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________________ गारमंजरी १६१ वाहाला मांणसि हैडलइ, आपण दूरि रह्यांइ, दुरियन लोक तणइ भई, तू राखिउ मन माहि. २१७६ भागइ नहों संदेसडइ, मनि अलजु मिलणांइ, आंबा-फलनी आसडी, न टलइ अक्क-फलांइ २१७७ बाहलां कांइ विणासीइ, मिसि कागली असार, थोडा मांहि प्रोछयो, तुह्यो छउ प्राणधार. २१७८ डूंगरनइं नाणां घणां, अंतर दो नयणांइ, सजन मनि अंतर नथी, जोयण कोडि गयांइ, २१७९ नेह त्रूटइ दूरि गया, वाहला माणसि मन्नि, किहां सूरय गयणंगणि, किहां जलि पंकज वन्न, २१८० तलिथी विहसइ फूलडा, उपरि ससि ऊगंति, दूरि थकां जे ढूंकडां, जे मन मांहि वसंति. २१८१ जेहनइ मनि जे वल्लहां, ते तस दूरि न होइ, चंद वसइ गयणंगणइ, सायर वाधइ तोय २१८२ मोरा डूगरडे लवइ, ऊपरि गाजइ मेह, दूरि गयां न वीसरइ, सज्जन साथि सनेह. २१८३ सज्जन तणा सनेहडा, ऊगी नवी को वेलि, पान पडइ परदेशथी, जउ विणसइ तस वेलि. २१८४ वाहालां वसि विदेसडइ, विचि नइ नाला वाडि, जउ सिरि हुइ पंखडी, तु पहुचाडु रुहाडि. २१८५ पंख तणइ परमाण, वाहालां नइ ऊडी मिलइ, पंखी भला सुजाण, पंख विना नहीं माणसां (?) २१८६ भमरा विण जिम कूलडां, पंकज विना निवाण, शोभइ नहीं घर आंगण, तुह्म विण वाहाला रांन २१८७ तेहजि माणस तेहजि घर, ते सेरी ते वाट, वाहालेसर एक तुज विना, मुज मनि सरव ऊजाडि, २१८८ सुजन सुखनि कारणिं, वीसारु घणीवार, पणि तुझे वोसरता नथी, देखु नयणा-बारि. २१८५ सजन म जाणसि नेह गयु, घण दीहा रहइ दुरि, वरसह छेहडइ मेह मिलइ, नाचइ हरखि मेह मयूर. २१९० घणउं कहूंसिउ वल्लहा, तू जै रहिउ सदूरि, सुहुणामां हूं तूंहनि, नवि दखु चिहु-पहरि २१९१ २१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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