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शृंगार मंजरी
हवू सोइ, कहियो कोइ . १६४९ अारा बोल,
दान दीइ जे जेहवू, पामइ इम जाणी यौवन तणां, नाम गोरी जे मानतां नथी, हवडां ते क्षणि क्षणि संभारसिइ, यौवन गइ निटोल. १६५० तव को साहामूं नहीं जोइ, जव जासइ यौवन, गोरी हठसिउ एवडउं, अलवि दिइ मुज तन्न धन हुइ तु संचीइ, यौवन संचिउं न जाइ, अधिकुं वाधइ बावरइ, संचीजइ कोइ. १६५२ गोरी मुहुडइ नांम कहसि मागिउं आपि न अंग, पाइ पडी मोंनति करु, दुक्खिई दाजइ अंग. दीन वचन मिं तुज चिवियां, गोरी जेतां आज, जउ ते कहुं तो रायनिं तु ते आपइ राज १६५४ तूं न लहइ भाव मन तणउ, मिं लाजइ न कहाइ, गोरी मुज मन- आसडी, फलसिइ केणी उपाय. विचित्र वहइ लाज - तलावडू, कुणहि न लाघु थाक, किम करसिउं गुण गोठडी, तू चकवि हूं चक्रवाक. गोरी मुज मन डगमगइ जीव पडिउ अंदेसि, हूं मागू तुज कन्हइ, तेहनी ना म कहे सि. १६५७
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१६५१
वेध विलाइ झूरि हवइ, चलती न करइ वीज पडु ते उपरइ, जीवितनां
१६५३
आपइ आपणु,
मागिउ साचां वाहाला तेह, बोल उवेखइ नवि मिलइ, तेहसिउं किसिउ सनेह. १६५८ मागणहारा ते मरु, मागइ नहीं मुह जोइ, मूरखडां चिंतामणी, कादवि घालइ कोइ १६५९ ना कहितां लाजइ नहीं, नावइ कुहुनइ काजि, रान- तलाव सरीसडां, तिणि माणसि सिउ काज. १६६०
१६५५
१६५६
जे नितु नितु नयणे हणइ, मन साथइ न मिलंति, ते मांणस अंत्यज समां, दीठां दूरि टलंति. १६६१
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सार,
लेणहार. १६६२
गोरी वेध न लाईइ, अहवा जउ लाइ, धोरी - सिरि भार जिम, अधवचि नवि महेलइ. १६६३
सहीइ जण जण बोलडा, मन रचयति चंग... चंचल चित्त न कीजइ, घरोइ सरखं
अंग, १६६४
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