३९८ अजित उवाच - शीलवती उवाच - मेखलयो. पावक अरि मरूथलि, किसिउं नरगुण सखी बोलावि, वाहालेसर वाणी किसी, सरोवर पालि सोहावि. ३९९ शीलवती उवाच - नीरजसहिता, शृंखलाजाति २४. अजित उवाच - स्मर- थानक नव - बालिका, सिउं कहइ प्रथम संभोगि भय संयोगह नाम सिउं, शीलवती उवाच - मदनरहित, अजित उवाच -- कुण शीलव्रत योग्य. ४०० एकांतरित शृंखलाजाति २५. स्त्री-मुख सम वनवासिनी, किसिउं समावइ मेह, उत्तमजन वांछइ किस्युं, ब्रह्मानं कुण गेह. ४०१ शीलवती उवाच- सरसिजवास, एकांतरित शृंखलाजाति २५. अजित उवाच - शब्द एकांति भुजंगहर, कुण हरइ तिमि - रस निउण, मरण थकी अति दोहिल, सुंदरि ताहरू शीलवती उवाच - विरह, नागपाशजाति २६. अजित उवाच - कुण. ४०२ कुण निषेधा रथ हवइ, सज्जनवल्लभ होइ, नेह जणावइ मन तणउ, कहु कुण उत्तर सोइ. ४०३ शीलवती उवाच - नयन अजित उवाच अंतिम अखर कहु किसिङ, कुण कमलापति नाम, बाला लोचन उपमा, कुण पामइ अभिराम ४०४ शीलवती उवाच - हरिण. For Personal & Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृगारमंजरी ३५ अजित उवाचनिसि दिन वंछइ सुभट सिउं, धुरि एक अक्षर देइ, बाला-गति कूच उपमा, सुंदरि कुण पामेइ. ४०५ शीलवती उवाच-वारण. अजित उवाचकुण गोरी-मुह समवडि, दिइं अक अक्षर अंति, विरहनई सिउं नवि गमइ, ते मलयागिरि हुंति. ४०६ शीलवती उवाच-चंदन. अजित उवाचमध्य निखेधी वर्ण करि, आगलि पाछली एक, .. ससि-वयणी मृग-लोयणी, तनु उपमि कुण छेक, ४०७ शीलवती उवाच-कनक. अजित उवाचव्यजंनमां कुण मूलगउ, सिउं वल्लभ संसारि, ते नेह गुण ते नीपजइ, ते कहु कुण श्रृंगार. ४०८ शीलवती उवाच-कज्जल, वर्धमानाक्षरजाति, २७. अलि अल गुण कुण वल्लही, कूण भडइ अंगोअंगि, नाम किसिर हरिनू कहि, जित नयन कुरंगि. ४०९ शीलवती उवाच-मालती. अजित उवाचकुण गोरी उर उपमि, मध्यम वर्ण तिजेइ, मधुकर कहेवी मालती, वल्लभ पणि न भजेइ. ४१० शीलवती उवाच-कदली. अजित उवाचपूरव पछिम विकिण हैइ, सुभट सो मध्य-विहीन, अरि पूरइ गोरी हैइ, कुण हुइ कठीन सुपीन. ४११ शीलवती उवाच-पयोधर, हीयमानाक्षरजाति २८. चातक वल्लभ कुण हवइ, करि संपिय जंपीय, नेहलया करवत किं, न करइ सुयण कुवीय. ४१२ शीलवती उवाच-कलह, चलब्धिदुजातिः २९. अजित उवाचपारवती पति नाम जे, आदई कन्ह करेइ, ते सुंदरि तुज पासि छई, अहनु उत्तर देइ. ४१३ शीलवती उवाच-हार.. For Personal & Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ जयवंत सूरिकृत अजित उवाच - जे अक्षर उतावला, आदिम इंसिउ भेल, दोखी देखी नहीं सकइ, बाहला ते तूं मेहलि. शीलवती उवाच- चीर. अजित उवाच - जे मोटउ हुइ वृक्षमां, तूं रूधिम प्रीउडा, शीलवती उवाच - वाट. अजित उवाच - जलचर जीवह जेहथी, तेणि आ साथि मिलि, शीलवती उवाच - जाल. अजित उवाच - जेहनु रंग वखाणइ इ तस अंति होइ, रत - कलह ते प्रीउडइ, सही अविणासी कोइ. ४१७ शीलवती उवाच - चोली, दत्तमात्राधिक जाति, ३०. अजित उवाच - ४१८ सरोवर कांठइ जे वसइ धुरि आकार करेइ, अंतिम अक्षर परिहरी, सा अझ चित्त हरेइ. शीलवती उवाच - बाला, मात्राधिकाक्षर व्यक्तजाति ३१. अजित उवाच - आदि काहानु देइ, अम घरि जोसइ तेह. तेहनईं प्राणाधार, कीधु तस संहार. सुंदर सूर-गिरि कुण हवइ, अंत्य विनाशनि होइ, ते बि केवल नींचनिं द्रव्य थकी अति होइ. शीलवती उवाच - मंदर, च्युतमात्राक्षरजाति ३२ अजित उवाच - चातकनई जे वल्लहु, तस आदिक्षर ठाणि, मूलदेवी सिउं पालटी, घरये अधिक सुजाणि. शीलवती उवाच - मेह, च्युतदत्ताक्षरजाति ३३. अजित उवाच - हंस बल्लभ हवइ पालटी, तूंस बेील्युं मुनि, शीलवती उवाच - कमल. निर्मल अग्नि शतांग, अखि तूह तिख ख. For Personal & Private Use Only ४१४ ४१५ ४१६ ४१९ ४२० ४२१ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी सुंदरि डूंगरि सिंउ हवइ, अतिहिं विषम अगम्य, खहि पाखाल लिहालउच, खोखी अविलूह टम्मि (१) ४२२ शीलवती उवाच-कंदर, अर्धमूलदेवी ३४. अजित उवाचसवखिपनी तखिहा भपी, उज कडखान खावोकि, ऊजल विमि कसरान जु, टिप्पिहि यखी डोकि.(?) ४२३ शीलवती उवाच-आस, शुद्धमूलदेवी ३५ अजित उवाचमूहि मीठी अति वल्लही, चांपीती रस देइ, गोरी छोली पातली, ते पणि वृध घरेइ. ४२४ शीलवती उवाच-इक्षुयष्टि. अजित उवाचगुणवंतु वाहालेसरू, थण अंतरि सुपइठ, थाइ विलग्गइ गोरि गलि, सती जननिं इठ. ४२५ शीलवती उवाच-हार. स्तन सिउं आलिंगन लीइ, वलगइ गोरी कंठि, अंगो अंगइ भीडीइ, सतीइं जार न हूंति. ४२६ शीलवती उवाच-कंचुक. शाब्दिक प्रहेलिकामाग विचालि तं वसइ, तुज पति उपमि जेह, पणि नवि रूधइ वाटडी, भंजउ अझ संदेह. ४२७ शीलवती उवाच-मातंग. अजित उवाचमण मजिझमि य सा वसइ, पणि नारी नवि होइ, तेहनि सेवइ योगिवर, कहिउं न बूजइ कोइ. ४२८ शीलवती उवाच-मसाण. अजित उवाचमदनबाण सहकार, सारसलां वरनेत्रह, नेपुरी आलि प्रियंग, चंग मयगल गइ चितुह, भूपति रूठइ सबल, सयल बल ठाहावइ वेरीअ. नाहसंतां कहु कोइ, होइ वल्हावन केरीअ, वली तेणि तुठइ भूमिपति, एक अक्षर धूरि देइ करि, निज राज पट्टणदेस सरिसी, कवण खेलइ वास हरि. ४२९ · शीलवती उवाच-सुंदरी. For Personal & Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3h जयवंतरिकृत अजित उवाचधर्मवंत पणि प्राणहर, गुणवंत पणि छइ वंक, सदवंसि पणि अकुलीन नर, बिहु-कोडे पणि रंक. ४३० शीलवती उवाच-धनुष. अजित उवाचछिद्र सहित पणि बहु गुणवंती, करइ मेलापक पणि नवि दूती, लोहमइ पणि वेसि न होइ, पुरुष सहित सा नारी कोइ. ४३१ शीलवती उवाच-सुइ-दोरू. इत्यर्थ प्रहेलिका, प्रहेलिका जातिः ३६. अजित उवाचविरही कराली गोरडी, पीडी नयेण-सरेण, चंपकमाला उरि धरई, वाहाली कारणि केण. ४३२ शीलवती उवाचपूर्वहरेणमोदग्धः अधुनापि हरलिंगाकारधारिणी, चंपककलि कापि काणतापोपशांति चितनोतु. ४३३ अजित उवाचप्रीउ चाल्यु परदेशडइ, ओ उगिउ बीय-चंद, विरहणी वनिता गुण घणेइ, कुण जाणइ वृत्तंत. ४३४ विरह जगावइ कोकिला, कुहु कुहु पंचम भावि, गोरी गाइ गीतवर, विरहणी कवण सभावि. ४३५ पीउ परदेसी आवीउ, बाला देखी सलज्ज, कोइल वायल करडु, ए पूजिया कुण काजि. ४३६ हंस उडाडिउ बालाइ, प्रीउ चालंतु जाणि, पंजर आगलि मेहलीउ, गोरी भाव वियाणी. ४३७ बाला विरहानलि तपी, खिणि खिणि दुख न खमाइ, अंगिनि धन जि अंगमी, मसिहर सेवइ मांइ. ४३८ प्रिय विण झूरइ बालिका, सूकी खंखर थाइ, गज-गामिनि मृग-लोयणी, कां उध्वब्भय जाइ. ४३९ रथा सम्मुह पिउ मिल्यु, जुहार न कीधु जाइ, लाजि चतुरा कंठथी, हार सत्रोडइ कांइ. ४४० राखीतु रहिसइ नहीं, पीऊडु चालणहार, मोकलावइ भोंति आंतरइ, गोरी कठण विचारी. ४४१ १ सजन सेरी साहा मिल्यु', नीचा नम्युन जाई (पाठान्तर 'क'). For Personal & Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरो यत साजन दीठउ आवतु, त्रूठउ मोती-हार, लोक जाणइ मोती वीणइ, नमी नमी करइ जुहार. ४४२ मौन करी आगलि रही, नयणां करसिउ जंपि, प्रीउ चालंति बालिका, कारण जाणिउं कंपि... ४४३ . हृद्यालिकाजाति, केचित्तुंगढजातिप्राहुः ३७. अजित उवाचरातिइं आवइ दीसिं जाइ, शीतलकर मोरइ तनि वाहइ, वली वली जोतां दिइ आनंद, कहु ते वालिंभ नाजीचंद ४४४ शीलवती उवाच-नाजीचंद्र, ३५ अजित उवाचमधुर१ सरइ बोलइ मनहरइ, सुगुण सुवैध निज खोलइ घरइ सूर-नर तेहनिं ध्यानि लीग, कहु ते वनिता नाजीवीणि. ४४५ शीलवती उवाच-नाजीवीणि. अजित उवाचउंचा अणीआला बलवंत, मुहि काली तलि गोरा हुंति, नीसरइ है९ फोडी भल्ल, कुहु ते पद्मोघर नाजीभल्ल ४४६ शीलवती उवाच-नाजीभल्ल, ३६. अपघुतिजाति ३८. सुखीआं अमीअ तलावडू, दुखीआं विति साल, अगनि शिखा पीउ विरहियां, उ सखि चंद रसाल. ४४७ रूरीरांररीरराररु, रूरीरांरिंरार, रर रिरि रूरिररिरां, रोररिरं ररा सर. इत्यादि मूलदेवी, सहदेवी, करपल्लवी, नेत्रपल्लवी, अंकपल्लवी, बिंदुपल्लवी, नादपल्लवी, वस्त्रापल्ली, अषधपल्लवी, धान्यपल्लवी, वर्णपरावर्तादि भाषां बिंदुमती प्राहु, इंछालिपि प्रभृतीनपि ३९. अजित उवाचरावण-रिपु-सेवक-पिता-अरि-स्वामी-सुत तास, तस वाहन सर सांभली विरही मेहलइ नींसास. ४४९ शीलवती उवाच-मयुरवाणी. त्रंबासुत-पति-प्रियतमा वाहन, मध्य-विभागि, जल-सूअ-सूअ-सूआ-वाहनह, गमनि उपाइ राग. शीलवती उवाच-सिंहलंकी, हंसगमनी. १ मधुर रसरइ. For Personal & Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत अजीत उवाचरवि वैरी शिर-केशि, तास भक्षण मुहि वसीउ, नयने तेहy मित्त, तास वैरी कटि हसीउ, उरवरि तेहन भक्ष, रूपि तस स्वामिनि दीपइ. करचरणे तस वास. तास प्रियग मनिं जीपाइ. इम दक्ष गणि तस स्वामिनी, मही मांहइ महिमां सोहओ. मदमत्त मंथर मयण महा, रस मंजरी मन मोहओ. ४५१ पवनह वाहन वाहनह, तस वाहन तस नारि, तिणि थानकि मेलावडु, जोओ चतुर विचार. ४५२ ...गंगाया... गिरिजा-प्रिय, उर-भूषणह, तस बल तस शंगार, वाहालेसर ते लावयो, जु हुइ प्रेम अपार. ४५३ ...हार.... सागर-तनया तास वर, तस वाहन तस आहार, तस वल्ली अह्य बल्लही, कहु कवण विचार. ४५४ ... ... ... नागवल्ली, नाटशिलाजातिः, ४०. अजित उवाचऊडइ पणि बोलई नहीं, जेहनई पंखी न होइ, प्रीउ आवंतउ जे कहइ, सहिं ते पंखी कोइ. ४५५ शीलवती उवाच-वधावू. पत्र पुष्पु फल जिहां नहीं, अण वावि उगंति, सोइ सवि हूंनइ दीसीइ, ते कुण भंजउ भंति. शीलवती उवाच-केशपाश, समस्यांजाति, ४१ अजित उवाचइस्वर-चरणे जे वसइ, तिणि नामइं जस नाम, तस वयणे हूं परभवी, सही म पूछसि नांम. ...बइल्लेन... चातक मुहुडइ जे लवइ, तिणि नामि सोइ नाम, सहि तस विरहिं दुबली, चालिउ रयणि विरामि, ४५८ शीलवती उवाच-प्रियः. इति प्रश्नाधिकारः. पुनरजितः पूछति, अंक कला वेछि.-शीलवती उवाच, अजित प्राहएक वनि २ शत २२ चंपका, एक चंपके २२२ शाखा, एक शाखायां २२२ चंपकानि, एवं सर्व वने कति चंपकानि. For Personal & Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ jगारमंजरी अजित उवाचकश्वित् मासं यावत् , स्थानद्विगुणाष्टकाः ददाति, १, २, ४, ८ एवं ३० दिने कति टका भवंति. शीलवती उवाच५ अर्बुद, ३ कोडि, ६८ लाख, ७० सहस्त्र, ९ शत इति मास सं ख्या एवं सर्वतो १ अब्ज, ७ कोडि, ३७ लाख, ४१ सहस्र ८ शतं २३,छ । अजित उवाच८ कोडि ८८ लाख ८८ सहस्र ८ शत ८८, अस्य वर्ग किं भवति, ८८८८८८८८. शीलवती उवाच७ अंत्य, ९ सरितांपति, १ महापदम २ नखर्व, ३ खर्व, ४ अब्ज ४ अर्बुद, ९८ लाख, ७६ सहस्र, ५ शत, ४४ छ. अजित उवाचस्थान द्विगुणे नष्टे २९ दिनांके त्रिंशत्तम दिनांकेन शिरोतले को विघीयतां. शीलवती उवाचत्रिंशतम दिनांकोद्विगुण क्रियते, ततोत्यांक मध्या दे को हीयते, शेखं शिरोबालक, छ. अजित उवाच (चित्र पृष्ठ ४२ मां छे.) ९८ दिन संकुलिते किं भवति. शीलवती उवाच४ सहस्र ८ शत ५१ छ. अजितसेनोवाच८० टंकैः १ सेर, ४० सैंर १ मण, १६० मणे १ मूटक एवं विधो मूटकः कति चिटकैर्मक्षितः एकैकेन अढीटांक तिलाः भक्षिताः शीलवती उवाचद्वि लक्ष २, ४ सहस्र, ८ शत २०४८०० छ. अजित उवाचमहिला हेलानि रत, सुरत रस समरिं भडतां, मुष्टिं मुष्टि प्रहार, हार अंगो अंगि अडतां. तूटउ कलहिं लागि, भागि त्रीजइ भुंइ पड़ीउं. पइठइ सेजि विजालि, पंचम रेडखडीउ. छठउ ति कामिनि करि-कमल, दसमू ति प्रोउडइ अणसरिउ, छ सुत्र मोती देखीआं, ते हार केतइ परिबरिउ. ४६० शीलबती उवाच-३०. " For Personal & Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत ه द्वि गुणेनष्टे २९ दिनांके ه ه ه ه ه ६४४४४४४४४४४४४४४४ ६६६६६६६४४४४४४४ ६४४४४४४६६६६६६६ ६६६६६६४४४४४४ ६४४४४४६६६६६६ ६६६६६४४४४४ ६४४४४६६६६६ ६६६६४४४४ ६६६४४४ ६४४६६६ १२८ २५६ ५१२ १०२४ २०४८ ४०९६ ८२९२ १६३८४ ३२७६८ ६५५३६ १३१०३२ २६२११४ ५२४२८८ १०४८५७६ २०९३१५२ ४१९४३०४ ८३८८६०८ १६६७७२१२ ३३५५४४३२ ६७१०८८६४ १६४२१७७२८ २६८४३५४५६ ५३६८७०९१२ For Personal & Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृगारमंजरी अजित उवाच - भमि भमि भमर गुण रागि, भागि बठइ तरू सिहिरिं, त्रीज विकचि कबिं, अंबि चउथउ लहरि, पंचम चंपकि विमल, अमल कमलह दलि त्रीजइ, तिहां एक मातु भमर, अमर तरू सिहरिं दीसइ. ते भमर संख्या केतली, कहु गणित अंकइ कामिनी. मृगनयणि बोलत अमीय, ससि-मुखी, मत्त मयगल-गामिनी. ४६१ शीलवती उवाच - ६० अजित उवाच - गोरी नयन कटाक्ष, दश विक्षेप नाहाठां, हरिणां चथइ अंसि, वंश - जालइ जै पइठां, अर्धा तिटिनी तर, नीरि ते ताणी लीधां, पंचमिं पंकज नयणि, वयणि पण तरणां दीधां, दो मान माग मानिनी, तुज सेव करतां देखीइ, इम सर्व हरिणां तणी संख्या, केतली ते लखीइ. ४६२ शीलवती उवाच - ४०, छ. इति गणित अंकपृत्छा, छ. श्री, श्री. गाथा प्रश्न प्रहेलिका, जे इम पूछिया भेद, ता ते बोली शकूं, हूं पणि वडइ विच्छेहि ४६३ गोठि करता गुण सिउं, कहींअ न आवइ पार, वाणी वरस अमीय-रसि, जिम भावि जल-धार. ४६४ सज्जन सिउं गुण गोठडी, जाणे अमृत-पान, भूख तरस ते किम वइ, जस मनि तेहनूं ध्यान. ४६५ सूर-गुरूनि नवि उपजइ, जे रस सहिजि सुचंग, गुण सुवेधां संगतिइ, ते ते हुइ रस-रंग. ४६६ सुंदर सुगुण सुवेधनई, साहमां मिलइ सुजाण, साकर दुधइ सिउं मिलि, कुण करीसइ वखांण. ४६७ राग - सरोवर रसि रमइ, जिम हंसानई हंस, रूप विलसइ नव नव परिं, दोइ निज कुलि अवतंस. ४६८ परिवार, ईमानी, नाहानांइ सु वार. ४६९ कुल- देवतिनी परिसहू, आराधइ गुणवंत नहानां मोती गुण वडां, गोरी वडइ थणेण, पान- अडगर नाहानडा, वाहलां हूइ गुणेण ४७० For Personal & Private Use Only ४३ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - जयवंतसूरिकृत ससिहर नाहानू पूजीइ, बालु-रवि वंदाइ, चिंतामणि हुइ नाहानडु, पण गुणि अधिकू थाइ. ४७१ गुणवंता गुणि राचीइ, रूपि न धरीइ रंग, वरि कंटाली-केवडी, सीबलि नहींअ सुरंग. ४७२ गुणवंता अरथी घणा, कुहुनि कहिसिउं रंग, जस मन बाधू जेहसिउं, तेहनि तेह सुचंग. ४७३ तरुवरि जायां वनि वसियां, सरस सुरगां फुल, जिहां जाइ तिहां मानीइ, गुण माटइं लहइ मूल. ४७४ रवि आवाइ नितु दूरिथी, हंसा पासि फिरंति, गुणवंत पंकज कारणई, केता सेव करंति. ४७५ भमर भमइ दुख नवि धरइ, परिमल वेधिउ फुलि, सुगुणां सज्जन सेवना, लाभइ केणइ मूलि. ४७६ ओ भमरउ ओ कमलिनी, ओ द्वाख्या ओ वीर, साधन सोविन-मूंदडी, ओ नर नवरंगा हार. ४७७ जां न चलइ तां अमीय-रस, नेह न क्षण महेलाइ, विचलिउ विखथी अधिकते, दीठइ मन उल्हाइ. ४७८ नवनव रसि सुख विलसतां, इम दिन गमीया केवि, देवतिनी परि सहू करइ, शीलवतीनी सेव. ४७९ रयणायर सूर सुंदरी, गोर-पयोधरि भार, हार तणि परि संपना, सुर सुंदरि भरतार. ४८० विहि वरांसिउ बिडं परिं, दोइ कलंक धरेइ, एक सरखू मेलइ नहीं, अनि नर रयण हरेइ. ४८१ जग-वल्लभ उपगार पर, सज्जन पुरइ आस, फटि रे निरगुण दैवते, कांइ न कीयां चिरास. ४८२ सुगुण सदुषण सरजीयां, हा हा ए विहि वंक, तुछ आयु कइ धन नहीं, अहवा होई कलंक. ४८३ थोडा वरसइ. मेहला, घणा करइ उपगार, संभारणुं सज्जन करइ, थोडइ घणूं संसारि. ४८४ थोडा बोलइ बोलडा, पालइ मेरू समान, सज्जन सुपुरिस चिंरज्यु, कीजइ कुण उपमानि ४८५ रंग देखाडी रस समी, मोह उपाइ जाय, जिम जिम समइ सांभरइ, तिम तिम काल ज कपाइ. ४८६ For Personal & Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमजरी ४५ अजितसेन अति दुख धरइ, नयनि वछूटइ नीरि, विरह-सरोवर उलटिउं, केतो रंघई वीर. ४८६ केता समरु बोलडा, प्रेम तणा परवाह, दुख दारुण वज्रघातथी, जिम दावानल-दाह. ४८८ कुटुंब सहु तव बुजवइ, अधिक न कीजइ सोस, एहवी गति संसारनि, कुहुनइ दीजइ दोस ४८९ सुर सुरपति जिन चक्रधर, वासुदेव बलदेव, हरि-हर सूरगुरु असुर नर, चिरजीवी-न न केवि. ४९० राम रावण मुंज भोज नृप, सवि पुहुता परलोकि, चंचल गति संसारनी, कुहनु धरीइ शोक. ४९१ दुःख घरीइ कुण कारणिं, कहिसिउं कीजइ नेह, जे अविहड करी सारीइ, ते पणि आपइ छेह. ४९२ प्रेम सवे छइ कारिमा, अविहड दैइ म जाणि, घडीय न जाती जेह विण, ते विण धरीइ प्राण. ४९३ माणस केरां हेडलां, कठिन घडिया जिम लोह, फाटइ नहीं घण दुःख सहइ, वाहलां तणइ विछोहिं, ४९४ कहिनां दुःख संभारीइ, कहिन कीजइ सोस, झुरि म समरि सनेहडा, हइडा करि संतोष. ४९५ सांजिं जिम पंखी मिली, नव नव रंगी रमंति, कुण किहानु किहांथी मिल्यु, तिम सवि सज्जन हुति. ४९६ गुण संभारी सहू रडइ, सगपणि न रडइ कोइ, मेह जातां मोरा रडइ, पीछ जतां नवि जोइ. ४९७ सहुणा सरिस संयोगडा, क्षणमा हुइ विश्राल, वीज तणूं अजुआलडूं , न रहइ ते चिरकाल. ४९८ हइअडूं वन तणी परिं, फाटइ नहीं वियोगि, जे जे दुःख आवी पडई, ते ते सहिवू लोकि. ४९९ चंचल गति संसारनी, जांणि भूलि म जीव, शोक-संताप सवि परिहरि, घरम करु सदेव. ५०० थोडइ घणु प्रीछीलीइ, डाहा हुइ जेह, अस्थिर सिउंमन परहरी, स्थिर स्युं कीजई नेह. ५०१ चक्रवा-चकवी मेलीयां, सर लीधो कणलाह, जनपूजा पामी गपुं, न सोचियु दिणनाह. ५०२ Jain Education Interational For Personal & Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत महीअलि नाम रहावी, जलधर जीतु दानि, ते नर गया न शोचीइ, त्रिभुवन-तिलक समान. ५०३ सज्जन सहु टोलइ मिली, प्रोछविउ अजितकुमार, शोक संताप निराकरी, तस सूपिउ गृह-भार. ५०४ वाहलां विछोहियां मांगसह, पहिलू डंबर खाइ, आज तेहबू कालि नहीं, दिनि दुख उलाइ. ५०५ शरदिई सरोवर नीर जिम, खिणि खिणि छंडइ पालि, तिम तनि तनि दुख उसरइ, जेहवू हुइ ततकाल. ५०६ अजितसेन गृहपति हवु, शीलवती धरिनारि, कुटंबभार दोइ निर्वहइ, निज कुल तणा आधार. ५०७ इम करतां दिन केतला, गमीआ लील विलासि, अजितसेन सुख जोइवा, पुहुता श्री मधुमासि. ५०८ ढाल १६ राग काफी [ देशो फागनी] कमल-सिंहासन निरमल, अमल-ससी सिरि-छत्र, चंचलगति मलयानल, मयगल अतिहि विचित्र, कोकिल-कलरव बंदीय, नंदीय अलि-परिवारि, मयण-राय रहिउ कानिनि, मानिनि-मद संहार. ५०९ काव्यं कामिनी-जन सेवा गहिंगही, कुसुम-बाण अति दारुण करि ग्रही, आगलीथी आव्या वसंत-प्रधान, पूठि थकी राज पंच-बाण. ५१० चंपक-तनु कर किशलय, बिशलय-दल भुज नेत्र, अलि कुल कजल अंजन, जनमन-रंजन चित्त. गोरी जंबीर पयोधर, अघर प्रवाली-सार, वसंतरूप ए कामिनी, कामिनी तिलक-शृंगार. ५११ प्रीउडउ उत्तर कामिनी सिउं रातु, नवि रहइ रवि वारिउ जातु, दखिणी इम नीसासु मेहलइ, वायुलु उन्हउ तिणि खेल्लइ. ५१२ सरल सहकार सपिंजर, मंजरि करीअ आहार, कोइाले सरलइ सादि, वादइ अति मनोहर, . विरहिणी-जन मन-साल ए, साल तणी परि तेह, प्राण त्यजइ के पहिलां, गहिलां जे ससनेह. ५१३ For Personal & Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी वृक्ष सिउ लइ आलिंगन वेलडी, फल-पयोधरि नमी साहेलडी, . कामिनी नव-नेह गहेलडी, प्रीउं कठि वलगइ वहेलडी. ५१४ प्रिय बिरहिय हीय-सारणि, तिणि कारणि हर देवि, मदन-बाण एणइ हेतुकि, केतकी शापी हेवि, विरहिणी-जन मन-दारिण, दारुण करवत-धार, वनि वनि केतकि महिमही, गहिगही भमर जंकारि, ५१५ भमरला गणि वींटी केवडी, गुणे करी पण दीसइ केवडी, बन मांहि देखी इम केवडी, विरहिणी मूरछाइ केवडी. ५१६ स्त्री-कुचसि बल मांडि म, दाडिम ताडि म आणि, दिन थोडा रे बसंतना, सतना गुण तूं आणि, तुज मनि भूसा जेहनी, ते एहना अधर विचालि, इम बूजविवा सूडिला, रुडला बईठा डालि. ५१७ दाडिमी कुच उपमा कामिवा, तप तपइ ए शोभा पामिवा, वन मांहि अधो-मुखि जे रहइ, टाठि-ताप तिणि वेधई तनि सहइ. ५१८ नव नव किशलयि रातीय, मातीय कुसुम-अंबारि, सहिजि सुरंगीय वेलडी, बेलडी अंब-आधारि, किहिं चंदनि अहिनव-कुल, वकुल-लता किंहिं जाल, जोतां चीत कि हीसइ, किहि सहिकार रसाल. ५१९ वसंत-मासि पंथी-जन-कामिनी, वाट जूइ उभी गज-गामिनी, यौवन चंचल जाइ जिम दामिनी, वरसनी परि वइरणि यामिनी. ५२० वनि आंबा रस-मंजरि, पिंजर छांटणां कीध, कुसुम चित्ताम कोकिला-रवि, धवल-मंगल तिहां दीध, पहिरी कुसंभ सपल्लव, पल्लव रूपि सुरंग, मदन आवंति वनि तां, वनिता इम धरइ रंग. ५२१ मानिनी-जण आण मनावी, कोइलि कलह भंजिउ आवी, कामराय तुठिउ तिणि काजइ, कोइलि नइ आपिउं वनराजि. ५२२ अगुर-पयोधर सफलीय, नव-वहूनी परि वेलि; बोलइ नव भयि कांपति, रहि रहि प्रीउ मुख मेहेलि, नन नन अलि रवि वारती, आवी मलय समीर, दिइ आलिंगन वेलिसिउं, हेवि सिउं आणी धीर. ५२३ भमरलइ कोइ चांपी काची कली, वेलडी तिणि कॉपि आकलो. तेणि पल्णव शोणित नीसरइ, पंथीयां नव-वहू तव सांभरइ. ५२४ For Personal & Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ जयवंतसूरिकृत परिमल रस परि पंथ ए, मंथ ए मानिनी मान, मलय-समीर आनंदन, मदनसेना नींसांण, युवती-जन रत-जलहर, लहरि मनोहर वाइ, पंथी-मन धरि आविवा, अति उतावलि धाइ, ५२५ वायुलु कुसुम-कामिनि विलसवा, मलयथी आव्यु वन वसिवा, वन मांहि देखी कुसुमावली, विरहिणी विरहिं थाइ आकली. ५२३ नव नव चंपकनी कली, नीकली सोविन-वानि, जाणे कामनी दीपिका, कामिनी दीपइ काम, अलि-अल कज्जल धारती, वधारती सुरंग, परिमल-गुणि महिमहिती, दहिती पांथ पतंग. ५२७ भमरलु कोइ बइठउ चांपइ, तेणि भारि काची-कली कांपइ, प्रीउडु नव-बाला चांपइ, रितु-वसंत एणी परि व्यापइ. ५२८ देखी अंबर सालय, वरसालइ , मधु-मासि, कोइलि पंथीय-वधकर, मधुकर बइठा पासि, इम कोइ वनिता विरहणि, रहणि न पामइ ठाम, क्षणि धरि क्षणि वन-तरुअरि, किहिं नवि लइ विश्राम. ५२९ विरह-ताप सखि मई न खमाइ, दिन ग{ पणि रात्रि न जाई, वसंत-मासि देखी मनि गहिबरी, विरहणी कहइं हुं का अवतरी ५३० मेहलि-न मान तूं मानिनि, मानि-न वचन रसाल, प्रीउनि चलने ताडि म, ताड म आणसि बोल, पाइ पडी करइ मीनति, वीनति तूं अवधारि, कोइलडी इम बुजवइ, बइठी वर-सहकारि. कामिनी कोइ कामि आकली, पाइ पडी अनइ मनावइ वली वली, जाइ यौवन जाइ वसंत है, मेहलि मान हवि बोल-न कंत है. ५३२ केलि करइ के. सूअडा, केसूअडानी डालि, भमर भला तिहां भोलव्या, रोलव्यां रंग रसालि, वसंत वधू-जन वल्लभ, जाणे कुंकम-रोल, कामराय मुख-मंडन, सरस सुरंग तंबोल, ५३३ विरहिणी-जन प्राण निराकरइ, तिणि शोणित रात्रिम अणुसरइ, केसूअडी तणी हारि सुवांकडी, काम तणी ए जाणे आंकडी. ५३४ सुंदरि कुच-युग सोदर, सुंदर पीन विशाल, कंटक-प्रिय नख विलखीय, देखीअ अतिहिं रसाल, बीली-फल तव पंथीय, हइडइ उपाइ जाल, अणदीठिं . उचाटन, टीठिंइ सालइ साल. For Personal & Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७ शृंगार मंजुरी उनि तेइ सानि सुवेखी, चतुर कामिनिनी परि देखी, सुकर पल्लवि वेली नाचती, भमरनई तेडई मदि-माअती सही ए निसिदिन सेवइ, सज्जन सुगुण सुरंग, घडीअ न पासुं छांडीइ, मांडीइ नव नव रंग, अल-अल इम मनि जाणीय, बइठा डालडी मूलि, पाडल किशलय कोमल, परिमल पेशल - फूलि. चंदन-गंध भुजंग मिलीघउ, वायुलइ मलय संगम कीघउ, संगति विख धारि घूमइ, तिणि वायु पंथी-मन दूमइ. सरल सछाय अशोक ए, लोक निं मोहन रूप, जाणे स्त्री कर - पल्लव, पल्लव रातइ रुपि, पंथीय कामिनि विरहय, रहिय वीसामु लेइ, आशा-बंध अशोक ए, सोक संताप हरेइ. वंश वजावइ भमरला, सुणतां दिइ उल्लास, तांडव मांडी नाचए, राचए मोर विलास, गीत गाइ तिहां कोइलि, आलवी पंचम - राग, इणि परि रितुपति आगलि, नाटक हुइ सराग. अशोक देखि कोइल उचाटिउ, कामिनी-मुख तंबोलि छाटिउ, प्रिय तणीं परि संभारण काजि, धरइ पल्लव राता आजइ. चालवती कर-किशलय, वेलडी नाच करंति, रंग- मंडप मलयानिल, सोय कला - गुरु हुंति, नील-दल केरी कांचली, पहिरी नव नव भाति, भमर जोइ ते नाटक, मनोहर मांडी पांति, कामिनी-स्तन आलिंगन पामी, कुरुबकइ पणि फूलिउ कामी, हरिणाक्षी भीडइ स्तन विचालि, माणस पंहि ते रूप रसाल. वसंत - मासि मुझ विरहिय, रहीय न सकइ नारि, प्राण त्यजइ प्रेम - गहिलीय, वहिलीय वसंत मजारि, काम वसंत वय-स्नेहनि, दुखण चिंतइ कोइ कोइ, कोइलि संशय टालिवा, तुहि तुहि बोलइ सोइ, कामिनी जे साहामूं जोइ, तिलकनी प्रेमनइ रसि साथ बोलइ, इंद्र नई ते गणिइ तृण तोलइ. परि कुलइ सोइ, ५३६ कामिनीचरण प्रेम-प्रहारि, तरु हसिउ ए फुल - अंबारि, Saint पर अशोक सुसंपनु, भमरला मिसि रोमंच उपनउ. ५४० For Personal & Private Use Only ५३७ ५३८ ५३९ ५४१ ५४२ ५४३ ५४४ ५४५ ५४६ ४९ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिस्कृत एणइ जो वनि बहु भोलव्या, भमरला परिमेल-वेधि, रंग देखाडी बाहिरि, भूला भमइ बहु-वेधि, तिणि पापि अंत्यज मुखि, सीबलि नउ हुउ वास, इम जे आस्यां भांजस्यइ, ते फल लहिसइ तास. ५४७ भमरलु कोइ फुलि नवि रमइ, सहीय वेधि विलूघउ वन भमइ, वली वली मालती गुण संभारइ, चिंतथी घडीइ न वीसारइ. ५४८ करणी केतकि किंश्रुक, कमल कंदबक कल्हार, कणयर कदम मनोहर, पाडल पोयणि सार, महिमहितु वली मोगरु, मरुउ महिमि अपार, मानवनां मन मोहन, मुचकुंदनइ मंदार. ५४९ सुगुण माणस सोहइ वांकडु, रूपवंति नइ छाजइ आंकडु, . तेह भणी करणी नइ केवडी, धरइ कंटक रूप गुणे वडी. ५५० जूही जाल जासूअण, जांबु नई जंबीर, वुलसिरी बालु वेउलि, वनि वनि वावि सनीर, सरल सकोमल सुंदर, शीतल सोहइ समीर, कुहु कुहु करती कोइलि, कलहंस निइ किहि कीर ५५१ ऋतु-वसंत एणी परि आवीउ, भोगीआं-जन मनि अति भावीउ, कामिनी सवि शृंगार सोहावी, सखी साथि खेलइ वनि आवी. ५५२ विसहर जाणे जेणीई, वेणीइं बंधन कीध, जग-बल्लभ अरि-भूषण, दुषण एहवू कीध, कुंतल-छलि अथ चामर, मनोहर-मयण तणाई. सिरि पंकज रस-लोभीय, जाणे भमर भरांइ. ५५३ सींदूरि सिरि-मांग सों जालिउ, मदनराई जाणे डंड आलिउ, कामिनी जेहसिउं बल मांडइ, तेहनई आणी पाए पाडई. ५५४ भमहि-कोदंड चडावीय, सांधीअ लोचन-तीर, जे बल नयन सिंउ मांडतां, ते ते जीता वीर, हरिण हवां वनवासीय, कमल रहियां जल मांहि, चिर न रहइ वली खंजन, चकोर सहइ दिनि दाह. मानिनी हर-सिंउ बल मांडइ, मित्रना अरि-सिउं रहइ ताडइ, इश्वरि मदन लोचनि बालिउ, कामनीइं निज लोचनि वालिउं ५५६ युवती-जन-मुख उपमि, कीधु चंद अजाणि, जेणिं काय पंकज उपमि, ते पणि अतिहिं अजाण, युव-जन लोचन-पंकज, किम विहसइ ससि देखि, - कमलिं कमल न उपजइ, मनसिउं विचारी पेखि. ५५७ For Personal & Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगार मंजर कामना श्रवण दोइ हीचालडा, बिंब-विद्रुम राता होठडा नासिका सग दीवा केरी, दंत दाडिम-कुली अधिकेरा. कंचण - कलशय पयोधर, योधि रहिया बे मांडि, गवर - कुंभ सहोदर, सादर किम जाइ छांडि, नखक्षत सहइ रत समरिं, सहइ थण मुष्टि- प्रहार, वली हैआ सिउं आथडइ, नापइ नमी लगार. एक दुःख कर - पीडन केरुं, उपरि वली बंधन नवेरु, झूझिवु मुखि सामला, तुहि पयोधर न महेलइ आमला कमल-मृणाल सकोमल, भूज-दल अतिहिं प्रलंब, मोहिं युव-जन पांडवा, पाश तणा प्रतिबिंब, घन घन ते अपराधीय, चाँपी थणह विचालि, बांधइ प्रीउनि पार्शिय, सगुण सनेही बाल, मयण मंदिर नाभि रसालि, तिणि तिहुअण जीपइ बाली, जव पयोधर सिउं चांपइ गाढई, तव हइउ अति थाइ टाढू पातलडी कटि लंकीय, वंकीय नयणनि भावि, नितंब -थली अति पहुलीय, त्रिवलीय सहिज सभावि, चित्त चमकावs चालती, जघन पयोधर भारि, जंघ जिसी केलि कोमल, रंभ मनावी हारि आंखडी मचकु अति दाखवइ, मुख तणउ मटकु वली साचवइ, पातली किडि मरडी चालइ, पीन पयोधरइ गतिं हराव्या मयगल, अलवि जाता हंस, रूपि रंभ हरावीय, जाणे धरिउ अवतंस, लोचन मुख कर सुचरणि, जीता पंकज-सार, पार न आवइ वर्णन, रूपिं रति - अवतार. नयन - तीर वेणी - तलवारि, पीन- पयोधर - कोट-मजारि, काम - राय जीपइ मदि - पुरु, कामिनी - जन बलि करी सुरु. सरवर सोविन -राखडी, गोफणि गूंथी वेणि, सोविन - सिंधु सुन्दर, सोहइ सरसी तेणि, निलवटि नीली टीलीय, दीपइ चंद विचालि तेजि ससिहर दिनकर, कानि झबूकई झालि. खडी अलवं अणआली, अनइ कज्जल - रेहा काली, मदनराय तणां बिंबाण, पंचबाण ते कहइ अजाण. For Personal & Private Use Only ५५८ ५५९ ५६० ५६१ ५६२ सालइ. ५६४ ५६३ ५६५ ५६६ ५६७ ५६८ ५१ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ जयवंतमूरिकृत ५७१ कुंकुम-गोरे गालडे, सोविन-कांटडु नाकि, अघर-प्रवाली रातडइ, नागर-वेली राग, नविसिर-मोती जालीय, कंठि मनोहर-हार, गजगामिनि मृग-लोयणी, जोणे सार संसारि. ५६९ बांहडी लहिकइ लटकाली, मानिनी मन मोहइ मटकाली, सोहइ कंकण सोविन-चूडली, पान-अडागर धरी करि बीडली. ५७० नख-शर घाइ न उसरइ, सूरा सुरत-संग्रामि, ते गुण जाणि मानिनि, स्तन नि दिइ बहुमान, चंदनि चरचीय चोलीइं, दीधु उचित पसाय, नवलख हार स आपीय, राख्या हृदय नइ ठाइ. मयण-मंदिर सोहइ नाभि रसालि, प्रेम-सरोवर ओ शंसय टाली, चतुर लोचन-चकोरां जिहां भमइ, चक्रवाक पालि उपरि दोइ रमइ ५७२ खलकति सोविन-मेखला, सोहो त्रिवली मजारि, पहेरणि नवरंग-फालीय, झांझरनइ झमकारि, पय अलता-रस रंजीय, रंजी नयन विलासी, को सही सिउं कोइ प्रीउ स्युं, वनि खेलइ मधुमासि. ५७३ कामिनी नयन-भाव देखाडती, चित्त चंचल वेगइ पाडती, चरण-झांझरडां ठमकावती, काचूङ उरि नीलु सोहावती. ५७४ ओक प्रीउ-अंचलि वलगीय, अक वलगी सही-हाथि, वातलडी काइ करतीय, प्रेमइ घाली बाथ, कोइ कहइ सही पडखिनु, हूँ आवु तुज साथि, इम आवइ रस खेलवा, वनि बनितानु साथ. ५७५ काइ सखी तिहां वीणि वजावइ, पीन-पयोधर कोइ नचावइ, झांझरडां को सखी ठमकावइ, कोइ चंचल तिहां नेत्र चमकावइ ५७६ नवरस नाटक वनि तिहां, वनिता कोइ करंति, कोइ बइठी केलीहरि, प्रिय-सिउं केलि करंति, बालीअ आंबला-डालीइं, हीचोलडी खाइ, कुंतल मेहली मोकला, को सही केडइ धाइ. कोइ सखी चालइ कडि मरडी, कोइ करइ नयन-भ्रम करडी, कुसुम कुंदक कोइ उछालइ, कोइ जइ सहीनिं बांहि झालइ. ५७८ For Personal & Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी कोइलि-कंठ रसालीय, बालीय दिई किहि रास, . सुंदर प्रीउ सिंउ तरु-तलि, कोइ करइ मदन-विलास, कुसुम लेबा किहिं भमरनिं, सहीय ऊडाडइ कोइ, प्रेम-विछोह न कीजीइ, इम सही बोलइ कोइ. कामिनी-मुखि बइठइ भमरलु, कर वडइ सा उडाडइ भमरखें, कोइ कहइ सही भांजि म आसडी, जउ हुइ तु सही अह्मारडी ५८० कुसुम-टोडर कोइ गूंथीय, घालइ सहीय नई कंठि, कोइ सही चीर-पालवि, पालवि बांधइ गठि, एक प्रीउ एक थाइ कामिनी, एक सही जोसी धाइ, छेहडइ छेहडा बांधीय, परणावइ वन माहि. ५८१ नयन-बाणि वनिता को ताकइ, पूंठि को सही आवइ ढांकइ, कोइ कामिनि कोइलिनई खीजइ, कुहु कुहु करी सहीनइं रीजवइ. ५८२ मुह मचकोडइ चालती, नव भोगवीय को बालि, लडसडता गजगामिनि, डगलां भरइ रसाल, सहीयर तेवडा तेवडी, कारण पूछइ कोइ, पइ भागु सहि कांटडु, इणि परि बोलइ कोइ. ५८३ ओ सही तुजनि प्रीउ तेडइ, ताहरी क्षण न मेहलइ केडी, कामिनी जोइ पाछउ वाली, वाही रे सही को दी ताली. ५८४ कहि-न सखी तिं वेणीय, बांधीय कुण अपराधि, रहि रहि गोरी पूछि म सिथल थइ वली बांधि, रत-समरि रही पाछलि, वली चडी परकरि अह, इम कोइ बोलइ बालीय, बंधन-न कारण तेह. ५८५ पीन पयोधर तूंतां पातली, सुमुखि दुर्मख कठिन सूहांली, . कहि न सखी एतां किम बाजसइ, इम कही वनि कोइ सहिनइ हसइ. ५८६ कहि सखि सिउं तोरइ हइअडलइ, पंकज मयण तणांइ, .. ओक नालई दोइ पंकज, कहि सखि केम मनाइ, अथ चकवा दोइ मुख, ससि आगलि किम रहेइ तेह, लावण्य-सरोवर बूडतां, यौवन-गज-कुंभ एह. ५८७ पातलइ कटि-लंकइ जग जीतु, सिउं करसइ पीन पयोघर सही तुं, . कोइ सही निज सहीनई इम हसइ, ते सुणी वनिता मनि उल्लसइ. ५८८ For Personal & Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत पीन-पयोघर भारीआ, दोहिल चालइ कोइ यौवन नि उलंभडा दिइ, सही बोलइ ... कोइ, तब कोइ बोलिइ कामिक, अंतरि रही सहिकारी, छउं अह्मे परउपगारीय, अह्म करि आपु भार, ५८९ कोइ कहइ सखी नख-क्षत रूपि, राहुथी बीहीतु ससि-भूप, तुड-पयोधर डूंगरमां वसइ, तेह भणी उरि चोली तूं कसि. ५९० सखि तुज मुख-ससि लोभीय, अलि-गण रूपिं राहु, एह भमइ तुज मुख पाखलि, अंबरि वदन विछाहि, कोइ कहइ तुज कुच-युगि, जाणी गज-कुंभ भ्रंति, वन-गज भडवा आवइ ए, कोइ सखि अम भणंति. वदन चंद-सहोदर ताहरूं, कोइ सखी बोलइ नवि आतलं. सा कहइ हसीइ नवि हे सही ससि-कलंक माहरइ मुखि नहीं. ५९२ ५९३ पातलडी कटि-लंकीय, पीन-पयोघर भारि, लडसडती कोइ बासीय, चालइ सहीय मजारि, सही निं को कहई हे सहि, सहिनि साहि न बाहिं, जउ पडसइ थण भारीय, हासू हसइ वन माहि. कोइ कहइ प्रीउ राति कां पीडिउ, हदय बारि थोडेससि न भीडिउ. तीने पयोधर हईइ जगि रिलाणु, तेह भणी कंत तुंज सिउ रीसाणउ. ५९४ को एक कामिनि सुंदरी, प्रीउ सिरं कीय संकेत, वनि सुणी जन-कोलाहल, पगलां सुणीय समेत, वली वली जोइ वालीय, चकित जसी संदेह, सघलइ देखइ तनमय, जेहनि जेहसिउ नेह. ५९५ पंठिथी सही पालव ताणइ, कामिनि प्रीउ आव्यु जाणइ, रहि रहि समय हवडां प्रीउ नहीं, पूं ठेथी इम सुणी हसइ सही. ५९६ किंहि चाचरि किंहिं चउवटइ, किहिं त्रिवटइ सही-वृंद, केलीहरि कुसुमा-करि वसंत खेलइ आनंदि, लटकति वेणि सुमेहलीय, झांझर नइ झमकारि, थण भारि कडकडतीय, चोली कसीअ अपार. ५९७ चतुर कामिनिना गुण जोइवा, रसिक मानव आवइ खेलवा, रितुवसंत जाणे भलई आवीउं, रसिक मानवइ मनि भावीउ. ५९८ For Personal & Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शंगारमंजरी कोइ आवइ वनिता - वसि, कौतुक जोवा कोइ, कामिनि रसि कोइ चंचल, मित्र सिउं प्रेमिं कोइ, मुखि तंबोल समारीयु, उरि धरि चंपक - माल, कुसुम - माल सिरि घालीय, करि धरी कुसुम रसाल. कामिनी दोइ अंतरि धाई, बेहूनि अडतु कोइ जाइ, कोइ संभ्रमि साहामू आवी, नारि सिउँ दिइ आलिंगन भावी. ६०० दोधक भइ कोइ कामूक, कोइक गीत सगाइ, कोइ ताणइ छानु पालव, को स्त्री केडीऊ जाइ; कमल-नाल कोइ जल भरी, छांटइ थगह विचालि, कोइ मचकावइ आंखडी, कोइ वलगइ तरू - डालि कोइ कोतक - दलि कामूक, कामिनी रूप लिखेइ, वली वली नयणे निरखीय, हइडा सिउं चापेइ, मुखि चुंबन देइ सादर, सीस नमावइ पाइ, प्रेम - गहेलां मांणस, देखी आकुल थाइ, कुसुम - कुंद कि प्रेम गाथा लिखी, स्त्री साहामूं नाखइ मन उलखी, कामिनी - गण जेणि थानकि बोलइ, कोइ कामूक रहइ तिणि उलइ. ६०१ भमरल कामिनि नइ मुखि देखी, भमरला तिंकाइ रस लीजइ, अझे नि कहिं कोइलि वाणीय, सुणीयति आंबला - डालि, कोइ पंथी जाणइ एणइ वनि, आवी मोरी बाल, आवि-न गोरी आलिंगन, देइ मुज पूरि रुहाडि, कांइ रही कहइ वेगली, वाहाली भुख देखाडि. ५९९ कामिनि जाती देखीय, कोइ नर चतुर सुजाण, सांबलि नई मसि धातीय, बोलइ सरस सुवाणि, सांवलि सरखां मांणस, दैवि सरज्यां कांइ, देखीतां अति मनोहर, हुंस न पुरइ जाइ. ६०टें कोइ मानव बोलइ स्त्री पेखी, सुंदर पणि सहामुं जोइ जइ. ६०४ ६०३ कोइ कामुक कुच काहि सिउ (१), पीन पयोधरि देखी एति कसिउ, कहि-न कंचुकर्तिसियां फल काम्यां, जेणि सुंदरि थणनां फल काम्यां. ६०६ For Personal & Private Use Only ६०५ भमरन कोइ विरही इम कहइ, भमरला विरह वेदन तुं लहइ. मालती विरहिं तूं सामलु, कामिनी विरहिं हूं दुबलउ. ६०८ ६०७ ५५ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत निस-नेही नेह छांडीय, प्रिय आगलि थइ जाइ, सोइ भुजंग उलंभडा, ऊभू दिइ वन माहि, वीज पडइ ते उपरि, जे करि छंडइ प्रीति, नेह करी किम छंडीइ, एह न उत्तम रीति. ६०९ प्रीउडइ छेहडइ पटुली ताणी, सखी माहिं गोरी लजवाणी, माणस मांहि प्रीउडु लाजसइ, एकातिं उलंभउ दीजसि. ६१० इणि परि तिणि वनि नव नव, नर नारीय रमंति, नंदनवन जाणे अवतरित्रं, भोगी भमर भमंति, सीलवती पति-संयुत रसभरि खेलइ रास, कुसुम-केलीहरि सरुवरि, रंगइ करइ विलास. __६११ कुसुम-टोडर करी कंठि धालइ, माहो मांहि नव नवा फूल आलइ, कमल-नाल पाणी भरी छांटइ, बाहु वडइ रंधी रहइ वाटइ. ६१२ नवल-नेह नव-यौवन नव-रस, नव-रस सरस अपार, नव-दिन मास वसंतना, मुरीय नब सहकार, वसंतमास इम सेवीय, नरनारी सविलासि, ससि-वयणी प्रीउ सरसी, आवइ आपणइ आवासि. ६१३ चतुर मानव अणी परि सेवइ, कामिनी यौवननां फल लेवइ, जयवंत पंडित वाणि सोहामणी, रसिकनइ मनि लागइ रलयामणी. ६१४ इति श्री वसंतवर्णन, श्रीः. अणी परि नबनवां सुख भोगवइ, अजितसेन स्त्रीनुं मन जोगवइ, समयनी परि जाइ दिहाडला, जिन दौगंधक देव सुखाविला. ६१५ दुहा ६१ वाहलां सिंउ सुख विलसतां, दिन जाता न जणाइ, वाहलां विण जे अध-घडि, वरस समाणी थाइ. वहालां सरिस संजोगडु, अविहड करे सदैव, मन मानइ जो ताहरू, तु घन देवे दैव. पुरव पुण्य पसाउलइ, अविहङ होइ सनेहि, नितु झुरि, तिणि नेहलइ, जेहवु चतक मेह, ६१८ For Personal & Private Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी एक पक्ष सनेहलु, जेहवु दीप-पतंग, एक एकनई वेधिं मरइ, अवर न आणइ रंग.. ६१९ . नेह न ते सोहामणउ, जेहवु कोकि-कलाप, एक पक्ष सनेहलु, पगि पगि हुइ संताप. ६२० नयण समाणी प्रीतडी, जगि विरलानइं होइ, सुख दुख संघाति सहइ, नेह न ठंडइ तोइ. ६२१ चास-पींछ तणी परइ, बिहु पखि सरिखु रंग, थोडइ ठामिसु दीसीइ, सरखी प्रीति अभंग. ६२२ दुध अनइ जल जेहवी, जीह सवाली प्रीति, आपणपिं दोहिलं सहइ, भेद नहीं जस चींति ६२३ ढाल १७ राग सवालाखी सींधूड ( समुद्रविजय रायां कुंअरू रे, देशी ) एक दिन वनिता वीनवइ रे, प्रीउडा तूं अवधारि, महीयल महिम वधारवा रे, जईइ राज-दूआरि. ६२४ वाहलाजी सुगुणा कीजइ संग, जेहनु रंग अभंग, वाहलाजी वाधइ प्रेम सरंग, वाह ...दुपद तथा आंचली ६२५ दुरियननि कंपावीइ रे, कीजइ पर उपगार, उत्तम भूपति सेवतां रे, वाधइ महिम अपार, ६२६ वा. सज्जन नई संतोखीइ रे, कीजइ उत्तम काम, सुगणां साथई हीडीइ रे, राखी जइ जगि नाम. ६२७ वा. यौवन-वइ गुण संचीइ रे, कीजइ उत्तम संग, तिणि मारगि नविं हीडीइ रे, जिहांथी हुइ कलंक, ६२८ वा. पापी यौवन · दोहिलूं रे, पगि पगि आल चडति, छत्र न हुइ जस सिरिं रे, निश्वई तेह पडंति. ६२९ वा. देव वसिं तात तुझ तणउ रे, पुहुता जउ परलोकि, विश्व तणी स्थिति एहवी रे, कुहुनइ कीजइ शोक. ६३० वा. बाल-लीला हवइ परहरी रे, गुण उपराजन काज, वाहाला उधम कीजीइ रे, सेवी जई सुराज. ६३१ वा. सहू सिउं प्रेम सु राखीइ रे, गरव न धरीइ लगार, वचनइं सहू संतोखीइ रे, दीजइ दीन आधार. ६३२ वा. For Personal & Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ जयवंत सूरिकृत सज्जन स्युं सज्जनपणं रे, कठिन सिंउ कठिन सभावि, भर तणा गुण आवीइ रे, भूपतिनइ प्रभावि. ६३३ वा. तात थिकी गुणि आगला रे, उत्तम सुत ते जाणि, रवि- शनि सरखा वली रे, तेहनू किसिउं वखाण. गुणि अधिकाको तातथी रे, सायर-सुत जिम चंद, अजूआइ कुल निरमलूं रे, सहूंनई दइ आनंद. ६३३ वा. तेह भगी राज-सेवनार रे, कीजइ अति सुविवेकि, मान लीहीजइ महीयलि रे, आवइ अंगि विवेक. ६३६ वा नरनई स्त्री दइ सीखडी रे, ए नवि घटतूं होइ, तुइ जे घटतूं कहइ रे, डाहइ मानवूं कमला जातिं कामिनी रे, सरसति श्री स्त्री माटइ न उवेखीइ रे, गुण हवडां अजितसेन इम सांभली रे, वचन धरी मन मांहि, नितु जाइ राजमंदिरं रे, सेवइ अजित उछाहि. ६३९ वा. सोइ. ६३७ वा. अवतारि, संसारि. ६३८ वा. ढाल १८ राग काल हरिउ ( सासू पूछइ सूणि नव वहूआरू, ए देशी ) ६३४ वा. सकल सभानई अजित रंजावइ, भूपति दिइ तेहिनि अति मन, सिई च्चारनइ अधिक नवाणुं, राजन नइ धरि छइ रे प्रधान. ६४० अनुदिन राजन चिति विमासइ, चिंता-सायर दूतर अपार, निचित थाऊ हूं एह चिंताथी, कुहुनइ सिरि सूंपी राजभार.... दुपद तेह को न मिलइ गुणवंतु, वीसासीक नई बुद्धि निधान, पांचसइ मांहि मूलगु, जेहनई करि थापइ परधांन. ६४१ अ. तेह परीक्षा जोवा काजई, राई मांडिउ विसमुं संच, सनई कहइ पटहाथीउ रे, ताली मांन कहु रे प्रपंचि ६४२ अ. मेरु ती परि कुइ न तोलाइ, अजित तव पूछी गृह-नारि, शीलवतीथी बुद्धि लहीनई, जाणिउ तोलवा तणउ प्रकार. ६४३ अ. हाथी प्रवहण मांहि चडावी, जल मांहि ते राखी यान, प्रवहणि नीर चडिउं जां उंचूं, तिणि फलहइ की घूं अहिनांण ६४४ अ. गज काढी पाषाण भरीनई, जां लगइ आंकइ आव्युं नीर, ते पाषाण तोली मान आपाइ, अजितसेन ते साहस धीर ६४५ अ. For Personal & Private Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शंगारमंजरी एहवी अजित तणी मति जाणी, रंजिउ सुगुण सुवेधी राय, मान महुत अधिकेलं आपइ, तुठउ दिइ धण देश-पसाय. ६४६ अ. भूपति पूछइ वली एक दिहाडइ, बइठउ सयल सभा मजारि, चरण-प्रहारि हणइ जे अह्मनि, तेहनि सिउं कीजइ सुविचार ६४७ अ. के अविचारी उच्छक जंपइ, माणस रूपई ढोर गमार, डंड सबल तेहनिं प्रभु कीजइ, जे तुह्मनई दइ चरण-प्रहार, ६४८ अ. अजितसेन रांइ बोलाविउ, जाणी पुरव बुद्धि-विलास, सो पणि जंपइ स्वामी वीन . तुह्मनई एहनु अरथ विमासी. ६४९ अ. दहा घरि आवी नइ स्त्री कहनइ, पूछीउ नस वृत्तंत. शीलवती उत्तर दीइ, अवधारु तुझे कंत. ६५० भूपनिनि चरणे हणइ, कीजइ तस सत्कार, दीजइ वली मन भावतूं , मान-महुत अपार. ६५१ रे गुणवंती गोरडी, अमीय झरती वाणि, वाहलां ए बोलिउं किसिउं, सुंदरि सुगण सजाणि. ६५२ शीलवती वलतं भणइ, स्वामी जउ विचार, सूत दयिता विण भूपनि, कुण दिइ चरण-प्रहार. ६५३ कुण दुहवइ वाहलां विना, अवर न चिंतिं अणाइ, कुण संतोखइ ते विना, अवर न कोइ सुहाइ. ६५४ जेहसिउं हुइ प्रेम-रस, ते दइ चरण-प्रहार, क्षण एक मीठउं रूसणउं, जेहसिउं प्रेम अपार. ६५५ तां दूखण देखइ नहीं, जां मनि हुइ रंग, जे जे बोलइ बोलडा, ते ते जाणइ चंग. ६५६ दुख-सुख सरिखां लेखवइ, नेहई बध्या जेह, कमलि बंधाणउ भमरलु, सुख मानइ ससनेह. ६५७ तेहनइ मनि गुणवंत ते, जेहसिउं लागु रंग, जल-पंकइ पंकज वसई, तुहइ राचइ भुंग. ६५८ ते तसे न जोइ सूप-गुण, मन मान्या सउं कोइ, वायसनई मोह लींब सिउं, तिणि दीठइ सुख होइ. ६५९ मनि मान्यां मेहलई नहीं, वरि सिरि वहइ कलंक, मृग सिउं अविहड मन मिलिउ, छांडइ नहीं मयंक. ६६० For Personal & Private Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत जे वन केरां रुखडां, विहसइ चरण-प्रहारि, माणस पहि ते तरु भलां, जे लहइ प्रेम-विचार. ६६१ नेह नयणे निहालीयां, मनि उल्लास धरंति, चतुर सविहुमां तिलक ते, नेह विशेख लहंति. ६६२ मन-अंतर जेहसिउं नहीं, ते दइ चरण-प्रहार, प्राण जि धरीइ तेहना, अवर किसिउ जगि सार. ६६३ कइ वइरी कइ वल्लहां, रोस कि सहिलु होइ, तेह स्युं किस्या अबोलडा, बि मां एक न कोइ. ६६४ पाय पडी जे मन्नवई, तीह करी मानस-रोस. हैडा साहामू नवि जोइ, तेहसिउ केहु सोस. ६६५ जे वाहाला नइ नापीइ. जे जगि किपि न होड स्नेहिं-बद्धां ते पंछी, प्राण तिजइ जिगि कोइ. ६६६ मन नयणांनी प्रीतडी, ए जगि वाली-रेह, पहिलूं जउ नयणां मिलइ, तु मन मंडाइ नेह ६६७ प्रीति किसी ते कारिमी, जिहां विचि अंतर थाइ, देयादेय विचारणा, वचन अनारथ थाइ ६६८ प्रीति विशेषज्ञ प्राण दिइ, दाडुर जातई मेहि, तेहनि स्युं अण आपy , जस मनि अहवु नेह ६६९ पिय माणुस किय विप्पिय, दोस न आणइ कोइ, झीणवि पुन्निमि संगथी, चंदह वाहाली सोइ. ६७० तेह भणी प्रेमिं करी, जे दइ चरण-प्रहार, प्राण पहिं वाहलां भणी, कीजई तस सत्कार. ६७१ वनिता वचन सुणि इसिउ, मनि धरी सकल सरुप, अजितिं राजसभां जइ, वीनवीउ ते भूप. ६७२ तिणि वयणे राउ रंजउ, दीधुं अधिकुं मान, पांचसई मांहइ मूलगु, थाप्यु अजित प्रधान. ६७३ ढाल १९ राग मारुणी धन्यासी ( पदमरथ राय वीत शोक पुरि राजीउ रे, ए देशी ) एक दिनि बइठा राजा राज-सभा वली रे, कोइ नर दीन पहूत, भीजवतु जन-मन आंसू-जलिं रे, बोलइ विधुर विदूत. ६७४ For Personal & Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गारमंजरी रूअडा राजहंसजी, तुह्मयों सुणयो राजनजी रलोयामणीउ, अवधारुजी वीनतडी सोहामणीजी, उतारुजी दुख-सायरथी मूहनि रे... द्रुपद ६७५ एणइ पुरि निवसइ धूरत एक वाणीउ रे, सघलइ छइ विख्यात, चित्ति वठुनइ मुहुढइ मीठडु रे, सहु लहइ तस अवदात. ६७६ 'मि तो ते सिंउ मांडी प्रीतडी रे, केलि अनइ जिम बोरि, मायावी माणस किम पतीजइ रे, विसहरनई गलइ मारि. ६७७ दूहा भोला भमर म बइसि, आउलि केरइ फूलडे, विलखु थई विलसि, जण हासू मनि उरतु. ६७८ भमरा म करसि संग, राते सीबलि फुलडां, बाहिरि देखाडई रंग, ये नश्वइ मायावीयां. ६७९ मन काती मुहि मीठडां, फल किंपाक समान, जग भोगव्यु मायावी ए, जिम मृग पारधि-गानि, ६८० यौवन वयिं स्त्री संगमइ, जुइ धूरत नेहि, जे नवि छलीया अतले, छ्यल-सिरोमणि तेह ६८१ ढाल पाछली देशि चालती एक दिनि चालिउ हं वनिता घर तणी रे, तास भलामण देइ, ते पणि वनितानई रसि रातडु रे, स्त्री सिउं प्रेम धरेइ. ६८२रू विणज करी आव्यु हूं दिनि केतलइ रे, धूरतनइ कही वात, ते पणि धन वनिता सिउं लोभीउ रे, मुज सिउं खेलइ घात ६८३रू देसि-विदेसि भमतां अद्भुत लहिउं रे, हुं बोल्यु ततकाल, आ पुर बाहिरि तरतू कुपमां रे, आंबु दीठ अकालि. ६८४रू तव धूरत कहइ ए जउ साचूं हवइ, दोइ करि जे लेवाइ, ते तूं लेजे महारा धर थकी रे, नहींतरि हूं तुज लेसि. ६८५रू ते फल रातई घूरत काढी आवीउ रे, जे जोयुं परभाति, फल नवि दीर्छ हूं विलखु थयु रे, मुज मित्रि कही वात. ६८६रू मित्र कहइ भोला तूं तु वंचीउ रे, नर घुरत अपार, ओक करि वनिता एक करि धन-गांठडी रे, लेसइ जे तुज सार. ६८७रू तेह भणी हूं आविउ तुह्म कन्हई रे, दीनानाथ दयाल, ते घूरतथी मूहनि छोडवू रे, शरणागति प्रतिपाल. ६८८रू For Personal & Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिस्कृत ढाल २० राग गुडी ( झांझरीआ मुनिवर धन धन तुह्म अवतार, ए देशी ) अजित प्रधानि राय वीनव्याजी, पुछिउ विसमु भेय, अजित कहइ स्वामी वीनबूजी, अरथ विमासी एक. ६८९ गुणवंती रे नारी कुलडा तणी रे श्रृंगारि नान्हलडी रे सोभागिणि बुधई गयुं धन वालीइजी, सुगुण सोभागिणि सार... दुपद धरि आवी पूछी कामिनीजी, तेहथी लहीअ विचार, राज-सभां आवी कहइजी, राजनजी अवधारि. ६९० गु. नारी धन सवि ताहरुंजो, उपली भुंइ चडावि, नीसरणी अति भारइजी, अकिं पासि मेहलावि. ६९१ गु. सोइ धन लेवा आवसइजी, धूरत लोभ सभावि, नीसरणी करि लेयसिजी, उपरि चडवा काजि. ६९२ गु. दोइ करि नीसरणी ग्रहीजी, होस्यइ होस्यइ सत्य संधान, विलखु थइ पाछउ जसइजी, इम कहइ अजित प्रधान ६९३ गु तेणिं एहवीं मति सांभलीजी, धरि आवी तिम कीध, धूरत विलखु थइ गयुजी, काज न एकु सीध. ६९४ गु. . दूहा तहींथी राय प्रधाननइं, अधिकु नेह सहोइ, सधलइ गुण वहाला जि छइ, सगू न वहालू कोइ. ६९५ एक दिनि शीलवती भणई, वचन-सुधा-रस धार, मुज मन-मानसि हंस सम, वाहालेसर अवधारि ६९६ सुर सरिखा पणि माहरू, खंडी न सकइ शील, तु अवरहची वात कुण, सांभलि कंत सलील ६९७ मनि माणीश संदेहडु, मुज मनि अवर न कोइ, तुझ करि प्राण समोपीया, थोडइ घणूं सजोइ, ६९८ दीठई विरहानल शमइ, हइडु धरइ उल्लास, जेणिं जगि वाहलां सरजीयां, हूं बलिहारी तास. ६९९ तं दीठिं मन उल्लसइ, नयन वयण विहसंति, देखी पूनिमि चंद्र, चतुर चकोर हसंति ७०० For Personal & Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गारमंजरी मुझ मन लागइ कारिमूं, वली वली कहितां नेह, पण थोड घणू प्रीछयो, तुझ साथइ ए देह. ७०१ जेहसि अविहड मन मिल्युं, जेहवी पाहणि-रेख, तिहूंसिउ लगाइ कारिमूं, बाहिरि वचन विशेख. ७०२ छेह लगइ वहिडइ नहीं, सही सुकुलीणां जेह, मन वचने काया करी, अवर सिंउ न धरइ नेह ७०३ रीति ए, जेसिहउं मांडिउ रंग, कुणी सुख-दुख तस कारणि सहइ, पणि न करइ नेह-भंग. ७०४ एक गुणवंतु परिहरी, अवर सिउं मांडइ प्रीति, चंचल रंग पतंग जिम, ए गणिकानी बगलां छीलरि जल पीइ, ये पामियां समण हंसा वरि तरसिया रहइ, पणि न मिलइ अवरेण, ७०६ तुझ विण मुज मनि को नहीं, अवर न सहुणा माहि, कइ सखी मन माहरू, कइ परमेश्वर जे जे बोल्या वोडा, ते सखि सुख-दुख जीवित तुझ कहर, आदक्षण दोखी दुर्मुख छइ घणा, संधइ थाइ पाडइ रेह, मन माणस तस बोलडा; म करसि सिथिल सनेह. ७०९ रीति. ७०५ प्रेम-वचन अजीत सेन वलतू भइ, रोमंचीउ - जाणे साच, करि वाच. प्रेमवंतिनां, एहवां सुणी रसाल, नयन वयण सिंउं मिलइ, अ राखियं न रहंति, पण अवरह सिउं तुज विना, मुज ७०७ ततकाल. ७१० गोरी कइ सूती नीसी बाहिरि किसिउ लडी, इम कां बोलइ बोल, आंगणइ, कइ गइ सान नीटोल ७११ जणावीइ, मन सिउं अविहड नेह, अहूं जाणइ आपणूं, मन वाहिलां छइ जेह, ७१२ ७०८ मनि किहिं न रमंति ७१३ मेरू कics शेष सलसलइ, सायर सूकइ तोय, सहि सज्जन सुकुलीण जे, वाच न चूकई तोय. ७१४ कामिनि नि पूरनिं, कुण रूधइ पसरंत, मन मानई आपि रहइ, लाजनी पालि रूपवती नई गुणवती, सुंदरि तूं सोनूं नई सुगंध वली कहु कुण मूल करिति. ७१५ शील For Personal & Private Use Only घरेईं, करेइ. ७१६ २०१४ P Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत सोनइ सामि न हुंइ किमि, मरुथलिं न हूइ पंक, उत्तम न करइ पाडु उं, न धरइ हंस कलंक. ७१७ दोषी दुर्मुख सिंउ करइ, जउ मनि खरू सनेह, वाई वहिडइ केतलू , सजल आसाढा-मेह. ७१८ अधिक वघारइ प्रेम-रस, दोखी दुरियन वाणिं, सोनूं करतां पाहाण-सिउं, अधिक वाघइ वान. ७१९ दुरियन वचन हैइ धरी, प्रीति विशेख त्यजंति, प्रेम किसिउ ते कारिमु, जे विंचि रेह पडंति. ७२० दोखी दुरियन केरडा, लाख सुणउं जो बोल, तहइ तुछ उपरि थकी, मन नुहइ डमडोल. ७२१ शीलवती वलतूं भणइ, तुहइ सुणि सुविचार, पापी चंचल चितडूं, सुपरिस करइ विचार. ७२२ अणचींतिउ मन चीतबइ, वंछइ दुर्लभ जेह, अणधटह विकलप करइ, असरिस मंडइ नेह. ७२३ जे नवि सुहुणइ दीसीइ, जे नवि नयणां बारिं, है है चंचल चित्त ते, वंछइ हैआ-मंजारि. ७२४ कुहनइ कहिसिउं मन मिलइ, तेहनि कहिसिउं भाव, कुंण जाणइ ज्ञानी विना, निज निज चिंत संभाव. ७२५ दैव वसिं पहिलो पार, तुह्म मान शंशय होह, शील-परीक्षा कारणि, कमल लीउ एक तोइ. ७२६ तव जिनवर पूजा करी, सरस सकोमल भाख, परमेस्वर गुण स्मरती, इम बोलइ प्रीउ साखि. ७२७ मन वचने काया करी, जउ नर वंछउ अन्न, तु कुरमायु कमल अ, जिम जल पाखइ वन्न. ७२८ जउ शीलि हूं माहा-सती, विकसित रहियो तोइ, शीलवती अहवू कही, पति-करि पंकज देइ. ७२९ अजितसेन एहवू सुणी, चतुर चमकिउ चित्ति, तय तणों परि करि ग्रहइ, पंकज तेह जडित्ति. ७३० वली वली जोइ कमल ते, चांपइ ह्रदय विचालि, जिम निर्धनि धन पामीउं, वली वलि जोइ संभालि, ७३१ दुरियन केरु प्रेम जिम, जे न रहइ चिरकाल, सज्जन नीपरि कमल ते, अविचल रहिउं रसाल. ७३२ For Personal & Private Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी परीक्षा परगट महिमा शीलनु, जोउ शील सवि विद्या फलइ, सारइ इम पतिनूं मन स्थिर करी, सुख विलसइ दिन राति, राग-सरोवर सुर जीतां, केलि करइ किहांरइ प्रश्न किहांरइ खट हेली, कहा भाखा, नितु किहारि करइ नव- पल्लवी, कर किहारिं प्रेम-रसिं करी, साहामूं किहार हूं आलिंगन लीइ, नव नव सरस सुरंगी गोठडी, कहि स्नेह-रूस इ अबोलडा, सुंदरि दीन- वच पीउ पाइ पडी, मन्नावइ पासा - केलि, नवली रंगरेली ७३५ नयां इ अंक, हेव, नर सेव. ७३३ सुरत एकांति सबल स रुसणं. क्षण एक तीमन तीखां खट विण, भोजन मीनति करइ चरणे पडइ, हुं गुनही गोरी तुज मनि रीसतु, बांधि न Taणु विहसी समप्पीउ, सुंदरि सवाय लक्खु विकुविय दिय, गोरी गोरी हासा - रूषण, सही तो सिव रोसि वसलडु, न अत्थमिउ ससि ऊगमइ, धन गोरी कां करिं रूसणचं, यौवन आसन सयल समप्पीउं, विनयि पणय को वहउ वयरण, पयडइ जोइ निःशंक. ७३६ घरइ हरख मुज न सकुं खमइ भूज - युग फिटू गयूं एकांति. ७३४ वार मीठउं होइ, भलूं न होइ ७३९ न रमंति, करंति. ७३७ तोरु दास, केवार, उभी हविं अपराध नहीं करूं, बोलि न तूं प्रेम - गहे इंणि परई, मन्नावइ नीं सतनी छइ नेह, मान ज मोडइ कहुँ न मानइ जेह, प्रेम ते पाओ रंगि चडइ नेह तुडी, पय हणीया चिह्न कुसुम पीडतां, अधिक होइ इणि परि नव नव रमतिना, Car संयोग जाणता इसइ, जस पाइ वारं. ७३८ पासि, ७४० करीइ, तुज वेघि, भल्ली - वेध. ७४२ सुहाइ. ७४१ वलि होइ, न होइ. ७४३ मैंधि, निगूढ. ७४४ एक वार, सु वार. मानीयां, पडइ. ७४६ चित्ति, ७४५ For Personal & Private Use Only सुरत. ७४७ प्रकार, कहुँ धरि दोइ सुविचार. ७४८ ६५ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत राग-सागरि इम झीलतां, हविं विचि अंतर थाइ, विरह-वाहाण दैवि करिउं, हइअडुं गहिंबर थाइ. ७४९ देखी न सकइ दैव ए, कुहुनि चिर-संयोग, करी विछोह वेगलां, दाखइ विषम-वियोग. ७५० अति संयोग वियोगनि, अति तेहई हुइ छेह, ऊनइउ छेह आपिवा, शरदई गाजइ मेह. ७५१ इणि अवसरि तव अजितनइं, राइं दीध आदेश, आपण वयरी जीपवा, चालीसइ परदसि. ७५२ तुझो पणि साथई आबिवू , जव सुणीउ ते बोल, आकुल व्याकुल तव थयउ, चित्ति थयुउं डमडोल. डसडतु तव तिहां थकी, आखडउ सुठामि, रडतु पडतु नीसरिउ, चित्त अनरइ ठाम. ७५४ मुंइ भमतां नीठइ नहीं, चित्त करइ उचाट, तालोवेलि अंगि ऊरतु, छांडी जाइ वाट. ७५५ नवरंगी नवयौवनी, सरस सकोमल देह, किम ठंडासिइ गोरडी, सुंदरि नवल सनेहि. भूखियां भोजन दाखवी, अध-वचि काढी लेइ, तिम सुरंगी मेलवी, दैव विछोह करेइ. ७५७ विण धुंआ विण लाकडे, विण अगनि दहइ देहिं, बिरह-दवानल प्रगटीउ, नवि उहलाइ तेह. ७५८ दोहिल त्यजतां सचल रस, अधर-रस किम छंडाइ, नवयौवनि गोरी छाडतां, हइउं फाटइ कांइ. ७५९ दैवि ते कां सरजीयां, वाहलां बिछोहियां जेह, पगि पगि विरहिं आवटइ, पंजर हुइ देह. ७६० दैवम दाखसि माणूअ भवि, कहिसिउं विषम सनेह, अहव किम नेह जउ करिं, तुम देखाडसि छेह. ७६१ नेह खरू पंखी तणउ, क्षण नवि अलगां थाइ, सुख-दुख संघाति सहइ, निसि-दिन एकिं ठाइ. ७६२ धिग धिग् परवसि मुणुअ-भवि, दिवस वियोगि जाइ, भर यौवन विरहिं नडिउं, दिवस अनारथ थाइ. ७६३ वचन सुणिं दुख ओवडूं, हैडामां न समाइ, विरहिनलइ हुँ सिंउं थसइ, किम दिन जासइ माइ. ७६४ For Personal & Private Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गारमंजरी इंणि परि मनसिउं झूरतु, पुहुतु निज अवासि, नवि बोलइ न हसइ रमइ, हैडइ करइ विखास. ७६५ नीसासु मुखि मेहलतु, नयन विछूटां नीर, मुहुडइ बोली नवि सकइ, विरहिं रुधिउ वीर. ७६६ भूख तरस उडी गयां, गइ शरीर सान, मन चंचल किहांइ भमइ, न गमइ मीठू गान. ७६७ शोलवती वलतूं भगइ, कां न करइ प्रीउ वात, वलतु उत्तर कां नहि, एसी तोरी घात. ७६८ बोल न बोलइ नविं हसइ, इम कां थयु असन्न, सुनादि हूंकारडा, चंचल दूसइ मन्न. ७६९ कइ अपमानिउ भूपति, कइ कुणि हविउ कुबोलि, कइ गोरी-गुण-बेधीउ, मारिउ नवन-त्रिशूलि ७७० वाहाला मन-दुख मुज कही, वहिंची आपि न भाग, तुजथी मुज मनि अति दहइ, दुख दावानल दाध. ७७१ अजितसेन वलतू भणइ, गोरी पूछि म वात, ए दुख सुणतां तुहनइ, थसइ माहारी परिघात. ७७२ वज्रघात समान ते, राई दीध आदेश, आपण वइरी जीपवा, चालीसइ परदेशि. ७७३ तिणि वयणे मुज दुख थयु, हैडइ अधिकु शोक, दिन केतइ मिलसिउं हविं, तुज सिउं थसइ वियोग. ७७४ विरह-वचन इम सांभली, मेहलती नीसास, सान गइ धरणिं ढली, गोरी हुइ निरास. ७७५ वाधइ विरह सुलहरडे, चिंता जल-ऊधाण, गोरी दुख-सायरि पडी, भागु आशा-वाहाण. ७७६ दुख पसरियां सुख वीसरियां, सुंदरि छूटी सान, पंजर मूंकी मन भमइ, विरहिं कीउंबंधाण. ७७७ हा हा दैव किसिउं करिउ, मोडी आशा-डाल. जासइ सींचणहारडु, लाइ दावानव-जाल, ७७८ वरिं झंपा, कुपमां, प्राण तिजू विख खाइ, विरह तणां दुख दोहिलां, साल समां न खमाइ. ७७९ मरण दहइ एकवारने, पगि पगि विरह दहंति, विरह वियोगां माणसां, है है प्राण तजंति. ७८० For Personal & Private Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धीर थइ प्रोड सुख-दुख दैवत कुहुनि चिर-संयोगडा, चंचल देखत पेखत सुपन जिम, थाइ जे दिन सरजिया सुख तणा, ते जेता दुख वियोगा, अजितसेन जिम जिम करइ, चालवानी हल-हल्ल, विरहि शीलवती - हीइ, तिम तिम वागइ भल्ल. ७८४ रे रयणी तूं मूज सही, सिहयर जाण म देखि. प्राण-हरी रवि ऊगतइ, प्रीउ जासइ कमलि बंघाणउ भमरलु, उगिउ वंछि कमलिनि तुजनि छांडसइ, ते देखी चकवा चकवी विरहीउ, सूर म दुखीयां दुख सही रहियां, सुखीयां राहु गले जे सूरनिं ए करजे तुज मुज वइरी उगतइ, पीउं परदेसि. ७८५ जयवंतसूरिकृत प्रीछवइ, वहाली म करसिं सोस, वसिं, कुहु नई रयणी तूं तिम वाघजे, जिम चंदा तूं अखइ हजे, जिम करइ गोरी अमंगल कारिमां, सातइ नेह - गेहलडी, नव ते देखी पीउडु भाइ, मूधि हुं परवसि भूपति ताइ, करिं चामर जिम इंद्र- जाल. सवि विश्राल, ७८२ संयोगि जाइ, झंरंत विहाइ ७८३ दीजइ दोस ७८१ मुज जासइ वली नव नवी थाइ मोटी हुइ म म सूर, नेह पूरि. ७८६ छसि मित्त, चीबट चित्ति. केरां संग्रामि कांम, परगामि. प्रभात, हथीयार. करइ प्रकार. ७९० हयवर arra करइ, सोनां अति उद्धत गति चालता, जय अति उंचा गयवर गडिया, बीजा झलहलइ, गाजंतां घूधरी, धम धम करता उतावलां, वली पल्हाणियां सोविन केरी पवन खग वली वेसर भारई भरियां, महिष लीया जल काजि, नफेरी तडतडी, लीयां नींसाहण डूंगर गली थाइ, अमंगल कोइ. ७९१ एहवइ भल भूपति चडिउ, वल्यु नींसा धाय, छत्र चमर सिरि वरि धरियां, अवर चडियां सवि राय. ७९२ जिम ७८७ For Personal & Private Use Only ७८८ राति ७८९ जीणि, प्रवीण. ७९३ अह, मेह. ७९४ धंट, उंट. ७९५ साथि. ७९६ Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CO. शृगारमंजरी विकट सुभट लाखे मिल्या, पायक कोडा कोडि, सलहि टोप अंगारडा लोह, लोह-सनाइ सजोडि. ७९७ घरणि धूजइ शेष सलसलइ, डूंगर डोलइ सीस, धूलि सूरय छाहीउ, इम मिलिउं कटक असेस. ७९८ हय , आरोहिउ भूपती, मिलीया सुभट असंख्य, जय जय मंगल उज्चरइ, बंदी-जन ना लक्ष. ७९९ अजितसेननि तेडावी, आव्या सेवक सार, ते साथिं सवि मोकलिउ, आगलिथु परिवार. ८०० हुँ आवू छू पूठिथी, इम कही मोकलिया तेह, हेविं मोकलावी आवीउ, अजितसेन निज-गेहि. ८०१ ढाल २१ राग साधूओ गोंडी ( गुणे गिरूआ तणा, ए देशी ) | प्रीउडु ऊभइ आंगणइ, नयनि वछूटां नोर, श्रावण भाद्रव आवीआ, बोली न सकइ ते वीरो रे. ८०२ आपु-न सीखडी गोरी, दिन-न आदेसडो रे, म धरसि मनि संदेशो मनि नवि झूरिवू, मत वीसारे सनेहेरो रे, तुह्य कन्हि प्राण ज एहो रे, सुनउ भमह अह्म देहो रे. आ. ...