SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३४ जयवंतसूरकृत हठ मंडेइ अधर - प्रवालि, वर - चित्रित जे पटशालि, मनमोहन अति सुविशालि सा प्रीसणि आवी बालि. १८१८ करि सोविन करवी झालि, पुहुती प्रगट सभावि चालि, तिहां आसन मेहलियां ततकाल, प्रीसइ बिपहुर करेइ कालि १८१० अति सुंदर सोविन - थालि, सहू बइसइ हाथ पखालि मोदी आवी डालि कपूर-वासित मनगमती मसूरनीं दालि, जे सुरभित धृत भव-भूख शमई विकरालि, छूटी तिहां सरसीनां जिम हुइ घडनालि, जाणे जिम खलहल जल वहइ खालि सोविन - सालि. १८२० नीकालीं, धृत- नालि १८२१ वरसेइ मेह अकालि तिम प्रोसइ चित्त रसालि. १८२२ शत सालणे बांधी पालि, प्रीसइ सुंदरि सा पाताल, चित्ति चमकिउ ते भूपालि, सीस धुणेइ रूप निहालि. १८२३ ढाल ३२ राग केदार गुडी [ श्रेणिकराय हुरे अनाथी नीग्रंथ, अदेशी ] ते देखि भूपति चोंतवइ, पातालसुंदरि जेह, तिहां थकी किम आवी सको, मान मोटर रे पठइउ संदेह. १८२४ भूपालजी चिंतइ हैडा मजारि, देखी देखी प्रीसंति नारि, थयु थथु रे चंचल ते वारि दूपद, आंचली. पाताला धरि मेहली करी, हवडां जि आविउ अत्र, जे सार्थपतिनी कामिनी, ते तस नयन तिल सर्वप समी, अथ रूप लक्षण समां, दीसाइ Jain Education International सरखी रे रुपि विचित्र. १८२५ भू. दीसीइ सारथ बहूअ, दीसइ रे माणसां बहूय. १८२६ भू. ते वात निश्चय जाणिवा, भूपति करइ उपाय, प्रोसी जातां पूठिथी, नांखइ रे हो तीमननी छांट. १८२७ भू. ते धूर्त भूपति चित्र ही, चीतवइ हैआ मजारि, तु छइल पणि मुज आग्रलि, पय-रेखा रे सरि सविचारि. १८२८ भू. निज काज करवा सीयल, जण लहइ सज्जन मुग्ध, णि जमाया निम्मिया, नवि बोली रे विणासइ विदेव, १२८९ भू For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy