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जयवंतसूरिकृत
परिमल रस परि पंथ ए, मंथ ए मानिनी मान, मलय-समीर आनंदन, मदनसेना नींसांण, युवती-जन रत-जलहर, लहरि मनोहर वाइ, पंथी-मन धरि आविवा, अति उतावलि धाइ, ५२५ वायुलु कुसुम-कामिनि विलसवा, मलयथी आव्यु वन वसिवा, वन मांहि देखी कुसुमावली, विरहिणी विरहिं थाइ आकली. ५२३ नव नव चंपकनी कली, नीकली सोविन-वानि, जाणे कामनी दीपिका, कामिनी दीपइ काम, अलि-अल कज्जल धारती, वधारती सुरंग, परिमल-गुणि महिमहिती, दहिती पांथ पतंग. ५२७ भमरलु कोइ बइठउ चांपइ, तेणि भारि काची-कली कांपइ, प्रीउडु नव-बाला चांपइ, रितु-वसंत एणी परि व्यापइ. ५२८ देखी अंबर सालय, वरसालइ , मधु-मासि, कोइलि पंथीय-वधकर, मधुकर बइठा पासि, इम कोइ वनिता विरहणि, रहणि न पामइ ठाम, क्षणि धरि क्षणि वन-तरुअरि, किहिं नवि लइ विश्राम. ५२९ विरह-ताप सखि मई न खमाइ, दिन ग{ पणि रात्रि न जाई, वसंत-मासि देखी मनि गहिबरी, विरहणी कहइं हुं का अवतरी ५३० मेहलि-न मान तूं मानिनि, मानि-न वचन रसाल, प्रीउनि चलने ताडि म, ताड म आणसि बोल, पाइ पडी करइ मीनति, वीनति तूं अवधारि, कोइलडी इम बुजवइ, बइठी वर-सहकारि. कामिनी कोइ कामि आकली, पाइ पडी अनइ मनावइ वली वली, जाइ यौवन जाइ वसंत है, मेहलि मान हवि बोल-न कंत है. ५३२ केलि करइ के. सूअडा, केसूअडानी डालि, भमर भला तिहां भोलव्या, रोलव्यां रंग रसालि, वसंत वधू-जन वल्लभ, जाणे कुंकम-रोल, कामराय मुख-मंडन, सरस सुरंग तंबोल, ५३३ विरहिणी-जन प्राण निराकरइ, तिणि शोणित रात्रिम अणुसरइ, केसूअडी तणी हारि सुवांकडी, काम तणी ए जाणे आंकडी. ५३४ सुंदरि कुच-युग सोदर, सुंदर पीन विशाल, कंटक-प्रिय नख विलखीय, देखीअ अतिहिं रसाल, बीली-फल तव पंथीय, हइडइ उपाइ जाल, अणदीठिं . उचाटन, टीठिंइ सालइ साल.
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