दुपद तथा आंचली सरोवर समइ समरयो, आस उडणहार, मनसिउं धरयो प्रीतडी, दुरई नयन-जुहारो रे. ८०३ आ. किहारि वचने दुहवीयां, खमयो ते अपराध. वाहाली वीसारु रखे, दुरि थकी नेहो रे. ८०४ आ. इम मनि माणसि गोरडी, जे हूं छउ परदेशी, पंजर सूनुं रडवडइ, मनई छई तुझ पासे रे. ८०५ आ. पसरी तुह्म मन-मांडवइ, अह्म गुण-वेलि रसाल, नेहे-जलि नितु सोंचयो, जिम नुहइ विरहनी जालो रे. ८०६ आ. मत जाणसि मन वीसरइ, दुरि गया सनेह, अण-तेडियां आवइ अवसरई, जिम बापीडा मेहो रे, ८०७ आ दूरइ नयन-मलावडु, सरजिउ सरजनहारि, पणि मनसिलं नहीं आतरू, गौरी-प्रेभ विचार रे. ८०८ आ. For Personal & Private Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसरिकृत बीजिं ससिहर ऊगमइ, सुंदरि जोटो तेह, तिहां होसइ नयन मेलावडु, जा मनि जसइ सनेहा रे. ८०९ आ नेह-परीक्षा जाणीइ, सही परदेसि गयाइ, निस-दिन समरइ न विचलइ, विज गुण जेम गयांइ रे. ८१० आ. जिम सूरयनि कमल-वन, जिम चातकनइ मेह, जिम नलिनीनइ चंदलु, तेहवु राखे सनेहा रे. ८११ आ. राखे थांपणि प्रांणनी, मेहली छइ तुज पासि, दिन थोडामां आविसिउ, ताणिया तुज नेह पासे रे. ८१२ आ गोरी म रूअसि दुख भरी, दिउछउं माहरडी आण, रोतां दुख नहीं विसरइ, नयणां होसइ हाणि रे. ८१३ आ. सुंदरि वचन इसियां, सुणि हइडु गहिंबर थाइ, विरहि-दवानल परजलइ, बोलिउ जाय रे. ८१४ आ. पालव साही पति तणउ, रूधी रहि ते वाट, आंसूडइ भीनु उरि-कांचूउ, प्रीउ जाति उचाटो रे. ८१५ आ. वाहला मुज विण माहरी, कुश करसइ संभाल, विस्हानलि तनु सूकसइ, जिम तरुअर विण झालो रे. ८१६ आ. सुनि रानि सूवेलडी, विण सीचई कुरमाइ, गोरी प्रीउ नेहे-नयण विण, झुरी झुरी पंजर थयो रे. ८१७ पगि पडी कूण मनावसइ, कुण करसइ अझ सार, कुण सहिसइ ऊलभडा, कुण देसइ आघारो रे ८१८ आ. कां सरजियां पीउ वेगलां, वरि सिं न लीघा प्राण, दोहिली विरहनी वेदना, कां थयउ देव अजाणो रे. ८१९ आ. बाहाला वीसारु रखे, गया पछी परदेसि, चिर विरहानलि जलइ वेलडी, सींचेयो संदेसे रे, ८२० आ अह्म मांहि को गुण नथी, तुह्ये संभारु जेण, . को अवसरि संभारयो, अझनि दोस मिसेण रे. ८२१ आ. तुह्म गुण अह्म नही वीसरइ, मत वीसारइ मूंह, भमर भलेरां भेटसइ, करयो सार केवार रे. ८२२ आ. तुहम्यो मुजनि संमारयो, हूं तुह्म न समरेसि, मन साथई संभारवं, ते तु छइ तुम पास रे. ८२३ आ. दूरि गयां सनेहडा राखइ विरला कोइ, यम सूरयन , कमलिनी, अवर न साहामूं जोए रे. ८२४ आ. For Personal & Private Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शंगार मंजरी देइ आलिंगन प्रेमि, सइ-हथि आंसू लूहीयां, पीउडु यह अह्म चालवा, कइ करई अमंगल ऐसो रे, ८२५ आ, दुख - सायरिं मुज बूडतां वरिसि म एक तरतां छइ दोहिल, जोइ न चिति छेह नही प्रेम-वचननउ, दिवस घणेरडु जाइ, अति दुख वाघइ देखतां, हइडुं गहिवर थयो रे. ८२७ आ. आंसू घारि, बिचारो रे. ८२६ आ. Tas नही समय विलंबनउ, मन डमडेल करेइ, अह्म जावा दिउ सीखडी, हइडइ दुख म धरेयो रे. ८२६ आ, नयां-हांणि रोयंतडइ, झूरंतां तनु-हाण, मन दुख इम नही वीसरइ; चिंता चिन्ति म आणे रे. ८२९ आ. वाला सा अह पण, मन नवि राखिउं जाईं, पसरिया सायर पूर जिम, कहेइ कहेइ ठामि बंधायो रे. ८३० आ. कारय - सिधि हु तुझ तणी, मि नवि कीध विलाप, नयण गलइ कडुआवीयां, तुझ विरहानलि तापे रे. ८३१ आ. अह्म जावा आदेसडु देइ, न सकइ रे मन्न बोली न सकइ जीभडी, किम आपुं शतखंड थाइ जीभडी, जावा भारहं किम तूटइ नही, मनहूं धरइ डमडोलो रे. ८३३ आ. हंसइ भरिया ऊचोलडा, सोहवा परदेसि, जिणि सरोवर हंस जीलता, ते किम दिइ आदेसो रे. ८३४ आ. आदेसो रे. ८३२ आ. कहितां रे बोल, चालणहार चालसइ, जासइ नव नव गाम, दुख देखणहारां एकलां, रहिसइ सूनलइ ठामो रे. ८३५ आ. कहि सिउं करसइ गोठडी, सरोवर हंस गऐण, किम जासइ दिन झूरतां, मिलसिउ कैति दीहेण रे, ८३६ आ. राखीतां रहिसइ नहीं, जे हूआ चालणहार, को अवसरि संभारयो, जाता हंस जुहारो रे. ८३७ आ. घण घणउं कहीइ किसिउं रखे वीसारु चिति, थोड घ जाणो, करो अह्माडी चींता. ८३८ आ. वी एकहि छइ किसिउ, वाहाली संभारण काजि, वीसारतां न वीसरइ, तुज गुण राति न दीहो रे. ८३९ आ. नवी सरइ, जे गिरुयां गुणवंत सांभर, हैअडइ गुण अनंतो रे. ८४० आ. वीसारीयां दूरियां नेह For Personal & Private Use Only ७१ Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंत सूरिकृत देसडु, जिहां तु गमन करेइ, आदेसडु, वाहलां दूरि गएण रे. ८४१ आ. सोहाविउ सोइ रान थयु हंसा जिणि दिसि गम करेइ, तिणि दिसि मंडन थाइ, ते सरोवर जूरी गुणवतां नाहला, दरशनि अमीय झरंति, दुर्लभ तुज मुख चंदल, कहीं देखसिउं एकांते रे. ८४३ आ. पुरूषनूं, कठिन घडिउ जिम लोह, नींठर हैडुं नेहई नारी टलवलइ, नाणइ प्रीउ मनि मोहो रे. ८४४ ओ. टलवलतां प्रीउ विलपतां, महेलंता निरधार, नीर मनडुं किम वदइ, ते मुज कहु विचारो रे. ८४५ आ. मरइ, जिहांथी हंसला जायो रे. ८४२ आ. परवत सरखा भेदीइ, नइ - पाणी कठिन है तुझ पाहाणथी, नींठर निरगुण वेध विलाइ रस रमी, चिंत प्रीउडाए तुज पापनूं, किम जउ जाइसि तु जाइ तूं, प्रीउ हो अमंगला पंथीया, मृत जउ तुझे न रहउ प्रीउडा, तु एक भमरा वास निवास जे ते, तुझ बभसूया वाहन गती, गोरी तुज कही देखसिउं, जस परवाहि नाही रे. ८४६ आ चोरी जाइ, सुजवणउं थायो रे, ८४७ आ. मुज कंठि म लागि, माणसनउं संगो रे. ८४८ T. वयण करेइ, अह्मनिं देउ रे. ८४९ ओ. सिरि-वाहन-थणहार, वेणी हर-हारो रे. ८५० आ. भूपति जोसइ वाटडी, वेला थइअ अपार, जउ जावूं परदेसडइ. तु सिउ करइअ विचारो रे. ८५१ आ. तुं गोरी तूं भइ, वाहालाजी अवधारि, किवार मनि समरयो, करयो अझ तणी सारो रे. ८५२ आ. कुशलई मारग वुल्यो, गुणवंता मिलसइ धणां, पंथि पधार प्रीउडा काज करू वहाला आपण वहाला वहिला पधारयो, सिद्धावर ने यतन करी नई राख्यो, तुझ पाखइ अझ रूडा काज करेइ, अह्मनिं चित्ति धरेयो रे. ८५३ आ. मन चींत्यां फल होउ, आ दिसि साहामू जोयो रे ८५४ आ. अजितसेन आयास लही, हबइ चालइ शीलवती वउलाविवा, साथई आवी सुजाण, प्राणो रे. ८५५ आ. परगामि, नामो रे, ९५६ आ. For Personal & Private Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगार मंजरी सुंदर नेह-गेहेलडी, धरती अति नयनां - जलधरिं सींचति, प्रीउ जावा तणी माथइ सूरयडु तपइ, चरणे वुलु मंदिर गोरडी, तूं सूंहीलडी वाहाला विरहानल तपइ, तिणि दुखि तिणि दुखि ए दुख वीसरइ, अनइ वली तुह्य तणइ संगो रे. ८५९ आ. चरणे खूचइ काकरा, लोही झरइ रे प्रवाह. परसेवउ अंगि उतरइ, रहि रहि बूजवइ नाही रे ८६० आ दाजइ अंग, १० उचाट, वाटो रे. ८५७ आ. वेलू - जाल, बोलो ७ रे. ८५८ आ थायो रे ८६२ आ. वउलावा ठाम, मोरइ आंसू जलि सींचीउ, मारग शीलु रे होय, अनइ वली तुह्यची गोठडी, प्रीउ ए दुखडु न जोए रे ८६१ आ. इमिसं जेती घडी, प्रीउ तुझ साथि रहाइ, सफल हुइ ते ते घडो, अवर अनारथ जोत पणि लाभइ नहीं, सजन जिहां तुझ वलावी बलूं, तिहां इम भई वुली केतली, दूरिथी अजिनसेन तव वीनवइ, वाणी सरस अपारो रे. ८६४ आ, वाहाली आ वड-छांहडी, सरस सरोवर एह, साहामा दिसइ कटकउं, हवइ वलु आपणइ गेहो रे. ८६५ आ. रान मसाणो रे. ८६३ आ. दीठउ राय, बचन उसकल आपणा, हवईं म वीसारसि चित्ति, दिन दिन अधिक वघारयो, वहाली आपणीं प्रीति रे. ८६६ आ. सुंदरि कहइ किम बाधसइ, वाहाली प्रेमनी वेलि सींचणहारा वेगलइ वनि, कुंण करसइ सारो रे ८६७ आ. वाहाली बोली मवचन ए, जनमंतरि न मिलंति, घण अंतरि ससि - कुमदनी, तुहइ नेह न चलते रे. ८६८ आ. हाथ छोडावी जतां, वाहाला बल मांणेसि, जउ जाइसि मन प्रेम वसई अति कांइ जे अगघटतूं कहिउँ, ते उसीकल करेयो रे. ८७० आ. माहिथी, तु तुज बल जाणेसे रे. ८६९ आ. परिचई, विरहि जलंतडइ देहि, वाहाली ते दिन कब हसइ, जव तूं अह्य दुह वेसि, बाहलां तणा For Personal & Private Use Only उलंभडा, सुणतां अमीय सरीसो रे. ८७१ आ. पडुतरई, करीय सुरंगी वात. इम उत्तर tas प्रीडर लावी, सूनी थइ सवि धातो रे. ८७२ आ. Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत राग भारुणी मांहई वीरही दूहा छाय. गोरी पींड वउलावी, सूनां रहिया ढंढार, मन वलाविडं प्रीउ सिउं, हवइ कुण करसइ सार ८७३ गोरी जोइ ऊभी रही, ओ वाहलेसर जाइ. नयणा लेयो रंगडु, जिम मन तृपतु थाइ मेहलीआ करि वादलूं, टाढा वाय सवाय, सजन हालां साचरइ, अंब म छंडे सजन चाल्या गुण महेलीआ, हैयडइ महेल्युं साल गुणवडी समरतां, tres उठइ जाल. ८७६ सजन चाल्या विदेसडर, मेहली माहारी सार. तेइ देसि मोरु जवारडु, सि न सरजिउ किरतार ८७७ हुं सि न सरजी पंखिणी, जे भमती प्रीउ पासि, भूख- तरस वरि वेठती, नयणां तगइ विमासि. ८७८ रे चंदन तोरा गंधमां, ऐणि मसि प्रीउ अंगई रमूं, रे चांपा तुज गुण करूं, प्रीड कंठइ वलगूं जइ, रे रे जउ ८७९ हूं न सरजी वालुका, जे प्रीउ चंपत पाइ, पणिकां सरजो विरहेणी, प्रीउ नवि देखं माइरेशशिर तूं बीजइ दिनि, मूंहनई कलामां भेलि, इणि मिसि प्री साहामूं जोइ, विरह विछोहिया मेलि. ८८० भेलिन मोरु भाग, अवर न पामूं लाग. ८८१ पूरि-न मोरी आस, लइ मुज तुज पासि. ८८२ दइ तुज अवतार, एणि परि नेह - गेहलडी, विरहानल प्रगटीउ, उदींसह पेला हाथीया, उ वाली सकु तु बालय, ८७४ प्रीड मुख-मंडन हुं हवु, सफल माइ विधाता मीनति करूं, माइ सिउ करुं संसार. ८८३ भेलि-न मूंह, एइ सि प्री मुखि जे वसूं, पुण्य हुस्यइ वली तूंह. ८८४ ८७५ प्रीड पधारिया वाटडी, उडणि लागी छेह. प्रीड नयणा बारिथी, हवई सिउ विलेख करेइ, गोरी आंसु-जलि वरसेइ. ८८५ वाहालु जोइ, पेलु नयणां अंतर थाइ. ८८६ वरससि मेह. ८८७ For Personal & Private Use Only म जायुं हूं वली वली, प्रीउ मुख जिम वनमाली वन तणी, क्षणि क्षणि करइ संभाल. ८८८ जोसि रसाल, Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5जगारमंजरी विरह-दवानल प्रगटोंउ, बली आस्या-वेली, अधर समां फल वेडीयां, हैडा-आश्या मेलि. ८८९ जे देखी मन उल्लसइ, ते सज्जन परगांमि, सरखा को देखुं नहीं, मन राचइ जस नांमि. ८९० मन लागुं नारिंगडे, किम रमइ लिंब-फलेण, ग, मनि अलजउ सज्जन तण उ, किम भागइ अवरेण. ८९१ सुमन भमरे सेवीयां, किम गमइ आउल-फूल, ते गुण सज्जन केरडा, लाभइ केणइ मूलि. ८९२ सुगुणी नइं मन मोहिनी, हंसे सेवों गंग, निरगुण नीरस छीलरे, ते किम मांडइ रंग. ८९३ गुण धणा मन साकडू, हैयडामां न समाइ, तेह भणी आंसू मसिं, गण उलटीआ न माइ. ८९४ भींतरि विरहानल जलइ, मूहि धूआं-नीसास, सजन गुण वावाइउ, बालइ तनु वनवास. ८९५ गया ते मन वुहरति करी, वणजारा पर ठाणि, अह्यनइं गुण वुहरावीयो, तस नहीं हुइ हाणि. रे सजन जउ तुझे गया, तु गुण मेहल्या काइ, पापीडा क्षणि क्षणि दहइ, जिहां जाउं तिहां धाइ. ८९७ सूनी सरोवरि पालिडी, ऊडणहारा हंस, सजन चाल्या परदेसडइ, अह्मे रहिया निरास. ४९८ सहिजि सलूणां माणसां, दैवि कीयां सदोस, दुरियन नी परि जिहां वसइ, तस मनि लाइ सोस. ८९९ गुण संभारू केतला, मन भरीउं भंडार, जिम वयरागर भूहडी, रयणा तणा अंबार. ९०० सायर नीरह भूई तिणह, गयणगणि तारांण, वयरागरि मणि सूयण-गण, पार नही एयाण. ९०१ वरि विसहर खाधां भला, क्षणमां जीवत लेइ, पणि विरहानल दोहिल, क्षणि क्षणि देहि दहेइ. ९०२ विरहानल दीवा बलइ, सोंचती नेहेण, देहडी दीवटि आवटइ, नवि उल्हाइ केणि. ९०३ सज्जन जाता ते करिलं, जे वन भील करंति, दव लाइ दूरि रह्यां, भींतरि जीव बलति. ९०४ सज्जन जातइ ते करिउं. जे पारधी करती, मधुर वचन मूहि दाखबी, अमनइं गुण बाग्झति. ९०५ जउ जाणत दुख एव९, पहिलू प्रीउ-विरहेण, तु नवि करत सनेहडु; प्रीउ न जोअत नयणेण. ९०६ For Personal & Private Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत नेह-मूल दुख-वेलिनं, विरस विरंगी जेह, प्रिय विरहानल-फूलडां, मरणा-फल हुइ छेह. ९०७ सूकां भीतरि सरसपणि, मढवि दख वेयंति. नेहइ रतवि पंडुरां, दुणां बिहु तणयंति. ९०८ कां किधां परदेसडइ, वाहालां नेह सुरंग, अंगो अंगइ न मिलत, जउ नयणां मिलत सुचंग. ९०९ चंद नलिनी रवि कम लनी, न मिलइ अंगो आंग, दूरि दीठइ उल्लसइ, नयणां केरइ संगि. ९१० नवि बोलावइ मधुर सरई, नापइ काइ रसाल, नेह नयणे निहालीयां, वाघइ कछप बाल ९११ सुंदरि नेह-गहेलडो, विलवती निश्धार, प्रीउ सिउं मन व उलावि कारे, पाछी वली सुविचार. ९१२ उभी वडनी छांहडी, नयनि उनइओ मेह, डग आधां न भराइ ते, हो हो धिग् ससनेह ९१३ प्रिय विरहि रोयंतडइ, रोआव्या गिरि-टूक, नीजरणां मसि जल झरइ, गोरी जोइ निशंक. ९१४ वनि रोआव्यां संखडा, गोरीइ रोयति तंत, साल सलाव्यु विरहीया, गुण समरी विलवंत. ९१५ वन वारइ पंखी मसि, रहि रहि सुगुणि म रोइ. जिहां संयोग वियोग तिहां, दुख धरई सिउं होइ. ९१६ विरह तणां दुख दोहिलां, नवि वीसरइ जीवंति, विरहिं माणस न विसरइ, पणि दूबलडां हुंति. ९१७ सज्जन पहिलूं हूं सि न गइ, दुख न देखत एह, हैउ न फाटइ स्या भणी, वाहालां तणइ बिछोहि., ९१८ माणस केरा हैयडलां, कठिन घडयां किरतार. विरहि न फाटई व्रजमय, धिगू धिगू मनुष्य-जंवार, ९१९ विरह कराली बालिका, पगि पगि इम विलवंत, निज घरि आवी गोरडी, दिन जाइ झुरंत. ९२० वनि भवनि कही सुख नहीं, तालोबेलि ऊचाट, क्षणिक बाहरि क्षणि भुइ, क्षण उभी क्षण खाटि ९२१ जेहनइं जेसिउं नेहडु, नेह विण तस मनि रांन एकि जाणे जग भरिउ, जेहसिउं नेह-बंधाण. ९२२ सवि सूनुं सजन विना, ऊवस सघलू गांम, दुख भर पुहुवो हीडतां, कोइ न पूछइ नाम. ९२३ जे सेरी सोहावती, लडसडते डगलेण, तेणइ सेरीइं मृग चरइ, सजन विदेस गएण. ९२४ For Personal & Private Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यंगारमंजरी कुसुम-सेजि जिणि मंदिरि, सुख विलसती रसाल, दीठां न गमइ ठाम ते, देखी सालइ साल. ९२५ तेह ज माणस तेह ज घर, तेह ज ते ठाण, एकइ जाते सहू गयुं, चंचल थयां छइ प्रांण. ९२६ अन्न न भावइ विरहीयां, जल दीठउं न सुहाइ, वैध नही को तेहवु, जस दुख कहीइ जाइ. ९२७ जे सहि मीलीया सजन सिउं, तस हैयडइ नितु साल, जे सजन सि नवि मिल्यां, सुनउ तस अवतार. ९२८ सजन साथइं जे मिल्या, ते नितु झुरि मरंति, गुण संभारी आवटइ. सुख सुहणइ न लहति. कां ते सजन सरजीया, अह्मे सरज्यां कइ काइ, दुख कारणि नेह कां करु, दुख-सायरि पडीयांइ. ९३० इम गुण समरी विलवती, मेहलंती नीसास, मुच्छाइ धरणी ढली, समरी प्रेम-विलास. ९३१ सही शीतल उपचारडा, करइ अनेक उपाय, नीर चंद चंदनह, ते विख-वेली थाइ. ९३२ विरह दवानल परजलिउ, छांटि म सहि सलिलेण, हैयडं पाहाण तणि परि, पीउ जासइ फूटेण. ९३३ शीयल कयली पत्तडे, वीजि म विरह विलत्त, विरह-दवानल धीकीउ, वाधइ वाइ जडत्ति. ९३४ भींतरि विरहानल तपइ, बाहिरि सिउ उपचार. उषध वाहालां-संग विण, न समइ रोग लगार. ९३५ मयणराय किम वीसरइ, जायु विरह संतावि, सुमनस-दसण शीयल-जलि, सिंचजइ नहुजाव.(?) ९३६ चंदउ चंदन केलि दल, ए जस इधण हुंति, पीउ विरहानलि सोइ सहइ, किम उल्हाविउ जंति. ९३७ रावण-रिपु-सेवक-पिता, अरि-वल्लभ मत लांइ, तातिं तेलई शीतल-जल, छम छम अधिक सथाइ. ९६८ गहिली मेह पिय-वयण, विण महेली कुंभ-पिएण, सायर-तनुया-सुत दही, सहि हूं दुब्बल तेण. ९३९ हरतिय-नयणे जे वसइ, हे सखि ते मुज देइ, अगनि अगनि उतारीइ. सो पुण मयण दहेड. ९४० कामण मोहण जिणि कर्या. तेदजि टालड दोख. जेणइ लायु वेघडु, तेहजि भंजइ शोख. ९४१ आकरसइ गुण ताहरा, मोहन-रूप रसाल, वसीकरण तोरां नयणलां, मारण विरह कराल, ९४२ For Personal & Private Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ जयवंतसूरिकृत वियोग उचाटन बोलडा, कामण मोहण एह, अह्म वसि करवा सजना, किहां ते सीख्या एह. ९४३ विरही माणस दुखडां, चकवा जागई सोइ, एक रयणी रडतां गमइ, दुख सरिखु सवि कोइ. ९४४ थइ सचेतन सुंदरि, सालइ प्रोउसनेह, गुण संभारडी गोरडी, पंजर हवू देह. ९४५ जे वाटइं सजन गया, फेरा दिइ तिणि वाटि, जइ रमइ सुनइ रांनडइ, धरती अंगि उचाट. ९४६ आणइ थांनकि बोलावीकां, वउलावीयां एणइ ठांमि, दुख सालइ तिणि दीठडाइ, वाहालां जातइ गांमि. ९४७ काम उपाय नव नवां, गोरी फेरो देइ, है है वैध विलूघडा, सुपरि संवरि वेइ (?) ९४८ सजन पांहि विसहर भला, क्षणमां प्राण हरेइ, वेध विख लाइ पंजरि, क्षणि क्षणि देह दहेइ. ९४९ सजन दीठइ जीवीइ, मरीइ अणदीठेण, सुगुणां संग त्रसालूआं, त्रस छीपइ कहु केण. ९५० आंबा-फलनी आसडी, कइरि न सफली सोइ, सगुण सलूणां मनि बस्या, अवर न रच्यइ कोइ. ९५१ मोति-चूरि चिणंतडा, सरोवरि झीलइ हंस. छीलरडे बग , डोहीइ, ते किम करइ प्रसंस. ९५२ गुण संभारी जेहना, भमरू जुरे मरंति, जां ते मालति नवि मिलइ, तां किम आस फलंति. ९५३ जोइ जोइ पाछउ वलइ, बापीडु जल चंग, तेहवां सजन को नहों, जे दीठइ हुइ रंग. ९५४ सगुण सलूणां वेघडइ, अवर न भोवइ कोइ, सुर-तरु तणइ भोलावडइ. आक न मोठउ होइ. ९५५ ऊडी गया ते हंसला, सूंनी सरोवर पालि. जेहसिहं रूडा भावता, ते पुहुता पेलाडि. ९५६ जिम जल विरहि माछली, तालोवेलि कराइ, सजन विण तिम मूंहनइं, दिन दलबलनां जाइ. ९५७ फाटि न विरहिं रे हैया, कां तूं नीठर आज, . वाहलां विण जे जीवीइ. तिणि जीवई सिंउ काज. ९५८ सनेह विछोहा दोहिलां, डूंगरि देयो लीह, आवटणुं आठइ पुहुर, सजन विछोहा जीह. ९५९ सजन केरां दुखडां, आपि न जउं भंजाइ, कमल परई रवि अथमणि, पहिलूं तनि करमाइ. ९३. Jain Education Interational For Personal & Private Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी ९६५ ९६७ मित्र दुख देखइ नहीं, आपई संकोचाइ, नेह खरु रवि कमलनु, अवर न दीठ सुहाइ ९६१ मांस पांहि दाडुर भल, मेह विण प्राण त्यजंति, अहव निसनेहां मांणसां, सरणां, भय न धरंति. ९६२ तहेतुं नेह लगाडीइ, अवर न जां सुहाइ, जिम मेहा aciers, नेह देखाडी जाई. ९६३ हंसा आपि न पंखडी, मन भावहूं सो लेइ, अलजउ भांजउ मन तणउ, जइ ते सजन मिलेइ ९६४ ले चंदा चतूर तूं, मोरी करि न संभाल, सजन संदेसु दाखवी, जाता प्राण स वालि युग सरखी रयणी गमुं, वरस समाण दीह, सुन यौवन सजन विण, आलई जाइ दीह. ९६६ वली वली जोइ नयणला, करि आरीसु लेइ, सजन दीठा एणे नयणले, हूं बलिहारी तेणि. चिंता मनि छइ मिलणनी, सारणि हैइ वहेइ, नवि मांगइ चिंतामणि, जां सजन न मिलेइ. ९६८ एक जि चिंता सजननी, अवर वीसारी चिंत, चिंता थकी अधकी दहइ, कोइ म करयो प्रीति ९६९ ते दिन कहीइ आवसइ, जहां मिलसिउं एकांत, कुसुम विछाही सेजडी, प्रीउ सिउँ विहीसइ राति ९७० नाम न मेहलई नीद्रमां प्रगट करइ मन - वात, तालोवेली उरतु, दाधजवर सज्जनई सुहुइ मिलूं, मनि हुई हरख लगार, देखी न सकइ दैव ते, नींद्र हरइ तेणी वार . विरहि म आवह नींद्रडी, वली विशेख संयोगि, सही ससनेहां मांणसां, पहिलं नींद्र वियोग. ९७३ हूं जाणुं सुहुइ मिटिङ, मनि हुइ दुख-वीसार, करूं उपाय घणी परइ, नावइ नरेंद्र लगार. आंखडीयां रातडि धरइ, अजउ दोइ मिलणांइ, एक सजन नई नींद्रडी, दो जण छोडि गयांइ. ९७५ चिंताई सभरित भरी, सजन विरहिं देह, आवी न सकइ नींद्रडी, कसरारिं नयणेह (?) ९७६ नयणे वेची नींद्रडी, अंगी करिउ अणुराय, वलती सी तस आसडी, जे करि चडोयां जाइ ९७७ उत्तर देइ आकली, सहू दूबलां पूछेइ, जे सजन विछोहीयां, मातां किम हुइ तेह. ९७८ उचाट. ९७१ ९७२ ९७४ For Personal & Private Use Only ८३ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत सजन सलूणां मनि वसइ, अधिक वधारइ सोस, तनु भिजई भीतरि गलइ, वाहलां मोट उ दोस. ९७९ बहु गुण भरीइ सजन-तनि, पइसणि न लहुं भेय. तेह भणी हूं दिनि दिनि, पत्तल अंग करेइ. ९८० विरह-दवानलि जालीउ, छांटिउं नयण-जलेहिं. तुहइ सहइ पत्थर दिइ, दिनि दिनि पंडुर देह. ९८१ आंसूडां क्षणि क्षणि जरइ, नयनि अखंडी-धार विरह-सरोवर उलटिउ, नयणां वहइ घडनाल. ९८२ रोइ रोइ छूटइ आंखडी, हैडडूं किम छूटिइ, जिम दव लागु वेडिमां, भींतरि जूरि मरेइ. ९८३ भींतरि विरहानल जलइ, मूहि धूआं-नीसास, नयणे आंसूडां गलइ, हैयडइ. ऊठइ जाल. ९८४ समय समय ना बोलडा, प्रेम तणा एकांति, निःकारण मनि समरतां, हैयडूं हेजि हसंति ९८५ उजाणे लीलां करी, वाटइं सजन जाइ, वेध विलूधां माणसां, ते केडइंऊ जाइ. ९८६ सजन गुण संभारता, थाई अचेतन देह, भूख त्रस नवि सांभरइ, मूच्छाइ ससनेह ९८७ सजन पासई मन वसइ, सुर्नु भमइ ढंढार, दोहिलु पापी वेघडु, मरम भलु अकवार. ९८८ पारेवा नेहइ मरइ, दाडुर मेह विहीन, नेहइ बंद्धा सवि मरइ, जिम जल विरहि मीन, ९८९ बिरहिं मांणस सही मरइ, अहवा जउ न मरंति, दव-दधां हुइ साल जिम, निशि जूरि मरंति. ९९० पहिलूं नयणां नेह करइ,१ चिंता चित्ति घरेइ,२ नव नव संकल्प ऊपजइ,३ विरह प्रलाप दहेइ ४ ९९१ नयणां नाठी नीद्रडी,५ तनु जूरी जिब्भेय,६ आंखडीयां आंसू झिरइ,७ अति उनमाद वाहइ.- ९९२ गुण समरइ मछो दहइ,९ विरहि मरणां होइ.१० विरहीनी ए दस दिशा, साल समांणी होइ. ९९३ कबहि मिलुंगी वल्लहां, मन मिलणां अहिलास, इअ चिंत तां माणसां, जीवीय रखइ आस. ९९४ समरि समरि गुण मालती, भमर भमी झुरंत, तिम गुण समरि सजनह, झूरि झूरि मरंति. ९९५ मानस-गण मनि समरता, अवर सिउंन मलि हंस. गुणवंता ते सरभलां, तेह भला ते हंस. ९९६ For Personal & Private Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गारमंजरी समरइ हाथी विजनइ, करहा मरुथलयांइ, तिम मन समरइ सजनह, जोयण लख गयाइ. ९९७ प्रगट करइ गुण तेहना, जेहसिउं जस अणुराय, एक वाहलां गुण-गान विण, अवर न कोइ सहाइ. ९९८ अछता गुण कहइ तेहना, जे जस उपरि रत्त, नाम लेतां मन उल्लसइ, जिहां हुइ अक चित्त. ९९९ दिन दोहिलई नीठर नहीं, रयण रडंत विहाइ, विरह तणी जे अघ-घडी, ते युग सरखी थाइ. १००० भूख नहीं निद्रा नहीं, तालोवेलि प्रलाप, दाधज्वर दहइ रोग ए, दोहिलु विरह-संताप. १००१ हैयडइ कांइ सुजइ नहीं, मुहुडइ नवि बोलाइ, है है विरहां माणसां, पहिलूं मति मंझाइ १००२ क्वचित् अभिलाख १ स्मृति २ गुणकीर्तिन ३, उद्वेग ५, व्याधि ५, जडता ६, चिंता ७, प्रलाप ८. सन्माद ९, मरण १०, एता स्मरदशा प्रोकताः, अतएवपृथक व्याक्खातां.... भागइ विरहानल तपइ, चंद्र दहइ बली देह, भागइ सरोवर उलटइ, उपरि' वरसइ मेह. १००३ हर-बाहन सायर-पिता, अमीय कला निकलंक, नलिनी सिउं तुज प्रीतडी, इम कां दहइ मयंक. १.०४ रेलइ चंदा चतुर तूं , चिंतिं न चित्त सुजांण, आगइ विरहानल तपइ, उ स्युं करइ परांण. १००५ रे शशिमुखि मनि समरि तूं , पूरव वैर विचार, मुख साथई बल मांडती, मुख केरइ आधारि. १००६ रे चंदा सुणि वत्तडी, गुणवंत जोइ न चींति, विहि विपडयां वर सोधीइ, ए कुण उत्तम-रीति. १००७ बां प्रीउ नावइ दैव तूं , तां शशिनइ जंपेइ, जव आवइ मोरु, वल्लहु, तव ससि महिम करेइ. १००८ रे पापी सुणि वंदला, विरही मारणहार, भयि जाओसि ए पापथी, बल तूं म करि गमार.. १००९ विस-सायर कुरंग-प्रिय, सच्च-चंद दहेउ, सीयल चंदनः कां दहइ, एमह भेय कहेउ १०१० For Personal & Private Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ जयवंत सूरिकृत भार, वमइ, तेहइ दुणु दुर्बलां, कहु सहि कवण विचार : १०११ नेह हैइ सज्जन विरही मांस सज्जन सहित सलूणडां, तम्मय पीउ करेइ, विरहानल सूरय तपइ, तणि ज्ञीणंग विरही कां हुइ दुबलां, कारण कहु-न विमासि, सही ए नशि-दिन जेहनइ, पलि पलि वाघइ मांस. १०१३ सहोइ. १०१२ उत्तर भाठ पुहुर अंगीठडी, भौंतरी धीकइ जास, मांचइ किम सलूण ते, पल पल वाघइ मांस. १०१४ जे जे बोल्या बोलडा, सजनि नेह-रसाल, खिणि नेह-रसाल. साल. १०१६ सालइ अटकइ ते हैइ, जिम अणदीठउ-साल. १०१५ जे जे बोल्या बोलडा, सजनि ते ते बोल संभारता, सूकूं घडली वरसा सु समी, रयणि सजन विण जे जीवीइ, ते जीविडं न कहाइ. १०१७ सजन जातइ ते करिउं, जे वली करइ सोनार, विरहि अंगीठी खार - गुण, गाली सघली घात. १०१८ अनीठी थाइ, धणह - प्राहार. १०१९ नींचा दाइ, अलगाथाइ. १०२० सजन जातइ ते करिउं, जे वली करइ लोहार, विरहानल मन तापवी, दइ गुण सही ए गुण सजन तणा, सोइथी सुइ वींधी मेलइ एकठां, सजन सजन साहिजि सीयला, गुण- दाबानल भाग, निशि-दिनि रहइ जु एकठां, तुहि न जाइ सभाव. १०२१ सजन नहीं ए पारधी, नाँखइ निज गुण-पास, निशि-दिन आवट करइ, मिलइ न मेहलइ आस. १०२२ सजन साप समाणडा; सहिजि किम नयणे विख वमइ, वयणे दाहि दाहि फलि कमलुं, रतडि पछइ अनुदिन झमझमइ, वीछी सन्जन गुण नहीं तुझ तणा, वीछीं सरखा होइ, दीसंता मुहुडइ समा, ऊकराटिं विख जोइ. १०२५ एक परई दुरियन भला, दीठा दहइ विकराल, सजन अणदीठा दहइ, दीठिं सालइ साल. १०२६ हुइ बँक, देइ डंक. १०२३ पहिलं देहि, डंक सनेह. १०२४ For Personal & Private Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी विरह भलु एकी परइं, संगम सुख जणाइ, तेहजि सज्जन संगमि, तनमय विरहि जणाइ. १०२७ सजन ग्रहियां मन भींतरिं, कीधी वाडि सनेह, तु परदेसई किम रहिथा, सुपनि न महेलिया एह. १०२८ सजन देखं जा लगई, तां मनि हुइ समाधि, जब सजन दुरइं गया, तव वाधी असमाधि. १०२९ पहिलउ पडिउ वरांसडु, जे मइ कीउ सनेह, मन आपी परवसि थयां, हवई जीवित संदेह. १०३० जउ जाणउ दुख एवडुं, तु नवि करत सनेह, जिम छाली पाणी पीइ, जलह न अप्पइ देह. १०३१ बाउल-कंट सरीसडा, सजन गुण सुविशाल, पइसंता दीसइ नहीं, भोंतरि सालइ साल. १०३२ वांका बोरि सकांटडा, सजन गुणह समान, खूचीनई पाछा वलिया, जम जम करइ पराणि. १०३३ सजन गुण जिम लूगडूं, मुज मनि बोरि-कंटालि, ऊहे. डुं नवि ऊखडइ, वलगइ तारो तारि. १०३४ मारि कटारि प्राण लि, वरि विष देइ मारि, पणि रे पापी देव तूं , सज्जन विरहि म मारि. १०३५ कइ अमृत कइ विख समा, सज्जन किस्या कहाइ, संगमि अधिका अमीयथी, विरहिं विख सम थाइ. १०३६ तेहवा सजन सनेहडा, जेहवां रुंख पलास, जिम जिम विरहानल जलइ, तिम तिम पल्लव तास. १०३७ हैडा सुपरि वारतां, कां तिइ कोउ सनेह, भुख गइ निद्रा गइ, ए फल लाधां हि. १०३८ हेजि-हीसी तेह करिउ, करतां जाणिउं सुग्नु, निरवहितां हविं दोहिलूं, विख विरहानल दुखु. १०३९ हैया व्यसन वसाइआं, कुडउ करवि सनेह, भूख तरस न सांभरइ, आवटणउं निशि-दीह. १०४० मनि संताप जि तेतलु, जेतु हुइ सनेह, तिल पीलीई तां लगइ, जां लगइ दीसइ त्रेह. १०४१ महि ससनेहां दुखडां, आपि सहिणां होइ, दुध अगनि ऊकालीइ, नीर बलतं जोइ, १०४२ For Personal & Private Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .८४ जयवंत सूरिकृत प्रीति न कीजइ जां लगइ तां मनि हुइ समाद्धि, जबथी मांडी प्रीतडी, तवथी आणी व्याधि. १०४३ नेता सुखनिं कारणं, मांडी प्रीति रसाल, तेता मुज फरि हूयां दुख, दहइ विरहानलनी झाल. १०४४ नयां डूंगर - ज्ञरण जिम, नितु नितु नीर झरेइ, हैहूं रत्न तलाव जिम, पूरिं फाटी जाइ. १०४५ हैडूं दुखिं पूरीउं, निम दाडिम - कुली एण सज्जन को नहीं तेहवु, ए दुख भंजइ जेण. १०४६ हैंडां भीतरि दव जलइ, सज्जन-गुण अंगार, वि दीस जेणि उल्हवूं, अवगुण-नीर लगार. १०४७ हैडा पातिग एवडुं, ति न लहू सिउं कीद्ध, नयां नइ रस अप्पीउ, तुज झूरेवूं दिद्ध. १०४८ पी-विरहनल लग्गीउ, हैडा - भुवण मज्झारि, हल्लु-फूल्लवि नीसासडा, नीसरइ वयण- दुयारि. १०४९ विरह विछोहियां नेह तजउ, नयणां दो धडनाल, अडुं रान तलाव जिम, फाटत तु ततकाल. १०५० शरीर. १०५१ तीरि, रहिउं शरीर १०५२ कुसुम कुतुहल केलिहर, चंदु चंदन चीर, सजन माणस विरहीयां, एतां दहइ ऊमाहियां ते उचल्यां, पुहुतां पेलइ मन मोरू साथई गयुं, जंखर वीसारियां न वीसरइ, गुणि गिरूआं रसाल, जिम परि भागु कांटडु, खिणि खिणि सालइ साल, १०५३ खटकइ कवीयण - वयण जिम, सजन प्रेम अपार, विरह खटकुइ तिणि परिं, जेहवा बोल गमार. १०५४ गुणवंता मन भावतां, सज्जन मिलइ केवार, देखी न सकइ दैव तु करइ विछोह अपार. १०५५ आज ज भागी नींद्रडी, आज ज गया विदेसि, आज ज सूनुं मन थयुं, सेरी मंदिर देस. १०५६ दिन्न - दीह, प्रीउ परदेसई चालतां, जेता खिणि खिणि ते दिन समरतां, मंदिर भरीउं लीहि. १०५७ अंगि वयणे लोयणे, सिय नीसासु मेह, . विरह विछोहियां अध-घडी, वरस समाणो एह. १०५८ For Personal & Private Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी अगनि थकी अधिकु दहइ, वल्लह-विरह विलास, आंसू-जलि नितु सोंचतां, वाधइ अधिक हयास. १०५९ गुण संभारी गहिबरी, हैडा झरि म झूरि, जस मिलवा अलजु धरइ, ते सज्जन छइ दूरि. १८६० चकवी मिलवा टलवलइ, चकवु पेलइ तीरि, घण अंधारु रयणि भर, आलिं उंडूं नीर. १०६१ कां तूं झूरइ रे हीया, सज्जन तणइ वियोगि, जहीं होसइ दिन पाघरा, तहीं मिलसइ संयोग. १०६२ सजन विरह विगोइयां, आसार खुइ जीव, कालइ उंबर पाकीइ, मिलइ जीवंतां जीव. १०६३ हैडा कुशल ज मग्गीइ, वल्लह अनि अप्पाण, कही मिलइगां सज्जनां, आशा मेरु समान. १०६४ सज्जन विरहानल बलइ, ते मु दुख न होइ, हींइ वसइ छइ सज्जनां, रखे बलतां सोइ. १०६५ हैडा फटि पसाउ करि, नीठर जीवइ काइ, सज्जन गुण संभारता, फटवि दुहु दिसि जोइ. १०६६ सज्जन पुव्ब-भवंतरिइं, दो जण वइर किसियांइ, नेह लगाडी मरण दिइ, मरण मज्झे वसीआइ. १०६७ हैंडूं पंखीनी पर, मेहलियां सवि कसीयांइ, कोइ न दीसइ तेहवु, जिणि तुह्मो वीसरियांइ. १०६८ विहि वरां सा बिहु परिं, नेह जि सरखिउ काइ, अहेव सनेहां माणसां, पंख न अप्पी कांइ. १०६९ जह पिउ मिलणि उमाहीलं, पूरइं पसरइ चित्त, तिम जउ पसरइ पांखडी, तु उडी मिलुं नित्त. १०७० जाणउं जै उडी मिलं, पंख न दीधी दैवि, मनमा रहइ मन-वत्तडी, अति अबटाइ जीव. १०७१ सारसडां मोती चिणइ, मन भावइ सो लइ, एक बार साजन मिलउं, पंख विकाती देइ. १०७२ विहि रूठी तु सिउं करइ, पांखडीखांइ पराण, चकवां रयणि विछोहीयां, कांठा सायर समान. १०७३ चकवां रयणि विछोहीयां, पंख पसाइ मिलंति, पंख-विहुणां माणसां, नाउं दिन नवि रत्ति. १०७४ For Personal & Private Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ जयवंतसूरिक्त दीहा वज्ज सरीसडा, दैवि कीया कराल, तु रयणी सिहानी घडी, विरही-माणस काल. १०७५ दैव आरांधिउ एक मनि, विरहइं पुत्व-भवेण, वरस समांणी अध-घडी, दीधी पणि वंकेण. १०७६ दुखीयां तणे नीसासडे, दीहा न बलइ काइ, विरही-माणस शापवइ, रयणी गली न जांइ. १०७७ विरहिं वाघइ पापिणी, संगमि वहित विहाइ, ए निःकारण वइरणी, रयणी फीटउ माइ. १०७८ रे विह सुणी एक वत्तडी, कइ मुज सज्जन मेलि, कइ दिन रयणी मूलसिंउं, सायर मांहि मेहेलि. १०७९ टलवलतां निसि नीगर्भू, पापी दिवस न जाइ, दिन झुरंतां जउ गलइ, विहाणउं नवि होइ. १०८० दिवस बलु रयणी गलु, जीविय वीज पडेउ, सजन सिउं मेलावडु, जउ हय विहि न करइ. १०८१ हूं तुह्म पूछउं हे सही, उत्तर दिउ मुज केण, राति दिवस बिमणां हवइ, पीय माणस विरहेण. १०८२ सजन मन भोंतरि बसइ, मिलीउं जीविं जीव, तीह जीविय जे दीहठो, दुणा कियतें दैवि. १०८३ सजन मांसण विछोहीयां, घण-नीसासा होइ, तेह भणी दिन रातडी, अखय अनीठी होय. १०८४ पीउ मण वसतइ मिलहिउं, नाण अनुव्ववियोइ, अम्माणू जाणूं नहीं, परि पिछउं पण लोइ. १०८५ पंजर मूंकी मन भमइ, किंहिं न विरहेण करेइ, जिम फल लोभिं सूडली, अहि-निसि फेरा देइ. १०८६ नीसासु ऊजागरु इसाऽरति आरति, ' भूखा तरस तनु तनु हवइ, विरही लक्षण मित्त. १०८७ विरह थकी वरि विख भलूं दुख नवेइ खीण रे, पणी दवनी परि नितु बलइ, पापी विरह-विकार. १०८८ विरह थकी वरि विख भलूं जेहनइ माणस खाइ, पापी विरह बीहामणउ, जे माणसनइ खाइ. १०८९ विरह थकी वरि विख भलं, खावू मारइ जेह, विखथी विरह नहीं भलु, अण-खाधु मारेइ. १०९० For Personal & Private Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धंगारमंजरी विरह थकी वरि विख भलू, नितु सेव्यां न मरंति, जिम जिम विरह जि सेवइ, तिम तिम अधिक दहंति. १०९१ मित्त न कीजइ जां लगइ, तां सुख हुइ चित्त, दुख लेइ सुख नीगमिउं, जिणि को कीउ मित्त. १०९२ सज्जन को तहेवु नहीं, इणइ संसारइ तेह, अस दुखी देखी अप्पणू , मन-ठारवण करेइ. १०९३ जेहनइ सज्जन को नहीं, सुख-दुख नउ विश्राम, रान-तलाव तणी परइं, तस मन रहइ किम ठामि. १०९४ जे अध-चहिची दुख लीइ, तेहनइं खु कहेउ, निरगुण नीरस दुख कहिउं, जग जण हास करेइ. १०९५ जे जाणइ दुख-वेदना, तेहनई कहीइ दुखु, जण हातूं मनि उरतु, जउ मन दीजइ मुक्खु. १०९६ विरला जे दुख सांभलइ, विरला मनि धरइ दुखु, विरला पर दुखि दुखीया, विरला भंजइ दुखु. १०९७ पेट भरिउ परहंसडे, उपरि बालइ वेध, ठारवणउं एकइ नहीं, किम रहिसइ ए देह. १०९८ दैवइं सरज्यां वेगलइ, केतु कीजइ सोस, कुण लहिसइ रानइं रडिउं, हैडा करि संतोष. १०९९ गोरी कंत वियोगडइ, शिथिल हुइ वली चियारि, त्रणि वाधइ च्यारि उसरइ, त्रणे दहइ अपार. ११०० कंचू १ कंकण २ नेउरी ३ मेखल ४ शिथली होइ, निशि । वासर २ नीसाणडु ३ त्रणि अखूट सजोइ. ११०१ भूख १ तरस २ तनु ३, नींद्रडी४ च्चारइ उछां थाइ, त्रणे रितु असुहामणां, वल्लह विरह न माइ. ११०२ सही ए अचरति एक मुज, कहुनि कहिउ न अंति, साल खटकुइ हैडलइ, नयणे नीर गलंति. ११०३ . खजन रूठा किम जांणीइ, नवि दुहवइ वयणेण, मारइ नहीं विख आयुधिं, परि मारइ विरहेण. ११०४ बापीडा पीउ करइ, मारि म वयण-सरेण, ते माणस सिउं मारीइ, जे मारियां विरहेण. ११०५ सारसडा तोरी पांखडी, तु जाणसि सुप्रमाण, अउ लियावसि संदेसडु, वल्लभ पंख प्रमाणि ११०६ For Personal & Private Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ जयवंत सूरिकृत लोक- अयाण अबुज कहइ, डीलिं दूबलां कांइ, जाइ. ११०८ जस डीलई कोउ बलइ, ते किम सुंदर थाइ. ११०७ को न लहइ मन - दुखडां, जण जाणइ सी दाइ, जे कारणि हूं आवद्धं, ते उवेखी सूडा तूं महीयलि भमिं, कुण रलीयामणउ देश, जिहां पीउ सोइ सोहामणुं, अलखामगड असेस ११०९ वेध लगाडी जे गया, जां ते पीउ न मिलति, तां मन के दुखडां, कुण देखी भजंति. १११० सुगण सलज्जह मयग-भड, पसरिउ किसिउ करेइ, पंजरि - बद्धउ सीह, जिम, अंगच्चियभिव्भिइ. १९११ अथ पनिहां नय पीड परदेसिं जंत कि सुखु वुलाबीयां, निद्रा भूख कि ए नवि आवीयां, अण-तेडिया आव्यां दुख किहांथी एवडां, पनि अन-तेडियां आवंति कि नोच सहावडां. १९१२ अण-दीठई उचाट कि दीठई मन कलमलइ, आगलि रहि दहइ मान कि दूरई जीउ बलइ, आवटणुं निसि दीह कि घडीअ न मन रहइ, पनि० जेणि कीया सनेह, किउ सुख लहइ. १११३ नयरि अयान अबूज कि बहूआ नर वसई, सो सज्जन विण रान कि मुज मन डसडसइ, सेरी सुनी चाहत मनि दुख उल्लसइ, पनि सज्जन सोइ परदेसि कि परि परि विहिकसइ. १९१४ काज उपाइ सुपरि निसि-दिन आवतां, फेरां देतां लक्ष कि सेरी सोहावतां, एक जि माणस कारणि फिरि फिरि पेख़तां, पनि० तेह जि सेरी आज न सुहाइ देखतां. १११५ मंदिर मोटइ गुखि कि निसि-दिन खेलतां, मन मोहन जे ठाम कि घडीय न मेहलतां, तिणि थानकी आज कि बइठां नवि गमइ, पनि अबहीं रान समान कि तिणि घरि मृग रमइ. १११६ गाथा गीत कथा - रस पीउ सिउं खेलतां, सही सिउं जे पुर, घडीअ न गमतूं महेलतां, मिं जाणिउं सही गाम कि महिमा एवडु, बूपनि० जिउ एह पतर पीउ तेवडु. १११७ For Personal & Private Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यंगारमंजरी चैत्तइ मुरिया चंपक मलु-वनि महिंमहिउ, मलयानिल विख काल कि पंथीकुं गहिगहिउ, संयोगी मन साथि कि तरुयर कंपलिउ, पनि किशलय विरही चीत कि जाणे दव बलीउ. १११८ मनोहर मास विशाख कि फुलइ गहिबरिउ, वन वाडी शुक मधुकर कोकिल परिवरिउ, विरहि कू पीउ पंथ कि जोता मन खलभलिउ, पनि० पीउ आवत अण-अंत कि विरहानल टालिंउ. १११९ मुरिया अंब प्रलंब कि मधुकर रणजणउ, कोइलि कुहु कुहुकार कि पंथी मन कणमण्यु, भोगी मास वसंत कि परि परि वनि रमइ, पनि० याके पीउ परदेसी किम गमइ. ११२० आगइ पीउ परदेसि कि घडीअ न वीसरइ, विरहानल दहइ दिह कि रितुपति अणुसरइ, कोइलि दाधइ लूण लगवाइ आंबलइ, पनि० कुहुनि कहइ पीरि कि भीतरि जीउ बलइ. ११२१ देखी मुरिया अंब कि कुहु कुहु कोकिला, विरही माणस मारि म गरव न अति भलो, वाहलां माणस संग कि दस दिन गहिगहइ, पनि० प्रिय-संगम सदैव कि दैव न सांसहइ. ११२२ साचुं नाम सु नाम कि जेठ सवे वडु, रयणी दिवस अनीठ कि नावइ छेहडु, एक परि खोटुं नाम कि लहुउ गुणि करी, पनि० विरहिं मरियां माणस मारेइ वली वली. ११२३ मनोहर मास आसाढ कि बादल छांहीया, सेजि सुरंगा सज्जन पीउ गलि छांहीया, विरही के तनु साथि कि सरुवर सोसीयां, पनि० कबही मिलइगा पीउ कि पूछइ जोशीयां. ११२४ वज्जई उन्ही झालकइ डीलई विरहनी, हैडु दुखि जलंति की आशा नहानी, सहु नीसासे चलंति रहु हूं किणि परि, पनि० पीउं विरहि दहइ देह के उन्हालो परिवरि. ११२५ पर For Personal & Private Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत श्रावणि गुहिर गंभीर कि जलधर धडहडइ, रयणी घोर अंधार कि बीजली खडहडइ, वरसणि लागा मेह कि जीउडु तडफडइ. पनि० भींतरि खाट कि आंसू-जल वडइ. ११२६ भाद्रवि भरीया नीर कि भूई चीरवली, झरमरि वरसई मेह कि झूरइ सामली, एक गोरी दूजा मेह कि दोइ जडि लाइयां, पनि वासइ मधुरइ सादि कि रांन कलाइयां. ११२७ पावस पंथी काल कि गयणि अंधारिया, वाया शीतल वाय कि मोर कांगारीया, जिउं जिउं वरसइ मेह कि वीज स धडहणइ, पनि० गोरी थइ अचेत कि तिउं तिउं भूइ पडइ. ११२८ आपसु नाम तणों पारे कथीअ न वीसरइ, सूतां पीउं नीद मांहि कि कबही बीसरइ, दाधइ लूण तणी परि पीउ पीउ सांभरी, पनि असल सलावइ साल कि बप्पीहा वली वली. ११२९ आया आसो मास कि सम दिन-रातडी, रोइ रोइ थाकी आंखि कि हुइ रातडी, आया अपनई मंदिरि पंथी खलभली, पनि नाया सज्जन सोइ कि जल विण दुबली. ११३० कत्ती मास सुमास कि आया हे सखी, कत्ती मास की अवधि न जाणु विहि लिखी, कात्ती मास मेलापक करुंगी सुनु सहो, पनि० दिन दिन को ए वेदन न सकू हूं सही. ११३१ हलूइ हलूइ पालि कि नेहली सरवरे, निरमल हूआं नीर कि शालि सुमंजरे, सजन सरिसा एह शरद सुहाइया, पनि दुरियन नीपरि काहि कि हम कू भाइया. ११३२ मागसरि मास रसाल कि आस सवे फली, पीउ की जोयु वाट कि विरहिं आकली, लाल न हइ परदेसि झूरइ सामली, पनि० वइरी कू ए वेदन म हिसिउ वली. ११३३ For Personal & Private Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गारमंजगे सोसइ पोस सरीर कि पीउ परदेसि पसरइ विरह सु पनि मित्त गया वाजइ टाढी, अनीठी रातडी, गयांइं हीम कि दाजइ पदमिनी, पर दीपि कि पोडइ यामिनी पंथी पंथी चिलति कि नदीयां नीर तरंति कि हूउ चंचल चित्त पनि० तस विरहानल सीयालइ गहिबरिउ, गोरी नेह सांभरिउ, कि बूडु नदीअमां, धूम कि उठइ नीरमां. ११३५ आविउ सखिउ माह कि भोग - रसाकुल, मालति विरहि भमंति कि भमरु दुबलु, जस का पान जिहां होइ कि सो तिहां रति धरइ, पनि जस कूं कोइ न सज्जन तस मन किहां ठरइ. फागुणि वाया वाय कि पान खरियां वनिं, जस मनि सालइ दुखु पीउ की जोउं वाट कि पनि जारे म करि विलंब कि कि होली तस मनि, नींद गमाइयां, जीउ मोकलाइया. ११३७ कि सुखय संयोगी मांणस सवि रितु सोहामणी, दुखीय विरही जेह कि तीह अलखामणी, सवि ऊकराटा होइ कि जसका दिन फरिया, पनि जस कुं तूठा दैव कि तस दिन पाधराइति पनिहां ११३४ नाभि शील शिशिर पीउ परदेसि गयांइ कधी अगनि अंगीठि उन्हा हम मनि उतापइ अति तनई, कि शीयालइ बहु नरिं, पनि० तेणि उन्हा एह कि दाधां भीतरिं. ११३८ रेलूयडी सूणि वत्तडी, किहां रहिसि बारइ काल, जस हैइ दुख सांभरइ, तस ११३६ दुहा चमा बुलिया पछी, किहां तूं वरससि मेह, सजन विछोहियां माणसां, तस नयणे मुज गेह. १९४० सीआला किहां वससि तूं, गयां शीयाला मोस, वाहाला विरह विछोहियां, तस अंगइ मुज बास. ११४१ ११३९ For Personal & Private Use Only नीसासे जाल. ११४२ ९१ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत अछउ नयन मेलावडु, अछउ तेहनी वत्त, नाम सुणई जीव कलमलइ, अति अवटाइ चित्त. ११४३ है है दैव अटारडु, वांकां पाहइं वंक, जस सज्जन परदेसडइ, तीह न दीधी पंख. ११४४ पांख सरजी पंखीया, जेह न आवइ कन्जि, तु जाणत विहि चतुरिमां, जउ माणस नई हुज्ज. ११४५ अथ अणखीयां : आगइ विरहानल संतावइ, पीउ परदेशी किम आवइ, बपीहा वली नेह जगावइ, कहु सखी किम अणखि न आवइ. ११४६ रातिं नयणे नीद्र न आवइ, अन्न-उदक सहुणइ नवि भावि, सही जाणती कारण पूछावइ, कहु सखी किम अणखि न आवि. ११४७ विरहानलि अति तनुऊ तावइ, ए मन-दाघ न कोइ समावइ, दुख अनेरुं वैध जणावइ, कहु सखी अणखी किम न आवइ. ११४८ पीउ परदेशी मेह जडि लावइ, अंगणि आवी मोर कीगावइ, दाधा परि लूण लगावइ, कहु सखी किम अणखि न आवइ. ११४९ कबहीं नयणे निद्रा आवइ, सहुणइ आवी प्रोउ जगावइ, जव जागू तव नासी जावइ, कहु सखी किम अणखि न आवइ. ११५० इति अणखीयां भमर चितित्त जिम मालति खटकइ, सुहड अंगि बाणावलि खटकइ, नदू-सल्ल जिम पगि पगि खटकइ, नवु-नेह तेणी परि खटकइ. ११५१ पुहुवी सरोवर अंब रसालइ, धडहड धडहड अंबर सालइ, जिम जिम वरसइ मेह वरसालइ, तिम तिम तुज मनि ते वर सालइ. ११५२ सज्जन विण मुज आहार न भौबइ, कंठ थकी आ हार न भावइ, ते विण मंदिर आहार न भावइ, कहुनइं विरह-प्रहार न भावइ. ११५३ वरसह मेह अखंठी-धारा, प्रीउ मेहली चालिउ निरधारा, मदन-बांण वीधइ वीधारा, तनि वहइ विरहनी करवत-धारा. ११५४ हाथे न गमइ सोविन-कंकण, नयणे वरसइ सो विन कंकण, झरी गइ तव सोविन कंकण, चंद चंदन दइ सो विन कंकण. ११५५ वरसइ झिरिमरि मेह कलावी, अंगणि वासइ मधूर कलावी, एणे बापीडे हूं अकलावी, प्रीउडु चाल्यु मुज मोकलावी. ११५६ इणि रिति जाइ घरि बकलावी, प्रिय संगमथी जाइ कलावी, प्रिय विण किम दिन ग{ एकला वी, कंत मेलावु कोइ कलावी. ११५७ वाजइ टाढि सबल हीमालइ, बली गइ ते कोमल मालइ, इणि अवसरि प्रीउडु नहीं मालइ, मयण-भील मारइ मुज मालइ. ११५८ For Personal & Private Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गारमंजरी दुह। इणि परि झूरइ गोरडी, समरि समरि मनि-नेह, तव सहीयर इम बूजवइ, गोरी झरि म देहि. ११५९ रे हैडा झूरि म घj, सज्जन मिलवा काजि, म मरीनइ जे गाईइ, तिणि पंचमि सिउ कज्ज. ११६० सुख-दुख सही सुजाण सिउं, कीधी जे मंइ प्रीति, तेह जि मुज वइरणि थइ, नितु अवटावइ चींत. ११६१ जे सज्जन सुखनि करिया, तेणिं मुज दुख दिध्ध, कुंण जाणइ ए दुखडो, वाडइ आंबा खद्ध. ११६२ तिणि सज्जन सिउं कीजइ, जेणइ मन अवटाइ, जो सोविन कट्टारडी, तु सिउं पेटि मराइ. ११६३ केती कीजीइ राव, जणनहार बीछडया, रानि रडिउ रे जीव, लहिसइ कुण वरसेइ. ११६४ इम विलवंती गोरडी, दुःसह पीउ-विरहेण, सही सिउं करती गोठडी, दिन नीगमइ दुहेण. ११६५ आधु खटकइ नेहटु, जेहवु दुहउ अद्ध, खिणि खिणि आवइ हैअडलइ, जा नवि पूरु किद्ध. ११६६ केतु पोखं विरह-रस, कहितां नावइ पार, जे वेसइ ते जाणसइ, दोहिलु विरह-विकार. ११६७ रस-सिंगार अनेकधा, तेहथी विरह अनंत, ते जाणइ अण सीखविउं, जेहनि विरह दहंति. ११६८ सीखइ ते अणसीखविउ, अणजाणिलं जाणंति, नव नव रस तस उपजइ; जे मनि प्रेम बहंति. ११६९ बंभ सरी आयु जस, सुर-गुरु सम कहिनार, वर्णवतां ए प्रेम-रस तुहि न आवइ पार. ११७० हवि संबंध कहूं नवउ, सुणयो सहू रसाल, शीलवती मोकलावि करि, चालिइ अजितकुमार. ११७१ मनडुं न वहइ चालतां, पग आघा न वहंति, पाछउं जोइ वली वली, नयणे नीर झरंति. ११७२ प्रीउडु पंथइ चालतां, गोरी ऊभी जोइ, अर्घ-देह ब्रह्मा तणउ, पंखी वंछइ सोइ. ११७३ पंथी पंथि चोलतडां, बलि वलि पाछउं जोइ, भारंडनइ संभारतु, जल भरि नयणे रोइ ११७४ For Personal & Private Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ जयवंत सूरिकृत प्रेम-नदी परगट करी, गौरीं अंसु-जलेण, तेनइ पंथइ चालतां, दुखितरी प्रियेण ११७५ पंथी पंथइ चालतां, उडणि लागी खेह, गोरी गुण संभारतां नयणे वूठउ मेह. १९७६ फटि रे नीठर जोवडां, पंजरि बद्धउ कांइ, गोरी मेहली चालतां, हजोअ न उडी जाइ पंजरी-बद्धउ जीवडु, कंडु किम उडी जाइ, जिहां जड दीधी प्रेमनीं, किमहि न ढीली थाइ. ढाल २२ राग देशाख ११७७ ११७८ (ओ पे घर माहरु, कांहान आवु तु देखाडु, ए देशी) [तथा शत्रुज्य जुहारस्यइ रे, तेहनइ दूर गति नहीं रे लगार, ऐ देशी] नयनां जलधर दोइ जडिलाया. बोल न एक बोलाया, गोरी पासई जीउ भलाया, भींतरि विरह जलयाजी. १९७९ पंथी • चलाया, पंथीडा लै पंथी पलाया, नयने नीर विरह-दवानलि अति अकलाया, जब गोरो मोकलायाजी. ११८० पंथी • हैडा भतरि दुख न समाया, आंसू नीर न माया, दोहिली प्रेम तणी छइ माया, जाणइ जेणि कमायाजी. १९८१ पंथी ० गुण संभारो साल सलायां, पापी मोर कलाया, परि परि पंथ चलंत खलोया, गोरी सिउं जीउ लायाजी १९८२ पंथी ० सान विना सूनी भमइ काया, चेतन चित्ति गमाया, न गमइ शीतल सरली छाया, हैडा दुखि भरायांजो. १९८३ पंथी ० दुखि जीव रहिया झंपाया, विरहिं तनु कंपाया, नगमइ चंदन शशिर उपाया, सुख तिणि खिणि नवि पायाजी. १९८४ झूरी झरी अति तनु करमाया, पंथ अनीठा थाया, राति दिवस का छेह न आया, चिंताचित मुंजायाजी. ११८५ षंथी ० सरत वीसरी न जाया, जे अविहड नेह लाया, लाइ प्राण घर एकाया, मन भींतरि गुण धायाजी. ११८६ पंथी० For Personal & Private Use Only ए किरतार कुबुद्धि जाया, पापी विरह उपाया, अक्षर लिखतां कर न दुखाया, मानव-भव विणसायाजी. ११८७ पंथी ० Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी चूकु यूथ थकी करि-राया, जिम जूआरी दाया, जिम पंखी गत-पंख सहीया, तिम थयउ अजित विछायाजी. ११८८ पंथी. पंथी विरह-नदीइं तणाया, नेह-जल पुर वहाया, आशा-वाहाणीइ जीव ठराया, दुख-जल पूर तरायाजी ११८९ पंथी० पगि पगि नेह खटकुइ पाया, जव मनि आवइ जाया, पंथी पंथि जता मूर्छाया, तव मलायानिल बायाजो. ११९० पंथी० थइ सचेतन पंथइ जाइ, हैडइ दुख न समाइ, तेतां पीडा कही न जाइ, सुणतां अति दुख थाइजी. ११९१ पथी. दुहा अजितसेननि चालतां, जे दुःख थयु ते वार, ज्ञानी विण ते दुःखनु, कोइ न जाणइ पार. ११९२ मन जाणइ मन दुखडां, अवर न जाणइ कोइ, जस कू दाजइ सो जलइ, व्याइ वंदन होइ. ११९३ सज्जन जाणइ दूःखडां, मूरिख हासू होइ, जे जाणइ परवेदना, ते नर विरला कोइ. ११९४ मूरखडां बलिहार हूं, जस मनि स दा संतोस, आवटणउं निशि-दीस तस, जे जाणइ गुण-दोस. ११९५ गाथा दोधक गीत रस, नेह न कहिसिउं जांह, कइ योगी कइ मूरिखां, सुख अनंतुं तांह. ११९६ ते सुखीयां निश्यिंत ते. सुखि सूइ सोइ, मन वचने काया करी, जीह न वाहालु कोइ. ११९७ नीसासु उजागरु आरति अरति अभूख, प्रेमराय परिवार मे, विण रोगइ जे दुःख. ११९८ अरति नीसास उजागरु, नितु अवटावू देहि, अतानइ मन मा लवी, करु ते करयो नेह. ११९९ हैडा मि तुज वारतां, प्रेमी वनि करिउ प्रवेश, हवि विरहानल प्रगटीउ, कहि तू किम जीवेसि. १२०० बोलंति अमृत जाइ, हसतां फुल खरंति, ते गुणवंति गोरडी, किम वीसारी जंति १२०१ नयणे वीघइ हैडलं, . वयणे सांघइ नेह, ते गोरी किम वीसरइ, जां न बलइ ए देह. १२०२ For Personal & Private Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत गोरी ते गुण ताहरा, केता समरूं चित्त, दाडिमनी परि हैडलं, जिणि गुण भरीउं नित्त १२०३ देखी मुहु मचकावती, नयणे करती सान, ते गोरी तव वीसरइ, जव तनु छंडइ प्राण. १२०४ जे गति हंस हरावती, मृग मारती नयणेण, ते मनि खटकइ गोरडी, मन हरती वयणेण. १२०५ चंपक-बन्नी ससि-मुखी, पीन पयोघर भार, कटि-लंकी कृशोदरी, ते मुज प्राणाधार. १२०६ अघर प्रवाली दंत-मणि, चंदन-शीतल देह, जे कडि मोडी चालती, मुज खटकइ तस नेह. १२०७ उरवरि नीली कांचली, पहिरणि कोमल वीर, करि चूडी सोना तणी, पगि सोविन-मंजीर. १२०८ कदली-दल सुकमाल तनु, चंदा सोदर मुखु, जां ते गोरी नवि मिलइ, तां नवि भागइ दुखु १२०९ जे वाहलां मनमां वसियां, ते नवि काढयां जाइ, प्राण करी जाउ काढीइ, प्राण-सरीसां जाइ. १२१० जाणउ किमहि वीसरइ, घj वीसारु चित्ति, सायर-जल नीठर नहों, नीठाडतां नित नित्त १२११ गुण अलगता नु हिइ डीलथी, जण खोडउ बोलंति ते वाहलां परदेसडइ, जस गुण अहम सालंति. १२१२ नेह करइ ते दुःख सहइ, खोटा-बोला लोक, नेह करिउ तिणि सज्जनि, अहम मनि लागइ शोक. १२१३ हंस गति नितु चालती, गोरी गणनूं ठाम, ते किहि दीठी चंदला, सोभागी जस नाम. १२१४ कोइलि बइठी अंब-वनि, मुजसिंउं हासू छांडि, तूं जस कंठि दासडी, ते गोरी देखाडि. १२१५ जस नयणां दल ढांकतां, तंतु न जतु घणांह, ते गोरी कहि कमल मुज, किम रही हसिइ तूं माहि. १२१६ कुसुमराय गुणि अग्गलु, मनोहर तोरी डाल, चापा ले चंपावनी, ते गोरी मुज आलि १२१७ For Personal & Private Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगार मंजरो हरिणां राय सुजाण तूं, जे गोरी मुज मेलि, वेणी जस हर-हार सम, जंघा कोमल केलि. १२१८ भमरा विरहिं दूबलु, मालति समरि म रोइ, वाहलां विरहिं दीहडा, दुखुइ सहिणा होइ. १२१९ भमरइ सेवी मालती, छंडी असे तेह सदेव. १२२१ १२२२ चालिउ अजितप्रधान, मंडई समय तणउ वियोगडु, कां दाखइ जगदीश. १२२० भमरा मन गाढडं करी, दीहा नीगमि केइ, वाहाला विरहिं दींहडा, नहीं जासइ भमर जीवंतां मांणसां, कबही फलीइ आस, कालि सुजाति पाणसई, करसइ भमर विलास. नि वनि इणि परि पूछतु, अवसर जाणी आपणउ, इणि अवसर रयणी तणउ, खीण- तेज दिनकर थयु, जागिउ आधुं - खाधुं कमल-दल, आधु मित्त परभाव देखि करि, कोकिं कोकी विरहीइ, जिम ते पाछइ नवि लीउ, दि आनंद चकोरनइ, है है दैव अटारडु, रोगी विरही दुःखीयां, नीद्र न आवइ तिहुं जाणां, नक्षत्रां परगट थयां, उगिउ जेहनिं वाहलां वेगलां, तस मनि लागइ जाल. देखी चंदउ ऊगम्युं, जागिउ विरह विकार, अजितसेन नइ इम वीनवइ, समरी प्रेम-अपार चंदा तूं देसाउरी, होंडइ देसि विदेसि, चंद्र - मुखी ते गोरडी, किहि जाणिउ संदेश. १२३१ चंदा मित्त सुमित्त तूं, नितु जाउं बलिहारि, विरहि-दाघां मदन रसाल. चंचु पराणि, चक्रवइ छंडिया प्राण. तिम मेहलिउ नींसास, समरी चकवी एक सुख रयणी जस मनि १२३० मांणसा, सुजन संदेशइ ठारि. १२३२ कंत - संदे पठवइ, दैवई कीउ विछोह, गोरी परदेसई गइ, मत उतारे मोह. १२३३ मनसिउं धरयो प्रीतडी, नथी मिलवानु संच, रजिया विण तु किम मिलूं, जो करूं कोडि - प्रपंच. कंत-संदेसु पठवइ, चंदा करेइ साथि, वीसारु रखे, जीव तुह्मार हाथि. १२३५ १२३४ गोरी 73 मयण पराण. हवऊ सुविशाल, १२२३ For Personal & Private Use Only १२२४ १२२५ प्रेम - विलास. १२२६ प्राण हरे, एक दुःख देइ. १२२७ वइरणि तांह, धीकइ दाह. चंद-रसाल, १२२८ १२३९ ९७ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 14 जयवंत सूरिकृत चंदा सुणि एक वत्तडी, केतूं कहूं एक मुक्खि, जां ते गोरी नवि मिलइ तां नवि भागइ दुःखु. १२३६ ते गोरींनु प्रेम-रस, एक जीभई न कहाइ, जिम जिम समरुं हैंडलइ, तिम तिम दुःख भराइ. चंदा बंधव मोरु करि ओक कांम, कहिजे गोरी हुइ जिणि गामि १२३८ माहरु, संदेसडु, ढाल २३ राग धवल धन्यासी ( मोरई आंगण पीउ रमउ ए देशी ) लीहा, तस गणतां जाता हसइ दीहा, दिन दिन करतां समरती हसइ रे. तूं तु जेनई संदेसु, कहि जे तूं तु वाटइ वहिल वहिये, एतु अध-वचि किहिम रहे ये रे, चांदलिया.. . दुपद मूंहन खिणि खिणि तस गुण सांभरइ, १२४१ चां. मोर मनss घडी न वीसरइ, ते विण किहि मन न ठरइ रे. १२४० चां. जिम समरइ चातक मेहा, एतु कोइलि जिम मधु दीहा, तिम समरुं तस नेहो रे, मुज रयणी छमासी थाइ, पापी मोरु विरहि तनु कुरमाइ तस पास छई महारा प्राण, मूंहनिं सुहुण्डई तेहनूं ध्यान, हूं तु मागू छउं तुज मांन रे. दिवस दोहेलडइ जाइ, १२४२ चां. १२४३ चां. वाली वीसरी किम विसरइ, जां लगइ प्रांण न नीसरइ, जस गुण वेलडी पसरइ रे. १२४४ चां. तेहना समरूं जिम जिम बोल, मन थाइ तिम डमडोल, जेहना अविहड लीधा बोल रे. १२४५ चां. जेता वाहाला विग दिन लीजइ, तेहनां हैडलइ दुःख सही जइ, ते दिन लेखइ न कहीजइ रे. १२४६ चां. कोइ न ठारणहार, १२४७ चां. जेहन वाहाला दूरि रसाल, जेहनि अतु ते किंम नीगमइ काल रे. वाहली दैविकरि रे विछोह, तुज मिलवा छइ अंदोह, एतु तू म उतारसि मोह रे. ताहारं विरहि जे दिन जाइ, एक घडली युग जिम थाइ, ए दुःख मिं न खमाइ रे. १२४८ चां. १२४९ चां. १२३७ For Personal & Private Use Only १२३९ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगार मंजरी ढाल २४ राग संधूओ गोडी (श्री सीमंधर स्वामी०, ए देशी ) इणि पारे अजितकुमार, निसि विलवता ए निसि विलवता ए नीगमइ ए, जव थयुं प्रगट प्रभात, तव दिन-नायक तव दीन-नायक विहसियां कमल सुगंध, भमरा पाखलि भमरा पाखलि करि मेलापक सार, चकवा - चकवी ए चकवा - चकवीए सोहावा परदेश, पंख सभारइ ए पंख समारइए हंस, तृणनि हरिणलां तृणनि हरिणां तव बागां नीसाण, कोच पीआणूं कीध पीआणूं अ चलिउ अजितप्रधान, हय गय पायक हय गय पायक उडणहारा दूहा नेह सज्जन जल-दान गुणि, नीच जवासा - कंटकी, वीसमीउ ए, परिवरिउ ए. १२५४ मरुच्छ दोठउं एक, कटक सहू तिहां कटक सहू तिहां भूपति रहितु तिणि ठामि, पांचसइ मंत्रीय पांचसइ मंत्रीय जिहां नहीं नदीअ नीर, जिहां नहीं तरुबर जिहां नहीं तरुवर फलि भरिया रे, जिहां नहीं कुसुमनुं नाम, जिहां नहीं नागर जिहां नहीं नागर वेलडो ए. १२५५ अजितसेन तिणि ठामि, जोइ कमल ते जोइ कमल ते सोहामउ ए, शील - परीक्षा काजि, जे अति कोमल जे अति कोमल शीलवती आपीड ए १२५६ सय- हत्थे, नेह करी जे नेह करी जे सज्जनिं ए, वली वली जोइइ नयणेण, तंबोली धरि तंबोली धरि पान ते दधुं जिम ए. १२५७ पंकज - आमोद, पसरिउ सेनई ए पसरिउ सेनंई ए सोहामणउ ए, ते देखीन राय पूछि अजितनि, कमल तणउ मूल कमल कमल मूल कारण ए. १२५८ शीलवती संबंध, अजिति रायनिं मांडी रायनिं मांडी वीनविउ ए, ते नवि मानइ भूप, कलियुगि एहवी कलियुगी सति किम पामीइ ए. १२५९ दहितु राय यार प्रधानइ, तेडी नइ कहइ तेडी नइ कहइ वातडी ए, निरगुण दूरियन तेह, सर्प तणी परि सर्प तणी परि विख वमइ ए. १२६० उगमिउ ए. १२५० ८०९९ रणजणइ ए, सोहामणउ ए. १२५१ सहिजि निरगुण नीमचर, सज्जन गुण न गमंति, जलधर देखी गजितु, रीसिं सर भमरंति. १२६१ For Personal & Private Use Only पंखिआ ए, वनि रमे ए. १२५२ भूपति ए, परिवरिउ ए. १२५३ जिम जिम प्रीणइ लोइ, तिम तिम मनि विख वहइ सोय. १२६२ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० काल- मुहा गाजइ गूज - जल लेइ जोइ छिद्र दूरियन मुहुडइ दीसीता ग मनि घरइ जयवंत सूरिकृत घणउं, दूरियन वीखरइ, सुजन मोहा समुद्र के वि, नमेवि. १२६३ पीआरडi, दो-जीहा अति वंक, साप सरीसडा, पगि पगि देह विखडंत १२६४ समा, पूछि बिख वहति, आंकडु, दूरियन वींछों ह ंति. १२६५ मिल्यां, अनि तेहनिं न मिलति, देखी न सकइ दो नेह त्रोडइ भाजइ मिल्यां, पग पग नींच दहति १२६६ लेति, दूरियन साहिजि सदोखीयां, दोख पीयारा वीज पडु ते दुरियडा, फोकट वइर वहति. १२६७ काजि न आवइ कंटकीं, दुरियन बाउल एह, आडई आवी वारइ वली, सुज्जन मोहा-तरु जेह. १२६८ नीलक जाल सामलूं, दुरियन वयण अनिद्ध, भिउडी भीसण रोस भरि, कलीअ न विहसिउ दिद्ध. १२६९ मज्झि वंका दो मूही, लोहमया जय लोइ, नह स नेह विछोह कर, नरहिणि दुरियन होइ. १२७० जां मूहि भोजन तां मधूर, ते विण दुम्ह अइ अकुलीण नर, दुरियन जे नवि नयणे दीसीइ, सुहुणइ जनमंतरि जे नवि हवइ, दुरियन दुरियन के सूका - तरुनी संगति, सज्जन संगति, दाइ बोलडा, अछ कठिन सरोस, बामणा, अहि जिम नयण सदस. १२७४ दुरियन केरा सीता हंसा थोडा बग घणा, विरला सज्जन लोक, सुखी थोडा दुखी घणा, पगि पगि दुरियन थोक. १२७५ दुरियन विसहर विस-दमणि, मणि जउ जीहा यमलिं डंकीउ, तु जग दुरियन जनसेवक बलि, कलियुग अजुवि सज्जन केवि छइ, कृतयुग हरिणां वइरी पारधी, माणस सज्जन वइरी नीच जन, विरही नींरस थाइ, मुरज सहाय. १२७१ चिति न होइ, जांपइ सोइ. १२७२ पामइ दुखु, नीला - रुखु. १२७३ सज्जन नहत, किम रहंत. १२७६ माणसि मान, तणा प्रधान. वइरी नेह, वरी For Personal & Private Use Only १२७७ मेह. १२७८ Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुगारमंजरी रुद सदंसणि कन्ह कहीइ, चउमुह पण वइरी वयणेण, दुरियन त्रणे देवमय, इय नमणिज्जा तेण (?) १२७९ सज्जन कांइ नवि लीइ, कुहुनई न करइ दोस, तुहि दुरियन पापीचा, ठालु आणइ रोस. १२८० गुण दोसह कसवन, सज्जण दुजण दोइ, गुण विण दोस न जाणीइ, दोस विना गुण कोइ. १२८१ अविहड मंडु नेह जे तीह हूं मागुं मान, पापी मुस्चिन बोल्डा, ९ म धरयो कानि. १२८२ दुरियन जन दोखि भरिया, केता काढुं दोस, नामि पाप भराइइ, जिह्वा कोइ सदोष. १२८३ दूरियन पापी ते सचिव, शील विकल निटोल, भूपति वचन सूणो इसिउं, वलता बोल्या बोल. १२८४ ढाल २५ राग गुड मल्हार भूपतिनं तेएणी परि बोलइ, राजनजी ए नर पाडिउं छइ भोलइ. १२८५ ते साथिं ए छइ अति रातु, गोरी रूप तणइ मदिमातु...दुपद अलि अलि विहससिंउं माया मांडइ, नलिनी त्रिहुनइ प्रेम देखाडइ. १२८६ ते. बाहिरि डाहां नेह तिम आणइ, मनसिउ जिम सहू साचं जाणइ. १२८७ ते. बोलइ जूउं करइ नवेरू, हैडा चिंतइ छयल अनेरु. १२८८ ते. सज्जन दुर्जन भूपति महिला, मननु पार न आपइ वहिला. १२८९ ते. नयण तुलाई जे जग तोलइ, ते तां धूरत कहुनि खोलइ. १२९० ते. जे जेहवां हुइ तेहसिउं तेहवां, फटिक तणी परि छयल जाणेवा. १२९१ ते. जेता देखइ रंग-पीआरा, ते तु नेह धरइ सविचारा, १२८२ ते. असुनित जेहवा वयण-विकारा, कठिन न बोलइ वचन रसाला. १२९३ ते. अण-बोलावियां हसीनई बोलई, कुहुना दोस न आणिं बोलइ. १२९४ ते. छयल र एहिं ए लक्षण हुइ, रत्त वित्त न जाणइ कोइ. १२९५ ते. साहामानइं जे करइ अति राता, आपणपइ नवि राचइ जाता. १२९६ ते. साहामानि वसि करइ उपोयिं, आपि तेहनइ वसि नवि थाइ. १२९७ ते. छयल तणां मन कुणई न कलाई, नेह देखाडी सहूनई वाहइ. १२९८ ते. जे जे उपरि रातु हुउ, तेहनां दुखण ते नवि जोइ. १२९९ ते. For Personal & Private Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ जयवंतरिकृत दुहा जे जस ऊपरी रत्तडु, ते न जोइ तस दोख, जु नुहइ अंग मेलावडु, दीठइ हुइ संतोप. १३०० जस कां मन जिहां हुइ, सो तस विण न सकहइ रही, मुरख न लहइ लोय, वारी थाइ अलखामणा. १३०१ जस का जीउ जेहांसउ मिलियाया, ताकइ मनि ते चंग, चंद कलंकी वारे थयु, तुहि न ति(ज)यु कुरंग. १३०२ जाण अजाण किसिउं करेइ, जेहसिउं बाधु जीव, लिहावु कपूरि पहिउ, ते विण न रहइ जीव १३०३ गुण अवगुण जोता नथी, प्रीति विरोखइं मित्र, ते मूक्या जासइ नहीं, जेहसिउं लागू चित्त १३०४ गुण-अवगुण मनि जाणीइ, पणि ते नवि महेलाइ, इस्वरइं धंतुरु ग्रहि उ, ग्राहउ तु तिजिउ न जाइ. १३०५ राजनजी ए भोलव्यु, बाहरि देखाडी नेह, नव नव परिकरी रंजवइ, महिला माया- गेह. १३०६ गोरी वेध विलूघडी, भूली भमइ सदैव, मिलइ न महे. इ नयण-रस, नितु अवटावइ जीव. १३०७ हैइ अनेरी मुहि जूइ, माया करइ सदैव, मिलइ न महेलइ नयण-रस, नितु अवटावइ जीव. १३०८ कुण जाणइ मन वत्तडी, मायावीयां जेह, साचां कइ खोटारडां, बाहिरि देखाडइ नेह. १३०९ ते डाहापणि भोलडा, जे कहि महिलो एह, माहारी महोअलमां सती, मुज सिउं एक सनेह. १३१० वनिता वीणा वाहनह, ए आपणां न कहाइ, जिहारई जेहनइ करि चडइ, तिहारइ तेहनां थाइ. १३११ ढाल २६ राग आसाउरी (राम राजा नवविधि मेरे ए देशी) भूपतिनइं ते मंत्री भाषइ, निज अभिमानई कहुनइं देखइ, १३१२ राजनजी सुणु वात हमारी, कलियुगमां को सती नहों नारी...दुपद सुर नर किंनर केरी रे नारो, धूरत पुरुखि ते धूतारी, १३१३ रा. जनम लगइ ते मुगध अपार, मूमिहर मांहि वाधी रे बाल, १३१४ रा. For Personal & Private Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गारमंजरी १०३ पर-नर केलं नाम न जाणइ, सुहुणइ बीजउ चिंतिं न आगइ. १३१५ रा. पातालसुंदरि ते गुण-संची, धूरत पुरुखि मेहली वंची. १३१६ रा. ते कुण सुंदरि पुछइ भूप, च्यारि प्रधान तस कहइ रे सरूप. १३१७ रा. तथाहि नयरि विशाला गुणि सुविशाल, नरनारीइं अतिहिं रसाल. १३१८ रा. जयंतसेन त्तिहां भूपति दीपइ, निज प्रतापि जे त्रिभूवन जीपइ, १३१९ रा. निज गर्वे सहू लहइ तृण तोलइ, एक दिन सामाजिक नि बोलइ. १३२० रा. कोइ कला छइ जे जग माहि, मे नवि जणउं हुं रे प्रवाहिं. १३२१ रा. ते सबि छांदु रायनिं राखइ, तेमांथी इम को विद भाखइ. १३२२ रा. सकल कला तूं राजन जाणइ, पणि एक महिला-चरित्र न जाणइं १३२३ रा. देव दानवनां चरित्र जणाइ, महिला-चरित्र न पणि वखणाइ. १३२४ रा. मूमिहरि जालंधर विवरि, महिला राखी न रहइ किमहि. १३२५ रा. मीन तणां जल माहइ डगलां, पंखी केरां गगनि पगला. १३२६ रा. महिला मननु मागज हीसइ, त्रणे वानां ए नवि दीसइ. १३२७ रा. ग्रह रवि तारा चार कहीइ, महिला केरु पार न लहीइ. १३२८ रा. बाहरि कृत्रिम-नेह देखाडइ, करी विलाप निइ मोहमा पाडइ, १३२९ रा. पाइकाना सम पांचसई खाइ, कुड कपटई करी चित्त रंजाइ. १३३० रा. क्षणि त्ति क्षणि हुइ विरती, साचु नेह न धरइ एक रत्ती. १३३१ रा. आगलिथी पहिलं नेह देखाडइ, माछी नीपरि जालमा पाडइ. १३३२ रा. मिलई न ओलालंबि लगावइ, नितु नितु भीतरि जीव अवटावइ. १३३३ रा. अक्षर एकमां छेह देखाडई, वरस सु नी प्रीति ज छांडइ. १३३४ रा. दीठा नयणनी लाज न राखइ, बोलावी छूटा पाहाण ज नांखइ. १३३५ रा. हवडानइ समइ एहवी रे नारी, कलयुगमा अवनरी रे धूतारी. १३३६ रा. अह्मनि कहि स्तु राग न रोस, दीटा नेहवा ए कहिया दोस. १३३७ रा. स्त्री राखीती न रहइ उपायिं, असती जाति घणी रे प्रवाहि. १३३८ रा. ___ दुहा एहवां वचन सुणी घणां, चिंतइ चतुर भूपाल, जे वनिता श्रुद्धां-तनी, ते पणि कुलटा-बालि. १३३९ असती दोस कलंकीयां, प्राहिं स्त्रीनी जाति, तेहसिउं मिलवू नवि घटइ, लंपटि अनइ कुजाति. १३४० For Personal & Private Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ जयवंतसूरकृत जे माणस हुइ एक-मना, जउ दीजइ तस हाथि, वरी सहोइ जण-बोलडा, मरीइ तेहनइ साथि. १३४१ जे नारो बि-मनी हुइ, बहुया हुइ जस मित्र, काना पाकइ कुंभि जिम, न मिलइ कुहुनूं चित्त. १३४२ एक-मनां जे वल्लहां, मिलइ तु बइठां रजु, मायावी जग-वल्लहां, तिणि सज्जनि नहों कजु. १३४३ चंचल लोभी माणसां, गुण अवगुण न लहंति, गुणिका नइ सज्जन तणां, अंतर कुण कहंति. १६४४ जउ दीजीसइ दम्मडां, तु लख मिलसइ नारि, पणि सज्जन गुणवंतनु, अंतर किसिउ विचारि. १३४५ अंगो अंगइ नवि मिलइ, नयणां तणइ सनेहि, प्रीति साची पदमिनी, दूरि न दाखइ छेह. १३४६ जउ मंडीजइ प्रीतडी, गुणी लीजइ कमलाह, सुख-दुख संघातई सहइ, पणि न मिलइ अवरोह. १३४७ मिलइ तु आंबा सिर मिलइ, कोइलडी सविवेक, ते विण वरि भूखी रहइ, बोल न बोलइ एक. १३४८ सत्तवंति भूखी रहइ, कोइलि अंब-विहीण, लाज न राखइ नयननी, माणसडां सत-हीण. १३४९ बप्पीहा तरसिया मरइ, जंखर हुइ सरीर, मिलइ तु जलधर सिउं मिलइ, अवर न वंछड नीर. १३५० पंखींडां प्रीति पालवइ, पणि माणसडां न होइ, मेह विना बप्पीहडा, मरइ न पीइ तोइ. १३५१ सजन एक जि कीजीइ, घणां करिं सिउँ काम, अविहड एक मन सुकुलनां, सुख-दुखनु विश्राम. १३५२ सुखि सुखीयां दुखि दुखीया, मननि ठारणहार, एकइ माणस जस नहीं, ते किम करइ संसारि. अविहड जाणी कोजीइ, सुगणां सज्जन साथ, साही कुमाणसि रचतां, चठीइ जण जण हाथ. १३५४ हैडा केरू होर, भार न वहितां भज्जजीइ, मिलइ जउ गुण गंभीर, कही वीसामु लीजीइ. १३५५ जेहसिउं छाजइ मान, लजावियां लाजइ वली, कीजइ सुजन सुजाण, रीस खमइ जे आपणों. १३५६ तेह भणी गुणवंत स्युं, कीजइ प्रीति सुरंग, एक-मनां पालीजीइ, किमहि न हुइ विरंग. १३५७ For Personal & Private Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शंगारमंजरी जात मात्र कोइ नृप-सुता, सुंदरि रूप रसाल, भूमिहरमां वध्धारि करि, विलसू उत्तम बाल. १३५८ लागइ दोख कुसंगति, माणसनि प्रवाहि, प्रांणी प्राणो नीच गति, कुल वडूं खणइ प्रवाहिं. १३५९ एकजि तूंबी रुधि रलइ, एक तारइ जल ठोणि, अक - वीणई महुरू लवइ, संगति तणइ विरामि. कुसुमि मिलियां सुर सिरि चडइ, पाय तलि चम्म मिलंति, संगति तणउ पटतरु, दोरा प्रगट लहंति. १३६१ धतुरइ ते जल पडिउं, हलाहल विख थाइ, इक्षु-वाडइं टीप जे, अमी स५ तोलाइ. १३६२ हंसा छीलरि बइसतां, मनि हुइ बग-शंक, ऊछां साथइ बोलतां, जण जण दीइ कलंक. १३६३ सहो कुमाणसि रच्चतां, त्रणे दाध दहंति, जण हासू मनि उरतु, निरवाहू आन हुंति. १३६४ इणि कारणि नवि कीजीइ, ऊछां साथि सनेह, लंछण लाइ दूरि रहइ, नितु अवटावइ देह. १३६५ सज्जन संगति मुज गमइ, जस मुहि अमोय वसंति, जगि शोभा गुण संपजइ, कसीआं विरस न हुंति. १३६६ त्यजीइ संगति नीचनी, यद्यपि नुहि विकार, दोखी दुर्जन पापीओ, पाडइ तुहि विचार. १३६७ ढाल २७ राग गुडी (संभारी संदेश, ए देशी) वनिता वसि करवा नइ, कारणि भूपति चिंतइ चित्ति दे, भूमिहर महई राखतां, किम हुस्यइ कुसंगति दे. १३६८ इम चिंतइ भूपालजी, जउ वसि राखू नारि दे, तु साची मति माहारी, नहीतरी सरव असार दे. दुपद जात मात्र को एक नृप-दुहिता, लक्षण रूप रसालि दे, परणी उलटि अति घणइ, सरल रूप रसाली दे. १३६९ इ. निज धवल-गृह हेठलिं करी, एक गृह पाताल दे, गुपित एकांति भूमिहरि, राखी तेहजि बाल दे. १३७० इ. For Personal & Private Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .१०६ जयवंतसूरिकृत अति बीसासिणि कोइक धाइ, पालइ तस निशि-दीस दे, हावभाव नवि शीखवइ, ते पणि राय आदेसि दे. १३७१ इ. इम करतां यौवन-वय पांमी, त्रिभूवन मोहन रूप दे. हइडइ हरख धरई अधिकेरो, ते देखीनइ भूप दे. १३७२ इ. तेहनूं नाम दीधू भूपालइ, पातालसुंदरि नाम दे, पातालसुंदरि रूपि जीती, मन-वोंसामा ठाम दे. १३७३ इ. जनम लगइ मुगधा ससनेही, शीलिं करी रसाल दे, . प्रेम-पात्र हुइ राजानई, गोरी कोमल बाली दे. १३७४ इ. पर-नर नाम न जाणइ बाली, सुहुणइ अवर न देखइ दे. गोरी पीन पयोधरि नमणी, राजा देखी हरखइ दे. १३७५ इ. सबल नेह वाधु ते साथई, अवर वीसारियां काम दे, ते विण न रहइ पा घडो, फिरे फिरे तेगइ ठामि दे.. १३७६ इ. नवी प्रीति जे साथिं बाधी, घडोय न ते मेहलाइ दे, नयणां आगलि राखीइ, रखे पासिथी जाइ दे. १३७७ इ. हाथि लिखावी हीडइ, जिम नहि नयण विछोह दे, आग दीठइ मन आवटइ, जेहसिउं पहिलु मोह दे. १३७८ इ. जेहनि मनि जे वल्लहां, ते तेहनइं सुख-ठाम दे, जाणइ त्रिभूवन तेह मय, न गमइ बीजां नाम दे. १३७९ इ. नेह सलूणां वल्लहां. माणस निई जउ नहत दे, सुख दुःख निय-मन वत्तडी, तु कुण आगलि कहत दे. १३८० इ. हूं बलिहारी दैवनी, जिणि करियां वल्लभ नाम दे, सुख-दुख कही जस आपणउ, मनडु दइ विश्राम दे. १३८१ इ. ढाल २८ .. राग गुडी [धन धन साधु मृगापुत्र सोहि, ए देशी ] ते विण भूपति न रहइ घडीय, मूंद्रडो सउ जिम माणिक जडीय. १३८२ सुंदरि रूडी रे मृग-नयणी रे, सुर नर किंनर ना मन-हरणी...दुपद एहबइ मणि-दीपथी व्यवहारी, आविउ तेणइ नयरि व्यापारी, १३८३ सु. जेहबुं नाम तिस्युं परिणाम, अनंगदेव रूपइ अभिराम, १३८४ सु. वस्तु तणउ नवि लाभइ पार, करवी आबिउ ते व्यापार. १३८५ सु. आमल-प्रमाणिं मोतीनुं हार, भेटि करी राय कीध जुहार १३८६ सु. तेहनि प्रसाद करी दिइ माण, तूठउ राजां मेहलइ दाण. १३८७ सु. मणि मोती सोविन-विद्रुम, वेची उपराजइ बहु द्रम. १३८८ सु. Jain Education Interational For Personal & Private Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी चमर हारि छइ रायनि वेश्या, कामपताका नामि सुवेशा. १३८९ सु. द्रव्य वडइ ते निज वसि कधी, सारथवाहिं बेसि प्रसीधि. १३९० सु. सारथपति कोइ अक्सर जाणी, वेशानइ कहइ वात विनाणी. १३९१ सु. राजकाजि ए राय तुह्मारु, सालम दीसइ कांइ असारु. १३९२ सु. राज-सभाई आवइ मुडु, वहिल जाइ ए सिउ गुडु, १३९३ सु. कितवादिक अहनि व्यसन न दीसइ, जेहन बाधु भीतरि बइसइ. १३९४ सु गुणवंत गणिका तव इम भासइ, सम्यग वात न जाणउं तास. १३९५ सु. दुहा गणिका कहइ सुणु सार्थपति, सम्यग न लहूं वात, पणि अतःपुरि एहवी, वार्ता छइ विख्यात. १३९६ जन्म लगइ भूमि-गृहई, राखी को एक बालि, राजा तेह सिउं एक मन, विलसइ भोग-रसाल. १३९७ अनंगदेव ते सांभली, चिंतइ चित्त मझारि, . सती बिरुद रवि देखता, घरइ ते केहवी नारी. १३९८ तेहसिउं गुण रस-गोठडी, करि सिउं केणि उपाय, जेहसिउं नयन मेलावडइ, विहि अंतराइ थाइ. १३९९ नाम सुणिउं जव तेहवु, तव लगइ लागु नेह, आंखडीयां अलजइ धरइ, मिलवो कारणि देह. १४०० जिम तरसिया सरोवर लहिउ, मनि आणंद स थाइ, गोरी नाम सुणिउं तिसिउं, हैडइ हरख न माइ. १४०१ दूरई तेहसिउं गोठडी, चित्ति चित्त मिलाइ, नयणा देखु जउ किमई, तुहइ संतोष थाइ. १४०२ मान घरइ एक नेह बसि, दुर्लभ दर्शन जेह, वारीतां जे भेटीइ, अधिक वधारइ नेह, १४०३ भूख तरस निद्रा गइ, तालोवेलि प्रताप, माणस वेध विलूघडां, पगि पगि हुइ संताप. १४०४ छांनी लांघण नितु करइ, वेघ विलूघा जेह, पाकां पीपल-पन्न जिम, पंडुर हुइ स देह. १४०५ वेघ-घण काया-आंबलइ, पइठउ अतिहि दहति, फोली खाइ भीतरइ, सूकां साल रहंति. १४०६ जेहसिउं लागु वेघडु, जा लगइ ते न मिलंती, तां दव लागु वेडि जिम, भोंतरि जीव वलंति. १४०५ For Personal & Private Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत आवटणु निसि-दीह, वेघ विलग्गु पापीउ, न दहइ पूरी देह, अवटातु न रहइ घणुं. १४०८ तनु अवटावइ मन दहइ, दुल्लह जण अणुराय, तुहइ आशा पापिणी, फिर फिर करइ विखास. १४०९ हैडू कठिन न कोमलं, वाहाला विरहिं माइ, आस न मेहलइ जीवतां, अहव न विलइ जाइ. १४१० नींसासु उजागरु, ए अंकूरी जास, प्रेम-लतानां सियां हसइ, परिणामि फल तास. १४११ हैडा तूं जेहनि मरिं, पीडि न जाणइ सोइ, साली न पडइ एक हथि, लोक ऊखाणउ जोइ. १४१२ एकजि तत्त अत्तत्त सिउं, लोह न सांघिउं जाइ, सरखइ सरखु जो मिलइ, संघइ संघि मिलाइ. १४१३ दुल्लह सिउं अणुराय करि, हैया विसूरइ काइ, दोस संभारि न अप्पणा, को जीवइ विस खाइ. १४१४ दाडीम-फल जिम प्रेम-रस, एक पक्षि सकसाय (१) बीय न रचइ जां लगइ, तां किम महुरुं थाइ. १४१५ दुल्लह माणसि रजतां, नितु नितु मरणां होइ, आस न मेहलइ जीवडु, सज्जन न मिलइ सोइ. १४१६ पापी वेघ न रूयडु, दुख दीइ निरवाणि, वेघ विलूघां माणसां, जण हासू सय-हाणि. १४१७ कुहनि वेघ म लागसिउ, दोहिलं वेघ-बंधाण, नेटि मिलइ मन भावतां, तु ते वेध-प्रमाण. १४१८ रत्तां सरिसू रचीइ, एहजि सार सनेह, निस-नेहई मन आवटइ, लोक हसारथ तेह. १४१९ ऊंचा आंबा रिं फल, कांटे कीधी वाडि, जे फल किमहि न पामीइ, तिहां मन करइ रूहाडि. १४२० है हैडु बालकनी परि, जं जं नाम सुणेइ, तं तं मोगइ आडि करि, नहींतरि जूरि मरेइ. १४२१ कां ते सज्जन सांभलियां, कां आव्या इण मागि, मन लग्गू नवि ऊखडइ, जिम पटुलई चित्राम. १४२२ रे हैडा संतोष करि, ए तूं मागू मांन, कुण लहिसइ ए दुखडा, जे तूं रोइ रानि. १४२३ For Personal & Private Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शंगारमंजरी मिलिया पछी विछोह जे, ते तां विरह अपार, जे न मिलइ मन भावतां, दोहिल वेध विकारि. १४२४ विरह दोहिलु वल्लहां, विरह थकी वली वेध, चाखिया आदर थोडिलु, अण चाखियां अति नेह. १४२५ देखी मरकलडे हसइ, वात करइ नयणेण, ए नयणांनु वधेडु, केवल नयण-रसेण. १४२६ देखी नयणां उल्लसइ, वयणे मंडइ नेह, मीठी बोलइ बोल्डा, नितु अवटावइ देहः १४२७ तुज सिउं मिलवा टलवलइ, वाहाला माहारं मन्न, संच नथी पणि मिलणनु, परवसि हूंअ सज्जन्न. १४२८ अह्म सरखां जंवारडु, दैवइ सरजिउ काइ, तुह्म सरखां मन-वल्लहा, मिली न संकू हाइ. १४२९ गुणवंत माटिइं तुह्म सिउं, मि मांडिउ छइ मोह, अवर न को सुपनतरई, अहीं म धरसि संदेह. १४३० चतुर मिलइ गुणवंत सिउं, नयण वयण गुण काजि, विषय नहीं अह्म वालहु, गुण वाहलां संसारि. १४३१ नयणे प्रीति न मांनयो, संच नथी मिलणांइ, फोगट वयरी पापीया, दुरियन घणा प्रवाहि. १४३२ वाहाला ताहाराइ वेधडइ, जे मुजनइ छइ दुखु, ते दुःख जगदीस्वर लहइ, मिं न कहाइ मुकिख. १४३३ कहितां दीसइ कारिमं, संभारु सदैव, थोडइ अक्षर जाणयो, तुह्म पासइ छइ जीव. १४३४ मुज ऊपरि माया नथी, जाणू छ तुह्म वात, हूं तुझ उपरि आवटुं, ते जाणइ जगनाथ. नयणे जु मिली नवि सकुं, तु किम वात कराइ, आपण नि मिलतां वचइ, विहि अंतराइ थाइ. १४३६ मनि राखी जइ नेहडु, मिलइ सू घj जणाइ, घण-अंतरि रवि कमलिनी, नेह न तुहइ जाइ. १४३७ नेह जागइ जिणि बोलडे, तेहवा वयण कहेइ, नव नव परि ते वचनथी, वयणां वेध जि एह. १४३८ एहजि सार सनेहडइ, नयण-खटुक्कु होइ, वयणां-रस अगलु, नयण धोलंतइ जोइ. १४३९ For Personal & Private Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० जयवंत सूरकृत नयां वयणां दुन्नि जण, नेह-रस लेइ जाइ, काया कूचा कारण, ताडु नयणे वयणे जेह सेजि न पहुरमां, जनम लगइ रस, उ रस खटुकइ कीजइ कांइ. १४४० हुइ सोइ, रहि दोइ . १४४१ नयणे वर्याणि मिलंति, तुहइ तृपति न जंति. १४४२ संगम नवि |इ मेह न वंछइ तोय. १४४३ माणसां, सही सुवेधां अंगो अंगि मूरिखां, नयन मिलति जेह रस, मोर जि नाचइ गाजतां, अणदीठि आरति नहीं, दीठिं दुःख शरदी बप्पीहा मेह जिम. ए दृष्टि-वेधे जे नयणे दीठां नथी, नाम सुणइ देहइ नेह, वेघडु, जिम जल मांहि लेह. १४४५ गयांइ, भराइ, कहाइ. १४४४ अवर न कोई सुहाइ. १५४६ कुंजर ते अदृष्टह नेह सलूणां सज्जनां, परदेसडइ तस गुण खटकड़ साल जिम, विज तणा गुण समरतु, तिम गुण खटकइ जेहना, गुण अवगुण जाणइ नहीं, वेसा पणि तस वल्ल्ही, नयणां वयणां गुण तणा, चतुर तणा ए वेघडा, विरला दृष्ट अदष्ट नइ विषयना, बि खोठा एक पक्षना, त्रणे वेध त्रीजउ लहइ कुंजर थाइ, गुण-वेध कहाइ. १४४७ सुरय-रसेण, ए हीण. १४४८ केवल विषय- वेध रुडा वेध जि सोइ, जाणइ कोइ. १४४८ स्त्री नई विरह विरला विगत असार, गमार. १४५० दहेइ, लहेइ. १४५१ वेध अधिक नर नई दहइ, विरह मिलिं वेद अणमिलि, निस-नेहां सिउं नेहडु, मुरख सरसी प्रीति, ठां साल तणीं परि, खिणि खटकइ चिति. १४५२ भूख गइ निद्रा गइ जउ ते गोरी नवि मिलइ, जे दोहिलां दुर्लभ हुई, वाडी पहुरु पाडता, रांजा अधिकूं सिउं करइ, रूठउ हरेइ, प्राण ते तु बिपरई जसइ, जइवि न मिलेइ मिलइ. १४५५ For Personal & Private Use Only सुपरि करइ विनाण, तु जीवित सु प्रमाण. तिहां मनि अधिक उल्हास, सूडु करइ विखास. १४५४ १४५३ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगार मंजरी लोक हसु दुरियन क, वरि ए जीवित जाउ, वाहाला मांणस कारणिं, जे भावइ ते थाउ. दसशर दस शिर नोंगमियां, जनक- सुता सिउं रत्त, तु प्रिय मांणस कारणि, एक शिरनी सी . वत्त. १४५७. वरि ए प्राण गया भला, गुणवंता सिउँ प्राण भवंतरि पामोइ, वेधि, पण नवि लहोइ सुवेध. १४५८ अविचल उत्तम प्रीति, प्राग धरइ कुग चोंति. १४५९. जां लगि ते न मिलति, भांतरि झूरि मरंति. १४६० बाहिरि धूम न होइ . कुग उल्हावइ सोइ. चंचल जीवित प्राग ए, अविहड उत्तम कारण, जस मन लागू जेहसिउं हाथी चूकु विंझ जिम, मन भरि कोउ जलइ मन गमतां वाहाला विना, इध विग बलवूं बलइ, अगवेचि परवसे काया, जग जागइ जिमता नयी, वाहाला सिउ जस वेबडु, लोक अयाग अबूज ए, पण मन माहिली वेदना, विस सोयर चंडु दहइ, अन्न न भावइ विना, अनंगदेव जाणो इसीउँ, भूपति भेटि करो वली, प्रिय देखी मन उल्लसइ, तेहना घरना दास जे, नितु नितु आवइ रायहरि, इणि परि तेणइ धूरतिं, घरि वरी सिउं मंडोइ, काज करेवी आपणउं, भय नेह सहिजि सुजन जीगंग, ते किन बाहिरि वाहालां विग तनु कंपाइ, कीया जि माइ १४६२ प्राण सरव उपाय तेहनि, जउ हूँ मिलूं एक बार, रहइ तु माहारा, नहींतरि थाई छाहार. १४६६ मनवंछित तु पामोइ, जउ कर वरसइ दानि, उपार्जन आ वारनी, एहनी पूठि जाणि. १४६७ वसु प्रीति करइ उपाय, विग नवि जाई. १४६४. चंदन विसहर संगि जल सिउं नहीं मनरंग. १४६५ वालइ मांडी १४५६ अहांइ किसिउ संदेह, तेहसिउँ कृत्रिम कीजइ , थाइ चंग १४६३ १४६१ अपुरव लेइ, अधिक मांडइ. १४६८ प्रीति अपार, कोडि प्रकार. अधिक सनेह. १४६९ For Personal & Private Use Only भूपति चित्ति, अधिको प्रोति. १४७० १४७१ -१११ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ जयवंतसूरिकृते हंसा कमलिणि वेलडइ, सहइ बग-पगह प्रहार, तरुणी करिणी वेधडइ, परवसि रहइ बंधन सहइ, सही वाहाला नेहडइ, दुरियन वचन -विकार. १४७२ मूंकइ विंज गयंद, दुखु लता नेह-कंद. १४७३ हंसा किहि कदमि रमइ, कारण वसई रमंति, कोमल कमल सनेहडइ, मइल-पगुं सहंति. १४७४ वरिवइरीनिं सेवोइ, कीजइ नचुं काम, सहीइ जग जग बोलडा, वाहाला केरइ नांमि. एह जाणो सार्थपति, राय तगो करइ सेव, भूपति भोलइ भावि पणि, तेहसिउं मिलइ सदैव. १४७६ पय पाणि परि प्रातडी, अधिक आगइ ते विण न रहइ अब घडो, एक हंस दो काय. १४७७ भाति पडी पटुलडइ, किमहि न जूइ थाइ, तेहवी उत्तम प्रोतडी, जेहवो कंबलि राय. राय, करेइ साथि, एकज पहिली घगी थोडी पछ३, जिम विहाणानी छांह, तेहवी दुरियन प्रीतडो, विवरिया अवरोह. १४७९ वड - अंकुर गंग - जल, सज्जन तणा सनेह, पहिलं हुइ थोडला, पछ अधिका छेह १४८० अति परिचयथी सार्थपति, राजा अंतःपुरि आवइ सदा, वलगा तां लगइ तवे सवि १४७५ चिति चित्त न जां मिलइ, लज्जा-पड जव उपडि, कृत्रिम वचन सनेहडु, जांबि मनसि नवि मिलइ, नेह वचन तां विनय तां साची प्रीति न जां मिलइ, चंद कलंकी सिरि धरिउ, जिहां मन मानिउं आपगडं, इम करतां दिन केतलइ, भूमिहर केरुं ठाम, पातालसुंदारे जिहां वसई, ते जागिर अभिराम १४८६ मनि आणंद थयुं घगड, आवो निज अवासी, निज धइथी भुंइरा लगइ सणंग खणाबी सार. अंतर थाइ, परगट थाइ . इश्वर तिहां कुग १४७८ हाथि. १४८१ For Personal & Private Use Only तां दाखवइ छयल्ल, तां मनि हुइ ससल्ल. १४८३ तां भय तां लग्नि लाज, तां लगइ हुइ अगाज. १४८४ कंठि -नाग, राजा शंक. १४८५ १४८२ १४८५ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शंगारमंजरी ९५ जे जस उपरि एक-मन, जां ते तस न मिलंति, खप-जप कोडी गमे करी, तां ते केडि न तिजंति. १४८८ चडइ सराडइ जां लगइ, काज न दैब विशेखि, तिम तिम धीर तणइ मनि, उछा हुइ सविशेखि. १४८९ अगनि माहि जंपावोंइ, तरीइ सायर - नीर, नथी दुल्लंध सनेहनि, मरणां गमीइ शरीर. १४९० जेहनूं मन जेहसिउ हुइ, तीह तस वत्त सुहाइ, अवर वात विख-वेलडी, सुणतां चित्त उल्हाइ. १४९१ गय वाडी गिरिं भीतडी, वयर कपाट करंति, हरि-पाहारी दोवारि सोह, रत्ता तुहि मिलंति. १४९२ जे जेहनु अरथी हुइ, ते तस काढइ केडि, भुख तरस भय नवि गणइ, नेटि करइ नीमेडि. १४९३ आसा-लबध पतंगिया, दीवइ पडी मरंति, वेध विलूधां मांणसा, मरणां-भइ न बीहंति. १४९४ कुंजर-कन्न पहारडइ, रोइ भमर अपार, के तूं बीहसि मरणथी, जउ रस-चाखणहार. भमर भटक्की उसरइ, कां केतकि कंटालि, मरवू छइ एक जि वरां, विकुण गमइ गमार. १४९६ भमर बंधाणो कमलमां, थरहर कंपइ काइ, सुगुण सुवेधा जउ मिलइ, वरि मरी जइ तांह. १४९७ जे सबंध हवु हविं, ते सवि सुणु एक चित्ति, राजा वीसारई रहिउ, न लहइ घूरत मित्त. १४९८ एक दिन रायवाडीइ, पुहुतु क्रीडा काजि, सारथपति नइ मुद थयउ, जांणे लावू राज. १४९९ वात वसी जे जेहनि, तेहनि तेहजि ध्यान, त्रिभुवन देखइ तेह मय, नव नव करइ बिनाण. १५०० गयुं सुरंगि भूमिहर, ते अवसर जाणेविं, सूती दीठी सुंदरी, वर्णन . कहूं संखेवि. १५०१ त्रिभुवन जीतूं रुप गुणि, तेह भणों मयणेण, खांडु उघाडउं दीउ, गोरी वेणि छलेण. १५०२ गोरी चंदन-छोड जिम, वेध विलूधा नाग, वेणी छलि सेवी करइ, झलकइ सिरि मणि-चाक. १५०३ For Personal & Private Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतत्रिकृत चमर भार गोरी धरइ, गरवि चिहुर मिसेण, त्रिभुवन रुपि हरोवीउं, प्राण न चल्लइ केण. १५०४ गोरी गोर-थोर-थणिं, सोहइ वेणी-दंड, अमीय-कुंभ दोइ राखवा, जाणे सर्प प्रचंड. १५०५ लाल-दंड मंयणि दी, सिरि सौंदुरिय मंग, आण मनावी आप्पणी, पइ पाडियां नर-चंग. १५०६ सामलि अठमि सामली, निलवटि आधु-चंद, विद्या त्रिभुवन-मोहनी, साघइ मयण-योगिद. १५०७ निलवट चहुडिउ चांदलु, गोरो आणी डंस, मुहु ऊपमि ससि किम हवइ, आवइ एणइ असि. १५०८ भमुहि कोदंडि जे हणिया, नितु को पीडा तास, भींतरि साल न नीसरइ, जीव न मेहलइ आस. १५०९ अणीआणां अइ सामलां, परजीविय हरणांइ, गोरी नयणां खग जिम, जीवी अंतकरणांइ. १५१० गोरी नयणां जीह पडइ, धोलि धोलि विसम किडखु, तीह तीह धावइ मयण-भड, शर संघेविय तिक्खु, १५११ बाला नइ लोयणि करी, मयण मनावइ आण, नयण खटकु जीह पडइ, तोह संचरइ सुजाण. १५१२ हरिणाक्षी हरथी अधिक, ससि निःकलंक धरेइ, मयण दहिउ हर-लोयणि, सा नयणे सज्जेइ. १५१३ मयण-वीर सर-धोरणी, विस जलहर की धार, अमीय मही-रस मारणी, गोरी नयण-विकार. १५१४ गोरो नयणां जीह पडइ, विज्झम भरियां वंक, चंचल वलया विज्जु जिम, तीह विणासइ अंग. १५१५ बाला नयंणां जिह फुलइ, जीविय तास हरेय, तिणि पापि विहि नयणनइ, कालू कज्जल देह. १५१६ नयणां कज्जल उपरइं, मारइ तिहुयण लोय, काइ अधकेलं लहत जउ, तु जगि जीवत कोइ. १५१७ विस नयने मणि-दंतडे, चंडु-मुहि थणि हत्थि, अमृत गोरी-होठडे, लीधू सारय मत्थि. १५१८ पइसंता दीसइ नहों, खिणि खिणि खटकइ चित्ति, गोरी नयणां तीर जिम, वीघइ हैउं जडिति. १५१९ चित्तलेहा वरभमुहि जस, रंभा उरसो माल, नाशा-वंश तिलोत्तमा, गोरी रूपि रसाल १५२० । Jain Education Interational For Personal & Private Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उज्जल अधर - प्रवाली गोरी-दंतडा, शृंगार मंजरी रातडा, चंडु बहतु राहुथी, प्रीति विशेखइ हरिणलु, दाडिम - कुली छंडावइ काने नाग विलाइआ, निलवटि चंडु अद्ध, गोरी इसर समवडइ, मयण महा वसि किद्ध. १५२३ गोरी-कंठ सोहमणउ, ऊजल कंबु सुरेख. कोइलि वीणा किन्नरी, त्रणे जीत एख. १५२४ गोरी थण थद्धा गोरी - मुहि कीउ वास, राखिउ नयणां पासि. १५२२ नीलकंठ हैंडइ धरिया, गोरी -थण इसर समा, गो-ह वट्टला, मणि लायfण पूरीया, समान, नर-मान. १५२१ दुरियन समा, साम-मूहा अइ बँक, कठिन सुपावरण, तुहइ उपाइ रंग. नीली-कंचु जलहर - रेखा गोरी हैडइ थोर थणा, थण- गिरि सिहरिं दुरि रहइ, नेह-ससि अद्ध रसाल, तीह हूं करूं जुहार. १५२६ मयण राय निहाण, कंचण-कलश समान. थण अलीआला उद्ध-मुह, मयण महा-भड भल्ल, जीह उरि लग्गइ सो जीअइ, इअर मरइ ससल्ल. नयण-शरा थण-भल्लडी, वेणी तरल तरवारि, त्रि हथीयारे मयण-भड, जीपइ तिहुयण मझारि. १५२९ दोइ गौर-थण कणय- गिरि, मझ मोती- हार, आवत्ति नाहि-दहि, नइ फेणु बालानइ लोण-जलि, तीह कुंभस्थ थोर - थण, जल-सार. वल्लह जिम हीइ रकखया, गोरींइ गुण-सार, १५२५ १५२७ बूडु मयण-मतंग, नेह-अंकुशि सुरंग. १५३१ १५२८ करइ सवत्ती कज्ज, पीउ परइ रंभण सज्ज. १५३२ अपावरण, गोरी-थण सोहंति, मज्झ गय १५३० इय गव्विं उद्ध-मुहा, उनइया जीह जाया जीह वुट्टीया, तीह हैडू गोरी - थण दुज्जण थया, तु कर- पीडन करि कुंभत्थल अधिक, गोरी - पयोहर गय मोती छांना धरइ, थण धरइ परगट हार. १५३५ हार, थाण-हार. १५३३ फोर्डति, संहति १५३४ For Personal & Private Use Only ससिहर-बिंब हसंत. १५३६ ११५ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरकृत ... कमल-मुखी हंस-गामिनी, अलि-कुंतल थण चकु, मयण महानल उल्हवण, गोरी वाविअ थक्क. १५३७ गौरी लावणइ भरी, तिम चंपेविय देहि, जिम अणमातुंअ थण मसिं, बाहिरि पसरि एह. १५३८ गोरी थणहर-कोट्ट माहिं, मयण-नरिंद रहेवि, झुझ करेसि हर सरिस, पुणरवि शर संधेवि. १५३९ गोरी-थण अमीइ भरिया, सेस रहिउ चंपंता, उंछह घडीउ चंदलु, तिहुयण नयणाणंद. १५४० गोरी-थणहर घड-जूअली, नीर भरइ लायन्न, निग्गय रमणह थालिथी, सींचणि रोमवलि वन्न. १५४१ छयल विडुग्गय चिंतडी, जिम हैंडइ नवि माइ, गोरी गोरा-तुंग-थण, तिम हैड न समाइ. १५४२ को तीरइ तीह वन्नीठं, थण-गिरि अंतर-सार, जीह अंतरि सकन्हहर, निवसइ गुण-भंडार. १५४३ प.ला तनि लायण-लय, पल्लविया हत्थेण, फुली नयणां फुलडे, फली अति थोर थणेण. १५४४ बाला लायणइ भरी, मारइ तिखु कडखु, डाढ गलावइ दूरिथी, जिम चंची फल पक्क. वासुकि रूपा-नेउर मसि, गोरी पाइ पडंति, विसहर वेणि बांधीया, छोडणि सेव करंति. १५४६ मुहुर झंकार सुवन्नमय, सचित्तलां सुवंक, गोरी नउर वयण जिम, हैडु हरइ निसंक. १५४७ कोमल पटुली पहिरणइ, उरि कंचुउ सनील, झाझरडां रमिजिम करइ, गोरी चलइ सलील १५४८ ससि-वयणी मृग-लोयणी, वेणी-दंड भुजंग, मधुर बोलंती हंसली, गज-गामिनी सुचंग. १५४९ जे जे अवयव जिहां जिसिया, कामिक नइ करइ मोह, गोरी अंगइ दीसीइ, ते ते तिहां समोह. १५५० सूती देखी सुंदरी, मनोहर रूप रसाल, सारथपति मनि चीतवइ, घिन घिन ए भूपाल. १५५१ गोरो गोर थोर थणी, सरस सकोमल वाणि, ' जस अंगणि मंडण हवइ, तस जीवित सुप्रमाण. १५५२ For Personal & Private Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगार भंबरी जे गति हंस हरावती, जिहां जिहां चालइ गोरडी, ते चंद्र - मुखी चंपा - वनी, गोरी दीठी जिणि नयणि, जस सिरिं चंदन - वास, हूं बलिहारी तांह. १५५४ तिखु कडखु सरेण, बंकिम चंचल नेह भरि, तस वइरीनूं कज्ज ए, करती हसइ अचिरेण. १५५५ घन घन ते नर- हंसला, पय सक्कर समतोल, जेहसि सरस सनेहना, बोलती हसइ सबोल. १५५६ विरह दावानलि-नीर, रोमंचिय नर घन्न ते, गोरी कोमल कर-कमल, थाव करंजिय पय-कमल, गोरी जस हैइ ठवइ, कंच-कुसण टूकीइ, पीन पयोधर भारि, घन ते नर जस गोरडी, दिइ आलिंगन सार, १५५९ चिंता संकड हैडलइ, सोसीय मांस सरीर, सुंदरि समरइ जास मनि, धिन धिन ते नर - हीर. १५६० वर नेउर झंकारि, ते पंथ ज सार. १५५३ रुपवती नइ गुणवती ससनेही तु पामीइ, करि कंकण कंचु कसणि, कंचण कंति रसाल, कोकिल कंठि कमल-मुखि, कदली-दल सुकुमाल. १५६१ कुटिल-केश केसरि-कटी, कुच करी-कुंभ कठोर. काम - कराली कामिनी, केसर कपुरह रोल. १५६२ कव्व कहा कवि कामिनी, केली हरि कलकेलि, कतुहल केसर कुसुम, अहीं वसइ कलकेलि. १५६३ गोरी गाहा गीय- रस, गोरस गयवर गोट्ट, गमती गुणवंत गोठडी, पुण्य गुणि गहिगहिती गजगती, बोलंती गुलथी गली, गुरु चंद्र - मुखी चंपावती, चतुर चमक्कइ चालि, चंचल आंख अणीआलि. तणा ए मोट्ट. १५६४ गोरी गोरा गाल, थोर थण-हार. १५६५ चंदन चोली चीर सिरि, जस गुणवंती गोरडी, धूली धूसर बालि, सप्रसन्न सविवेक प्रभु, तो ह धरि पुण्य रसाल. लग्गइ जास सरीर. १५५७ रिणि जिणि नेउर - सिद्धि, धन ते लील समुद्ध. १५५८ मुहि मीठी मनोहरि, ज हुइ दैवत सार For Personal & Private Use Only १५६६ १५६७ १५६८ ११७ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतरित रुपइ मोहिउ सार्थपति, सूति देखी नारि, भय सनेहिं कांपतु, चिंतइ हैया मजारि. १५६९ राज-सुता राय-वल्लभा, यौवन रुपइ मत, किम कहिसिउं मन-वत्तडी, किम लहिवासइ जचित्ति, १५७० नव-तन नेह समागमि, थरहइ कंपइ चित्त, धगमगती जिम पित्तनी, नाडी वहइ जडित्ति. १५७१ मारगनइ जल नेह-रस, सजन सभाबली जोइ, ए अवगाहियां जिगि नुहइ, थरहर कंपइ सोइ. १५७२ पीउ दीठिं नहीं सुख नहीं, दीठि गहिंबर थाइ, विसमी गती अति नेहनी, मुहुडइ कही न जाइ. १५७३ पिउ अणदीठिं दुखु जे, ते छइ लोक प्रसिद्ध, सुखि म दीठु दुखु जे, जाणइ जेणइ नेह कोद्ध. १५७४ अणदीठानु उरतु, हैडई थोडरु होइ, देखइ पणि न मिली सकइ, अति आवटणउं सोइ. १५७५ अथवा बोलावी जोउं, एहनइ मनि सिउ भाव, अनंगदेव इम चीतवी, जगावी सा बालि, १५७६ ऊठी आलस मोडती, निद्राभर नयणेण, मम्मण वयणां बोलती, नयणे जीता एण. १५७७ अनंगदेव देखी करी, मोही मोहण-वेलि, विहस्या नयण कपोल-तल, हैडइ हुंइ रंगरेली. १५७८ उदभूत देखी रुप ते, पूछइ सुंदरि वात, पुरुष भमर कुहु कुण तुह्ये, केही तुह्य विलाति. १५७९ नयणां देखो उल्लसियां, कोमल वचन सुणेवि, हैडां हेजि जाणी करी, हरख हवु मनि हेव. १५८० नयण जणावइ हरख भरि, हैडा तणउ सनेह देखी, देखी विहसइ कमल जिम, अति उल्लसइ सदेह. १५८२ पहिलूं मंडइ आंखडी, अण-जाण्या सिंउ प्रीति, पछइ. मीठे बोलडे नेह जगावइ चौति. १५८१ रत्त विरत्तां माणसा, नयणे वयणि जणाइ, नेह वइर घण गोपवइ, तुहि परगट थाइ. १५८३ रवि अत्थमणिं कमल जिम, देखी नयन कुरमाइ, वांकू, . जोइ बिस वमइ, नयन विरत्त कहाइ.. १५८४... For Personal & Private Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगार मंजरो बोलावियां बोलइ नहीं, साहामूं जोइ न हसंति, देखी छाया पालटइ, अति उधड मुहि जंति. १५८५ देखी उकरायुं जोइ, मचकोड मुख- राग, हवे लक्षण जाणवां माणसां नीराग. १५८६ सूरिय देखी कमल परि, विहसइ नेहि सराग, अनिमिख जोइ वली वली, मांणसडां सराग. सवियारां विज्झुमि भरियं, घोलिर बँक वलाइ, ससनेहनां नयां, लक्षमाथी गोपाविउ पणि नेह - रस, नयणे चतुर लहंति, क्षणि मीलियां क्षिणि विहसीयां, पीय सम्मुहा वलंति. १५८९ अंबर कस्तूरी परिं सज्जन तणा सनेह, जणाइ. १५८८ छांना पणि नयणे करी, प्रगट लहीजइ तेह. १५९० देखी मरकलडे हसइ, बोलइ सरस सराग, कहिउँ मानइ बोल सा सहइ, ते जाणेवां सराग. १५९१ इत्यादिक जे नेहनां, लक्षण कहियां छई सार, ते सवि जाणि सार्थपति, हरखिउ चित्ति अपार १५९२ १५८७ मन जांणी मन दीजइ, ते रुडु निरवाणि, अणजाई जो आपीइ, जण हासूं सय हाणि. १५९३ दीसीइ रंग जेतलु, जे तु कीजइ रंग, निसनेहां सिउं राचतां, दुक्खि दाजइ अंग. १५९४ एक एकनइ वेधइ मरेइ, साहामूं नाणइ रंग, दैवईं इम कां सरजीउं, जिम दीवा - पतंग सरखा मन बेहु हुई, एक एक विण न सकइ रही, तेहजि प्रीति सुचंग. १५९६ मानइ निज बोल, परिहरीइ निटोल. १५९७ सोना केरी भल्लि, कहसि हैआ गहिल्ल. १५९८ सरखु रंग, बोल जि कहीइ तेहनि, जे वचन उवेखइ आपणउं, ते पाणी मांहइ न नांखीइ, नीरस नइ मनवत्तडी, म त्राटी न खमइ पीटणी, धसी पडइ उछन मन-वत्तडी, सासु पडइ गयवर केरु भारभर, खरिं नव हिणउ जाइ, मन आपिउ कुमांणखां, अघवचि महेली जाई. समूल, सबोलि. १५९९ For Personal & Private Use Only १५९५ १६०० Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतरिकता छयल अनइ कुणबीयना, ए बेहु एक सभाव, साहामु देखइ बहेजउ, तु बी मेहलइ ताव. १६०१ अनंगदेवनइ हइडलइ, ते देखी हुइ आस, चिंतइ सीघां काज सवि, सफल थयउ आयास. १६०२ जस कारणि मन-भमरलु, आवटतु निसि-दीस, ते गुणवंती कमलिनी, मेली तस जगदीस. १६०३ जेहसिउं मिलबा कारणइं, करती कोडी उपाय, ते सज्जन सिहिजि मिल्यां, हैडां छंडि विसाय १६०४ तपी रहिउ तु जीवडु, जेहनि मिलवा काजि, ते सजन जउ पामीइ, तु धरि बइठां राज. १६०५ जे जस उपरि खप करइ, ते तस मिलइ निदान, जगदीस्वरि जोडी जडी, कुहुनइ करइ प्रमाण. १६०६ जाप जपइ अति तप तपइ, खप करइ मेरु समान, मन गमतां वाहलां मिलइ, तु ते सरव प्रणाम. १६०७ अनंगदेव इम चीतवीं, कहि सुणी सुंदर सार, भोगी-भमर भमू भला, नव नव रस लेणहार. १६०८ अह्मे पंखी परदेशना, आव्या एणइ ठामि, सुणी ते . हैडूं ऊलटिउं, गोरी तोरं नाम. १६०९ जव लगि तुज गुण सांभलिया, अमीय लता रस-कंद, तव लगि लोचन अलज्यां, जोवा तुज मुख-चंद. १६१० हेजइ हैडूं उल्लसइ, गोरी तोरइ नामि, मेह गजंतइ मोर जिम, जिम चैत्रइ आराम. १६११ जिम दवि दाधां रंखडा, पल्लवीइ महेण, विरहिं दधु हृदय तिम, गोरी तूं दीठेण. १६१२ फाटइ हृदय-तलाव, पुरिउं विरह-जलेण, गोरी तू नेह-पालि करि, दिइ जीवित अचिरेण. १६१३ गोरी तुज गुण-मालती, मुज मन भमर समान, अवर सुजाती नवि गमइ, फिर फिर ताहार ध्यान. १६१४ भूख नहीं नोंद्रा नहीं, दिन ते वरस समान, भोंतरि जीव तपी रहिउ, गोरी तोरइ ध्यानि. १६१५ नयणे दीसइ नब नवी, रुपवती वर नारि, पणि तुजसिउं मुज नायडु, अवर न सुपन मझारि. १६१६ For Personal & Private Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गारमंजरी कइ विस कइ अमीइ भरियां, गोरी नयणां तुज, प्राण हरइ क्षणि नयणलइ, क्षणि जीवाडइ मुज्झि. १६१७ गोरी तुजमां गुण घणा, अवगुण एक अपार, मारइ विण हथीआरि. १६१८ वेध विलाइ मांणसा, गोरी तोरा पीण थण, अभिनव भल्ल समान, जस उरि लग्गइ सो जीइ, अणु-लग्गा लइ प्राण. १६१९ गोरी एकजि तूं विना, मुज मनि हती ऊजाडि, सफल थयुं दिन आजनु, पहुती नयण - हा डि. वली बली जो जां लगइ, गोरी तुज मुख-चंद, तां लगइ नयन-चकोरडा, पामइ अति आनंद. १६२१ गोरी तुज विरहानलिं, प्रजलइ मोरु चित्त, रमण - महानइ जल चss, तेह बुजावइ जडित्ति. १६२२ जेहनइ नामि सहू बीहइ, आदि करि एकार, गोरी ते तुज उपरइ, मुजनइ दहइ अपार. भर अत्यंतरि जे रहइ, बीय सरइ संजुत्त, तुज उपरि छइ घण, ते जाणइ मुज चित्त. चैत्र थकी जे सातमउ, परिहरि अंत्य उकार, तुज भणी हूं आवीउ, ते तु परि सुविचारि. १६२५ किहां आंबा किहां कोकिला, किहां मेहा किहां मोर, अवसर आइ नवि मिलइ, मांणस नहीं ते ढोर. १६२६ १६२० For Personal & Private Use Only १६२३ १६२८ १६२९ गोरी भुज मनि दुःख थयुं, दुःसह तुझ विरहेण, लाख तर तूं बिना, नवि लग्गइ अचिरेण. १६२७ उरि लग्गा जीवित हरइ, तोरां लोचन - बाण, विस कज्जल महिमा नवउ, दीठां पणि लिइ प्राण. पाइ पडू नुहुरा करूं, गोरी दइ मुज मान, वाहला तो दास हूं, मुज साथइ स्युं मान. गोरी बिरहो ताहरइ, घडीय न मिं रहिवाइ, जिम जल पाखइ माछिलि, तालवेली थाइ. १६३० गोरी मारि म नय. मुज, आलालुंबु टालि अविहड वाचा नेहनी, तूं दक्षिण करि आलि. १६३१ नेह विण नर्याण निहालतां, मांणसडां सूंकाइ, मेहि जवासु सोंचता, सूकी झंखर थाइ. १६ १६२४ १६३२ १२९ Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ जयवंत सूरिकृत ससनेहां किम जाणीइ, जां नवि आवइ नित्त, केवल नयण सनेहइ, तनु अवटावइ नित्त. गोरी मुहि केतूं कहूं, तूं नवि जणइ सार. इन ए वेदना, आलालुंबु लाइ रही, मरणां दुःख एकवारनूं, वरि वछ - नाग अफीण दइ, जउ नुहइ मिलवा मन्न, वरि हूं मरु सुवन्नि. १६३६ विख खाइ तुज उपरइ, D म हिसिउ एकइ वार. १६३४ गोरी वरि मुज मारी. विरह तणउ लखि वार. गोरी जउ तूं नहीं मिलइ, तु हूं हत्या देसि, कंइ झंपावसि नदीयमां, कइ बिख खाइ मरेसि. १६३७ लीवी शोखि गोरी ताहरइ वेघडइ, जे दुःख ते जाणइ मन माहरं, कइ भूख गइ निद्रा गइ, काया ए दोखनी वैद्य तूंह जि जाइफल यौवन एलची, तज विरहाली आमला, जीभई वयण न उपजइ, लाजई नवि बोलाइ, गोरी तुजस्युं वेधडु, कहिया पखइ न रहिवाइ. १६४१ छंइ, तुजथी उपनु दोख. १६३९ बोलि एक पूरि न हुंसि, अति विस दहइ अति हंसि. १६४० १६३३ जाग छइ यौवन जसइ, काया लाहु तुहि न लिइ, गोरी अह्मनि खप नथी, सुंदरि जे जेहवूं एहवं जागो जार सिउँ , फल पाकां यौवन्न-रस, ए लीजइ ततकाल, कुही पses कालि के, कुण करसइ संभाल. १६४२ अह्म सरखां साठि सोभागिण हवइ, सहसे जारे इन्द्र पणि ". १६३५ एक यौवन नइ सेलडी, ए जां हुइ रस पुरि, तां सहु वाहइ हत्थडु, कंचुं छंडइ दूरि. १६४३ गौरी यौवन तिम गलइ, जिम कर जल टींपेण, दस दिन लाहु लीजइ, सहू संभारइ जेण. १६४४ सहूँ निसि दीस, जाणइ जगदीश. १६३८ अह्म सखाइ होइ, आहा नोठर लोय. १६४५ वली वली कहिइ तोइ, जंवारडु, परउपगारई होइ. १६४६ सुयेण रंभ समान, अर्धासनि दिइ मान. करइ, ते तेहवूं पामेइ, सहु तिम लाहु लेइ For Personal & Private Use Only १६४७ १६४८ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगार मंजरी हवू सोइ, कहियो कोइ . १६४९ अारा बोल, दान दीइ जे जेहवू, पामइ इम जाणी यौवन तणां, नाम गोरी जे मानतां नथी, हवडां ते क्षणि क्षणि संभारसिइ, यौवन गइ निटोल. १६५० तव को साहामूं नहीं जोइ, जव जासइ यौवन, गोरी हठसिउ एवडउं, अलवि दिइ मुज तन्न धन हुइ तु संचीइ, यौवन संचिउं न जाइ, अधिकुं वाधइ बावरइ, संचीजइ कोइ. १६५२ गोरी मुहुडइ नांम कहसि मागिउं आपि न अंग, पाइ पडी मोंनति करु, दुक्खिई दाजइ अंग. दीन वचन मिं तुज चिवियां, गोरी जेतां आज, जउ ते कहुं तो रायनिं तु ते आपइ राज १६५४ तूं न लहइ भाव मन तणउ, मिं लाजइ न कहाइ, गोरी मुज मन- आसडी, फलसिइ केणी उपाय. विचित्र वहइ लाज - तलावडू, कुणहि न लाघु थाक, किम करसिउं गुण गोठडी, तू चकवि हूं चक्रवाक. गोरी मुज मन डगमगइ जीव पडिउ अंदेसि, हूं मागू तुज कन्हइ, तेहनी ना म कहे सि. १६५७ A " १६५१ वेध विलाइ झूरि हवइ, चलती न करइ वीज पडु ते उपरइ, जीवितनां १६५३ आपइ आपणु, मागिउ साचां वाहाला तेह, बोल उवेखइ नवि मिलइ, तेहसिउं किसिउ सनेह. १६५८ मागणहारा ते मरु, मागइ नहीं मुह जोइ, मूरखडां चिंतामणी, कादवि घालइ कोइ १६५९ ना कहितां लाजइ नहीं, नावइ कुहुनइ काजि, रान- तलाव सरीसडां, तिणि माणसि सिउ काज. १६६० १६५५ १६५६ जे नितु नितु नयणे हणइ, मन साथइ न मिलंति, ते मांणस अंत्यज समां, दीठां दूरि टलंति. १६६१ For Personal & Private Use Only सार, लेणहार. १६६२ गोरी वेध न लाईइ, अहवा जउ लाइ, धोरी - सिरि भार जिम, अधवचि नवि महेलइ. १६६३ सहीइ जण जण बोलडा, मन रचयति चंग... चंचल चित्त न कीजइ, घरोइ सरखं अंग, १६६४ १२३ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतरिक्त नयणे दीठिं सुख नहीं, जो नवि भीडइ अंग. अण-बूठिं मेह गाजति, किम धरइ चातक रंग. १६६५ नयणे वयणे गुण करी, रंजइ छयल अपार, सोंग-विहुणां ढार जे, ते किम रंजइ गमार. १६६६ गोरी तुज गुण-फूलडे, मुज मन-भ्रमर सुरत्त, तिम करि जिम प्रीति आपणी, अधिकी वाधइ नित्त. १६६७ वांका जे गुणवंत सिउं, गुणवंता ते किम, सज्जन सिंउ सिउ आंकडु, गोरी जोइ न इम्म. १६६८ हंसा राचइ कमल-वनि, फुल-सुगंधे भुंग, सुगुणां राचइ सुगुण सिउं, राचइ विजि मतंग. १६६९ गुणवंती रुपइ भली, जेहवु चांपा-छोड, . सजन साथइ नवि मिलइ, ए तुज मोटी खाडि. १६७० गोरो ए बि-जण तणा, आलिं जनम सुजंति, जे सुगुणां सिउँ नवि मिलियां, जे मिलिया विहडति. १६७१ गेरी काया काच जिम, अविहड उत्तम प्रीति, मणि पइ ठेली काच, कुण मूरखि आणइ चित्ति १६७२ एणी कायाइ जउ हवइ, सज्जन सरिसु रंग, तु गोरी काच कटकडइ, लहिउँ चिंतामणि चंग. १६७३ गोरी हूं छउं उरसीउ, जउ तू सुकडि देइ, ताप शमइ तु वेधनु, . ईछा भोग फलेइ. १६७४ ताहारिं हाथि मारि तूं , कइ मुजनइ जीवाडि, आंखडीया आलंबडु, वार वार म देखाडि. १६७५ थोडां मांहि घणुं कहुं, साची माने वात, हूं जीवसि जउ मिलसि तूं , नहींतरि मरण संघात. १६७६ विसमइ गिरि आंबा फलेइ, हैडूं हचरके जाइ, ते माणस कां देखीइ, जे दीठइ मन अवटाइ. १६७७ जे वेला तुज विण जाइ, वरस समी ते थाइ, गोरी मिली तूं एक-मनि, वेध धणउ न खमाइ. १६७८ गोरी वाचा आपि मुज, मिलवानी ससनेहि, तिम करि जिम थाइ प्रोतडी, रखे आपइ छेह. १६७९ गुणवंति माटइ तूंहनि, वाहाली घाती वाच, रखे उवेखइ । महनि, नेह - वधारइ साच. . १६८० For Personal & Private Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगारमंजरी १२५ जउ मंडीजइ प्रीतडी, मागिउं दीजइ तोइ, दुरियन बोलि न छांडीइ, प्रीति खरी जउ होइ. १६८१ गोरी दूरियन छइ घणा, पाडइ अति अंदाहि, वाहाला तेहने बोलडे, म करसि प्रीति विछोहि. १६८२ गोरी खंटा कारणिं, अंब न सफल कपाइ, दुरियन बोलइ सजन सिउ, प्रीति न छंडी जाइ. १६८३ गोरी जूइ परभविया वस्त्र न छंडइ कोइ, दुरियन वयनि सजननि, कुण परिहणइ सलोइ. १६८४ बोली बोली रहइ दोखिया, खूटा विण न मराइ, जउ मन मानइ आपणउं, तु लोकई स्युं थाइ. १६८५ गोरी माणसि गरव तू, पाइ पडतां देखि, सज्जन सिहिजइ नम्मणा, प्रीति वसइ सविशेख. १६८६ गोरी ताडु एवडु, सजन सिउँ म करेसि, गुणवतां अरथी घणा, पछइ झुरि मरेसि. १६८७ सुकवी कवित तणी परइ, सुंदरि सुंदर नेह, अति कठिनि अलखामणां, नादर को मले नेह. १६८८ तुं मुजनइ वाहाली थइ, तु एक मागुं मान, रखे देखाडइ छेह तूं , पाले प्रीति सुजाणि १६८९ जीभइ किमहिं न वीसरइ, सोभागी तुज नाम, काडी वरस जीवों धरूं, जिम जीवनि हंस ध्यान. १६९० ते मुज नामि सुहावीया, तेहजि अक्षर सार. माइ विधाता कां करिया, अक्षर अवर असार. १६९१ हूं भमरु तूं कमलिनी, तूं द्राक्षा हूं सहिकार सरखइ सर छइ मिल, तूं वोटी हूं हीर. १६९२ नव यौवन नब नेहडु, नव रस सरस अपार, गोरी कांइ विलंबीइ, रस लीजइ संसार. १६९३ आशा-तरुवर पालविउ, तोम नाम सुणेवि, नयणे दीठिं फुलीउ, छेद म करये हेव. १६९४ उन्हालइ तरसालूआं, वाहालूं जिसिंउं तलाव, तिम गोरो तूं वल्लहो, जिम सायरमां नाव. १६९५ गोरी तोरे पगि पडूं, मइ न खमाइ विलंब, ... आरतियां हुइ उतविलां, एक क्षण जाणइ जम्म. १६९६ For Personal & Private Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२.