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जयवंतसूरिकृत
शृंगारमंजरी
दूहा
चंद्रवदनि चंपकवनी, चालती मयणराय मंदिर जिसी, पय प्रणमूं
ह
सोविन - चूडी करी धरी, खलकति सोविन - मेखला, वेणी -दंड प्रचंड ए, अंग अनंग अभंगनु, पीन - पयोधर भार भर, विकसित-पंकज नयणलां, दाडिम - कुली जिम दंतडा, नाशा दीप- शीखा जिसी, कोमल किशलय कमलकर, घन पीनस्तन जघन - युग, कमल-कमंडल करि धरणि, सारदसेवक सुखं - करणि, सचराचर व्यापी रही, गुण अनंत सरसति तणा, सरसति पय-पंकय नमी, प्रणमुं ना-दिणावि दक्खवी, टालिउ
सहिगुरु चरण नमूं निसिदीस, जेहथी लहीइ धर्म्म- विचार, खीणउ झीणउ जड सकलंक, दिन दिन चडत कला अकलंक,
उरवरि
नवसर - हार, पयि झांझर झमकार. २
गजगत्ति, सरसन्ति. १
ढाल १ चोपानी
जिसु शेष - भुयंग, नाग सुरंग सभंग ३ कटि तटि झीणउ लंक, धणुह जिसिउ भ्रूवंक ४ अधर प्रवाली - रंग, नयणे जित्त कुरंग. ५ काने कनक-ताडंक, कयली - कोमल जंघः ६ धरणि प्रसिद्ध सनाम, करणि गति अभिराम. ७ गुण-माणि नउ भंडार, कहितु
न लहू पार. ८
श्रीगुरु -पाय, मोहनु ठाय ९
जेहथी पहुचइ सकल जगीश, सकल शास्त्र सद्गुरु आधारि. १० किम कीजइ गुरु तुल्य मयंक, कुमत राहुनु भंजइ बँक. ११
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