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________________ १२२ Jain Education International जयवंत सूरिकृत ससनेहां किम जाणीइ, जां नवि आवइ नित्त, केवल नयण सनेहइ, तनु अवटावइ नित्त. गोरी मुहि केतूं कहूं, तूं नवि जणइ सार. इन ए वेदना, आलालुंबु लाइ रही, मरणां दुःख एकवारनूं, वरि वछ - नाग अफीण दइ, जउ नुहइ मिलवा मन्न, वरि हूं मरु सुवन्नि. १६३६ विख खाइ तुज उपरइ, D म हिसिउ एकइ वार. १६३४ गोरी वरि मुज मारी. विरह तणउ लखि वार. गोरी जउ तूं नहीं मिलइ, तु हूं हत्या देसि, कंइ झंपावसि नदीयमां, कइ बिख खाइ मरेसि. १६३७ लीवी शोखि गोरी ताहरइ वेघडइ, जे दुःख ते जाणइ मन माहरं, कइ भूख गइ निद्रा गइ, काया ए दोखनी वैद्य तूंह जि जाइफल यौवन एलची, तज विरहाली आमला, जीभई वयण न उपजइ, लाजई नवि बोलाइ, गोरी तुजस्युं वेधडु, कहिया पखइ न रहिवाइ. १६४१ छंइ, तुजथी उपनु दोख. १६३९ बोलि एक पूरि न हुंसि, अति विस दहइ अति हंसि. १६४० १६३३ जाग छइ यौवन जसइ, काया लाहु तुहि न लिइ, गोरी अह्मनि खप नथी, सुंदरि जे जेहवूं एहवं जागो जार सिउँ , फल पाकां यौवन्न-रस, ए लीजइ ततकाल, कुही पses कालि के, कुण करसइ संभाल. १६४२ अह्म सरखां साठि सोभागिण हवइ, सहसे जारे इन्द्र पणि ". १६३५ एक यौवन नइ सेलडी, ए जां हुइ रस पुरि, तां सहु वाहइ हत्थडु, कंचुं छंडइ दूरि. १६४३ गौरी यौवन तिम गलइ, जिम कर जल टींपेण, दस दिन लाहु लीजइ, सहू संभारइ जेण. १६४४ सहूँ निसि दीस, जाणइ जगदीश. १६३८ अह्म सखाइ होइ, आहा नोठर लोय. १६४५ वली वली कहिइ तोइ, जंवारडु, परउपगारई होइ. १६४६ सुयेण रंभ समान, अर्धासनि दिइ मान. करइ, ते तेहवूं पामेइ, सहु तिम लाहु लेइ For Personal & Private Use Only १६४७ १६४८ www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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