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________________ १६६ Jain Education International जयतवंसूरकृत सुविण मंत बलिहारडी, पज्जन्तं इयरेण, क्षणमा बालां वेगवां, अकरसिज्जइ जेण. २२५६ रे सखि सुणि मिं पिउडर, दोठउ सुपन मझारि, थोडामा प्रोउ आवसइ, अणइ सुपन विचारि २२५७ हवई अरिमर्दन भूधणी, मोडी वइरो - माण, इरो - दल चकचूर करि, देसि मनावी आण. २२५८ सपरिवार पाछा बलिया, अजितसेन नइ राय, निज मंदिर भणी आवता, ऊलट अंगि न माइ. २२५९ मन भमता भागइ नहीं, हेइडु दइ अति हेलि जिहां आपणां वाहलां वसइ, ऊजातां तिणि देसि . २२६० वाहला दरशन दूरि छउ, सुख कहि न जाइ, तस गामह जे रुखडा, ते दीठि सुख थाइ २२६१ दूरि थकी ऊमाहलउ, हैइ तेहवु न होइ, जेहवउ आवइ दूकडां डग जोअण सु होइ. २२६२ हीरे जडावुं चांचडी, सोनइ मढावू पंख, कागा तोरी बलिहारडी, जु मुज आवइ कंत. २२६३ रे सखि सुणि अंक वत्तडी, दुखुई दाजइ आज जि जीमकइ पीउडु, करसइ विरइनु छेह. २२६४ देह. हुँति २२६५ ऊभवि सही मागइ वधामणी, बहिनी आविउ कंत, आपुं नवलख हार तुझ, जउ ओ साचु भुज-तोरण बांधी रही, टोडे जोइ प्रोउ कंकण- चूडी पडण- भइ, तृपति न पाइ आंखडी, वास की घर आंगण, बइसणि उंबर - पाट. २२६७ घम घम से बिन - घूघरी, चामर वन्नरवालि, आवी पीउनी सांढडी. भरती जोयण पाय. २२६८ जोतां सज्जन वाट, वाट, हाथ. २२६६ मरकलडइ मन मोहतां, हल्लुष्फल हरिसेण, हैडू विहसइ वल्ल्हां, जब दीठां नयणेण. २२६९ भमरा वाहाले फूलडां, वहालां विंझ गयांइ, सज्जन वहालां लोयणां, वाहाला गीयमीयांइ. २२७३ चहाला दीठि दूरियो, नयण-कमल त्रिह संति, देखी चंद चकोरडा, नलिनी जिम विकसंति. २२७१ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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