SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शृंगारमंजरो १६९ भांजिउ वइरी विरह मद, हुइ हरख आणंद, सज्जन मिलियां जव आपणां, जाणे आब्या वहाण. २३०४ दिनि दिनि सुख विलसइ घणा, शीलवती भरतार, हवइ कहूं संबंध सचिवनउ, जे आव्याता च्यार. २३०५ निज निज चरित कहियां सवे, स्त्रीइ नई भरतारि, आव्या सचिव भूपालथी, ठवीया खाड मझारि. २३०६ ढाल ४७ राग धन्यासी • (बंभण वाडि मारकलीउ, ओ देसी) केडि न लाघी रे चिहारे सचिवनी, चिंतवइ चतुर भूपाल, श्रुद्धि न पामी रे वलतो तेहनी, किहां गया बुद्धि-निघान. २३०७ चिंतडइ चिंतइ रे भूपालजी, ओ किम टलसइ रे संदेह, हैडूरे पडीउ अति डमडोलडइ, जोवराव्या निज गेहि ... दुपद अक दिन बोलइ राजन रूयडु, अजित तनि परिषद माहि, भोजन करबा तुझो नवि नहुतरिया, तुह्मो दिन अतला मांहि. २३०८ चि. वनितानइ वचनइ तव नह उतरिउ, भोजन करिवा रे राय, काइ एक लहीसइ रे श्रुद्धि सचिवनी, राय मनि हरख सु थाइ. २३०९ चि. जिमवा रे जै घरि अजितनइ, केतला परिबार साथे, अवसर जोवा रे चर आपणउ, मोकालउ ते धरणी नइ नाथि २३१० चि. मंदिर जोइ चर आवीउ, बोलइ बोलइ चर अपार, राजनजी सी कहूं सामहणी, नहीं धूम मात्र लगार. २३११ चि. रोजन चिंतइ रे अति विसमयि, दीसइ दीसइ अदभूत अह; घणे रे परिवारइ जाउं परिवरिउ, सिउ हसइ जोउ रे छेदि. २३१२ चि. अणेइ रे अवसरि चिहारइ सचिवनइ, बोलइ बोलइ गुणवंती नारि, तुह्मनइ रे काढउं हूं मे विहुरथी, जउ कहिउं करू मुझ सार. २३१३ चि. जु किमहिं तुझे माहारा बोलथी, करसिउ इतर लगार, तु वली तुह्मनि कुपमां खेपसि. बीजी वार. २३१४ चि. लेणइ रे बीहतइ सहू ए पडिवजिउ, काढिया कुपथी रे बाहारि, तेहनिं नवरावी अति उलटिं, चरचिया चंदन घन सारि. २३१५ चि. Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy