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________________ जयवंतसूरिकृत सायर खारु रवि आकरउ, कामधेनु पनु मणि पाथरु, काष्ट-रूप सुरतरु जाणीइ, सहिगुरु सम किम वखाणइ. १२ हूं मूरख जे अक्षर लहूं, ते महिमा सद्गुरुनु कह, ऋतु वसंति कोइली सर होइ, अंब-मंजरिनुं महिमा सोइ. १३ वडतपगछि अति महिमावंत. श्री विनयमंडन उवझाय महंत. शीलिं थूलिभुद्र सरसति बुद्धि, गौतमनी परि लब्धि प्रसिद्धि. १४ चंद्रकला जिम अति उजली, जस कीरति चिहुं दिसि झलहली, सौभागि जिम श्रीवसदेव. अहिनसि नरवर सारइ सेव. १५ साकर दूध सेलडी सद्राक्ष, जेहवी मीठी आंबा-साख, तेहबू जस वाणी-पीयूष, निर्मल-चंद्र सुचंद्र मयूख. १६ ते सहिगुरुना प्रणमी पाय, जयवंतसूरि एकतिई थाइ, ग्रंथ करुं शृंगारमंजरी, बोलूं शीलवतीनूं चरी. १७ शास्त्र करतां दोहिलां, दोहिला वक्ता होइ ते पहिं श्रोता थोडिला, महीमंडलि को जोइ १.८ सुजन विस्तारइ दहु दिसिइ, कवीयण सरस प्रबंध सरूवर प्रसवइ कमलनइं, समिर वधारइ गंध. १९ सालंकार सुलक्षणि, सरस अनइ गुणवं सुकवी वाणी-सुंदरी, चमकइ चित्त हरंति. २० बंकिम चित्त सुवन्नमय, सुकवि-वयण सुरम्म, पथ चमकइ चितडूं हरइ, गोरी-नेउर जिम्म. २१ बांकां कठिन ससामलां, कुकवि-वयण विकार, पइ पइ हह अलखामणां. जिम अय-संकल भार. २२ देखी वाहलां माणसां, कुकवी-वयण सुणंति. नव संभुक्ता वहूअ जिम, मुह मचकोडवि जंति. २३ गाहा महिला हैडलूं, अणरसीइ न जणाइ, रसीआ जिम जिम केलवइ, तिम तिम अधिकां थाइ २४ वहालां तणे उलंभडे, कवीयण वयण विलासि, सीस धूणेविंण हैहलूं, मरकलडे करइ हास २५ गुणतां सजन केरडा, गाहा रस सविलास, जोतां नीसासइ बलइ, सुणतां दिइ उल्हास. २६ सरस सुभाषित समितिमां, सहू को समई भणंति, तस हैडूं परमत्थ-सिउ, ते को छयल्ल लहंति. २७ मुरख पभणइ छयल्लमां, लक्षण छंद-विहीण, सिर--छेदलं जाणइ नहीं, भमूहि कोदडिं दीण. २८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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