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समालोचना
'शृंगारमंजरी' अन्तर्गत प्राप्त थती 'शीलवती कथा' पूर्व नेांध्यु छे अम जैन साहित्यमां व्यापकपणे प्रचार-प्रसार अने प्रतिष्टा पामेली कथा छे. कवि जयवंतसूरि प्राय: प्रस्तुत परंपरानुसारी कथा-सामग्रीने अपनावी पहेल प्रथम मध्यकालीन गुजराती भाषामां एक 'रास' कृतिनी रचना करी अने सुंदर पद्यात्मक स्वरूप अपें छे. कथावृत्तान्त तेनी नानी-मोटी विगतोमां परंपराथी रूढ थयेलु होवाथी कथावस्तु पुरतो तो मौलिक कल्पना के संविधाननी दृष्टिले कथावस्तुने शणगारवानी बाबतमा, वर्णनेने रस-निरूपणनी बाबतमां, तेम ज मनगमता प्रसंगाने बहेलाववानी बाबतमां कविने पुरतो अवकाश रहे छे. कवि जयवंतसूरिए आवा दरेक प्रसंगोना लाभ लईने पोतानी प्रतिभा अने सामर्थ्य अनुसार एना वस्तुसंकलना, पात्रालेखन, भावनिरूपण, वर्णनालेखन, अलंकारयोजना जेवां पासाओमां कुशळता दर्शावी छे. अने अक स-रस रास कृति बनाववाने। सफळ प्रयास को छे. पण एक प्रकारना नियत दाळामां ढळायेली जैन परंपरानी 'शीलवती कथा'ने प्रथमवार मध्यकालीन गुजराती भाषामां अवतारवान होई आ कृतिमा केटलीक मर्यादाओ जोवा मळे ते स्वभाविक छे.
'शृंगारमंजरी'नी वस्तुसंकलनानी दृष्टिए समीक्षा करता आम कही शकाय. कवि जयवंतसूरिसे रासना प्रारंभ परंपराने अनुसरीने सरस्वती देवीनी स्तुति करीने स्तुत्यामक मंगलाचरण करीने] को छे. कवि सरस्वतीने प्रणाम करता कथे छे:
चंद्र-वदनि चक-वनी, चालंती गजगत्ति,
मयणराय-मंदिर जिसी, पय प्रणमूसरसति. १ त्यारबाद कवि अलंका रमंडित वाणीमां सरस्वती देवीनु वैभवी वर्णन आपे छे. आ वर्णनमां रूढ उपमा उत्प्रेक्षाओ ठीक ठीक छे, छतां उचित शब्द पसंदगी अने लयना कारणे एक प्रकारनी अभिनव चारुता जोवा मळे छे. (कडी २-८) कवि अत्रे कंइक विस्तारथी सरस्वती देवीना रूपशणगारनु वर्णन करी एने वंदना अपे छे.
ते सहिगुरुना प्रणमी पाय, जयवंतसूरि एक चित्तइ थाय, ग्रंथ कर शृंगारमंजरी, बोलु शीलवतीनू चरी. १७
आटली मंगळाचरण अने वस्तुनिर्देशात्मक पूर्वभूमिका रची कवि नंदननगरना वर्णनथी कथानो प्रारंभ करे छे.
नंदनगरनु वर्णन संपूर्णता आणवाना प्रयासरूप प्रायः ७४ पंक्तिओमां विस्तायु छे. [कडी ४२-५९]
पछी नंदननगरना राजा अरिमर्दनना परिचय, ते नगरमां वसता रत्नाकर अने तेनी भार्या 'श्री'नो परिचय, दंपतीनी अपुत्रक स्थिति अने ते अंगे दु:ख अने चिंता, देवीनी आराधनाथी पुत्र प्राप्ति, बारमे दिवसे नाम-महोत्सव करी पुत्रनु अजितसेन नामाभिधान, अजितसेननी विद्या.
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