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________________ शृंगारमंजरो यत साजन दीठउ आवतु, त्रूठउ मोती-हार, लोक जाणइ मोती वीणइ, नमी नमी करइ जुहार. ४४२ मौन करी आगलि रही, नयणां करसिउ जंपि, प्रीउ चालंति बालिका, कारण जाणिउं कंपि... ४४३ . हृद्यालिकाजाति, केचित्तुंगढजातिप्राहुः ३७. अजित उवाचरातिइं आवइ दीसिं जाइ, शीतलकर मोरइ तनि वाहइ, वली वली जोतां दिइ आनंद, कहु ते वालिंभ नाजीचंद ४४४ शीलवती उवाच-नाजीचंद्र, ३५ अजित उवाचमधुर१ सरइ बोलइ मनहरइ, सुगुण सुवैध निज खोलइ घरइ सूर-नर तेहनिं ध्यानि लीग, कहु ते वनिता नाजीवीणि. ४४५ शीलवती उवाच-नाजीवीणि. अजित उवाचउंचा अणीआला बलवंत, मुहि काली तलि गोरा हुंति, नीसरइ है९ फोडी भल्ल, कुहु ते पद्मोघर नाजीभल्ल ४४६ शीलवती उवाच-नाजीभल्ल, ३६. अपघुतिजाति ३८. सुखीआं अमीअ तलावडू, दुखीआं विति साल, अगनि शिखा पीउ विरहियां, उ सखि चंद रसाल. ४४७ रूरीरांररीरराररु, रूरीरांरिंरार, रर रिरि रूरिररिरां, रोररिरं ररा सर. इत्यादि मूलदेवी, सहदेवी, करपल्लवी, नेत्रपल्लवी, अंकपल्लवी, बिंदुपल्लवी, नादपल्लवी, वस्त्रापल्ली, अषधपल्लवी, धान्यपल्लवी, वर्णपरावर्तादि भाषां बिंदुमती प्राहु, इंछालिपि प्रभृतीनपि ३९. अजित उवाचरावण-रिपु-सेवक-पिता-अरि-स्वामी-सुत तास, तस वाहन सर सांभली विरही मेहलइ नींसास. ४४९ शीलवती उवाच-मयुरवाणी. त्रंबासुत-पति-प्रियतमा वाहन, मध्य-विभागि, जल-सूअ-सूअ-सूआ-वाहनह, गमनि उपाइ राग. शीलवती उवाच-सिंहलंकी, हंसगमनी. १ मधुर रसरइ. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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