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________________ शृगारमंजरी गाहा गीय सुकामिनी, तुरीयां रस न लहंति, तीह मुक्खह सो डंडडु, तेहनिं ते नवि हुति. २९ मुरख न लहइ भावके, कवीयण निनिदंति, भंडानई अलखामणा, कोडी कीडा हुति. ३० गाहा गीय सुमाणसह, रस नवि जाण्या जेण, तिणि मुरखि निज दीहडा, नींगमीआ . आलेण. ३१ सोदु सुकवि बीयणलां, जो गुण करणि समत्थ, भाव न जाणइ मुरिखां, का दूसइ कवि सत्थ. ३२ मुरख न लहइ भावके, काढइ कवीयण दोस, कामिनि शुष्क-फ्योहरा, सोइ सिउं घरइ रोस. ३३ मुस्खनि जउ नवि गमिउ, तउ सिर निरगुण सत्थ, कमल तिजिउ सालूरडे, तउ सिउं ते अकयत्थ. ३४ वाणी सहिजिं सर सजउ, दोखी किसिउं करंति, एक छंडइ लक्ष आदरइ, वइरी खीजि मरंतिं ३५ एक उलूकह नवि गमिउ, उगिउ दिणयर सार, तु सिउं सुरय-गुण गयउ, सघलइ हूउ विस्तार. ३६ किहि एक व्यास समास किहि, सोहइ सरस प्रबंधि, गिरिमा सोहइ गोर-थणि, अणिमा लंकह संधि. ३७ गुप्त न गूजरिथण समा, पयड स दाहिणि जिम्म, गुप्त विपयडवि अत्थवर, सोरठी-थण सम्म. कर जोडनई वीन,, कोइ म धरयो खेद, सवि सुकवीनु दास हूं, एवी वाति नहीं भेद. मित्तह उदयिं विहसीइ, दोसायर न सहति, सुगुणा पंकजनी परि, सज्जन चरित जयंति. ४० सारद सहिगुरु सुकवि जन, प्रणमी चरण-सरोज, शील-चरित्र वखासिउं, जिम सहुनइं हुइ चोज. ४१ ढाल २ प्राण राग : केदारु ( श्रेणिक रायवाडि चढियो, अ देशी ) पृथिवीय मंडल सयल कहीइ, प्रथम जंबूद्वीप, सवि द्वीप मांहिं मूलगउं, जिम वृक्ष मांहिं नीप, तिहां चित्त पवित्र सुसत्त खित्तह, प्रथम भारत खित्त, तिहां नयर नंदन नाम निर्मल, चिहुं खंड मांहि विदित्त. ४२ . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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