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________________ (४०) . श्री हीरालाल कापडिया९. श्री भारती वैद्य१० इत्यादिले तेमज हिंदीमा डा. दशरथ ओझा, विश्वनाथ त्रिवेदी १२ इत्यादि करी छे. आ बधी रासना स्वरूप अने बंधारण विषेनी चर्चा-विचारणाना संदर्भमा 'शृंगारमंजरी' एक रास तरीके मूलवणी आ प्रमाणे करी शकाय. (१) रासनो प्रारभ सामान्य रीते सरस्वती देवी के तीर्थंकर के गुरुनी वंदनाथी थतो. तदानुसार कवि जयवंतसूरिए पण काव्यनो प्रारंभ सरस्वतीने प्रणाम करीने का छे. चंद्रवदनि चंपकवनी, चालती गजगत्ति, मयणराय-मंदिर जिसी, पय प्रणमू सरसत्ति. १ आ पछी कवि अलंकारमंडित वाणीमां सरस्वती देवीन वैभवी वर्णन आपे छे. सेोविन-चूडि करि धरि, उर वरि, नवसर-हार, खलकित साविन-मेखला, पयि झांझर झमकार. २ वेणी-दंड प्रचंड से, जिसु शेष-भुयंग, अंग अनग अभंगनु, नाग सुरंभ समग. ३ अने त्यार बाद कवि गुरुने प्रणाम करता कहे छे. सहिगुरु चरण नमूनिसि-दीस, जेहथी पहुचई सकल जगीश, जेहथी लहीई धर्म-विचार, सकलशास्त्र सद्गुरू आधारि. १० वळी कविओ पोताना गुरू अने गच्छ विषे माहिती आपतां जणाव्यु छे के, वडतपगछि अति महिमावत, श्री विनयमंडन उवझाय महंत, शीलिं थूलीभद्र सरसति बुद्धि, गौतमनी परि लब्धि प्रसिद्वि. १४ वळी कबिओ का व्यार'भमां ज कवनना वस्तुनो निर्देश को छे. जेमकेते सहिगुरूना प्रणमी पाय, जयवंतसूरि अक चित्तई थाई, ग्रंथ करुं शृंगारमंजरी, बोलू शीलवतीनू चरी. १७ ___ आम आपणे उपर जोय तेम कविओ रासना प्रारभमां सरस्वतीने प्रणाम करी ते पछी गुरूने प्रणाम करी, ते पछी गुरू अने गच्छनी माहिती आपी छे. वळी काव्यना विषयनो पण निर्देश को छे जे 'रास'ना लक्षणने अनुरुप छे. (२) सामान्यतः रासना अंते काव्यपठननी फलश्रुति, कविना गुरु अने गच्छनी माहिती तथा कविनो स्वल्प परिचय आपवामां आवतो ते प्रमाणे अत्रे कवि जयवंतसूरि पण काव्यना अंते शीलनेा महिमा गाता कहे छे. दिनि दिनि उदय हुइ घणउ, सघलइ जय जयकार, ओ सवि महिमा शीलनु, मानइ सवि भूपाल. २४०१ शीलवती चरित्र करी, सधलई वखाणिउ शील, भवीयण पालु एक मनि, जिम पामु सुख-लील. २४०२ ९ प्रो. हीरालाल र. कापडिया, श्री. जैन सत्यप्रकाश, अमदावाद १९४६. १० डो. दशरथ ओझा अने दशरथ शर्मा, रास अने रासान्वयी काव्य, वाराणसी १०४०, प.१-९२ ११ भारतीय वैद्य, मध्यकालीन राससाहित्य, मुंबई, १९६६, पृ ६५-१०६ १२ अब्दुल रहेमान कृत, संदेश रासक, संपा. हजारीप्रसाद द्विवेदी तथा विश्वनाथ त्रिपाठी, मुंबई, भूमिका, १९६०, पृ. १-१३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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