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________________ १६८ अयवंतरिकृत हैडू हरखि गहिगहइ, साचां सजन देखि, गुजर-वाइ पांनडी, परिमल घरइ विशेखि. २२८८ कज्जल दीजइ नयणलां, दीजइ मूहि तंबोल, सांइ दीजइ सज्जनह, कायडि दीजइ चोल. २२८९ चित्त चोरी गया चोरटा, लाघा दिवसि घणेहिं, दोइ भूज पासइ बांधोंया, राख्या सिहरि घणेहिं. २२९० चांपो देतां सांइडु, सज्ज सिउं नेहेण, त्रिहुं रूपे हूउ हारडु, कंठि थकी हरिखेण. २२९१ सुलक्षण विखि लक्षणमां, सजन आलिंगन संधि, बहिरंग सबल विशेखवा, ऊतरि पुरव-बांधि. २२९२ गोरी चिंतइ चिंतडइ, कंत मिलिउ घण दीहि, किहारइ पडसइ रातडी. किहारइ आथमसइ दोह. २२९३ अण दोठइ अति उरतु, दीठइ तालोवेलि, राती सूडा-चांच जिम, अति वांकी नेह-वेलि. २२९४ गोरी पूछइ कंतइ, मुज समरता केवार, हूं तुहनइ संभारती, सहिस अठोत्तर वार. २२९५ सांज समइ सूर अथमिउ, ऊगिउ पूरण-चंद, गोरी कंत मेलावडु, हूउ अति आनंद. २२९६ कंत कहइ सुणि वल्लहो जउ तू पूछइ साच, हूं सूहनइ नवि समरतु, खोटी सो करूं लाज. २२९७ जे हेडाथी वोसरइ, ते समरी जइ नित्त, जे पणि घडीय न वीसरइ, तस समरणि सो वत्त. २२९८ गोरी कहइ सुणि कंतडा, परदेसडइ गयाइ, मुझ विरहिं दिन अतला, दोहिलइ किम गमीयांइ. २२९९ कंत कहइ सुणि गोरडी, अह्मे गया विदेसि, मि दिन जाता नवि लहिया, ताहारइ विरहि विसेसि. २३०० इम करतां गुण गोठडी, भागू हैडा-दुख, रयणि जती जाणी नहीं, मन मांहई थयु सुख. २३०१ हवइ हूं भागी विरहथी, वेयां दुखु अपार, हवइ मुजनइ ओ वेदनी, म हसिउ अकइ वार. २३८२ मीनति करीनइ वीनवउ, पंछित देजे देव, हवइ म दाखसि विरह तुं, वाहाला केरो दैव. २३०३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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