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________________ (४५) परिचय थाय छेपण कथानेा प्रवाह अत्रे लगभग स्थगित थई जाय छे, जे अत्रे कवित्वनेा उन्मेष प्राप्त थाय छे ते अपेक्षाओ क्षंतव्य छे. शीलवती अजितसेनने विदाय आपी आंसु सारती पाछी फरे छे. अत्रे कवि विरहिणी शीलवतीनी हृदयनी व्याकुळताने सुरेखताथी आलेखे छे. ओमां कवि विरहनी मूक वेदनाथी आरंभी काळझाळ पीडा सुधीनी स्थितिने अभिव्यक्ति अर्पे छे. आ आलेखन कंईक प्रस्तारी [ २७३ - ११११] बन्युं छे. कथाप्रवाह लगभग थंभी जाय छे. पण कवि विरहणी शीलवतीनी मानसिक विहवळताने विकळतानु जे वर्णन करे छे ते शीलवतीना आंतरमानसनी स्थितिने छती करे छे. अत्रे केटलाक स्थाने शुद्ध कवितानु पण दर्शन थाय छे. जे अनुपम भावनिरूपणनी कविनी मनोरम कलाशक्तिना पूरता परिचय आपी शकवा समर्थ छे. आ पछी कथाप्रवाह गति पकडे छे सैन्य आगळ प्रयाण करी ओक जग्याओ विश्राम ले छे. त्यां अजीत सेन पासे अम्लान पुष्प जोईने राजानी ते अंगे पृच्छा, अजितसेन द्वारा राजाने शीलप्रतीक अंगे सर्व हकीकत जाण्या पछी राजाना मनमां शीलवतीना शील अंगे उपस्थित थयेल शंका, अने आनी चर्चा विचारणा अथे पोताना चार मंत्रीओने बोलावी तेओने आ सर्व बिना जणाववी, मंत्रीओ द्वारा पण स्त्रीनी चंचळता पर टीका करी शीलवती अने शील- प्रतीक परत्वे शंका उपस्थित arat अने स्त्रीओ केवी अविश्वासपात्र होय छे. ओवी पोतानी दलीलना समर्थन मां 'पातालसुंदरी' नी 'स्त्रीचरित्र निरूपती उपकथा कहेवी इत्यादि कथांश कवि अक पछी एक शीघ्र गतिले रजू करे छे. पण मुख्य कथाप्रवाह मध्ये आवती उपकथा खासी साडीसातसा [१३१८ - २०५९ ] कडी राके छे. जेथी मुख्य कथाना प्रवाह ( छेक २०५९ कडी पर्यन्त ) रोकाइ जाय छे. वस्तुसंकलननी दृष्टि आ थोडोक प्रमाणभंग लेखाय, पण जैन रास साहित्यमां आ वस्तु सामान्य गणावी शकाय अम छे. आ कथा आपवानुं कथागत प्रयोजन तो राजा अरिमर्दन मनमां शीलवतीना शील अंगे शंका उपस्थित करवानुं छे पण साथे साथे अक कथामां बीजी कथा आपवानो अने ते द्वारा अकी साथे बे कथा आपवानी तक कवि झडपे छे. वळी कविओ शीलवतीना शीलगुणने आवी व्यभिचारी स्त्रीनुं पात्र रजू करीने कविए शीलवतीना शील गुणने वधु ओप आप्यो छे. जे कविनी वस्तुसकलना अने पात्रालेखननी साची सूझनुं दर्शन करावे छे. आम उपकथा पण मुख्य कथाने सारी रीते उपकारक नीवडे छे. आ पछी कथाप्रवाह पूर्ण वेगे आगळ वधे छे राजाना आदेश अनुसार चारेय मंत्रीओनुं शील - खंडन अर्थे शीलवती समीप आववु चारेय मंत्रीओ द्वारा दुतीओ मारफत शीलवतीने भोगेच्छा अंगे संदेशो मोकलवो, शीलवती द्वारा चारेय मंत्रीओने रात्रिना जुदा जुदा प्रदेरे पोताना गृहे आववानो संकेत आपवो, संकेतानुसार ओक पछी एक आवता मंत्रीने वाण विनाना पर्यंनी प्रयुक्ति वडे गृहना उंडा गर्तमा गबडावी देवा इत्यादि कथा विगतो कवि झडपथी आपी जाय छे, जो के आनी बच्चे बच्चे कवि दूतीना प्रकारों अने तेना कार्य अंगे तथा परदारागमनना दोष अंगे दूहा द्वारा निरूपण करे छे नांधव जोईओ. आ पछी कथावेग कईक मंद पडे छे. वर्षानुं आगमन थता विरहिणी शीलवती जे जे व्याकुळता अनुभवे छे भेनी वर्षाऋतुना वर्णननी पोटिकामां सुंदर रीते अभिव्यक्ति करे छे. पछी अजितसेन शीलवतीने पत्र लखे छे जेमां कवि अजितसेनना शीलवती प्रत्येना उत्कट अनुरागने वर्णवे छे. शीलवती आना प्रत्युत्तरमा पत्र लखे छे, जेमां कवि शीलवतीना हृदयना अटपटा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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