६ जयवंतसूरकृत वाहालां ताहरइ वेधडइ, जे मइ दुःख सहियांइ, ते जाणइ मन माहरू, न्यानो विण न कहाइ. १६९७ हूं मोहिउ गुणि तोरडइ, कीधां कोडि उपाय, तुजनइ मिलवा कारणिं, आस फली हवइ आय. १६९८ सुभट शरीरइ जे वसइ, धरि उकार करिज्ज, गोरी वलतु कां न दिइ, कां रिसावी अज्ज. १६९९ एहवां वचन सुणी घणां, देखी उदभूत रूप, अनुरागिणि सुंदरि थइ, उद्धसीयां रोम-कूप' १७०० सारथपतिनि इम कहइ, वाहीला सुगुण सुजाण, सुणि मुज मननों वातडी, तुजसिउं थयुं बंधाण, १७०१ तूं देखी मन उल्लसइ, नयणां अमी झराइ, भर भाद्रवडइ मार जिम, मेह देखी कोंगाइ. १७०२ आंखडीयां बलिहारडी, जेणिं वाहालां दिट्ठ, साकर-चूरि तणी परिं, कोमल शीतल मिट्ठ. १७०३ सुखदुःख संघाति सहू, जीव तुह्मारइ हाथि, वाचा दक्षिण कर तणी, जनम लगइ तुज साथि. १७०४ तूं सज्जन वाहलेसरु, तूहजि प्राणाधार, आ भवि परभवि तुज समुं, वाहालूं कोइ न संसारि १७०५ तुं माहारइ हूं ताहरइ वल्लभ, जिम जल-पालि, सुपतंतरि पणि एकठा, बीजार्नु मुहु बालि, १७०६ आ वाचा साची करे, वहिडूं नहीं जीवंत, जिहां तुज काया जाणि तिहां, माहारी माया कंत. १७०७ तनु घनु यौवन ताहारु', ए पणि ताहरा प्राण, यौवन-वाडी ताहरी, फुलीफली सुजांण. १७०८ सज्जन तणा सनेह, ऊंबर-तरुअरनी परि, परगट हुइ फलेहि, नयणां डंबर नवि करइ. १७०९ जे जस ऊपरि एक-मन, तेहनि तेह मिलंति, मेह-बप्पीहांनी परइ, आशा नेटि फलंति. १८१० ते तूं उपजइ हेज, जे तू हुइ वाहालां हैइ, दाडिम-छालइ तेज, तु बी हुइ रत्तडु. १७११ कुंपल मेहलि न रे हीआ, अलविं आस फेलीआइ, तूं अवटातूं जेहनइ, ते वाहालां मिलीआइ. १७१२ For Personal & Private Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गारमंजरी साकर दूधइ स्युं मिली, सोनु हQ सुगंध, जे ऊपरि मनडुं हतुं, ते ससनेहा बंधु. १७१३ आगइ वाहाला सुजन ते, अनइ वली मधुर बोलंति, आंबा लागा इखूइ, कहु कुण मूल करंति. १७१४ नीर जिम नवइ सिरावलइ, पसरी एक-रस हाइ, चितिं चित्ति मिली गयु, अंतर न लहइ कोइ. १७१५ कहिसिउं क्षणमां मन मिलइ, कहिसिउं नहीं सवासि, डुडर न वेइ कमल-गुण, भमरु लि गुणवास. १७१६ गोरी गुण-गढ भेलता, नयणे दीधु भेलि, हैडइ मारग अप्पीउ, भांजी लज्जा-पोलि. १७१७ पूरब-कर्म तणइ वसइ, तेहसिउं बाघु जीव, अनंग तणी आशा फली, विलसइ भोग सदेव. १७१८ जीवी तास वखाणीइ, घन घन सघन अनंग, दर्शन-दुर्लभ सुंदरी, विलसी जेणइ चंग. १७१९ सूडा ते फल चाखीइ, जे फल कुणहि न लब्ध, वरि मरवू एक जि वरां, जेणिं रहइ लोक-प्रसिद्ध. १७२० कदम लंखी जल तरी, भेदी कंटक--वाडि, हंसा विलसइ कमल सिंउं, नेहई किसिउ असाध्य. १७२१ भमरु केतकि सिउं रमइ, कांटे तनु वधाइ, मन रच्चतां वल्लहां, दोस न को देखाइ. १७२२ जेहसिउं रूडा भावीइ, चतुर वखाणइ च्यारि, वरि ते सज्जन कारणइ, सहीइ बोल बि-च्चारि. १७२३ भमर ते फूलइ रच्चीइ, जिहां गुण दीसइ दोइ, लोक प्रशंशइ जेहथी, आप सवारथ होइ. १७२४ हंसा कइ मानसि रमइ, कइ तरसिया मरंति, छीलरडे कद वालूए,, साहा पणि न जोअंति. १७२५ मिलीइ तु गुणवंत सिउं, जीह प्रसंसइ लोय, निरगुण नीचह सिउ मिली, जनम विणासइ कोइ. १७२६ अमृत वरि टीपू भलूं, नहीं बिस-कूआ विरस, वरि अध-घडली सगुण सिउ, नहीं निर्गुण सिउ वरस. १७२७ तं काइ कीजइ नवू , जिण रहइ लोकप्रसिद्ध, . हरि-हर ब्रह्मा सिर घुणइ, हुइ कारय सिद्ध. १७२८ For Personal & Private Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ जयवंतसूरिकृत बाहाली प्रीति ज पालवइ, हैडइ छइ डमडोल, तु मुज मनि सुख संपजइ, जउ दइ अविहड बोल. १७३४ गोरी तोरइ कारण, सहियां छइ दुखु अपार, नेह - विछोह करइ रखे, वरि मारे तरवारिं. १७३५ जर जाणी गुणवंत, तु मई केलि म थासिउं बोरडी, रखे अंब न हुइ लोंबडु, वायस चंद नहुइ अंगीठडी, निव गुण मंडइ सरिसव जेतलु, पालइ मेरू समान, सज्जन तणु सनेहडु, जिम जेठइ कुलवंती थोडुं लवइ, पालइ अकुलीणी बोलइ घणुं, क्षणमां आपइ छेह. १७३९ उघाण. १७३८ प्रीति करतां सोहिली, दोहिली पणि पा ंति, अघ-वचि कइ आदरी, साहामूं ते मंडिउ नेह, देखाडइ छेह. १७३६ नुहइ हंस, नुहइ सुवंश. १७३७ बालंति. १७४० निर्वही, तेतु लीजइ भार, जेतु सकीइ प्रीति तणउ व्यवहार, जनम तणउ व्यवहार. १७४१ तुजसिउं कीधी प्रीतडी, हवइ जु आपसि छेह, जण -हासुं मनि उरतु, बिपरि दहइसि देह १७४२ गोरी पाले प्रीति तिम, जिम विन हसइ लोइ, जगि उखाणंउ जिम रहइ, वइरी जीणा होइ. १७४३ सघलइ बदनामी चडी, वइरी आणइ खेस नेह खरु तु जाणसि, जेउ अहवइ पालेसि. १९७४४ नेह रयण तिंम राखये, जिम न पडइ बीसारि, छल जोइ चोरइ रखे, दुरियन-चोर संसारि. १७४५ जण जण बोलि म उभजसि, खेद म आणसि चोंति, चिन बोल म हैइ घरसि, इणि परि पालइ प्रीति. १७४६ वाहाली तूं गुणवंति छई, घणउं कहिसिउं होइ, प्रोत म छोडसि आपणी, थोडइ घणउ स जोइ. १७४७ प्रीति प्रीति सहू को कहइ, थोडा करी लहंति, ते थोडा पहिं थोडिला, कीधी जे पालंति. १७४८ विगुणां पणि छंडइ नहीं, आदरीआं उमाडि, .... सुख - दुख सही पालीलीइ, हूं बलिहारी तह. १७४९ For Personal & Private Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी १२९ वलतुं सा सुंदरी भणइ, बलिहारी तोरइ नामि, बाहलाजी प्रीति पालवइ, ओ स्यु कहिउ सुजाण. १७५० जेहसिउं बाधउ जास मन, तें बीकिउ तस हाथि, छांङीतां छूटइ नहीं, सुख-दुख तेहनइ साथि. १७५१ तुज साथइ जु मन मिल्यु, वाहाला तेन कहाइ, तुज सिउं जेहवु नेहडु, तेहवु अवर न कहाइ. १७५२ मनसिउं जाणे प्रोतडो, जण जाणइ स्यु काम, सहसि अठोत्तर विण मिलइ, मनमां जपीइ नाम. १७५३ सही ते जण जण बोलडा, मन अवटावी आज, तुह्म स्यु कींधी प्रोतडी, ते स्यु त्यजवा काजि. १७५४ जे सज्जन अंगीकरिया, गुण जाणी अपार, ते सज्जन किम मेहलइ, दुरियन वचन विकारि १७५५ कति बीहीजीसइ लोक-भय, जउ मंडीसइ प्रीति, मनगमतूं जनभायतूं, बि न मिलइ अकांति. १७५६ लज्जा तु वाहाला किस्यां, वाहालां तु सी लाज, अक थंभइ किम बज्झिइ, सुंदरी दो गजराज. १७५७ लज्जह पेमह किउं मिलइ, तुरय सुचित्र वेउ, गणय अनाडी वेघडु, काहि न रेहिउ अह. १७५८ जिहां मन मानिउं आपणनु, तिहां मिलतां सी लाज, भरी सभामां सांढीउ, इश्वर राखइ आज १७५९ चीति पडी सी लोकनि, फिरि फिरि काढइ नीमेडि, जेहनूं मन जेहसिउं मिल्यु, ते न तिजइ तस केडि. १७६० मेहलाब्यां नहीं मेहलसइ, जेहसिउं जस अनुराग, तु कां दुरियन पापीआ, बारी करइ विदाघ. १७६१ जिहां वन तिहां पावक दहइ, जिहां डुंगर तिहां खोह, जिहां सनेहां तिहा रुषणां, हैडा म करि अंदोह. १७६२ कइ सिंथु कइ टालडी, कइ तावड कइ छज्ज, ओ छि अकठां नवि मिलइ, वाहलां कइ लोक-लग्न. १७६३ लोक अयाण अबूज छइ, परपीडा न लहंति, जेहन मन जेहसिउं · हुइ, ते ते विण न रहंति. १७६४ १७ For Personal & Private Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० प्रीति विछोडी सुगुण सिउँ, घर बाली कीरति करइ, जेविण जीवन रही सकइ तिहां मिलीइ सुवार, जोंवित कइ जण वल्लहां, हैडइ जोउ विचारि. १७६६ जयवंत सूरिकृत कुण राखइ लोक - लज्ज, ते मांणसडां अकज्ज. १७६५ दुरियन बोली न नेह टलइ, कांइ अधिकेरु थाइ, छासि संयोगि दुध जिम, दहीं रस अधिक सघाइ. १७६७ उत्तम वाघइ नोंच टलइ, दुरियन वचन सनेहि, वाइ उल्हाई दीवडर, अगनि अधिकेरु थाइ १७६८ जिम जिम दुरियन आवटइ, जिम जिम विदद्य लोय, तिम तिम सजन सनेहडु, अधिक वधारइ लोय. १७६९ दोखी नेह वित्रोडवा, अछता बोलइ दोस, उत्तम दुरियन बोलडे, हैउइ नाणइ रोस. १७७० दोखी लाख गमे लवइ, तुइ हूं वाहिडू नहीं, लोक हसइ जो कोडि, वाहाला नेह विछोडि १७७१ किमहि कुलाचल कंपीइ, सायर-जल सूकंति, तुहइ उत्तम बोलथी, न चलइ नागपाश बंधन थिकी, लोह - सांगलथी वाचा -बंध कुलीन निं, न चलइ जां बोलडे इम सार्थपति, पाम्यु घर जातां सुंदरि कहइ, जीव- प्रयंत. १७७२ अति वाहाला सुणि नेह स तु नीर तणी अहीय, हुइ जीव १७७३ आनंद, नेह - कंद १७७४ वहिला वली पधारयो, माया घरयो चिति, वरस समाणी अघ- घडी, तुण विण थासइ मित्त. १७७५ थापिणि महेलु जेहनी, बाधा आवु मित्त, मन-मणि मेहलिउं तुज कन्हई, गोरी जाणे नित्त. १७७६ मुज मनि राखिडं गरहणइ, सज्जन तुहइ धूरत, तु मन-मणि अहां मेहलीउं, मई जाणी तुण वत्त. १७७७ विसिउ, घणउ न जाणउं झंखि, तरसालूया, आपई आवइ For Personal & Private Use Only पंखि १७७८ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी १३१ ढाल २९ राग मल्हार इणि परि नेह करी नवु, सारथपति सुविचार रे, आवइ जाइ संकेतडइ, जाणी अवसर अवसर दोर संचार कि० १७७९ जोउ विषय सनेहडु रे, ते तु नवि गणइ गणइ मरणनु संच कि, माणस वेध विलूघडउ रे, ते तु नव नव करइ प्रपंच कि०...दुपद पोयणि परिमल वेधीउ, भमर न वेइ बन्ध रे, नेहई बंधा माणसां, ते तु दुषण जोवा अंध कि० १७८० जो. सगपणि वाहालूं को नथी, वाहलां हुइ सनेहि रे, डील तणु मिल छांडीइ, वनमा फुलडां फुलडां वाहलां होइ कि० १७८१ जो. सुंदरि अति धूरति थइ, सारथपति नइ संगि रे, पणि देखाडइ रायनिं, ते तु भोलिम भोलिम केरडु रंग कि० १७८२ जो. अवसर पामी ओक दिनि, गोरो करइ रूहाडि रे, मंदिरि लेइ आपणइ, वाहलां मूहनि मूहनि नगर देखाडि कि० १७८३ जो. सुंदरि बइसी मालीइ, जोइ नगर रसाल रे. राइ राइवाडीइं जतु, देखी चीतवइ चीतवइ हैअडइ रसाल कि० १७८४ जो. लीलाइं क्रीइं करइ, पापी अह भूपाल रे, हूं अंध-कुप तणी परइ, राखी दोहिलइ दोहिलइ पाताल कि० १७८५ जो. मन विरमिउं भूपालथी, सारथपति स्यु स्त रे, घूरत-लक्षण रायमां, जउ हूं वीचवु वीचवु तु खरी मित्त कि० १७८६ जो. वचन करु अक माहरु, जिमवा तेडु राय रे, हूं प्रीतूं मारइ हथडइ, वा० रायनिं रायनि चमकडु थाइ कि० १७८७ जो. गोरी गहिली कुणइ करी, बोलइ सारथपति रे, तूं प्रीसइ भूपालनि, वा० तूंहनि तूंहनि असी कुमत्ति कि० १७८८ जो. मुहु-मचकोडी मानिनी, बोलइ वचन विकार रे, भीरु सभावइ वणिकडा, तुह्यमा साहस साहस नहीं रे लगार कि० १७८९ जो कर कांपइ तुली तोलतां, बोलतां वलगइ जीभ रे, घरि छोरु स्त्री उपरइ, वा० हाटनी हाटनी पाडु रीस कि० १७९० जो. त्रंबक कठीउ नाहासरी, तेहनी जाणु विगति रे, वेची साटी क्रियाणकां, जाणउ हाटडइ वइसवा तणी रे युगति कि० १७९१ जो. For Personal & Private Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत कां कांटोथी उसरइ, भमरु केवडोआंइ, सज्जन माणस लोकथी, मिलइ तु वीहइ कांइ. १७९२ तुह्यनइ नेह तुह्यारडु, वाहालु छइ अपार, कइ अह्यारु खप नथी, कइ नेह छोडणहार. १७९३ पहिलु बोल न मानीउ, लाघउ मननु पार, राज करेयो वरि वरस सु, छेहलिउं अह्य जुहार. १७९४ भलू हवु ओक बोलडे, तुह्य गुण लहिउ अशेष, तुह्य सिउं बोलवा आंखडी, जु मनि होसइ तेख. १७९५ वाहालाइ बोल न मानीउ, जीवयो सदाइ काल, जेहसिउं हसीनइ बोलतां, तस किम दीजइ गालि. १७९६ ढाल ३० राग रामगिरि [ भाभानी देशी, मम करो माया काया. ओ देशी ] सारथपति मन डगमगिउ, सुणी सुणी गोरी केरा बोल रे, व्याघ्र-तटी रे ऊखाणडु, थयु थयु चिंतडू विलोल रे. १७९७ प्रेम लोउ दोहिलु वाहलां केरडु, लोपी लोपी जाइ नहीं लाज रे, प्रेम रे बंधाणां ले माणसां, करइ करइ कहु किसिउ काज रे....दुपद. बोलइ बोलइ सुदरी ससि-मुखी, वाहला आणउ काइ मनि मुज खेद रे, सनेह रीसिं रे जे तु बोलीइ, नवि थाइ ते सवि साच रे. १७९८ प्रे. दोहेलु म घरयो वाहाला चिंतडइ, तुह्यनइ देउ छउ माहरडा सम्म रे, हसीडां न हुइ वाहाला साचला, वहिडू वहिडू हूं तुह्य किम्म रे. १७९९ प्रे. तोरइ तोरइ करि दोरी हीरनी, मोरइ गलि घाली नेह-फांसि रे, जउ हूं ताणू तु हूँ मरु, जोउ जोउ चिंतडइ विमासि रे. १८०० प्रे. हूं सुखिणी सुखि ताहरइं, दुखि मुज दुख थाइ रे, वहिची लीधां सुख दुख तहां लगइ, कीधी कीधी जही लगई प्रीति रे. १८०१ प्रे. बुद्धि विशेखि अह्ये भोलवू रे, मोटा मोटा इंद्र उपेद्र रे, तु किसी माणस वातडी, कीडाला मात्र नरेंद्र रे. १८०२ प्रे. सारथपति इम सांभली, मानिउ मानिउ गोरी केरु बोल रे, मांदु थइ रहिउ घर भीतरि, जोउ जोउ कपट कलोल रे. १८०३ प्रे. For Personal & Private Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क)गारमंजरी साज थइ वली दिनि केतलइ, आविउ आविउ राज सभा मांहि रे, घणे दिन देखी मित्र आपणउ, पूछइ पूछइ राजन देइ सांइ रे १८०४ प्रे. माया रे उतारी दिन अतला, तु विण भाइ मनि माहरइ, निसि - दिन सारणि हैडलइ, घणे दिन तुह्यो रे पधारीआ, बंधवजी ते कुहु-न विचार रे, वीसारिउ हु है मजारि रे. १८०५ प्रे. हू तू हू तू सघलइ रान रे, ब धवजी ताहरइ वियोगी रे. १८०६ प्रे. तुज्झ रे. १८०७ प्रे. सेठ रे, तुझ मन कहउ किम रही सकिउ, अता दिन विण मिलई मुज रे, sis कहु डीलइ अति दूबला, भाइजी बलिहारडी नयन संकोची देइ मरकला, कोटवाली कहइ तव हू तुझ सेवक पाघरु, वसूं वसू तुह्य पाय हेठ रे. १८०८ प्रे. सहु साथइ अविचल नेह घरइ, अहवु अहवु सुजन आचार रे, चंदन चंद हुइ उजलां, चीतरिया सहिजि हुइ मोर रे. १८०९ प्रे. जे मनि मान्यां लै जेहनि, तै तु वाहलां वेगलडइ न होइ रे, लोक छानां मन परगटां, नितु नितु मिलण सजाइ रे. १८१० प्रे. कारण कृश-तणं सांभलउ, हूती हूती मुज असमाधि रे, यम - घर थकी पाछउ वलिउ, बंधवजी ते ताहारइ प्रसादि रे. १८११ प्रे. उछव कारणि तेह भणीं, बंधवजी ते वीनती अवधारु रे, भोजन कारण हुतरु, मोरइ मोरइ मंदिरी पधारु रे. १८१२ प्रे. परिवार साथि रे, आहिं अति राय नहुतरी, तेडी आविउ सुंदरि करीअ शृंगार ते, प्रीसवा आपणइ हाथि रे. १८१३ प्रे. ढाल ३१ राग सामेरी आंखलडी जेहनो अति अणीआलि, वर-चांदल चुढि भालि, वर्ली कूंकम गोरडे गाले, सोहइ श्रवण सोविन - जालि. १८१४ रुप कंठी ठवी मोतीनी जालि, अति जीणी कटि लंकालि, - पगि झांझरडां ठमकालि गोरी बांडली जेहनी अति लटकालि, अति कोमल कमल सुनालि, चालती जिसी चतुर मरालि, जिहां अतिहिं अमूलिक प्रहिरणि फालि, चंपक - अ सुकमालि, रसालि. १८१५ मयण करइ अति आलि. १८१६ मद भिंभल मयग चालि, कंठि सोहइ चंपक -मालि. १८१७ For Personal & Private Use Only १३३ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ जयवंतसूरकृत हठ मंडेइ अधर - प्रवालि, वर - चित्रित जे पटशालि, मनमोहन अति सुविशालि सा प्रीसणि आवी बालि. १८१८ करि सोविन करवी झालि, पुहुती प्रगट सभावि चालि, तिहां आसन मेहलियां ततकाल, प्रीसइ बिपहुर करेइ कालि १८१० अति सुंदर सोविन - थालि, सहू बइसइ हाथ पखालि मोदी आवी डालि कपूर-वासित मनगमती मसूरनीं दालि, जे सुरभित धृत भव-भूख शमई विकरालि, छूटी तिहां सरसीनां जिम हुइ घडनालि, जाणे जिम खलहल जल वहइ खालि सोविन - सालि. १८२० नीकालीं, धृत- नालि १८२१ वरसेइ मेह अकालि तिम प्रोसइ चित्त रसालि. १८२२ शत सालणे बांधी पालि, प्रीसइ सुंदरि सा पाताल, चित्ति चमकिउ ते भूपालि, सीस धुणेइ रूप निहालि. १८२३ ढाल ३२ राग केदार गुडी [ श्रेणिकराय हुरे अनाथी नीग्रंथ, अदेशी ] ते देखि भूपति चोंतवइ, पातालसुंदरि जेह, तिहां थकी किम आवी सको, मान मोटर रे पठइउ संदेह. १८२४ भूपालजी चिंतइ हैडा मजारि, देखी देखी प्रीसंति नारि, थयु थथु रे चंचल ते वारि दूपद, आंचली. पाताला धरि मेहली करी, हवडां जि आविउ अत्र, जे सार्थपतिनी कामिनी, ते तस नयन तिल सर्वप समी, अथ रूप लक्षण समां, दीसाइ सरखी रे रुपि विचित्र. १८२५ भू. दीसीइ सारथ बहूअ, दीसइ रे माणसां बहूय. १८२६ भू. ते वात निश्चय जाणिवा, भूपति करइ उपाय, प्रोसी जातां पूठिथी, नांखइ रे हो तीमननी छांट. १८२७ भू. ते धूर्त भूपति चित्र ही, चीतवइ हैआ मजारि, तु छइल पणि मुज आग्रलि, पय-रेखा रे सरि सविचारि. १८२८ भू. निज काज करवा सीयल, जण लहइ सज्जन मुग्ध, णि जमाया निम्मिया, नवि बोली रे विणासइ विदेव, १२८९ भू For Personal & Private Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अजाणतानी परि थइ, निज काज करवा सुजन ते, राजन्नजी रूचतु नथी, अथ वणिगने आहरडे, तुझ कइ कोइ वाहलां सांभरियां जे विना आहार न उतरइ, संदेह विस्मय पर थकी, तंबोल वस्त्र लेइ करी, शृंगार मंज भूपत्तिनइ पूछेइ, मांहि रे अजाण सहोइ. १८३० भू. मन भोजन्न विख सम थाइ, नयणां रे किम भराइ. १८३१ भू. प्रिय परम प्राणाधार, इम हसइ रे वचन विकारि. १८३२ भू. अति त्वरित ऊठी राय, निज ते वस्त्र छंडी कामिनी, मुहु ढांकी सूती सेजडी, मंदिर रे वहिलडु जाई. १८३३ भू. ढाल ३३ राग : मल्हार ( श्रेणिक राय हुं रे अनाथी नीग्रंथ, ओ देशी ) पहिरी अवर तद्रुप रे. तव आवीउ भूप रे. १८३४ वंचिउ राय सुजाण रे, चडी प्रमाणि रे.... दुपद जउ जउ धूरतनी कला, जे मान हूंती वातडी ते खाटि रे. १८३५ जे. तालां सविं उघाडोयां, मनि शंशय माटि रे, आवी जोइ नत्र सुंदरी, सूती दीठीअ जंभा खाती हाथडे, उठी चोलती अंग सवे मचाडती, उठी राजन वस्त्र मेहलावी आगलिं, बीजां देइ भरतार रे, तीमन के छांटडां, जेइ वार सुवारि रे. १८३७ जे. आंखि रे, देखि रे. १८३६ जे. बिंदु मात्र दीठउं नहीं, भागु शंशय चिंति रे, शीलवती ए सुंदरी, अहों किसी नहीं भ्रंति रे १८३८ जे. तिहांथी निःशंकितपणइ, वर भोगबइ भोग रे, राजन अति रातु थयुं, कुहुनु नवि लहिउ योग रे. १८३९ जे. १३५ गर धरती अति धणउ, मन मांहि सा नारि रे, सारथपति नंइ इम भगइ, वाहालाजी अवधारि रे. १८४० जे. परवसि रहि राचनइ, वली भूमिगृह मांहि रे, ar अवसर मिली न शकुं श्रेोडु मिलण प्रवाहि रे. १८४१ जे. For Personal & Private Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ जयवंतसूरिकृत संज्ज थाउ तिणि कारणइ, आपण जेइई परद सि रे, यौवन-लाहु लोजीइ, दिन गया नव लेसि रे. १८४२ जे. कायर उत्तर आपिवा, तुहइ कहि रे अनंग रे, राजन किम जाणइ नहों, सुणि सुगणि सुरंगि रे. १८४३ जे तु वलतूं सुंदरि कहइ, सुणि प्राण-आधार रे, मोकलावो आबू रायांन, तु मुज मति सार रे. १८४४ जे. व्यापार सधलु संवरु, लेउ ग्राह्य-कयाण रे, प्रतिबंध टालु लेाकनु, सज करु सवि वहाण रे. १८४५ जे. कायर पणि नेह वसि थकी, करी सकल सजाइ रे, राजननई मेकलाविवा, आविउ कृतृम भाइ रे. १८४६ जे. कृतृम-लेख देखाडीउ, माय-ताय आलापि रे, राजनजी अह्य चालिया हवि शीखडी आपि रे. १८४७ जे. दुहा पंख पसारी पाहुणा हंसा उडणहार, सरोवर सनेहा आपणा, समरेयो के वारि १८४८ मात-पिता जोइ वाटडी, राजन दिउ आदेश, आव्या दिवस घणा थया, हिवि जासिउं निज देस. १८४९ वचन सुणो राय गहिबारउ, सजल हूआं नयणांइ, करवत नोंपरि अति दहइ, बंधव तुज वयणांइ, १८५० माया मांडी ति तिसी, बंधवजी मुज साथि, ओह अह्मारु जीवधू, जिम आवइ तुह्म साथि१८.५१ जउ तुह्मो चंचल चित्त हता, तु का मांडी प्रीति, अह्म सिउं वइर हतू किसिउ, जे अवटाडिउ चींत. १८५२ मि जाणिउं मंडी जिसी, तिसी पालेसिउ प्रीति, जउ जाणत खोटारडा, तु हूं न मिलत भीति. १८५३ प्रीति करी जे परिहरइ, नीसत नइ निस नेह, वइरोथी अधिकु देहइ, नितु अवटावइ देहि. १८५४ सुरयनिं नितु अस्थमण. चंद कलंकी किद्ध, वहालां तणा वियोगडा, दैवइ दुखण दिद्ध. १८५५ For Personal & Private Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंज हे करतार वरांसडु, मोटु छइ तुज मांहि, वहालां माणस मेलवी, करइ विछोह प्रवाहि. १८५६ वलतु सारथपति भणइ, जिहां संयोग वियोग तिहां, तुझ स्यु बांधी प्रीतडी, तुझइ मोकलावी जतां, भलि संतरि आव्या, घणी उपार्जन किद्ध, तुम सरखां सज्जन मिलियां मन मनोहर सिद्ध. १८५९ प्रीति मिली तुझ सिउं खरी, रखे विसारु चित्ति, जिम वाधइ अधिकेरडी, ते परि करयो मित्त. १८६० दिन दिन हुइ वाघतो, तेहजि प्रीति प्रमाण, क्षणि वाधइ क्षणमां घटइ, ते प्रोतिं स्यु काम. १८६१ अवधारि राजनजी अहवी गति संसार. १८५७ अवर न कोइ सु होइ, हैडइ दुख न समाइ. १८५८ इतर वाहाण सरावलां, सज्जन तणा सनेह, पहिलू हुइ थोडिला वाघइ छेहि . १८६२ पछइ आसो मेहा करवडा, छेहि थोडा पाहिलं घणा, नीच नेह - विलास, वेणी वास अवास. १८६३ जनम लगइ वहिडइ नहीं, कोंधी जेहसिउं प्रोति, दिन दिन वाघइ चंद जिम, अहवी उत्तम रीत. १८६४ छेहईं थोडी धुरिं घणी, चांपी नीरस थाइ, अहवी मठी सेलडी, पणि प्रोतडी न कहाइ. १८६५ उछां मांणस प्रीतडी, सायर तणा कलोल. क्षण वाघइ क्षण उसरइ, मांडो न रहइ निटोल, १८६६ पय छंडइ महुरप्पणउं, छासि ज साथि मिलंति, दुरियन वचनि नेह तिजइ, ते मांणस नवि हुंति. १८६७ सज्जन दुरियन बोलडे, अधिकेरु मिलति, छासि संयोगइ दुध जिम, दहो-रस अक भलंति. १८६८ दहों अवगुण अक छंडीइ, जउ मंडीजइ प्रोति, मथतां मथतां नेह त्यजइ, नींच तणी ओ रीति. १८६९ प्रीति न कीजइ तेहवी, जेहवी जल कमलांइ, कमल मरइ जल सूक्तइ, जल न धरइ मन मांहि. १८७० १८ For Personal & Private Use Only १३७ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ जयवंत सूरकृत सारस सरोवर अलि कमलांइ, हंसा कमल सुगंध, अह सवारथ मित्तडी, चकवी अनइ दिणंद. १८७१ चंद चकोरह सायरह सूरयनई कमलांइ, दीठिंथी मन उल्लसइ, नयण सनेह कहाइ. १८७२ मेह गजंति मोरडा, पामइ अति उल्लास, अ निसवारथ प्रीतडी, दीठिं हुइ विलास. १८७३ आंबा-वन नइ कोकिला, बप्पीहा नइ मेह, तेह विण न मिलइ अवर सिउं, सज्जन तणा सनेह. १८७४ राती कांबलिनी परइ, कोंजइ प्रीति सुचंग, बइठउ अविहड रंग. १८७५ उखेडिउ नवि उखडइ, सज्जन तणा सनेहडा, काला- उन समान, वरस सु सई जोइइ, तुहइ तेहवु वान, १८७६ दिणयर नई दिननी परई, पाली जइ प्रतिपन्न, दिवस विना सूरय नहीं, दिन नहीं दियर विन्न. १८७७ तेहवा कीजई मित्तडा, जे अविहड परिणामि, किमहि न हुइ पर- मुही, जिम भींतईं चित्रांम. १९८७८ सज्जन कीजइ तेहवा, जेहवा अडागर-पान, जिम भावइ तिम चाँपीइ, तुहइ रंग निधान. १८७९ विरला जाणइ प्रीतडी, विरला करी ते थोडा पहि थोडिला, कीधी ज लहति, पालंति. १८८० दीठइ बोलावइ करी, नितु नितु के मिलणेण, इणि परि वाघइ प्रीतडी, जिम वेलडी जलेण. १८८१ दूरि गई अवराह कई, जस हैडु न चलेइ, तेहजि सारी प्रीतडी, परिचय अवर कहेइ. १८८२ अणदीठि अति देखवाइ, दीठे अण बोलंत, इणि परि नेह ट ंति १८८३ अति मान विदेसि गईं, महिलय - जगह अदंसणि, अई-दंसणि णीयस्स, दुरियन बोलि नेह टलइ, मुकखुरस य नियस्स. १८८४ जेहवी कोमल आंखडी, तेहवी प्रीति कहाई, तिल-तुस-मित्ति विप्पअर, क्षण मांहि कुरमाई. १८८५ For Personal & Private Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गारमजरी किशलय रत्नां अहिय कुसुम, फल रत्ता महि रत्त, दाडिमनी इरि सुजनना, वाघइ नेह नित नित. १८८६ राजनजी एणी परि, घणे प्रकारि सनेह, जे परिजाणउ रुपडी, चित्रि धरयो तेह. १८८७ रखे वीसारु चित्तथी, माहारा सम छइ मित्त. थपिणि मोहली जीवनी, समरेयो नित नित्त. १८८८ रखे अहवु जाणता, जे छं हूं परदेसि, जे मनि मान्यां आपणइ, तेहनु हीइ - निवेस. १८८९ अंबरि गाजइ मेहलु, तलिथी नाचइ मोर जे जेहना मनमां वसिया, ते तेहनइ नहीं दूरि. १८९० ते किम कहीइ वेगला, जे मन मांहि वसंति, रात्रि - दिवस जव संभरइ, तव हैडुं ते वेगलांथा दुकडां, जेहसिउं चित्त मिलंति, ते दूकडांथा वेगलां, जे मन मांहि न हुंति. १८९२ विहसंति. १८९१ कांइ अपराध करिया हुइ, अति परिचय प्रेमह थकी, बंधव वीसारु रखे, एता दिननी प्रीति, को अवसरि संमारयो, धरयो अह्मनि चोंति. १८९४ खमयो अमीणा दोस, चित्ति म धरयो रोस. १८९३ उत्तम जे पालाइ सदा, धरि 'इ' कार करिजु, अंतिम अक्षर परिहरी, अह्मनइ बेहुंअ धरिजु. १८९५ मानव मोहन वेलडी, आदई कार एकार, अंतिम अक्षर दुरि करि, धरयो हैया मजारि. १८९६ तूं भूपति इम भणइ रे, ते वाला किम वोसरइ, किहां सायर किहां चंदल, सजन सनेह नवी वीसरइ, बंधव सुणी वत्त, जेहसिउं लागू चित्त. १८९७ किहां मेहां बप्पीह, वीसारता निसि - दीह. १८९८ कीधां जूआं न थाइ, जे सज्जन मन स्युं मिलियां, ते किम वोसारियां जाइ. १८९९ लूणह-पाणी होइ मिलियां, बंधव तूं जिणि देसडइ, तिहां जाणे मुज प्राण, सुनी रडवडइ, किसी न दोसइ सान. १९०० काया For Personal & Private Use Only १३९ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० जयवंतमूरिकृत सज्जन सहिजिं चोरटा, चोरी करइ नित नित्त, जाइ छइ अह्म देखतां, चोरी अमारां चीत्ति. १९०१ रागवती मन मांडवइ, ऊगी प्रीति-लयांइ, नेह-जलइ नितु सींचयो, जिम नवि सूकी जाइ. १९०२ तुह्म म जाउ जउ कहूं, तु अमंगल होइ, जाउ कहितां जीभडी, नीठर शत-खंड होइ. १९०३ गरुअडि बइसु जउ कहूं, जिम रुचि अदासीन, वाहलां मांणस चालतां, उतर दि किम मन्उ. १९०४ जल भरि नयण न जोइ सवइ, गदगद कंठ सशोकि, हइडु गहिंवर थइ रहिउं, वाहलां जातां शोक. १९०० माया उतारु रखे, गया पछी परदेसि, रे सज्जन गुणवंत वली, तूंह नि कहोइं मिलेसि. १९०६ कुशलखेम पंथइ हयो, वहिलां वलण करेउ, मनवंछित कारय करु, को अबसरि समरेउ. १९०७ तुह्ये सज्जन गुणवंत छउं, मिलसइ सजन अनेक, पणि अह्य हैअडू तुह्म विना, ठरसइ नहों किहिं अक. १९०८ भमरांनंइ फूल ज घणां, सरोवर घण हंसाह, मित्त घणा सुमाणसह, परदेसडइ गयांह. १९०९ सार्थवाह उवाचठामि ठामि दीसइ घणां, नदीआं वावि तलाव, मेह विना बप्पीहडा, कहि न करइ मन भाव. १९१० वनि वनि चंदन-तरु नही, सरवरि सरवरि हंस, ठामि ठामि सज्जन नहीं, जेहथी पुहुचइ हुँस, १९११ सरवरि सरवरि कमल छइ, निरमल नीर अपार, पणि मानस विण हंस न ठरइ चित्ति लगार. १९१२ वन-बाडी तरुयर घणा, पणि कोइलि नि अंब. जेहनि मनि जे वल्लडु, ते विण तेह निरत्त. १९१३ सज्जन सभावइ भमरलु, ठामि ठामि बइसइ, पणि मालति विण हसनू, न ठरइ चित्ति लगार. १९१४ राजन तुह्मो सुजाण छउ, मिलसइ मित्त घणांइ, गुणवंता अरथी घणा, रखे वीसारु तांइ. १९१५ For Personal & Private Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी राजा उवाचअक जि हंसि सरवरह, जे शोभा जग मांहि, बगला कोडि गमे मिलइ, तुहि न नयण भराइ. १९१६ सार्थवाह उवाचजिम सरोवरनां हंस विण, दिन झरतां जाइ, तिम सरवर विण हंस पणि, झरी पंजर थाइ. १९१७ सजन सीलाया-सुहेडी, वैर सुभाषित सारि, ओ मेहलंतां दोहलां, वेध व्यसन संसारि. १९१८ राय प्रति इम बूजवी, सुभ दिनि शुभ महूंरत्ति,' प्रवहण पूरी सज थयु, जावा सारथपति. १९१९ ढाल ३४ राग केदार गुडी सारथपति हवइ सज थयउ, जावा जाव मणि-दीपगामि रे, राजन आविउ रे मोकलाविविा, पूठइ पूठइ सायर तीरि रे. १९२० राजन करइ मोकलामणी, वरसइ वरसइ आंसूडानी धार रे, सजन जातां परदेसडइ, हुइ हुइ दुख अपार रे. १९२१ दुपद. राज. आंचलि. एणइ समय भूमिहरमां थकी आवी आवी सणग-दूआरि रे, सुखासनि बइसी राय, आगलइ आवी आवी करीअ शंगार रे. १९२२ राय प्रति धूरति इम कहइ, कीधु कीधु घणउअ प्रसाद रे, राजन देस विदेशडइ, रहिसइ रहिसइ अझ जसवाद रे. १९२३ तारा तारा चरणप्रसादथी, रहियां रहियां सुखइ अणि गामि रे, कीधी कीधी घणी रे उपार्जना, सीधा सीधां चिंतित काम रे. १९२४ राजन तुह्म बहूमानथी, कीधउ कीधउ जे अपराध रे, खमयो खमयो ते सवि दोसडा, करयो करयो वचन अबाध रे. १९२५ दूहा अतिहिं सनेहां संग थकी, जे अभ्मीणा दोस, खमयो सवे अपराघडां, मित्त म धरयो रोस. १९२६ सज्जन सनेहां रूसणइ, जे उलंभा दिध्ध, वीसरतां न वीसरइ, जे मन मांहि प्रसिद्ध. १९२७ १. श्रुभ हुरत्ति २. साग्य For Personal & Private Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ जयवतसूरिकृत सार्थबाह उवाचसजन सदा संभारयो, छेहलिउ अह्य जुहार, न जाणुं मिलसुं कहां, विसमुं विहि-व्यवहार रे. १९२८ देशी पाछिली इणि परि त्रणि जण परवरियां, पुहुता पुहुता सायर-तीरि रे, राय प्रति करीय जुहारडु, सारथपति अति वीर रे. १९२९ सारथपति अनइं कामिनी, बइठा प्रवहण मांहि रे, प्रहवण पूरियां परिवार सिउं, चालियां चालियां सायर मांहि रे. १९३० सुंदरि सारथवाह सिउँ, हुइ खटमास रत्त रे, प्रवहण पूरियां जाइ सावारि, सुणयो सुणयो हवइ हवी वात रे. १९३१ बंधव सारथवाहनु, नाम तिसिउं परिणाम, नामि सुकंठ सुकंठ छइ, गीत गुणई अभिरांम. १९३२ जांणइ ऊपजि रागनी, भाखा रतुनइं वान, तान मान लय मुर्छना, राग वणउ निधान. १९३३ प्रिय दूती प्रेमह तणी, सेनानी मयणांह, राग जयउ आनंदमय, जे मंडन वयणांह. १९३४ भमर छयल्लह मुह कमलि, गोरी मानस हंस. हैडा भावह पोषाणउ, किज्जह गीय प्रशंस. १९३५ दुखीयां दुख वीसारणा, केलीहर सुखीयांह, वाहलां विरहीय उल्हवण, बलि किजुउ गीयांह. १९३६ दुखीया दुख वीसारणलं, 'मन ठारवणउं मित्त, दुखीया संभार, गीय गति अह विचित्र. १९३७ राग न वसीया मुहि जस, गीइ भेदिया कन्न, वा पइसैवा विवर ए, एहवू' कहइ सुजन्न. १९३८ आघा दुख-पंजरि ठिय, अध हुउं चउभागि, कांइ नीसासे कांइ नयणले, कांइ दूहे कांइ रागि. १९३९ गाहा गीय सुमाणसिं, वेधिया झुरी मरति, घण पइठउ जिम अंबमां, सूकी झोणा हुंति. १९४० बाहलां विरह वीसारणउं, जु जगि राग न हुंति, तु शरणां विण सरह जिम, हैअडूं फाटि मरंति. १९४१ सायर मांहि वेरडी, भलिं सरजी किरतार, दुख-सायर संसारमां, कीघउ राग-आधार. १९४२ For Personal & Private Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी १४३ गीय-रस जाणइ दुन्नि जण, हरिणानइ हरिणांखि, जीवित आइ हरिणला, तनु अपइ हरिणांखि. १९४३ गीय सुणीनई रंजीया, जे अप्पइ निज प्राण, माणस पहि ते मृग भला, नहीं मांणस अजाण. १९४४ जेणि न जाणिया गीय-रस, गाहा गुठि न किद्ध, ए माणस जंबारडु, तस कां देवइ दिध्ध. १९४५ जे दुखीयां प्रिय विरहीयां, को ठारवण न होइ, गीत सखाइ तेहनइ, मन दुख वहिंची लइ. १९४६ अति गुणवंत सुकंठ ते, देअर नइ संबंधि, हसतां बाघउं हैअडलू, जिम लोढानी संधि. १९४७ सुंदरि चिंतइ चित्तमां, विधन समाणउ कंत, एहनइ हवी सुकंठ सिर, विलसू सुख अत्यंत. १९४८ सोह बकरिउ वध करउ, मारइ मथगल मत्त, कंत हणइ वली आपणउ, गोरी पर-धरि रत्त. १९४९ तनु-चिंताइ सार्थपति, उठिउ तेणी रत्ति, सुंदरि ते अवसरि लही, सायरि पाडिउ कंत. १९५० पडखी वेला केतली, कीघउ सबल पोकार, कृतृम विलपइ कामिनी, है है विषय विकार. १९५१ ढाल ३५ राम मारुणी ( काशीथी चाल्या महाराय रे, ओ देशी) वली वली विलवइ नारि रे, वाहाला वीनतडी अवधारि रे, हूं तु एकलडी निरधार रे, तू तनु प्राण तणउ आधार. १९५२ दुपद...आंचली नाहनि मेलु रे मालु रे. ए तु प्रीउ विण किसिउ संसारि रे, मूहनइ न गमइ सोल-शृगार रे, मुज भूषण सघलां भार रे, मुहनइ तुज विण सरव असार रे. १९५३ तू तू पूरव-प्रेम संभारि रे, ए तु करसइ कुण मुज सार रे, वाहाला तुज विण पीडइ छइ मार रे, ए तु दहइ मुज विरह विकार रे. १९५४ For Personal & Private Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ जयवंतरिकृत वाहाला वेघडु लाइ म मारि रे, तू तु वाहि न वरि तरवारि रे, कंता कइ ए दुःख निवारि रे, मूहनइ न गमइ अन्ननइ वारि रे. १९५५ तू तु जोइ न चिंति विचार रे, ए तु उत्तम नुहइ आचार रे, जे वचनइ कीध उच्चार रे, किम तिजीइ तेहनीं सार रे. १९५६ वाहलां तू मुज मननु हार रे, मुज मूकइ मदन-प्रहार रे, पापी विरह करइ संहार रे, तू तु ए दुख-भंजणहार रे. १९५७ कुण आगलि करुंअ पोकार रे, ए वेदन गिरुइ अपार रे, एतु दुतर-सायर पार रे, दोहिलु दैव तणउ ब्यापार रे. १९५८ वाहाला ए मज कुण ग्रहचार रे, कह को दरियन वचन-प्रचार रे. एवी वाति कोइ न माहार रे, दोहिलु दैव तणउ ब्यवहार. १९५९ मुज विख सम थाइ आहार रे, वाहाला तु ज विण घोर अंधार रे, तू तु बोलि-न प्रीउ एक वार रे, जूरी जूरी हूं थइ छाहार रे. १९६० वाहला पूरव-प्रीति वधारि रे, मुज मनि वहइ करवत-धार रे, मूहनि दुख-सायरथी उतारि रे, मुज तनु विरहि म दारि. १९६१ पापी धिग धिग ए किरतार रे, काइ कीधु मनुस्य-अवतार रे, मि न खमाइ विरह लगार रे, वाहालु पीडइ खइर अंगार रे. १९६२ काहे वीसारिआ तमसु प्यार रे, हूं वली वली करु झुहार रे, मेरा गुनह काया वींसारि रे, हूं तु याउंगी तोरी बलिहारि रे. १९६३ तुज आणइ भवि भरतार रे, बीजा कोइ न गमइ गमार रे, वाहाला मुज मनि तूंह मंदार रे, बीजा आक तणा अंबार रे. १९६४ तं तु अधवचि नांखी रहित भार रे, दीधउ आशा-वेलि कुठार रे, वाहाला तुज विण नयर कंतार रे, मनि अवडु न धरीइ खार. १९६५ मुज घडी एक नहोंअ करार, पापो पीडइ विरह-तुखार रे, मोरू प्रीउडु जिम सहिकार रे, हूं कोइलि करु'- कुहु-वार रे. १९६६ वाहला चडु चंदन चीर रे, मुज न गमइ अन्न नइ नीर रे, शीतल-मलय समीर रे, मोरु झंखर थयुं सरीर रे. १९६७ तूं तु यौवन-फल तणउ कीर रे, तूं तु सुरत-समर तणउ बोर रे, हूं वोटी तू नर-हीर रे तूं तु गिरुउ गुण गंभीर रे. १९६८ पगि पगि निगड समां मंजीर रे, वागइ विरह तणा वली तीर रे, एणइ नयणे नावइउ हीर रे, जीव बांधउ तुज सिउं मीर रे. १९६९ तुज नावी हैडइ महिर रे, मुज धरणी तू दिइ वहिर रे, वखाउं वाहाला विण जहिर रे, मि न खमाइ विरहनु कहिर रे. १९७० For Personal & Private Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी दुख-सायर वाघई लहिर रे, मन माहइ गाजइ गुहिर रे, वली डील वलूरइ नहरि रे, आछेटइ सघलूसयर रे. १९७१ मोरइ तनिथी उडी गयु रुहिर रे, नोंसासे उन्हा अहर रे, युग सरखा थाइ मुज पहुर रे, क्षण माहइ आवइ तुर रे. १९७२ काइ टालु ओ मुज विहुर रे, तस दिउगी सोविन-महुर रे, नवि भावइ अन्न सुमुहुर रे, विरहानल दाजइ ऊर रे. १९७३ जिम समरइ समरस शूर रे, जिम चकवी समरइ सुर रे, जिम क्षुधातुर वंछइ कुर रे, जिम भोगी केसर कपुर रे. १९७४ तिम समरं तुज गुण-पूर रे, वा० अबला सिउं सिउं जोर रे, इम कांइ जइ रहिउ दूरि रे, तू तु मनह-मनोरथ पूरि रे. १९७५ हूं मयणइ कोधो चूर रे, वा० वाघइ विरह-अंकूर रे, तू तूं इम कां करइ असुर रे, तुज विण गो मुज नूर रे. १९७६ हूं मातीनु तु दोर रे, गलइ साही राखिउ जिम चोर रे, किम जाइसि मुंहनि छोरि रे, वा० आशा-पाश म तारि रे. १९७७ ढाल ३६ राग मूपाली (पीउ आपो रे महारो पुत्ररतन्न, ओ देशी ) कतह मारु सायरि पडीउ, इम कां दैव ज नडीउ रे, हैडा साथई हूंतु जडीउ, क्षणमां किम ऊजडीउ रे. १९७८ कांमणडू काइ कंतइ की चिंतडलू चोरी लीधु रे, आशा-वेलइ करवत दीधू, अकइ काज न सीधु रे....दुपद० हैडा मांहि आस घणेरी, वालिंभ हूती तेरी रे, दैव तणी गति कां केरी, ते सवि नांखी फेरी रे. १९७९ कंतह मारू दोस ज काढउ, इम कां थइ रहिउ गाढउ रे, तूं वैश्वानर दीसइ टाढउ, वहालां सिउं सिउं ताडु रे. १९८० सुणो कोलाहल अति दुखकारी, धाइ आव्या पाहरी रे, नीजामा जोइ नीर मजारी, सुंदरि रठती वारी रे. १९८१ जोतां जोता शृद्धि पामी, कुणहि न दीठउ स्वामी रे, असती मरण पामेवा थाइ, सहूई राखी साही रे. १९८२ For Personal & Private Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ जयवंतसूरिकृत ढाल ३७ राग धन्यासी (भले रे पधार्या तुहमे साधुजी, ओ देखी) इणइ रे अवसरि राखी सुंदरी, पडतो पडती जलनिघि मांहि रे, सहु रे सुकंठादिक इम वीनवइ रे, तू अह्म स्वामी तणइ ठाइ रे ९९८३ लक्षण रे धिगू धिग असतो केरडां रे, तिजीउ तिजीउ राजन कंत रे, सारथ रे नायक सायरि नांखीउ रे, अहवी अहवी स्त्रीना वृत्तत रे... दुपद. वनिता साथइ कोइ म राच अहनु रंग-पतंग रे, कामिनि चूकी जे अक कंतथी रे, तः इ हुइ बीजइ किम रंग रे. १९८४ मदमंत रे कामालीसा कामिनी रे, वि इ विलसइ सुंकंठ साथि रे, मनमां रे चिंतइ सोई सुकंठजी रे, अहनु अहनु न कीजइ वोंसास रे. १९८५ छंडिउ रे लीला लहिर भूपालजी रे, छांडिउ सारथवाह रे, बनिता रे ते सिउँ होसइ मुंहनइ रे, देसइ देसइ अवसरि दाह रे. १९८६ मनसिउं रे विरमिउ गुणवंत तेहथी रे, विलसइ विलसइ मन विण भोग रे, जिम का कारागृहमा राखीउ रे, जांणइ जाणइ तेहवु संयोग रे. १९८७ अहवइ रे सारथपति सायरि पडिउ रे, कांइ कांइ करम-संयोगि रे, पामिउ रे किहि अंक प्रवहण-पाटीउ रे, जिम विरहो प्रिय-संयोग रे. १९८८ कांइ रे यभ संयोगि पाटीउ , लागुं लांगुं सिंहलद्वीपि रे, सारथ रे नायक तव ससतु रे fइ चिंतइ हैडा मझारि रे १९८९ आभा केरी छांहडी, वीजलडी, तेज, क्षणमा हुइ विश्राल जिम, तिम कामिनि केर हेज १९९० जाणिउं तू गुणवंति छि, तु मई मांडी प्रोति, क्षण अक रंगपतंग नउ, अहवु नाविउं चींति १९९१ तूं अविहड जाणी हती, वाहालो वहिडी कांइ, जस खालइ शिर कांकीउ, ते का छेदी जांइ. १९९२ जु तुमे कीया सनेह, तु कां बिछोहा दाखव्या, नाउ वाहलो मूं काइ, करवतडी आपइ गलइ. १९९३ अंब न हुइ आंकडु, राईणि नुहइ निंब, उत्तम तु वहिडू नहीं, नीरि न बुडइ तुंब १९९४ Jain Education Interational For Personal & Private Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी १४७ सुखमा निगुनां च माइ, पांड कान् पावि, ते सम्जन मुख देखीबा, नितु दिगयर डगंति. १९९५ कसतां कांसा कस नहों, दीसइ सोविन वन्ना, लागु हैया भरुसडु, जव गुण लहिया सुजन्न. १९९६ तिकां सरजिउ देब रे. उछां साथि सनेह. धडीय न लागइ छांडतां, जिम कातीना मेह. १९९७ सुगुणां साजन थोडिल, जेहमिउं कीजइ नेह, निगुणां घरणी-तलि घणां, पगि पगि आपइ छेह. १९९८ भमरु बइठ उ भोलपणि, सींबलि देखि सुरंग, जव जाणियो गुण सेवतां, तव हुउ मन-भंग. १९९९ मोती तणइ वरांसडइ, कांकरा चिणइ हंस, सज्जन तणइ भोला बडइ, कीध कुमाणस संग. २००० जउ दीठ मन तोहरु, तु मि कीउ सनेह, पहिली माया दाखवी, हबई कां आपिउं छेह. २००१ नेहा कीजइ तेतला, जेता निरवहिवाइ, नाउ पर संतापीइ, मेहली आदरीआंइ. २००२ वाहाली मुजसिउं बोलती, जोती नेह नयणेहिं, मुज कारणि सहूं वंचती, ते किहां गयु सनेह. २००३ भमरइ जाणिउं फुल ओ हसइ सदाइ सुरंग, मन आशा मनमा रही, क्षणमां थयु विरंग. २००४ । सजनीआ थई ते करिलं, जे वइरी न करत, प्रीति-ढंढेरा जगिदीआ, भोंतरि जीव बलंति. २००५ धरि आडंबर कां करइ, जउ नही निरवहि नार, बइरी न करइ ते करिउ, हैडइ करवत-धार. २००६ सेोगत मन साचनुं करिउ, सज्जनि त्यजता नेह, करतां मन हूंतू जूउं, जूउं देता' छेह. २००७ ताहारइ मनिसिउ ऊपनु, सिउं वसीउ मनि दोस, ते मन तेह सनेहडा, छांडो आणिउ रोस. २००८ इछो नयण-मेलाबडउ, मेहलंतां जीवि मेहनाइ, जिहसिउं रंग रम्या सइ, ते कहु किम मेहलइ. २००९ माणसडां नवि धीरीइ, बाहिरि देखि सुरत्त, वरि अंक बरस विलंबीइ, जोइ दीजइ वित्त. २०१० For Personal & Private Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ जयवतमूरिकृत . फटि रे पापी हैअडला, नीसुत नाबइ लज्ज, माणस विरमियां चित्त सिंउ, तेहनी करि लालच्चि. २०११ तीह उलंभा दीजीइ, जेहसिउं आगलि काम, जे मनमाथी उतरियां, नवि लीजइ तस नाम. २०१२ उछां चित्त न चालीइ, वरि खमोइ दस दोस, इम करतां जह नेह तिजइ, तो तिजीइ तस सोस २०१३ भागी डाल न वलगीइ, नवं कीजइ अंदोह, चित्ति विरतां माणसा, मनि नवि घरिइ मोह. २०१४ ढाल ३८ राग धन्यासी (पहिल माणस मोह करइ, ओ देशी) सारथपति इम चोंतवइ रे, है है अधिर संसार, का कहिं नहीं बल्लहूं रे, कुहुनां स्त्री-भत्त रे. २०१५ तूटक कुहनां स्त्री-भरतोर सगा नइ, कूडु ए संसार, जे स्त्री कारणि पातक कीचूं, तेहनु एह सकार, पोढउ पृथिवीपति मि वंचिउ, मित्त-द्रोह वली कीध, वोसासघात कीधउ चली जेहनि, तणइ दुख दोध. २०१६ मरणां भय न धरि, जस कारणि नाणी कुलनी लाज, नरकि जवानउ बोले ज दीधु, कीधा घणा अकाज. रागइ प्राणी दोख न देखइ, दुखण गुण करी जाणइ, जे जेहथी निरमइ ते तेहनां, अछतां दुखण आणइ २०१७ विश्व थकी मन विरमिरं रे, तूटा बंधन पास, एणइ अवसरि गुरुजी मिलिया रे, बुजवइ वचन विलाप. २०१८ बुजवइ वचन विलास वाणी, भव्य प्राणी उल्लसइ, जिम ग्रीष्म तापइंया चतु(२) चातक, मेह देखी मनि हसइ, आगइति वल्लभ दूध उजवल मांहि, साकर जिम भलइ. जे सुणन हैडइ सांभरइ, क्षण मांहि वाहलां ते मिलइ. २०१९ सहिगुम दिउ उपदेसडु रे, . कुडउ एह संसार, नेह सवे छइ कारिमा रे, माया दुखु भंडार. २०२० For Personal & Private Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धंगारमंजरी १४५ तूटक माया दुख भंडार सगांनइ, नेह (स)वे छइ कारिमा, जस काजि जे नर आवटइ, ते मोह नाणइ चित्तमां, संयोग सहुणा सरिस सायर लहरि चंचल घन इहां, कुश-अग्नि जलबिंदु सरिस जीवित, मोह घरीइ कुह किहां. २०२१ जस कारणि नर दुख घरइ रे, नव नव करइ उपाय. प्रेम गहिलु प्राणीउ रे, छडइ मायानइं ताय. २०२२ तूटक माय ताय बंधव सुत स्वामो, जे अति वल्लभ सुहुद, वनिता वसिथी सर्व ऊवेखइ, वलो करइ पातिक-वृंद, कामिनि प्रेम तणइ रसि रातु, छडइ बंधव-नेह, ते पणि वनिता हैडइ नाणइ, छेहडइ आपइ छेह. २०२३ को कहि नथी वल्लहु रे, ठालु म धरसि मोह, भू उपरि कुण न गयो रे, इंद नरेद्र समूह. २०२४ तूटक इद्र नरेंद समूह गया रे, लोला लहर भूपाल, दानी मानी चतुर विचक्षण, वइरीना जे काल, त्यागी भोगी न्याइ ठाकुर, जस कीरति जग बोलइ, ते पाण नयणा बार पधारिया, तुहि न प्राणी बुजइ. २०२५ जे वाहलां विण घङीय न जाइ, ते विण वरसह जाइ, मोटा मोटेरा जिनवर सरखा, ते पणि हवा कहिवाइ, इम संसार असार ज जाणी, जउ मनि कांइ न्यान हुइ, धर्म करतु वलो भवंतरि, भव-भय दुख जिम न हइ. २०२६ ढाल ३९ राग मारुणी (महेलो भव तणो राग न...) मुनि नायक रे एहवा सुणी उपदेश, हैडइ थयु विरांग न लीधू चारित्र सार, महेलउ भव तणु राग न. मु. २०२७ For Personal & Private Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० जयवंतरिकृत तेहजि दैव संयोगि, तेणि दीपइं आव्या वाहाण न, ठेसि वागइ पग दुख तइ, उसीयालइ वलो भेटि न. २०२८ ते सुंदरि सुकंठ, ओव्या करता केलि न, ते देखी मुनि रुप, लाजिउ चित्त सुकंठ न. मु. २०२९ आपणूं कहीअ चरित्र, जाणी बंधु-सरुप न मु. दीक्षा लेइ सुकंठ, पुहुता बेहु देवलोकि न. २०३० असती सुंदरि सोइ, बंधव मिलिया देखि न, पूरावी सवि वाहाण, पुहुती को एक दोपि न. २०३१ वेशा थइ तिणि दीपि, विलसिया नव नव भोग न पुहुती नरक मजारि, भमसइ काल अनंत न. २०३२ सारथपति वालावि करि, जयंतसेन भूपाल, हैडा मांहि दुख धरइ, गुण समरइ ततकाल. २०३३ पाछां पगला नवि वलइ, नयन न खंडइ धार, सजन वुलावी आवतां, सुनु भमइ ढंढार. २०३४ सज्जन साथई जीव जा, जीवों किसिउं करेसि, ते सज्जन विण झूरतां, दुखुइ दिन्न गमेसि. २०३५ कहिसिउं हसोनइं बोलसिउँ, कहिसिउं करसिउ रंग, चित्ति चमककु लाइ गया, ते सज्जन अति चंग. २०३६ सज्जन आज वुलावीयां, जासइ केहि विदेसि, क्षणि क्षणि है९ चीतवइ, वाहाला कहीइ मिलेसि. २०३७ आज ऊभां इणइ आगणइ, कालइ करेइ गांमि, परमइ को परदेसडइ, मिलसि किहि किणि ठामि. २०३८ परदेसी सिउं प्रीतडी, हैडा मंडी काइ, आज आंहां कालइ जसइ, चित्ति चमकु लाइ. २०३९ सूनां मंदिर सेरीआं, खावा धाइ वन्न, सजन विछोहियां माणसां, जिहां जाइ तिहां रन्न २०४० राजा गुण संभारतु, जूरतु हैया मजारि, जव आविउ भूमिग्रहिं, तव नवि दीठी नारि. २०४१ For Personal & Private Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गारमजरी ढाल ४०, राग रामगिरी राजन विमासो चतडइ रहितु, वनिता न दोठो अति विहसि थयु. २०४२ जो रे भाइ कुणि रे धूतारडइ घूतु, मोरी मोरी वाहाली लेइ परदेसडीइ पहुतु...दुपद राजन प्रधानई इसिउ कहावइ, कोइ कोइ वोर छइ जे धूरत नइ लियावइ. २०४३ जो. सेवक सहू जोइ भूमिहर पीठो, माहि रे जोतां जोतां सणगडी दीठी. २०४४ जो. बोलइ रे राजन नि सेवक स्वामी, एक दुख चिंतडइ नइ विस्मय पामी. २.४५ जो. राजन सा उलखी नही रे जोती मोटी मोटी घूरतडी जे तुमने वहाती. २०४६ जो. पडइ रेम पहामी दोउ राजन बोलइ, दाधा रे उपरि वली लूणडा तोलइ. २०४७ जो. एकनू कूच बलइ एक दोवडु खूलइ, एक मनि दुख दहइ एकनइ रे दूलि. २०४८ जो. राजनजी नीजामानि कहइ रे विचार, प्रवहण सज करु मलाउ वार. २०४९ जो. नीजामा कहइ नहीं भेखज-गोली, जे क्षणमां सज हुइ रे वहिली २०५० जो दिवस घणेरडे ए सज थाइ, तेतले दिहाडे परदीडिं रे जाइ. २०५१ जो. ढाल ४१ राग मारुणी- धन्यासी वचन सुणी विलखु थयु, चितइ चतुर भूपाल रे, अणइ धूरति हूं वंचीउ, कीधउ गरव विशाल रे. २०५२ राजन चिंतइ चितडइ, है है अधिर संसार रे, मि जाणिउं सहू माहरु, ठालु हउ अहंकार रे... दुपद माया ममताई नडिउ, माहार माहारु करी देखइ रे, जां रस पहुचइ जेहनू, तांते तेहनि लेखिइ रे. २०५३ रा. सगपणिं वाहालू को नथी, वाहालु स्वार्थि प्राणी रे, नमरू छ डइ फलनइं, परिमलनु क्षय जाणी रे. २०५४ रा. ते जउ माहारो नवि हवों, मंहनइ वाहालो हती अपार रे, तु माया कुण उपरइं, धरीइ एणइ संसारि रे. २०५५ रा. मनवइं रागिइ पूरीउं, नाणिउ मोह लगार रे, एहवइ चारण केवली, पुहुता सुर परिवार रे. २०५६ रा वृष्टि हवो विण आभले, इष्ट काहउं वैघि रे, जेहनई निसि-दिन साभरतां, तेहजि: मिलीयांसहजि रे. २०५० रा. कुलटा चरित सुणी करी, राइ संयम लीध रे, सत्तम दिनि केवल लही, कालक्रमइ ते सीध रे. २०५८ रा. इति पातालसुंदरी संबंध. For Personal & Private Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ जयतवंसूरकृत ढाल ४२ राग सोमरी (अक दिन अनुचरि वोनव्यो, अ देशी) जउ तेह सरखी सुंदरी, नवि हवी सीलइ चंग, पाताल मांहि जउ रही, तुहरे, देही अनंगि. तु वणिगनो कामिनी, किम रहइ जे स्वछंद, ओ मुग्ध भोलु भोलविउ, दाखवी माया-वृद. २०६० रागीया साचुं लेखवइ, ते नारि बोलइ बोल, कामिनी केरा बोलडा, जेहवा ति पोला ढोल, मुहि बोलतां वाधइ घणरं, जिम जलघिना कल्लोल, साच न बोलइ अ करती, मनि नेह नहों नटोल. २०६१ एहवां रे वचन सुणी घणां, तत्वार्थ विरहित राय, कहि मंति तेहवू कीजीइ, जिम कपट परगट थाइ. तु सचिव कहइ ए सोहिलु, अझ प्रगट करसिउ कुंड, सजन्न दिउ आदिसडउ, जिम एह जाणइ भूढ २०६२ तु अह्ये सेवक ताहारा, जउ तास टालउ शील, तां लगइ फणगर फूकूइ, जां मोर न मिलइ नील, इम सुणी राइ ए प्पीउ, आदेश मननइ रंगि, सचिव च्चारइ हरखीया, परनारि केरइ संगि. २०६३ विख अनइ वली वधारीउं, . बडे चडी कारेलि, एक भखण नइ वली हडकयु, ऊधाण मांहि रेलि, पंखाल वली पन्नग थयउ, शाकिनी राउल मान, ऊगट्टि कीधो मसि तणी, हबसिणी कालइ बानि २०६४ मांजार नइ पय भालविउ, वानरा वाडी मांहि, ते वलो राउल वाहीया, लंपट्ट सचिव प्रवाहि, आदेश लही पाछा वलिया, मन मांहि हरख न माइ, ते शील-सायर सोसवा, घट-पुत्र सरखा धाइ. २०६५ ढाल ४३ राग धन्यासी रायना इम निसुगो रे बोल ज सार. हरखिया रे मनि धगउ सचिव ते चार....