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शंगारमंजरी
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जे जस उपरि एक-मन, जां ते तस न मिलंति, खप-जप कोडी गमे करी, तां ते केडि न तिजंति. १४८८ चडइ सराडइ जां लगइ, काज न दैब विशेखि, तिम तिम धीर तणइ मनि, उछा हुइ सविशेखि. १४८९ अगनि माहि जंपावोंइ, तरीइ सायर - नीर, नथी दुल्लंध सनेहनि, मरणां गमीइ शरीर. १४९० जेहनूं मन जेहसिउ हुइ, तीह तस वत्त सुहाइ, अवर वात विख-वेलडी, सुणतां चित्त उल्हाइ. १४९१ गय वाडी गिरिं भीतडी, वयर कपाट करंति, हरि-पाहारी दोवारि सोह, रत्ता तुहि मिलंति. १४९२ जे जेहनु अरथी हुइ, ते तस काढइ केडि, भुख तरस भय नवि गणइ, नेटि करइ नीमेडि. १४९३ आसा-लबध पतंगिया, दीवइ पडी मरंति, वेध विलूधां मांणसा, मरणां-भइ न बीहंति. १४९४ कुंजर-कन्न पहारडइ, रोइ भमर अपार, के तूं बीहसि मरणथी, जउ रस-चाखणहार. भमर भटक्की उसरइ, कां केतकि कंटालि, मरवू छइ एक जि वरां, विकुण गमइ गमार. १४९६ भमर बंधाणो कमलमां, थरहर कंपइ काइ, सुगुण सुवेधा जउ मिलइ, वरि मरी जइ तांह. १४९७ जे सबंध हवु हविं, ते सवि सुणु एक चित्ति, राजा वीसारई रहिउ, न लहइ घूरत मित्त. १४९८ एक दिन रायवाडीइ, पुहुतु क्रीडा काजि, सारथपति नइ मुद थयउ, जांणे लावू राज. १४९९ वात वसी जे जेहनि, तेहनि तेहजि ध्यान, त्रिभुवन देखइ तेह मय, नव नव करइ बिनाण. १५०० गयुं सुरंगि भूमिहर, ते अवसर जाणेविं, सूती दीठी सुंदरी, वर्णन . कहूं संखेवि. १५०१ त्रिभुवन जीतूं रुप गुणि, तेह भणों मयणेण, खांडु उघाडउं दीउ, गोरी वेणि छलेण. १५०२ गोरी चंदन-छोड जिम, वेध विलूधा नाग, वेणी छलि सेवी करइ, झलकइ सिरि मणि-चाक. १५०३
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