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________________ १५८ Jain Education International जयवंत सूरिकृत तुझ गामइ कागल नथी, कि मिसि नथी त्रिलोकि, कइ खप नथो अद्यारडु, लेख न लिखउ अक . २१३० जर तुह्यनइ आसु थयुं, अह्यनि लिखतां लेख, तु को हाथि संदेसडु, सिं न कहाविउ ओक. २१३१ कागल मिसि लेखण तणी, जउ लिखतां हुइ हाणि, तु संदेसु कहावतां, तुह्य सिउं थाइ अतयान. २१३२ जउं एक आंगल चीठडी, मोकलतां घरी नेह, वालत चउगणी गोरी तुज विरहानलं, मुज मन बलइ अपार, कागल जल-करि मोकली, करये माहरी सार २१३४ भमरु समरइ मालती, हाथी समरइ विंजी, मरुथल समरइ करहडु, तिम समरुं हूं तुज्झ. २१३५ पाड न राखत एह. २१३३ रागवती मन-मांडवइ, वाहाली राखे प्रीति, नेह-जलिं नितु सोंचये, जिम नवी सूको जंति. २१३६ वलतु कागल मोकले, जिम मनि हुइ संतोष, गोरी तूं जउ नहीं मिलई, तां नहीं भागइ सोस. २१३७ कागल देखी कंतनु, गोरी थइ रलीआति, हृदय - कमल तव विहसोउं ऊलट अंगि न माति २१३८ सज्जन सइ हथि भेजीउं, नेह धरी मन मांहि, जिमि जिमि ते वलि जोईइ, तिम तिम ऊलट थाइ. २१३९ सज्जन तणा संदेसडा, सुणता तृपति न थाइ, वाली वालो पूछतां, हैडु हरख वहंति. २१४० किहां हूंता कहींइ मिलिया, सिउं कहाविडं तुझ साथि, काइ मुजनइ संभारतां, पूछी माहारी वात. २१४१ रूडा सुजन संदेसडा, वइरोनी विपरीत, वाली वाली पूछतां, हेजई हींसइ चींत. २१४२ जिम जिम वांचइ नारि, कागल ऊवेली कंत, तिम तिम मनि गुण सांभरइ वरसइ आंसू सु-धार. २१४३ सखी उवाच तेन लख्या सुलेखमां, प्रगट नवां वाचइ जेह, शीलवती उवाच - नेह गया सज्जन तणा, पंथ निहालू तेह. २१४४ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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