दुपद लहोय आदेश नई काज उपाइ, आव्या आव्या मंदिर ते नरक सरखाइ २०६६ रा. च्यार ते मनमथ रूप समान, जे देखो मानिनी मेहलइ रे मान, २०६७ रा. For Personal & Private Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी १५३ वेस-आभरण अनोपम सोहइ, वनिता-वृद ते देखी मोहइ, २०६८ रा. च्यारि ते यौवन रूप सिउं, माता परनारी प्रेमइ अति धण राता, २०६९ रा. कुसुम-आभरण नई वस्त्र ज वीटी, सज करी पेखइ कोइक दूती, २०७० रा. दूहा बहु गुणवंती लोहमय मुहि अति तीनी हुंति, दुती सुइ विण किम मिलइ, माणस केरी संधि. २०७१ मन वल्लभनि मेलवइ, घाणी साकर-चूरि, एहवी दूती जिहां नहों, परिहरि देश सदूरि. २०७२ सही पडोसी सुगंधिका, न्यापित मालाकारि, प्रव्रजिता एणी परइ, दूतो तेर प्रकारि. २०७३ पहिलइ दिनि वार्ता करइ, बीजइ गुण कहइ तास, रूपकला गुण चतुरिमा, लीला वचन विलास. २०७४ तृतीय दिने सुंदरि तू गुणवति छई, मुरख कंत विलास, अहवा दासइ नवि घटइ, गोरी तोरइ पासि. २०७५ दूती अहवे बोलडे, जोइ तेहनू चित्त, मन देखी वार्ता कहइ, नहीतार तिजइ जडित्ति. २०७६ वलतू जउ सुंदरि कहइ, मेहली दीर्घ नीसास, सहि मे दैव अटारडु, कुहु सिउं कीजइ तास. २०७७ इम ते चंचल चित्त लहो, केता पडखो दीह, प्रगट करइ गुण छयल्लना, देखाडइ तस नेह. २०७८ दुर्भग दुर्गत कामिनी, प्रोखित कृपणह नारि, स्वछंदा कौतुकप्रिया लोभिणि सुलभ संसारि. २०७९ दूती च्यारे मोकली, चिहु ओ पृथग प्रघानि, आवी शीलवती प्रति, बोलइ मधुरी बाणि. २०८० गोरी तुज गुण सांभली, मोहिउँ चित्त सुजाण, जउ उवेखसि बोल तू, तु ते तिजसइ प्राण. २०८१ शीलवती उवाचजउ ते गुण-रागी ज छइ, तु सि न जाणइ चिंति, जे पहिलू असती हवइ, तस गुण किसिउ लहंति. २०८२ २० For Personal & Private Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ जयतवंसूरकृत दुती उवाचतुह भूख्या गुण तरसीया, लंघणि पंडुर देह, ओक वार तनु रबि दइ (१), जीवाडि-न गुण गेहि. २०८३ शीलवती उवाचअन्न न आवइ अझ धरिं, जलनउ न केरु संग, तनु कुहनई आपिउं नथी, मागु अनेरां चंग. २०८४ तरता देखी हंसला, बगला तुडि म मंडि, हंस विना अणइ सरोवरइं, कोइ न जीलइ मूढ. २०८५ ढाल ३९ राग रामगिरी परनारी सिउं प्रेम न धरीइं, चंचल चित्त न करीइ, देखी रे अंबरि आंबा फलिया, हैडइ दुख नवि धरीइ. २०८६ बंधवजी परदारा परहरीइ, जेहथी नरगि रे पङीइ...दुपद आरति अनीद्र अभूख, आठे पहुर उचाट, ओ परनारी प्रेम तणा सुख, नरक तणी छइ वाट. २०८७ ब. उत्तम कुलनइं खांपण लागइ, वइरि धरइ रे उछाह, भूपति डंडइ सुजन सी दाइ, परनारी-उमाह. २०८८ ब. त्रिभुवनमां बलवंत विख्यात, मोटउ रावण राय, परनारीनइ वेधि विलूधउ, पामिउ मरण उपाय. २०८९ ब. आ भवि प्राणी यौवनि मातु, परदास सिउं रातु, नरक तणा दुख जे छइ दोहिलां, ते पणि वेसइ जातु. २०९० ब. शीलई सुर नर सेवा सारइ, वंछित फलीइ आस, जयवंत पंडित कहइ शील सुवा, सुर नर तहना दास. २०९१ ब. एहवां वचन घणां कहियां, तुहि नवेइ प्रधान, अंध न जां किहिं आफलाइ, तां नवि आवइ शान. २०९२ पीउ करी देखी कमल ते, अणसट्टिहितु राय, शील-परीक्षा कारणइ, मंडिउ एह उपाय. २०९३ तु देखाडू पारखू, जिम मनि चमकु थाइ, एहवू जाणी दूतीने, सुंदरि कहइ उपाय. २०९४ सुंदरि न घटइ पर तणउ, कुल वनितानइ संग, तुहइ धन लोभई करी, माणस मांडइ रंग. २०९५ For Personal & Private Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरो ढाल ४५ राग भीली मल्हार ( समोसरण बइठा श्री जिनवर, ए देशी) एक लख टंका लेइ आवु, जउ अह्य सिउ हुइ काज रे, लाल, जे अति विसमां दोहिलां, द्रव्यइ सीजइ काज मेरे लाल. २०९६ सुंदरि बुधई आगली, कामिनि सगुण सुजाण मेरे लाल, च्यार नई प्रतिबोधवा, सियां सियां करई विनाण मेरे लाल...दुपद आज थिकी दिन पांचमइ, निसि अंधारा पूरि मेरे, दूती-वयणि ते तेडीया चिहारइ, जूजूह प्रहुरि मेरे. २०९७ सू. धरि खणावी उरडइ, अति एक खाड मेरे, ते उपरि एक अणवणो, वस्त्रि ढांकी खाट मे० २०९८ सू ऐक लख लेइ पहिलु आविउ, यामिनि पहिलइ पुहुरि मे० द्रव्य लेइ खाटइ बइसारिउ, तव ते पडीउ विहुरी मे. २०९९ सू. इणि परि च्यारे चिह ए पहरे, पडीया विबर मझारि मे. वेलू विवरई पाथरी, ते अनुकंपा माटि मे० २१०० सू. नरक तणी परि विवरई पडीया, च्यारे ते निज पापि मे, किमहि न सकइ नीसरी, है है विषय-संताप. २१०१ सू . दोरइं बांधी श्रावलू, मेहलइ जल आहार मे थोडे दिहाडे तेहनु, टालिउ विषय-विकार मे. २१०२ सू. दुहा सचिब पडिया ते विवरमां, जुरइ निज निज दोस, सुंदरि प्रीउ गुण सांभरी, हइडइ आणइ सोस. २१०३ सजन-गुण जव सांभरइ, तव मन दुखि भराइ, सरोवर जिम आसाढथी, बेहु कंठइ पुराइ. २१०४ सज्जन गुण तुह्यारडा, जिम जिम समरइ चित्ति, तिम तिम हैडुं आवटइ, नयणां गलइ जडित्ति. २१०५ सज्जन गुण संभारतां, काया परबसि थाइ, हैडई डीबु जामीइ; नयणे नीर न माइ. २१०८ इंणि अवरि मेह आवोइ, विरही केरु काल, बापीडु पीउ पीउ करइ, वरतिउ वरखा-काल. २१०७ वरसि म वरसि म महला, पायई सांमल थाइ, आदिइ वइर सलूण-जल, सही सलूण विलाई. २१०८ For Personal & Private Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ जयवतरिकृत ढाल ४६ राग मेध मल्हार आवोउ आसाढ कि वादल वापरिया रे वापरिया रे, वरसइ मेह अखंडकि सरोवर जलि भरिया रे भरियां रे, पीउ पीउ करइ बपीह कि बादलं छाहियां रे छाहियां रे, असल सलावइ साल कि वाहलां विरहीयां रे विरहीयां रे. २१०९ मांडिउ तंडव-नाच को गाइ मोरडे रे मोरडे रे, क्षणि क्षणि आवइ सज्जन, हैडइ मोरडइ रे मोरडइ रे, आंसूडइ भोंना चीर कि गोरी उरडइ रे उरडइ रे, क्षणि क्षणि मुंइ क्षणि खाट कि अंगणिउ रडइ रे रडइ रे. २११० जस धरि वाहला होइ कि लहिकइ बांहडी रे बांहडी रे, पाहलां विरहिय माणस किम गइ रातडी रे रातडो रे, एक दुख पाहलां बिरह कि संभारइ बप्पीहारे रे बप्पोहा रे, राति अंधारी घोर कि, झिरिमरि मेहला रे मेहला रे. २१११ उडणहारा हंस कि सरोवर छांडीयां रे छांडीयां रे. विरह-विगोयां निज घरि माणस आविया रे आविया रे, गाजइ गुहिर गंभीर कि, रयणी सामली रे सामली रे, झरमारि वरसइ मेह कि, झबकइ वीजली रे वोजली रे. २११२ सूकइ देह ज वास कि नयने, मेह गलइ रे लइ रे, घाधइ बिरह-अंकुर कि नीसासा धूमलइ रे धूमलइ रे, झबकइ वीज-सनेह की चिंता पुर रे पुर रे, आविउं वर्षाकाल कि, विरही हइडलइ रे हइडलइ रे. २११३ जे जे पडइ सुधार कि लइ मेह-जल केरडी रे केरली रे, ते ते विरही चित्ति के करवत जेवडी रे जेवडी रे, जिम जिम झबकइ वीज आकाशि धूहलइ रे धूहलइ रे, तिम तिम विरही-माणस भींतरि परजलइ रे परजलइ रे. २११४ दाडुर मोर बप्पीह कि, जिम जिम सांभरइ रे सांभरइ रे. तिम तिम वागइ तीर कि जस पीउ सांभरइ रे सांभरइ रे, सजल आसाढी मेह, वाहालां विण नवि गमइ रे गमइ रे, विरहानलि दाधी देह कि जल बिंदु छमछमइ रे छमछमइ रे. २११५ जाणी मेह आवत कि, तोरण बांधीयां रे बांधीयां रे, सारस हंस बलाहक निज घरि चालीयां रे चालीयां रे, पहिली लाव्या मेह दादुर वधाइयां रे वधाइयां रे. चातक करइ कइवार कलावी नाचीयां रे नाचीयां रे. २११६ Jain Education Interational For Personal & Private Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गारमंजरी सुणी डोल नीसाण कि गयणिं गाजतां रे गाजतां रे, ऊनइ आविउ मेह कि चिहुं दिसि गाजता रे गाजतां रे, खडहड सणीड अपार कि झबकड गोरडोरे गोरडी रे. वलगी रहइ पीउ-कंठि कींगारइ मोरडी रे मोरडी रे. २५१७ आवी पहिली काल कि, विरही वयणले रे वयणले रे, पछइ मेह आवंत कि वरखा गयणले रे गयणले रे, दोडे रही जोइ वाट कि गोरी नाहनी रे नाहनी रे, जोइ जोइ थाकी आंखि कि शृध्धि न नाहनी नाहनी रे. २११८ हूं निस दिन झूरी मलं, ते जाणइ जगनाथ, नीठर कंत न मोकलइ, कागल कुहुनइ हाथि. २११९ कागल पडी अनोंठडी, कइ मिसि ढली अशेष, कइ लेखण कटकइ थइ कंत न भेजिउ लेख. २१२० माणस आणइ नेह तां, जां दीसइ नयणेण, थोडा पालइ प्रोतडी, परदेसडइ गोण. २०२१ गाढी प्रीति ज वीसरी, परदेसडइ वसत, जिम अंजलि जलनी परइ, टीपे टोप गलंति. २१२२ लाज न आणइ नयणी, केतां माणस नोंच, तु ते परदेसइ गयां, सिउं संभारइ प्रोति. २१२३ अणइ अवसरि तव अजितनइ, जागिउ दुख अपार, दिवस घणा थया विण मिलिं, कही मिलसिउं किरतार. २१२४ विरहानलि अति आकलु, जाणइ कहीइं मिलेसि, लेख लिखो पीउ पाठवइ, गोरी छइ जिणि देसि. २१२५ अथ अजितसेन शीलवती प्रति लेख लिखइ छइ. स्वस्ति श्रीवर वीनवई, बाहली छइ जिणि देशि. सुंदरि सुगुण सुजाण छइ, वांचइ लेख-संदेश. २१२६ कुशलखेम छइ मूंहनइ, गोरो धरये चित्ति, तिम करये जिम आपणी, अधिकी वाघइ प्रीति. २१२७ लेख संदेश न मोकलं, अता दिवस मझारि, ते दुख मुजनइ अति दहइ, जिम करवतनी धार. २०२८ गोरी तइं का टाली, संदेशा-व्यवहार, दास किसिउ अह्मारडउ, माया तिजी अपार २१२९ For Personal & Private Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ जयवंत सूरिकृत तुझ गामइ कागल नथी, कि मिसि नथी त्रिलोकि, कइ खप नथो अद्यारडु, लेख न लिखउ अक . २१३० जर तुह्यनइ आसु थयुं, अह्यनि लिखतां लेख, तु को हाथि संदेसडु, सिं न कहाविउ ओक. २१३१ कागल मिसि लेखण तणी, जउ लिखतां हुइ हाणि, तु संदेसु कहावतां, तुह्य सिउं थाइ अतयान. २१३२ जउं एक आंगल चीठडी, मोकलतां घरी नेह, वालत चउगणी गोरी तुज विरहानलं, मुज मन बलइ अपार, कागल जल-करि मोकली, करये माहरी सार २१३४ भमरु समरइ मालती, हाथी समरइ विंजी, मरुथल समरइ करहडु, तिम समरुं हूं तुज्झ. २१३५ पाड न राखत एह. २१३३ रागवती मन-मांडवइ, वाहाली राखे प्रीति, नेह-जलिं नितु सोंचये, जिम नवी सूको जंति. २१३६ वलतु कागल मोकले, जिम मनि हुइ संतोष, गोरी तूं जउ नहीं मिलई, तां नहीं भागइ सोस. २१३७ कागल देखी कंतनु, गोरी थइ रलीआति, हृदय - कमल तव विहसोउं ऊलट अंगि न माति २१३८ सज्जन सइ हथि भेजीउं, नेह धरी मन मांहि, जिमि जिमि ते वलि जोईइ, तिम तिम ऊलट थाइ. २१३९ सज्जन तणा संदेसडा, सुणता तृपति न थाइ, वाली वालो पूछतां, हैडु हरख वहंति. २१४० किहां हूंता कहींइ मिलिया, सिउं कहाविडं तुझ साथि, काइ मुजनइ संभारतां, पूछी माहारी वात. २१४१ रूडा सुजन संदेसडा, वइरोनी विपरीत, वाली वाली पूछतां, हेजई हींसइ चींत. २१४२ जिम जिम वांचइ नारि, कागल ऊवेली कंत, तिम तिम मनि गुण सांभरइ वरसइ आंसू सु-धार. २१४३ सखी उवाच तेन लख्या सुलेखमां, प्रगट नवां वाचइ जेह, शीलवती उवाच - नेह गया सज्जन तणा, पंथ निहालू तेह. २१४४ For Personal & Private Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृगारमजरी सखी उवाच, कथं शीलवती प्रेमासव मद धारियां, सुद्धि न होवइ तेह, आखर सुघा लेखमां, जाणू सिथिल सनेह. २१४५ दूत उवाच गोरी गहिली कां थइ, जे समरइ निसि-दीस, ते सूधूजइ तेहनई, मनथी छांडे रीस. २१४६ जिम तरसियां सरोवर लहिउ, मनि आणंद-सुधाइ, सुजन संदेसा सांभली, हैअडइ हरख न माइ २१४७ जिम रयणायर चंदनइ, नेह सदूरि ठियांह, तिम दूरि ठिय सज्जनह, गुण सल्लइ हैयांह. २१४८ वली वली पूछइ वत्तडी, अवर न वात सुहाइ, संदेसु जिम जिम सुणइ, तिम तिम ऊलट थाई. २१४९ सजन-संदेसु लखलहइ कागल कोडि लहंति, दीठ कोटी-शत लहइ, संगमि मूल न हुंति. २१५० सजन दीठिं सुख जेतलू , ते हुइ कागल देखी, लाख जोयण वाहाला वसइ, नितु नितु मिलवू देखि. २१५१ लियावइ दूरि संदेतडु, छांनु कागल दूत, जेहसिउं बोली न सकोइ, तेहसिउं लेखि वात. २१५२ कागल वांची कामिनी, अधिक हवी ससनेहि, ऊवेली वली वलो जोइ, जिम बापीडा-मेह. २१५३ कामिनि कंतह कारणि, वलतु लेख लिखंति, लेखइ बाधइ नेहडु, अधिकी हुइ खंति २१५४ अथ शीलवती अजित प्रति प्रत्युत्तर लखि छइ. स्वस्तिश्री सोहामणउ, वाहालेसर गुणवंत, कंत-संदेसु वांचयो, गोरी लेख लिखंति. २१५५ सानंदइ सस्नेहपणइ, वीनवू छउं श्रेयोत्र, अहीनू तेह जणाविवू, कंता कार्यचात्त. २१५६ यत आंहां खेमकुशल छइ, ते तुझे चरण-पसाई, तहींना कुशल जणावयो, जिम अह्यनि सुख थाइ. २१५७ अपरं दिवस सघणे लेख तुह्य तणउ, पुहुतो एक आहाइ, सर्व समाचार जाणीउ, हर्ष हवु मन माहि. २१५८ सज्जन लेख तुह्यारडई, भागु विरहनु सोस ओक मन जाणइ माहरु, जे मुज हवु संतोस. २१५९ For Personal & Private Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ जयवंतसूरिकृत दुःस्सह विरह-दवानलिं, सूकंती तनु-वेलि, ते तुह्य कागल मेह-जलि, पल्लवीयां रंगरेलि. २१६० दिवस सधणे लेख मोकलिउ. हैइ संभारी आज, घणू कहूं स्यु एक मुखि, जांणउं आपिउं राज. २१६१ जाणी दुहवण मन तणां, लिखी हती जे लेखि, एक अपराध अह्यारडउ, वाहाला खमयो एक. २१६२ वांक नथी कागळ तणउ, आलस नहीं मुज रेख, पणि एकइ को ते नहीं, ते तुह्म आपइ लेख. २१६३ लेख लिखिउं जव वल्लहा, समरि समरि गुण तुज्झ तव मन मारु गहिबरइ, दुख न समाइ मुज्ज्ञ. २१६४ तुह्य गुण लिखतां लेखमां, दुख-नींसास थाइं, ते नीसासा-धूअडइ, कागल बली सजाइ. २१६५ बली हूं लिखबा अलजइ, रही नीसास खंचि, तु आंसू झरइ आंखडी, कागळ तेण गलति २१६६ बली लिखावू को पहि, मनदुख कहूं तस देखि, ते पणि माहरी परिहवइ, तु किम भेजू लेख. २१६७ किम दुख भागइ विण मिलिं, पीउ संदेस-सएण, वन-दावानल किम शमइ, गज्जते मेहेण. २१६८ न सकू कुहुनइ मोकली, आवी न सकू हूंअ, वांहाला ताहरइ वियोगडइ, कोऊ दहइ विण-धूंअ. २१६९ वाहलानइ अलखामणा, सज्जन गुण-भंडार, जाणउं वली वली हूं स्मरु, समर दहइ अपार. २१७० रे सज्जन गुण ताहरा, समरूं जेणी वार, तव हइडइ सारणिं वहइ, न लहूनीसासा पार. २१७१ उपरांपर नीसासडे, हैडू संकड होइ, अवर न उपजइ बोलडा, लेख न लिखीइ तोइ. २१७२ कुहुनइ कहू' मन-वत्तडी, तुज विण सघलइ रांन, वाहाला हूँ गहिली थइ, एक जि ताहरइ ध्यान. २१७३ सेरों सेरी रडवडू, सूनी तुज विरहेण, सान गइ सवि सयरनी, जूहवू कु-जिमएण. २१७४ सजन-संदेसु कहावइ, वसइ विसई नेह, जे वाहालां हैडइ वसइ, सिउ संदेच तेह. २१७५ For Personal & Private Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गारमंजरी १६१ वाहाला मांणसि हैडलइ, आपण दूरि रह्यांइ, दुरियन लोक तणइ भई, तू राखिउ मन माहि. २१७६ भागइ नहों संदेसडइ, मनि अलजु मिलणांइ, आंबा-फलनी आसडी, न टलइ अक्क-फलांइ २१७७ बाहलां कांइ विणासीइ, मिसि कागली असार, थोडा मांहि प्रोछयो, तुह्यो छउ प्राणधार. २१७८ डूंगरनइं नाणां घणां, अंतर दो नयणांइ, सजन मनि अंतर नथी, जोयण कोडि गयांइ, २१७९ नेह त्रूटइ दूरि गया, वाहला माणसि मन्नि, किहां सूरय गयणंगणि, किहां जलि पंकज वन्न, २१८० तलिथी विहसइ फूलडा, उपरि ससि ऊगंति, दूरि थकां जे ढूंकडां, जे मन मांहि वसंति. २१८१ जेहनइ मनि जे वल्लहां, ते तस दूरि न होइ, चंद वसइ गयणंगणइ, सायर वाधइ तोय २१८२ मोरा डूगरडे लवइ, ऊपरि गाजइ मेह, दूरि गयां न वीसरइ, सज्जन साथि सनेह. २१८३ सज्जन तणा सनेहडा, ऊगी नवी को वेलि, पान पडइ परदेशथी, जउ विणसइ तस वेलि. २१८४ वाहालां वसि विदेसडइ, विचि नइ नाला वाडि, जउ सिरि हुइ पंखडी, तु पहुचाडु रुहाडि. २१८५ पंख तणइ परमाण, वाहालां नइ ऊडी मिलइ, पंखी भला सुजाण, पंख विना नहीं माणसां (?) २१८६ भमरा विण जिम कूलडां, पंकज विना निवाण, शोभइ नहीं घर आंगण, तुह्म विण वाहाला रांन २१८७ तेहजि माणस तेहजि घर, ते सेरी ते वाट, वाहालेसर एक तुज विना, मुज मनि सरव ऊजाडि, २१८८ सुजन सुखनि कारणिं, वीसारु घणीवार, पणि तुझे वोसरता नथी, देखु नयणा-बारि. २१८५ सजन म जाणसि नेह गयु, घण दीहा रहइ दुरि, वरसह छेहडइ मेह मिलइ, नाचइ हरखि मेह मयूर. २१९० घणउं कहूंसिउ वल्लहा, तू जै रहिउ सदूरि, सुहुणामां हूं तूंहनि, नवि दखु चिहु-पहरि २१९१ २१ For Personal & Private Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ जयवंतसूरिकृत सज्जन नामि तुझारडइ, हुइ अति संतोष, पणि तुज मुख निहालिया विनो, किमहि न छीपइ सोस. २१९२ वाहालेसर एक तुज विना, क्षण वरसां सु थाइ, दिन जाइ अति झूरतां, टलवलतां निसि जाइ. २१९३ गुणवंत अति वल्लहां, वसियां ते हैया मझारि. ते नवि जाइ वीसारियां, जां काया परिहार. २१९४ अन्न विशेख हय बल्लहा. सीयालइ हुइ वन्नि, तस आदइ 'इ' कार करि, ते तुह्म पासि सुजन्न. २१९५ जे ऊगइ वाविया पछी, तिणिं नामि जस नाम, तिहां नयणां मेलावडउ, करसइ चंद सुजाण. २१९६ विवार य छप्पय वास, अंत्यक्षर तस छेहि, ते सज्जन एक तुज विना, मुजनइ दहइ अति देहि. २१९७ सज्जन अति सभरित भरिसं, मुझ मन तुह्म गुणेण, अवगुण पइसी नवी सकइ, तुह्म वीसारु जेण. २१९८ रे सज्जन गुण तुह्म तणा, दहइ जिम खइर' अंगार, नवि लब्भइ जिणि उल्हवउ, अवगुण नीर लगार. २१९९ सज्जन विरहई तुह्मारडइ, मुज मनि कोऊ जलंति, चोली चरणा चीरडां, टीपिटीपि गलंति. २२०० तुह्मनइ समरु राति-दिन, वहूं ते मनह मजारि, तुहि न हुइ समाधि मुज, दीठा विण एक वार. २२०१ मुनि मन विण सूर सर विना, अह पीडइ मुज देह, एकवार सज्जन मिली, तू वि नेवारे तेह. २२०२ वार वार तुह्म वातडी, वार वार तुह्म चीति, तुह्म दरशनि ऊमाहलू , फलसइ कहींइ मींत. २२०३ ध्यान तुह्मारु चितडइ, गुण सुणि सवण संतोस, नामि पवित्र स जीभडी, दो नयणां धरइ सोस. २२०४ अनुदिन समरु हइडलइ. निसि-दिनि तोरु जाप, नयणि न देखं तुह्मई, ते कांइ पूरव पाप. २२०५ हृदय-कमलि एक तूं रिउ, गंथी तुझ गुण-माल, श्रेय-मित अभिधान तुज, जपतां जाइ काल. २२०६ केतू लिखीइ लेखमां, के तूं कहूं एक मुक्खि, तूंहजि जाणइ वेदना, तु ज विरहइं जे दुक्खु. २२०७ १. खरइ. Jain Education Interational For Personal & Private Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगार मजरौ तू वीसरिन, गया विदेसि अपार, मजा भुज जीवित तुजपासि छ, सूनूं आहां ढंढार २२०८ प्रोति-लता थालूं करिडं, तुझ मन - मंडपिं लाग, दुरियन वचन कटारडइ, रखे छेदाइ सुरंग. २०९ जिहां तू तिहां मुज प्राण छइ, केवल आहां सरीर, यंत्र योगि जीवित धरिउ, जिम सरवरमां नीर २२१० ठामि ठामि दोसइ घणां, सरोवर जल संजुत्त, पणि मानस विण हंसनूं, किंहि न ठरइ चित्त २२११ कहां सूरय कहां कमल-वन, किहां कमुदाली चंद, वाहला वसई विदेसडइ, समरियां देइ आनंद. २२१२ थाइ मणोरह तुरिया, दूरिति सज्जन वेधि, नव वीसमइ नाव खलइ, नव मूंजाइ निखेद. २२१३ नयां जोवां अलजयां, तुझ गुण सुणवा कन्न, गोठि करेवा जीभडी. तुझ समागमि मन्न. २२१४ रे सज्जन गुण तुझ तणा, मुजनई करइ वाचाली, खांची राखुं न रहइ, जिम कोइल निं रसाल. २२१५ दिन फीटी थाइ वरसडां, घडी टली थाई मास, सजन ताहरइ वियोगडइ, झरो थइ पलास. २२१६ जिम विसहरई मोरडी, जिम सरभलां सुमेह, जिम हरिनई सारिंग नइ, तेहवु मुज तुज नेह. २२१७ जिम कठ- पंजरमा पडिउ, पावस कालि आरामि, केल संभारइ मोरङउ, तिम हूं तुझ समरामि . २२१८ जिम बप्पीहु हेव, ऊन्हालइ तरसालुङ, अति जोइ मेह वाडी, तिम तुझ वाट अवि. २२१९ ते वेला तेह जिं घडी, तेहजि दिन सुप्रमाण, जही तुझसिउं मेलावडा, करसइ देव सुजाण. २२२० दिन वे कहीं इसइ, तुझो मिलसिउ जणि बार, सुख-दुख कही नई मन तणउ, करसिउं प्रेम अपार २२२१ अकवार हवि जड क्रिमहि, वाहाला तुज देखेसि, नवि सिराविं नीर परि, ते अंतर टालेसि. २२२२ कमाल बंधाण भमरलउ, जिम ससिहर किरणेण, जोइ सूरय वाडी, तिम हूं तुझ नयणेण. २२२३ For Personal & Private Use Only १६३ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ जयवंतसूरिकृत जिम प्रिय विरह करालीउ, चकवु धण-अंधारि, खिणि खिणि समरइ सूर्यनइ, तिम हूं तुह्म संसारि. २२२४ जिम अति तरसिउ पंथीउ, उन्हालइ भर लूइ, वंछइ सजल सछाय सर, तिम वंदू तुह्म हुइ. २२२५ मानस सरोवर हंस जिम, भमरा जिम कमलाई, मेह संभारइ मोर जिम, तिम तुह्म गुण समरांइ. २२२६ गयवर समरइ विझ जिम, कोइलि समरइ अंब, तिम समरूं हूं तूंहनइ, समरइ भमर कदंब. २२२७ धन वंछइ दारिद्रीउ, भख्यु वंछइ अन्न, पंथो वंछइ छांहडी, तिम तुह्मनिं मुज मन्न. २२२८ सुरभी समरइ वछनई, कोइलडी मधु-मास, तिम समरु हूं तुहनि, चंद चकोर विलास २२२९ घणउं कहूं सिउ कारिमू, सम कोधउ सिर होइ, तू अंक समय न वीसरिउ, थोडाइ घणू सजोइ. २२३० भूलि वासी अंत्य-विण, रत-कलहइं ते होइ, ते बि केवल तुह्य कन्हई, घणउं कहइं सिउं होइ २२३१ सजन तणा सनेहडा, वीसारिया नवि जाइ, जिम जिम विरह घणेरडु, तिम तिम अधिका थाइ. २२३२ सजन संदेसइ ताहरइ, नयणे की उ संतोस, कोऊ लागी भोंतरइं, हैडा करी संतोस. २२३३ रे सज्जन गुण ताहरा, जउ लख-जिहवा थाइ, कोडि वरीस जीवी धरु, तुहइ कहिया न जाइ. २२३४ अक्षर बावन गुण घणा, केता लिखीइ लेखि, थोडइ घणुं करी जाणयो, सुख होसइ तुह्म देखि. २२३५ जीवित थोडू मणूय-भवि, चडता पडतो दिन्न, विचि विचि रयण अंघारडउं. तम गुण लिखड किम्म. २२३६ भूमंडल कागल करूं, सायर सवि मसि थाइ, सवि डूंगर कांठा हवइ, तुह्म गुण तुहि न लिखाइ २२३७ सवि अंबर कागल हवइ, गंगा-जल मिसि होइ, जउ सुर-गुरु तुह्म गुण लिखइं, पार न आवइ तोइ. २२३८ तुह्म गुण ऊजल-दूध जिम, मिसि अति क ली होइ. एहवू जाणी चितडइ, लेख न लिखीउ तोइ. २२३९ For Personal & Private Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरो पहिला गुणं कैसा लिखू, केहा पछइ सार, तुह्म गुण सघला सरिखां, मुज मन पडिउं विचार. २२४० सज्जन जेहनू सिर छेदिया पछी, पुणरवि ससिहर बिज्ज, तस आदेई 'ए'कार करि, ते मनि घणउ धरिन्ज २२४१ शिशिरह आदिम मास जे, धरि एक मंत्र जि देइ, तेह म उतारसि चित्तथी, दिनि दिनि अधिक करेइ. २२४२. सज्जन सनेहा आपणा, अधिक वधारइ चींति, मत वीसारसि वल्लहा, परदेसई प्रीति. २२४३ मनमा छइ घणी वातडी, के कागलि न लिखाइ, दोखी दुरियन जगि घणा, मिलिया पखई न कहाइ. २२४४ सज्जन काइ कहाव्यो, आहां अह्म सरखं कान, घणउं लिखु सिरं लेखमां, लिखतां थाइ राज. २२४५, रखे वीसारु चिंतडइ, धरयो मोह अपार, वहिला मिलवां आवयो, लेख लिखू लखवार. २२४६ हलदह नामई नाम जे तीहचर अरि तस छेहि, 'ख'मज्झ करे संठवी, मोकलयो धरी नेह. २२४७ वली संदेश कहावयो, वहिलु लिखयो लेख, जुहार अमारु मानयो, जां नाव मिलीइ मेख. २२४८ अधिकुं उछउं जे लिख, कुडू कागल माहि, ते अपराध अहमारडउ, रखे धरु मन मांहि. २२४९ भाद्रव वदि दशमी गुरौ, कागल नेह विशेखि, जयवंत पंडित वीनवइ, अ वाहालानु लेख. २२५० HTHHTHE सात-दीप कागल करु , जउ मिमि मायर च्यारि, तुहइ गुण वाहाला तणा, लिखता नावइ पार. २२५१ लेख लिखीइ इम सुंदर, भेजइ प्रोउनइ पासि, दिन थोडइ मेलावडउ, हवइ हसइ टोल विलास :२२ अंक दिनि पुढी शशि मुखी, संजइ रयणी छेह, सुहुणामां प्रीउ देखीउ, तव उठी ससनेहि. २२५३ सही ए सुहुणइ ते करिउं, जे वइरो न कराइ, सुजन देखाडी रंगभरि, क्षणमां अपहरीय इ. २२५४ लाख जोयण सज्जन वसइ, मिलीयां सुपन मझारे, फट रे पापिणि आंखंडी जागी करिउ परिहार. २२५५ For Personal & Private Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ जयतवंसूरकृत सुविण मंत बलिहारडी, पज्जन्तं इयरेण, क्षणमा बालां वेगवां, अकरसिज्जइ जेण. २२५६ रे सखि सुणि मिं पिउडर, दोठउ सुपन मझारि, थोडामा प्रोउ आवसइ, अणइ सुपन विचारि २२५७ हवई अरिमर्दन भूधणी, मोडी वइरो - माण, इरो - दल चकचूर करि, देसि मनावी आण. २२५८ सपरिवार पाछा बलिया, अजितसेन नइ राय, निज मंदिर भणी आवता, ऊलट अंगि न माइ. २२५९ मन भमता भागइ नहीं, हेइडु दइ अति हेलि जिहां आपणां वाहलां वसइ, ऊजातां तिणि देसि . २२६० वाहला दरशन दूरि छउ, सुख कहि न जाइ, तस गामह जे रुखडा, ते दीठि सुख थाइ २२६१ दूरि थकी ऊमाहलउ, हैइ तेहवु न होइ, जेहवउ आवइ दूकडां डग जोअण सु होइ. २२६२ हीरे जडावुं चांचडी, सोनइ मढावू पंख, कागा तोरी बलिहारडी, जु मुज आवइ कंत. २२६३ रे सखि सुणि अंक वत्तडी, दुखुई दाजइ आज जि जीमकइ पीउडु, करसइ विरइनु छेह. २२६४ देह. हुँति २२६५ ऊभवि सही मागइ वधामणी, बहिनी आविउ कंत, आपुं नवलख हार तुझ, जउ ओ साचु भुज-तोरण बांधी रही, टोडे जोइ प्रोउ कंकण- चूडी पडण- भइ, तृपति न पाइ आंखडी, वास की घर आंगण, बइसणि उंबर - पाट. २२६७ घम घम से बिन - घूघरी, चामर वन्नरवालि, आवी पीउनी सांढडी. भरती जोयण पाय. २२६८ जोतां सज्जन वाट, वाट, हाथ. २२६६ मरकलडइ मन मोहतां, हल्लुष्फल हरिसेण, हैडू विहसइ वल्ल्हां, जब दीठां नयणेण. २२६९ भमरा वाहाले फूलडां, वहालां विंझ गयांइ, सज्जन वहालां लोयणां, वाहाला गीयमीयांइ. २२७३ चहाला दीठि दूरियो, नयण-कमल त्रिह संति, देखी चंद चकोरडा, नलिनी जिम विकसंति. २२७१ For Personal & Private Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भंगारमजरी १६७: निरमल नयणां मधुर-वच, सजन कथा अनुराग, संभ्रम-दर्शन मुख-प्रशन, रत्तां चिहूनह माग. २२७२ उजलप सरलारे स्तडां३, वंका नयणां भेय, मित्र' पुत्र अरि कामिनी संगति लहीइ तेह. २२७३ प्रिय-दसण महिमा नवु, अवर न दंसणि तेह, दिठे नाव संजोय विण, निच्चुइ होइ सदे।हे. २२७४ वरि सहीइ दुख दोहिलु, वाहालां तणइ संयोगि, पय उभरातुं तव रहइ, जव पामइ जल-योग. २२७५ सही जे अविनासी वसइ, जाइसर नयणांइ, कुरमाइ अरी मिलई, विहसइ देखी पीयाइ. २२७६ बोल न बोलइ मीठडा, न देइ दान न मान, तुहइ माणस केतलां, दीठां अमृत समान. २२७७ मनडां डूंगर भूहडो, बाली प्रोउ-विरहेण, पल्लवीइ सुख-वेलडो, मिलीइ सुजन नेहेण. २२७८ साल ठवी सजन गया, जां लगइ ते न मिलंति. तां लगइ मननु उरतु, नवि भागइ जीवंत. २२७९ सज्जन दीठइ आपणइ, है; हरखि भराइ, विहसइ विहांणइ कमल जिम, ऊलट अंगि न माइ. २२८० मेह भरइ सर ऊलटूइ, सायर पूनिम-चंदि, सजन दीठे आपणे तिम, ऊलटइ आणंद. २२८१ देखवि सज्जन आपणा, अति रोमचंइ काइ, जाणे अंगि अमायतु, उलट बाहिरि थाइ. २२८२ ढोल वजावि न रे हैया, तुज चिंतित्त फलायांइ, निसि-दिन जेहनइ समरतां, अलविते मिलीयांइ. २२८३ छानू मिलतू जेहसिउ, हैडू रयण मझारि, ते वाहलां परगट मिलियां, नयणां तुज बलिहारि. २२८४ निस-दिन उभा सेरीइं, जेहनी जोतां वाट, ते सज्जन सहिजइ मिलियां, हैया उघाडि हाट. २२८५ वाहालां विरहई दुख हवू', तुहइ वाहलां साथ, भुइ पडियां पणि ऊठीइ, भूइ देइ हाथ. २२८६ बहुत कालि सज्जन मिलियां, हवउ हूँछोडूं किम्म, कंठि बिलग्गी तिम रहू', इसर-गलि अहि जिम्म २२८७ For Personal & Private Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ अयवंतरिकृत हैडू हरखि गहिगहइ, साचां सजन देखि, गुजर-वाइ पांनडी, परिमल घरइ विशेखि. २२८८ कज्जल दीजइ नयणलां, दीजइ मूहि तंबोल, सांइ दीजइ सज्जनह, कायडि दीजइ चोल. २२८९ चित्त चोरी गया चोरटा, लाघा दिवसि घणेहिं, दोइ भूज पासइ बांधोंया, राख्या सिहरि घणेहिं. २२९० चांपो देतां सांइडु, सज्ज सिउं नेहेण, त्रिहुं रूपे हूउ हारडु, कंठि थकी हरिखेण. २२९१ सुलक्षण विखि लक्षणमां, सजन आलिंगन संधि, बहिरंग सबल विशेखवा, ऊतरि पुरव-बांधि. २२९२ गोरी चिंतइ चिंतडइ, कंत मिलिउ घण दीहि, किहारइ पडसइ रातडी. किहारइ आथमसइ दोह. २२९३ अण दोठइ अति उरतु, दीठइ तालोवेलि, राती सूडा-चांच जिम, अति वांकी नेह-वेलि. २२९४ गोरी पूछइ कंतइ, मुज समरता केवार, हूं तुहनइ संभारती, सहिस अठोत्तर वार. २२९५ सांज समइ सूर अथमिउ, ऊगिउ पूरण-चंद, गोरी कंत मेलावडु, हूउ अति आनंद. २२९६ कंत कहइ सुणि वल्लहो जउ तू पूछइ साच, हूं सूहनइ नवि समरतु, खोटी सो करूं लाज. २२९७ जे हेडाथी वोसरइ, ते समरी जइ नित्त, जे पणि घडीय न वीसरइ, तस समरणि सो वत्त. २२९८ गोरी कहइ सुणि कंतडा, परदेसडइ गयाइ, मुझ विरहिं दिन अतला, दोहिलइ किम गमीयांइ. २२९९ कंत कहइ सुणि गोरडी, अह्मे गया विदेसि, मि दिन जाता नवि लहिया, ताहारइ विरहि विसेसि. २३०० इम करतां गुण गोठडी, भागू हैडा-दुख, रयणि जती जाणी नहीं, मन मांहई थयु सुख. २३०१ हवइ हूं भागी विरहथी, वेयां दुखु अपार, हवइ मुजनइ ओ वेदनी, म हसिउ अकइ वार. २३८२ मीनति करीनइ वीनवउ, पंछित देजे देव, हवइ म दाखसि विरह तुं, वाहाला केरो दैव. २३०३ For Personal & Private Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरो १६९ भांजिउ वइरी विरह मद, हुइ हरख आणंद, सज्जन मिलियां जव आपणां, जाणे आब्या वहाण. २३०४ दिनि दिनि सुख विलसइ घणा, शीलवती भरतार, हवइ कहूं संबंध सचिवनउ, जे आव्याता च्यार. २३०५ निज निज चरित कहियां सवे, स्त्रीइ नई भरतारि, आव्या सचिव भूपालथी, ठवीया खाड मझारि. २३०६ ढाल ४७ राग धन्यासी • (बंभण वाडि मारकलीउ, ओ देसी) केडि न लाघी रे चिहारे सचिवनी, चिंतवइ चतुर भूपाल, श्रुद्धि न पामी रे वलतो तेहनी, किहां गया बुद्धि-निघान. २३०७ चिंतडइ चिंतइ रे भूपालजी, ओ किम टलसइ रे संदेह, हैडूरे पडीउ अति डमडोलडइ, जोवराव्या निज गेहि ... दुपद अक दिन बोलइ राजन रूयडु, अजित तनि परिषद माहि, भोजन करबा तुझो नवि नहुतरिया, तुह्मो दिन अतला मांहि. २३०८ चि. वनितानइ वचनइ तव नह उतरिउ, भोजन करिवा रे राय, काइ एक लहीसइ रे श्रुद्धि सचिवनी, राय मनि हरख सु थाइ. २३०९ चि. जिमवा रे जै घरि अजितनइ, केतला परिबार साथे, अवसर जोवा रे चर आपणउ, मोकालउ ते धरणी नइ नाथि २३१० चि. मंदिर जोइ चर आवीउ, बोलइ बोलइ चर अपार, राजनजी सी कहूं सामहणी, नहीं धूम मात्र लगार. २३११ चि. रोजन चिंतइ रे अति विसमयि, दीसइ दीसइ अदभूत अह; घणे रे परिवारइ जाउं परिवरिउ, सिउ हसइ जोउ रे छेदि. २३१२ चि. अणेइ रे अवसरि चिहारइ सचिवनइ, बोलइ बोलइ गुणवंती नारि, तुह्मनइ रे काढउं हूं मे विहुरथी, जउ कहिउं करू मुझ सार. २३१३ चि. जु किमहिं तुझे माहारा बोलथी, करसिउ इतर लगार, तु वली तुह्मनि कुपमां खेपसि. बीजी वार. २३१४ चि. लेणइ रे बीहतइ सहू ए पडिवजिउ, काढिया कुपथी रे बाहारि, तेहनिं नवरावी अति उलटिं, चरचिया चंदन घन सारि. २३१५ चि. Jain Education Interational For Personal & Private Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - अयवंतरिक्त चंदन कुसमि ते अति चरचोंया, कीधा कीधा यक्ष समान, ये हूं मागू ते तुह्मनइ आपयो इम कहों थापिया घर माहि. २३१६ चि. को नर अवरनि देखतां, म करसिउ मेमोन्मेष, पछइ रे महेलसि तुह्मनइ मोकला, एहवी दोधी रे शीख. २३१७ चि. एहवू रे कहीनइ मंदिरि जूजूइ, राखिया च्यार प्रधान, छांनी रे नीपाइ सवे रसवती, सीखव्या अतिहिं सुजाण. २३१८ चि. ढाल ४८ राग मेवाडु धन्यासी ( सहिजि सलूणी रे कोश्या कामिनो, अ देशी ) एहवी रे जाणों मति कामिनि तणी, हरखिउ अजित प्रधान, मंदिर तेडी आव्युं रायनई, गुणवंति बुद्धि-निघान. २३१९ जोउ जोउ कामिनि मति सोहामणी, शीलइ सीता समान, गुणवंति गोरी गंग सरीसडी, गोरी चंपक-वानि...दुपद नाही धोइ आसन मांङीयां, जिमवा बइठउ रे राय, जे जे जोइइ भोजन भावतां, ते ते दइ यक्ष राय. २३२० जो. राजा साहामे च्यारे ऊरडे, साहामइ काइक अंधारि, च्यारे देखइ यक्ष सोहामणा वंछित पूरणहार. २३२१ जो. राजन चिंतइ गुह्यक एहवां, वंछित पूरणहार, जउ हुइ अहवा मंदिर माहरइ, तु मुज सफल जंवार. २३२२ जो. ते एक चिंतनि राय मनि वीसरिउ, च्यारे सचिवनू नाम, भोजन कीधू सूनइ चिंतडइ, अक जि तेहनइ ध्यानि. २३२३ जो. भोजन अंतरि राजन ऊठोउ, आपियां बस्त्र-आभर्ण, राजन मागइ च्यारइ यक्षनइ, ज्जा छाडी रे मन्न. २३२४ जो. अजित कहइ तब वनिता सीखविउ, राजनजी सुणु अख, किम नबि दीजइ मुडुडइ प्रार्थीउ, वली निज प्रभूनि विशेख. २३२५ जो. अथवा स्वामिनि सवि ताहरु, हूं पणि ताहरू वियोगि, घिरि पधारु स्वामी आपणइ, अहनुं मिलसइ योगि. २३२६ जो. पणि ए स्वामी च्यारि मंजूसमां, खेपीउ पदा करेसि, भरी सभा भांते ऊघाडयो, उछव करी सविसेस. २३२७ जो. Jain Education Interational For Personal & Private Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5jगारमंजरी राजा मानी वचन प्रधाननू, पुहुता राजसभाह, ते पण पूछइ च्यारे मोकल्यां, धाती मंजसह माहि. २३२८ जो. भरी य सभामां जव मंजूसडी, ऊघाडी जोइ भुप, तव ते दीठा काल कंकालडा, अति विकीराल विरुप २३२९ जो. कांइ भयथी कांइ विसमयि, काइ प्रीति-प्रभावि, राजा जोइ च्यारे यक्षनि, क्षणि अनिमेष स्वभावि. २३३० जो. उनमेख चंचल तनु मन रोमथी, दीसइ मानव-चिह्न, अति कौतुहल विस्मय पर थकी, तस बोलावइ नरिंद. २३३१ जो. ते पणि च्यारइ कामिनि बोलथी, बीहता लज्जावंत, किमपि न बोलइ सम्यग जोअता, उलखिया राइ हसंत. २३३२ जो. विस्मय लज्जा प्रीति विखादथी, पूछिया राइ सामंत, लाजंता पणि सचिवि निवेदीउ, रायनिं सरव वृत्तंत. २३३३ जो. जेहवू कीधू तेहवू पामीउं, स्वामी अहमेइ लोकि, शीलवतीना शीलनी वर्णना, कीधी परिखद लोकि. २३३४ जो. राजन सचिवई स्त्रीनई खमावीउं, आपिउ पूरव-धन्न, ते प्रतिबोधी च्यारइ सचिवनइ, दीधा परनारि-नीम. २३३५ जो. अहवइ तिणि पुरि मुनिवर परवरिया, पुहुता धर्मघोष सूरि, वंदणि पुहुता अजितनइ रायजी, अवर सु नागर भूरि. २३३६ जो. ढाल ४९ राग मारुणी (माजी रे पाछा वीर गोसांइ, मे देसी ) सहि गुरु वाणी-रस विस्तारइ, जिम प्राणी सुख पावइ रे, जेहवी साकर दुधइ मिलइ, परिखद नइ मनि भावइ रे. २३३७ प्राणी कांइ चेतु रे दोहिलु मनुष्य-जंवारु रे, तु हो माया ममता वारु रे, कांइ आप सवारथ सांरु रे. २३३८ तुह्मो करथी रयण महारु रे, संसार-सायर छइ खारं रे, अतु दोहिलई लहिउ ऊवारु रे, कांइ सबल पुण्य वधारो रे. २३३९ कांइ हइडा सिउं अवधांरु रे, ए तु पापी मयण-धूतारु रे, मनथी मोह ऊतारु रे, भगवंत ध्यान संभारु रे...दुपद लाख चउरासों योनइं भमीउ, तुहइ न लाधु पार, निगोद तणां दुख दोहिलां, वेया अनंतीवार रे, २३४० प्रा. For Personal & Private Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ जयवंतसूरिकृत सूक्ष्म बादर तस थावर, जाति पंचेद्री अवतारई रे, चउद राज पुद्गल परियट्टइ, फर्या अनंती वारइ रे. २३४१ प्रा. पंचेन्द्रीपणू छइ अति दोहिलू, ते मांहई गति च्चार रे, सूर नर तर्यच नरक जवान, भवि भवि दुख अपार रे. २३४२ प्रा. पसूय तणइ भवि भारइं जूतु, सहइ वध बंधन छेद रे, अंतर न लहइ दिवस निशानु. न लहइ पुण्ण विभेद रे. २३४३ प्रा. देव तणा भव विखई जाइ, कलह करइ वली माहि रे, सुरपति किहारई रीस विशखेइ, मारइ कुलिश-प्रहारि रे. २३४४ प्रा. वेदन वेइ नरकि पहुतउ, छेदन भेदन ताप रे, सहिजिं दविध दुखु जि लहीइ, समरइ पुरव पाप रे. २३४५ प्रा. मानव भविं आरय-देश दोहिलु, दोहिल श्रावक-जंवारू रे, साधु-समागम धर्म सामग्री, लाभइ को एक वार रे. २३४६ प्रा. धरम लहीनइ आलिं न गमीइ, पातिकडां परिहरीइ रे, अस्थिर भाव सवे भव मांहि, कहिनी माया धरीइ रे २३४७ प्रा स्वारथि सहु को दीसइ वाहालू, कोइ न सगू सहाइ रे, कुहुना मित्र कलत्र सुतादिक, मात पिता वली भाइ रे. २३४८ प्रा. इणि संसारइं कोइ न रहिसइ, राजा रोर विख्यात रे, यमनइ मंदिरि सहू को सरखु, सहुनी छइ एक वात रे. २३४९ प्रा. पर प्राणीनी पीडा तिजीइ, विण अपराध न हणीइ रे, पिश्रनपणउ पर मर्म न मोसा, वचन अलीक न भणाइ रे. २३५० प्रा. थापणिमोसु पतित वीसारिउ, परनु द्रव्य न ग्रहीइ रे, पर-स्त्री-सहोदर बिरूद धरीजउ, लोभ न अधिकु वहीइ रे. २३५१ प्रा. पांचइ इंदी निज वसि कीजइ, राग न रोस न धरीइ रे, न्याय तणउ पंथ किंमहि न तिजीइ, सवि प्राणी सुख करीइ रे. २३५२ प्रा. दान शील तप भावना, मुक्ति तणां सउपान, चिहु परि भाख्यां जिनवरइं, धर्म तणां अहिठाण. २३५३ दानइ दूरित सवे टलइ, मन वंचित पामंति, पुण्य-दुमनु बीज ए, मुगति तणां फल हुति. २३५४ गरुयडि दानि नवि घनइ, संचि म मूढ गमार, दानई उंचा मेहला, नींचा सायर खार. २३५५ For Personal & Private Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी १७३ प्राहक दायक आंतर, गिरूउं 'मेह मझारि, जल लेतां हुइ समला, ऊजल देतां वारि. २३५६ दानि झरइ कर-मूल जउ, तु पामइ बहु भोग, जिम मयगल तिम माणसां, मानइ भूपति लोक २३५७ दायक भाव धरी दीइ, ग्राहक पात्र ज हुंति, भावइ भाव अनेरडु, त्रणे दानि तरंति. २३५८ वसुधा-मंडन सुजन-जन, सज्जन-मंडन धन्न, दान जि मंडन धन तणउ, दानह मंडन मन्न. २३५९ शीलइ शोभा दानथो, महीमंडलि गुणवंत, नरनारी शीलई भजइ, शीलई सवि सुख हुंति, २३६० शीलइ सुखसेव करइ, सुख संपति सौभाग्य, लक्ष्मी लीला लवणिमा, भूतलि अद्भूत भाग्य, २३६१ कुसुम-माल अहिवर हवइ, जल हुइ जे दाव, विसम सहूं अरि सुहृद सम, ए श्री शील-प्रभावि. २३६२ वइरी न सकइ परभवी, दूरि दलइ सवि कलेश, मनवंछित सवि संपजइ, नुहइ दुखु लवलेश. २३६३ शील पलइं इंद्रीय वसिं. ते तपथी वसि थाइ, मन-चित्यां सुख पामीइ, दुतिनां दुख जाइ. २३६४ रोगी विरही दुखीयां, सुजनि परभषीयांइ, एतांनइ तप-शरण दइ, सुख दिइ परभवीयांइ. २३६५ वैया विण नवि छूटइ, कोधां पुरव पाप, तपथी कांइ छूटइ, जिम छांहीडइ ताप. २३६६ जे दूरई नवि पामीइ, अति दुरलभ होइ, ते सवि तपथी पामोइ, दुरित पणासइ लोय.. २३६७ पांचे इंद्रिय वसि करी, दुस्तप तपतु थाइ, जु होइ भाव घणेरडु, ते बिण निःफल जाइ २३६७ दान दीइ शील अणुसरई, तप अति घणु करेइ, ते तुख पवन तणी परई, भाव विना जाणेइ. २३६९ भरतेश्वर केवलि लहिउं, भाव तणइ परमाणि, मरुदेवी मुगती गइ, एहती भावन आणि. २३७० इणि परि घरम समाचरइ, चिहु मे भेदि रसाल, मुक्ति- रमणि उस टूकडी, न पडइ भव-जंजालि. २४७१ For Personal & Private Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ जयवंतसूरिकृत ढाल ५० राग धन्यासी (भमरा सूडानो, अ दसी) एहवी देशना साभली, पूछइ अजित विनांणी रे, पूरव-भव तप आपणु, गुरु कहइ तेबु चोनांणी रे. २३४२ सांभलि सांभलि अजित तू, भाषा परिषद साखि रे, वाणी साकर समवडि, जेहवी मीठी द्राख रे...दुपद पुष्प-पुर नयर सोहामणउं, सुलस वसइ व्यवहारी रे, न्यायवंत गुण पूरीउ, तस धरि सुयशा नारी रे. २३७३ सां, कर्मकर तेहनइ मंदिरई, भद्रक स्त्री भत्तार रे, दुग्रादुर्ग सुहामणां, प्रीतिवंत अपार रे. २३७४ सां. अझआली पांचमी दिनई, दुर्गा सुयशा साथई रे, पहुती साध्वी मंदिरिइ, भद्रक सभावि रे. २३७५ सां. सुयशाइ तिणि दिनि करी, ज्ञान तणी पूजा, ते देखीनई सुंदरी, साध्वीनइं पूछइ दुर्गा रे. २३७६ सां. साध्वी कहइ ज्ञान पंचमी, एहनु फल छइ बहुल रे, दुख दुर्गति दोहगपणू, पाप पणासइ विउल रे. २३७७ सां. इणि दिन पुस्तक-पूजना, जे करइ वस्त्रनइ फुलि रे, नेविज्ज ढोइ आगलिं, दई अनुकुलिं रे. २३७८ सां. शक्ति सारु वली तप करइ, भाव घणेरु आणी रे, चतुर सोभागी तेहवु, सर्वज्ञ केवलज्ञानो रे २३७९ सां. आरति चिंता सवि टलइ, सुपनंतरि नहीं घरइ दुखु रे, ए तप महिमा अति घणउ, पामइ वंछित सुखु रे २३८० सां दुर्गा कहइ सुणु स्वामिनो, भाग्यंइं धर्म-संयोग रे, अह्म सरखां जे दासडां, ते किम पामइ योग रे. २३८१ सां. तुहइ शक्ति अह्मारीइं, पालीसइ धर्मप्रकार रे, दान अनई तपशक्तिथी, पालसि शील अपार रे, २३८२ सा. सघली पर्व-तिथि वली, कंत तणउ मुज नोम रे, आवी मंदिरि आपणइ, पडिवजी धर्म ज इम रे. २३८३ सां. सुख दुख मननी वातडी, वाहलां आगलि कहीइ रे, जेहवू जाणी कंतनई, स्रोइं निज धर्म भाखिउ रे. २३८४ सां. For Personal & Private Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शंगारमंजरी ते पणि दुर्ग प्रशंसउ, पर नारी नीम लीध रे, दुर्गाई जेहवु आचरिउ, तेहवु धर्मराज कीध रे. २३८५ सां. तेहजि नियमनइ पालवइ, पार्मिउं समकित सार रे, सफल भूइ बीज वावीउं, अधिक विस्तार रे. २३८६ सां. दुर्गाइं ज्ञान-पंचमी, आराधइ एक चित्ति रे, मनसा सुद्धई तप करइ, पुस्तक पूजइ भक्तई रे. २३८७ सां. ढाल ५१ राग धन्यासी (वीरा रे वधामणी, ओ दशी) इणि परि बेहूं जण एकमनां, आराधी जिन धर्म, काल करी दिनि केतलइ, पुहुता पर सौधर्मि रे. २३८८ एहवां रे फल पुण्यनां तु, जोउ भलीयण प्राणी रे, किहां ते कर्मकर पाघरां, सुरवर संपद आणी रे...दुपद तिहाथी होइ जण ते च्यव्यां तो, अजित थयु दुर्ग जीव, शीलवती दुर्गा हवी, तेह भणी प्रेम अतीव रे. २३८९ ए. दुंर्गाइ पूरव-भवइं ज्ञानारांधन कीध रे, कुशलपणू अति तेह भणी, डाहापण बुद्धि प्रसिद्धि रे. २३९० ए. पुरव-भव अभ्यासडइ, समक्ति शीलई दृढता रे, ते पणि पामो संपदा, पूरव-भवि पुण्य करतां रे, २३९१ ए. वचन सुणि सहिगुरु तणां, जे जातिस्मरण संजात रे, प्रतिबोधणा बेहू जणां, शीलवती नई कंत रे. २३९२ ए. वलतू श्री सहिगुरु भणइ, देश शोल-फल एह रे, सर्व व्रत हवइ आदरु, चारित्रथी हुइ तेह रे. २३९३ ए. एहवू जाणी दंयती, ते मन परिउ वइरागि रे, चारित्र-व्रत अंगीकरिउ, धर्म तणइ अनुरागई रे. २३९४ ए. पंच महाव्रत अणुसरइ, सुधी पालइ समिति रे, निर्दुषण संयम घरइ, मनथी छांडी कुमति रे. २३९५ ए. इम करता दिनि केवलइ, च्यवीयां पुण्य संयोगि रे, ब्रह्मव्रत दृढता थकी बेहु, पुहुतां ब्रह्मलोकई रे. २३९६ ए. तिहाथी कालक्रमई च्यवी, पाली निर्मल शील रे, अजितसेननई कांमिनो, मुगति जसइ सलील रे. २३९७ ए. For Personal & Private Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत सोलई विघ्न सवे टलइ, मनवंछित फल होइ, नरवर सुरवर संपदा, घर-अंगणि सवि जोइ. २३९८ कल्पद्रुम श्री शीलनु नवविधि वाडि रसाल, मनवंछित सुख पुरवइ, सुर-सुख मुगति विशाल. २३९९ मयण महा-भड जीपत्रा, जे धरइ शील-सन्नाह, जय-लक्ष्मी तेहनई वरइ, घरनी अंगि ऊमांह. ३४०० दिनि दिनि उदय हुइ घणउ, सघलइ जयजयकार, ए सवि महिमा शीलनु, मानइ सवि भूपाल. २४०१ शोलवती चरित्रई करी, अह वखाणिउं शोल, भवीयण पालु अक मनि, जिम पामु सुख लील. २४०२ वीर जिणेसर सीसवर, सुहम-सामि गणधार, साधु गुणई सोहामणो, जेहनु वंश-विस्तार २४०३ श्री कोटिक गुण चिरंजयु, वैरी शाख रसाल, चंद्र तणी परि ऊजलु, श्री चंद्रकुल सुविशाल. २४०४ वृद्धतपापक्ष जाणीइ, श्रीरत्नाकर गछ, कल्पलता जिन वाघती, दीसइ जिहां गुण-गच्छ. २४०५ श्री तपगच्छ उधोतकर, श्रीविजयरत्न सुरिंद, जिम सूरपति सूस्वदमा, जिम ग्रह-गणमां चंद. २४०६ श्री विजयरत्न सूरिंद गुरु, पट्ट महोदय भाण, श्री धर्मरत्न सूरीश्वरु, केतू करू वखाण. २४०७ वादीकरि-कुलकेसरी, मुनिवर कुल-शृगार, वल्लभ संयम-कामिनी, गुण-गणमणि भंडार. २४०८ तास सोस सुर-तरु समा, सेवइ नरवर पाय, श्रीविद्यामंडन सूरीश्वर, श्री विनयमंडन उवझाय. २४०९ श्री विद्यामंडन सूरिंद गुरु, सीस सोभागी सार, श्री सौभाग्यरत्न सूरीवर, विजयमान गण धीर. २४१० For Personal & Private Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शंगारमजरी ओं विनयमंडन उवज्झाय, गुण गणतां न लहूं पार, श्री विद्याइ सूरगुरु समा, रुपइ मयण अपारु. २४११ भावियण-जन मन-मोहनी, जस वाणी-विस्तार, लब्धिं गौतम गुरु समा, सुह्म सामि परिवार. २४१२ जे श्री गुरुनु वंश पणि, पसरिउ अति सुषिशाल, सकल सछाय सोहामणु, जिम तरु माहिं रसाल. २४१३ ते श्री सहिगुरु गुण तणा, कहितां नावइ पार, मुझ मुखि एक जि जीभडी, गुण तु घणा अपार. २४१४ कागल ससिहर ऊजलु, जेहवू निर्मल रूप, जस यश लिखीउ दीसीइ, मिय मय ससि सुरुप. २४१५ प्रथम सीस सोहामणां, सघला गुणनु ठांय, विजयमान कुलमंडनइ, श्री विवेकमंडन उवझाय. २४१६ चंदतणी परिवाधता, बीजा सीस सुविचार, श्री सौभाग्यमंडन पंडित, चतुर सोभागी सार. २४१७ अवर सवे परिबार जे, श्रीगुरू तणउ विशेखि, ते चिरनंदु भूतलिं, साधु साध्वी अनेक. २४१८ नामई श्रृंगारमंजरी, शीलवतीनु रास, श्री विनयमंडन गणि सीस कीउ, जयवंत लधु सीस तास. २४१९ मंदमति अति लघु वई, अतिरस सरस प्रमाणि, कांइ अणघटतू कहिउं, खमयो तेह सुजाण. २४२० आगई जे कवीयण हवा छइ, वली होसइ जेइ, हूं सविनी पग-रेणुका, हैयडइ धरयो एइ. २४२१ श्री विनयमंडन गणोंद्रनु, लघु सीस भूमि प्रसिद्ध, जयवंत पंडित अभिनवी, श्रृंगारमंजरी किद्ध, जां रवि सायर चंद्रमा, धरणी मेरू-प्रमाण, तां चिरनंदु ग्रंथ 'ए, जां पृथ्वो मंडाण, २४२२ २३ For Personal & Private Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जमवंतरिमल संवत सोल चउदोत्तरो, आसो सुदि गुरू बीज, कीधी शृंगारमंजरी, जयवंत पंडित हेजि. इतिश्री शीलवतीचरित्र गर्मिता श्रृंगारमंजरी नाम्ना, सुभाषिता समाप्ता, संवत १६८५ वर्षे पो० सुदि र बुधे लखितं, हबदपुरे मध्ये, प्रेमसागर लिपि कृताः, श्री रस्तुः, श्रुभंभवतु, कल्याणमस्तु छ. श्री, ठ, छः, श्री. कडुआमती गछे श्राविका बाई मटु पठनार्थ. झुंभम् भवतु छ. For Personal & Private Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाठान्तर अनो आरंभ : श्रीगुरुभ्यो नमः, दुहा. खनो आरंभ : सकल वाचकसभाभामिनीभालस्थलभूषणायमान महोपाध्याय, श्रीशांतिसागरगगुरुभ्यो नमोनमः, धुरि दुहा गनो आरंभ : सकल वाचकसभाभामिनी भालस्थल भूषणायमान महोपाध्याय, श्री २१ सत्यसौभाग्यगणि गुरुभ्यो नमोनम:. घ. ना आरंभ नथी १. गं. जसी अ. पणम् २. ग. करइ क.अ.घ. धरि अ.ख.ग. उवरि. अ.ख. पइ ग. झाझर झमकार ३. ग. जिसो; ध. जैसु. अ. ख. अभंग अनंगनु, ग. अंग अभग अनंगनो ४. अख; झीणु; ग. झीणो अ. ख गं. विकसित अ. पंज ख.ग. खंजन अ. घणुंह ६. ग. जुग ७. ख.गं समान अॅ.ध. अभिराम ८. अ.ख. ग. सचराचरि अ. घ. गुणमणिनुः ख ग. गुणमणिनो ए ग. पण ग. नांण अ.ख. दखवो ग. टालओ ख.ग. मोहनो अ. चुपइ, ख. ढाल चुपइनु; ग. ढाल चोपाइना [ नांध. डाल, राग अने देशी अगेनो पाठ निर्णय सामान्यतः प्रत 'क'ने अनुसरीने छे. पण जरुर जंणती प्रत 'ख' अनें 'ग'नी ते अंगेनी विगता अपनावी है. ] १०. . अ पुहचिर, ख.ग. पुहचइ अ.ख.ग. धर्म ख.ग. विचार ख. ग. सयल ११. ग. झोणो; घ. झीणड आकरू ख. मणिपाथरू; जांणीइ ख.ग. वखाणइ; अ.ख. घ. जणीइ; ग. घ. किम ख.ग. कोजइ बग. राहुनो १२. ग. खारी ग. मणि पाथरो; घ. पश्रुं मणिनु अ. सुरतुर अ. जांणीइ; ख. खीणी १३ अ. लहु ग. सद्गुरुनो अ.ख. कहु अ. तु ख. ग. कोयलि ख. ग. होय. अ. ख. ग. सोय १४. ख.ग. वडतपगच्छ अ. ऊवझाय ख. सीलि; ग. सीलई अ.ख. ग. लब्धी १९. अ. ग उजली ग कीरति अ चिहुदिसि अ. सौभागि; ध. सोभागि ख. ग. जलहली; घ. जिलहली अ. अहनसि; घ अहिनिसि अख सारि १६. आ गाथा 'घ'मां नथी. अ. ख मीठी अ. ख.गः तेहवू अ. ख ग. निरमल १७ ख. ग. घ. जयवंत पंडित ग. थाय अ.ग. झंगारमंजरी अ. बोलू; ग. बोलु ग. शीलवनीनुं १८. घ. करता अ. ख ग घ अक चित्ति अ. ख.ग. थाय अ.ग. होय अघ. पहि ख. पाहि ख. दोहिला अ. ग. महिमंडल अ. ख. घ. जोय १९. अ. विस्तार ग. दिहुं अ. दिसि; अ.ख.ग. दिसिं अ. ख. ग. सरवर; घ. सरवर अ. प्रसविइ; ग. प्रसव अ. कमलनि; ख. कमलिं; ग कदुमनिं; घ. कमलिनिं अ. समीर ग. वधारई: २०. अ. अनि; ग अनइ ख.ग. वांणी अ. चमकिइ चितडू २१. ख. ग. सुरंम्म अ. चमकिः ख.ग. चमकि खु.ग. हर. २२. अ. ख.ग. ससांमला ग. कुकवी; घ. कवी २३. ख ग. माणसां अ. विण क. सुणत अख वय २४. अ.ख.ग. अणरसीओ ग. जणाय अ. केलविइ: ख.ग. केलवर अ ग. थाय २५. अ. ख. विण ग. वय अ. हेअडलू; ख.ग. हैअडलं अ. ख.ग. करि २६. ख.ग. सज्जन ख घ. गाहा सरस विलास अ.ख.ग. घ. नीसा से ख. ग. बलइ ख दिइ २७ ग. समितिनां अ.ग. समय ख.ग. हैयडू घ. छयलडा २८. ग. पभणइ घ. पभणइ ख. छंद ग. छेदिउ अ, जाणा; ख. ग. जाणि ख.ग. नहीं २९. ग. तेहनइ ३०. ख. ग. लहि; घ. लहिइ अः भूड़ा अनइ; For Personal & Private Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० जयवंतसूरिकृत ग. भूडा अनई.ख.ग. अलखांभणा अख. कोडि ३१.ख. सुमाणस; ग.घ. सुमाण सह घ. दहीडां अ.ख.ग; नीगमीआ; घ. नींगमींआ ३२. ख.ग. सादू सोकवि घ. करण अ.घ. वयणलां ख.ग. जाणई अ. दंसिइ ख. दूसि'; ग. दूसई ३३. ख.ग. लहइ ख.ग. काढईअ. कामिनि अ.ग. पयोधरा ख. सोइ; अ.ख.ग. सूग. घरई३४. अ.ख.ग जु अ.ख.घ. तु सिउ: ग. तो सिउ अ.ख तिजिउ:ग. तज अ.ख.घ. तु सिउ; ग. तो सिउ ३५. अ. सहजि; ग. सहजिई; घ. सहिजि अ. वाणी वं. सरसजउं; ग. सरसजिउ अ.ख.ग. किसू३६. ग. गभिउ ख. उगिउ ग. तो सिउ अ. सूरिय खग.सूरिज अ.ख. गय ग. गया अ. सघलि; ख. सघलहे;ग. सघलइ ख. हउ ३७ अ. कहई; ख.ग. कहिं अ कहइ ख.ग. कहई ख. मोहइ ख.ग. प्रबंध ग. गरि; घ. गिरि मोटइ अ. सोहि ख; सेहिंग ग. सोहइ'; क. संघ; ख. सधि ३८. अ. प्रत 'अ'मां आ कडी नथो. पयडण ख ग. दासिणि जिम्म ग. विषय छवि ३९. अ. जोडनइ; ख.ग.घ. जोडनई अ. वीनवू : ख.ग. दौमवू अ. कोय; खं. कोय; ग. कोय ग. धरज्यो. ग. सुकवीनो अ.ख. नही ग वातनि नहि ४०. श्री की प्रत 'अ.ख.ग.'मी नथी. ४१. ग. सुकवीन, ग. वखासिंउ अ. सहूनि. अ. हुइ ग. ढाल, राग दरो, श्रेणिक स्यैवाति चंडियो से देशी ४२. ग. पृथवीय अ.ग. कहीय अ.घ. माहि अ.ख. मूलगू; गै. मूलगुं अं. माहि; घ. माहि अख.ग. चिहुँ ख.ग. निरमल ख.ग. जीणि; ग. जीणि खग पुरि ख. गे चेल्लई अ.ख.ग. जित्त घ. गत्तिनि अ. दूपद ग. द्रपद ग. द्रुपद ४३. अ. चुपट्ट अ. बिहुदसि: ख. विहुदसि: ग चिहुदिसि घ. मालिया अ.ग. सप्तभूमि ख. खेलात अ. नयननली सविकासि ख नयन नलिनी बिकास. ग. नयन-नलिनि विकासि; घ नलिन विकासि अख.ग. अक अ. मानव खे. चितईग. चितई अ.घ.किम घ. आकासि ५४. ग. चल्लई अ. कर-ग्रहित अ. अकमेकि अ.ख.ग. तंबोल अ.ख. किहि; ग. केहि ४५. अ.ख. चहुटइ: ग. चोकीपष्टि; ग चहुटइ . गे. मनंगमति ख ग. खति.अ. जिसु. अख.ग. च्यारिवि. ख. चहुटइ; ख. चहुटइ; ग. चटई. ४६. अ.ख.ग ध. रणकंत. अ. कलसि. घ. मलपति. ग. मकु नयन. ४७. ख.ग. कैलेस कलस अ.बं. महितलि. अ. कनकदंडि. ख.ग. जलहलइ. ग. लहइ लहइ. ख.ग. आरति. अ. गहई गहइ. ४८. घ. चर. ख. कम्मु. अ भणंति. अ.घ. वर्णभाइ. ४९ जिहां अ.ख. त्याकर्ण. ख. किही. अ.ख. कर्कश तर्क क. साहित. अ. चंपामालिका; ग. चंपूमालिका ख. चपामालिक. ५०. अ.ख.ग. चमकंति; ख. चहु'टइ; ग. चहुटइ अ.ख. राजमंदिर. अ.ग. बिपक्ष; ख. बिहुपक्ष. ग. मानव. ५१. प्रत' खूटलू टा: घ. खूट लुटा. ५२. अ. चहुदिसि; घ. चिहिदिसि. अ. चित्रति. ग.घ. पोलि अ.ख.ग.घ. कॉजि. ख ओलि. अ. पोलि': ख. पोलि पोलई ग. पोलि दानशाला. ५३. अ.