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जयवंतसूरिकृते
हंसा कमलिणि वेलडइ, सहइ बग-पगह प्रहार,
तरुणी करिणी वेधडइ, परवसि रहइ बंधन सहइ,
सही वाहाला नेहडइ, दुरियन वचन -विकार. १४७२ मूंकइ विंज गयंद, दुखु लता नेह-कंद. १४७३
हंसा किहि कदमि रमइ, कारण वसई रमंति, कोमल कमल सनेहडइ, मइल-पगुं सहंति. १४७४ वरिवइरीनिं सेवोइ, कीजइ नचुं काम, सहीइ जग जग बोलडा, वाहाला केरइ नांमि. एह जाणो सार्थपति, राय तगो करइ सेव, भूपति भोलइ भावि पणि, तेहसिउं मिलइ सदैव. १४७६ पय पाणि परि प्रातडी, अधिक आगइ ते विण न रहइ अब घडो, एक हंस दो काय. १४७७ भाति पडी पटुलडइ, किमहि न जूइ थाइ, तेहवी उत्तम प्रोतडी, जेहवो कंबलि राय.
राय,
करेइ साथि,
एकज
पहिली घगी थोडी पछ३, जिम विहाणानी छांह, तेहवी दुरियन प्रीतडो, विवरिया अवरोह. १४७९ वड - अंकुर गंग - जल, सज्जन तणा सनेह, पहिलं हुइ थोडला, पछ अधिका छेह १४८० अति परिचयथी सार्थपति, राजा अंतःपुरि आवइ सदा,
वलगा
तां लगइ तवे सवि
१४७५
चिति चित्त न जां मिलइ, लज्जा-पड जव उपडि, कृत्रिम वचन सनेहडु, जांबि मनसि नवि मिलइ, नेह वचन तां विनय तां साची प्रीति न जां मिलइ, चंद कलंकी सिरि धरिउ, जिहां मन मानिउं आपगडं, इम करतां दिन केतलइ, भूमिहर केरुं ठाम, पातालसुंदारे जिहां वसई, ते जागिर अभिराम १४८६ मनि आणंद थयुं घगड, आवो निज अवासी, निज धइथी भुंइरा लगइ सणंग खणाबी सार.
अंतर थाइ, परगट थाइ .
इश्वर तिहां कुग
१४७८
हाथि. १४८१
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तां दाखवइ छयल्ल, तां मनि हुइ ससल्ल. १४८३ तां भय तां लग्नि लाज, तां लगइ हुइ
अगाज. १४८४ कंठि -नाग,
राजा शंक. १४८५
१४८२
१४८५
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