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________________ (४१) घळी काव्यान्ते कविए पोताना गुरु अने गच्छनी परंपराने जेमके ... वृद्धतपापक्ष जाणीई, श्री रत्नाकर गच्छ. कल्पलता जिम वाघती, हीसई जिहां गुण-गच्छ श्री तपगच्छ उघोतकर, श्री विजयरत्नसुरिंद जिन सुरपति सूर वृंदमां जिम ग्रह- गणनां चंद X X X पोताना परिचय आपता कवि जणावे हे पण विस्तारथी वर्णवी छे २४०५ श्री विनय मंडन गणींद्रनु, लघु सीस भूमि प्रसिद्ध, जयवंत पंडित अभिनवी, शृंगार मंजरी किद्ध, २४२२ वळी कवि कृतिनो रचनाकाळ नीचेनी पंक्तिओमां ताथी निर्देश्यो छे. संवत से|ल चउदोत्तरो, आसो सुदि गुरु बीज, कीधी शृंगार मंजरी, जयवंत पंडित हेजि. २४२४ आम कविए काव्यांते आ सर्व माहिती आपी रासना ते लक्षणने जाळब्युं छे. २४०६ (३) पंदरमी सदी पछी रासनेा विस्तार वधता तेना विभाग पाडवानी पद्धति प्रवेसी हती ते प्रमाणे २४२४ कडी संख्यानो विस्तार वरावती प्रस्तुत कृतिने ५० जेटली जुदी जुदी 'ढाल' मां विभक्त करी छे. ( ४ ) रासनी रचना गेय एवी 'देशी' मां थती तदानुसार प्रस्तुत ' शृंगारमंजरी' मां कविए जुदी जुदी अनेक देशीओ प्रयोजी छे. (५) रासनी रचना प्राय: दूहा, चोपाई, तोटक इत्यादि छंदोमां करवामां आवती, अहीं तेज प्रमाणे कवि जयवंतसूरि प्रथमवार अने प्राचीन गुजरातीमां रुचे छे ते अनी विशेषता छे. (६) कोई पण सिद्धांत के व्रतना प्रतिपादन अर्थे सामान्य रीते रासनी रचना थती ते प्रमाणे अत्रे कवि जयवंतसूरिओ पण शीलवतन। महिमागान अर्थे प्रस्तुत रासनी रचना करी छे. Jain Education International (७) विषय परत्वे जोइओ तो रासनेा विषय शीलवतीनु चरित्र आलेखवाना छे. आम तो कविना हेतु शीलने महिमा दर्शाववाना छे अने ते माटे शीलवतीना चरित्रनुं निरूपण करे छे. कविए आ कथानुं वस्तु जैन परंपरामां प्रख्यात एवी शीलवतीनी कथामांथी लीधुं छे. आ कथा आपण सर्व प्रथम प्राकृत ग्रंथ 'कुमारपाल प्रतिबोध' अन्तर्गत शीलने। महिमा वर्णवता अक दृष्टान्त लेखे प्राप्त थाय छे। अने पछी ते संस्कृत, प्राचीन गुजराती भाषानां कथा ग्रंथोमां मळी आवे छे. कवि जयवंतसूरि प्रथमवार गुजरातीमां रचे छे ते एनी विशेषता छे. For Personal & Private Use Only (८) धर्मोपदेश के धर्मप्रचार में जैन रासनु प्रधान लक्षण हतुं तदानुसार अत्रे पण कवि जयवंतसूरिए शीलनेो महिमा गाई अंते वैराग्यना बोध आप्या छे. आम 'शृंगार मंजरी' रास स्वरूप विविध लक्षणो धरावती होई तेने आपणे 'रास' कहीशु. ६ www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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