ख. सुगण. ख. अर्थी. ख.ग. धरई. ग. जांण. अ.ग. वनिता. अग. छइल. ग. ठांम. ५४. ख.ग. सरवर. अ.ग. नीरि. ख. मनिरली. अ. अलस. अ.ख. चमकति. अ. पाल; ख. पाले; ग. पालि. १५. प. प्रलबया; घ. प्रलंया. अं. तुबया; ग. तुबिया. अ. केतकि. ग. चंच. अख.ग. विमला. १६. अ. खाल. अ. वजुला. ख ग. नवग्कत. घ. वरनलमाल. अ.घ. शालक, ग. औमि. ५७. अं. जाइ जुइ घ. जूही अ.ख.ग.घ. जमलि. अ. हइ. ग कामिनी. खे. कुसुम सीरि. अ.ग. भामिनी. अ. आरत. ५८ सिंहका सूत. अ.घ. कलित. ५९. अ.ख.ग. ग नाम. अ. जणाइ: ख. जाणिई; ग जाणइअ.ख. वरखाणीइ; क वीसानी: ख. राग देशाख. ढाल ३. देशी थूलिभद्रनी अकवीसानी; ग. For Personal & Private Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुगारमंजरी १८१ हॉलं ३, राग देशाख, थूलिभद्रना अकवीसानी देशी; घ. राग देशाख. ६०. अ.ख. भलो. अं. नाभि; ख. नांमि: ग. नामिरे; घ. नामि. ग. सांभलो. घ. सामलु. अख. परणांमि; ग. परिनांमई अ. जीणि. ख.ग. भज्यो. ग. जननो.अ.ख. आंमलु; ग. आमलो. ख. त्रिभूवन मांहि जश. अ. मांहिइ. ग. निरमलो. ख. त्रिभूवन. ख. पुहवि नाहि. अ.ख. पाहि अ.ख.ग. निरमलु ख. थाप्यो. ग. भुवने अ. व्यापिउ; ग. व्याप्यो. ग. शापिउ ग. कशमला. ग. अणुसंरइं. ख. कापई. ग. थापइं ग. कपिइ ग. थरहरइ. ६१. अ. नयरि अ.ग. धांम ग. अभिराम अ. केरूं; ख.ग. केर अग. ठाम. अख.ग. नही अ. जडभावनु: ख. जडभावनः ग. जड़भावनो. ख.ग. नाम रे. ग. अगि. अ. नही. अ. मुहि; ख.घ मूहि. अ. गुणिहि जेठ सुजनि दीठट चगिमा; ख. गुणिहि जेठउ सुनि दीठउ; ग. गुणाहि जेठउं सजने दीठउं चंगिमा; ख. अन्याभंजन. ख. मर्यादा. ग. राखइ. ख.ग. दाखई ख. भाषइ. ६२. ग. नामद; ग. नामि ख.ग. रूपि; घ. रुपि. ग. भ्रमि'. ग जांण. ग. वामन, ख.ग. वासन पाप नासन. ख.ग. सासन. अ.ख. बोहइए: ग. बोहई अ. अ.ख ग कमल-नयनी. अ. मधूर- वाणी, ख ग. मधुर-वाणी. अ.ख.ग. साकर-वाणी ख.ग. प्राणी अ. मोहइओ. अ.ग. श्री नांमि.६३.ख. त्रिभूवन माहि; ग. त्रिभूवन माहि; ग. देखाइ ख ग पाखइ. ख.ग. झुरइ. ख.ग. झूरइ ख.ग चुरइ ख.ग. पुण्यई अ. पुरि पंदमीनी; ख.ग. पुरइ पदिमनी. ख. ग. धरइ. ख रुपिं ग. रूपि. अख कांनिनी अ. बिहु-पक्षे: ख. बिहुं पक्ष; ग. बिहु-पक्ष. अ.ख, नही. अ. भांमिनी ६४. ख.ग. परिहरेइ. अ. चितइ; गं. चिलि अ.ग. श्री जिन. ख ग अनुसरई. अ. दिवसि; ग. दिवसइ. ख.ग. करई' ख.ग. पाखइ. ख. माहि; ग. मांहि ख.ग धरई. ख.ग. धरइ. खं.ग. समलहइ. अ.घ. अति गिइ. अ.मां पक्तिं नथी. ग. अति गिरूइ. ख. नव रे. ग. निरवहइ. अ. पंक्ति नथी. ग.घ. नहींअ. अ पंक्ति नथी. ख. चिति कुंडी समलहई; ग. चित्ति कंदर समलहई घ. चित्ति कंदर समरलइ. अ. सोई सहई ग. सोइ, सहइ. ६५. अग. जिस्यु. अ. यम. ग. जिम ख. जसिऊ; ग. जिप्यु. अ.ग जिम. ६६. अ.ग. भांण. घ. सरुवर. ६७. अ.ख. जिसिउं; ग. जिस्यु. अ. शोभीअ. ख. शोभई. ख. नहीअ. अ. पामीइ. ख. पामीइ. ग. पांमीइ. घ इम. ग. कहई. अ.ख.ग. वेद-पुराणि. क. एह आसाढ ज आव्यो, ओ देशी, राग सामेरी. ग. ढाल ४, राग सामेरी, तथा गोडी, दशरथ नरवर राजीउ, ओ देशी. घ. राग सामेरी ६८. ग.घ. निय-मनि; ग. निअ-मनि. अ. अहवं. ख. अहवू. ख. चीतवई. ग. ची तवई अ. वनिताइ: ग वनिताई अ.ख.ग. ऊमाह रे. अ.ख.ग. निअ-प्रनि. ख.ग. चितई. ख.ग. पोतई. अ.ख... तेणि. अ.ख.ग. जोति. ग. म ति) लही. ग. मूर्ति. अ. गा. ख.ग. महिम गाजई ग. तूर. ख.ग. वाजइ. अ.ख.ग.घ. पूरति. अ.ख.ग. सुरति अ. वंछिअ. ख.ग. वंछित अ.ख. चूरति. ६९. अ.ख.ग. सासन. ख.ग. सुरि ख.ग. सारइ. ख.ग. पुरई.ग. कामजी. ६९. ग. महीम. अ. अक चिति. अ.ग. थई. अ. नेई. घ. न अ.ग. जइ: अ. नई. अ.ख.ग. देई. अ. मई.ख.ग. जागइ', ख.ग. लागइ. अ. तस्य. ख.ग. मागई. अ.ख. नहीय. ग. नहीं य ग. दांनधी. ७.. ख.ग.घ. अनुभाविं. ख.ग. सेठि नई. अ.ख. हवु. ग. हवो. अ. सुर-भवनि. ख.ग. सुर-भुवनि. घ. सुर तर. ख.ग. जसिउ.अ.ख. इउ. ग. हवो. ख.ग. अतिहिं. ख. लहुउ. ग. लहुओ. ग. बहुओ. ग. वडो. अ.ग. सोइ. ख. कुसुमि. ग. सुमति. ग. केवडो. ख.ग. सोइ. ख.ग. शेठ-नंदन. अ. गुण-निल; ख.घ. गुण-निलु. ग. गुणनिलो. ग. दालिइ. For Personal & Private Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ जयवंतरिकृत अ. सुत जन. ७१. ग. महोशव. ख.ग. बारमई'. ख.ग. दिवसई. ख.ग. करइ. ख.ग. अभिराम मी. अ. अनुभावि; ख.घ. अनुभ वि. ग. अनुंभावि; अ.ग. ह. अ. अति. खःगः नांमजी. ख.ग. नाम दीधू. अ. नाम दीधू ; घ. नाम ख.ग. कीधु अ. काम सीधू: ग. काम सीधू. ख.ग. तणु. अ.ख.घ. ढभिकया. ख.ग. धणु आख.घ धमकिया. अ.ग. सोइ. ख. वाघई; ग. वाघई. ख.ग. साधई. अ. आराधि; ख.ग. आराधई. ग. इसिउं. अ. मंदर. अ.ख.ग. इति. अ.ख.ग. सगुण. अ.ग. जिसिउ. ७२. ख.ग. दीइ. ख. दिन दिन. ख.ग. वाघई. अ.ख.ग. कलाई.ग. पूरीओ. अ. रयणा रे. ग. रयणाय. ख.ग. जोइजी. अ.ख.घ. नील-दलिनी. अ.ख.ग.घ बेहु-पक्षि. अ.ख. नही. अ. अधूरु; ग. अधूरो. अ.ग. 'सोइ. क. जडिम. ग. गुणि. ग. सरखो; घ. निरखो. ख.ग. परिख्यु. ग.घ. अवडो ७३. ख.ग. वाघइ'; घ. वाघिइ. अ.ख. श्रदि; ग. दि. ग. केरो. अग. कलाई. ग. 'अलंकाो . अ.ग. त्रिभोवन. ख.घ. नयण-नंद. ७४. ख.ग. चिंतइ हैडइ . ग. जगिं. अ. कमलि लसइ. ख.ग. मिलसई. ७५. ख.ग. अहवइ. ग. तणो. घ. तणउ. अ.ख.ग. दिवस ग. आव्यो. अ. कपूर हुइ अति निरमलु रे, ओ देशी. ख. ठाल ., कपूर हुई अति ऊजलू, ए देशी. ग. ढाल ५, राग केदारो गोडी, कपूर होइ अति उजलु रे, देशी. ७६. ख कहिं. ग. कहइ. ख.ग. मोठडा. अ.ख. सयंगला. अ. नयरीइ; ख.ग. नगरीइ. ग. गयु ग. गयो. ग. हुतो ग. व्यापार. अ. वातडजी. अ. माहरा मननो. ग. तुं तो दीन तणो घ. तूतू, ग. तणु. अ.ख. ऊद्वार. अ. द. ख. बध.. दूसद तथा आचली. ग. बंधवजी. दूपद तथा आंचलो. ७७. अ.घ. नामि. ख. नामिं ग. नांमइ. अ. तीणइ. ख.ग. तिणिं. अ. पुरिरे. अ. जांणीइ. ग. जांणीई'. अ. सजन नइ. ७८. अ. हईडलु; ख. हईडलू; ग.घ. हैड. अ.ग. त्रीजू अ. सोइ. अख.ग. लोचन. अ. मानसि. ग. बांधू. ७९. अ. जेहवु ग. नेहलो. अ मंजीठ. ग. जेहवो. ख. सोइ. ग. तेहबो सोइ ग. नेहलो. ग. अहवो. ८८. ख.ग. दिन. अ.ख. नहुतरिउ; ग. नहुतयो. ख.ग मई, अ. मइ; ग. को अ.ख.ग.घ. प्रेभि. ८१. अहीं प्रत 'अ', 'ख', 'ग', 'घ'मां वधारानी कडी आ प्रमाणे छे. प्रत 'अ' जिहां मन मानि आपणू रे, तिहां सउ करीय विचार, आक धंतुरा सवि गमइ रे हर उरि विसहर हार. ॥ ७९ प्रत 'ख' जिहां मन मानिउ आफ्णू रे, तिहां सिउ करीय विचार, आक धंतूरा सवि गभइ रे, हर ऊरि विसहर हार. ॥ ८० 'ग' जिहां मन मानिउ आपणु रे, तिहां सिउ करीय विचार, आक धतूरा सवि गमई रे. हर ऊरि विसहर हार ॥ ८ प्रत 'घ' जिहां मन मानिउ आप रे, तिहां सिउ करीइ विचार, आक धतूरा सवि ठाप रे, हर उरि विसहर हार. ॥ ७९ 'अ. दोइ. अ लोय; ख.ग. लीइ. अख.ग. कहीउ. अ.ख. घरइ. ग.(घ) रइ अ.ख ग घ पन्नि. अ. जिमइ; ग. मिलिं; ग जमांडिं; घ. जिपाडइ अ. परि; ख.ग.घ. परि. अ. तणू; ख ग. ता. ख ग चित्र ८२. अ घ. घरि. अ, जमवा हु ग. गयो. ख ग. दाठी एक बालि. ख. विणि; ग. त्रिणिं; अ त्रिभुव(न) अ.ख. रुपनू ग. रूप. ८३. अ. सकू घ. सकुइ. ग. आकुल तब थया. ८४. अ. गयु. ग. युगति. ग. पाभिं अ. मनडू; ख.ग. मनइ. अ. थयु, Jain Education Interational For Personal & Private Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धंगारजगे १८३ अ. मइ ख. मइ ग. पुछिउ ग. निसासो अ. मूकी 'अ.घ. कहई ख.ग. कहड अ.ख दूखि ग. दुखें घ. दुखि ग. भरीओ भंडारि ८६, अ.ख. सूदरी ख.ग. मोरई घ. मोरइ मोरइ अ. हइलई ख. हइडलइ'; ग. हइडलई ८७. अ. विदेसि; ख.ग. विदेसिं ग. भमिउ अ. मलिउ; ख. मिलउ; ग. मलिओ अ.ख.ग. सरखी को जोडि ८८. अ. किहि ख. किहइ'; ग.घ. किहि. ख.ग. पामीई घ. सयोग ख.ग. कीजई ग. विण; घ. वण. ख.ग सिउ' घ. सिउ ८९. ग. जाइ ग. मूरख ख ग. थाई ९०. ग. रुपवती. ख.ग. नई अ. प्रिउ ख.ग. जाणई ९१. अख.ग. रसीआ घ. रसीअ ख.ग. मूरख अ.ख.ग. निरगुण अ. प्रीउ ग. तिसिउ अ. सुदरी; ख.घ. सुंदरि नु; ग. सुंदरि नो ९२. ख.ग. सालई ख.ग. फलई क. मानई ख.ग. मानइ ९३. अ.ख. परणिया; ग. परिण्या अ. पाखि अ. भलुअ; ख. भलू ; ग. भलो अख. नही ख ग. ओक ज ख. कडुइ'; ग. कडूइ ख.ग. बोलडई अ.ख.ग. दिन दिन अ. दहइ; ख.ग. दहई ९४. अ. नइ अ.ख.ग. गुण अ.ख. अगलु; ग. आगलो अ.ख.ग. सुजाण अख.ग. अहिनांण ग. स्वगतिणु ९५.अ. कोटि; ग. कोटइ स्युं ख.ग. करइ ख. कामिनी; घ. कांमिनी अ. जू; ग. जो ९६. ख. सिउ ग. स्युं अ.ख. थाय; ग. थाई ९७. अ.ख.ग. सुगुण अ.ख. नालु; ग. नाहलो ख.ग. मलई ९८. ख.ग. पूरव ग.घ. सुगुण अ. जोड; ग. जोडि लहइ ९९. अ.ग सगुणां अ.ख.ग. सरिउ ख. मलइ: ग. मिलइ १००. अ.ग. परिण्या अ. पाखि: ग. पाखई ख. भलु : ग. भलो अ.ग. नहीं ग. मूरख ख.ग. भरतार अ.ख. प्रिय; ग. प्रीय ग. मरख अ.ख. माहि; ग. मांहिं ख.ग. सो वार, १०१. क. जुरइ अ. थोडि; ख. थोर्डि; ग. थोडइ अ. ठाम जि देखीइ: ख. ठामि देखीइ: ग. ठामि देखीइ १०२. अ. मुजनिः ख ग. मुजनइ अ.ख.ग. किहां; घ. किम्हि ख. पांमीउ; ग. पामीओ; घ. पाभियु १०३. अ.ग. वाणी अख ग.घ. इम ग. बोलिउ क. जुरि अ.ग. घणु अ.ग चिंत; ग. चितिं १०४. ख.ग. लहइं अ. नही; ख. नहीं अ. जेहनि; ख. जेहनई अ.ख. घटतू ग. घटतुं ख.ग. हुई अ. मेलइ; ख.ग. मेलि १०५. अ.ख.ग. रतनाकर ख.ग. अछइग. हरख्यु १०६. अ. हेयडा अ. चिंति; ख. चिंति अ.ख.ग. सरखि, अ. सरखू ; ग. सरखू; घ. सरखां अ. मेलसई; ख.ग. मेलसइ १०७. अ.ख.ग. सुगुण अ.ख.ग. सोय अ. दैवि ख.ग.घ. दैवि १०८. ग. मोकलिओ अ. करि; ख. केरि; ग. करइ: घ. केरइ. अ.ख.ग. मू साथि सोइ; घ. साथि. ग. आवीओ १०९. अ. वलतू ; ख. वलतु; घ. वसतू अ. तइ; ख.ग. तई अ.ख. हवु; ग. हवो; घ. हवउ अ.ख. घणु; ग. घणू ख. ढाल ६ राग धन्यासी, पीउडु रे धरि आविं, आषाढभूतिना रासनी देशी. ग. ढाल :६, राग धन्याशी, पीउडठ रे धरि आवि, आषाढभूतिनां रासनी देशी. घ. राग धन्यासी. ११०. ग. सिंउ मोकल्यो. क ख ग. कयंगलि. अ. अजित नइ; ख. अजित नई'; घ. अजितनी अ. गुणवंती; ख. गूणवती. ग. शीलइ. अ.ग. जौउ. अ. होसि. ख. दुपद तथा आचली ग. दूपद तथा आंचली. १११. ग. आव्यो. अ.ग. विलसइ; घ. सविलसइ अ.ख. परइ. ग. अधिको साथि. ११२. ख.ग. दिन. ग. बिंपहुर; घ. बिपहुर. ख.ग. समइ. ग. पोढियां. अ.ग. दोय. अ. तसइ; ख.ग. तसइ. अ. प. ख.ग चितइ. ग. शब्द. ११३. ग. फेरो अ.घ. अहवई; ख.ग. अहवइ. अ. चिंति; ग चिंतइ. ग. मनडा. ख. माहि; ग. माहि. ख. आवइ; ग. आवि. अ. छिड़; ख. छि; ग. छे ग. कुणको. For Personal & Private Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ जयवंतसूरिकृत अ. पुरि; ख. पुरि अ. तांणिउ; ग. ताणिओ. ख. माहि; घ. माहि. ११४. खे.ग. दीसँइ अ. छि. ख.ग. छिई. अ. देई नि; ख. देइ नि. अ.खग. माहारु. अ.ग. कोइ. ११५. अ.ख. र्चितइ. ग. सुआणि. ग मन-भायतुं. अ. महेलू रे; ख. महलउ रे; गं. मेहाला रे. अ. मोरिं; ख.गे. मोरि. ख ग. मंदिर. ग. आणि कि. ११६. अ. साचू : ग. साचू. ख.ग. मिलइ. अंगे. विशेखइ; घ. विशेखइ ख.ग. सीयालि ख.ग. जोईई अ.ख. तु गं. तो अ. जा खं. जाणीइ ; ग. जांणीइ अ. वाति; ख.ग. वातईग. पंपालसी याल किं ११७. अ.ख. बीजु खे. नहीं अ. मानसिइ; ख.ग. मानसइ'; घ. मानसिइ अ. जोउ स्वमेव ख. जीउ अइ स्वयमेवं ग. जो अई स्वर्थमेव ग. आंणी अ. शकुननु; ख. शुकननु; ग. शकुननो ख ग. सुंदरी ११८. अ. जर्जाणिइ; ख.ग. जाणइ अ. काइ ग. कांइ ११९ अ. शिव ग. मने अखं.ग. हरख अ.मे. सुपंच थई अ. सीआलिणि नइ; ख.ग. सीयाली मई दीउ घ. शीऑलि मि अ. दीध; ग. दाधू अ. जस भोज्य; ग. तस भोज्य; घ. सभोज्य अ. धन्यासी; खै. ढाल ७, राग धन्यासी, सालि मद्र मोगी होइ देशी अहनी छ. ग.ढाल ७ राग धन्यासो सालिभद्र भोगी रे हों, में देशी: छ राण धन्यासी १२० ग. पंच-रत्न धरि अ. आणिया: ख.ग. आणीयां अ. चितिहि; ग. चिति घ. विहांणामां अ. प्रीनि; ख. प्रीऊनि अ.ख.ग. कहिउ अ-ख. जोड; गे: जुन अ.ख.ग. कानी अ.ग. त्रिभुवन; ख. त्रिभूवम. अ.ख. जेहनु; ग. जेहना अ. मोटउ; ख. मोटो; ग. मोटा ख.ग. छई अ. माहि; ख माहि ग. मांहि अ. द्रुपद ख. द्रूपद. ग. दुपद १२१ अ.ख.ग. घणु; घ. घणु ग. हुवो ग चितवई ग. भोलो १२२ ग. राति ग. अंधारे अ. ग. जांणतु; ग. जाणतो ग. अशती १२३. घ. विरमिउ ग.घ. थिकी अ. अहनि; ग हनाई पीहरि मॉकलो १२४ः अ.ख. हईडि; घ. हिडई कोई ख.ग. विमांसोल'; घ. विमासी अ. किंधू: ग. कीधू; ख ग. तणई क. प्राण; ख ग प्राणीओ, घ प्राणीउ खंग. लहहैं ग. करतो १२५. अ. कुड; ख. कूड; ग. कुडो ग. देखाडीओ. ख ग. जिमदत्त नई अ.ख.ग. तुझे; प. तुम्हे तेडिया; ख.ग. ते तेडियां अ.ख. स्त्रीनि कहि; ग स्त्रीनि केहि १२६. अ.घ. आकारि घ. नयणा अ. चेष्टाइ ख.ग. बोलावई ख.ग. लहीइ ख. ममनु; ग. मैननों. १२७. अ. श्रीइ ख. ओलख्यु ख ग. चिंतइ अ. कर्मनु; ख.ग. कमनो अ. कर्म: खं.ग. कर्म न छूटई ख. कहुनु: ग. कहुतो ख.ग. कीजई १२८. ग. पहिलं; घ. पहिलू ग. वरांसडा खें. पति नि अ.ख. हवि तु; ग. हवि तो अ.ख. अहवू संपनु, ग. संपतो अख. हवि; ग. हवि जो उन्छेह १२९. ख.ग. छेहडई ख.ग. ऊपजई ख ग. सा पहिलों ग. जो ख.ग. होय अ. जग हसु ख. नइ ग. हाणे ख. बिपरि ग. बिपरि; ख.ग. होय १३०. ग. रीसाव्यां ख.ग. दोसई ख. कई ग. कई अ.ख.गे अमीणा अखे.ग. कई वयरी कान; ग. भराइ घ. कान भराई १३१. अ.म. भगां सज्जन; ख. भगां सजन ख. चालई ख. नहीअ अ.ख. पराण अ.ख.ग सीगिणि ख.ग. लगई ख. बणि १३२. प्रत ख.ग मां आ कडी अने ते पछीनी कडी ऊलट क्रमे छे. प्रत घ.मां आ कडी नथी. पाठान्तरो संपादित ग्रंथपाटनी कडीमा कमें नोध्या , ग. रूसगडां ख. मई ख.ग. हइइ अ. खटुकई: ख.ग. खटूकई ग सात जिम्म अ. भगु; गं. मग ख. सजम अ.बं.ग. मेग्ने १३३. बीलि; ख.ग. बोलइ अ. चिंति; ख ग. चित्ति ग. उत्तरीआई अ. समांणां अ. दीसइकाई; ख.ग. दीसई काइ१३४. ग. विहिडयां ग. जाणे खं. पखी ग. पंथी अ. जाई; ख.ग. जाई ख. अंधा अ.ख.ग. दीसीई ग. थाई १३५. अ.ख. जोयत; ग. जोअतां For Personal & Private Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगार मंजरी १८५ १३६. अ.ग. पार्छु; ख. पाहू अ.ख. ग. दीहा तणा अ. नही १३७. ख.ग. देखइ अ. ख. नही १३८. ग. मांणसां अ.घ. लोयणां; ख.ग. लोअणां ख. चित्रोडीया; ग. वितोडीयां ख.ग. अंधपणू अ.ख.ग लहुति १३९. ख. काढि; ग. कार्टि अ.घ. जाहारि; ख. ग. जिहांर १४०. ख. भल : ग. भलो अ. हबू ग. लाघो मननो ग. सज्जन ख.ग. छइ ख.गं. छेह डइ. अ. हूयां: ख हुय; ग. हूआं अ. सार; ख.ग. छार १४१. दुर्जन खग. अवसर अ. लहिवाइ; ख. ग. लहिवाई अ. अपराधि; ख.ग. अपराधी अ.ग. नवि अ. ऊभजइ; ग. ऊभजइ अ. कहुइंवाइ; ख. कद्देवाइ; ग. कहिवाइ १४२. ख. ग. कर्म ख. ग. घ. वसई अ.ख. जु; ग. जो ख. ग. त्रटइ ग. तो अ.ख. ग. मन मांहि ख.ग. झुरीइ ख.ग. नीच घ. पेम १४३. ग वहिडीयां ग. मिलसि अ.ख. ग. मीठउ; अ.ख. स्यु अ.ख. जु; ग. जो ख.ग. करइ १४४. स्व. उच्छां; ग. ओत्छां अ. छांडीइ; ख.ग. छांडीइ; घ. छंडइ ख ग. वणसाडीई; घ. वणवाडीइ ख. ग. रहीइ १४५. ख. परीइ; ख. परीइ अ. तजाइ; ख.ग. तिजीइ अ.ख.ग. सायरनां लहिरडां ख. ग. कोजइ १४६. अ.ख. जो; ग. जो ख.ग. छइ ग. ज नीरमलो ख.ग. टलसई अ.ग. नीय-मनि अ. चीतवी; ख ग घ चींतवी अ.ख.ग. रथमांहि अ. कीध; ग. किद्ध १४७. अ. वाटि; ख. वाटि; ग. वाटइ अ. धणा ग. शकुन हवा ग. मनो अ. कहू; गः कहु १४८. आ कडी प्रत 'घ'मां नथी. ग. वरवर्णिनी ख. वृषभ जगाई; ग. वेश्या वृषभ गाई ग. दुर्वा ग. फलिफूल ख. ग. जाइ १४९. आ कडी प्रत अ. ख. घ. मां नथी. ग. रूप्पमणि ग. छात्र- चामर ग. सोवन ग. महिमावत १५० ख ग. गोमय ग. दीवो, अ.घ. दिवु ख ग घ वीणि अ. ख.ग. वृद्धापन क. पंडिति अ. ग. सुक १५१ ख.ख.ग. अतां ग. मेहलेवां ख. जिमणाइ: ग. जिमणाई अ. पामीइ; ख.ग. पांमीइ ख. अणांइ; ग. अणांइ; घ. अणाई' १५२. अ.ख.ग. रगत ख.ग. कुंभ अ.ग. दोइ; ख. दोइ ; घ. दोइ ख.ग. होय ख.ग. करइ अ. कइवार जु; १५३. अ. घ. जिमणाथा: ग. जिमणांथां ख.ग. वलइ घ. ख.ग. जांई ख.ग. ऊवडू ग. सहोय १५४. ग. सिखी; घ. शिखा ख. सीचांयडु; ग. सीचांणडो अ. वायसनइ ख.ग. सावडूं अ.ख. ग. पंथई १५५. अ. बोलिइ; ख.ग. बोलइ ख. ग. जिमणइ ख. टीटोडी ग. चील्हडां; चीहुडां १५६. ग. लाटि कुरंगी नोलीओ ग. धनसंपदा १५७. अ. ख.ग. शाहि अ.ख.ग. डावां अ. खग. जु ख.ग. करइ घ. सभाव १५८. ख. कइंवार जु; ग. केर जो (डा) वां वलइ अ. ख.ग. सजाय; ख. ग. लगाडि ख.ग. स्वभावि १५९. अहवो अ. ख. ग. स्वभाव १६०. ग. ख. ग. लवइ ख.ग. होय ख. ग. मधु अ. ख. ग. जोय ग. तेहनो अ.ख. पूठि भलु; ग. भलो ख. भेहवु; ग. लुंडी ख.ग. भइरंव अ. ख.ग. गमनि घ. तेह अ. घ. स्यु अ. लहसइ ख. ग. लहसइ घ. ह ख.ग. लहइ ं; घ. लहइ अ.ख. त्रणि १६१. अ. ख.ग. पीआंणडइ घ. प्रीआड ख. स्वरंग करई अ. ख, आसन अ.ख.ग. डावि ख.ग. पासई ख. सोहांमणा; ग. सोहांमणी ख.ग. हुई अ. आसन, ग. आसन्न १६२ अ. पंथइ; ग. पंथई ख. हर गति जिमणीली ग. हर गति जिमलीणी अ.ग. उपाई; ग. ऊपाई १६३. अ. ख.ग. च्यारि; घ. च्यारे ख. ग. जोई ग. जांत डावा स्वर करइ अ. तु सुख; ग. तो सुख संपद होय. १६४. प्र 'ख' अने 'घ'मां आ की नथी. अ. परि; ग. परि ग. परिणांम ग. पंथ हवा ग. चिंर्ति १६५. अ. वहिल; २४ For Personal & Private Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ जयवंतसूरिकृत ख. वहिलू. ख.ग. हसइ अ.ग. महुत अ.ग. चालई ग. उतावलो ग. हविं जुओ अ.घ. शुकननु; ख. श्रुकननु; ग. शुकननो क. राग केदारु अ. राग केदारु ख. राग केदारु पूरवी, ग. राग केदारो, पुरवी गि सुकमालना चोढालीयानी, अणि परि राणी देवकीओ, से देशी घ. केदारु १६६. अ. चिति निवारीइ; ख. चिंति नवारीइअ अ. देवनइ; ख.ग. देवनइ ख.ग. बुद्धि १६७. अ.ख.ग. कीधु अ. जलनधि. अ.ख. जाणे; ग. जांणे. अ. अहवं; ग. अहवो. अ. नही अ.ख. तरि; ग. तरि. ग. स्यदनथी सहू ख.ग. उतरई'; घ. ऊतारी ख. जोतरइ'; ग. जोतरिं अ.ख. हलवु; ग. हलवो हवो अ. १६८. अ.ख.ग. वह खग. प्रति ख ग. बोलिं ख.ग. मतिं ग. रमति रे छंडो ख.ग. वह ख. अही ग. आगलिं ख.ग. ऊंडां अ.ग. पांणीय; ख. पाणीय अ.ख.ग. जांणीय ख.ग वाहणीय ग. उतारो ख.ग. याय १६९. अख.ग. वहांणी ग. ऊतारीअ अ.ख.ग. निवारीय ग. सारीय. अ.ख.ग. चलाणे. अ. चिंतई; ग. चिंतिं. अ. वली बोल ज कीधा वामा ख. पण; ग. पणि. ख. रमकती रे अ. १७०. ग. निम ख ग. ऊतर्या. ख.ग. घूलीआं अ. अ.ख. जगदीश्वरन; ग. जगदीशनु. अ. स्मरंतां ख. वोलीआं; ग. वोलींआ. १७१. अ. अंगि. ख.ग. सेठिं. ख. प्रसंसीउ मे; ग. प्रसंसीओ ख.ग. कहई ग. सुणो. अ.ख.ग. किसु, घ. किस्यु. अ.ख. वखाणु; ग. वखाणु. अ.ख.ग. किंहि ख. नासीठ, ग. नासोओ; ग. नासीउ. १७२. ख.ग. दीसइ ख. चिंतई; ग. चिंति. घ. मनइ; अ. मनेइ: ख. मांनइ'; ग. मानि. ख.ग. अती. ग. चिति ख. मनिमां अग. अनुसरीअ; घ. अनुसरी. अख ग. मौनपणु. ग. मारग वलिओ. १७३. ख.ग. दीठउं; घ. दीठ. ग. वोलसिरी अ.ग. भरियु; ख. भुरिर्यु ख.ग. वखाणइ. ग. सुंदर. ख.ग. जाणे अ.ख, मंदर. अ.ख. जिस्यु; ग. जिस्यु. १७४. ग. वहअ ख ग. कहई. अ.ख.ग. तम ख.ग. छइ ख. बंधूर. खग. मुजनई वहई घ. मुजनइ. अ. मांहि; ख ग. मांहि . ख.ग. कहई. ग. नीपरि. अ. लविले; ग. लवि. १७५. अ. जिसई. अ.ख.ग. आविउ. घ. तिसई'. अ. हरखि रे; ख.ग. हरखइं रे; घ. हरिसइ. ग. सेठिं अ. वखांणीउ, ग. वखांणीउ अ अ.ख.ग. अवतरि. घ. इन्द्र-भुवन अ. थिकी; ख.ग. थकी अ.ग. जांणीउ ; ख. जाणीऊओ. १७६. अ.स्व. वखांणइ; ख. वखाणइ अ. अहनु ख.ग. जोईई ख.ग. मनई ख.ग. चाल्यां अ. वेगि घ. निपुर अ. तजइ ख. तजई ; ग. तजई. १७७. ग. मेहल्यो तव देसडो ग. नेसडो. ग. वेसडो ग. अभिनवो अ.ख.ग. थोडू ख.ग. कहई अ.ख.ग. के. अ.ख.ग. नही नवु ओ १७८. ग. वहअ ख.ग. कहई ग. सुणो ख. उत्तम ख. सायर परि ते मनोहरं अ, ग. सायर पइरि अति ख.ग. वंकी ख. नन समी. अ. घणु हीनइ; ख. घणु हीनई; ग. घणु हीनि ख. विसहरु भे; ग. विसहरुओ. १७९. अ. शिखित ग. तुरंगी ख. हुई ख.ग. उरगी ख. मानइ अ.ख. अम ग. जो रंगी अ. कुट ख.ग. बोलई ग. अखूट ग. तणो. १८०. अ. कहिइ: ख.ग. कहिं. ख. अहवई'; ग. अडूविं ख. आविउ ग. आव्यो ख.ग. शीलवतीनु ख.ग. रहइ अ.ख.ग.घ. सरसी अ. सुंदरि; ख. सुंदरी अ.ख. आविउ'; ग. आव्यो ग. निज धरि. ख ग. करई. १८१. ग. ऊपरि ग. सूदर ख.ग. वस्त्रु अ.ख.घ. वुलावीय; ग. वोलावीय. ग. मंदिरइ अ. वल्यु से ख. वलिओ; अ.ग. वल्यो १८२. अ.ग. दुख. अ. गया क. आतापि अ. अणुसरी; ग. अणुसरी अ.ग. वरतरुं ख. वर ग. हेठिलि अ.ग. छोडिअ; ख. For Personal & Private Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शंगारमंजरो .१८७ छोडो ग. ऊतरू ख.ग. मोडीप ग. नारीय. अ. लटकिइ; ख.ग. लटकिं ख.ग. लोडावई अ. राग, राम गिरि. ख. ढाल ९, राग, राम गिरि, ऋषिदत्तानां रासनी, ऋषिदत्ता पंथि संचरई, से देशी. ग. ढाल, राग, राम गिरी, ऋषिदत्ताना रासनी, ऋषिदत्ता पंथ संचरइ, ओ देशी घ. राम गिरि. १८३. ख. बइठां; ग. बिठा ग. हेठलिं. ख. छांहीडइ; ग. छांहीड अ.ख. चीतवइ; ग. चीतवई १८४. अ.ख.ग. कर्म अ. छूटीइ; ख.ग. छूटीई. अ.ख. जोउ; ग. जोओ अ. हदि; ख.ग. होदय ख. नहो. ख.ख.ग. चिंति अ. दुपद; ख. द्रूपद तथा आंचली; ग. दूपद तथा आंचली; १८५. अ. करमि. ख.ग. मुंज; ग. मोटओ नम्यो. ग. वनि. अ.ख. जोउ; ग. जुओ. अ.ख.ग. कर्म. १८६. प्रत 'ख' अने 'ग'मां आ गाथा अने ते पछीनी गाथा ऊलट कर्म छे. अ. लक्षमण. ख.ग. साथि. ख. करमनई; ग. कर्भनइ. १८७. अ मंदिरिइ; ख. मदिर. अ. करइ: ख.ग. करई. अ.ख.ग. निय-तनु. ग. सूरित. अ. छावीउ; ख. छाडीउ; ग. छावीओ. अ.ख. जौउ; ग. जुओ. अ.ख.ग. कर्म. १८८. अ. चडू रे; ख. चंडू'; ग. चंद रे. अ. करमि; ख. कमइ. अ. शीलवती नइ. १८९. ख.ग. वहइ. ग. सहि. ख. अपवादि. अ. साथइ कुलई चल्लइ; ख. नवी चलइ. ख. की जई. ग. किस्यु. १९०. अ. रिखिदत्ता. अख.ग. राक्षस केरु. घ. छेदा. अ.ख. जौउ; ग. जुओ. १९१. अ. मलया-सूदरी; ख. मलया-सूदरी; ग. मलिया सूदरी. ख.ग. नवि. ख.ग. पांम्या. अ.ख. सहयां. ख ग. दुकख. ख.ग. ढंढण-ऋषि. अ. लगइ; ख ग. लगई. १९२. ख. देस. ग. परिहर्यो पतिनो. अ. मांहइ. ख. मांहि; ग. मांहिं. ग. जनमीओ. ग. जुओ कर्मनो. १९३. ग. सुखनां ग. दुखनां ख.ग. होय. अ. खिणी खिणी; ग. खिन खिन अ.ख.ग. जोय. १९४. अ.ख.ग. मालीयां अ. संध. ग. वनि-आवास. १९५. ग. तेलाई स्यु. अ. रहिवू. अ. घाट, १९६. अ.ख. आविउ ख.ग. महारइ. अ. जु. ख. जुउ; ग. जुओ. अ. चडू रेख. चडू रे; ग. चढयूं रे. ख.ग. छूटइ. ख.ग. दूहा. १९७. घ. कर निअम अ. वालती. अ.ग. सीलवती, क. गुण-गोण. ख. अवहई; ग. अहवि. अ. पाराइ; ख.ग. पासाई. अ.ख. बोलिउ; ग. बोलिओ. खग. बोलि. १९८. ग. सम. अ.ख.ग. जांणी घ. मुजारी अ. वायस नइ; ख.ग. वायस नई ख.ग. भणइ. ग. भाई तु. १९९. अ.ग. चरित्र [बचन]; ख. चरित्र. अ. सोहामणु; ख.ग. सोहामणू अ. कुलयुगि. ग समो. ख.ग. तुं. ख.ग. सरिखो. ख.ग. नही कोय; ख. नही. २०.. अ. निगम. ख.ग. लहइ अ.ख.ग. सुजाण. ख.ग. कहई. अ.ख.ग. वांणि सुवांणि. * २०१. अ. आंही; ख.ग. आंहां ख. को नही. अ. परणमइ; ख.ग. प्रणमई (परगमई). अ. स्यू; ख. सू. ख. करइ; ग. मूकि प्रयास. २०२. अ. विण गुण कुण; घ. गुण कुण. २०३. अ.ख. म दाजि. २०४. ग. आप्पीओ. २०५. आ कडी प्रत 'अ'मां नथी. अ. जुरई'; ग. सूरई. २०६. अ. हैइ. ख.ग. हैइ. २०७. ग. भलो. घ. कारेली का बहु फली; २०८. अ. सुवेध्यां; ख. सूदेघां. ख ख. हैइडि; ग. हैडि. २०९. अ. कुहु. अ. भाजि; ख. भाजइ; ग. भांजइ भूख; ग. सरखि सरख. २१०. ख.ग. तेहवो. अ. जेहनि कहू. ग. आघो. २११ अ. जार. ख.ग. जाय-तु; घ. जाहइ-नतु. अ. कोय. २१२. अ.ख. करिउ; ग. ताहरो. २१३. ख. सुंणी. ग. रयरइ. अ. अकसू. २१४. अ. बूजइ; ख.ग. बूजई. अ.ख.ग. (* सूचना.-कडी १थी २०० सुधीना बधा पाठान्तरो नोंध्या छे, पण हवेथी भाषा, अर्थ के अन्य कोई दृष्टिथी महत्त्व धरावता ज पाठांतरो !ध्या छे.) For Personal & Private Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८ जयवंत सूरिकृत भेउ २१५. अ. ख. किरतारि; ग. किरतारिं. २१६. अ. जांह; ख.ग. जीह. अ. पूठि; ख.ग. पूछि अ. ख.ग. देयंति. अं. पांहि; ख.ग. पांहिं. अ. ख. ग होअंति. घं. को अंति. २१७. अ. ख. प्रीति; ग. प्रीति २१८. ग. सरखो. ग. संदेशो; अ.ख. सुघु; ग. सुघो. २१९. खे. शुकनशास्त्र. गं. छे. ग. मुखइ: अ. अक जीभडी. ख.ग. अथ दिशि प्रहर विचार २२०. अं. कंहिt; ख. कहइ ं; ग. कहिं. अ. मेहागम. २२१. अ.ख.ग. मेहागम ३. ग. कहई ७. २२२. घ. अभ्यासत ४. अ. खं. ग. घ. मेहागम ५. अ. राय माना दि ६; ख. मान दि ६. ख. राज विंडूर ७. २२३. अ.ख.ग. प्र ३. ग. होय ४ भयवार्ता. गं. अभ्यासगत कोपं घ. असागत कोइ ८. २२४. ख.ग. वाणि ख.ग. श्रृष्टि गुणे. २२५. अ. ऊचु; ग. विचारि. २२७. अ. ग. बंधु- संहार. ग. तणों. जातो न वल; घ. न वणई; अ.ख.ग. सोप. २२९. ग जो सावदु. ख. ग. हुई बई : २३०. गं. तो ते. अ. वाटि; ख.ग. वाटिं. ग. घणेरो हुंति. २३१. अ. अहवु; ख.ग. अहवी शकुन. ग. घणो. २३२ अ. खडगि; खं.ग. खडगिं वैर अथमणि. २३३. ग. साचो. ख.गं. २३४. अ. नघि अ. घ. फलइ स्त्री लाभ; ख.ग. फलइ स्त्री लाभ. २३६. अ. आगम; ख.ग. आगमि. २३७. घ. शब्द न करंति. ख.ग. वरसई नहीं. २३८. अ. कारिजु; ग. जाणिवो. २३९. ख. गृह. २४०. ख. पंखि. अ. ख.ग. दसि जोय. अ. उपद्रव्य. ख ख होय. २४१. अ. मुहुर; ख.ग. सुहुवं सरइ. ग. संजुत्ति. अ. नंघि ग. झत्ति २४२. ग. साहमो ग. जोई ग. बोलेइ. घ. तु धन्य. २४४. ख. ग. थोडा मांहि. ख. ग. लूहइ धूणइ अ. कचड नीय लीथी; . ख. कचsिs नीय सीसि; ग. कचडिइ नीय सीसि २४५. मंगल. ख.ग. जयवि. अं.ख. गं वे; घ. जइ विववेइ. २४६. अत्रे प्रत ख.ग. घ. मां वधारानी कडी नीचे प्रमाणे छे, अ. रायभय ५. अ. खं.ग.घ. चिहूं अ. ख. पहुरे; अ.ख.गं. ऊंचो चठी. अ. कागं. २२६. अ.ख. मृत२२८ अ.ग. जातां अ.ख. होय. ख.गं. प्रत 'ख' – अरुणत्छमणि बारथी, मौनपणि ऊडी जाय, राय गणि जइ विहुवई, तुहि खित्ति विवाय. प्रत 'ग' - अरुणत्छमणि बारथी, मौन पणि ऊडी जाइ, रायगणि जइ विहु हवइ, तो हि खित्ति विवाय. प्रत 'घ' - अरुणत्छमणि बारथी मौनपणि ऊडी जाय, रायगणि जइ विहवर, तुहि खित्त विवाय. २४५ For Personal & Private Use Only २४५ ख. जगि पण; ग. जगि पणि. अ. जग मांहि; ख.ग. मांहिं. घ. अगेय. २४७. ख.ग. सरसइ ख. ढाल १०, राग, केदार गुडो, छानो छपी. ओ देशी. ग. ढाल, राग केदारो गोडी, छांनो छपोनइ कंता किहां गया रे, ओ देशी. २४८ अ.घ. तुह्मनि; ख. ग. तुह्मनि ख.ग. संसारि. २५०. ग. तिम मइ. अ. ख. ग. सह्या घ. सह्यां. ख. पंडिया. ग. पड्या सुजांण रें. २५३. अ- हूय ग. कर्यो ग. लहयो. २५४. अ.क. सानधि; ग. कर्यो. अ. अगज्ञान. २५६. अ. वयस. अ. मुलगो. २५१. ख. वालु; ग. वालो. २५२. अ. तमनि; ख. तमनिः; ग.- तुमनि सांनधि. अ. पतन. २५५. ख. किस्पो अ.ख. ग. मुहुर २५७. अ.घ. अछि; २४४ Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी १८९ ख. अईग. अरथि हुई अरथनो. ख.ग. ल्यो. २५८. अ.ख. भूखिउ; ग. भूख्यो. ग. दिओ. ग. घणो. अ.ख.ग. माहरां. ग. करसिओ. अहीं प्रत 'अ', 'ख' अने 'घ'मां वधारानी गाथा ओ प्रमाणे छे. अ.-मज रे महई दुख-जलि भरीउ, कुल आगलि कहु मन तणी वात रे. ख.-मुंज रे मनई दु:ख-जलि भरीउ, कुण आगलि कहु मन तणी वात रे. ग-मुज रे मनडू दुख-जलि भरीओ, कुण आगलि कहु मन तणी वात रे. ख.-ढाल ११ राग देशाख. ग. ढाल ११ राग देशाख. घ. राग देशाख २५९. अग. बोलि• ग. सुणो. ग. गुणवंता मानु रे. अ. हरव्या. ख. नारि अपार ख. दुपर्द; खे. देपद: ग. दूंपद. २६०. अ. काकण सार रे; घ. कांकणनि. ख ग. सो मकरंद रे; घ. सू मुकरंद. ग चितई चितरे.ख.ग. पूरिउ पूरिउ मनि. २६१. आ कडी प्रत 'अ'मां नथी. खग. चित्य. ख. आण्यु आण्यु नगरथी आयुध; ग. आण्यु रे नगरथी आयुध अक रे: घ. आणि आणि. ग. हेठिलिं रे. ख. दीठ दीठ; ग. दीठो दीठो; घ. दीठु दीठु. २६२. गे. मनमा रें अल.. ग ऊपनो; ख. धनन अंबार; ग. धननो अंबार. २६३. अ.अ.ग. बोलावि. ग. पाछी वालि रे. गे. बली ग. मंदिर आपणई. अ. बोलिअ वांणी; ग. बोलिं ससरो वांणि रसाल रें. २६४. ख.ग घ. दूहा. अ.ख. अविचार. ग. अविचार्यु अ. कांइय न कीध; ख. कोइ ने की. ग कोइ न कीध. २६५. अख.ग. मन-भगु; ग. कहो. अ. सांभरि; ग. सौभरिइ. २६६ अ.ख.ग. सोविन नि. ग सधि सधि. अग. मिलाय. अग. ठाय. २६७. अ. फूटं ग. फूटइ . अ. तेह. २६८. ग. छेहडो. २६९. अ.ग. भम. घ. भरु; ग. रोसिणि घे. रमणि: अ. मही करीआल ग. नही करीआलि. २७०. अ. मानस ख. जो न तजी दिउ नेह; *. जीन तजिविउ नेह. अ. गमि निस नेह; ग. गर्मि नि स नेह. २७१ अ. (ओ)रतु; ग. औरतो. अ. उन्हाणी; ग. ओल्हांणी; घ. उहलाणी, अ. छार: ख.ग. छार. २७२. ग. नेहलो. अ. लेगि; ग. लेगि. अ.ग. विख. २७३. अ.ख. मलि; ग. मिलिं. अ.ख. ऊतर: ग. ऊतर्यु. अं. मलि; ग. मिलइ. २७४. अ. टी ख. विस्या; ख.ग. वस्या. २७५. ग. पालवी. अ.खं.ग. मूयेणे. २७६. अख.ग. छोडंतां. ख. तणो. २७७. अग.घ. विरला. २७८. अ. सरि वहि; २७९. ख.ग. दोघ (रोस); ग. दोस (रोस). अहीं प्रत 'अ'. 'ख' 'ग' 'घ'मां बंधारांनी कडी आ प्रमाणे छे. अ. क्यडा घjय निझूरीइ, सजन मिलवा काजि, तेहनि मनि जु तु नही, तु कांइ झूरि आज. ख. हैडा घणुय न झूरीइ, सज्जन मिलवा काजि, तेहनि मनि जु तूं नहीं, तु कांइ झूरइ आज. ...... ग. हैडा धणुय न झरी. सज्जन मिलवा काजि, . तेहनि मनि जो तूं नहीं, तो कांइ झरई आज. घ. हैडा घणू अन जरीइ, सज्जन मिलवा काजि, तेहनि मनि जउ तू नहीं, तु का माज. For Personal & Private Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतसूरिकृत २८०. अ. जन माहिथी; ग. मन मांहिथी. २८१. ग. मननी कु ग. उता. अ. बप्पीउ; ग. बप्पीओ. घ. करह. २८२. ख साधीइ; ग. साधीइं. २८३. प्रत 'ग'मां अत्रे वधारानी पंकतिओ आ प्रमाणे छे. कुसंपा दुख देह. नव आमिख भेला सुख दई इअलगा अति दुख देह. २८५. आ पछी तरत नवी कडी (२८६) शरू थइ छे. जेना चरण 1, २, ३ अनुक्रमे ग्रंथपाठनी कडी २८३ना चरण २, ३ अने ४ नी साथे अकरूप छे. ज्यारे कडी (२८६)ना चोथा चरणनो पाठ लखवानो रही गयो छे. पाठान्तर अत्रे प्रत 'क'ने अनुलक्षीने नांध्या छे. ग. कुसंपां अलखामणां २८४. अ. मिलवु; ख.ग. मिलव'. अ. नस-नेह सिउ'; २८७. अ. बोलावि; ग. बोल.वि. अ.ख.ग. घडीय. २८८. अख. तुहि; ग तोहि. अ.ग. मनामणि. २८९. अ.ख. मनावि पगि पडी; ग. मनाविं पगि पडी. प्रत ख'नां 'उपर वली वली' अम लेख छ.] अ. सविचार. अ.ख.ग सुकुलीणी. ग मांन्यो. २९२. अ आकिरा. अ.ख ग. अवगुण. २९३. अ. क्षण. ख. लख; ग क्षण (लख); घ. लख, अ.ख ग.घ. बोलणा; घ. बोलणा. २९४. अ, सहजि; ग. सहजि. अ. मइलीइ; ख. मिलीइ; ग. मिलई. २९५. अ. जल-रेहा; ख. जल-रेह। [असना]; ग. जल-रेहा [असनइ ]. अख ग. होय २९६.अ. मुहहिः ग मुंहडई: अ. हंसा; ख.ग. हंसि. २९७. अ ऊपगार ग नित्यई करइ'. ग. वयरीडइ कुपई. २९८. ग. ऊपगार. ग. संसार. ३००.ग. भा. अ.ख.ग. तोय. ३०१. अख ग तोय. गः करति. ग. बहुलो हुति. ३०३. ग. छेद्यां. ३०४. अ. लत्तरई; ग. ऊत्तरई; ३०५. ख. जि, ग. जई. ग. जिवोसय कर्या. ग. सुयणां ग. कॉ. अ. समरंति. अ. राग गोडी. ख. ढाल १२, श्याम प्रद्यम्नना रासनी देशी, समोरण देवई रच्यु अहनी. ग. ढाल १२ राग गोडी, श्याम पद्यम्नना रासनी देशी; समोसरण देवइ रच्यु, ओ देशी ३०६. ग. पाछो वाल्यो. अ. शीलि; ग. शालिं अ. जलनुहि जल समवडि ख. जलनुहिं जल न खोमवडि; ग. जलनो समोवडिं स. सारइ ग. दूपद तथा आंचली ३०७ ख अबद्ध रे ग. कांइ बोल्या अबद्य रे. ३०९. अ. कारणिइ; ग. कारई ख. अग. घरीय अ. लीजइ; ख.ग लीजई ३१०. अ. ऊडी अ.ख. ग. दोयगम अ. पंथ दृष्ट रे अ.ग. पगे ३११. अ वाहणही; ख.ग. वाणही; घ. वाहांणी अ. वाहणी; ख. वाणही; ग वांणही ख.ग वणठां अ उद्भूत ग. थाय ३१३. अ.ख. तभ्यो: ग. तुम्यो ग. वखांणीओ ३१४. अख ग. धाओ. अ. रान मल्हार ख. ढाल १३, राग मल्हार, मम करो माया काया, मे देशी ग. ढाल १३, राग मल्हार, मम करो माया कारिमी, से देशी ३१५. अ. दीठउं; ग. दीहुँ ११६. अ. द्रपद; ख. दुपद आंचली ग. दूपद आंचली ३१७. अ. वानमां अनट वियट ले विश्राम; अ. घटि ते समाणसां; ग. रहिवू न घटि तिहां ३१८. ते भणी देउ(ल) मई: अ वर्णववू : ख. वरणवू ; ग. वरणव्यू. अ. मइ वखाणू ख. मइ न ग. वखांणिउं ३१९. अ. बोलडी, ग. बोलडो अ. परि भम्या; ख. परि भम्यां; ग. परि भम्या अ.ख. दूहा घ. दुहा ३२०. अ.ख.ग. कोय ३२१. ग. ओक वाहला सज्जन विण ग. भरीओ देस रान परि जांणीइं ३२३. जल भर्या अ. सधलि ३२५. अ.ग. कारेली वरि आप अ. अनेरां गोरां नवलाख ३१६. अग. क्षारथी ३२७. अकि भलो ग. पुहचिं ख. बहूया; ग बहूंया अ.ख. वसि अ. तेहनु; ग. तेहनो ख.ग. सहवास अ. देसी चालतीः ख. देशी पाछली चालती छई; ग. देशी पाछली चालती छई ३२८. अ. तणि अ. आगलि दीठउ नेसड; ग. आगलिं दीठओ नेसडो ३२९. ग. पुरई For Personal & Private Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुंगारमजरी १९१ अख माहरि ३३०. अग. सोय अ.ख. ते नयर ग. रांन समान रे ग न सज्जन ख.ग. बोलावई ३३१ अ. मह गई अग छांह रे अ. ख ग घ वटतरु छांह ३३२ गं. हरख्यो अ. राग रामगिरी ख ढाल १४, राग रामगिरि, सगुण सल्हूणा सीमंधर, ओ देशी ३३३. ख. रीझतु; ग. रीझतो ३३४. आपछी वधारानी पंक्ति ख. तस गुण सलूणी रे, मनस्युं नही अविखादर; गं. जस गुण सलूणी रे मनस्युं, नही अविखादरे अख.ग. कुतिग जोइंती अ. आवि; ख.ग. आवि ते ख.ग. आंचली ३३६. घ. भ्रम जंकार रे ३३८. अ. सुडला ख.ग.घ सूडला ३३९. ग. विघूघडां अ. सरस तिमाल रे सरयर पाल रे; ग. बइठी ते सरयर पालं रे ३४०. ग. सिखी पिच्छ चरणां सार रे. अ. वन मांहि खेलि शबरली; ३४१. ख. ताल तमाल; ग. कहिं सरस ताल अ. तरुलता प्रलंब; अ.ग. घ. बोरि ग. बदाम बाओ तो; अ. अंब जंबू निब कुदंब रे ख. जंबू सिंब कंद कुद रे; ग. जंबू निबक कंद रे; घ. जंबुनिब कंद ज रे. ३४२. अग. करणी कुसुम, ख. कुसुम (क्रिश्रुक), ग. केतकी तो ३४३. अ. पुनाग; ग. पुंनाग ३४४. अ. चतुरा अ. चेतकी ग. मरूबक वाल रे ३४५. अ. विछाह रे; ख. विच्छाय; ग. विच्छाह रे ३४६. अ.ख.ग. जव देखीयां ग. रुठो तेणीवार ग. अ स्युं कर्यो. ३४७. अ. कांहि ख ग. लोभिणी ३४८. ग. मांतण कांइ देखीइं ३४९. अ. उल्लसि; ग. उल्लसई. ३५०. घ. अहवा व (च) न अ.ग. धरि-लक्ष्मी अ. राग असाउरी, ख. ढाल १५ राग असाउरी; ग. ढाल राग असाउरी ३५१ अ. द्रुपद; ख. दूपद तथा आचली; ग दुपद तथा आंचली. ३५२. वरसरल शय्या; ग. वरसरल सप्पा ऊपरि अ. जो नि पांचि रत्न; ख. पांच रत्न; ग. जो निं पंच रत्न रे. अ. अणीइ आणिउ अनिउ रे; ख. आणउ अनि रे; ग आणिओ अन्नि रे. ३५३. अ. ग. गुणवंती ३५४. ग. वात रे. घ. (पू)छइ वात. अ. ख. ग. सोय; ३५५. अ. तस्य बुधि; ग. तस बुद्धि. अग. सुपशांत ३५६. अ. वीसरि हइडि रोस रे; ग. वीसर्यो हैयडिं रोश रे. ३५७. अ. ख.ग. कोय. अ. जस्य आस पुहुचि अ.ख.ग. होय ३५८. अ विछा (य) रे; ख.ग. विच्छाह रे. ३५९. ग. कितव करि राय रे ग. हरिणलो ३६०. अ. धरि; ग. घरि पारखि जोइई ३६३. अ.ख.ग. अज्ञान्यान अ तस्य ३६५. अ. ख. ग. घ. प्रभृति ख. ग. प्रेम-रस ३६६. आ कडी प्रत 'अ', 'घ'मां नथी. ख.ग. as वछेद रे ख.ग. हरि आलिका अ. अथ प्रेहेलि अधिकार, दुहा; ख. अथ प्रहेलिकाधिकार, दूहा; ग. अथ प्रहेलिकाधिकार, दुहा. ३६७. अ.ख.ग. होश अख.ग. सोय ग. मधुकरः, ७ व्यस्त जाति २. ३६८. ख.ग. हैइ विलगी नवि गमई ग. शीलवत्योवाच ख. शी. तलवारि; समस्त जाति ३६९. ग. अजितोवाच ख.ग. सारय-सुत; घ. सायर सुतम ग. हवई ३७१. आ गाथा अने ते पछीनी गाथा प्रत ख.ग. मां उलटकमे छे. ३७३. ग. पवन वपरी अ.ग. गणिका पर अ. भुजंगाडलिक त्रिव्यस्त जाति; ख. शी. उ. भुजंगाडाल ६ त्रिव्यस्त जाति; ग. शील. भुजंगा डलि ६ त्रिव्यस्त जाति ३७४ प्रत अ. ख. ग. मां कडीना क्रममां फेरफार छे. प१ अहीं ग्रंथपाठ क्रम पाठान्तर नेोध्यां छे. अ.ग. सो ग. कद्देवो अ. विरही न न राकेन; ख वरही न न राचें ग. विरही न न रोकेइ ३७५. अ. ग. दुयंगम होय अ. ग. सोय ३७७. अ. ख. ग०. अ. ३७८. ख. कहु किह। ; ग. कहो किहां कद्देवु ग. निं(ज) करि ३७९. अ. रुठिं अ. ख. भम्नोत्तर जति ग. शी. भग्नोत्तर जाति १३. ३८१. ग. ३७६. अ. ख. शी० ग. शील. अ.ग. चूको; अ. चूको अ.ख.ग. यम ३६१ क. जूरतां ३६२. ग. For Personal & Private Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२ जयवंत सूरिकृत कृपण अ. ख. ग . कथिताहनु जाति १५ ३८२ अ. दोहा ३८४. ग्. नयनलघु ३८५ ग. हवई ग. दिसि ग. हुई अ. उत्तरने स्थाने मात्र १८नी संख्या लखेल छे. अ. गं. उत्तरने स्थाने मात्र १७नी संख्या लखेल छे. ३८६. अ.ग. निर्ज्जति ख. ग. नववधू. वर्णोत्तर जाति ३८७. अ.ग. शर. ग. पीऊष अख.ग वस्त्रांग अ शी. जातिसुमन सिसादर, १८, अष्ट दलकमल जाति; ख. शी. जातिसुमनसिसादर १९ अष्टदलकमले जाति, सुमनसिसादर; १८ अष्टदलकमले जाति 1; चस्य प्रतमां चित्र ग्रंथपाठ वहइ ३९०. अखग शी. मदनवेदनासाकुल:, मंजरी सनाथ जाति, २. गोमूत्रिका, ३. व्यस्तसमस्त. ४. बहिलापिका, ५. दिचित्रगर्भित १९. घ.मां चित्रो ग्रंथपाठ प्रमाणे छे. ३९१. चारेय प्रतमां चित्र ग्रंथपाठ प्रमाणे छे. ३९२. चित्र चारेय प्रतमां ग्रंथपाठ प्रमाणे छे ३९३. घ. अहिवर वास री अकांत वच ४ ३९४. वर्णाक कुण ८; अ. वणांक कुण ८ ३९५ अ. कमला पति कहेवु दोहिल १५: ख. कमलापति कहे दोहिल १५; ग. कमलापति कहेवो दोहिलो १५. ३९६. अ.ख. ग. शी. सर्वतोभ जाति २१. प्रत 'अ'मां आ प्रमांणे चित्र छे 1: १९; ग. शी. जाति प्रमाणे ३८८. अ. १. अष्टदल कमल. चरिय प्रत अ. स्व.गु. प्रत 'अ'मां चित्र आ प्रमाणे छे : विह विहर १ हिर ५ विर ९ वि १३ र विह २७ हरवि २ बिल ३ रवि ६ | विहल ७ वि १० हवि १४ प्रत 'ख'मां चित्र नीचे प्रमाणे छे : विर | बि ल ३ ह १ हर वि २ अह ११ प्रत 'ग'मां चित्र नीचे प्रमाणे छे विर ह १ हर वि २ अ: १५ बि ब ३ रह; ४ अह हल ११ १२ रह ४ हर ५ अह ११ हर रह ४ हः ८ हल १२ विह १६ रवि ६ वि; १३ रवि ६ हल बि: १२ १३ For Personal & Private Use Only विह ल ७ Sa वि आ १४ १५ विह ल ७ १४ विह हः ८ अः १५ विर ९ बिह १६ वि र ९ विह १६ १० र; १७ १० र १७ Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरो १९३ प्रत 'घ'मां चित्र नीचे प्रमाणे छ : विरह १ | हरवि २ | बिल ३ | रह ४ | हर ५ | रवि ६ | विहल ७ | हः ८ विरह ९ | वि १० | अह ११ | हल १२ वि १३ | हल १४ | अ: १५ / विह १६ ३९७. प्रत अख.ग.घ.मां चित्र ग्रंथपाठ मुजब ज छे. ३९८. अ. शी. मेखलयो; ख. शी. मेखलयो: ग. कांइ नथी. ३९९. अ. शी. नीरजसिहिति, श्रृखल जाति २३, ख. शी. निरजसहितु श्रृगला जाति २३; ग. शी. शृंखला जाति २३; घ. शी. छः श्री. ४००. प्रत ख अने ग.मां आ कडी अने ते पछीनी कडी ऊलटक्रमे छे. ग. कोण. अग. योग. प्रत 'क'मां 'अकांतरित शृखला जाति २५' लखाण नथी ते अत्रे प्रत 'अ.ख.ग.' मांथी अपनाववामां आंव्यु छे. ४०१. क २४ अकांतरित श्रृखला जति २५. अ. शी. सरसजठाम २४; ख. शी. सरसजवास २४; ग. शी. सरसजठाम २५.४०२. प्रत 'ख' अने 'ग'मा प्रस्तुत कडी बे कडी छोडीने छे पण अत्रे ग्रंथपाठना क्रमने अनुसरीने पाठान्तरो नेांध्या छे. ४०३. 'ख' प्रतमां कडी-क्रममां फेरफार छे. अत्रे ग्रंथपाठ प्रमाणे पाठान्तरो नेांध्या छे. अ.ग, जणावि ग. कहो अ.ग. सोय अ.ख.ग. शो० नयन ४०४. 'ख' प्रतमां कडी-क्रममां फेरफार छे. अत्रे ग्रंथपाठ प्रमाणे पाठान्तर नेांध्या छ. ग. अक्षर. ४०६. अ.ख.ग. शी. चंदन ४०७. अ.ग. शी. कनक; ख. शीलवती उ. कनक ४०८. अ. शी. कज्जल; वरधमानाक्षर जाति २७. ख ग. शी० कज्जल वरधमानाक्षर २५.४०९. अख. किसिउ हरि नारिनु घ. हरि नारिन अ.ख ग. शी० मालती ४११. अ. शी० पयोधरः हीयमानाक्षर जाति; २८, ख.ग. शी० पयोहर अ हीयमानाक्षर जाति २६.४१२. प्रत 'अ'मां आ कडी नथी. ख.ग.घ. केवि सपिय जंपाय ख.ग. शी. कलह; चजलधि जाति.४१४. ग. देखी देखी नहीं सकई अः कांइ नथी; ख. चीर: ग. चीर ४१६. अ.ख.ग. शी. जाल. ४१७. अ.ख. शी. चोली अ० दत्तमात्राधिक जाति २७. ४१८. अ. शी. बाला, मात्राधिकारक्षर जाति; ख.ग. शी. बाला, मात्राधिकारक्षर जाति २८. ४१९. अ. शी. मंदरः, च्युतमात्राक्षर जाति-; ख.ग. शी० मंदरः च्युतमात्राक्षर जाति २९. ४२०. अ. स्तु जांणि; अ शी. मेहः, च्युतदत्ताक्षर जाति; ख शी. मेहः, च्युतदत्ताक्षर जाति ३०%, ग. शी. मेह, च्युतदत्ताक्षर जाति ३०. ४२१. अ.ख. तुख; घ. तुख. अख ग. शी. कमला. ४२२. अ. खहि पाखलि लिहालऊअ; ख. खहि लाखलि लिहालऊत्र; अ. खोखी अविलुटभि; ४२३. अ.ख. सखिपत्री ग. सवखिस्त्री घ. सबखिपत्र अ.ख.ग. तखिहा अ.ग. भपी ख. तपी अ.ख.ग. ऊड कडखान अ खविमि ग. चिमि अ. कसरा झु. अ.ग. टाखी डोकि; ख. बापीडोकि अख ग. शी. आस, श्रद्ध मूलदेवी ३२ ४२४. अ.ख ग शी० ईक्षु दृष्टि ४२५. अ.ख.ग. शी० हार ४२६. अ.ख ग शी० कंचुक; ग कंचुकी ४२७ अ.ख.ग. शाब्दिक प्रहेलिका अख.ग. गति ग. ओपनि जहे अ.ख.ग. शी. मातंग ४२८. ग. मण मज्झमि य सावसई अ.ख.ग. शी. मसाण ग. शी. मसाण अ. कवित्त ४२९. अख. वरनेश २५ For Personal & Private Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ जयवंतसूरिकृत ग. गेइ. अ. चित्तुह; ग. चित्तह. ग. रूठई' ख. ठाहीठ; ग. ठाहीवई. ग. कहो कोय अ.ग. होय. अ.ग. वल्ली वन केरीअ. ख. वल्ली वन केरी. अ. तेणइ: ग. तेणइ; ग. तुडइ. ग. खेलई वासहरी. अ.ख. शी० सुंदरी. ग. शो० मुदरी ४३०. अख.ग. शी० धनुष. ४३१. अ.ख. शी० सोइदोरु; ग. सोइदोरा. अ. इत्यर्थप्रहेलिका जाति. ख. इत्यर्थप्रहलिका जाति; ग. इत्यर्थप्रहिलिका जाति ४३३. अख.ग. शी (?) अ. पूर्व हरेणकांमोदग्ध; अ. ख. हरलिंगा; ग हरिलिंगा. ४३४ ग घणे ४३९. ग झांखर थाई. ग. गांमिनि अ. उद्धब्भण; ग. उध्वअब्भुअ; घ. उध्वअबुज ४४० अ.ग. रथा सम्महु सज्जन ग. लाजइ चतुरां. अ.ग. विखडइ. ४४१. घ. रसई अ.ग. कवण ग. अंतरई ४४२ प्रत 'अ', 'ख', 'ग', अने घ'मां प्रस्तुत कडी नथी. ४४३. ख. करिउ: ग. करिओ अ. ह्यालिका जाति, केचितु गूढ जाति प्राहु, ३४ ४४४. अ. वाही इ; ग. वाहीइ. ४४५. अ. घ. मधुर सरिंग. मधुकर सरइ ग. तेहनइ लीण अ. नाजीवीणि ४४६. घ. बलवंत नीसरइ हैंइ. अ. नागांभल, अहुति जाति (पंक्ति पछी तरत); ख. नाजीभल्ल (४४) अपह्नुति जाति ३५; ग. नाजीभल्ल (५०) अपहनुति जाति ३५. ४४७. ग नलूबहू अ. सिरीखी पीउं. ख. शिख; ग. सिखा पीउं ४४८. अ. दुरारांरिरिरार; ख. रुरीरांर्निरिंग; ग दुरीरांरिंरिंगर. अ. ररररिरिरारिरि; ख. रररररारिरिशं; ग. रररिरिरारिरूरितं. अ. रारररररार; ख. रोरसिंरररीर; ग राररिरंस्ररार अ. इत्यादि मूलदेवी, सहदेवी, करपल्लवी, नेत्रपल्लवी, अंक पल्लवी, बिंदु पल्लवी, नाद पल्लवी, ऊषध पल्लवी, ध्यान्य पल्लवी, वर्णपरावतदिभाषां, बिंदुमंती प्राहु, इछालिपि प्रभृती नपि ३६ ४५०. अ.ख.ग. शी० सिंहलंकी, हंसगमनी ४५१. ग. छप्पय ४५२. ग. नारिं अ. जु हुइ; ख.ग. जो हुई अ.ख.ग. प्रेम अपार ख.ग. गंगायां ४५३. अख.ग. हार ४५४. ग. बल्लही. ग. कहो ते अ. नागवल्ली, नाटा शिलाजाति ३७; ख नागवल्ली, नाटशिलाजाति ३७. ग. नागवल्ली, शी० नाटशिला जाति ३८. ४५५. अ. शी० वधावु; ख. शी० वधावु; ग.. शी० वधावो ४५६. ग. वाव्यं जंगति अ शो० केशपास, समस्याजाति; ख. शी० केशपास, समस्याजाति ३८; ग. शी. केशपास, समस्यांजाति ३९ ४५७ ख. सोइ नाम; ग. सोइ नांम अ.ख. बहल्लेन; ग. बइलेन ४५८. घ. चात (क) अ. विरहि हुँ बलि; ग विरहिं हुं दुबली अख.ग. प्रिय क... मां नथी; घ मां नथी. ४५९. प्रत क. अख.मां आ कडी नथी ग तणें नामें सो ख. ग. कुहु: अ. इति प्रश्नाधिकार, ३९ ख इति प्रश्नाधिकार, ३९ छ; ग. इति प्रश्नाधिकार, ३९ छ. अ. ख. पुनरजितः पृछति अंककला वेछि शीलवती ४६०. अ.ख.ग. शी० घ. शीलवती उवाच. ख.ग. भेवं चाके अ. अणं सर्व वन चंपके; ख. अवं सर्व वन चंपक अ. १ कोडि ९ लाख ९१ सहस ७६४८ अ. ख ग. शी० अ. ९ शत, १२ इति मास सख्या अ.ख.ग. शी० चित्र चारेय प्रतमां ग्रंथपाठ प्रमाणे छे. अ. ख.ग. अ ग. त्रीजइ भूई पडीओ ख कर - कमलि; घ. करमलि ४६१. अ. खग. चप्पु अ. रसलहरि ख.ग. रसलहिरि घ. चञ्थउ रस लहरिं ४६२ अ.ग. विक्षपि नाठां अ. चुथइ; ग. चोथई अंशि अख. शी० ४०; ग. ४० अ. श्री. ख इति गणित अंक पृच्छा, छ श्री श्री. ग. इति गणित पृच्छा श्री ४६४. घ. जिम नाई विजलधार ४६७. ख. दूध क. सीता ४६९. ग. नांहा नाई सुविचार ४७१. ग. बालो - रवि वंदा ४७२. ग. नांहान ४७६. ग. वेध्यो फुल ४७७. अ. उ भमरु उ कमलिनी; अ. उ द्राक्षा, ओ वीर क. साजन अ.ख. उ नर नवरंग होंग; ग ओ नर नवरंग हींग ४८० परिसंपमा; For Personal & Private Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शूगारमजरी ग. हीर तणी परई संयमा ४८५. अहीं प्रेत 'ख' अने 'ग'मां वधारानी कडी आ प्रमाणे छे. ख. थोडा बोलइ बोलडा, घणा करइ उपगार, संभारणू सज्जन करई, थोडइ घणू संसारि. ४६५ ग. थोडा बोलइ वोलडा, घणा करई उपगार, संभारणू सज्जन करइ, थोडइ घणू संसारि. ४८९ ४८६. अ.घ. रंस रमी घ. सालस थापइ ४८७. ग. नयनिं छूटई नीर ४९२. ग. कहिस्यु कीजइ ४९४. ग. तणई विछोह ४९५. ख.ग. झूरि मरि सनेहडा ४९६. आ कडी अने ते पछीनी कडी प्रत ख.ग मां उलटक्रमे छे. अ. मिलिउ; ख. मिलियु; ग. मिल्यो ४९८. ग. सुहणां सरिस सजोगडा अ.ख ग. विसराल ४९९. प्रत 'ख' अने'ग'मां आ कडी अने ते पछीनी कडीनी उलटक्रमे छे. ५००. अ.ग. सदेव ५०१. ग. प्रीछीलीइ ख. अस्थि सिउ ५०२. अ. चकवा-चक मेलीयां अ.ख. सोलवु ग. शोचिव्यो ५०३. ग. सेांचीई ५०४. ग. प्रीछव्यो ५०५ ग. विछोहां अ.ख ग. दिन दिन ख. उहल्लाइ; ग. ओहलाई ५०६. अ.ग. तिम तनि; ख.ग. तिम तिम तनि ५०८. अ.ख.ग. जावा अ. अथ फाग; ख. ढाल १६, राग काफी. देशी फागनी: ग. ढाल १६, राग काफी, देशी फागनी. ५०९. क. निरमलु ग. मदनसंहार ५१४. स्यं लिइ ग. कामिनी नव मेह ५१५. अख.ग. कवर्तधार ५१७. अ.ख.ग. ताडिम ताडिम अ.ख ग. संतना ५१८. ग. तपई सोभा ख. ताढि-तापि; ग. ताढि तापई ५१९. ग. वेलडी ख.ग. बकुल ५२०. ग. जम कामिनी अ. जगामिनी अ. सिन धामिनी ५२२. क. वनराज ५२३. ग. नव नव ५२४. घ. भमरइ जलइ ग. शोणि नीसरई ५२८. ग. प्रीउडो ग चांपई ५२९. ग. बेठा पास अ. क्षणि बारि क्षणि वसि तरूयरि ५३१. ग. बाल ग. तु ५३७. अख ग. मंडीय ख. इम (म)नी ५३८. अग. संगति ५३९. अ. सरसल ग. सत्छाय ग. वीरहि सामोलइ ५४०. अ.ख. सुसंपन्नु; ग. संपन्नो ग. मसि रोमंच उपन्नो ५४१. अ. वि ऊल्हास; ग. दिओ ओल्हास ग. तावड ५४२. अ.ख. कोयवुल; ग. कोयवोल ग. राता आगई आजि ५४३. ग. खलडी; घ. वे(ल)डी ५४४. ग. हरिणांक्षी भीडईग. कांभि खग. माण(स) ५४५. अ. रहीय न कइ ख. रहिय न केहई ग. मझारि ५४७. अ. भांजसइ; ग. भाजसई अ. नु हुइ; ग. नो हुओ ५४८. ग. फूली. ग. रमई ग. वीसारइ ५४९. अ.ग कुंद ५५१. ग. वोलसिरी वालो ख.ग. कुहु कुहु ग. करति ५५३. अ.ग. जेणीय ग. वेणीय ख.ग. कुंभत्थलि ५५४. अ. झालिउ; ग. झलिओ अ.ख. पाओ पाडिग; ५५५. अ. नय सिउं. ग. जीत्या ५५६. अ. बालिउ. ग. लोचन वोल्यो ५५७. ग. यौवजन अ. ऊबजइ ग. उपजई ५५८. अ ख.ग. दोय ५५९. ख. कचण-कलश पयोधर ५६०. ख. नवेरू; ग. नवेरो अ.ख.ग. नितु तेणि मुखि; घ. नितु नेणिं मुखि ५६१. ख. मृणाल रस कोमल ५६२. ग. स्युं चांपइं गाढं ५६३. अ. पहुंलीय; ग. पहलीथ ५६४. अख.ग. कडि अ. सालि; ग. सालइ ५६५. ख. सुचराणि ५६६. अख.ग. कोढ मझारी अ. सिइथु; ग. सिंथो ग. सोहई अ.ग. नलवटि टीली नीलीय; ख. नलवट टीली नीली; घ. ५६७. टीली नीलिय क. जबूकइ सालि ५६८. अ.ख.ग. विखाण ५६९. अ.ख. कांटउ; ग. कांटओ ५७१. घ. धाइ तनु सरइ ख.ग, चंदन अ.ख.ग. चरची अ. रदियनि ठाय; ख. रिदयनि ठाय; ग राका रिदयनि ठाय ५७३. ग. मझारि क. जांजर अ.ख.ग. रंगीय अ.ख.ग. रंगीय ५७४. अ. कांचउ; ख.ग. कांचूओ ५७५ अ. प्रेमि; ग. प्रेमइ ५७६. ग. ठमकावई ५७७. ख. कोइ हींचालडी; ग. कोइ हींचोलडा खाइ ५७८. ग. करइ'; अ. उछीलिइ क. For Personal & Private Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जयवंतरिकृत जालइ ५८१. अ. चीर-पालवइ ग. बांधी गांठि ५८२. ग. कोई ताकई अ.ग. कुहु कुहुँ कहीनि अ. (री)झवइ ५८३. अ.ख.ग. तेवड तेवडी ग. पई भांगु सही कांटडो ५८४. ख. उ सही तुनइ तेडि; ग. ओ सही तुनई; घ झालि ५८५. ख. बंधन कारण तेह ५८६. ग. वाजसइ ख ग वनिता को सहीनि हसइ ५८८. ख.ग. उल्हसइ ५८९ अ.ख.ग. भारीअ ग. ओलभडा दिइ ५९०. अ.ख.ग. तुझ पयोधर ५९१. ग. ससि तुझ ख. भमई मुख पाखलि ५९२. ग. आंतरं ५९३. ग. हासो हसइ ५९४. अ. थोडेरू सिन भीडिउ; ग. थोडेरू न मीडिओ ग. हइ झगि रिलाणो; घ. हईई गि रिलाणउ ५९५. ग. सधलइ देखई वनमय ५९६. अ. रहइ रहइ समय; ग. रहइ रहई हवडा ५९७. अ. चुवटई; ग. किहिं चुवटई ग. झाझर नि झमकारि ५९८. अ. ऋतु-वसंत जाणे अ. भलि अ.ख.ग. मानव नि मनि भावीओ ५९९. ग. समारीय ६००. ग. कांनिनी दोई अंतरि थाय ग. अडतो कोइ जाई ६०१. अ.ग को ग. थण; घ. थणहि ६०२. ख. कानिनी-गुण ग. जेणि धान कि बोलि ग. ऊलखी; ग. ओलखी ख.ग. कोओ ग. कामुक रहिं तेणि ओलि ६०३. अ.ग. केवलि-दलि घ. घमली ग.घ. कामुक ६०४. ग. भमरलो कामिनि नई ६०५. अ.ग. कोयलिं; ख. कोयलिं ग. सुणी अति आंबला ग. देइ मुझ ग. रुहाडि ६०६. ग. कानि हसिउ अ.ख.ग. कहिनि कुंचक तइ सां फल काम्यां ६०७. अ. सीबलि; ग. सीबनि अ.ग. सीबलि; घ सींबलि ख. माणसह ग. माणस ६०८. ग. सांमलो ग. विरहई अ. दुबलु; ग. दुबवो ६०९. ग. उलंभडा ६१०. अ.ख.ग. पटउली घ. माहिणीरी लजवाणी ६११. अ.ग. शीलवती पति-संयुत ६१२. ग. वडई रूधी रहइ वाहिं ६१३. ग. मुरी नव सहकार ग. सेवीइ अ.ख. आलवि; ग. लवि ६१४. ग. रिंसिकनई मनि लागई रणीयामणी अ. इति वसंत वर्णन १ छ; ख. इति वसंत वर्णन श्री ख; ग. इति वसंत वर्णन श्री. ६१५. ग. जोगवइ अ. दोगंदग अ. दुहा ख. दुहा ६१७. ग. सई दैव अ. धन दे जे देव; ख. तु धन दे जे दैव; ग. तुं धन दे जे देव ग. मानि ६१९. अ.ख. पसाउली; ग. पसाउलई ग. झूरिखु तेणिं नेहलई ६२०. ख. सनेहड; ग. सनेहडो ६२३. अ. सोहामणु; ग. सोहांमणो ख.ग. केलि-कलाप ६२३. अ. जल अमि दुध अ. राग सवा लाखी सीधनु. ख. ढाल १७, राग सवालाख सीधुओ समुद्रविजय रायां कुंयरु रे, देशी ग. ढाल १७, राग सवालखी सिंधूओ समुद्रविजय रायां कुंयरु रे, ओ देशी. ६२५. अ. वाहलाजी कीजइ सुगुणा संग; ख. कीजइ सुगुणां संग; ग. वाह लांजी कीजई सुगुणां संग ग. वाहलांजी वाघई प्रेम सहग अ. दुपद; ख. दुपद तथा आचली; ग द्रुपद तथा आंचली ६२६. घ. दुरिय नयन नि कपावीइ ६३४. अ. रवि-सुत सरिखा ६३६. ख.ग. राज-सेवना रे ६३७. ग. दिइ अग. सीखडी ख.ग. होय ग. तुहई कहई ख. डाहांइ; ग. डांहिं अ.ख.