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________________ 3h जयवंतरिकृत अजित उवाचधर्मवंत पणि प्राणहर, गुणवंत पणि छइ वंक, सदवंसि पणि अकुलीन नर, बिहु-कोडे पणि रंक. ४३० शीलवती उवाच-धनुष. अजित उवाचछिद्र सहित पणि बहु गुणवंती, करइ मेलापक पणि नवि दूती, लोहमइ पणि वेसि न होइ, पुरुष सहित सा नारी कोइ. ४३१ शीलवती उवाच-सुइ-दोरू. इत्यर्थ प्रहेलिका, प्रहेलिका जातिः ३६. अजित उवाचविरही कराली गोरडी, पीडी नयेण-सरेण, चंपकमाला उरि धरई, वाहाली कारणि केण. ४३२ शीलवती उवाचपूर्वहरेणमोदग्धः अधुनापि हरलिंगाकारधारिणी, चंपककलि कापि काणतापोपशांति चितनोतु. ४३३ अजित उवाचप्रीउ चाल्यु परदेशडइ, ओ उगिउ बीय-चंद, विरहणी वनिता गुण घणेइ, कुण जाणइ वृत्तंत. ४३४ विरह जगावइ कोकिला, कुहु कुहु पंचम भावि, गोरी गाइ गीतवर, विरहणी कवण सभावि. ४३५ पीउ परदेसी आवीउ, बाला देखी सलज्ज, कोइल वायल करडु, ए पूजिया कुण काजि. ४३६ हंस उडाडिउ बालाइ, प्रीउ चालंतु जाणि, पंजर आगलि मेहलीउ, गोरी भाव वियाणी. ४३७ बाला विरहानलि तपी, खिणि खिणि दुख न खमाइ, अंगिनि धन जि अंगमी, मसिहर सेवइ मांइ. ४३८ प्रिय विण झूरइ बालिका, सूकी खंखर थाइ, गज-गामिनि मृग-लोयणी, कां उध्वब्भय जाइ. ४३९ रथा सम्मुह पिउ मिल्यु, जुहार न कीधु जाइ, लाजि चतुरा कंठथी, हार सत्रोडइ कांइ. ४४० राखीतु रहिसइ नहीं, पीऊडु चालणहार, मोकलावइ भोंति आंतरइ, गोरी कठण विचारी. ४४१ १ सजन सेरी साहा मिल्यु', नीचा नम्युन जाई (पाठान्तर 'क'). Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004029
Book TitleShrungarmanjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai V Sheth
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1978
Total Pages308
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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