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________________ संपादकीय निवेदन प्राचीन मध्यकालीन गुजराती साहित्यमां प्राप्त रास साहित्य अत्यंत विशाल छे. पण आ साहित्यना घणा मोटा भागनु मूल्य साहित्यकृति लेखे नहीं पण अतिहासिक-सांस्कृतिक के लोककथा सामग्रीनो दृष्टि छे. आथी मध्यकालीन पद्यकथाओनी जेम रासमां पण लेोककथातत्त्वना अभ्यास माटे सारा प्रमाणमां सामग्री सांपडे छे. मे दृष्टिए अत्रे जैन कवि जयवंतसूरिकृत 'शृंगार मंजरी' के 'शीलवतीचरित्ररास' नामनी कृतिनी समीक्षित वाचना अने अभ्यास रजू कर्या छे. प्रस्तुत कृति आ कविनी काव्यमां पण अनु स्थान छे. मूल्यवान सामग्री एमांथी प्राप्त सर्वोत्तमकृति छ. अटलु ज नहीं पण जैन गूर्जर साहित्यना सर्वोत्तम मध्यकालीन गुजराती भाषा, साहित्य, समाज अने संस्कृति अंगे थाय छे, ते दृष्टिए पण ते नांधपात्र छे. प्रस्तावनामां प्रत परिचय, संपादन पद्धति, कविनुं जीवन अने कवन, कृतिनो कथासार, कथापरंपरा, शृंगारमंजरी कथानो लोककथा तरीके अभ्यास, रास तरीके मूल्यांकन अने भाषासामग्रीनो अभ्यास वगेरे विषयोनो समावेश कर्यो छे. पण मुख्य लक्ष्य शृंगारमंजरी कथानो लोकतास्विक [Folkloric ] दृष्टि अभ्यास परत्वेनुं छे. आ संदर्भमां शृंगारमंजरीनी कथा - सामग्रीमांथी प्राप्त कथाप्रकृति के कथाघटकनी तारवणी करी, ते अंगेनी भारत अने भारतबाह्यप्रदेशनी कथापरंपरामांथी जे तुलनात्मक सामग्री मळी आवी छे ते प्रस्तुत करी छे. प्रत्येक कथाघटकनो तथा एना कथारूपांतरानो अतिहासिक-भौगालिक पद्धतिभे तुलनात्मक अभ्यास पण रजू कर्यो छे. ( आ अंगेनी सामग्री विस्तारपूर्वक हवे पछी प्रगट थनार पुस्तकमां रजू करवामां आवशे). प्रस्तुत कृतिनी विविधकालनी उपलब्ध पांचेक हस्तप्रतोनो उपयोग करी एनी समीक्षित वाचना अत्रे रजू करी छे पण प्रतो अशुद्धि होवाने कारणे केटलाक स्थाने पाठो संदिग्ध रह्या छे, ते घटे गुजरात युनिवर्सिटीनी पीओच.डी. नी उपाधि अंगे रजू करेला आ महानिबंध हवे थोडाक फेरफार साथै प्रगट थाय छे. मारा महानिबंध अंगे जरूरी मार्गदर्शन अने विविध ग्रंथभंडारनी अमूल्य हस्तप्रतो मारा उपयोग अर्थे सुलभ करी आपवा बदल हु* स्व. परम पूज्य आगम प्रभाकर मुनिश्री पुण्यविजयजी महाराज साहेबनो अत्यंत ऋणी छु. महानिबंध तैयार करवामां मार्गदर्शन आपवा माटे हुं मारा मार्गदर्शक डॉ. बिपिनचंद्र जी. झबेरी साहेबनों अंत:करणपूर्वक आभार मानुं छु ं विद्यावाचस्पति श्री. के. का. शास्त्रीजी तथा डॉ. हरिवल्लभ भायाणी साहेब ए बे विद्वानोए सहृदयता अने आत्मीयताथी मने मारा शोध-कार्यमां, मार्गदर्शन तथा संदर्भ सामग्री अंगे सहाय आपी उपकृत कर्यो छे ते माटे हुं कृतज्ञतानी लागणी व्यक्त करु छ ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावादना अध्यक्ष Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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