ग. सोय ६३८. प्रत 'घ'मां आ कडी नथी. ६३९. अ. राग काल हिरु, सासू पूछि सुणि नव वहआरी. से देशी ख. ढाल १८, राग काल हरिउ, सासू पूछि सुणी नव बहुआरी, से देशी. ग. ढाल, राग काल हरो. सासू पूछि सुणि नव वहुआरी, ओ देशी. ६४०. ग. सिं च्यारनई अख. द्रुपद ६४१. अ. नइ बुधि निधान अ पांचसिइ; ग. पांचसिं ६४२. ग. विसामो घ. प्रंचि अ. पट्टहाथिउं'; ख. पहाथिउ; ग. पटहाथीओ ६४३. अ. अजिति पूछी ६४५. अ प्रवण ग. तीणि फलहिं ६४५. अ. आंकि; ख. आंके ६४६. ख. अजि(त) तणि; ग. जांणि ग. रंगिजिउ ग. तुठो दुइ ६४७. ग. बईठो ६४९. ग. तुमने अहनो ६५०. अ. For Personal & Private Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजद्री १९७ कनई; ग. कनई ६५१. अ. मान-मुहुत ग. मोहोत ६५२. ग. अमीअ ग. वाहलि मे बोलिं किस्युं ६५३. ख. दुहिता ६५४. अ ग. कोय सुहाय ६५५. ख. क्षण दीठू; ग. क्षण दीठू ते ६५६. देखई ग. हुई अ. बोलि; ग. बोलई ग. जांणइ चंग ६५८. अ.ख. तेहनि; ग. तेहनि म(न) गुणवंत ६६०. ग. छांडई ६६३. अ. प्राण ज धरीय; ग प्राण ज धगये ग. किस्र्यु ६६४. ख.ग. कय वयरी ग संहिलो ६६५. मनवइ; ग. मन्नवइ अ. हइडा ग. जोय ग. तेह स्युं केहो सोस ६६८. अ. वचि; ग. वचिं अंतरि थाय. ६७० अख.ग. विप्पियवि. ६७१. ग.ख. प्राहिं; ग. प्रांहिं. ६७३. अ. ग रंगीउ; ६७४. अ. राग मारणी धन्यासी, पदमरथ राय वीतशोकपुरि राजीउ रे, मे देशी. ख. ढाल १९, राग मारुणी धन्यासी, पदमथराय वीतशोकपुरि राजीओ, देशी. ग. ढाल १९, राग मारणी, पदमरथराय वीतशोकपुरि राजीउ रे, ओ देशी. घ. राग मारुणी धन्नाश्री. ६७४. घ. बोलिं विधूत. ६७५ ख.ग. दूपद. ६७६. छई विख्जात. ६७७. अ. मिहे सिमन सिउँमाडी प्रीतडी रे; भिं तो ते सु मांडी जीतडी ६७८. अ.ख.ग. दूहा. ग आरतो. ६७९. अ.ग. फूलडे, ६८०. अ. भोलविउ;ग. भोलव्यो. ६८१. अ. ढाल पाछिली; ख. ढाल पाछली, देशी चालती; ग. ढाल पाछली, देशी चालती: ६८३. अ. आविउ; अ. खेलि. ६८४. ग. आंबो दीठ अकालि. ६८५ अ. साचू; ग. नहींतरि हू. ६८६. ग भित्रे कहीइ. ६१७. ग. वंचीओ. ६८८. अ गूडी. ग. मुज नई छोडवो. अ. शरणागत. ख ढाल २०, राग गुडी, झांझरिया मुनिवर, ओ देशी. ग. ढाल, राग गोडी, झांझरीआ मुनिबर. धन धन तुह्म अवतार, ओ देशी. ६८९. अ. नानडली: ग. नानड रे नारि, ६९१. ग. नीस अ. अतिभारजी. ग. ओकि पासि मूकावि. ६९२. अ.ख. लेयसिजी; ग. लेयसिजो. ६९३. अ. होमइ सत्य संधान; ख.ग. होसइ सत्यसंधान. ६९४. अ.ख.ग. दूहा. ६९५. ग. तिहांथी ध तहीं ६९६. अ.ख. धाम. ख.ग. मानसह समई; ग. मुझ मनि मानसह समइ; घ. मुज मन मासिं. ६९८. अ.ग संदेसड्डु रे अ.ग. कोय. ग. थोडह. अ. घणु'. अख ग. सजोय. ६९९. ग. हैडू धरई. अ. उल्हास. ७००. ग. पूनिम-चंद. ७०१. ग. लागे. ग. थोडिं. ७०२. ख. पाणि-रेह ग. पाहण-रेह ७.४.अ. माडु; ख. मांडु: ७०६.अग समयेण ७०७. क. मुज. ग. सुहणां मांहिं. ७१०. ग. रोमंचिओ ७११. घ. रोगी नेह. ग. किं गइ सांन. ७१३. अ. वयण सविसि; ख. वयण सवि (यु; घ. वयण सविसिउ. ग. मिलइ' ७१४. ग. कांपि. ख.ग. शेष सलसलइ. ग. चूकई. ७१५ अ. कामिनि नइ पूर निइ; ग. कांमनि नि नइ. ७१६. अ. तु सोनू परिमलि मलिउ; ख तु सोनू परिमलि मलिउ; ग. तु सो परिमलि मल्यु; घ. सोनू परिमलि मिलिउं. ७१७. अ. पाडूऊ'; ग पाडुर. ७१८. ग. स्यु करेइ. ग. असाढो-मेह. ७१९. अ. पहाण सिऊ; ७२२. ग. चित्रह; चित्तडू. ७२३. घ. अस्मारि ग. मंडई ७२४. अख. सुहणि ग. दीसई ७२५. ग. केहसिउं अ. मलिइ; ७२८. अख जो नर वंछु अन; ग. जो नर वछ; अन्न ७१९ ग. जो शीलई है ७३०. ग. चमक्यो चीत्ति ७३१. अ. हद्रि ग. चापि ७३३. अ. फरइ ७३४. अ. पतिनु म(न); ग. पतिर्नु अ.ख. सुख विलसइ ए काति; ग. सुख विलसई अकांति ७३५. अग. खद् भाषा ७३६. घ. नयमणां ७३८. अ. दीन विची; ख. दिन विची; ७४१. ग. तणुं विहसीं ग. सवाय लकखु अ.ग. विकुविय ग. सुहाय ७४२. अ. रुसणु ग. रूसणु अ. तो सिवि रोसि वसलड्डु: ख. ता सिवि रोसि वसलडु; (तिसि मरुसि मवसलड;) For Personal & Private Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८ जयवंतरिकृत ग. तो सिवि म रोसि वलसडो (तो सिम रोसि म वसलडो) ७४४. अ. पयड है। ग. पयडई हैंई ७४५. पा. प्रेम-गहिलां इणि अ. परि; ग. परि ग. मनावइ सो वार ७४७ आ कडी प्रत 'अ'मां नथी. ७४९ क. जीलतां ७५०. अ. न सके ख विच्छोह, ग. विच्छोहो ७५१ अ. उनइ; ख. उनइओ: ग. अनइओ ७५३. अहीं प्रत 'अ', 'ख', 'ग'मां अत्र वधारानी अक कडी आ स्माणे छे. प्रत 'अ' ठालो दि हृका रडा, सूना बोलई बोल, कहिसिउ नवि बोलिउ गमइ, सान गइ निटोल. ७३३ प्रत 'ख' टाला दि हूंकारडा, सूना बोलई बोल, कहिसि नवि बोलिउँ गमइ, सान गइ निटोल ७४९ प्रत 'ग' ठाला दि हुँकारडा, सूना बोलई बोल. कहि स्युं नवि बोल्यु गमइ, सान गइ निटोल. ७६० ७५५. अ. भूई; ग भुई. ग. नीठई ७५८. अ. धूया; ग. धूया ग. देहिं देह अ. उल्हाइ; ख.ग. उल्हाई ७५९. अ. त्यिजता अग. अधर-रस ग. नवयौवन ग. छांडता ग हैं न फाटई कांई ७६०. ग. विछोह्यां ७६१. ख.ग. मणुअ-भवि ग. जो देखाइसि छेह ७६३. ख.ग. मणुअ ग. सवि ७६४. ख. विरहि न लई हूँसु थसई ७६५. ग बोलई न हसई रमं ग. हैडई करि विखास ७६६. अ. मुहडि बोल ग. मुंहडि ग. सकई ७६९ ख. अप! ७७०. ग. कई अपमान्यो अ दुहविउ कबोलि; ग. दूहव्यो बोलि ग. मार्यो नयनि विश्रल. ७७१. ख.ग. मनि-दुख अ. मज; ग. मुझ. ७७३. ग वज्रघात ख.ग. आपणि. ग. वरी ग. चालीसई ७७४. ग. तेणे ग. मुझ ग. थयो अ. हेइडि ग. हइडई अधिको अ. हवि ग. केतई मिलस्यु हवई अ. थयु ग. तुज स्यु थयो ७७५. ग. मेहलंती ग. सांन गइ धरणी ग. हुइ नीरास ७७६. अ. वाघि; ग. वाधि ग. सु लहर. अ. ग उघाण, ग ऊघांण अ भागु आस्या-वहाण ग. आस्या-वाहाण ग. सायर ७७७. ग. पर्सया वीसर्या ७७८. अख.ग आस्या-डाल ७७९. अ वलि ग. साल नवि माई ७८१. अ. प्रीछवि; ग. प्रीछवि ग. जिम इद्र-जाल अग. विसराल; ख विरराल ७८३ अ.ग. सरिज्या ख ग. दुख तणा अ. विहाय; ग. विहाई ७८४. अ.ग. हल्लहल्ल ग. विरहई शीलवती-हीई ७८५. ग प्राण हरइ अ. जासि; ग. जासि. ७८६. ग. कमल बंधाणो भमरलो ग. उग्यो वछि ७८७. ग. विरहीओ ग वंछसि मित्त ७८८. अ. (स)सि सूरनि; ख. ससि सूरनि; ग. सूरनई ग. प्रीउ जासई ७८९. घ. रयणी मू ७९०. अत्रे प्रत अ.ख.ग.मां नीचे प्रमाणे वधारानी बे कडीओ मळे छे. प्रत 'अ' कागा कूकड वीनवू , रखे करतो साद, प्रहिवसी रवि ऊगति, प्रीउ जासि परभाति. ७७० रे सही उठि उतावली, प्रगट थयु प्रभात, चूढि आकासि अरीसड, मोतीडानी भाति. ७७१ प्रत 'ख' कागा कुकड वीनवू', रखे करता साद, प्रहिवसी रवी उगतई', पीउ जासि परमाति. ७७० For Personal & Private Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी १९९ रे सहि ऊठी ऊतावली, प्रगट थयु परभाति, चूढि आकासि अरीसड, मोतीडानी भाति. ७७१ प्रत 'ग' कागा कूकड वीनवु, रखे करतां साद, प्रवसी रवी उगतई, प्रीओ जासि परभाति. ७८८ रे सहि ऊठी उतावली, प्रगट थयो परभाति, चोढि आकासिं अरीसडो, मोतीडानी भाति. ७८९ अ. करि अमंगल; ग. करि अमंगलि अ.ग. सांति ७९१. ग. कइि मंगलि कांइ ग. छत्रचांमर ७९३. ग. करई ग. सोना केरी ७९४ अ. झलझलहइ; ग झलहलइ ७९५. अ. ख.ग.घ. पवन वेग ७९७. ग. सूभट घ साला लोह सजोडि ७९८. ग. छाहीओ ७९९. ग. आरोह्यो भूपति ८००. ग. मोकल्यो ग. आगलिथो ८०१. ख.ग. मोकलावा आवीओ अ. राग सीधूउ गुडी; ख. ढाल २१, राग सींधूउ, गुण गिरूआ, तणा से देशी. ग. ढाल २१, राग सींधुओ गोडी, गुणे गिरुआ तणा अदेशी. ग. आपो नई अ. आ. द्रुपदख आ. दूपद तथा आचली. ग. आ. दूपद तथा आंचली. ८०४. अ. किहां रे वचनई दूहव्यां ८०५ अ. माणिस;ग. माणिस क. तुझ ८०६.ग. तयू ख. जिम नुहि विहर, जिम नोहि विरहनी अ.ग. झालो रे ८०९. ग. बीजई ८१०. ग. समरि न विचलड ८११. ग. नलिनी नि चंदलो ८१४. ग. बोल्यो न जाइ ८१५ अ. आंसूर्डि भीनो कांचुओ ८१६. अ. विण डाला रे ८१८. अ. मनावसि अ. आ पंक्ति नथी. ख.ग. ओलभडा ८१९. ग. कां समज्यां प्रीऊ ८२०. ग. जलि वेलडी; ८२२. ख.ग. केवारी रे. ८२३. ग तुह्मयो मुझने अ. तमनि; ख. तमनि समरेसि ग तुह्मनि सनरेसि. ८२५. अख.ग. स-हथि ८२६. सायरइ ८२७. अ.ख.ग. थायो रे ८२८. ग.द्यो. ८३०. ग. राख्यु जाय. ८३१. अ. कडूआवीयां ८३२. ग. आदेशडो ८३५. सूनलि ख. सूनइ ८३६ अ. कति ख. कति ८४०. ग. वीसार्या ग. जे गिरुआ ८४१. ग. रांन थयो आदेसडो ग. दूरे गण ८४२. क जूरी ख ग प्रीयो रे ८४३. ग दुर्लभ टुझ मुझ मुख-चंदलो ८४४. आ कडी प्रत 'घ'मां नथी. ग नेहे ग. टलवलइ ८४६. अ.ख नइ-पाणी परवाहि ८४७. ग. सुझवणु ८४८. अ. जू जांइतु जातू; ग. जाइस ग. जाय छु'. ग. हो अनंगल पंथीयां ८४९. प्रत 'अ'मां आ कडी नथी. ८५०. अहीं प्रत 'अ', 'ख', 'ग'मां वधारानी कडी नीचे प्रमाणे छे: प्रत 'अ'-गोरी मुज उलंभडा, कां दिइ तुं सुविचार दिउ ऊलंभा देवनि, जेणि कीट विरह आरो रे. ८३१ प्रत 'ख'-गोरी मुज ऊलंभडा, कां दीइ तुं सुविचार, दिउ उलभा देवनि, जेणि कीघउ विरह अपार रे. ८४४ प्रत 'ग'-गोरी मुज उलभडा, कांचि सू सुविचार, दिन उलभां देवनि, जाणे कीउविरह अपारो रे. ८४५ ८५१. प्रत 'अ'मां प्रतुत कडी नथी. ग जोसइ ८५२. आ कडी प्रत 'अ'मां नथी. ग. करज्यो; घ. करजो ८५३. घ, आ० कुशल अ. मलसि ८५४. प्रत 'घ'मां आ कडी नथी. ८५५ ग. वाहला वहिला अ. न सुजाण; ग. जतन करी ८५६. ख. वुलाविवा ग. For Personal & Private Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० जयवंतसूरिकृत वोलाविवा ख. तामो रे; ग. तमोरे. ८५७. अ.ख.ग. नयनां धरि जल ८५९. आ कडी अने पछीनी कडी प्रत 'ख' अने 'घ'मां ऊलटकमे छे. ग. तिणि दखिय दख. ८६०.ग. खूचइ ८६२. ख ग मसि जेती ८६३. ग. रांण मसाणो ८६४. ग. वोली ग. वीनवई. ८६५. ग कटकको ८६७. सारो रे ८६८. अ. वच से अ. कुमुदिनी ग. घणि ८६९. ख. वछोडीवो अ.ख. जु जाओसः ८७० ख. जलंनइ; ग. जलंती देह अ. राग मारूणी माहि, दूहा. ख. राग मारू मांहि, वीरही, दूहा. ग. राग मारू मांहि वीरही, दहा ८७४. ग. जुई ग. रंकडो; घ. रकडु क.अ ग. जाप ८७५. प्रत 'अ'मां आ कडी नथी. ग. मेहलीया ग. वादलं ख. टाती; ग घ. टाली अ.ख.ग. वाय सवाय ग. सज्जन सूहालां सांचरईग. छंडइ छांह ८७६ अ.ख.ग. गुण-वेली ८७७. ख.ग. संइ न सरज्यो ८८०. अ बीज दिने; ग. बीज-दिनि ग. विह्यां मेलि ८८४. ग माइ स्यु भेलि घ पुण्य सइ वली तुंह ८८५ ग. इणि परि ख.ग. विलाप करेइ ८८६. ग. ओ पेलो वाहलो जाई ८८८. अ.ख.ग. जोस ८९१. अ. अलर्जु ग. अलजो ८९२. अ.ख ग. सुमनस ग. आउल-फूल ८९४. अ. मानस माय ८९५. सज्जन वावाइउ ८९६. अ.ख. वुहरति ख. वुहरावीया. ८९७. आ कडी प्रत 'अ'मां नथी. ८९८. अ.ग. पालडी ८९९. अ.ख.ग. सोसि ९०० ख ग. भूहडी ९०१. अ.ख.ग. सुअण-गुण ग. अपांण ९०३. ख.ग. दीवी बलइ ९०६. अ. जु ग. जांणत ९.:. अ.ख. नेहि रत्तवि पडुरा; ग. नेहि रत्तवि पंडुरां ग. तन पाणुयंति; घ. तययंति ९१०. अ.ख.ग. नलिन ९१२. घ. कयछप अ.ख.ग. वुलावि करी ९१४. अ.ग. रोआवीआं अ. नवि मरइ ग. जाई झुरंत ९२१. अ.ख.घ. वनि भुवनि किहि ग वने भुवने किहिं अ. क्षण बाहर क्षण भीतर; अ. ख. क्षण भूइ क्षिणि खाट ९२३. अ. पुहवि; अ. पोहवी ९२४. अ.ग. सोहावता ग. मृगरि ग. सज्जन देस गण ९२५. अ.ख ग. कुसुमा सजीणि मंदिरि अ.ख नाम ते; ग. नाम ते ९२६. अ. तेह जि नते ठाण; ग. तेहि ज मे ते ठाण ९२७. ग. कहीइं माई. ९२८.ग. सज्ज स्यु ९३० अ. किहि अहो सरिज्यां ९३१. क.अ.ख. मूरछाइ; ९३२. अ.ख ग नीर समीर चंद चंदनह अ तवि वेली थाइ ९३३. ख.ग फूटेणी ९३४. ग. पन्नडे ८३५. अ.ख. ऊषध ख ग. रोम लगार ९३६. अ नयणराय अ.ख. सुमनस-दसण ९३८ आ स्थाने प्रत 'ख'. 'ग' अने 'ध'मां वधारानी गाथा नीचे प्रमाणे प्राप्त थाय छे. प्रत 'अ'.--- कुंअर विनां भाणु गलइ, मुज तनु दहई तस आहार, तस अरि-बंधन मुहि वसइ, ते विण दुख अपार. ९९१ प्रत 'ख'- कुंअर विन भागु गलई, मुझ तनु दहइ तस आहार, तसु अरि-बंधव मुहि वसई, ते विण दुख अपार. ९४७ प्रत 'ग'- कुवर विना भाशं गलइ, मुज तनु दहइ तस आहार, तस अरि-बंधन मुहि वपइ, ते विण दुख अपार. अ. ताति तेलि शीतल जलइ; क. शीव-जल ग. ताति तेति ख.ग. छमछम अधिक सथाई ९४१. ग. जेणिं से लायो वेघडो ९४५. ग. सालइ प्री ९४६. ख.ग रडई ९४७ अ. वुलाविया ग. थानकि ९४८.अ.ख.ग संचर चेइ ९५०.ख कुदु ५५१ ख.ग. कईरी; अ.ख ग घ. होड़ [अन्य फल न सफल न हो ख. पाठान्तर] अ.ग. सगुण सणां ९५२. अ. डोलीइ; अग. For Personal & Private Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शंगारमंजरी २०१ कोलीइ ९५३. ग, मिलइ ९५४. ग, बापीडो ९५५. अख. सुर-तर ग. सुर- नर तणइ'; घ. सुतर ९५७. ग. मांछिली १५५. ग. तेणइ स्य काज ५५९. प्रत 'अ'मां आ कडी नथी ख. नेह विछोह्या ग. नेह विछोह्या ग. विछोह्यां ९६०. अ. जुन भंजाई, ग. न जो भोजाई अ.. सहाय ९६२. ग. पांहिं अ.ग. दुदर, ग. डुदर ख. भणां, ग. भलां अ. प्रांण अ. त्यजयंति ग. तजाति अ.ख.ग सनेहां माणसां अ. मरणा ख.ग. मरणा ९६३. ख. तेहवो ग. लगाडीइ अ. जाहि; ग. जांह अ. बप्पीह नि; ग बप्पीहनिं ग. जाइ ९६४. अ.ख ग पांखडी ग. सो लइ अ. अलजु भांजु मन तणु; ग. अलजो भांजो थत तणो. ९६५. ख.ख लै चंदा चतुर तु ग. संदेशो ९६६. ग. समाणा अ.ग. सूनु ९६७. अ.ख. ग. तेह ९६८. अ.ख.ग. भिलये ९६९. ख. कोले म करयो ९७०. ग. कहीइ आवसइ ग.' विच्छाहीं ९७१. ग. ओरतो ९७२. ग सज्जन नइ सुहुणइ ९७३. ग. विरहइन आवई ग पहइलो नींद्र वियोगि ९७४. अ. सुहणइ; ग. सुहणई मिलं ग. नाविं नींद्र ९७५: ग. ग. दोइ ९७६. ग. विरहइ ख ग. कसरारिय नयणेहिं ९७९. अ. जिजइ ९८०. घ. तस तनइ ग. दिन दिन ९८१. आ गाथा प्रत 'अ'मां नथी. ग. छांटो नयन-जलेहिं ग. तोहिं सहइ क.घ. पथरिय दिन दिन पंडुरे-देय. ९८२. वडनाल ९८४. ग. विराहानलिं अ. मुहि धूयां ग. आंसूडे ९८५. ख ग. अकंति अ. हैहूं'; ग. हेजि हसति ९८६. ग. कनाईणे अ. केडि ऊजाय; ९८८. ग. सुनो भमइ ९९३. ग. मुच्छा ग. दहइ ९९४. ग. चितिं अ. रतिइ; ग. रक्खुइ ९९५. ग. भमीय ९९६. ग. मिलई ९९७. अ. हाथि विजनि; ख.ग विझवनि ९९८. अ ग. सुहाय ९९९. ग. कहइ अ. तेहनी १०००. ग. दोहिला नीडई १००२ ग. गुणकीर्तिना ३, उद्वेग ४, अ. अताःस्मरदशाप्रोक्त: अतअव; ग. अताः स्मरदशा प्रोक्ता: अ. अत अव पृथग व्याख्याता; ग. अत अवद्द पृथग् व्याख्याता; घ. अत अव ६ पृथगू व्याव्याता छ; १००३. ग. दहैं वली देहिअ घ. चंदहइ वली देहि १००४. ग. दहे. मयंक १००५. अ. तु सिडं करई १००६. अ.ग. ससि-मुखि ग. मुज; ग. मुज साथिं. ख.ग. केरई; ग. आधार १००७. अ. विरहि पडियां अ. विरहिं पडया सुख सोधीई [भुआ पछई वयर साधीई; ख पाठान्तर] ग. विरह पडयां दुख शोधीइ १००८. ग. तां ससिनई झंपेइ ग. आवई मोरो वल्लहो. ख.ग. सहिस करेइ १०१०. ग. कहेओ १०११. अ.ख.घ. तीह हुइ: ग. तोह हई १०१३. अ. कहनि; ग. कहो विमांसि ग. पगि पगि वाधि १०१४. अ. उत्तर ग. उत्तर [आ बे कडी प्रत अख.ग.मां छे. प्रत क मां नथी, अीं प्रत अ नो पाठ स्वीकार्यो छे.] ग पगि पगि वांधइ ख.ग. मांसि १०१५. ख.ग. खिणि खिणि खटकई तेहीइ १०१६. अ.ख. जे० स० ग. संभारता ग. सूकुं सालई साल १०१७. ग. वरसा सो समी १०१९... अ.ख. जेह० लोहार १०२०. ग. सोद वींधी मेलई १०२१. (प्रत 'क'मां ३ अने ४ पंक्ति अन्यथा छे. ग्रंथपाठमां प्रत 'अ'नो पाठा स्वीकार्या छे.) अ.ख. भाव ग तोहइ न जाइ सभाव १०२२. (प्रत 'क'मां पंक्ति १ अने २ नथी. अहीं प्रत 'अ'मांथी ते लीधी छे. १०२३. अ.ग. सज्जन क.ख. पाप १०२४. अ.ख. कलिमलु; ग. कलिमलो १०५५. ग. ऊफराटा.. अ.ग. जोय १०२६. अ. सालि; ग. सालई १०२७. ग. तनमई १०२८. ख तु परवेसि किम रह्माः १०३०. अख. जे पहिलू करिउ सनेह १०३२. अख. बाउल-कंट ख.ग. २६ For Personal & Private Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ जववंतसूरिकृत सज्जन सविसाल १०३३. प्रत अ.ख.ग.मां आ कडी अने ते पछीनी कडी उलटकमे छे. १०३४. ख. उखडू: ग. ऊखेडो १०३९. ख. नेह करीओ; ग. जिहीं सनेह करिओ १०४१. ग. जेनो हुई सनेह ख.ग. नेह १०४२. ग बलतुं जोय १०४४. ग. दह क. जाल अ. विरहानल जाल १०४७. ग. हैडा मींतरि १०४८. ख.ग. नयणांनी रस १०४९ अ.ग. हल्लफुल्लवि ख. दुयारि १०५२. ग. झंखर रहयु १०५५. ग. मिलि के वार १०५८. ख. विर(ह) विछोहियां १०५९. ग. अधिर्को दहई ख. हयास १०६०. अ.ग. झूरी म झूरी १०६१. ग. अंधारु १०६२. अ.ग. झूरि रे अ. ग. मिलसइ योगं १०६४. अ.ख. ज गमीय १०६५. अ. मुझ १०६६. अ.ग. फट्टवि अ. अ. दहइ दसिजाई १०६८. ग. कोय दीसइ तेहवो ग. जीणि तुह्मो ख. विसरि १०७९. ख. सरिजु; ग. सरिजो १०७०. अ.ख.ग. नित्य १०७१. ग. दैव १०७२. ख. चणइ; ग. चुणई १०७५. विकराल अ.ग. तु रणी ख. सिंहानी १०७६. ख.ग. मेक घडी अ. दाघी वंकेण १०७८. ग. फठीओ १०७९. प्रत 'ग'मां आ पंक्ति नथी. १०८१. ग. बलो रयणी गलो १०८३ ग. टुणा कियते दैव १०८५. ग. वसतई मिल्युं अ.ख.ग. अनुव्ववियोइ १०८७. ख.ग. इसा रति १०८९. प्रत 'अ.ख.'मां आ कडी अने पछीनी कडी उलटक्रमे छे. ग. बोहांमणो १०९१. प्रत 'अ'मां आ कडी नथी. १०९२.ग. जीणिं को कोउओ मित्त १०९३. घ. मन भारवण करेइ १०९४. अ. किम रहि ठामि १०९६. अ.ग. दुख ग. दीजइ सुखु १०९९. देविं सरया वेगलां ११... ग. त्रणि दहैं घ. अणाहामणा ११०३. ख.ग. अचरिज ११०४. अ. मारवि. ११०५ अ. पीउ पीठ; ख.ग. पीउं पीउं अ.ख.ग. मारि मयण-सरेण ११०६. अ.ख.ग. पंखडी ख. लियाविस अ.ख.घ. वल्लह ख.घ. पंथ पमाणि ११०७. अ. ऊबलि; ग. उबलइ ११०८. प्रत 'अ'मां आ गाथा नथी. ११०९. क. रूडा १११०. अग.घ. भज्जति ११११. ख. अंगच्चियभिब्भेइ १११२. अ. २१ अथ पनिहां; अथ पनिहां; ग. अथ पनिहा; घ. अथ पनिहां. ग. पीउ परदेसि घ. सुक्खु ग. वालावीया ग. तेड्यां आव्यां, दुक्खु किहहां १११३. क. आवटडु अ.ख.ग.घ. सो किउं सुख लहइ १११४. ग. राण किं १११५. अ.ख.ग सुख परि ख. पाठान्तर) घ. मु धरि १११६. ग. तिथि थानकि उचाट किं घ. उलाट, कि बइडां अ. थानडि उच्चाट कि; ख. तिणि थान किउचाट १११७. अ. मि नांणिउ ग. पाउकुं तेवडो; १११८. ख.ग. झाल कि गहगहयो ग. कूपल्यो ग. किंत्रालय ग. दव बल्यो १९१९. ख. ग. मनमोहन मास ग. गहिबो. ग. विरही कूपीउ परदेश किं जोतां मन खलभल्यो. मास वस वसंत कि ग.घ. सो दिन क्रिम गमई ११२१. ग. घडीय विसरइ ग. कहीइ पर पीर किं ११२४. ग. गले वाहीयां ख. बाहीयां ग कदही मिलइंगा पीउ पूछू ११२५. घ. जाल कि ख.ग.घ. मुहु नीसासे यलंति ११२६. अख.ग.घ. जलहर ग. भोंनी ११२७. घ. चोखली ११२८. ग. घडहडइ ११२९. ग. कदीयअ न वीसरई ११३२. ग. शालिं मुंमंजरे ११३४. प्रत 'ख' अने 'घ'मां आ कडी नथी. ग. दाझिं ११३५. ग. धूम किं ऊठिं नीरमां ११३७. ख.ग. दिन गमाइया ११३८. ग. गवाई उतापई ११३९. ख. माण(स) सवि अछ.ग. इति पनिहां; ग. इनिहां; घ छ.अ.ख.ग. दूहा ११४०. ग. बोल्या ११४१. ख. साआला किहा खाइसतु (पाठान्तर) ११४४. ग. परदेसइ ११४४. घ. पांख ज सरजी.ग. तो जांण विहि घ. छः ११४७. अ.ख. ग. आवई सुहणि; ग. सुहणि ११४८. प्रत 'घ'मा आ For Personal & Private Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी २०३ कडी. पांच कडी मूकीने छे. अ. समवाइ; अ.ख.घ.ग. कहो... ११४९. अ.ख.घ.क.. ग. कहो.. ११५०. क. नाहासीयावइ अ.ध. नासी यावइ अ.ख.धक कहो अ.ख. इति अणखीयां; ग. इति अणस्नीया घ. छ: ११५२. ग. सालइ ख.ग. नवि भावई ११५४. ग. अखंडीत-धारा ११५५. ग. झूरी झूरी ११५६ चाल्यो मुझे ११५७. ख.ग. रति घरि जाई ११५८. अ.ख. कोयमल मालई अ. सबली ११६२. घ. दुखडां ११६४. ख.ग. जाणन हीरा. ११६६. ग. नेहलो ग. दुहु अध ११६७. घ. जे वेसिइ जे ११६८. ग. रस-भंगार ग. ग. जांणई अण-सीखव्यु. ११६९. ग सीखि ते अण-सीखव्यु. ११७३. ग. प्रीउडो पंथि ११७४. ग. पंथि पंथ ११७५. अ. गोरी तुं सज्जलेण. ११७६. ग. पंथी पंथि ११७८. अ.ख. पंजरि-वध्धु; ग. बद्धो जीवडो ग. कहा ग. ऊडी जाई अ. किमहई अ. राग देखाख उ पे घर माहरू काहान ओ देशी. ख. ढाल २२; राग देशाख. आ पेलु घर माहरू काहान से देशी. शत्रुजय जो हारस्ये रे तेहनइ दुरगती नही रे लूगार. ग. ढाल २२, राग देखाख, ओ पेलो वर माहरा कांहान तथा शत्रुजय जहारस्वइ रे तेहनई दूरगति नही रे लगार में देशी. घ. राग देखाख, उ पेठू घर माहरू काहान; ओ देशी. ११७९, अ. विरह लायाजी; ग विरहय रोलायाजी; घ. विरहय लावाजी. ११८३ अ.घ. सरसी ११८४. अ.ख ग. शशिर चंदन उपाय ११८५. ख.ग. तनु काया क. पंथनी दोहिलइ ठाया घ. पंथ (अ)नीठा थाया. ११८६. प्रत 'ग'मां चरण २, ३, अने ४ नथी. अ.ख.घ. भायाजी ११८७. प्रत 'ग'मां चरण, १ अने २ नथी अ.लक्षतां. ख.ग. लखतां ११९०. अ. आवि; ख.ग. आवी: घ. अवइ ग. पंथि पंथि हतां अ. मूरछाया; ख ग. मूरच्छाया ११९२. ख.ग.घ. दूहा ग. अहितसेननि ११९४. हांणइ दुखडा ग. हीस्यु ११९९. ग ऊजागरो अख.घ. अता नि; ग. अतानि क. मना लवी; ख.घ. मन भालवी: ग. मन सालवी ग. करो ते करजो १२००. प्रत 'अ' अने 'ग'मां अहीं वधारानी कडी नीचे प्रमाणे छे. प्रत : अ. हैडू हेजि आवटि, व्यसन वसाही आप, करतां कीधु नेहड, निरवहितां संताप. ११७९ प्रत : ग. हैड हेजई आवटाई, व्यसन वसाइ आप, करतां किधा नेहडो, निरवहता संताप. १२१० ग. को प्रवेश ग. हवें ग. प्रगटीओ १२०१. ग. झरई ख.ग. मुक्खु ग भांहई १२१०. घ. काढा घ. त्राण करी ग. जो काढई ग. जाणुं किमहई वीसरई १२१२. ख. ख. तुहि डीलथी. ग. तोहि डीलथी १२१४. ग. हंस गतई ग. गुणनुं काम १२१५. ग. मुझ सुं हास्युं छांडि १२१६. ख. तूत; ग. तू तु घ. तनु १२१७. मुझ आपि १२१९. ग. मालती म रोय घ. समरि रोइ ख.ग. दुखि; घ. दुकिख सहिणे १२२५. ख. जाधूखाघू; ग. खाधु ख.ग. खाधू १२२६. ग. पाछओ न विलीओ १२२७. ग. अटारडो १२२९. ग. उग्यो ग. लागई झाल १२३०. अ.ख. चंदु ऊगमिउ १२३१ ख. हीडि देसि ग. किर्हि जांणिओ १२३३. कत-संदेशो पठवई १२३४. ग. मनस्यु धरज्यो १२३६. ग, तां भवि भागई; ख.ग. भवि १२३८. ग. कहे जे संदेसडो अ. राग धवल धन्यासी, मोरइ आंगणडइ For Personal & Private Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ जयवंतसूरिकृत प्रीऊ रमीउ, मे देशी ख. ढाल २३, राग धवल धन्यासी, मोरई आणई प्रीऊ रमीउ, मे देशी. ग. राग २३ धवल धन्यासी, मोरइ आंगणडइ प्रीउ रमीओ, से देशी. घ. राग धवल धन्यासी मोरइ आंगणडइ प्राउइ रमीउ, ओ देशी १२३९. ग. समरंती हसई ससनेहा रे; ख. वलइ जे ख.ग. म रहे जे रे अ. चाद; ख. चांद; ग. चा०; घ. चांदलिया १२४५. ग. संभरइ ग. मोरइं मनडे १२४१. ग. ओ तो कोयलि १२४३. ग. पासिं ग. माहारा १२४६. ग. लेखि न कहिजइ १२४७. ग. अतो किम नीगमसई १२४८. ख. विच्छोह ग. अतू तू मूतारसि मोह; ग. अतो तू मू तारसि मोह; घ. तु तंह म उतारसि मोहा रे १२४९. ग. ताहरि विरहईदिन जाईग. घडलीयुग जिम थाइ ग. मईन खमाई रे अ. राग सीघूउ गुडी, श्री सीमंधरि सामि, से देशी. ख. ढाल २४, राग सीधूउ गोडी, श्री सीमंधर सामि, ओ देशी. ग. ढाल २४, राग सींघुओ गोडी, श्री सीमंधरे सामि० अदेशी. घ. राग सीधूइ गोडी, श्री सीमंधर सामि, ओ देशी १२५१. ग रणझणई १२५२. ग. पंथीआ अ ग. रमई रे १२५४. ग. विसम्यो ग. रह्यो तेणई ठामि १२५५. नदीय न नीर १२५८. ग पसा १२५९. ख वीनविउ, ग. वीनविओ ख. अहवी न सती ग. विख दमि अ.ख.ग.घ. दूहा १२६९. अ.ख ग. नीठचर १२६२. अ.ख.ग.घ. मेह सज्जन १२६३. ख.ग. गुह-जल लेवाकर लेइ वीखरइ अ.ख.ग. सज्जन १२६७. ग.ख. दूरियतां १२६८. ग. काजे न आवई १२६९. ग. नीलां कज्जल सामलू ख. कधीयन विहारिउ दीठ १२७०. ग नरहिंणिं अ.ख.ग. दोय १२७१. घ. दु-मुह १२७२. ग. जेंन मंतरि १२७४. ग. दींसीता बोंहामणा १२७६ अ.ख.ग. विस-दमणि १२७७: अ.ख.ग. अज्जवि १२७९. क. सुद अ.ग. सदंसणि कन्हहीइ': ख. दस दंसणि कन्हहोइ; घ. रुद्ध सदमणि काहहीइ अ.ख. नमणिजा; ग. नपणिज्जा १२८०. प्रत 'ख'मां आ कडी नथी. १२८१. अ. गुण दोस १२८३. ग. पापि १२८४. अ. राग गुंड मल्हार, तु सेती मेरा मन लीणा, ओ देशी. ख. ढाल २५, राग गुड मल्हार, तुं सेती मेरा मन लीणा, ओ देशी. ग. ढाल २५, राग गुंड मल्हार, तुं सनी मेरा मन लीणा, ओ देशी. ध. राग गूड मल्हार, तुं सेथी मेरा मन लीणा, ओ देशी. १२८५. अ. दुपद ख. दूपद ग. दुपद घ. दू११८६. ग. विहंस्यु' ग. मांडई अ. बिहनि; ग. त्रिह नि ग, देखाइ १२८७. प्रत 'ख'मां आ कडी नथी. १२८८. ग. बोलई जून करई नवेरू अ.ख. छयल्ल घ. छयेल ग. अनेरूं १२९१. ख. परिच्छयल १२९३. अ.ख.ग. अमुनित जेहनां १२९४. ग. बोलाव्यां हसिनि बोलिं १२९६. घ. आपणपिं १२९७. अहीं प्रत अ.ख.ग घ.मां वधा. रानी गाथा नीचे प्रमाणे छे.. प्रत : अ. साहमानि जे दुखभां पाडइ, आपणपि नवि दुख देखाडइ. प्रत : ख. साहमांनि ने दुखमां पाइ, आपणपि नवि दुख देखाडइ. प्रत : ग. साहमांनि जे दुखमां पाडइ, आपणाई नवि दुख देखाइ'. प्रत : घ. साहमानि जे दुखमां पाडइ, आपणपि नवि दुख देखाइ. अ. वसिकरि ऊपाई; ग. करि ख ग. ऊपाई अ. आपि तेहनि ग. आपि १२९८. सहुनि वाहइ १३०२. ग. जिउ जेह स्यु मिल्या अख.घ. तुहि नतियु कुरंग १३०३. अ. जांण For Personal & Private Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी २०५ अजाण किस्यु करइ ग. लिहावो कपूरई ग्रह्यो १३०४. ग. जे हस्यु लागो चीत्त १३०७. ग. भिलि न मेहलाई अग. नयण-रस ग. अवटावई ११०८. ग मिलि न मेहलहे ११०९. ख. मन (व)वडी ग. जांगईग. बाहिर देखाडि सती अ. राग आसाउरी, राजा राजा नव नधि मेरे, ओ देशी, ख. ढाल २६, राग आसाउरी, राजा राजा नवनधि मेरे ओ देशी. ग. ढाल २६. राग आसाउरी, राजा राजा नवनधि मेरे, ओ देशी. घ. राग आसाउरी. राजा राजा नवनिधि मेरे ओ देशी १३१२. ग. कलियुगमां को... ग रा० अ. दुपद; ख दूपद; ग. दूपद १३१७. ग. कुंण ग च्यार ग. कहई रे सरुप अ. तथाहि; ख. अथ पातालसुंदरी संबंधो कथ्यते, तथाहि; ग अथ पातालसुंदरी संबंधो कथ्यते, तथाहि; घ. तथाहि १३१८. ग. सुविशाला ग. रसाला १३१९. ख.ग. जयवंत सेन १३२०. घ. गरवई घ. गई ग. सामाजिक नि बोलिं १३२२. अख.ग. अक कोविद १३२३. अ.ख ग. महिलाचरित ग. महिलाचरित्र न जांणई १३२७. घ. माग हींसइ १३३०. अख.ग. पांचसि १३३३. आ कडी प्रत 'कमां नथी. ग्रथपाठमां प्रत 'ख'माथी लीधी छे. १३३४ आ कडी प्रत 'क'मां नथी. ग्रंथपाठमां प्रत 'खमाथी लीधी छे. ग. सोनी १३३८. ग. नरहिं पाई अख.ग.घ. दूहा १३३९. ग. सुंणी १३४१. अख.घ. ओक-मन ग. मरोई तेहनि साथि १३४२. ग. हुई अख.ग. बहुंआ ग. हुई ख. कांता; ग. पाखइ १३४२. अ.ख.ग. रज्ज १३४५. ग. तो लक्ष मिलसि ग अंतरि का विचार १३४७. ग. जो मंडीजई १३४९ ख.ग.घ. सत्त. वंती ग. रहई ख ग. माणसडां तस हीण १३५०. ग तरस्यां मरइ १३५३. ग. अकई माणसज्जस नहीं १३५४. ख.ग.घ. सही ग.घ. रच्चतां ग. हाथि १३५५. घ. हीया केडू हीद १३५७. नुहि विरंग १३५९. ग. फुलबडु खणई १३६०. अ. जि; ख. ज; ग. जं; अ.ख तुली रुधिर १३६१. ग. कुसमि भिल्यां अ.ख.ग. चम्म मिलंत १३६२. घ ग. पड्यउं क. उछ ख. इक्ष १३६३. ग. मनिं हुई बग शं(का) घ. ओलां साथिं १३६४. अ.ख ग. यांन १३६६. घ. कसीया १३६७. ग. नोहि ख,ग. विकार अ. राग गुडी, संभारी संदेसडु मे देशी ख. ढाल २७, राग गुडी, संभारी सदेसड्डु, ओ देशी. ग. ढाल २७, राग गोडी. संभारी संदेसडो, ओ देशी घ. राग गूडी संभारी संदेसडु, अदेशी. १३६९. ग नहींतरि सर्व अ.ख ग. इम १३७१. ग वीसासणि कोक घाई १३७४. ग. शीलई १३७५. ग. नाम न जांणई ग. न दाखई दे १३७६. ग. बांध्यो ते साथि १३७८. घ. नुहि मयण १३८१. ग जणि कर्या ख. आपणू; ग. आपणु अ.ख.ग. मनलिइ विश्व भेद घ. मनडु लिइ विश्राम दे अ. राग गुडी ख. ढाल २८, राग गुडी ग. ढाल २८, राग गोडी घ. राग गुडी १३८२. ग. तेह विण ग. न नहि १३८४. ख.ग. तेहबू १३८७. ग. तुठो राजन मेहलइदांण १३८९. क चमर हरि ग. छइग. नांमि सु वेश्या घ. चमरीय हारी १३९२ ग. साल न दीसई कांइ असार १३९३. ग. वहिलो जाइं स्यु गुडो १३९५. ख भा(स)इ; ग. भासई अ.ख.ग.घ. दूहा १३९७ प्रत 'क' मां आ कडी नथी. ग्रंथपाठमां प्रत 'अ'मांथी लीधी .१४००. खग. आखडीओ ख. अलजु; १४०१. ग. हइड हर्ष न माई १४०२. ग. दूरि तेहसु; घ. दूरि तेहसिउं अ. संतोख स थाइ; ख संतोख न सथाई १४०४. अ.ख.ग. प्रलाप ग. माणस वध विधडां १४०५. ग करइ ग. पइंटो १४०७. ग. जेहस्यु लागो वेघडो ग. तां दव लागो वेडि १४०८.ग. दहई पूरी क. घणी १४०९. ग. अणुंराय १४१०. ख.ग. For Personal & Private Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ जयवंतसूरिकृत वालहां ग. विरहइ माइख ग. न विलइ घ. नवि लजाई १४११. ग. नी(सा)सो उजागरो ख.ग. अंकुरा १४१२. प्रत 'ख' अने 'ग' अने 'घ'मां आ पछीनी त्रण कडी ऊलटकमे छे. पण अत्रं ग्रंथपाठमा क्रमे पाठान्तर नेांध्या छे. १४१३. ग. तत्त अतत्त स्यु ग. सद्धि सद्धि मलाइ १४१४ प्रत 'ख'मां आ कडी नथी ग. झूर कोई ग. संसारि न अपणा १४१५. अख.ग. पक्षि स कसाय १४१७. ख ग. सय-हाणि १४१८. अ.ग. लागसु, ग. लागसी १४१९. ग. हमारत १४२० ग उंचा आंबा १४२१. ग मागइ आडि करी अ.ख.ग मरेय १४२३. ग.घ. रे हेडा १४२५.ग. बिरह-दोहिलो ख. चांखियां; ग. चाख्या ग. थोडिल १४२६. ग. मरकल डि हसइ १४२९. ख. देवि ग. देव सरज्यु'; ग. हाय १४३०. अ.ख.ग. सुपनं रि १४३६. अ.ख. विचि: ग. विचिं १४३७. अ.ग. मिलसिउ घणू १४३८. ग. जागइ बोलाइ १४३९. अ.ख. मयण-खट्रकइ होय ग. मयण खटके होय १४४०. अ.ख दुनि-जन घ. काया कू ची ग. तादु कीजई १४४२. ग. अंगो अंगि मूरखां १४४३. अ.ग.घ. जेह सुख अ. मोर गि नाचइ गाजतां ख ग. मोर नांचइ १४४४. अ.ख ग. कहाय १४४६. ग. परदेशडई गयाइ १४४८. ग. वेश्या १४४९. ग. विरलां जांणई १४५०. दष्ट अदष्टनि ग. लहइ १४५१. अ.ग. दहेय १४५२. ख. खट्कइ; ग. खट्रकई १४५४. ग. करि विमांण १४५५. ग. अधिकुं स्यु करइ १४५६ ग. कसो ग. ते थाओ १४५७. अ.ख.ग. दशाननि दश शर नीगम्यां १४५८. ग. वलि मे प्रांण १४५९. ग. प्रांणि धरई १४६० ग. जां लगई ते न मिलंति १४६१. अ.ख. कोऊ जलिइ; घ. कोऊ ग. जलई अ.ग. उल्लावि; ग. ऊल्लावि १४६२. ग. बलतू लइ ग. तनुं कंपाइ अ.ख.ग. अण-वेचि ग. जीणि माइ १४६३. खग. जिण जाणि जमता ख सि नि जे वेघड ग. सु नि ज वेघडो १४६४ ग. बाहिरइ १४६५. अ.ग. चंदु ग. दहइ १४६६. ग. रहिं तो माहरा अ.ख.ग. छाइ १३६७. अख ग. उपारजन १४६८. ग ऊल्लसइ ग. अहींइ किस्यो संदेश १४७१. ग. वलि वइंरी स्यु मंडीइ १४७२. ग. कमलि नई वेघडई ख.ग. सहीय घ. वालाहां १४७३. ग. परवस रहइ ग. मूंकि विझगयंद १४७४ ग. किंहिं ग रमइ अ. नेहडइ अ.ख.ग. मयल्लपणू १४७७. घ. अधि घडी १४७८. अ. पटलडई; ग. पटओलडई १४७९. ग्रंथपाठमां प्रत 'ख', 'ग', 'घ'मां वधारानी कडी आ प्रमाणे छे. प्रत : ख.-ऊज्जल पणीय जिम ससिकला, दिनि दिनि वाधिं सोय, तेहवी उत्तम प्रीतडी, विवरयां खलि होय १४६० प्रत : ग-उत्तम पणय जिम ससिकला, दिन दिन वाधिं सोय. तेहवी उत्तम प्रीतडी, विखरीयां खलि होय. १५०८ प्रत : घ.-ऊजल पणि मि जिम ससिकला, दिन दिन वाघि सोइ. तेहवी उत्तम प्रीतडी, विवरीया खलि होय १४६१ १४८०. ख. अक ग. किं १४८२. अ ऊखडिउ; ख. ऊखडिउं ग. उखडणुं ग. भव सवि १४८५. ग. सरि धर्या १४८६. केरो ठांम ग. जाणु' अभिराम १४८७. ग. खहावी खास १४८८ अ.ख.ग. खप ज(प) १४८९. ख. उन्च्छा हुई १४९०. ग आग For Personal & Private Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृगारमंजरी २०७ मांहिं संपावी ग. तरीइ अ. मरह आगमी १४९१. ग. जेह स्युं होइ ग. विख-वेलडी ग. ओल्लाइ १४९२. ख. घ. हरि - पाहरी ग. स्वा तोहि १४९३- अ.ख. निमेडि १४९१. ख. ग. आसा-लुबध ग. दव पडी मरंति ९४९५. ग. पहारडई १४९८. अ. लहुंओ; लहयो १४९९ ख घ. मुद थयु; ग. मुद थयो १५०१. अ. कहू ग. से खेवि १५०२. ख. जीतु (जीत्या ख. पाठान्तर ) ऊघाडुं दोउं १९०३. ग.ख. छोडि जिम १५०५. ख.ग. थोर थणि १५०६. व. मयंक अ. नवचंग क. नवरंग १५०८. ग. चाहुज्यो; १५०९. ग. हण्या ग. भींतरि ग, नीसरइ ख. मेहलिं, ग. मेहलइ. १५१०. ग. परजीवीय ग. खगा जिम ग. अंतकरणांई १५११. आ स्थाने प्रत 'अ', 'ख', 'ग' अने 'घ'मां वधोरानी कडी नीचे प्रमाणे छे. प्रत 'अ' जीहसिणे हा तीह, सियर दीहर कसिणांइ, मुडु मुहु, कोट्ट वलंतडई, तनुं अंगी नयणांइ प्रत 'ख' जीहसिणे हा तीह पडई, सिय दोहरीह कसिणांइ, मुहु मुहुकोट्ट वलंत, तणु अंगी नवणांइ प्रत 'ग' जीहसिणे हा तीहपडई, सिय दीहर कसिणांइ, मुहु मुहु को वलंत जाणु अंगी नयणांई प्रत 'घ' जेहसिणे हानीह पडइ, सिय दीहर कसिणांइ, मुहु मुहु कोठे वलंतडइ, तणु अंगी नयणांइ. अ.ख.ग. कडख. ग. शर संधिविय. ख. तिकख; ग. निकख १५१२. क. बाला पणि जे करी; अ.घ. बाला लायणि करी; ग. बालान लोयणि करी. ग. संचरई सुजांण. १५१३. ग. सज्जेइँ [तिज्जेइ ; ] १५१४. ख. विस जलधरकी. १५१५. अ. विज्ज; ग. विज्ज. अ. विजम. ग. भरीयां. ग. तीहं विणास इ. १५१६. ग. जीवीय. १५१७. तिहूण; ग. तिहूअण. ग. तो जगि जीवित, अ.ग. कोय. १५२२. ग. हरीणलो. १५२३. अ.ख. इसर. ख. ग. समवडिं. ग. कीध. १५२४. ग. ग. सोहांमणो. ग. ऊज्जल कंबु. ग. त्रणें. अ. ख.ग. पंख. १५२६. ग. हइडिं• ख. ग. घ. नह ससि अध्धर साल. १५२७. ख. ग. थणहर. अ. ख. मयणां राठ. अ. ख.ग. निहांण. १५२८. ख. ग. भडमल्ल. ग. सो जीई. १५२९. अ. थण - भथडी. ग. त्रिहू हथीयारे. १५३० अ. नाहs - दहि, ख. ग. नाहई दहिंई. अ. जलधार. १५३१. घ. मांग अ.ख.ग. घ. नह अकुंश. १५३२. ग. परिरंभण. १५३३. ग. हीइ. अ. ख. ग. रकजीया. १५३४. ख ग. वठियां. १५३७. अ.ख.ग. वाविअ थकु. १५३८. ख. अणमातू; ग. अणमाणू, घ. मसि. १५३९. ख. ग. कोट्ट महि; १५४०. ग. रह्यो. अ.ख.ग. चंपंत. अ. उछहः ख. उच्छह: ग. उच्छह ख.ग. निहूयण नयणांनंद. १५४१. प्रत 'ग'मां आ पछी अक कढी वधारानी आ प्रमाणे छे. प्रत 'ग' अणीआला उठता थंभ, नेजा थरहरता, चाकलीया चउगठा, नीगड गज-दति नीकलतां, में मत्ता मारका सिर तीखा तीनाला, सिंगाला सागठा कठिण काका कुंभाला. रूपाली रलीआंमणा, सूदरि सुत्थ उमटया. कसी ओम कवी दासहिं, जे पर्वतशृंग प्रगटया. १५४२, ख. ग. बिडुगाय. १५४३. ग. तीरइं. खग. वन्नीउ, ख.ग. सद्रहर. ग. निवसई गुणभंडार. १५४५. अ. ख. लायणिं. १५४८. अ. ख. पटउली; १५५३. क. जंकाडि ग. झंकार. १५५४. ग. सरि चंदन - वास. १५५५. अत्रे प्रत 'अ', 'ख', 'ग' अने 'घ'मां वधारानी पंक्ति आ प्रमाणे छे. प्रत 'अ' जे नर जोया धन ते मद घूमिअ नयणेण, १५३९ गोरी जस जोती हसइ, सवि सनयण शरेण प्रत 'ख' जे नर जाय धन्य ते मद घूमिअ नयणेण १५३८. गोरी जस जोती हसई, सवि सत्य शरेण प्रत 'ग' जे नर जोया धन्य ते, पद घूकिअ नयणेण. १५८७ गोरी जस जोती हसई, सवि सनयेण शरेण. प्रत ध. जे जोया धन ते, जद घूमिअ नयेण, १५३१ गोरी जस जोती हसइ, सव्बि सनयण १५५६. ग. (स) तोल. For Personal & Private Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ जयवंतसूरिकृत १५५८. क. सध्धि. १५५९. अ कंचुं-कसण; १५६० अ. सास सरीरि. १५६२. ग. कटी, १५६४. अ ग. गोट. घ. गमयंती. १५.३. ख गहिबरि. १५७४. अ. पीर; ग. अणदीठई. १५७५. अणदीठानो ओरता. १५७६. ग. अहनि मनि स्यो. १५७८. घ. मोहणिवेलि. १५७९. ख ग. अद्भूत. घ पुरुष भरत. १४८०. क. हरु, १५८२. ग. मयण जणावई १५८३. ख ग वयण. १५८४. ग वांको. १५८६. उफराटो. १५८७. ग. सुरिज. ग. नीराग. १५८८. अख.ग. ससनेहानां. १५८९. आ कडी प्रत 'घ'मां नथी. १५९० आ कडो प्रत 'अ' अने 'ग'मां नयी १५९१. ग. हसइ १५९२. ग. हरख्यो चित्त. १५९३. ख. निरवांणी; ग निरवांणि. ग. अणजाणु. अ. सहांणि; १५९५. ख. वेधि; ग. वेधे; घ. वेधि. अख.ग दैवि. १५९७. ग. कहीई तेहनई १५९८. ख. भल्लि. ग. झल्ल. १५९९. ख.ग. सासहु. ग. ओच्छ नई. १६००. घ आप्पिउ. १६०१. अ. छयल. ग. साहमो देखई. अख. गेहजु; १६०३. ग. भमरलो. ४क जगदीस १६०५. क. काजि. १६०६ अ.ख.क. निदांनि ग. कुहुनइ कोइ प्रमाण. १६११.ग. तोरई नामें.अ. गज ति; १६१२. ग. दवि १६१३. ग. कर. १६१४. ग. सुजाति. ग. गमई. ग. ताहरु. १६१५. क. ध्यानि. १६१६. ग. नेहडो. १६१७. अ.ग. नंयणले. के. मुज्झि. १६१८. क. हथियारि. १६१९ अ. ऊरिलगइ सेो जीइ; ग ऊरि लगई. १६२०. अ.ग. अकै ज तुं. अ.ग. रूहाडि. १६२२. क. छडइ. १६२३. ग. दहइं. १६२४. ग. बीय सरि संजुत्त ग. ते जाणइ मुझ चिंत्त. १६२६. ग. माणस. १६२७. क. मुझ विरहेण. १६२८. ग. उरि लगा. ग. हरई. १६२९. अ.ख. नुहरा.; १६३०. ग. विरहिताहरई. ग. माच्छिली. १६३२. अ. जवासे सींचतां. क. जखर. १६३३. ग. तनु अवटाई नित्त १६३४. अ.ख. जांगि; १६३५. ग. आलालु वु. अ.ख.ग. लक्ष-वार. १६३६ ग. वलि वच्छनाग अफिग. अ.ख. जु नुहि; ग. वलि ह मर. १६३७. क. जपांबसि. १६३८. ग. ताहरइ वेघडइ. ग. निर-दीस. १६३९. अ. अंहनी वैद्य ज तुह जिछई, ख. अनही वैद्य ज तुह जि छई; ग [अना वैद्य-ग. पाठान्तर] १६४०. प्रत 'अ'मां आ कडी नथी. ग. तझ विरहाली-आंगलां १६४१ ख. उपडई, ग. ऊपजई . ग. कह्यां. ख.ग. पाखई ग. रहिवाई. १६४२. ख पडसिई कलिके; ग. पडसिं कालिके. १६४३. ग. वाहई हत्थडो; १६४४. घ. वा हत्थडु. १६४५. ग. लाहो तोहि न लई. १६४६. ग. जवारडो. ख.ग. उपगारि होय १६४७. अ.ख.ग. सुओ रंम. १६४८. अ. पांमइ; ग. पामेय. घ सकति लाहु लेय. १६४९. आ कही प्रत 'क'मां नथी. ग्रंथपाठमां प्रत 'अ'मांथी रजू करी छे. ख.ग. दांन दीइ. ग. सोय. ख.ग.घ. तणी. ख.ग. कोय. १६५०. अ.ख.ग. संभारसि. १६५१. ख. अलबि; ग. अलबई दिई मुझ. १६५२. अ. संचीयइ; ग. संचीज; अ-ख ग. वाधि; अ.ख.ग. बावरि; १६५३. ग. पाय. ग. माग्यो आपि न तन्न. १६५४. अ.ख. चवियां ग. चव्यां. ख. जु ते कह; ग. जो ते कहु. ग. तो ते ते आपई. १६५५. अ.ख. फलसि केणि उपाधि; १६५६. ग. लाघो. ग. करस्यु.१६५७. ग हूँ मागु तुझ कन्हि. १६६०. क. काज. १६६३. नांध.-प्रत 'क'नी कडी १६६३ थी १६६७मां पंक्तिओ अव्यवस्थित छे. ते ग्रोथ पाठमां प्रत 'ख'नी सहायथी व्यवस्थित करी छे. क. लाई-भेय. १६६४ नांध.-प्रउ 'क'मां पंक्ति ३ अने ४ आ प्रमाणे नथी ते प्रत 'ख'माथी रजू करी छे. ख रच्चति १६६५. नांध.-प्रत 'क'मां पंक्ति १ अने २ नथी ते प्रत 'ख'मांथी अत्र रजू करी छे. ख.ग. For Personal & Private Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी २०९ अगवूठइ'; १६७०. ग. मि. ग. जेहवो चंबा-छोडि. १६७२. ग. पई टेली काच कुण. १६७४. क. सोकडि १६७५. ग. आखडीआ आंलंबडो १६७७. अ.घ. फलिया १६६८. ख.ग. जांइ तुझ विण अख. मिलविउ. १६८०. अ. माटि तुहनि १६८१. ग. माग्यउं दीजइ १६८२. ग. अंदोह १६८३. अ.ख ग घ. खू टी १६८४. अ.ख ग. सलोय १६८५. ग. न मराय ग. मांना आपणू १६८६. ग, सहिजई नन्मणां १६८७. ग. ताडो अवडो ग. रयुं न करसि १६८९. ग. तुं मुझने १६९०. ग. जीभि किम दिन वीसरइ १६९१. अ.ख.ग. जे तुझ ग. नामइ १६९२. अग. हूँ कीर १६९३. क. संसरि १६९४. ग. पालव्यो १६९५. अ. तरसाल्यां १६९६. ग. तोरई पगे पडु ग आरति हुइ १६९८. ग. मोह्यो १६९९. ग. वलन का न दे १७०२. अ. भाद्रवडि, ग. भाद्रवडे १७०३. ग. बली-हारडी १७०४. क साथ १७०६. अ.ख.ग. मूहि १७०७. ग. जांणि जिहां १७०८. ख. तन मन धन १७१३. ग दृधि स्यु १७१४. अ ग. आंबां लागां इखूइ १७१६. ग मन मलि १७१७ ग. नयणे कीधो क. भेय ग. भांजी लजया १७२०. ग मरवो अक ज वसं १७२१. क कद्दन लंबी ग. नहि विस्या १७२३. अ.ख.ग. च्यार १७२४. अख. रचीइ १७२५. अग हंसा किं; अ. मानसरि १७२७. घ. निर्गुण सिउं १७२९. ख. कां बलडी १७३१. सगुणां संगति कीजई १७३२. ग. कीधो नवो सनेह; घ. नवउ सनेह १७३३. ग. चडि प्रमाणि क. सुजाण; अ.ग सुजांणि १७३४. ग. पालवई १७३५. ग. तोरई कारणइ ग. करें रखे १७३६. ग. तो मइ मंड्यो नेह ख. म थासि; ग. म थास १७३७. ग. न होई घ. नुहि हंसु क. निवगुण १७३८. ग. जेडि अ.ख. ऊधांण; ग. उधांन; ग. ऊधाण १७३९. ग. पालई घणो सनेह १७४१. ग. ते तो लीजई क. जनम तण व्यवहार; ग. जनम तणो व्यवहार १७४२. अहीं प्रत 'अ', 'ख' अने 'घ'मां वधारानी कडी नीचे प्रमाणे छे. प्रत 'अ'-जु घट मांटी के डु, जोई लीजइ सुवार, माणस सरखा रतननु, जनम तणु व्यवहार. १७२५ प्रत 'ख'-जु घट सांटी केरड, जोइ लीजई सुवार, माणस सरखां रतननु, जनम तणुं व्यवहार. १७२४ प्रत 'घ'-जउ धउ माटी करडु, जोई लीजई सुवार. माणस सरखां रतनसु, जनम तणु व्यवहार. १७१'.. ग. मन औरतो ग. बिपरिं दहसिं १७४३. अग. जिम वि न हसई लोय १७४४. ख. खरो तो जाणिस्यु ग. पालेस्व १७४५. अ.घ. नेह रय तिम १७४६. अ. ऊपजइ; ख ग. ऊभ जई घ. उतजसि १७५०. घ. ओसिं तूं सुजाण १७५१. ग. जे हस्यु बाघो १७५२. ख. साथि सु जू मन मिलिग. साथिं मुझ मन ग. कहांई अ ख. तुझ सिउ मलिउ जे नेहलु १७५३. घ. सहसि अनोत्तर ग. मिलई १७५५. ग. अंगीकर्या १७५६. अ. बीहीजइ सइ; ग. बहीजइंसि; घ. बीह जसेई ग. जो मंडी सई १७५७. अ.ग. वाहलां अ.ग. थंभि १७५८. प्रत 'अ'मां आ कडी नथी. ख.ग.घ. लाजहं प्पमह कयु ख.ग, गणयन नाडी ख.ग सुचित्ता [प्रत ख.ग.घ.मां आ कडी समजावा माटे समजुति आपवामां आंबी छे जे नीचे प्रमाणे छे. [प्रत 'ख'मां आ रीते आकृति आपी समजुति आपी छे ) अमक रोम आपुपुओ मपूउहचि स्वाविअज्येमूपुउ श्रधशपउरे । लड़जेति, अयार्थ लजाकारकः का मिलनु परम्पर विरोध । यत्र मा न तत्रे दयंत्रेहं न तत्र २७ For Personal & Private Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० जयवंतसूरिकृत सा सौख्या-भावांत्र मिलतियत;. विशेतो शस्त्रु छो. । तरमा गछती तुरंग: यत्र प्रेमतंत्रि वियाति चित्ताऽवश: लज्जया चित महचसित वचन प्रत्यय स्तहि गणय विचारय । अपां स्नेह लक्षणविधो: नाडी लोक भाषया असाध्य बेह-वेधः कस्मात् रोड शो न कृतः, यथा पुननांति भवति पक्षे पंकस्याश्रित्य परस्पर चित्र उभयोनिन नाडीत्वध्धषः न नाडिवे:. हे गणक अष प्रेमलक्षणो वेध करेखया कस्यात्र रेखित:. यथां लज्जा प्रेम्नो न विरोधो भवति । अंक नाडी स्थिता यस्य, गुरु अधीश्वदेवता, तत्रद्वेषरुजंमृत्यु, क्रमेण फलादिशेत .........१ प्रभु पण्यांगना भित्र', देशोग्रामपुर गृह, अक नाडी वेधेभव्या. विरुद्धावेधवर्जिता. ॥२॥ हवाडी वेधतो भर्ता, मध्य नाडी व्यधेद्य, पृष्ट नाडी व्यकन्या, म्रियते, नात्रशसय. ॥३॥ सभांसत्रे वेधेशीघ्रां दूर वेध चिरेणतत् , वेधांतरानुमानेन, वर्षदुष्ट प्रजाय ते. ४ अकक्ष जायते यत्र विवाहे, वरकन्ययो, मूलवेधो भत्सोहि महादुष्टकलप्रद. ५ इति नाडीवेध कलानि अक नक्षत्र जातानां, वरषां प्रीतिरुत्तमा दंपत्यो मरणं ज्ञयं, पुत्रो जातो रिपु भवेत. ६ ग्रामे वा नगरे वापि, राजसेवकयो स्तथा, अक कक्ष भवत्प्रीति, विवाहेदुकखमादिशेत. ७ अक नाडी गतौ यत्र, स्वामित्यौतु संस्थितो, वित्तलाभो महा प्रीति, तयाज्ञेया विपश्विता. ८ ४१, इति लोकनु उक्त देखा डिउ छ. प्रत : ग. (आ रीते आकृति आपी समजुति आपी छे.) अभक रोमृ आपुपुअ मपुसा हचि स्वावि अरव्ये मूपूउश्रधशपुरे. लज्जेति ॥ आस्याथ : ॥ लज्जाकारकः कथं मिलति परस्पर विरोध: । यत्र सा न तत्र दंयत्रह न तत्र स सौख्यांमावात्र मिलनितय: विशे तो शस्त्रु छोः ॥ तरसा गछंती तुरग: यत्र प्रेम तंत्रि वयाति चिताऽवश: लज्जया चित् महचसित वचन प्रत्येयस्तर्हि गणय विचारय । अयां स्नेह लक्षण विद्यौः ॥ नाडी लोकभाषया असाध्य अह्यवेद; ॥ कस्मात् खंडशो न कृतः। यथा पुननांति भवति । पंकप्याश्रित्क परस्पर चित्रां उभयोभि न नाडीत्वा षेष: न नाडिवः । हे गणक अष प्रेमलक्षणो वेध ओक रेखयो कस्यात्र रेखितः। यथा लज्जा प्रेम्नो न विरोधो भवति...... १७६०. ग. चितसी लोकनई १७६१. नवि मेहल से विदाय १७६२. अ.ख.ग. सनेह क. बोलणां १७६३. अ.ख. कई सइथु कि टालडी ग. कइ तावडि क. कछजु १७६४. ग. जेहनो मन जेहस्यु हुइ १७६५. क अज १७६८. ख. होय १७६९. अ.ख. नंदइ लोय ग. नंदई लोय १७७१. ग. तोहि हूं वहिडूनही. १७७४.अ.ख.ग. बोल लेइ इम क. नहीं कंद १६७६.ख. मणिमय क मेहलिउ ( मन-मणि' शब्द नथी.) अ. राग मल्हार; ख. ढाल २९, राग मल्हार; ग. ढाल २९, राग अल्हार, घ. राग सल्हार १७७९. ग. मरणनो संचकि अ.ख.ग. द्रुपद १७८१. ग. फुलडलां फुलडलां १७८३. अवसर पानि १७८४. अ.ख. रायरवाडीइ; १७८६. ग. जो ह वीचलो वीचको १७८७. ग. केरो ओक माहर ग. चमकडो थाइकि १७८८. ख. तुहनि अह सी कुमंत्ति १७८९ क. वणकडा १७९०. क. वगलइ घ धरि छोरू अस्री ऊपरि ग. हाटनी पाडो रीस किं १७९२. ग. मीलतो बीहई कांइ १७९३. अ.ख.ग. तमनि जीव १७९४. क राय. अ. राज्य क. करयो वरस सु प्रत 'क'मां वरि शब्द नथी. ते अंगे प्रा 'ख'मां मूक्यो छे. १७९५. अ. भन हवू ग. लह्यो अशेष क. जनुसनि (:) ग. जो मनि अ.ग. हुसि १७९६. प्रत 'अ'मां आ कडी नथी. अ.घ. मोनीओ ग. जीवज्यो ग. जेहस्यु अ. राग रामगिरी, भाभानी देशी ख. ढाल ३०, राग रामगिरी, भाभानी देशी. मम करो माँया काया० से देशी ग. ढाल ३०, रांग रामगिरी, भाभानी देशी, मम करो माया For Personal & Private Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी काय कारमी, ओ देशी १७९७. अ. ऊखांणडु; ग. ऊखांणडो ग. प्रेम लीओ दोहिलो वाहलां केरडो १७९८. अ आणु कां; ग. अणु का १७९९. अ. म घरिसु ग. म घरस्यो ग. हींसाडां १८००. जूहूं ताणू ग. जोहूं १८०१. अ. तोरि दुखि मुझ ग. जहीं लगइ १८०३. क. मांड १८०४. ग. साजो ग. दिन कतलि क. मन १८०६. ग. हूंनो हूंतो १८०८. अ.ख ग. कोठवाली तब कहिं अ.ख.ग. हेठिय १८८९. ग. हुई ऊजलां १८१०. ग. मांत्यां लै १८११. ग. या घरथी पाछो वल्यो १८१२. अख. वीनतडी १८१३. ग. आग्रहे घ. आपणइ साथि रे अ. राग सामेरी ख. हाल ३१, राग सामेरी ग. ढाल ३१, राग सामेरी; घ. राग साईरी १८१४. अख. चुहठिउ अ. सोहि; घ. सोहइ अ.घ. श्रवणे सोविन झालि १८१५. ख. ठविअ घ. सा गोरी १८१६. अ कम(ल) १८१७ अग. पहिरणि क.अ.ख घ. छालि १८१८. प्रत 'ग'मां आं पति नथी अ. सा प्रोसणि 'गमां आ पंक्ति नथी १८१९. प्रत 'ग'मां आ पंक्ति नथी. अ. प्रभांवि चालि. प्रत 'गमां आ पंक्ति नथी. अग. प्रीसिं ख. बिपुहुर करि कालि. ग, विपुहुर के कालि १८२१. सुरभिधृत ग. भव-मूख शमई विकराली १८२२. ग. हुई बडनीली १८२३. ग. चमक्यो ते भूपाली अ. राग केदार गुडी ख. हाल ३२, रांग केदार गुही ग. हाल ३२, राग केदारो गोडी. श्रेणिकराय हु रे अनाथी नीग्रंथ से देशी (देशी कोसमां लखाय छे.) १८२४. ग. चीतवई अ. दुपद्र; ख दूद आंचली; ग. दुपद आंचली १८२५ ग. पाताले धरि १८२६. प्रत 'ग'मां आ कही नथी. अघ. अथ रू। लक्षग; अथ रूप लक्षणि १८२७. अग. नांखइ नांखइ १८२८. क. धूर्तनि अ.ख.ग. ते घूर्त माति अ ख.ग. छेपल १८२९. अहीं प्रत 'अ'.'ख', 'ग'.'घ'. मां वधारांनी कडी आ प्रपाणे छे. प्रत अ-ते धूर्तन कुण भालबइ, जे नयनि मन भाव, मन माहि सहू जांणी रहइ, पणि कृत्रिम रे मुगध सभावि १८५० प्रत ख-ते धूर्तनइ कुण भोलवइ, जे नयनि लहइ मन भावमन माहि सहू आणी रहइ, पणि कृतम रे मुगध सभावि. १८१३ प्रत ग-ते धूर्तन कुण भलिवइ. जे मयनि भाव, मन मांहिं सह जांणी रहड, पणि कृतृम रे मुगध सभाव. प्रत घ-ते धूर्तनि कुण भोलवइ, जे नयनि लहइ मन भाव, मन मांहि सहू जाणी रहइ, पणि कृतम मुगध सभावि. १८०१ १८३०. ख. पूछइ सोइ, अ.ख.ग. सहोय ग. तुम नयणा १८३२. ग. कोय चहालां सांभर्या अ. राग मल्हार: ख. ढाल ३३, राग मल्हार; ग. ढाल ३३, राग मल्हार; क. राग मल्हार. १८३४. ग. द्रपद; घ. द्रू १८३५. संशय माटई १८३९. ग. रातो थयो. १८४२. क. संज ग. जेइ १८४५. ग. सधलो संवरो १८४८. ख.ग. पंख समारी. अ. पाहुणा १८४९. ग. हविं जास्यु क. देसी १८५३. अ.ख पाले; ग. पालेसो क. मोंत १८५४. ख.ग.घ. दहई १८५६. ख. मोटु छि १८५८. ख.ग. सुहाय १८५९. ग. उपार्जन १८६२ अ.ख.ग नइतरु १८६३. अ.ख.ग घ. करघडी ग. मेहो १८६४. ग. जन्म लगे विहडि नहीं १८६५. क. धरि धणी अ.ख धुरि घ. धर १८६६. ग. उसरि ख.ग मांडी त्रीति निटोल १७६७. अ.ख.ग.घ. महुर, णू क. मिलंन ग वनि नेह तिजई १७७१ (हंसा' शब्द प्रत 'क'मां नयी. अहीं प्रत 'ख'मांथी मुक्यो छे) अ.ख. नि दिणंद ग. चकबी नई १८७२ क. कमलाह १८७४. ग. मिलइ अवर स्युं १८७५. ग. उखेड्यु ऊखडइ १८७६. अ. सो वरसि जु जोइई; ख. सु वरसइ जु जोईई; ख तुहि; ग. तोहिं; ग. तेहबो वांन १८७७. घ. दिन्नियर- वन्नि १८७८. क. भींतरि परम्मुहा १८८२. ख.ग. For Personal & Private Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ जयवंतसूरिकृत जिस हैंयइ १८८३. अण दीठइ अति लेखवई १८८४ प्रत 'अ'मां आ कडी नथी. अ.घ. दसणीणाय यरस ख. दंसणिणीय यस्स; ग. दंसणणीय यस्म १८८५. क. तिल उस मित्ति. १८८६. क रत्ना अ. फल रत्ता परित १८९०. ग. अबरें गाजइ नेहलो ख. तलिं नाचइ भूतलि नांचइ १८९६ अ.ग. आदि अ. करी १८९९. ख ग. दो सिल्यां १९०२. घ. रागवती मनमां वसइ १९०४- अ.ग. गरूअरू अख.ग.घ उदासीन्य १९०५. अग. गहिवर १९०६. ग माया उतारो १९०७ ख.ग. समरेउ १९०८. अ. गुणबं (त) छ ग. छो ग. रस १९०९. क. सज्जव अ.ख.घ सार्थ उ; ग सार्थवाहोवाच १९१० ख. नदीआ व.वि. १९११. घ. वनि चंदन ग. ठांसि ठांभि १९१३. घ वइसेइ १९१४. ग. वनवाडि तरुअर ग. जेहनिक. वलहु ग. कोइलि निं १९१५. ग. मिलस मित्त घणांई अ.ख.घ. राजा उ. ग. राजाओवाच १९१६. अ. ख. घ. सा. उ. ग. सार्थवाहोवाच १९९८ प्रत 'अ'भां आ कडी नथी. १९१९. अ. ख. ग. मुहरति घ. मुहरति अ. राग केदार गुडी; ख. ढाल ३४, राग केदार गुडी; ग. बाल ३४, राग केदार गुडी, घ. रंग केदार गुडी १९२०. क. करइ अ. आविडि रेघ. आविरे स्व.ग. घ. पूटि पटि अ. तीर रे १९२१. अ. ग. मोकलांमणी अ. दूपद, ख. दूपद, आंचली; रा. ग. दुपद, राज० आंचली १९२२. अ. सुगुणआरि; ख.ग, सणगुण दूरि रे १९२५. ग. बहूनांनी १९२६. ग. सनेहां संगथी अ.ख. घ. रा० उ० ग. रा० ओवाच १९२७. अख.ग. सा० उ०: ग. सार्थवाहोवाच १९२८. अ. घ. मिलसिउ क. सारथपति अति वीर रे अ. विचि-व्यवहार ख.ग. देव - व्यवहार घ. विहि-व्यवहार अ. देशी पाछली; ख. ढाल, देशी पाछली चालती; ग. डाल, देशी, पाछिली चालती; घ. देशी पाछली १९२९. अ. करी जुहारडो १९३१. ग. पूर्या जाई १९३२. ग. गुणे अभिम १९३३. क. शत्रुनई १९३६. अ.ग.ध. किज्जउ १९३८ घ. राग ज वसीया मुहिं अ. ख. पइसेवा अ.ख.ग. घ. गाइ घ. भेदिया १९४०. क. झीजा १९४१. ग. हुंति ग. मिरंति १९४२. क. किरतार १९४३. ग. आपि ग. तनुं आप घ. अपइ १९४५. अ.ग. जांण्या ( अ त 'ग'मांथी) १९४९. ख. वकारिउ: ग. वकार्यो १९५०. ग. पाड्यो कांति १९५१. अ. राग मारुणी ख. ढाल ३५, राग माहणी, कासीथी चाल्या महाराय रे, ओ देशी ग. ढाल ३५, राग मारुणी, काशोथी चाल्या महारांय रे, ओ देशी घ. राग मारुणी १९५२. अ. दुपद ख.ग. दूपद, आंचली घ. दू० १९५३. ग. ओ तो प्रीऊ विण किसिओ १९५४. ग. ये तो करसइ ग. मुझ ग. तुझ ग. पीडइ छ ख. दहि, ग. दहि मुझ १९५५. अ.ख. वाहन वरि अ.ख. अन नइ वारि रे; अन्ननेि वारि रे १९५७. ग. कहु ं अ. दैव्य १९६०. ग. विजय सभ ग. तूं तो बोल १९६१ सूं अ. हूं तुयां ऊगी; हूं तोयां उंगी तोरि १९६४. ख. भवितुं १९६६. ग. विरहनो खार ग. मोरी प्रीउडो १९६०. अ. ख. शंखर थयुं १९६८. म. फल तणो १९७०. नांव हैडई ग. भइन खमाई ( न खमाइ अम बेवडीवार लखेल छे.) १९७१. मांहिं गाजिं घ. नहरि रे १९७२. मोरिं तनिधी ग. गयुं १९७३. अ. ग. देऊगी १९७४. घ. समरइ ससूर १९७५. ग. समरू' ग. वाहला अबला स्युं स्युं १९७६. ग. कां करई अंसू १९७७. ग. जाओसि अ. राग भूपाली देशाख ख. बाल ३६, राग भूपाली. देशाख, [ पीउ आपो रे महारो पुत्ररतन ओ देशी] ग. ढाल ३६, राग भूपाल तथा देशाख, पीउ आया रे माहरो पुत्ररतन्न, ओ देशी. घ. भंज- हार १९५८. ख. ग. मूंहनई १९६३. ग. हम For Personal & Private Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगार मंजरी - २१३ घ. राग भूपाली देशाख १९७८ अ द्रूपद; ख. दूपद ग. का० दूद घ. दू० १९७९. ग. गति अति कांकेरी १९८० अ.ख. दोस काठउ; ग. दोस कांढो घ. मोहरु ख. ताढउ; ग. ग. ताडो; घ. यदु १९८२. ग. त्रुधि न पांसी अ. राग धन्यासी; ख. ढाल ३७, राग धन्यासी ग. ढाल ३७, राग धन्यासी भलें रे पचार्या तु साधु जी रे ओ देशी घ राग धन्यासी १९८३. अ. ख ग. दुपद घ. दू. १९८८. ग. प्रवहण पाटिओ रे १९८९. ग. शुभ संयोगि पाटीओ ग. सस्तो अ. थयुं अ.ख.ग.घ. दूहा १९९०. ख वीजलडीनू ख.ग. विसराल ते १९९१. ख पतंगनु ख. छ.ग. छड़ अ. मइ मांडी: खग. भिं मांडो १९९२. अ. ख. यश खोलि शर मूकीइ: ग. यश खोलइ सर मुकीइ १९९३. आ कडी प्रत 'अ'मां नथी ग. जओ तुहमे १९९४. ग. न होई आकडी १९९६ अ सोवन वन १९९७. ग. ओच्छा सार्थ १९९८. ख. ग. घ. सायन घ. धरती तलि १९९९. ग. भमरो बइठें भोलपणई ग. सुरंगी २००० नांध ग्रंथ ठनी कडी २००० थी २००९ प्रत 'घ'मां उलट क्र. मे भळे छे. अत्रे ग्रंथपाठना क्रमे पाठान्तरो नांच्या छे. १ ग. तणइ भोलावडई २००२. आ कडी प्रत 'अ'मां नथी २००३. आकडी अने आ पछीनी कडी प्रा 'अ' अने 'ख'मां उलट मे छे. २००५. आकडी प्रा 'अ'मां नथी. ग. सजनीओ ग. क्युं २००६. प्रत 'अ'मां आ कडी नथी ख. ग. कां कये; घ. कां करिउ ग. है इइ २००७. प्रत 'अ'मां आवडी नथी. घ. साचू करिंउ २००८. अ. ताहरिं ग. आग्यो रोस २००९ प्रत 'अ'मां आ कडी नथी. ख.ग. मेहणिता ख.ग. जेह स्युं रंगण्याससइ घ. राप्पा-सई २०१०. ग. वरि शत वरिस विलंबीइ २०१३. (प्रत' क'मां 'चित्ति चालीइ' छे, अत्रे 'चिति न चालीइ ' पाठ प्रत 'ख' मांथी लोधो हे.) २०१४. अ. राग धन्यासी; ख. राग ३८, राग धन्यासी, पहिलं भास मोह करइ रे, से देशी; ग. राग ३८, राग धन्यासी, पहिलं माणस मोह करइ रे, ओ देशी; घ. राग धन्यासी २०१५. अ.ख.ग. टक २०१७. ग. नरकइ जावा निं २०१९. ख.ग. कूटक घ. नू ग. प्राणी उल्लसई ग. हसइ २०२१. ग. कुश अग्र जल - बिंदु २०२२. ग. मायनि २०२३. ख. aटक ग. त्रू ग. स्वांगी अ.ख.ग. सुहृद ख. हैंडघा नांणइ ग. करइ पातिक-वृंद १. प्रत 'घ'मां ग्रंथपाठनी कडी २००० थी२००९ नीचे प्रमाणे मळे छे. ग्रंथपाठ - कडी क्रमांक २००० २००१ २००२ २००३ २००४ २००५ २००६ २००७ २००८ २००९. प्रत 'घ 'कडी क्रमांक १९७९ १९८० १९८३ १९८४ १९८२ १९८८ For Personal & Private Use Only १९८५ १९८६ १९८७ १९८१ Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ जववतमूरिकृत ग. कामिनी प्रेम तणो रसइ रातो २०२४. ग. कहिनो ग. वल्लहो ग. ठालो अ.ख.ग.घ. कुण कुण गया रे २०२५. अ.ख. त्रूटक ग. त्रू. ग. वइरीना जे ग. तोहि न प्रांणी २०२६. अ. राग मारुणी; ख. ढाल ३९, राग भारुणी; ग. ढाल ३९, राग भारुणी; घ. राग मारुणी २०२७. नांध-२०२७-२०३२. अत्रे प्रत 'अ','ख' अने 'घ'मां ग्रंथपाटने अनुसरती चार पंक्तियुक्त कडीओ छे. परन्तु प्रत 'ग'मां आने स्थाने बे पंक्तियुक्त कईओ [कडी क्रमांक २८७१२०१४ प्रत ग.] मळे छे. अत्रे सर्व प्रांना पाठान्तरो ग्रंथपाठनी चार पंक्तिओवाळी कडीओने अनुलक्षीने नेांध्या छ.] क. रुध्यां नरक -दुयार न. २०२८. अत्रे प्रत अ.ख.ग. अने 'घ' वघारानी कडी नीचे प्रमाणे छे.. प्रत 'अ'-टालइ विषय विकार, पांलि संयम भार न मु०२ जाणिउ अधिर संसार, रुधिया नरक एआर न. २००३ मु. प्रत 'ख'-टालइ विख्य विकार, पालइ संयमभार न. मु. २ जांणिउ अधिर संसार, रुधियारक दुआरन. २००२ मु० प्रत ग'-टांलइ विषय विकार, पालई संयमभार न. २०७३ मु० जाण्यो अधिर संसार, रुधिया नरक दुर न. २०७४ मु. प्रत 'घ'-यालइ विषय विकार, पालइ संयमसार न. मु० २ । जाणिउ अधिर संसार, रूधिया नरक दूआर न. २००३ मु. अ.ख. उसीआलि; २०३२. ख ग.; वेश्या अ.ख.ग.घ. दूहा २०३३. ख ग घ. जयवंतसेन २०३५. अ. जीवता ख. किसू ग. सज्जन नवि झूरतां २०३६. ग. कहिसू करिसू ग चित्त चमको ग. गयां २०३८. ग. इगि आंगणइ ग. कालिं ख.ग केहि ग. मिलिस्य' २०३९ घ. इहा क्रालि २०४०. ग. सेरीयां २०४१. ग. संभारतो ग. झरतो अ. राग रामगिरी; ख. ढाल ४०, राग रामगिरी; ग. ढाल ४७. राग रामगिरी; घ. राग रामगिरी. २०५२. अ. विहस्त, ख. विहइस्त. ग. धूतरर्डिधूल्यो अ.ख.ग. दूपद घ. २०४३. ग. कोय कोय वार छई अ. ज २०४४. घ. आ पंक्ति नथी. २०४५. ग. बोलई अ. राजन भि सेवक; ख. राजन मि सेवक २०४७. क.अ.घ. पाहामी ग. बोलई २०५१. अ. राग मारुणी धायासी; ख. ढाल ४१, राग मारणी, धन्यासी; ग. ढाल ४१, राग ४१; राग मारुणी तथा धन्यासी; घ. राग मारूणी धन्यासी. २०५७. अ. जेहनि; ग. जेहनि अ.ग घ. समरतां, ग. सहि जइ २०५९. अत्रे प्रत 'अ', 'ख', 'ग' अने 'घ'मां वधारानी कडी आ प्रमाणे मळे छे. प्रत : अ. मुनिवर चरण नमी करी, बइठउ राय सुजाण रे, कुलटा चरित्र पूछी करी, लीधु सरव परमाण रे. २०३३ प्रत : ख. मुनिवर चरण नमी करी, बइठइ राय सुजाण, कुलटाचरित्र पूछी करी, लीधु सरव परमांण रे. २०३३ प्रत : ग. मुनिवर चरण नमी करी, बिटो राय सुजांण रे, ___ कुलठाचरित्र पूछी करी, लीधू सरव प्रमाण रे. २११२ प्रन : घ. मुनिवर चरण नमी करी, बइठाउ राय सुजाण रे, __ कुलटाचरित्र पूली करी, लीधू सरव प्रमाण रे. २०३३ For Personal & Private Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी ग. सत्तन दिनि ख. इति पाताल सुंदरि संबंध ग. इति श्री पाताल सुंदरी संबंध समाप्त; अ. राग सामेग; ख.ग. ढाल ४२, राग सामरी; घ. राग स मेरी. २०६०. नेांध-कडी २०६० थी २०६५. प्रत 'अ' अने 'घ'मां ग्रंथपाठने अनुसरती आठ पत्तियुक्त कडीओ छे परन्तु प्रत 'ख'मां आने थाने प्रथम ब कडोओ चार पक्तिवाळी तथा प्रत 'ग'मा बधी कडीओ चार पंक्तिवाळी (कडी क्रमांक २११५-२१२५) मळे छे. अत्रे सर्व प्रतोना पाठान्तरो ग्रंथपाठनी आठ पंक्ति ओवाळी कडीओने अनुलक्षीने नेांध्या छे. ] घ. रही तुहिइ दही. (प्रा 'ख' अने 'ग'मां कडी पूर्ण') ग. भोलो भोलव्यो. प्रत ख अने ग कडी पूर्ण २०६२. ग. मंत्री तेहबू कीजिह अ.ख.ग.घ. सचिव ग. राजन दिओ. अ आदेसडु, २०६४. ग. भषगने ग. कारिली, २०६५ अ.घ. स(र,खा ग. थाय अ. राग धन्यासी. ख. ढाल ४३, राग धन्यासी ग. हाल ४३, राग धन्यासी अ.ख ग. दूपद. घ. दु. २०६९. परनारि २०७६. ग, तजि झडति २०७७ ग देवअ टारडो २०८१. ग तो ते तिजसिं प्रांण. २०८२. अ शी०; ख. शीउ; ग. शीलवत्योवाच: घ. शी०उ. २०८३. अ.ख. तनु रवि देइ २०८४. अ. शी. उ. ग. शी. वाच; घ. शी. उ. अख.ग. जलनु न कर. अ. राग रामगिरि; ख. ढाल ४४, राग रामगिरि ग. ढाल ४४, राग रामगिर; घ. राग रामगीरी. २०८७. अख.ग. आरति अरति अनीद्र २०८८. ग. सुज्जन सी दाई २०९१. अहीं ग्रंथपाठ करता केटलीक वधारानी पंक्ति मळे छे. प्रत 'अ'भां आ कडीने स्थाने नीचे प्रमाणे कडी मळे छ: शीलि सुर नर सेवा सारइ, मनवंछित सवि फलीइ, दुगतिना दुख दोहिला नावइ, सुख संपति सवि मिलीइ. २०९१ ग्रत 'ख'मां आ कडी पछी वधारानी पंक्तिओ नीचे प्रमाणे मळे छे : शीलिं सूर नर सेवा सारइ, मनवंछित सवि फलीइ , दुर्गतिनां दुख दोहिलां नावई, सुख संपति सवि मिली इ. २०९१ प्रत 'ग'मां आ पछी वधारानी पंक्तिओ आ प्रमाणे मळे छ : शीलि सुर नर सेवा सारि, मनवंछित सवि फलाई दुगंतिनां दुख दोहिलां नोवई, सुख संपति सवि मिलई, २१५३ प्रत 'घ'मां वधारानी पंक्तिओ आ प्रमाणे मळे छे . शीलिं सुर नर सेवा सारइ, मनवंछित सवि फलीइ, दुर्घतिनां दुख दोहिलां नावइ, सुख संपति सवि मिलइ. २१५४ ख.ग.घ. ज्यवंत पंडित ख.घ. शालि जे सुधा २०९२. ग. आवई शांन २०९३. अ.ख. अणसदहितु २०९४. क. दूतनइ २०९५. अ. राग भल्ली मल्हार; ख. ढाल ४५, राग भीली मल्हार; ग. ढाल १५, राग ४५, राग भील्ली मल्हार; घ. राग भीली मल्हार. २०९६. ग. च्यारि नि २०९७. अख. च्यारि; ग च्यारि २०९९. प्रत 'ग'मां आ कडी नथी. २१०१. ग. विवरिं पड्या २१०४. घ. सरो तिम अ. बिहू के पूराइ. ख. कंठे २१०५ ग गलि झमित्ति २१०६. क. बुजांमीइ; २१०७. ग आव्यो घ. मे आवीउ घ. वर तनु २१०८. अ. व सि वरसि महेला ग. पापी सांमल थाई अ. राग मेघ मल्हार; ख.ग. हाल ४६, राग मेघ मल्हार; घ. राग मेघ मल्हार २१०९. अ. मास असाड ग. वापर्या रे वापर्या रे: ग. सवालि प्रत 'घ'मां आ पंक्ति नथी. २११० अ. की गाइ; ग. के गाइ मोरडिं. प्रत For Personal & Private Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ जयवंतसूरिकृत 'घमां आ पंक्ति नथी. ग. किं है: मोरइइ किंमोर डइ रे प्रत 'घ'मां आ पंक्ति नथी. ग. अंगणि ओरडे रे किं २११२. ख.ग. विगोयां सज्ज. अ. झरमर वरसि; ग. झरिमरि वरसई'; ग ग. झबकिं २११३. झबकइ; ग. त्रकिंग. चिंता चिता पूइ रे किं. २११४. घ. केरडि केरडि २११५. ग. बप्पीहा २११६ क. मेह दादुर २११८. ग. विरहीयणले विरहीयणले २१२०.ग. कि लेखिणि कटके २१२२. क. अंजूल २१२५. अ.ख. आकलिउ. ख. अथ अजितसेन शीलवती प्रति लेख लिखइ छइ. २१२८. ग. न मोकल्यो ग मुझ मनि अति दहई २१३४. ग. करजे २१३५.क. विजे २१३८. हीदय-क.मल ते वहिसीउंग. उलट अंगिन मात २१३९. अ. स हथि २१४०. अ. न हुतिं क. अ.घ. हेजइ २१४१. अ. काही विउं, २१४३. ख. उखेली; ग. उखेवी २१४४. अ.-, ख.-, ग. सखी आवाच; घ. सखी उवाच क. मंत ख तिन अ.ख ग. शी. उ० अ सखी; ख. सखी कथ शीलवती; ग. सखि आवाच कंथ शीलवती; घ. सखी कथ शीलवती. २१४५. अ.-.ख. इती उ. ग. दुयोवाच; घ. दूत उ. २१४६. गहीली क. सूधू जइ २१४८. आ कड़ी प्रा 'अमां नथी. चंदने २१५०. ख.ग. लखलहई २१५३. ख.ग. उवेली २१५४. श. अथ शीलवती अजितसेन प्रति प्रत्युत्तर लेखि छ: ग. अथ शीलवती अजितसेन प्रतई प्रत्युत्तर लिखई घ. छ. २१५६. अ.ख. श्रयोत्र अ. काये चात्र २१५८. अ.ख.ग घ. अपर. अ.ख. पुहुतु २१६०. ग मेह-जलई २१६३. ख.ग. अकि को ते नही. २१६४. अहीं प्रत अ.ख.ग.मां नीचे पमाणे अक वधारानी कडी छे. प्रत : अ. मिसि नयरे दीठी नथी, लैखिणि न गमइ ओक, भुज्जवि तुह्म सरिखा नहीं, तु किम भिजउ लेख. २१३४ प्रत : ख. मिसि नयणे दीठी नथी, लैखिण न गमई अंक, भूज्जवि तुह्म सरिखा नही, तो किम भेजउ लेख. २१३४ प्रत : ग. मिसि नयणे दीठी नथी, लेखण न गमई ओक, भुज्जवि तुह्म सरिखा नहीं, तो किम भेजु लेख. २२.६ २१६७. ग. वहू ग. तो किम भेजु लेखि. २१६८. अ. गजते; ख ग. गाजति २१६९. ग. कुनि २१७०. अ.ख. गुण-अंबार २१७३. क. ध्यान २१७४. अ. कु जिमेए २१७५. ग. वसि विड़ सय २१७७. ग. मने अलजो ख अंक फलाई २१८०. ग. जल पंकज २१८४. ग. विणसई२१८७. घ. पंथी २१९०. (अत्रे 'हरखि' शब्द प्रत 'ख'मांथी मूक्यो छे, २१९२. निहाल्या विना २१९३. ग. सो थाई २१९४. अत्रे प्रत 'अ', 'ख', 'ग' अने 'घ'मां वधारानी कडी आ प्रपाणे छे: प्रत : अ. जे रणि नासि अत्यं विण, काहनु अति तास, ते आहां सूनी रडवडइ, तस प्रीउ छि तम पासि. २१६६. प्रत : ख. जे रणि नासि अत्य' विण, काहानु अति तास, ते आहां सूनी रडबडई, तस प्रीउ छि तम पासि. २१६६ प्रत : ग. ने रणि नासि अत्य विण, याहनु अति तास, ते आहां सूनी रडवडइ, तस प्रीउछि तुम पासि. २२५७ प्रत : घ. जे रणि नासइ अंत्य विण, काहानु अति तास, ते आहां सूनी रडवडइ, तस प्रीउ छइ तुह्म पासि. २१६७ For Personal & Private Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी २१७ २१९५. ग. आदि 'इ'कार करि २१९८. ग. स सरित भयो, अवगुण पइंसी नवि सकई २१९९. ख ग. खयर अंगार अ.ख. उल्लवू २२००. अ. कोऊ; २२०२. आ कडी प्रत 'अ'मां नथी. ख. उरइ अहइ तिष्ट पृथक पदानि विरहइत्यथ; घ. उरई अह इति पृथगू पदानि विरह इत्यर्थ: २२०३. ख. दर्शने जाहलु; २२०६. अ.ख.ग. गुंथी तुझ गुण माल २२०८. प्रत 'अ', 'ख', 'ग'मां आ कडी अने ते पछीनी कडी उलटकमे छे. ग. मुझ जीव तुझ. २२०९ अ.ख. थाणु २२११. ग हंसत नू क. चित्ति २२१३. प्रत 'अ'मां आ गाथा नथी. अ.ग. थाइ मणोहर तुरिआ ख.ग. दूरि न सज्जन २२१७. ग. मोरनई मोरडा ख ग. सुरभलां घ. विसहर नि मोरडां २२१८. ग. पावसे कालि. २२२०. ग. तेह ज घडी. २२२१. ख. कहीइ २२२२. ख.ग. नवा सरावानी परि. २२२५. ख.ग. सच्छाय सूर. २२२६. ख.ग. मान्-सरोबर २२२८. ग. वछि दारिद्रीओ अ.घ. भूखिउ; ख. भुखिउ; अ.ग. पंखी. २२२९ घ. समरइ वछति २२३०. ग. सू कारिमू ग. कीधि स्यु होय. २२३१. ग. रतकालहि ते होय ग. घणू कहिं स्यु होय २२३२. अहीं प्रत 'अ', 'ख', 'ग' अने'घ'मां वधारानी कडी नीचे प्रमाणे मळे छे. प्रत : अ--सज्जन संदेसइ ताहरइ, जू तू साल सालइ, जिम जिम तुज गुण सांभरइ, तिम तिम कालि ज कपाय. २२०५ प्रत : ख-सज्जन संदेसइ ताहरई, जे तू साल सलाइ, जिम जिम तुज गुण संभाइ तिम तिम कालि ज कपाय. २२०६ प्रत : ग--सज्जन संदेसई ताहरई. जे तू सालई सालाइ, जिम जिम तुझ गुण संभारई, तिम तिम कालि ज कपाय. २२९७ प्रत : घ--सज्जन संदेसइ ताहा(२)इ, जू तू सालइ सलाइ, जिम तुझ गुण सांभरइ, तिम तिम कालिज कंपाय. २२९८ ग. नयणे कीओ २२३४. ग. तुहिं कह्या न जाई २२३५. घ. रयणि अंधारडू २२३८. ग. गंगाजलि मसि होय २२४०. क विचारि. २२४१. अ.ख. सज्जन सर छेदिया [ 'जेहनु शिर छेघ्या, पछी प्रत ख. अन्य पाठ ] अ. जेहनु ससिरह विज्ज ख. पुणरवि सशिरह विज्ज [जेहनु ससिरह विज्ज ख अन्य पाठ ]. २२४२. आ कडी प्रत 'अ'मां नथी. २२४४. ग. मिल्या पंखि न. २२४६. ग वीसारो चित्तडइ. ग. आवज्यो. २२४७. आ कडी प्रत 'अ'मां मळती नथी. ख.ग तीहचर अतिरि ख. 'ख' मज्झि क्खर संठवी, ग. 'ख' मज्झ क्खर संठवी. २२४८ ग, जुहार अह्मारो मानयो अ.ख.ग. सज्जन थकी क. देहिं [जिहां नवि मिलीइ. ख. जिहां नवि मिलिइ ग पाठान्तर ] २२५२. ख भेजिउ. २२५३. ग. दिने पोढी सरि-मुखी. २२५४. ग. सहुणई ते कयु अ. ऊपहरांइ; २२५५. अ.ग.घ. जोयणि; ख. जोअणि ग. फाटि रे पापी. क परिहार. २२५६. ग. पज्जतंज्यरेण. २२५८. ग. वयरी-मांण. २२५९. क. माइ २२६०. ग. ऊजातां २२६२. अ.ख ग. थिकी ग. तेहवो न होय ग. जेहवो आवि इकडां २२६३. सोनि मढाबु पंखि २२६४ क. ज चमकइ ग. जीमकइ प्रीऊडो. २२६५. ग. मागई वधांमणा २२६९. अ.ख.ग. हल्लुप्फल २२७२. ख.ग. सज्जन अ.ग. मुख-प्रसन. २२७४ आ कडी प्रत 'अ'मां नथी. ख. प्रिय-ईसणि, ग. प्रिय -दसण. ख.ग. नवो २८ For Personal & Private Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ जयवंतसूरिकृत २२७६. जाइसई नयणार घ वयरी मिलिं २२७८. क. नेहेण. २२७९. अ.ख.ग.घ. सालठवी २२८०. क. विहासइं. २२८३. ख. न रे हियां. क अन्नचिते. ग. अलविते.२२८४. ग.मिलतू जेहस्यु अ.ख.ग. घ. है नयणां २२८५. ग. जेहनी जोतां २२८६.ख. हाथि २२८७. अ.ख.ग. विलगी ग. इसर-गलिं. अ. जिम अहिर २२८८. आ कडी प्रत 'अ'मां नथी. घ. हरखिइ ख.घ. गूजर वाई पानडी २२९०. ख.ग. घणेहि २२९१. अ.ख. सज्जन सिंउ नेहेण २२९२. प्रत 'अ'मां आ कडी नथी. ग. सज्जन क. पुरव-बोध ख.घ. पुरव-बांध. ख.ग. हरिरंगे. ख घ. २२९३. ग. मिल्यो, क. दीहि. ख. किहारि. ग. पडिसइ. ग. आथमसिः २२९४. ग. ओरतो. अ. नेह-वेलि. २२९५. नांध.-आ कडी प्रत 'क'मां नथी अत्रे ते प्रत 'ख'माथी मूकी छे. प्रत ख.ग.घ.मां आ कडी अने पछीनी कडी ऊलट क्रमे छे, ख. अठोत्तर; ग. अध्धोतर. २२९६. ग. सांझ समई ख. अथमिउ; २२९९ ग. परदेसडई गयाइ'. ग. अतला २३०१. अ.ख.ग. जाती जाणि.ख. सुक्खु. २३०२. अ.ख.ग. वेआं. अ.खग.घ. वेदना. २३०३. २३०३. ग. मीनति करींनइ. ख. देजो सदैव. अ.ख.ग हवि. ख. दाखिसि. २३०४. ग. भाजयो वयरी. ख. वहांण. २३०६. अ. राग धन्यासी, बांभणवाडि मोर का लउ, से देशी; ख. ढाल ४७, राग थन्यासी, बंभण वाडि मोरकलीउ, अदेशी. ग. ढाल ४७, राग धन्यासी बंभण वाडि मोर कलीतो से देशी. ध. राग धन्यासी, बांभण वाडि मोरकलीउ, ओ देशी. २३०७. अख.ग. द्रूपद; घ. दू० २३०९. अ. नहुँतो, २३१०. अ. जइंइ ख. जैइ धरि अ. धरणीनिं नाथि. २३११. अ. सामहणो; ख. सामणी; ग. सांमहणी. २३१५. ग. बीहतई सहु से ख. पडिबजिउं० २३१७. अख. अवर न दखतां; २३१८. अ.ख.ग.घ. च्यारे प्रधान अ. राग मेवाडु धन्यासी, सहिजि सलूणी रे कोशा कामिनी, ओ देशी; ख. ढाल ४८, राग मेवाडु, सहिजि सलूणी रे कोशा कामिनी, से देशी; ग. ढाल ४८. राग मेवाडो धन्यासी, सहिजि सलूणी रे कोशा कामिनी, ओ देशी; घ. राग मेवाडु धन्यासी, सहिजि सलूणि रे कोशा कामिनी. ओ देशी. २३१९. ग. गुणवंत बुद्धि निधांन. अख.ग. दूपद घ. दू० २३२०. अ. दिइ यक्षराय. ग. दीइ. २३२२. ग. मुझ सफ(ल). २३२३. क. मन्नि. २३२५. ख.ग. कहि. ग. पारर्यु. २३२६. अ.ग. ताहरं. क. वियोगि. क. योगि. २३२७. ख.ग. पदा करेचि. २३२८. प्रत अ.ख. ग.घ.मां अहीं आ प्रमाणे कडी छे. प्रत अ. राजा मानी वचन प्रधाननू पुहता राजसभांह, ते पणि पूठि रे च्यारे मोकलिया, धाती मंजूस मांहि २२९७. प्रत. ख. राजा मानी वचन प्रधाननु, पुहता राजसभांह, ते पणि पूठि रे च्यारे मोकलिया, घाती मंजूस माहि. २२९७. प्रत ग. राजा मांनी वचन प्रधाननु, पुहता राजसभांह, ते पणि पूठि च्यारे मोकल्या, धाती मंजूस मांहि. २३९४. प्रत. घ. राजा मानी वचन प्रधादर्नु पुहुता राजन सांभह, ते पणि पूठिं रे च्यारि मोकलिया, धाती मंजूस मांहि. २३०३. २३२९. ग. ओधाडी. अ.घ. अति किराल विरुप; ग. विकीराल विरूप. २३३२. ग. लजावंत. ग. जोता. २३३३. ग. रायनइ; ख.ग. लांजनां. २३३५. ग. प्रतिबोधि. अ.ग. च्यारे. २३३६. अ. तीणि: ग. तिणि ग. परवर्या. अ.ख.ग. दमघोष सूरि. ग. भूरि. अ. राग मारुणि, माझी रे पावा वीर गोसाइ, ओ देशी; ख. ढाल ४१, राग मारुणी, माझी अपाया वीर गोसाइ, ओ देशी: ग. दाल ४९, राग मारुणी, मांजी अपाया गोसोइ, मे देशी, घ. राग मारु, माजी रे पाबा बीर गोसाइ; से देशी; २३३७. [अत्रे चारेक कडी प्रत 'अ', 'ख', 'ग', 'घ'मां ऊलट सुलट क्रमे छे अत्रे ग्रंथपाठने अनुलक्षी For Personal & Private Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृंगारमंजरी २१९ पाठान्तर नेांध्या छे. ग. सहगुरु वाणी. २३३८. ग. प्रांणी चेता. २३३९. अ.ख.ग. तुझे. घ.मां नथी. घ.मां आ पंक्ति नथी. घ. आ पंक्ति नथी. ध. शंबल. ख. से संसार असारु रे; [वधारानी पंक्ति ] ख. जे संसार असाररे; [ बधारानी पंक्ति ] ग. अह संसार असारो रे; [वधारानी पंक्ति ] घ. अह संसार असारो रे; [ वधारानी पंक्ति ] अ. दुपद; ख. दूपद; ग. दूपद. घ. दु० २३४०. अ.ख. चुरासी; क. नरक. ख. तुहि न आविउ पार; ग. तोहि न आव्यो पार; घ. वेयांइ. क. आव्यु राशि व्यवहारइ रे. २३४१. क.अ.घ. बादर थावर. अ. भमतां भमतां काल अनंतु; ख. भमतां भमतां काल अनंतो; अ. आविउ रासि व्यवहारि रे; २३४२. ग. मांहि. ग. च्यारि रे. २३४३. प्रत 'ख'मां अने 'ग'मां आ कडी अने ते पछीनी कडी उलटक्रमे छे भारि ग. जूता. ख. लहिं; २३४४. प्रत 'घ'मां आ कडी नथी. २३४५. ग. पहुतो. २३४८. प्रत 'ख' अने 'ग'मां आ कडी अने ते पछीनी कडी उलटक्रमे छे. ग. कोय न सगो. २३४९. ग. संसारि कोय. २३५०. अ. परमर म) मोसा; ख.ग. परम रण न मोसा. २३५१. ख.अ. मोसउ ग. अ. वीसारीउ ग. परनो द्रव्य न ग्रहोइ. २३५२. ग पंचेइंद्रो. ग. कीजी. ग. रागनइ रसि ग. तणो पंथी अ.ख. किमहइ न तिजाइ; अ. करीइय रे; ख. करोय; ग. करीइ'. अ. दुहा; ख. अथ वैराग्यना दूहा; ग. अथ वैराग्यना दूहा; घ. दूहा. २३५३. अ. सोपान; २३५५. अ.ग. गिरुयड दानि. २३५८. अ.ख. तृणे दानि; ग. तूणे २३६०. ग. दानथी. २३६२. ख. कुसुममालि ग. समू. २३६४. ग. मन-चिंता. २३६६. ग. छां हीमइ; २३६८ ग. दुस्तप तपतो. क. निफल. २३७०. ख. भरतेश्वरि केवल लहि. अ.ख.ग. मुगति-रमणि. ग. न पडइ. अ. राग धन्यांसी, भमरा सूडांनी, देशी; ख. ढाल ५०, राग धन्यासी, भमरा सूडानी, देशी; ग. ढाल ५०, राग धन्यासी, भमरा सूडानी, देशी; घ. राग धन्यासी, भमरा सूडानी देसी. २३७२. क. विनाणी. क. तण, क. तेवु नाणी रे. ख. कहिइंबुं नाणी रे; क.घ. भासइ श्री गुरुराय रे, २३७३. ग. गुणिं पूरीओ, २३७४. अ.ख ग. करमकर, ग. प्रतिवति अपार. अ.ख. सुजसा; ग. सुजशा माथि २३७६. ग. सुयशाई तेणि. २३७७ ख.ग. पापयणासि. २३७८. क.अ.ख. नेविज ढोइ. २३८०. ख ग. नहीं दूखि रे. २३८१. ग. कहइ सुणो. २३८३. ख.ग. पर्व तणी तिथि; घ. पडवजी धर्म. २३८४. अ. जाणी कंतनि. [स्त्री कहइ ओ धर्मग्रहीइ रे. ख.ग. पाठान्तर.] २३८६. अ. नयमनइ; ग. नियमन नइ. प्रत. 'घ'मां आ चरण बे नथी. क अधिकुइ. प्रत 'घ' आ चरण चार नथी. २३८७. प्रत 'घ'मां आ पंक्ति नथी.क. वीरा रे बघामणउ कोई आपणा से ढाल अ. राग धन्यासी, वीरा रे बधासणी ओ देशी. ख. (आज अमीणा धन्य धन्य दीहा, जे सांभरो. नावइरे ए देशी ग. हाल ५१, राग धन्यासी. वीरा रे वधमाणू तथा आज अमीणा धन्य धन्य दीहा, जे सांभरो नावइ रे; ग. धन्यासी [वीरा रे वघाभणू मे देसी.] २३८८. ग. केनलई. ग. जेओ भवियण. अ.ख.ग. दूपद; घ. दुपद. २३८९. ख.ग. ते चव्यां. २३९०. ग. उहापणि. २३९२. अ. कांत. २३९३. अ.घ. देस शील फल. ग. हवइ आदरो. ग. हुई ते हार. २३९४.क.जयती. २३९५. ग. अणुसरई. घ. समिति निजी साधु समिति. For Personal & Private Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० जयवंतरि २३९७. ग. सलील रे; अ. दूहा ख. दूहा. प्रसस्तिना; ग. अथ प्रसस्त दूहा काहइ छइ; घे. दूहा. २३९८. क. सुखवर. २३९९. ग. शीलनो. ग. नवनिधि अत्रेथी प्रत 'घ' प्रतमां कुल पाना ७३, कडी क्रमांक २३६६. २४०१. ग. सवी महीमा शीलनो. २४०२. अ. शीलवती चरति; ख. शीलवती चरिति; ग. शीलवती चरित्रई'.२४०३. अ. जिणेस सीसबर. अ. साधु गुणिः २४०४. ख.ग. श्री कोटिक गण, ग. श्रीचंद कुलि. २४०५. ग. रत्नाकर ग.छ २४०६. अ. तपगछ अद्योतकर; ख. श्री तपगच्छ उद्योतकर. २४०९. ग. सुर-तर समा. ग. विद्यामंडाण सूरीश्वर. २४११. अ.ख. गुणतां. अ. लहु पार. २४१२. अ.ख.ग. सुहम स्वांमि. २४१४. स. घण अपार. २४१५. ग. लिखीओ दीसीई. क. मियमय मिमिसुरप. २४१८. ग. श्री गुरु घरणी विशेक. प्रत 'अ'मां आ चरणन्थी .ख. ते सवि चंदु भूतलि; ग. ते सवि चंदु भूत लइ : प्रत 'अ'मां आ चरण नथी. २४१९. अ. जयवंत लघु सीस तास; २४२१ अख. हु सविहुवी २४२२. ग. गणींद्रनो. २४२४. अ. संवत सोल चौदोतरइ; ख. संवत सोल चौदोत्तरइ; १६१५. ग. संवत सो चौदोत्तरई'. अ.ख. आसो श्रदि बीज: ग. आसो सुदि गुर बीज. अ.व.ग. कीधी शृंगारमंजरी. अ. जयवंत पंडित गेहि; ख.ग, जयवंत पंडित हेज. प्रतनो 'अ' अंत :-[प्रत 'अ', कुल कडी २३९१] इति श्रीशीलवतीचरितगभिता शृंगारमंजरीनाम्ना, सपाप्त, छ. ग्रंथाग्र २८०० संवत १६३९ वर्षे मार्गशीर्षमासे कृष्णपक्षे द्वितीयायां शनिवारे पानसरनगरे श्रीहारीजगच्छे भ० श्रीश्रीश्रीमद्देश्वरमूरिभि; श्रीः ॥श्री:॥छः॥ ॥छ। श्रीरस्तु॥१॥७४।१. प्रत 'ख'नो अंत [प्रत 'ख', कुल कडी २३९०] इति श्रीशीलवतीचरित्रगर्भिता शृंगारमंजरीनाम्ना ग्रंथ संपूर्ण ॥ श्रीमदी(च्छी)विनयादिमंडनगुरोश्चक्रे विने योजसा । शिष्याणुर्जयवंतपंडित इति ख्याता: क्षमामंडले ॥ नाम्ना सारतरां कवी(वि)श्वरप्रियां शृंगारतो मंजरीम् । नंद शशीतिवकार(प्र)मिते चालीलिखद् विक्रमात् ॥१॥ वहन्याकाशमुनिक्षपाकरमिते १७०३ संवत्सरे वैक्रमे मासे फाल्गुनिके शशांकविंशदे पक्षे दशम्यां तिथौ । पुष्याके विनयादिसागरगणि विद्यैज्जनानंदिनीम् शृंगारादिममंजरों समलिखत् स्वश्रेयसे सादरात् ॥१॥ प्रत 'ग'नो अंत--( काव्यं ) श्रीमष्टी(च्छ्री )विनयादिमंडनगुरोश्चक्रे विनेयोञ्जसा । शिष्याणुंजयवंतपंडित(पंडित) इति ख्याता क्षमामंडलेनाम्ना सारतरां कवी(वि)श्वरप्रियां शृंगारतो मंजरीं। नन्द शशीवकार(प्र)मिते चालीलिखद्धिक्रमात् । (२३) ९४ ॥ इति श्रीशीलवतीचरित्रगर्भिता भंगारमंजरी नाम्ना ग्रंथ संपूर्णमिति । मंगलमालिकाबालिकावदालिंग(गी)तु ॥ संवत १७४० वर्षे मधुमासे सितेतरपक्षे चतुर्दशी कर्मवाध्यामिति भद्रं भूयात् । श्रमणसंघस्य । सकलवाचकगगनांगणनभोमणि वाचकश्री१९सत्यसौभाग्यगणिशिष्य पंडित प० श्रीअमरसौभाग्यगणिशिध्यविनेयाणु कांति. सौभाग्येन लिखिता पुस्तिका स्वपरोपकाराय प्रीत्यर्थं वा । शुभं भवतु ।। कल्याणमस्तुः ॥श्रीरस्तुः॥ For Personal & Private Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दकोश नांध.- शब्दकोश अमुक अमुक दृष्टिले नेधिपात्र लाग्या तेवा शब्द पूरतो मर्यादित राख्यो छे. बधां ज स्थळ नेांधवान राख्युं नथी. [शब्द पछी आपेलो अंक कडीनो क्रमांक सूचवे छे. अने ते पछीना १,२,३,४ अंको कडीना चरणनो निर्देश करे छे. संक्षेप. : सं संस्कृत, प्रा. प्राकृत, अप. अप्रभंश, गु.गुजराती ज. गु. जनी गुजराती, अ=अरदी, फा=फारसी, हिं=हिन्दी, दे=देश्य ] अकलाया ११८०/३ अकळाया. अवटाडिउ १८५२/२ उकळाव्यु (सं. आकुल) अवघट १९५/ मुश्केल अगाज १४८४/४ अग्राह्य अवराह १८८२/१ अपराध अचिरेण १५५५/४ तरत (सं. अचिरेण) अविसासी ४१७/४ अविनाशी अजुआली २३७५/१ अजवाळी असन्न ७६९/२ शून्यमनस्क (स'. असंज्ञ, अटारडुं ११४४/१, २०७७/३ वाकुं, प्रा. असण्णम् ) अटकचालू असमाधि १८११/२ अस्वस्थता अणसंदहितु १२६०/१, २.९३/३ अहर १९७२/३ होठ (स. अधर, अश्रध्धावान. संदेशो करतो प्रा. अहर) अणटि १६६५/३ वरस्या वगर अहिठाण २३५३/४ अधिष्ठान अणिमा ३७/४ सूक्ष्म (सं. अणिमन् ) (स. अधिष्ठान) अतयान २१३१/४ समजु, अतिजाण अहिनाण ९३/४ अधाण, संज्ञा अत्थमण १८५५/१ आथमवु (स. अभिज्ञान प्रा. अहिन्नाण) (सं. अस्तमन) अहिनिस १०८६/४ रात अने दिवस अदसणि १८८४/१ अदर्शन (सं अदर्शन) अहिघर ३७२/२ राफडो (2) अर्धासिनि १६४७/४ अडधे-आसने अहिलास ९९४/२ अभिलाप इच्छा अनीठी १०८४४ अखूट अंदोह १२४८/२, १७६२/४, २०१४/२ अमीणा १९२६/२ अमारा संदेह, अंदेशो, संशप, शंका अय २२/४ लोढुं (सं. अयस्) अंबार २६२/२ ढगलो, भंडार अलजइ २१६६/१ झंखनामां आउलि ६७८/२ आवळ अलज्या १६१०/१ झंख्या, तलस्या आखडी १७९५/३ बाधा, मानता अलजु १०६०/३ इच्छ1, झंखना, अभिलाषा आगइ २१२/१ पहेला (स. अग्रे, अलवइ २७०/३ सहेजे प्रा, अग्गे प्रा.गु. आगे) अलवि ३३३/२ सुंदर आगलिथु ८००/४ आगळथी अलीक २३५०/४ मिथ्या आडि १४२१/३ जीद, हट (हे. अ) For Personal & Private Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ शंगारमंजरी आदक्षण ७४८/४ (१) आफलई २०९२/३ मांसथी (स. आमिष् ) आरतियां १६९६/आतुर (सं. आर्त) आरुत ५७/७ अवाज आलइ १६६/४ निष्फळ आलालंबु १६३१/२ तृष्णा, लालसा आलंबडु १६७५/२ आलंबन आवटूं ११०८/३ दुंभाउं छु आवसइ ६९२/१ आवशे आहर-जाहर १२१/१ आवजा-जा इखूइ १७१४/३ शेरडी पर (स. इक्षु) इठ ४२५/४ इष्ट इसर १५२३/३ महादेव, शिव (स. __ ईश्वर प्रा. ईसरे इसाडरति १०८७/२ इर्षा अने अरति (=अरुचि) उजाडि २१८८/४ उज्जड (दे. उज्जड) उतापइ ११३८/३ संतापे छे उद्भत १५७९/१ अद्भुत (स. अद् भुत) उदीसई १७३८/४ उदय थशे, ऊगशे उध्वब्भूय ४३९/४ उंचा हाथ राखीने (सं. ऊर्ध्वमुख प्रा. उदवब्भुय) उध्धीसीया 1७००/३ (रुंवाडां) ऊभा थया उनइओ ९१३/१ आकाशमां झकुबी रहेलो उनमेख २३३१/१ आंखनो पलकारो (सं. उन्मेष) उपनउ ५४०/४ उत्पन्न थयु उपराजन ६३१/२ आर्जन उफराटूं १८२५/४, ११३९/३. १५८६/१ ___ आई अबळु उभजसि १७४६/१ उद्वेग करीश उमाह २०८८/४ उत्कंठा .. उरतु २७/२, ९७१/३ ओरतो, इच्छा उरडइ २९९९/१ ओरडामां उरंगी ७९/२ नागिणी उलखिया २३३२/४ ओळख्यां उलंभउ ६१०/१ ठपको उलंभडा ८१८/३ महेणा उलंभा २५/१, ५८९/१, २०१२/१ ठपकानां वचन उल्लसइ ८९०/१ उल्लास पामे उल्हवु १०४७/३ ओलवु उल्हावइ १४६१/४ ओलवे (प्रा. ओल्हव) उल्हाविउ ९३७/४ ओलव्यो उवडु (उवटु ?) १५३/४ अवको रस्तो उवार २३३९/३ इगारो, बचाव उवेखइ १५९७/३ उवेखे, उपेक्षा करे (सं. उवरेव) उवेली २१४२/१ उखेळीने उसरइ १४९७/१ अन उपजाव भूमिमां (स. उषर) उसीकस ८६६/१ ऋणमुक्त उहलाइ ७५०/४ ओलवाय, बुझाय __ (प्रा. ओल्हव) उंछ १५४०/३ वीणी लीधेली वेरायली वस्तु (स. उच्छ) उंबर-पाट २२६७/४ उंबरानी पाट ऊचालडा ८३४/१ उचाळा ऊजाइ ९८६/४ दोडे ऊमाहलउ २२६२/11 उत्कंठा, ऊमाहलू २२०३/३ - उत्सुक्ता ऊवस ९२३/२ उज्जडा (दे. उव्वस) ऊलंभठा ८१८/३ महेणा . अष २३२५/२ आ अतां २३६५/३ अटलां कइरि ९५०/२ के रडाना वृक्षथी (प्रा. कयर) कइवार २११६/४ प्रशंशा कडखु (कडकखु) १५११/२ आंखनो कटाक्ष (सं कटाक्ष प्रा. कडक्खं) कडुआवीया ८३१/३ दुभाव्या (दे कडुयाविय) कडू: २९३/१ कडवू For Personal & Private Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दकोश २२३ कणमण्यु ११२०/२ दुःखी थयु, अंजपो पाम्यु कुरुविंद ४५/४ माणेक, अक जातनु रत्न. हींगळो कलावी २११६/४ कलापी, मोर कींगाइ १७०२/४ केकारव करे छे कोडि २१५०/२ कोटो, करोड कोउ ११०७/३, २१६९/४ (अडायानो) अग्नि खइर १९६२/४ खेर, अक झाड (सं. खदिर प्रा. खइर) खटकुइ (खटक्कइ) १०५४/३ खटके छे खमावीउ २३३५/१ क्षमा मागी खलाया ११८२/३ स्खलित थया खेपसि २४१४/४ नांखीश खेह ११७६/२ धूळ, रज (दे. खेह) खोह १७६२/४ कोतर, खीण खंति २१५४/४ खंत, होश, उत्साह खंखर ४३९/२ ठूलु खांडु १५०२/ खड्ग, तलवार गडिया ७९४/१ बख्तरथी सज्ज थयेला __ (प्रा. गुड) गयणंगणि ९०१/२ गगनना आंगणामां (स. गगनाङगेने, प्रा. गयणंगणि) गयवर १६००/१ हाथी (स. गजवर प्रा. गयवर) गयंद १४७३/२ हाथो (सं. गजेन्द्र, प्रा. गयंद) गरहणइ १७७७/१ घराणे गरुयडि २३७५/१ मोटाइ गिरूइ ६४/मोटी गिहिबर १९०५/३ गभरु गहिबरी ५३०/३ गभराईने गीय १९४५/१, २२७०/४ गीत गुरुअडि १९०४/१ मोटाइ (स. गुरुता) गुण-वेद्य १४४७/४ गुणथी वींधायेलु गुडु १३९३/२ रहस्य गुह्यक २३२२/१(2) गूजर-वाइ २२८८/३ गतिमान वायरो (?) गोठि ४६४/१ गोष्ठी, वातचीत घट-जुअलि १५४१/१ बेढामां, घट-युगलमां घट-पुत्र २०६५/८ अगत्स्य घडनाल १०५०/२ गरनाळा घात ७६८।४ विश्वासघात घनसारि २३१५/३ कपुरथी घोलिर १५८८/२ चकळवकळ चच्चीय ५७०/५ लेपन करी चतुरिमा २०७४/३ चातुर्य चरड ५०/५ चोर लूटारा (प्रा. चरड) चरण-त्राण ३०९/२ मोजडी चिवियां १६५४/१ कह्यां चंगिमा ६१/४ सुंदरता चंडु (चंदु ?) १५२२१ चंद्र चाचरि ५९७१ चोकमां (स. चाचर प्रा. चच्चर चिरास ४८२/४ आशावत चिहारई २३१३/१ चारेय चिहुर १५०४/२ केश, वाळ (स. चिकुर, प्रा. चिहुर) चीखली ११२७/१ चीकणी, कादवयुक्त (दे. चिकखल्ल) चील्हडां १५५/३ समडी (दे. चिल्ल) चोज ११/४ विस्मय (प्रा. चोज्ज) चोनाणी २३७२/४ चार प्रकारना ज्ञानवाळा चोल २२८९/४ मजीठे रंगेलु चित्र छप्पय २१९७/१ भमरो (स. षट्पट) छयल्ल २८/१, १२९१/२, १४८३/२, १९३५/१ छेल, चतुर, रसिक (दे. छहल्ल) छलीया ६८१/३ छेतराया For Personal & Private Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ शृंगारमंजरी छार १४६६/४ राखाडी छांदु राखइ १३२२/1 खुशामतथी राजी राखे छीलरि ७०६/१, ९५२/३, १७२५/३ खाबोचियामां (दे. छिल्लिर) छेह ८८७/२ दगो, विश्वासघात जगीस १०/२ अभिलाषा, इच्छा (सं, जिगीषा) जडित्ति १५७१/४, २०७६/४ झट, झडपथी जन्मंतरि १७३१/४ जन्मांतरमां, बीजा जन्ममां जंवारडु ८७७/३, १४२९/१ जन्म, अवतार जंखर १३५०/२ झांखरा जेवु जंभा १८३६/१ बगासा (स . जृम्भा) जाइसर २२७६/२ पूर्वभवनी स्थिति याद करी शकनार (स". जातिस्मर) जारे १६४७/१ जेने जालक ५६/१ जालु, झूड जांमीइ २१०६/३ (इमो) जामे जिम्भेय ९९२/२ आळस खाय छे. (स. हृम्भते) जीणंग १४६३/२ जीर्ण अंगवाळु, कृशांग जीपती ८२/३ जीती लेती जीपवा ७७३/३ जीतवाने जीलतां ७३४/३ जळकीडा करतां (दे. झिल्ल) जुहारडु १९२९/३ जुहार, नमस्कार (दे. जोहार) जोयण २०७९/४ योजन जोतराइ १६७/६ जोडे झंखर १६३२/४ झांखरा जेवु टोडर ५८१/१ (फूलनी) कलगी (दे. तोडेर) ठाइ १९८३/४ स्थाने (सं. स्थान, प्रा. थाम, अप. ठाम) ठारवण १०९३/४, १९४६/२ आश्वासन स्थान ठवी १८१५/१ पहेरीने, स्थापीने इंडडु २९/३ दंड, शिक्षा डंबर ५०५/२, १७०९/४ आडंबर, बाह्य भपको डालि १८२०/३ सूडली(1) डीबु २१०६/३ इमो ढिंक ५४/७ ढेक बगलो (दे. ढंक) दूंकडांथा १८९२/३ टूकडां थयेलां ____नजीक थयेला (सं. ढोक, प्रा. ढुक्क) ढंढण-रिखि १९१/३ ढंढण-मुनि,कृष्णना पुत्र ढंढार २०३४/४, २२०८/४ गंजावर, मोटु, पोलु ढोइ २३७८/३ धरीने (नैवेद्य) तद्रय १८३४/३ तेना जेवु तनु-हाणि ८२९/२ शरीरनी हानि/नुकशान तरसालूआं १६९५/१, १७७८/३ तरस्यां, तृषालु ताडक ६/२ काननुं आभूषण, कुंडल (स. ताटङ्क) ताडु १४४०/४, १६८७/३ ताण, आ ग्रह ताम-रस ३६५/२ कमल (स . तामरस) ताय २०२२/४ पिता, तात (सं. तात, प्रा. ताय) तालक ५६/६ ताडनु झाड (स. तालक) तिल-तुस-मित्त १८८५/३ तलनां फोतरां जेटलं, स्वल्प तिहुअण ५६२/२, १५१७/२ त्रिभूवन, त्रणे लोक तोमन ७३९/३, १८२७/४ एक प्रवाही भोजन वानगी ओसामण (प्रा. तिम्मण) For Personal & Private Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दकोश २२५ तीरइ १५४३/३ शके (प्रा. तीरइ) तुर १९७२/४ (!) तुरिया २२१३/। त्वरित तुहइ ७२१/३ तोय . तुह्मची ८६१/३ तमारी तुहीने २९९/१ झाकळ (स. तुहीन) बासुत ४५०/1 गायनो पुत्र, वृषभ (दे० तंबा) तूठी ६९/७ प्रसन्न थईने (स. तुष्ट, प्रा. तुट्ट) तेख १७९५/४ रोस . तोरडइ १६९८/1 तारे त्राटी १९९९/४ कामठानो पडदा, भीत, टुट्टी (दे. तट्टी) त्रिहुनइ १२८६/२ त्रणेने त्रेह १६०१/३ भीनाश, भेज (जमीनमां ___ उतरेखें वरसाद पाणी), थक्क १५३७/४ स्थित, आवी रही (प्राथक) थापणिमोसु २३५१/१ थापण ओळवी ते थावर २३४३/१ स्थावर थिका १२३ 'थी' (पांचमी विभक्तिनो प्रत्यय) दप्पण २९५/३ दर्पण, अरीसे। दविण २५७/२ पैसा, धन (स. द्रविण) दाण १३८७/२ कर (प्रा. दाण) दाडुर ६६९/२, ९६२/१, २११६/३ देडको दाद्या ११४९/३ दाझया (स. दग्ध, प्रा. दज्झ) दालिद ५१/१ दरिद्रता, गरीबाई दिणाहिव ९/३ सूर्य (स . दिनाधि१) दिणनाह ५०२/४ सूर्य (स. दिननाथ) दिणयर १९९५/४ सूर्य (स... दिनकर) दिणंद १८७१/४ सूर्य (स. दिनेन्द्र) दीवडर १७६८/३ दीवडो, दीप दीहा १२३९/२ दिवमा (सं. दिवस, दुअंगम 1६७१ दुर्गम, मुश्केल दुतर १९५८/३ तरवाने मुश्केल __ (स. दुस्तर) दुदर १७१६/३ देडका (स'. दुदर, प्रा. दधुइ) दूजां ११२७/२ बीजो देअंत २१६/२ आपेलु देसड्डु १७७२ देश देसाउरी १२३१/३ देशांतरिक, विदेशी दोहगपणु २३७७/३ दुर्भाग्य दौगंधक ६१५/४ जैनशास्र प्रमाणेनी अक जाति (दोगुंदुक) दृष्टिवेध १४४४/४ दृष्टिथी वींधायेलं धीइं १६९/५ बुद्धिथी घीकई १२२८/३ धगधगे धूअडइ २१६५/३ धुमाडाथी धूणेविण २५/३ धूंणावोने(?) (अप. प्रा.गु धुणेविj) धुरि १८६५/१ आरंभे (स. धुरा) धूहलइ २११४/३ धूधळो(?) नइतरु १८६२/१ नदी काठानु झाड नजिम १७८/५ () नट्ठ ११५१/३ अंदर धुसी गयेलु (स. नष्ट प्रा. नट्ट) नफेरी ७९६/३ अक वाद्य नरहिणि १२७०/४ नेरणी, नख कापवान __ ओजार (प्रा. णहरणी) नहुतरी १८१३/१ नोतरीने नाण ९/३ सान (सं. ज्ञान, प्रा. नाण) नाण दंसण ४७/१ नाभि रुपी धरामां निदानी ६७/२ चोकस.. निईखण २३९५/३ दूषण वगरनु नीगमइ १२४७/३ वीतावे, निरगमे (स'. निगर्म प्रा णिग्गम) नीजांमा १९८१/१ सुकानि (स.निर्यामक, प्रा, निज्जामय प्रा. दियह) . २९ : For Personal & Private Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ नीपाई २३१८ / ३ बनावी नीमेडि १७६० / २ ( ? ) नीसत १८५४ निःसत्त्व नेउरी ११०१ / १ झाझर नेट १७१० / ४ नक्की विज्ज २३७८ / ३ नैवद्य पडखी १९५१ / १ प्रतीक्षा करीने ( सं . प्रतीक्षते, प्रा. अप. पडिक्खर, जु. गु. पडखई) पडिवजिउ २३१५/१ स्वीकार्यु पणास २३६७/४ नाश करे छे पतीजइ ६७७ / ३ विश्वास करो (प्रा. पत्तिज्ज) पड ३८ / ३ प्रकट परपर २४५/१ परस्परने पळास २२१६/१ खाखरानुं वृक्ष पसाउलइ ६१८ / १ प्रासादथी कृपाथी ( सं . प्रसाद ) पसाय ५७१/६ (स. प्रसाद, प्रा. पसाय ) पसूय २३४३ / १ पशु पहारडइ १४९५ / + प्रहारथी ( सं . प्रहार, प्रा. पहर) पहि २१५ / १ ना करता पहुरु १४५४ / ३ पोसे पाडवा (?) पंचद्रीपणु २३४२ / १ पंचे द्रोपणुं, पांच इंद्रियो धराववाना गुण २०६/३ हाजिर पाखलि ५९१ / ३ आसपास, चेामेर पाड २१३३/४ उपकार पाडल ५३७/७ पाटल वृक्ष (स. पाटल, प्रा. पाउल) पाडु ७१७/३ खराच अशुभ पालटी ४२० / ३ पलटा बीने पालिडी २६७/२, ८९८/१ पाळी ( सं . पालि ) पावसि - कालि २२१८/२ चामा खाना समयमां शृंगार मंजरी पाहुणा १८४८ / १ परोणा (सं प्राधुणक, प्रा. पाहुणग) पिम्म ९८ / २ प्रेम पूर्वभवंतरि १०६७/१ पूर्वभवमां पेमासव २१४५/१ प्रेमनेा अर्क, पेलाडि ९५६ / ४ पेली जग्याओ, दूर प्रजाल्यां २८८/३ सळगाव्यां (सं. प्रज्वल, प्रा.) प्रजल प्रत्यय ११७/३ प्रतीति, विश्वास, खातरी प्राकारि २३७ / गढ उपर प्रखित २०७९ / २ पोषित, पोषितभर्तृका जेने पति प्रवासे गयेला छे तेवी स्त्री फालि ५३०/३, १८०२ / १ साडी ( सं . फालिक, प्रा. फालिअ ) फेरु ११२ / १ शियाळ (सं. फेरव) बप्पीहा १३५१/३ बपेया बलाहक २११६ / २ मेघ, वादळ बंधू ५५ / ३ बपेरियाना छोड बंभ ११७० / १ ब्रह्मा बंभसूया ८५० / १ ब्रह्मानी पुत्री सरस्वती (सं. ब्रह्मसूत्ता) बादर २३४३ / १ स्थूल बापीडु २१०७/३ बपैया बिपहुर ११२/१ बे पार बिशलय ५११ / २ कमळना तंतु, (सं. विस+लतो) बीय - चंद ४३४ / २ बीजनेा चंद्र बीहत २३१५ / व्हीने, गभराइने ( सं . बभीत ) बीजी १७५६/१ बीशे भगती ३१९ / ४ भगति, सेवा - भगति ( स. भक्ति) भज्जी १३५५/२ भांगी जाय भवंतरि २०२६/७ अन्य भवमां भवीक्षण २४०२ / ३ भव्यजन भंजणहार १९५७ भांगनार ( स. भंजक ) भाजप ५४७ / ७ भांग से ( स भज) For Personal & Private Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शब्दकोश मिभल १८१७२ व्याकुल, (मधी) विहूवळ भयंग ३/२ नाग, साप (स. भुजंग) भुवि ३५७/१ पृथ्वीमां भुधणी २२५८/१ राजा भूइ २३८६/३ भूमिमां भूहडी ९००/३ भूमि, जमीन भूसा (2) ५१७/५ इच्छा भोगिक ३६९/३ भमसे मरकलडे १४२६/१ मंद्र हास्ये मरकला १८०८/१ स्मित मरूबक ३४४/२ डमरो, मरवा (स. मरुबक, प्रो. मरुअ) मरालो ९ब/१ हंसी महिर २४१/२ मधुर महिर १९७०/१ महेर, कृपा महुरप्पणु १८६७/१ मधुरपणु मणूय-भवि २२३६/१ मनुज भक्मां, माणसनां भवमां मंजसडी २३२९/१ पटारो (स. मंजूषा) माया २०२२/४ माता (स, माता, प्रा. माया) मित्तडी १८७१/३ मित्रता मियमय २४ १५/४ कस्तुरी (स. मृगमद, प्रा. मियमय) मिसेण ८२१/४ना कारणे मिसि २१३२/१ शाही मीनति ७४०/१, १६५३/३ विनंति (सर. हि. भीनती) मीयांई २२७०/४ मृगने मुहुइ ९२६५/१ मोढे मुहुत १६५/२ मुहूर्त मुहुर १५४७/१ मधुर मुच्छांइ ९८७/४ मुच्छाथी महूंरति १९१९/२ मुहूत, ज्योतिषशास्त्र प्रमाणे शुभ समय मूधि ७९१/२ मुग्धा मेखौम्मेख २३१७/३ आंख उधाड-बंध ___ करवी. (स. मेषोन्मेष) मोकलावी १८४४/३ विदाय आपीने मोसा २३५०/१ असत्य (से. मृषा, प्रा. मोसा) स्था (१ रथ्या) ४४०/१ शेरी (स. रथ्या) रल्पा १८६/१ रखडया रीआति २१३०/२ आनंदित रसालि ३३९/४ आंबा परे (स. रसाल) रंपति (? रच्चंति) १६६४/४ राचे छे. रंडा ३:१/४ विधवा स्त्री (स, रण्डा) राइवादीइ १७८४/३ (राजा) सवारी (स. राजपा टिक, प्रा रायवाडी) राव ११६४/1 राव, फरियाद रुयडु २३०८/1 सुंदर (सं. रूप, प्रा. रूम) रुहाडी ६०५/६, १४२०/४, १७८३/२, २१८५/४ रोर २३४९/२ गरीब, रांक (दे. रोर) रोलंब ३६५/२ भमरो (स. रोलंब) लख वार २२४६/४ लक्षवार, लाख वखत लवणिमा २३६१/३ लावण्य, सौन्दर्य लवंति १५८/१ लवे, बोले (प्रा. लव) लहिवासइ १५७०/४ लेवाशे लंक ४/२,३७/४ पातळी कमरना लांक, मरोड लंकालि १८१५/९ लांकवाळी लंछण १३६५/३ लांछन लंड ५०/५ लुच्चो लंधी १७२१/१ ओळंगी (स. लंबन) लाइ १६६३/२ लावे लिखेइ ६०३/२ आलेखीने लियावइ २१५२/१ लइ आवे लु(क)डी १६०/१ लेांकडी लीह ९५९/२ रेखा लीहा १२३९/२ हद, लीटी. (स'. लेखा, प्रा. लीह।) लाडावइ १८२/६ धूमावीने, हलावीने For Personal & Private Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ लोह - सांगली १७७३/ लाडानी सांकळवी वन्नरवालि २२६८/२ वंदनमाला ( सं . वन्दनमालिका) वयस २१३/३ पंखीमां (सं. वयस् ) वरांसड्डु १२८/१, १०३०/३, १८५६/१ भरोसा, विश्वास वाणी १६८ /६, मोजडी, वहाणी ( सं . उपानह प्रा. उवाणह, वाणह afess १७३० / १ विघटित थयां, अलग थयां किम २१/१ वक्रता बंडु ६७६, वंटेल, बगडेल ( सं . वंठ ) वाजई ११२९ / १ वागे छे. (सं. वाधते, प्रा. वज्जइ) वा १०९ / २ साहु, सुंदर ( सं वरम् ) बालु २१५ / ३ सुंगंधी वाळा विउल २३७७ / ३ विपुल विकख २७२/४ (?) विखास ७६५ / ४ (?) विगोयां २११२ / ३ हेरान थयां विछेोहि १६८२/२, वियोग, जुदाई विंझ १६३९/४, १६६९/४, २२७६/२ विध्याचल पर्वत विणज ६८३ / १ व्यापार (सं वाणिज्य, प्रा. वाणिज विस २१८४ /४ बगडे (सं. विनश्यति, प्रा. विणसई) वोडीयां १३८/३ तोडयां विदाद्य १७६१ / ४ वळतरा विना २०९६/४ युक्ति विनाणी १३९१ / १ जाणीने (सं. विज्ञान, प्रा. विन्नाण) विप्पिअ ३००/२ ६७०/१, १८५५/१ विप्रिय ( स. विप्रिय) विन्भमि १५८८ / १ विभ्रमथी विरंग २००४ /४ दु:खी विलाति १५७९ / ४ (?) शृंगार मंजरी विलुघडा ३३९/१, १३०७/१, विलुब्धं, आसकत विवरई २१०१/१, २१९७/१ खाडामां, छिद्रमां (सं. विवर) विश्राल ४९८ / २ नष्ट, विछिन्न थया विस-दमणि १२७६ / ९ विषनु दमन करनार विसाय १६०४ /४ विषाद, खेद (सं. विषाद ) विहति १६७१/४ छूटा पडे छे. (वि+धा परथी) वीसा सिणि १३७१ / १ विश्वासमां वीसासीक ६४१ / १ विश्वासु बुट्टिया (? वडिया ) १५३४ /१ वृद्धि पाम्या वुलसिरी १७३ / ३ बोरसल्ली ( सं . बकुलश्री) वुहरति ८९६ / १ वारत, लइ जवु वूठी ६९/७ वरसी (सं. वृष्ट, प्रा. वुद्रु) १७१६ / ३ जाणे ( स वेद् ) वेगलांथा १८९२/१ दूरथी वेध ३३९/१ मर्म, रस वेसर ७९६ / १ खच्चर ( सं वसर ) "वैनितय [(?) वैनतेय)] ३८० /३ गरुडनु, अरणनु व्याई ११९३ / ४ प्रसूता ने शबरली ३४० / ३ शबरी, भिलंडी शिखी १५४/१ मोर (सां. शिखिन् ) शीखडी १८४७ / ४ विदाय सइ - हथि ८२५/१ पोताना हाथे सकन्हहर १५४३ / कृष्ण सहित महादेव सकार २०१६/४ (?) सग ५५० / ३ दीवानी ज्योत सचित्रला १५४७ / २ चित्रबाळा सणग १४८७ ४ सुरंग, भूमिगृह सत्तवंति १३३९ / १ सत्यवती For Personal & Private Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समापीया ६९८/३ सोप्या स- हाथि २७८/२, १२५७/१, पोताना हाथे सय- हाणि १४१७/४ पोतानुं नुकशान सरघा ३६७/१ मधमाखी (सं. सरघा ) सर्खेप १८२६/१ सरसव (सं. सर्षप) सलवाइ २१०९/७ सालवे सवत्ती १५३२ / २ सपत्नी, शौक सवाली ६२३/२ (?) सवियारां १५८८/१ सविकारा, विकार युकत संच ६४२ / २ प्रांर, युक्ति करामत संठवी २२४७ / ३ स्थापने संवास ३२७ / ४ सहवास साटिका ५९ / ४ साडी सानन १७६ / १ मुखवाळु सानधि २५४ / १ निकळता ( स सांनिधि) सामहणी २३११ / ३ तैयारी सायर-सूत ६३५ / २ सागरने । पुत्र, चंद्र साल ८९ / ४ शल्प, आडखीली (सं. शल्य, प्रा. सल्ल) सालूरडे ३४ /४ देडकाओ (स. सन्नूर कडे ) सावडू १५३ / २ सव कुं सासु १५९९/४ श्वास सांतील २४१ / ३ संताडेल सांढीउ १७५९/३ गोधा, आखलो ( सं . षण्ड. प्रा. संड) सासह ११२२ / ४ सहन करे सिरावलइ १७१५ / २ शकारामां सीजइ २०९६/४ पार पडे (प्रा. सिज्झ ) सींगणी १३१ / १ धनुध्य ( सं . शृङ्गिगणी, प्रा. सिंगिणी सुकडि १६७४ / २ सुखड शब्दकोश सुकतइ १८७० / ३ सुकातां सुगंधिका २०७३ / १ सुगंध लई जनारी स्त्री सुजवणउ ८४७ / ४ शुद्धि (सं. शोधन) सुमुहुर १९७३ / ३ सुमधुर सुहम-स्वामि २४०३ / २ सुधर्मा - स्वामि, महावीर भगवानना गणधर सुहइ ९२८/४ स्वप्नमां सूहांलडी ८५८/४ सुंवाळी से|इ २१८/४ सुख, सगवड सेयर १४६५ / १ सहोदर भाई २१०१/१ शारु श्राव यो २१५६ / २ अहीं श्रेय छे. यंदनी ( स्पंदनथी) १६७ / रथथी " हट्ट - उलि ४५१७ दुकाननी हार ( प्रा. ___+आव हत्थेण १५४२ / २ हाथथी ( सं . हस्तेन, प्रा. हत्थेण ) हर - देव ५१५ / २ महादेव हयास १०५९/४ हताश हर-हार ८५०/४, १२१८/३, महादेवने। हार; नाग हलइ ११३२ / १ हळवेथी साथ १४१९ / १ हांसी, मझाक हाणि २१३२ / २ नुकशान, हानि ही - सारण ५१५ / १ हैया - शारडी हीचर के १६७७/२ खचर के हुज्ज ११४० /द्देश्य · हेज ९८५ / ४, १७११/१, १९८०/४ त देव १६९४ /४ हवे ( स एतादशके, प्रा. एव्हर, इ) For Personal & Private Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट 6 शृंगार मंजरी' अन्तर्गत उक्तिओ, कहेवतो अने रुढप्रयोगो १. मुरख सरसी गोठडी, पगि पनि सालइ साल (९३ ३१४ ) २. मंड के र्टि सिउं करइ, नवलख माती हार ( ९५1१1२) ३. कीधां करम न छूटीइ रे, कुहुनु कीधउ सेोस ( १२७] ३ ! ४ ) ४. आप- हाणि नइ जण हसू, तु बि-परि नवि होइ (१२९|३|४) ५. गुण विण सींगणि जव हवी, तव नवि लगइ बाण ( १३१1३1४ ) ६. अमीअ कि मीठु स्युंड करइ, जउ वासीउ विसेण ( १४३ | ३ | ४ ) ७. सुख दुख केरी बांधणी, सहू करमनई हाथि ( १८६३४) ८. करम साथइ कुणइ नावि चलई, कीजइ किस्यु रे संवाद (१८९ |३|४) ९. सार विण सूकइ वेलडी, उगी सूनइ रानि ( २०२/१२) १०. साना केरी भालड़ी, पाणी मांहि म नाखि (२०३1१1२ ) ११. घाणी - पीलण सहइ घणु रे, सेलडी जगुण मठ रे (२५०1३1४ ) १२. वालु जो पस्मिल दीइ रे, तु छेदावइ मुरवु रे (२५१1३/४ ) १३. कर कांकणनइ स्युं मकर द रे (२६०३२) १४. मन-भगां कुब्रे|लडे, ते किम कहु संघाइ (२६५1३ 1४ ) १५. अगनि उलाणी फूंकतां, मुह भराइ छाहारि ( : ७१1३ 1४ ) १६. वन दव दाघां रुखडां, पीलवर मेहेण (२७५/३/४ ) १७. शीतल कीडं जल तापवी, नीरस हुइ परिणाम ( २८२ ३ | ४ ) १८. छाहारिं दप्पण मइली, अधिकु उज्ल भाव ( २९४ | ३ | ४ ) १९. पाहाणि - रेखा प्रीतडी, अशनि सम रीस हे । इ ( २९५ ३/४ ) २०. छेह लगइ नवि उतरइ, राता कांबलि रंग ( ३०४ ३ ४ ) २१. वरि कारेली आप धरि, नहीं पर मंडप द्राख (३२५1१1२) २२. सीता दुधइ सिउ मिली, कुण करसइ वखाण (४६७ ३ | ४ ) २३. जस मन बाबु जेहमिउं, तेहनि तेह सुचंग ( ४७३ ३ ४ ) २४. चंचल गति संसारनी, कुहनु धरीइ शोक | ४९११३४ ) २५. गुण संभारी सहु रडड़, सगपणि न रडइ कोइ (४०७६२) २६. वीज तणू अजूआलहू, न रहइ ते चिस्काल ( ४९९ | ३ | ४ ) २७. अस्थिर सिउ मन परहरी, स्थिर स्युं कीजइ नेह (२०५ ३३४ ) २८. नयण समाणी प्रीतडी, जगि विरलानइ होई (६२११२ ) २९. सघलई गुण वाहाला जि छई, सगू न वाहा काइ ( ६९५१३४ ) ३०. सोनइ सामि न हुइ किमि, मरुथल न हुई पंक (७१७१२) For Personal & Private Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ३१. वा३ वहिडइ केतलू, सजल आसाढा-मेड (७१८111) ३२. सोनु करतां पाहाण-सिउ, अधिक वावइ बान (७१९३४) ३३. तीमन तांखां खट विण, भोजन भलू न होइ (७३९३४) ३४. पाइ कुसुमि पीडतां, अधिक होइ सुरत (७४७३1४) ३५. पापीडा क्षणि क्षणि दहइ, जिहां जाउ तिहां धाई (८९७३।४) ३६. जेहनइ जेसिउनेहडु, नेह विण तस मनि रांन (९२२]३1४) ३७. विरह-दवानल धीकीउ, वाघई वाइ जडत्ति (९३४३१४) ३८. जिम दल लागु वेडिमां, भोंतरि जरि मरेइ (९८३1३1४) ३९. तिल पीलई तां लगइ, जां लगइ दीसइ त्रेह (१०४१1३1४) ४०. दुध अगनि ऊकालइ. नीर बलतू जोइ (१०४२1३1४) ४१. जिम पगि भागु कांटकु, खिणि खिणि सालइ साल (१०५३।३।४) . ४२. जस हासू मनि उरतु, जउ मन दीजइ मुक्खु, (१०९६२४) ४३. कुण लहिसइ रानई रडिउ, हैंडा करि संतोष (१०६९/३५) १४. नट्ठ-सल्ल जिम पगि पगि खटकई, नवु-नेह तेणी परि खटका (11५१११) ४५. कुण जाणइ से दुखडा, वाडइ आंबा खद्ध (११६२1३1४) ४६. जो सोविन-कट्टारडी, तु सिउं पेटि मराइ (11६३1३/५) ५७. रानि रडिउ रे जीव, कुण लहिसइ कुण वरसेई (११६४३१४) ४८. जे जाणइ पर-वेदना, ते नर विरला कोइ (११९४३१) ४९. जलघर देखी गाजतु, रीसिं सर भमरंति (१२६१1३1४) ५०. बीज पडु ते दुरियडां, फेाकट वइर वहति (१२६७३11) ५१. मुरख न लहइ लोय, वारी थाइ अलखामणां (१३० ५२. जिहारइ जेहनई करि चडइ, तिहारइ तेहनां थाइ (१३111110) ५३. काना पाकइ कुंभि जिम, न मिलई कुहुनू चित्त (१३४२)।३।४) ५४. संगति तणउ पटतर, दारा प्रगट लहंति (१३६१५४) ५५. ऊछां साथइ बोलतां, जण जण दीइ कलंक (१३६३३४) ५६. जण हासू मनि उरतु, निरवाहू आन हुति (११६४1३11) ५७. ताली न पडइ अंक हाथि, लोक ऊखाणउ जोइ (१४१२३४) ५८. कुण लहिसई से दुखडां, जे तू रोइ रानि (१४२३1३५) ५९. वाडी पहुरु पाडता, सूकु करइ बिखास (१४५४३५) ६०. काज करेवी आपणउ, कीजइ कोडि प्रकार (30७१ ) ६१. काज करेवी भापणउ, कीजइ कोडि प्रकार (१४७१1३१४) ६२. भाति पडी पटुलडइ, किमहि न जुई थाइ (१४७०३७) ६३. डाठ गलावइ दूरिथा, जिम चंची फल-पक्क (१५४५३४) ६४. पाणी मांहइ न नांखीइ, सेना केरी भल्लि (१५९८२) ६५. त्राटी न खमइ पीटणी, धसी पडइ समूल (१५९९३५) ६६. गयवर केरु, भार भर, खरि नव हिणउ जाइ (१६.०1१२) For Personal & Private Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ शृंगारमंजरी ६७. जिम जल पाखइ माछिली, तलावेली थाइ (१६३२३1४) ६८, मेहि जवासु सींचता, सूकी झंखर थाइ (१६३२/३1४) ६९ गोरी यौवन तिम गलई जिम कर जल टीषेण (१६४३३।४) ७०. तु धोरि-सिरि भार जिम, अध वचि नवि महेलइ (१६६३३१४) ७१. अण बुठि मेह गांजति किम धरइ चातक रंग (१६६५३1४) ७२. मणि पइ ठेली काच कुग मुरखि आणइ चित्ति (१६७२)|३]५) ७३. गोरी खूटा कार्राण, अब न सफल कपाइ (१६८३१२) ७४. भर भाद्रवडइ मोर जिम, मेह देखी कींगाइ (७०२1३1४) ७५. साकर 'दुघई स्यु मिली, सोनु हत् सुगध (१३|३|४) ७६. आंबा लागाड इखुइ, कहु कुण मूल कांति (१७१४]३]४) ७७. धर धोरी-सिरि भार जिम, निरवही लीइ जडिती (१७३।३।४) ७८. सज्जन तणु सनेहड, जिम जेठई उधाण (१७३८1३।४) ७९. जण हासु मन उरतु, बिरि दहइसि देह (181४1२३) ८०. घर बाली कीरति करइ, ते माणसडां अकज्ज (१७६५३1४) ८१. ' छासि संयोगि दूध जिम, दहीं-रस अधिक सधाइ(१७६७३६४) ८२. 'वाइ उल्हाई दीवडउ अगनि अधिकेरु थाइ (१७६८३४) ८३. नेहइ-बंधा माणसा, ते तु दुषण जोवा अंध कि (१७८०1३1४) ८४. पंय छडंइ महुरप्पण, छासि ज साथि भिलन (१८६५1१२) ८५. छाली संयोगइ दुध जिम, दहीं-रस अक भलंति (१८६८३1४) ८६. रानी कांबधोनी परइ, कीजइ प्रीति सुयंग (१८७५८३1४) ८७ लुणह-पाणी होइ मिलिया, कीघा जुआं न थाई (१८९९1112) ८८, घण पइठउ जिम अबमां, सूकी झीणां हुति (१९००1३1४) ८९, जस खोलई शिर मूकीउ, ते कां छेदी जाइ (१९९२/१२) ९०. अख न हुइ आकडु राइणि नुहइ निंब (१९०४१२) ९१. भागी डाल म वलगीइ नवि कीजई अंदाह (२०१४११२) ९२. सगपणि वाहालू को नथी, वाहाल स्वार्थि प्राणी रे (२०५४/१२) ९३. वृष्टि हवी विण आभले. इष्ट कहिउ वैधि रे (२७५११२) ९५.' बिख अनई वली वघारीउ, लींबढे चडी कारेली (२०६४/१२) ९५. मांजर नई पइ पय भालवि, वादरा वाडी मांहि (२०६५111) ९६. ते शील-सायर सोसवा, घट-पुत्र सरखा धाइ (२०६५/७/८) ९७. अंध न जां किंहिं आफलाइ, तां नवि आबइ शांन (२०९२३४) ९८. सरोवर जिम आसाढथी, बेहु कंठई पुराइ (२१७१1३1४) ९९. । ओबा-फलनी आसडी, न टलइ अक्क फलांइ (२१७१1३1४) १००. किहां सूरय गयणंगणि, किहां जलि पंकज बन्न (२१००1३1४) १.१ पय ऊभरातू तव रहइ, जव पामई जल योग (२२७५३४) १०२. स्वारथि सहु का दीसइ वाहालू, कोइ न सगू सहाइ रे (२३४८1१1२) १०३ वैया विण नवि छ्टीइ, कीधा पुरव पाप (२४६६[१४) For Personal & Private Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ dain Education International Eor Personal & Private Use Only